परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 190

28 जुलाई, 2020

वे लोग जिन्हें परमेश्वर में विश्वास नहीं है अक्सर इस गलतफहमी में रहते हैं कि वह प्रत्येक चीज़ जिसे देखा जा सकता है अस्तित्व में है, जबकि प्रत्येक वह चीज जिसे देखा नहीं जा सकता, जो लोगों से बहुत दूरी पर है, उसका अस्तित्व नहीं है। वे इस बात पर विश्वास करना अधिक पंसद करते हैं कि "जीवन और मृत्यु चक्र" जैसी कोई चीज नहीं है और कोई "दण्ड" नहीं है और इसलिए वे बिना किसी खेद या अनुताप के पाप और दुष्टता करते हैं—जिसके बाद वे दण्डित किये जाते हैं और वे पशु के रुप में जन्म लेते हैं। अविश्वासियों में से अधिकतर लोग इस पापमय चक्र में फंस जाते हैं। और ऐसा क्यों होता है? क्योंकि वे इस बात से अनभिज्ञ होते हैं कि आत्मिक संसार समस्त जीवधारियों के संबंध में अपने प्रशासन में सख्त है। चाहे तुम विश्वास करो अथवा नहीं, वह सच्चाई तो है, क्योंकि एक भी व्यक्ति या वस्तु परमेश्वर की आंखों के परिक्षेत्र से बच नहीं सकती और एक भी व्यक्ति या वस्तु स्वर्गीय आज्ञाओं और परमेश्वर के आदेशों के नियमों और उनकी सीमाओं से बच नहीं सकता। और इसलिये मैं तुम में से प्रत्येक को यह साधारण उदाहरण देता हूं; तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो अथवा नहीं, पाप करना और दुष्टतापूर्ण कार्य करना अस्वीकार्य है, इनके दुष्परिणाम होते हैं और यह बिल्कुल सुनिश्चित है। जब धोखे से कोई किसी का धन हड़पता है और दण्डित किया जाता है तो ऐसा दण्ड उचित और तर्कसंगत है और धर्मी है। साधारण रुप से देखे जाने वाले व्यवहार जैसे कि यह है, वे आत्मिक संसार से दण्डित किये जाते हैं, स्वर्गीय आज्ञाओं और परमेश्वर के आदेशों से दण्डित होते हैं और इसलिये गंभीर आपराधिक और दुष्टतापूर्ण व्यवहार—बलात्कार करना, लूटपाट करना, धोखाधड़ी और चालाकी, चोरी और डाका डालना, हत्या और आगजनी और इसी प्रकार की अन्य बातें—अलग अलग प्रकार की सख्ती वाले दण्ड की श्रृंखला के दायरे में आते हैं। और इन कठोर दंड के दायरे में क्या-क्या आता है? उनमें से कुछ में सख्ती के स्तरों का निर्धारण करने के लिये समय का प्रयोग करते हैं, कुछ विभिन्न तरीकों को इस्तेमाल करते हैं और अन्य ऐसा उस माध्यम से करते हैं, जहां लोग जन्म के बाद जाते हैं। उदाहरण के लिये, कुछ लोगों के मुख दुष्टतापूर्ण बातों से भरे रहते हैं। यह दुष्टतापूर्ण बातों से मुख भरा रहना किस बात को बताता है? इसका अर्थ होता है दूसरों को गाली देना और भद्दी भाषा का उपयोग करना, वह भाषा जो दूसरों को शाप देती है। यह भद्दी और गन्दी भाषा क्या दर्शाती है? यह दर्शाती है कि किसी का हृदय दुष्टता से भरा है। गन्दी भाषा जो लोगों को शापित करती है, ऐसे ही लोगों के मुख से निकलती है, और ऐसी गन्दी भाषा के साथ सख्त परिणाम जुड़े होते हैं। ऐसे लोग मरने और उचित दण्ड भोगने के पश्चात पुनः गूंगे या मूक उत्पन्न हो सकते हैं। कुछ लोग, जब वे जीवित रहते हैं तो बडे नाप-जोख वाले होते हैं, वे प्रायः दूसरों का लाभ उठाते हैं। विशेषकर उनकी छोटी-छोटी योजनाएं बहुत सोच-विचार करके बनाई गई होती हैं और वे अधिकतर वही कार्य करते हैं जिनसे दूसरों को अधिक हानि पहुंचे। जब उनका पुनर्जन्म होता है तो वह मंदबुद्धि या मानसिक रुप से विकलांग हो सकते हैं। कुछ लोग दूसरों की एकान्तता में ताका-झांकी करते हैं: उनकी आंखें कुछ-कुछ वह सब देख लेती हैं जिसका साक्षी उन्हें नहीं होना चाहिये था और वे इन बातों को जान लेते हैं जिन्हें उन्हें नहीं जानना चाहिये था और इसलिये जब उनका पुनर्जन्म होता है तो अन्धे उत्पन्न हो सकते हैं। कुछ लोग जीवित अवस्था में बहुत फुर्तीले होते हैं। वे प्रायः झगडते हैं और दुष्टता के बहुत से कार्य करते हैं और इस प्रकार जब उनका पुनर्जन्म होता है तो वे विकलांग, लंगड़े, टुंडे या कुबड़े हो सकते हैं, या टेढ़ी गर्दन वाले हो सकते हैं, लचक कर चलने वाले हो सकते हैं या उनका एक पैर दूसरे की अपेक्षा छोटा हो सकता था आदि-आदि। इसमें उन्हें विभिन्न दण्डों को अपनी जीवित अवस्था में किये गये दुष्टता पूर्ण कार्यो के स्तर के अनुसार भोगना पड़ता है। और तुम क्या कहते हो, लोग भैंगे क्यों होते हैं? क्या ऐसे काफी लोग होते हैं? ऐसे आस-पास बहुत से लोग होते हैं। कुछ लोग भैंगे इसलिये होते हैं क्योंकि उन्होंने विगत जीवनकाल में अपनी आँखों का गलत उपयोग किया, उन्होंने अनेक बुरे कार्य किये और इसलिये जब वे इस जीवन में उत्पन्न होते हैं तब उनकी आँखें भैंगी होती हैं और गंभीर मामलों में वे अन्धे भी होते हैं। यह प्रतिफल है! कुछ लोग अपनी मृत्यु पूर्व दूसरों के साथ बहुत अच्छे से निभाते हैं, वे अपने अपने आस-पास के लोगों के साथ बहुत से अच्छे कार्य करते हैं, जैसे जो उनके प्रिय हैं साथी हैं, या वे लोग हैं जो उनसे जुड़े होते हैं। वे दूसरों की सहायता करते हैं, वे दान देते हैं और दूसरों की चिन्ता करते हैं, या आर्थिक रुप से सहायता करते हैं, लोग उनके बारे में बहुत अच्छी राय रखते हैं और जब ऐसे लोग आत्मिक संसार में वापस आते है तब उन्हें दंडित नहीं किया जाता। एक अविश्वासी को जब किसी प्रकार से दण्डित नहीं किया जाता है तो इसका अर्थ है कि वह बहुत ही अच्छा इन्सान था। परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करने के बजाय, वे केवल आसमान में एक वृद्ध व्यक्ति पर अपना विश्वास रखते हैं। वे केवल इतना ही विश्वास करते हैं कि एक आत्मा है जो ऊपर है और जो कुछ वे करते हैं उसे देखता है—वे केवल इसी बात में विश्वास करते हैं। और इसका क्या परिणाम होता है? लोगों के साथ उनका व्यवहार काफी बेहतर होता है। ये लोग दयालु और दयावान होते हैं और जब अन्ततः वे आत्मिक संसार में वापस जाते हैं तब आत्मिक संसार उनका स्वागत करता है और वे जल्द ही दुनिया में वापस आते हैं और नया जन्म पाते हैं। और वे किस प्रकार के परिवार में आयेंगे? यद्यपि वह धनी नहीं होगा, लेकिन उसका पारिवारिक जीवन शान्तिमय होगा, परिवार के सदस्यों में सामंजस्य होगा, उनके दिन शांति, खुशहाली में गुज़रेंगे, प्रत्येक जन खुशी से भरा होगा और उनका जीवन अच्छा होगा। जब व्यक्ति प्रौढ़ अवस्था को प्राप्त करेगा, तो वह अनेक पुत्र और पुत्रियां उत्पन्न करेगा और उसका परिवार बड़ा होगा, उसकी संतानें गुणवान होंगी और सफलता उनके कदम चूमेगी, और वह तथा उसका परिवार अच्छे भाग्य का आनन्द उठायेगा—और ऐसा परिणाम व्यक्ति के विगत जीवन से जुड़ा होता है। कहने का आशय है कि एक व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन उसके मरने के बाद तक, जब वह फिर से जन्म लेता है तो वह कहां जाएगा, पुरुष होंगे अथवा स्त्री, उनका लक्ष्य क्या है, जीवन में वे क्या क्या भोगेंगे, उनकी बाधाएं, वे किन आशीषों का सुख भोगेंगे, वे किनसे मिलेंगे, उनके साथ क्या होगा—कोई इसकी भविष्यवाणी नहीं कर सकता, इससे न तो कोई बच सकता है, न ही छिप सकता है। कहने का अर्थ है कि तुम्हारे जीवन के मार्ग के निश्चित हो जाने के पश्चात, तुम्हारे साथ क्या होता है उसमें, तुम इससे चाहे कितना भी बचने का प्रयत्न करो, चाहे किसी साधन द्वारा तुम बचने का प्रयास करो, आत्मिक संसार में परमेश्वर ने तुम्हारे लिये जो मार्ग निर्धारित कर दिया है तुम्हारे पास उसके उल्लंघन का कोई उपाय नहीं है। क्योंकि जब तुम जन्म लेते हो तो तुम्हारा प्रारब्ध पहले ही निश्चित किया जा चुका होता है। चाहे वह अच्छा हो अथवा बुरा, प्रत्येक को इसका सामना करना चाहिये और आगे बढते रहना चाहिये; यह वह विषय है जिससे कोई भी जो इस संसार में जीवित है, बच नहीं सकता, और कोई विषय इससे अधिक वास्तविक नहीं है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X

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