परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 158

01 अगस्त, 2020

शैतान द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट करने के लिए सामाजिक प्रवृत्तियों का उपयोग करना

शैतान के मामले में भी विशेष व्याख्या की आवश्यकता है जो मनुष्य को भ्रष्ट करने के लिए सामाजिक प्रवृत्तियों का लाभ उठाता है। इन सामाजिक प्रवृत्तियों में अनेक बातें शामिल होती हैं। कुछ लोग कहते हैं: "क्या वे उन कपड़ों के विषय में हैं जिन्हें हम पहनते हैं? क्या वे नवीतनम फैशन, सौन्दर्य प्रसाधनों, बाल बनाने की शैली एवं स्वादिष्ट भोजन के विषय में हैं?" क्या वे इन चीज़ों के विषय में हैं? ये प्रवृतियों (प्रचलन) का एक भाग हैं, परन्तु हम यहाँ इन बातों के विषय में बात करना नहीं चाहते हैं। ऐसे विचार जिन्हें सामाजिक प्रवृत्तियाँ लोगों के लिए ले कर आती हैं, जिस रीति से वे संसार में स्वयं को संचालित करने के लिए लोगों को प्रेरित करती हैं, और जीवन के लक्ष्य एवं बाह्य दृष्टिकोण जिन्हें वे लोगों के लिए लेकर आती हैं हम केवल उनके विषय में ही बात करने की इच्छा करते हैं। ये अत्यंत महत्वपूर्ण हैं; वे मनुष्य के मन की दशा को नियन्त्रित एवं प्रभावित कर सकते हैं। एक के बाद एक, ये सभी प्रवृत्तियाँ एक दुष्ट प्रभाव को लेकर चलती हैं जो निरन्तर मनुष्य को पतित करती रहती हैं, जो उनकी नैतिकता एवं उनके चरित्र की गुणवत्ता को और भी अधिक नीचे ले जाती हैं, उस हद तक कि हम यहाँ तक कह सकते हैं कि अब अधिकांश लोगों के पास कोई ईमानदारी नहीं है, कोई मानवता नहीं है, न ही उनके पास कोई विवेक है, और कोई तर्क तो बिलकुल भी नहीं है। अतः ये प्रवृत्तियाँ क्या हैं? तुम नग्न आँखों से इन प्रवृत्तियों को नहीं देख सकते हो। जब एक प्रवृत्ति (प्रचलन) की हवा आर पार बहती है, तो कदाचित् सिर्फ कम संख्या में ही लोग प्रवृत्ति के निर्माता बनेंगे। वे इस किस्म की चीज़ों को करते हुए शुरुआत करते हैं, इस किस्म के विचार या इस किस्म के दृष्टिकोण को स्वीकार करते हैं। फिर भी अधिकांश लोगों को उनकी अनभिज्ञता के मध्य इस किस्म की प्रवृत्ति के द्वारा अभी भी संक्रमित, सम्मिलित एवं आकर्षित किया जाएगा, जब तक वे सब इसे अनजाने में एवं अनिच्छा से स्वीकार नहीं कर लेते हैं, और जब तक सभी को इस में डूबोया एवं इसके द्वारा नियन्त्रित नहीं किया जाता है। क्योंकि मनुष्य जो एक स्वस्थ्य शरीर एवं मन का नहीं है, जो कभी नहीं जानता है कि सत्य क्या है, जो सकारात्मक एवं नकारात्मक चीज़ों के बीच अन्तर नहीं बता सकता है, इन किस्मों की प्रवृत्तियाँ एक के बाद एक उन सभों को स्वेच्छा से इन प्रवृत्तियों, जीवन के दृष्टिकोण, जीवन के दर्शन ज्ञान एवं मूल्यों को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करती हैं जो शैतान से आती हैं। जो कुछ शैतान उनसे कहता है वे उसे स्वीकार करते हैं कि किस प्रकार जीवन तक पहुँचना है और जीवन जीने के उस तरीके को स्वीकार करते हैं जो शैतान उन्हें "प्रदान" करता है। उनके सभी वह सामर्थ्य नहीं है, न ही उनके पास वह योग्यता है, प्रतिरोध करने की जागरूकता तो बिलकुल भी नहीं है। अतः पृथ्वी पर ये प्रवृत्तियाँ क्या हैं? मैंने एक साधारण सा उदाहरण चुना है कि तुम लोगों को समझ में आ सके। उदाहरण के लिए, अतीत में लोग अपने व्यवसाय को इस प्रकार से चलाते थे जो न तो किसी बूढ़े को धोखा देता था और न ही छोटे को, और जो सामानों को उसी दाम में बेचते थे इसकी परवाह किए बगैर कि कौन खरीद रहा है। क्या यहाँ पर विवेक एवं मानवता का एक संकेत नहीं दिया गया है? अपने व्यवसाय को संचालित करते समय जब लोग इस प्रकार की श्रद्धा का उपयोग करते हैं, तो क्या हम कह सकते हैं कि उनके पास अभी भी कुछ विवेक है, और अभी भी उस समय कुछ मानवता है? (हाँ।) परन्तु धन की हमेशा बढ़ती हुई मात्रा के लिए मनुष्य की माँग के साथ, लोग अनजाने में और भी अधिक धन से प्रेम, लाभ से प्रेम और आनन्द से प्रेम करने लग जाते थे। अतः क्या लोग धन को अत्यंत महत्वपूर्ण चीज़ के रुप में देखने लगे थे? जब लोग धन को अत्यंत महत्वपूर्ण चीज़ के रूप में देखते हैं, तो वे अनजाने में ही अपनी प्रसिद्धि, अपनी प्रतिष्ठा, इज्ज़त, एवं ईमानदारी की उपेक्षा करते हैं; वे इन सभी चीज़ों की उपेक्षा करते हैं, क्या वे उपेक्षा नहीं करते हैं? जब तुम व्यवसाय में संलग्न होते हो, तो तुम किसी और को अलग रास्तों को लेते हुए और लोगों को ठगने के लिए विभिन्न माध्यमों का उपयोग करते हुए और धनी बनते हुए देखते हो। हालाँकि जो धन कमाया गया है वह बेईमानी से प्राप्त हुआ लाभ है, फिर भी वे और भी अधिक धनी बनते जाते हैं। तुम्हारे ही समान उनका पूरा परिवार उसी व्यवसाय में लग जाता है, परन्तु जितना तुम आनन्द उठाते हो उसकी अपेक्षा वे कहीं अधिक जीवन का आनन्द उठाते हैं, और तुम यह कहते हुए बुरा महसूस करते हो: "मैं वैसा क्यों नहीं कर सकता हूँ? मैं उतना क्यों नहीं कमा सकता हूँ जितना वे कमाते हैं? मुझे और अधिक धन प्राप्त करने के लिए, एवं मेरे व्यवसाय की उन्नति के लिए किसी मार्ग के विषय में सोचना होगा।" तब तुम इस पर पूरी तरह से विचार करते हो। धन कमाने के सामान्य तरीके के अनुसार, न तो बूढ़े को और न ही छोटे को ठगते हो और सभों को एक ही कीमत पर सामानों को बेचते हो, तो वह धन जो तुम कमाते हैं वह अच्छे विवेक से है, परन्तु यह तुम्हें जल्दी से अमीर नहीं बना सकता है। फिर भी, लाभ कमाने के आवेग के अंतर्गत, तुम्हारी सोच क्रमिक रूपान्तरण से होकर गुज़रती है। इस रुपान्तरण के दौरान, तुम्हारे आचरण के सिद्धान्त भी बदलना शुरू हो जाते हैं। जब तुम पहली बार किसी को धोखा देते हो, जब तुम पहली बार किसी को ठगते हो, तो तुम्हारे पास अपने कारण होते हैं, यह कहते हुए, "यह आखिरी बार है कि मैं ने किसी को धोखा दिया है और मैं इसे दोबारा नहीं करूँगा। मैं लोगों को धोखा नहीं दे सकता हूँ। लोगों को धोखा देना केवल प्रतिशोध कमाएगा और मेरे ऊपर विनाश लेकर आएगा! यह आखिरी बार है कि मैं ने किसी को धोखा दिया है और मैं इसे दोबारा नहीं करूंगा।" जब तुम पहली बार किसी को धोखा देते हो तो तुम्हारे हृदय में कुछ सन्देह होते हैं; यह मनुष्य के विवेक का कार्य है—सन्देहों का होना और तुम्हारी निन्दा करना, ताकि जब तुम किसी को धोखा देते हो तो असहज महसूस होता है। परन्तु जब तुम किसी को सफलतापूर्वक धोखा दे देते हो उसके पश्चात् तुम देखोगे कि अब तुम्हारे पास पहले की अपेक्षा अधिक धन है, और तुम सोचते हो कि यह तरीका तुम्हारे लिए अत्यंत फायदेमंद हो सकता है। तुम्हारे हृदय में हल्का सा दर्द होने के बावजूद, तुम अभी भी ऐसा महसूस करते हो कि अपनी "सफलता" पर स्वयं को बधाई दें, और तुम्हें स्वयं से थोड़ी बहुत प्रसन्नता का एहसास होता है। क्योंकि पहली बार, तुमने अपने स्वयं के व्यवहार के विषय में मंजूरी दी है और अपने स्वयं के धोखे के विषय में मंजूरी दी है। इसके बाद, जब एक बार मनुष्य को ऐसे धोखे से दूषित कर दिया जाता है, तो वह उस व्यक्ति के समान होता है जो जुए में शामिल होता है और फिर एक जुआरी बन जाता है। अनभिज्ञता में, वह अपने धोखाधड़ी के व्यवहार को मंजूरी देता है और उसे स्वीकार कर लेता है। अनभिज्ञता में, वह धोखाधड़ी को जायज़ व्यावसायिक व्यवहार मान लेता है, और धोखाधड़ी को अपने ज़िन्दा बचे रहने के लिए और अपने जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी माध्यम मान लेता है; वह सोचता है कि ऐसा करने के द्वारा वह जल्दी से धनी बन सकता है। इस प्रक्रिया की शुरुआत में लोग इस प्रकार के व्यवहार को स्वीकार नहीं करते हैं, जब तक वे व्यक्तिगत रीति से एवं प्रत्यक्ष रूप से इसकी कोशिश नहीं करते हैं और अपने स्वयं के तरीके से इसके साथ प्रयोग नहीं कर लेते हैं, वे इस व्यवहार को और इस रीति से कार्यों को अंजाम देने को नीची दृष्टि से देखते हैं, और तब उनका हृदय धीरे धीरे रूपान्तरित होना शुरू होता है। अतः यह रूपान्तरण क्या है? यह इस प्रवृत्ति (प्रचलन) की मंजूरी एवं स्वीकृति है, इस प्रकार के विचार की स्वीकृति एवं मंजूरी जिसे तुम्हारी सामाजिक प्रवृत्ति के द्वारा तुम्हारे भीतर डाला गया है। अनभिज्ञता में, तुम महसूस करते हो कि यदि तुम व्यवसाय में धोखा नहीं देते हो तो तुम हानि उठाओगे, यह कि यदि तुम धोखा नहीं देते हो तो तुम किसी चीज़ को खो चुके होगे। अनजाने में, यह धोखाधड़ी तुम्हारी आत्मा, तुम्हारा मुख्य आधार बन जाती है, और साथ ही एक प्रकार का व्यवहार भी बन जाती है जो तुम्हारे जीवन के लिए एक ज़रूरी नियम है। जब मनुष्य इस प्रकार के व्यवहार एवं ऐसी सोच को स्वीकार कर लेता है उसके बाद, क्या मनुष्य का हृदय किसी परिवर्तन से होकर गुज़रता है? तुम्हारा हृदय बदल गया है, अतः क्या तुम्हारी ईमानदारी बदल गई है? क्या तुम्हारी मानवता बदल गई है? (हाँ।) अतः क्या तुम्हारा विवेक बदल गया है? (हाँ।) मनुष्य की सम्पूर्णता एक गुणात्मक परिवर्तन से होकर गुज़रती है, उनके हृदय से लेकर उनके विचारों तक, उस हद तक कि वे भीतर से लेकर बाहर तक बदल जाते हैं। यह परिवर्तन तुम्हें परमेश्वर से दूर और दूर रखता है, तथा तुम और भी अधिक शैतान के अनुरूप, तथा और भी अधिक उसके समान होते जाते हो।

अब इन सामाजिक प्रवृत्तियों को समझना तुम्हारे लिए आसान है। मैंने बस एक सरल उदाहरण को चुना था, साधारण रूप में देखा जानेवाला उदाहरण जिससे लोग परिचित से होंगे। क्या इन सामाजिक प्रवृत्तियों का लोगों पर बड़ा प्रभाव होता है? (हाँ!) अतः क्या इन सामाजिक प्रवृत्तियों का लोगों पर अत्यंत हानिकारक प्रभाव होता है? (हाँ!) लोगों पर बहुत ही गहरा हानिकारक प्रभाव होता है। शैतान मनुष्य की किस चीज़ को भ्रष्ट करने के लिए इन सामाजिक प्रवृत्तियों को एक के बाद एक इस्तेमाल करता है? (विवेक, तर्क, मानवता, नैतिकता।) और क्या? (जीवन के प्रति मनुष्य का दृष्टिकोण।) क्या ये मनुष्य में क्रमिक पतन को अंजाम देते हैं? (हाँ।) शैतान इन सामाजिक प्रवृत्तियों का इस्तेमाल करता है ताकि एक समय में एक कदम उठाकर लोगों को दुष्ट आत्माओं के घोंसले में आने के लिए लुभा सके, ताकि ऐसे लोग जो सामाजिक प्रवृत्तियों में फँस जाते हैं वे अनजाने में ही धन एवं भौतिक इच्छाओं की तरफदारी करें, साथ ही साथ दुष्टता एवं हिंसा की तरफदारी करें। जब एक बार ये चीज़ें मनुष्य के हृदय में प्रवेश कर जाती हैं, तो मनुष्य क्या बन जाता है? मनुष्य दुष्ट शैतान बन जाता है! यह मनुष्य के हृदय में मनोवैज्ञानिक ज्ञान के अर्जन के कारण है? मनुष्य किस बात की तरफदारी करता है? मनुष्य दुष्टता एवं हिंसा को पसन्द करना शुरू कर देता है। वे खूबसूरती या अच्छाई को पसन्द नहीं करते हैं, और शांति को तो बिलकुल भी पसन्द नहीं करते हैं। लोग सामान्य मानवता के साधारण जीवन को जीने की इच्छा नहीं करते हैं, परन्तु इसके बजाए ऊँचे रुतबे एवं अपार धन समृद्धि का आनन्द उठाने की, एवं देह के सुखविलासों में मौज करने की इच्छा करते हैं, और उन्हें रोकने के लिए प्रतिबंधों के बिना और बन्धनों के बिना अपनी स्वयं की देह को संतुष्ट करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। अतः जब मनुष्य इस किस्म की प्रवृत्तियों में डूब जाता है, तो वह ज्ञान जो तुमने सीखा है क्या वह तुम्हें स्वतन्त्र करने में तुम्हारी सहायता कर सकता है? पारम्परिक संस्कृति एवं अंधविश्वास जिन्हें तुम जानते हो क्या वे इस भीषण परिस्थिति को दूर करने में तुम्हारी सहायता कर सकते हैं? पारम्परिक आचार व्यवहार एवं पारम्परिक धार्मिक विधि विधान जिन्हें मनुष्य समझता है क्या वे उन्हें संयम बरतने में सहायता कर सकते हैं? उदाहरण के लिए तीन उत्कृष्ट चरित्र के उदाहरण को लो। क्या यह इन प्रवृत्तियों के रेतीले दलदल से अपने पावों को बाहर निकालने में लोगों की सहायता कर सकता है? (नहीं, यह नहीं कर सकता।) इस रीति से, मनुष्य और भी अधिक क्या बनता जाता है? और भी अधिक दुष्ट, अभिमानी, अपने को ऊँचा दिखाने वाला, स्वार्थी एवं दुर्भावनापूर्ण। लोगों के बीच में अब और कोई स्नेह नहीं रह गया है, परिवार के सदस्यों के बीच अब और कोई प्रेम नहीं रह गया है, रिश्तेदारों एवं मित्रों के बीच में अब और कोई समझदारी नहीं रह गई है; मानवीय रिश्ते धोखेबाज़ी से भर गए हैं, और हिंसा से भरपूर हो गए हैं। हर एक व्यक्ति अपने साथी मनुष्य के मध्य रहने के लिए धोखा देने के माध्यमों एवं हिंसक तरीकों का उपयोग करना चाहता है; वे झूठ बोलते हैं, धोखा देते हैं और हिंसक हो जाते हैं जिससे अपनी स्वयं की आजीविका पर कब्ज़ा कर सकें; वे हिंसा का इस्तेमाल करके अपने पद स्थान को जीत लेते हैं और स्वयं के लाभों को अर्जित करते हैं और वे हिंसा एवं बुरे तरीकों का उपयोग करके जो कुछ चाहते हैं वह करते हैं। क्या ऐसी मानवता भयावह नहीं है? (हाँ।) अभी अभी मुझे इन चीज़ों के विषय में बात करते हुए सुनने के बाद, क्या तुम लोग नहीं सोचते हो कि इस प्रकार की भीड़ के बीच में रहना, इस संसार में एवं इस पर्यावरण में रहना भयावह है जिसे शैतान ने भ्रष्ट कर दिया है? (हाँ।) अतः क्या तुम लोगों ने कभी अपने आपको अभागा महसूस किया है? अब तुम सब थोड़ा बहुत ऐसा महसूस करते होगे। (हाँ।) तुम लोगों के स्वर को सुनकर, ऐसा प्रतीत होता है मानो तुम लोग सोच रहे हो कि "शैतान मनुष्य को भ्रष्ट करने के लिए कितने सारे भिन्न-भिन्न तरीकों का इस्तेमाल करता है। वह प्रत्येक अवसर को झपट लेता है और जहाँ कहीं हम जाते हैं वह वहाँ है। क्या मनुष्य को अभी भी बचाया जा सकता है?" क्या अभी भी मानवजाति के लिए कोई आशा है? क्या मनुष्य अपने आपको बचा सकता है? (नहीं।) क्या जेड सम्राट मनुष्य को बचा सकता है? क्या कन्फयूशियस (चीनी दर्शनशास्त्री) मनुष्य को बचा सकता है? क्या गुआन्यिन बोधिसत्व मनुष्य को बचा सकता है? (नहीं।) अतः मनुष्य को कौन बचा सकता है? (परमेश्वर।) फिर भी, कुछ लोग अपने अपने हृदय में ऐसे प्रश्नों को उठाएँगेः "शैतान हमें इतनी बुरी तरह से हानि पहुँचाता है, इतने पागलपन से कि हमारे पास जीने की कोई उम्मीद नहीं होती है, न ही जीवन में कोई दृढ़ विश्वास होता है। हम सभी भ्रष्टता के बीच में जीते हैं और हर एक व्यक्ति किसी न किसी तरीके से परमेश्वर का प्रतिरोध करता है, जिससे अब हमारा हृदय पूरी तरह से सुन्न हो गया है। अतः जब शैतान हमें भ्रष्ट कर रहा है, तो परमेश्वर कहाँ है? परमेश्वर क्या कर रहा है? जो कुछ भी परमेश्वर हमारे लिए कर रहा है हम उसे कभी महसूस नहीं करते हैं!" कुछ लोग अनिवार्य रूप से कुछ हानि उठाते हैं और अनिवार्य रूप से कुछ निराशा का अनुभव करते हैं। तुम लोगों के लिए, यह अनुभूति एवं यह एहसास बहुत ही गहरा है क्योंकि वह सब जो मैं कहता रहा हूँ वह इसलिए है कि लोगों को धीरे धीरे समझ में आ जाए, कि वे और भी अधिक यह महसूस करें कि वे आशारहित हैं, कि वे और भी अधिक यह महसूस करें कि उन्हें परमेश्वर के द्वारा छोड़ दिया गया है। परन्तु चिंता न करें। आज हमारी संगति का विषय, "शैतान की दुष्टता," हमारी वास्तविक विषय वस्तु नहीं है। फिर भी, परमेश्वर की पवित्रता के सार के बारे में बातचीत करने के लिए, किस प्रकार शैतान मनुष्य को भ्रष्ट करता है और शैतान की दुष्टता के विषय में हमें पहले बात करना होगा ताकि इसे लोगों के लिए और अधिक स्पष्ट किया जाए कि मानवजाति इस समय किस प्रकार की स्थिति में है और वास्तव में किस हद तक मनुष्य को भ्रष्ट कर दिया गया है। इसके विषय में बात करने का एक लक्ष्य यह है कि लोगों को शैतान की दुष्टता के बारे में जानने की अनुमति दी जाए, जबकि अन्य लक्ष्य यह है कि लोगों को यह समझने की अनुमति दी जाए कि सच्ची पवित्रता क्या है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI

और देखें

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2024 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

Leave a Reply

साझा करें

रद्द करें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें