परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 101

01 जुलाई, 2020

केवल परमेश्वर, जिसके पास सृष्टिकर्ता की पहचान है, ही अद्वितीय अधिकार रखता है (चुने हुए अंश)

परमेश्वर का अधिकार किसका प्रतीक है? क्या यह स्वयं परमेश्वर की पहचान का प्रतीक है? क्या यह स्वयं परमेश्वर के सामर्थ्य का प्रतीक है? क्या यह स्वयं परमेश्वर की अद्वितीय हैसियत का प्रतीक है? सभी चीजों के बीच, तुमने परमेश्वर का अधिकार किसमें देखा है? तुमने इसे कैसे देखा? मनुष्य द्वारा अनुभव की जाने वाली चार ऋतुओं के संदर्भ में, क्या कोई बसंत, ग्रीष्म, शरद और शीत ऋतु के बीच अंत:परिवर्तन की व्यवस्था बदल सकता है? बसंत ऋतु में पेड़ों पर कलियाँ उगती और खिलती हैं; गर्मियों में वे पत्तियों से ढक जाते हैं; शरद ऋतु में उन पर फल लगते हैं, और सर्दियों में पत्ते गिर जाते हैं। क्या कोई इस व्यवस्था को बदल सकता है? क्या यह परमेश्वर के अधिकार का एक पहलू दर्शाता है? परमेश्वर ने कहा "उजियाला हो," और उजियाला हो गया। क्या यह उजियाला अभी भी मौजूद है? यह किसके कारण मौजूद है? बेशक, यह परमेश्वर के वचनों के कारण, और परमेश्वर के अधिकार के कारण मौजूद है। क्या परमेश्वर द्वारा सृजित हवा अभी भी मौजूद है? क्या मनुष्य जिस हवा में साँस लेता है, वह परमेश्वर से आती है? क्या कोई परमेश्वर से आने वाली चीजें छीन सकता है? क्या कोई उनका सार और कार्य बदल सकता है? क्या कोई परमेश्वर द्वारा नियत रात और दिन, और परमेश्वर द्वारा आदेशित रात और दिन की व्यवस्था नष्ट कर सकता है? क्या शैतान ऐसा कर सकता है? अगर तुम रात को नहीं सोते, और रात को दिन मान लेते हो, तब भी रात ही होती है; तुम अपनी दिनचर्या बदल सकते हो, लेकिन तुम रात और दिन के बीच अंत:परिवर्तन की व्यवस्था बदलने में असमर्थ हो—यह तथ्य किसी भी व्यक्ति द्वारा अपरिवर्तनीय है, है न? क्या कोई शेर से बैल की तरह भूमि जुतवाने में सक्षम है? क्या कोई हाथी को गधे में बदलने में सक्षम है? क्या कोई मुर्गी को बाज की तरह हवा में उड़वाने में सक्षम है? क्या कोई भेड़िये को भेड़ की तरह घास खाने के लिए मजबूर कर सकता है? (नहीं।) क्या कोई पानी में रहने वाली मछली को सूखी जमीन पर जीवित रखने में सक्षम है? यह मनुष्यों द्वारा नहीं किया जा सकता। क्यों नहीं किया जा सकता? इसलिए कि परमेश्वर ने मछलियों को पानी में रहने की आज्ञा दी है, इसलिए वे पानी में रहती हैं। जमीन पर वे जीवित नहीं रह पाएँगी और मर जाएँगी; वे परमेश्वर की आज्ञा की सीमाओं का उल्लंघन करने में असमर्थ हैं। सभी चीजों के अस्तित्व की एक व्यवस्था और सीमा होती है, और उनमें से प्रत्येक की अपनी सहज प्रवृत्ति होती है। वे सृष्टिकर्ता द्वारा नियत की गई हैं, और किसी भी मनुष्य द्वारा अपरिवर्तनीय और अलंघ्य हैं। उदाहरण के लिए, शेर हमेशा मनुष्य के समुदायों से दूर, जंगल में रहेगा, और वह कभी उतना विनम्र और वफादार नहीं हो सकता, जितना कि मनुष्य के साथ रहने और उसके लिए काम करने वाला बैल होता है। हालाँकि हाथी और गधे दोनों जानवर हैं और दोनों के चार पैर होते हैं, और वे जीव हैं जो हवा में साँस लेते हैं, फिर भी वे अलग प्रजातियाँ हैं, क्योंकि उन्हें परमेश्वर द्वारा विभिन्न किस्मों में विभाजित किया गया था, उनमें से प्रत्येक की अपनी सहज प्रवृत्ति होती है, इसलिए वे कभी आपस में बदले नहीं जा सकेंगे। हालाँकि बाज की ही तरह मुर्गे के भी दो पैर और पंख होते हैं, लेकिन वह कभी हवा में नहीं उड़ पाएगा; ज्यादा से ज्यादा वह केवल पेड़ तक उड़ सकता है—यह उसकी सहज प्रवृत्ति से निर्धारित होता है। कहने की जरूरत नहीं कि यह सब परमेश्वर के अधिकार की आज्ञाओं के कारण है।

मानव-जाति के विकास में आज उसके विज्ञान को फलता-फूलता कहा जा सकता है, और मनुष्य की वैज्ञानिक खोज की उपलब्धियाँ प्रभावशाली कही जा सकती हैं। कहना होगा कि मनुष्य की क्षमता लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन एक वैज्ञानिक खोज ऐसी है जिसे करने में मनुष्य असमर्थ रहा है : मनुष्य ने हवाई जहाज, विमान-वाहक और परमाणु बम बना लिए हैं, वह अंतरिक्ष में पहुँच गया है, चंद्रमा पर चला है, उसने इंटरनेट का आविष्कार किया, और एक हाई-टेक जीवन-शैली जीने लगा है, फिर भी वह एक जीवित, साँस लेने वाली चीज बनाने में असमर्थ है। हर जीवित प्राणी की सहज प्रवृत्ति और वे व्यवस्थाएँ जिनके द्वारा वे जीते हैं, और हर किस्म के जीवित प्राणियों के जीवन और मृत्यु का चक्र—ये सब मनुष्य के विज्ञान के सामर्थ्य से परे हैं और उसके द्वारा नियंत्रित नहीं किए जा सकते। इस जगह, कहना होगा कि मनुष्य के विज्ञान ने चाहे जितनी भी महान ऊँचाइयाँ प्राप्त कर ली हों, उनकी तुलना सृष्टिकर्ता के किसी भी विचार के साथ नहीं की जा सकती और वह सृष्टिकर्ता के सृजन की चमत्कारिकता और उसके अधिकार की शक्ति को समझने में असमर्थ है। पृथ्वी पर इतने सारे महासागर हैं, लेकिन उन्होंने कभी अपनी सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया और अपनी इच्छा से भूमि पर नहीं आए, और ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर ने उनमें से प्रत्येक के लिए सीमाएँ निर्धारित की हैं; वे वहीं ठहर गए, जहाँ ठहरने की उसने उन्हें आज्ञा दी, और परमेश्वर की अनुमति के बिना वे आजादी से यहाँ-वहाँ नहीं जा सकते। परमेश्वर की अनुमति के बिना वे एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं कर सकते, और केवल तभी हिल सकते हैं जब परमेश्वर हिलने को कहता है, और वे कहाँ जाएँगे और ठहरेंगे, यह परमेश्वर के अधिकार द्वारा निर्धारित किया जाता है।

साफ कहें तो, "परमेश्वर के अधिकार" का अर्थ है कि यह परमेश्वर पर निर्भर है। परमेश्वर को यह तय करने का अधिकार है कि कोई चीज कैसे करनी है, और उसे उस तरह किया जाता है, जिस तरह से वह चाहता है। सब चीजों की व्यवस्था परमेश्वर पर निर्भर है, मनुष्य पर नहीं; न ही उसे मनुष्य द्वारा बदला जा सकता है। उसे मनुष्य की इच्छा से नहीं हिलाया जा सकता, बल्कि परमेश्वर के विचारों, परमेश्वर की बुद्धि और परमेश्वर के आदेशों द्वारा बदला जाता है; यह एक ऐसा तथ्य है जिससे कोई भी व्यक्ति इनकार नहीं कर सकता। स्वर्ग और पृथ्वी और सभी चीजें, ब्रह्मांड, तारों भरा आकाश, वर्ष के चार मौसम, जो भी मनुष्य के लिए दृश्यमान और अदृश्य हैं—वे सभी थोड़ी-सी भी त्रुटि के बिना, परमेश्वर के अधिकार के तहत, परमेश्वर के आदेशों के अनुसार, परमेश्वर की आज्ञाओं के मुताबिक, और सृष्टि की शुरुआत की व्यवस्थाओं के अनुसार अस्तित्व में हैं, कार्यरत हैं, और बदलते हैं। कोई भी व्यक्ति या चीज उनकी व्यवस्थाएँ नहीं बदल सकती, या वह अंतर्निहित क्रम नहीं बदल सकती जिसके द्वारा वे कार्य करते हैं; वे परमेश्वर के अधिकार के कारण अस्तित्व में आए, और परमेश्वर के अधिकार के कारण नष्ट होते हैं। यही परमेश्वर का अधिकार है। अब जबकि इतना कहा जा चुका है, क्या तुम महसूस कर सकते हो कि परमेश्वर का अधिकार परमेश्वर की पहचान और हैसियत का प्रतीक है? क्या परमेश्वर का अधिकार किसी भी सृजित या गैर-सृजित प्राणी के पास हो सकता है? क्या किसी व्यक्ति, वस्तु या पदार्थ द्वारा इसका अनुकरण, प्रतिरूपण, या प्रतिस्थापन किया जा सकता है?

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I

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