परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 86

21 जून, 2020

परमेश्वर सभी चीजों की सृष्टि करने के लिए वचनों को प्रयोग करता है (चुने हुए अंश)

चौथे दिन, जब परमेश्वर एक बार फिर से अपने अधिकार का उपयोग करता है तो मानवजाति के लिए मौसम, दिन, और वर्ष अस्तित्व में आते हैं

सृष्टिकर्ता ने अपनी योजना को पूरा करने के लिए अपने वचनों का इस्तेमाल किया और इस तरह से उसने अपनी योजना के पहले तीन दिन गुजारे। इन तीन दिनों के दौरान, परमेश्वर व्यस्त, या खुद को थकाता हुआ दिखाई नहीं दिया; बल्कि इसके विपरीत, उसने अपनी योजना के बेहतरीन तीन पहले दिन गुजारे और संसार के विलक्षण रूपान्तरण के महान कार्य को पूरा किया। एक बिलकुल नया संसार उसकी आँखों के सामने प्रकट हुआ और अंश-अंश करके वह खूबसूरत तस्वीर जो उसके विचारों में मुहरबन्द थी, अंततः परमेश्वर के वचनों में प्रगट हो गई। हर नई चीज का प्रकटीकरण एक नवजात बच्चे के जन्म के समान था और सृष्टिकर्ता उस तस्वीर से आनंदित हुआ जो एक समय उसके विचारों में थी लेकिन जिसे अब जीवन्त कर दिया गया था। इस वक्त, उसके दिल को यह देखकर बहुत संतुष्टि मिली, परन्तु उसकी योजना अभी शुरू ही हुई थी। पलक झपकते ही एक नया दिन आ गया था—और सृष्टिकर्ता की योजना में अगला पृष्ठ क्या था? उसने क्या कहा? उसने अपने अधिकार का इस्तेमाल कैसे किया? उस दौरान इस नए संसार में कौन सी नई चीजें आईं? सृष्टिकर्ता के मार्गदर्शन का अनुसरण करते हुए, हमारी निगाहें परमेश्वर द्वारा सभी चीजों की सृष्टि के चौथे दिन पर आ टिकती हैं, एक ऐसा दिन जिसमें एक और नई शुरूआत होने वाली थी। सृष्टिकर्ता के लिए यह निःसंदेह एक और बेहतरीन दिन था, और आज की मानवजाति के लिए यह एक और अति महत्वपूर्ण दिन था। यह निश्चय ही एक बहुमूल्य दिन था। वह इतना बेहतरीन कैसे था, वह इतना महत्वपूर्ण कैसे था और वह इतना बहुमूल्य कैसे था? आओ पहले सृष्टिकर्ता के द्वारा बोले गए वचनों को सुनें ...

"फिर परमेश्‍वर ने कहा, 'दिन को रात से अलग करने के लिये आकाश के अन्तर में ज्योतियाँ हों; और वे चिह्नों, और नियत समयों और दिनों, और वर्षों के कारण हों; और वे ज्योतियाँ आकाश के अन्तर में पृथ्वी पर प्रकाश देनेवाली भी ठहरें'" (उत्पत्ति 1:14-15)। सूखी भूमि और उस पर के पौधों की सृष्टि के बाद यह परमेश्वर के अधिकार का एक बार फिर से उपयोग था जो प्राणियों के द्वारा दिखाया गया था। परमेश्वर के लिए ऐसा कार्य उतना ही सरल था जितना कि उसके द्वारा पहले किए गए कार्य थे, क्योंकि परमेश्वर के पास बड़ी सामर्थ्‍य है; परमेश्वर अपने वचन का पक्का है, और उसके वचन पूरे होंगे। परमेश्वर ने ज्योतियों को आज्ञा दी कि वे आकाश में प्रगट हों, और ये ज्योतियाँ न केवल पृथ्वी के ऊपर आकाश में रोशनी देती थीं, बल्कि दिन और रात और ऋतुओं, दिनों और वर्षों के लिए भी चिह्न के रूप में कार्य करती थीं। इस प्रकार, जब परमेश्वर ने अपने वचनों को कहा, हर एक कार्य जिसे परमेश्वर पूरा करना चाहता था वह परमेश्वर के अभिप्राय और जिस रीति से परमेश्वर ने उन्हें नियुक्त किया था, उसके अनुसार पूरा हो गया।

आकाश में जो ज्योतियाँ हैं, वे आसमान के तत्व हैं जो प्रकाश को बिखेर सकती हैं; वे आकाश, भूमि और समुद्र को प्रकाशमय कर सकती हैं। वे परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार तय की गई लय एवं तीव्रता में परिक्रमा करती हैं और विभिन्न समयकाल में भूमि पर प्रकाश देती हैं और इस रीति से, ज्योतियों की परिक्रमा के चक्र के कारण भूमि के पूर्व और पश्चिम में दिन और रात होते हैं, वे न केवल दिन और रात के चिह्न हैं, बल्कि ये विभिन्न चक्र मानवजाति के लिए त्योहारों और विशेष दिनों को भी चिन्हित करते हैं। वे चारों ऋतुओं—बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, शरद ऋतु, और शीत ऋतु—की पूर्ण पूरक और सहायक हैं, जिन्हें परमेश्वर के द्वारा भेजा जाता है, जिनके साथ ज्योतियाँ एकरूपता से मानवजाति के लिए चन्द्रमा की स्थितियों, दिनों, और सालों के लिए एक निरन्तर और सटीक चिह्न के रूप में कार्य करती हैं। यद्यपि यह केवल कृषि के आगमन के बाद ही हुआ कि मानवजाति ने परमेश्वर द्वारा बनाई गई ज्योतियों द्वारा चन्द्रमा की स्थितियों, दिनों और वर्षों के विभाजन को देखा और समझा, लेकिन वास्तव में चन्द्रमा की स्थितियों, दिनों और वर्षों को जिन्हें मनुष्य आज समझता है, वे बहुत पहले ही, परमेश्वर द्वारा सभी वस्तुओं की सृष्टि के चौथे दिन से प्रारंभ हो चुके थे और इसी प्रकार परस्पर बदलने वाले बसंत, ग्रीष्म, शरद, और शीत ऋतु के चक्र भी जिन्हें मनुष्य के द्वारा अनुभव किया जाता है, वे बहुत पहले ही, परमेश्वर द्वारा सभी वस्तुओं की सृष्टि के चौथे दिन प्रारंभ हो चुके थे। परमेश्वर के द्वारा बनाई गई ज्योतियों ने मनुष्य को इस योग्य बनाया कि वे लगातार, सटीक ढंग से और साफ-साफ दिन और रात के बीच अन्तर कर सकें, दिनों को गिन सकें, साफ-साफ चन्द्रमा की स्थितियों और वर्षों का हिसाब रख सकें। (पूर्ण चन्द्रमा का दिन एक महीने की समाप्ति को दर्शाता था और इससे मनुष्य जान गया कि ज्योतियों का प्रकाशन एक नए चक्र की शुरूआत करता है; अर्द्ध-चन्द्रमा का दिन आधे महीने की समाप्ति को दर्शाता था, जिसने मनुष्य को यह बताया कि चन्द्रमा की एक नई स्थिति शुरू हो रही है, इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता था कि चन्द्रमा की एक स्थिति में कितने दिन और रात होते हैं और एक ऋतु में चन्द्रमा की कितनी स्थितियाँ होती हैं, एक साल में कितनी ऋतुएँ होती हैं, यह सब कुछ बड़ी नियमितता के साथ प्रदर्शित होता था।) इस प्रकार, मनुष्य ज्योतियों की परिक्रमाओं के चिन्‍हांकन से आसानी से चन्द्रमा की स्थितियों, दिनों, और सालों का पता लगा सकता था। यहाँ से, मानवजाति और सभी चीजें अनजाने ही दिन-रात के क्रमानुसार परस्पर परिवर्तन और ज्योतियों की परिक्रमाओं से उत्पन्न ऋतुओं के बदलाव के मध्य जीवन बिताने लगे। यह सृष्टिकर्ता द्वारा चौथे दिन ज्योतियों की सृष्टि का महत्व था। उसी प्रकार, सृष्टिकर्ता के इस कार्य के उद्देश्य और महत्व अभी भी उसके अधिकार और सामर्थ्‍य से अविभाजित थे। इस प्रकार, परमेश्वर के द्वारा बनाई गई ज्योतियाँ और वह मूल्य जो वे शीघ्र ही मनुष्य तक लाने वाले थे, सृष्टिकर्ता के अधिकार के इस्तेमाल में एक और महानतम कार्य था।

इस नए संसार में, जिसमें मानवजाति अभी तक प्रकट नहीं हुई थी, सृष्टिकर्ता ने साँझ और सवेरे, आकाश, भूमि और समुद्र, घास, सागपात और विभिन्न प्रकार के वृक्षों, और ज्योतियों, ऋतुओं, दिनों, और वर्षों को उस नए जीवन के लिए बनाया जिसका वह शीघ्र सृजन करने वाला था। सृष्टिकर्ता का अधिकार और सामर्थ्‍य, हर उस नई चीज में प्रगट हुआ जिसे उसने बनाया था और उसके वचन और उपलब्धियाँ लेश-मात्र भी बिना किसी असंगति या अन्तराल के एक साथ घटित हुए। इन सभी नई चीजों का प्रकटीकरण और जन्म सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ्‍य के प्रमाण थे वह अपने वचन का पक्का है और उसका वचन पूरा होगा और जो पूर्ण हुआ है वो हमेशा बना रहेगा। यह सच्चाई कभी नहीं बदली है : भूतकाल में भी ऐसा था, वर्तमान में भी ऐसा है और पूरे अनंतकाल के लिए ऐसा ही बना रहेगा। जब तुम लोग पवित्र-शास्त्र के उन वचनों को एक बार फिर देखते हो, तो क्या वे तुम्हें तरोताजा दिखाई देते हैं? क्या तुम लोगों ने नई विषय-वस्‍तु देखी है और नई खोज की है? यह इसलिए है क्योंकि सृष्टिकर्ता के कार्यों ने तुम लोगों के हृदय को द्रवित कर दिया है, और उसके अधिकार और सामर्थ्‍य के बारे में तुम सबके ज्ञान की दिशा का मार्गदर्शन किया है और सृष्टिकर्ता की तुम्हारी समझ के लिए द्वार खोल दिया है और उसके कार्य और अधिकार ने इन वचनों को जीवन दे दिया है। इस प्रकार इन वचनों में मनुष्य ने सृष्टिकर्ता के अधिकार का एक वास्तविक, सुस्पष्ट प्रकटीकरण देखा और सचमुच में सृष्टिकर्ता की सर्वोच्चता को देखा है, और उसने सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ्‍य की असाधारणता को देखा है।

सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ्‍य चमत्कार पर चमत्कार करते हैं; वह मनुष्य के ध्यान को आकर्षित करता है। मनुष्य उसके अधिकार के उपयोग से पैदा हुए आश्चर्यजनक कर्मों को टकटकी लगाकर देखने के सिवाए कुछ नहीं कर सकता है। उसका असीमित सामर्थ्‍य अत्यंत प्रसन्नता लेकर आता है और मनुष्य भौंचक्का हो जाता है। वह अतिउत्साह से भर जाता है और प्रशंसा में हक्का-बक्का-सा देखता है। वह विस्मयाभिभूत और हर्षित हो जाता है; और इससे अधिक, मनुष्य जाहिर तौर पर द्रवित हो जाता है, और उसमें आदर, सम्मान, और लगाव उत्पन्न होने लग जाते हैं। सृष्टिकर्ता के अधिकार और कर्मों का मनुष्य की आत्मा पर एक बड़ा अपमार्जक प्रभाव होता है और इसके अलावा यह मनुष्य की आत्मा को संतुष्ट कर देता है। परमेश्वर के हर एक विचार, हर एक बोल, उसके अधिकार का हर एक प्रकाशन, सभी चीजों में अति उत्तम रचना हैं। यह एक महान कार्य है जो सृजी गई मानवजाति की गहरी समझ और ज्ञान के बहुत ही योग्य है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I

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