परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 82

18 मार्च, 2021

जिस दौरान प्रभु यीशु ने देह में रहकर काम किया, उसके अधिकतर अनुयायी उसकी पहचान और उसके द्वारा कही गई चीज़ों को पूरी तरह से सत्यापित नहीं कर सके। जब वह सूली की ओर बढ़ रहा था, तो उसके अनुयायियों का रवैया पर्यवेक्षण का था। फिर, उसे सूली पर चढ़ाए जाने से लेकर क़ब्र में डाले जाने के समय तक उसके प्रति लोगों का रवैया निराशा का था। इस दौरान लोगों ने पहले ही अपने हृदय में उन चीज़ों के बारे में संदेह करने से एकदम नकारने की ओर जाना आरंभ कर दिया था, जिन्हें प्रभु यीशु ने अपने देह में रहने के समय कहा था। फिर जब वह क़ब्र से बाहर आया और एक-एक करके लोगों के सामने प्रकट हुआ, तो उन लोगों में से अधिकांश, जिन्होंने उसे अपनी आँखों से देखा था या उसके पुनरुत्थान का समाचार सुना था, धीरे-धीरे नकारने से संशय करने की ओर आने लगे। केवल जब अपने पुनरुत्थान के बाद प्रभु यीशु ने थोमा से उसका हाथ अपने पंजर में डलवाया, और जब प्रभु यीशु ने भीड़ के सामने रोटी तोड़ी और खाई, और फिर उनके सामने भुनी हुई मछली खाने के लिए बढ़ा, तभी उन्होंने वास्तव में इस तथ्य को स्वीकार किया कि प्रभु यीशु ही देहधारी मसीह है। तुम कह सकते हो कि यह ऐसा था, मानो माँस और रक्त वाला यह आध्यात्मिक शरीर उन लोगों के सामने खड़ा उन्हें स्वप्न से जगा रहा था : उनके सामने खड़ा मनुष्य का पुत्र वह था, जो अनादि काल से अस्तित्व में था। उसका एक रूप, माँस और हड्डियाँ थीं, और वह पहले ही लंबे समय तक मानवजाति के साथ तक रह और खा चुका था...। इस समय लोगों ने महसूस किया कि उसका अस्तित्व बहुत यथार्थ और बहुत अद्भुत था। साथ ही, वे भी बहुत आनंदित और प्रसन्न थे और भावनाओं से भरे थे। उसके पुनः प्रकटन ने लोगों को वास्तव में उसकी विनम्रता दिखाई, मानवजाति के प्रति उसकी नज़दीकी और अनुरक्ति अनुभव कराई, और यह महसूस कराया कि वह उनके बारे में कितना सोचता है। इस संक्षिप्त पुनर्मिलन ने उन लोगों को, जिन्होंने प्रभु यीशु को देखा था, यह महसूस कराया मानो एक पूरा जीवन-काल गुज़र चुका हो। उनके खोए हुए, भ्रमित, भयभीत, चिंतित, लालायित और संवेदनशून्य हृदय को आराम मिला। वे अब शंकालु या निराश नहीं रहे, क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि अब आशा और भरोसा करने के लिए कुछ है। उनके सामने खड़ा मनुष्य का पुत्र अब हर समय उनका पृष्ठरक्षक रहेगा; वह उनका दृढ़ दुर्ग, अनंत काल के लिए उनका आश्रय होगा।

यद्यपि प्रभु यीशु पुनरुत्थित हो चुका था, फिर भी उसके हृदय और उसके कार्य ने मानवजाति को नहीं छोड़ा था। लोगों के सामने प्रकट होकर उसने उन्हें बताया कि वह किसी भी रूप में मौजूद क्यों न हो, वह हर समय और हर जगह लोगों का साथ देगा, उनके साथ चलेगा, और उनके साथ रहेगा। उसने उन्हें बताया कि वह हर समय और हर जगह मनुष्यों का भरण-पोषण और उनकी चरवाही करेगा, उन्हें अपने को देखने और छूने देगा, और यह सुनिश्चित करेगा कि वे फिर कभी असहाय महसूस न करें। प्रभु यीशु यह भी चाहता था कि लोग यह जानें कि इस संसार में वे अकेले नहीं रहते। मानवजाति के पास परमेश्वर की देखरेख है; परमेश्वर उनके साथ है। वे हमेशा परमेश्वर पर आश्रित हो सकते हैं, और वह अपने प्रत्येक अनुयायी का परिवार है। परमेश्वर पर आश्रित होकर मानवजाति अब और एकाकी या असहाय नहीं रहेगी, और जो उसे अपनी पापबलि के रूप में स्वीकार करते हैं, वे अब और पाप में बँधे नहीं रहेंगे। मनुष्य की नज़रों में, प्रभु यीशु द्वारा अपने पुनरुत्थान के बाद किए गए उसके कार्य के ये भाग बहुत छोटी चीज़ें थीं, परंतु जिस तरह से मैं उन्हें देखता हूँ, उसके द्वारा की गई छोटी से छोटी चीज़ भी बहुत अर्थपूर्ण, बहुत मूल्यवान, बहुत प्रभावशाली और भारी महत्व रखने वाली थी।

यद्यपि देह में काम करने का प्रभु यीशु का समय कठिनाइयों और पीड़ा से भरा हुआ था, फिर भी मांस और रक्त की अपनी आध्यात्मिक देह के प्रकटन के माध्यम से, उसने उस समय के मानवजाति को छुड़ाने के अपने कार्य को देह में पूर्णता और कुशलता से संपन्न किया था। उसने देह बनकर अपनी सेवकाई की शुरुआत की और मनुष्यों के सामने अपने दैहिक रूप में प्रकट होकर उसने अपनी सेवकाई का समापन किया। मसीह के रूप में अपनी पहचान के माध्यम से नए युग की शुरुआत करते हुए उसने अनुग्रह के युग की उद्घोषणा की। मसीह के रूप में अपनी पहचान के माध्यम से उसने अनुग्रह के युग में अपना कार्य किया और अनुग्रह के युग में अपने सभी अनुयायियों को मज़बूत किया और उनकी अगुआई की। परमेश्वर के कार्य के बारे में यह कहा जा सकता है कि वह जो आरंभ करता है, उसे वास्तव में पूरा करता है। इस कार्य में कदम और योजना होती है, और वह परमेश्वर की बुद्धि, उसकी सर्वशक्तिमत्ता, उसके अद्भुत कर्मों, उसके प्रेम और दया से भी भरपूर होता है। निस्संदेह, परमेश्वर के समस्त कार्य का मुख्य सूत्र मानवजाति के लिए उसकी देखभाल है; यह उसकी परवाह की भावनाओं से ओतप्रोत है, जिसे वह कभी अलग नहीं रख सकता। बाइबल के इन पदों में, अपने पुनरुत्थान के बाद प्रभु यीशु द्वारा की गई एक-एक चीज़ में मानवजाति के लिए परमेश्वर की अपरिवर्तनीय आशाएँ और चिंता प्रकट हुई, और साथ ही प्रकट हुई मनुष्यों के लिए परमेश्वर की कुशल देखरेख और दुलार। शुरू से लेकर आज तक इसमें से कुछ भी नहीं बदला है—क्या तुम लोग इसे देख सकते हो? जब तुम लोग इसे देखते हो, तो क्या तुम लोगों का हृदय अनजाने ही परमेश्वर के करीब नहीं आ जाता? यदि तुम लोग उस युग में रह रहे होते और प्रभु यीशु पुनरुत्थान के बाद तुम लोगों के सामने मूर्त रूप में प्रकट होता जिसे तुम लोग देख सकते, और यदि वह तुम लोगों के सामने बैठ जाता, रोटी और मछली खाता और तुम लोगों को पवित्रशास्त्र समझाता, तुम लोगों से बातचीत करता, तो तुम लोग कैसा महसूस करते? क्या तुम खुशी महसूस करते? या तुम दोषी महसूस करते? परमेश्वर के बारे में पिछली ग़लतफहमियाँ और उससे बचना, परमेश्वर के साथ टकराव और उसके बारे में संदेह—क्या ये सब ग़ायब नहीं हो जाते? क्या परमेश्वर और मनुष्य के बीच का रिश्ता और अधिक सामान्य और उचित न हो जाता?

बाइबल के इन सीमित अध्यायों की व्याख्या से, क्या तुम लोगों को परमेश्वर के स्वभाव में किसी खामी का पता चलता है? क्या तुम लोगों को परमेश्वर के प्रेम में कोई मिलावट मिलती है? क्या तुम लोगों को परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धि में कोई धोखा या बुराई दिखती है? निश्चित रूप से नहीं! अब क्या तुम लोग निश्चितता के साथ कह सकते हो कि परमेश्वर पवित्र है? क्या तुम निश्चितता के साथ कह सकते हो कि परमेश्वर की प्रत्येक भावना उसके सार और उसके स्वभाव का प्रकाशन है? मैं आशा करता हूँ कि इन वचनों को पढ़ लेने के बाद तुम लोगों को इनसे प्राप्त होने वाली समझ से सहायता मिलेगी और वे अपने स्वभाव में परिवर्तन और परमेश्वर से भय मानने के तुम्हारे प्रयास में तुम लोगों को लाभ पहुँचाएँगे, और वे तुम लोगों के लिए ऐसे फल लाएँगे जो दिन प्रति दिन बढ़ते ही जाएँगे, जिससे खोज की यह प्रक्रिया तुम लोगों को परमेश्वर के और करीब ले आएगी, उस मानक के अधिकाधिक करीब ले आएगी जिसकी अपेक्षा परमेश्वर करता है। तुम लोग सत्य की खोज करने में अब और ऊबा हुआ महसूस नहीं करोगे और तुम लोग अब और ऐसा महसूस नहीं करोगे कि सत्य की और स्वभाव में परिवर्तन की खोज एक कष्टप्रद या निरर्थक चीज़ है। इसके बजाय, परमेश्वर के सच्चे स्वभाव और उसके पवित्र सार की अभिव्यक्ति से प्रेरित होकर तुम लोग ज्योति की लालसा करोगे, न्याय की लालसा करोगे, और सत्य की खोज करने, परमेश्वर की इच्छा पूरी करने का प्रयास करने की आकांक्षा करोगे, और तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए गए व्यक्ति बन जाओगे, एक वास्तविक व्यक्ति बन जाओगे।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III

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