परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 76

11 जून, 2020

जब तुम परमेश्वर के विचारों और मानवजाति के प्रति उसके रवैये को समझने में वास्तव में समर्थ होते हो, जब तुम प्रत्येक प्राणी के प्रति परमेश्वर की भावनाओं और चिंता को वास्तव में समझ सकते हो, तब तुम सृजनकर्ता द्वारा सृजित हर एक मनुष्य पर व्यय की गई उसकी लगन और प्रेम को समझने में भी समर्थ हो जाओगे। जब ऐसा होगा, तब तुम परमेश्वर के प्रेम का वर्णन करने के लिए दो शब्दों का उपयोग करोगे। वे कौन-से दो शब्द हैं? कुछ लोग कहते हैं "निस्स्वार्थ," और कुछ लोग कहते हैं "परोपकारी।" इन दोनों में से "परोपकारी" शब्द परमेश्वर के प्रेम की व्याख्या करने के लिए सबसे कम उपयुक्त है। इस शब्द का उपयोग लोग किसी ऐसे व्यक्ति का वर्णन करने के लिए करते हैं, जो उदारमना या व्यापक सोच वाला हो। मैं इस शब्द से घृणा करता हूँ, क्योंकि यह यूँ ही, विवेकहीनता से, बिना सिद्धांतों की परवाह किए दान देने को संदर्भित करता है। यह एक अत्यधिक भावुकतापूर्ण झुकाव है, जो मूर्ख और भ्रमित लोगों के लिए आम है। जब इस शब्द का उपयोग परमेश्वर के प्रेम का वर्णन करने के लिए किया जाता है, तो इसमें अपरिहार्य रूप से ईशनिंदा का संकेतार्थ होता है। मेरे पास यहाँ दो शब्द हैं, जो अधिक उचित रूप से परमेश्वर के प्रेम का वर्णन करते हैं। वे दो शब्द कौन-से हैं? पहला शब्द है "विशाल।" क्या यह शब्द बहुत उद्बोधक नहीं है? दूसरा शब्द है "अनंत।" इन दोनों शब्दों के पीछे वास्तविक अर्थ है, जिसका मैं परमेश्वर के प्रेम का वर्णन करने के लिए उपयोग करता हूँ। शब्दशः लेने पर, "विशाल" शब्द किसी चीज़ की मात्रा और क्षमता का वर्णन करता है, पर वह चीज़ कितनी ही बड़ी क्यों न हो, वह ऐसी होती है जिसे लोग छू और देख सकते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वह मौजूद है—वह कोई अमूर्त चीज़ नहीं है, बल्कि ऐसी चीज़ है, जो लोगों को अपेक्षाकृत सटीक और व्यावहारिक रूप में विचार दे सकती है। चाहे तुम इसे द्विआयामी दृष्टिकोण से देखो या त्रिआयामी दृष्टिकोण से; तुम्हें इसकी मौजूदगी की कल्पना करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह एक ऐसी चीज़ है जो वास्तव में मौजूद है। यद्यपि परमेश्वर के प्रेम का वर्णन करने के लिए "विशाल" शब्द का उपयोग करना उसके प्रेम का परिमाण निर्धारित करने का प्रयास लग सकता है, किंतु यह इस बात का एहसास भी देता है कि उसके प्रेम का परिमाण निर्धारित नहीं किया जा सकता। मैं कहता हूँ कि परमेश्वर के प्रेम का परिमाण निर्धारित किया जा सकता है, क्योंकि उसका प्रेम खोखला नहीं है, और न ही वह कोई किंवदंती है। बल्कि वह एक ऐसी चीज़ है, जिसे परमेश्वर द्वारा शासित सभी प्राणियों द्वारा साझा किया जाता है, ऐसी चीज़, जिसका सभी प्राणियों द्वारा विभिन्न मात्राओं में और विभिन्न परिप्रेक्ष्यों से आनंद लिया जाता है। यद्यपि लोग उसे देख या छू नहीं सकते, फिर भी यह प्रेम सभी के जीवन में थोड़ा-थोड़ा प्रकट होकर उनके लिए पोषण और जीवन लाता है, और वे हर क्षण परमेश्वर के जिस प्रेम का आनंद लेते हैं उसे गिनते और उसकी गवाही देते हैं। मैं कहता हूँ कि परमेश्वर के प्रेम का परिमाण निर्धारित नहीं किया जा सकता, क्योंकि परमेश्वर द्वारा सभी चीज़ों का भरण-पोषण और पालन-पोषण करने का रहस्य ऐसी चीज़ है, जिसकी थाह पाना मनुष्यों के लिए कठिन है, और ऐसे ही सभी चीज़ों के लिए, और विशेष रूप से मानवजाति के लिए, परमेश्वर के विचार हैं। अर्थात्, परमेश्वर द्वारा मानवजाति के लिए बहाए गए लहू और आसूँओं को कोई नहीं जानता। उस मानवजाति के लिए सृजनकर्ता के प्रेम की गहराई और वज़न को कोई नहीं बूझ सकता, कोई नहीं समझ सकता, जिसे उसने अपने हाथों से बनाया है। परमेश्वर के प्रेम को विशाल बताना उसके अस्तित्व के विस्तार और सच्चाई को समझने-बूझने में लोगों की सहायता करना है। यह इसलिए भी है, ताकि लोग "सृजनकर्ता" शब्द के वास्तविक अर्थ को अधिक गहराई से समझ सकें, और ताकि लोग "सृष्टि" नाम के सच्चे अर्थ की एक गहरी समझ प्राप्त कर सकें। "अनंत" शब्द आम तौर पर किस चीज़ का वर्णन करता है? यह सामान्यतः महासागर या ब्रह्मांड के लिए प्रयुक्त होता है, जैसे "अनंत ब्रह्मांड", या "अनंत महासागर"। ब्रह्मांड की व्यापकता और शांत गहराई मनुष्य की समझ से परे है; वह ऐसी चीज़ है, जो मनुष्य की कल्पना को पकड़ लेती है, जिसके प्रति वे बहुत प्रशंसा महसूस करते हैं। उसका रहस्य और गहराई दृष्टि के भीतर हैं, किंतु पहुँच से बाहर हैं। जब तुम महासागर के बारे में सोचते हो, तो तुम उसके विस्तार के बारे में सोचते हो—वह असीम दिखाई देता है, और तुम उसकी रहस्यमयता और चीज़ों को धारण करने की उसकी महान क्षमता महसूस कर सकते हो। इसीलिए मैंने परमेश्वर के प्रेम का वर्णन करने के लिए "अनंत" शब्द का उपयोग किया है, ताकि लोगों को यह महसूस करने में मदद मिल सके कि उसके प्रेम की अगाध सुंदरता महसूस करना कितना बहुमूल्य है, और कि परमेश्वर के प्रेम की ताक़त अनंत और व्यापक है। मैंने इस शब्द का प्रयोग लोगों को परमेश्वर के प्रेम की पवित्रता, और उसके प्रेम के माध्यम से प्रकट होने वाली उसकी गरिमा और अनुल्लंघनीयता महसूस करने में सहायता करने के लिए किया। अब क्या तुम लोगों को लगता है कि परमेश्वर के प्रेम का वर्णन करने के लिए "अनंत" एक उपयुक्त शब्द है? क्या परमेश्वर के प्रेम का मापन इन दो शब्दों "विशाल" और "अनंत" से हो जाता है? पूर्ण रूप से! मानवीय भाषा में केवल ये दो शब्द ही कुछ उपयुक्त, और परमेश्वर के प्रेम का वर्णन करने के अपेक्षाकृत करीब हैं। क्या तुम लोगों को ऐसा नहीं लगता? यदि मैं तुम लोगों से परमेश्वर के प्रेम का वर्णन करवाता, तो क्या तुम लोग इन दो शब्दों का उपयोग करते? बहुत संभव है कि तुम लोग न करते, क्योंकि परमेश्वर के प्रेम की तुम लोगों की समझ-बूझ एक द्विआयामी परिप्रेक्ष्य तक ही सीमित है, और वह त्रिआयामी स्तर की ऊँचाई तक नहीं पहुँची है। इसलिए यदि मैं तुम लोगों से परमेश्वर के प्रेम का वर्णन करवाता, तो तुम लोगों को लगता कि तुम्हारे पास शब्दों का अभाव है या शायद तुम लोग अवाक् भी रह जाते। आज जिन दो शब्दों के बारे में मैंने बात की है, उन्हें समझना तुम लोगों के लिए कठिन हो सकता है, या शायद तुम लोग उनसे सहमत ही न हों। यह केवल यही दर्शाता है कि परमेश्वर के प्रेम के बारे में तुम लोगों की समझ-बूझ सतही और एक संकीर्ण दायरे तक सीमित है। मैंने पहले कहा है कि परमेश्वर निस्स्वार्थ है; तुम लोगों को यह शब्द "निस्स्वार्थ" याद है। क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर के प्रेम का केवल निस्स्वार्थ के रूप में वर्णन किया जा सकता हो? क्या यह बहुत संकीर्ण दायरा नहीं है? तुम लोगों को इस मुद्दे पर और अधिक चिंतन करना चाहिए, ताकि तुम इससे कुछ प्राप्त कर सको।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III

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