परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 25
18 मार्च, 2021
परमेश्वर ने आदम और हव्वा के लिए चमड़े के अँगरखे बनाये
(उत्पत्ति 3:20-21) आदम ने अपनी पत्नी का नाम हव्वा रखा; क्योंकि जितने मनुष्य जीवित हैं उन सब की आदिमाता वही हुई। और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिये चमड़े के अँगरखे बनाकर उनको पहिना दिए।
"और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिये चमड़े के अँगरखे बनाकर उनको पहिना दिए," इसकी छवि में परमेश्वर किस प्रकार की भूमिका निभाता है जब वह आदम और हव्वा के साथ है? मात्र दो मानव प्राणियों के साथ एक संसार में परमेश्वर किस प्रकार की भूमिका में प्रकट होता है? परमेश्वर की भूमिका के रूप में? हौंग कौंग के भाइयों एवं बहनों, कृपया उत्तर दीजिए। (एक अभिवावक की भूमिका में।) दक्षिण कोरिया के भाइयों एवं बहनों, तुम लोग क्या सोचते हो कि परमेश्वर किस भूमिका में प्रकट होता है? (परिवार के मुखिया।) ताइवान के भाइयों एवं बहनों, तुम लोग क्या सोचते हो? (आदम और हव्वा के परिवार में किसी व्यक्ति की भूमिका, परिवार के एक सदस्य की भूमिका।) तुम लोगों में से कुछ सोचते हैं कि परमेश्वर आदम और हव्वा के परिवार के एक सदस्य के रूप में प्रकट होता है, जबकि कुछ कहते हैं कि परमेश्वर परिवार के एक मुखिया के रूप में प्रकट होता है वहीं दूसरे कहते हैं वो अभिभावक के रूप में है। इनमें से सब बिलकुल उपयुक्त हैं। लेकिन वह क्या है जिस तक मैं पहुँच रहा हूँ? परमेश्वर ने इन दो लोगों की सृष्टि की और उनके साथ अपने सहयोगियों के समान व्यवहार किया था। उनके एकमात्र परिवार के समान, परमेश्वर ने उनके रहन-सहन का ख्याल रखा और उनकी मूलभूत आवश्यकताओं का भी ध्यान रखा। यहाँ, परमेश्वर आदम और हव्वा के माता-पिता के रूप में प्रकट होता है। जब परमेश्वर यह करता है, मनुष्य नहीं देखता कि परमेश्वर कितना ऊंचा है; वह परमेश्वर की सबसे ऊँची सर्वोच्चता, उसकी रहस्यमयता को नहीं देखता है, और ख़ासकर उसके क्रोध या प्रताप को नहीं देखता है। जो कुछ वह देखता है वह परमेश्वर की नम्रता, उसका स्नेह, मनुष्य के लिए उसकी चिंता और उसके प्रति उसकी ज़िम्मेदारी एवं देखभाल है। वह मनोवृत्ति एवं तरीका जिसके अंतर्गत परमेश्वर आदम और हव्वा के साथ व्यवहार करता है वह इसके समान है कि किस प्रकार मानवीय माता-पिता अपने बच्चों के लिए चिंता करते हैं। यह इसके समान भी है कि किस प्रकार मानवीय माता-पिता अपने पुत्र एवं पुत्रियों से प्रेम करते हैं, उन पर ध्यान देते हैं, और उनकी देखरेख करते हैं—वास्तविक, दृश्यमान, और स्पर्शगम्य। अपने आपको एक ऊँचे एवं सामर्थी पद पर रखने के बजाए, परमेश्वर ने व्यक्तिगत रूप से मनुष्य के लिए पहरावा बनाने के लिए चमड़ों का उपयोग किया। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उनकी लज्जा को छुपाने के लिए या उन्हें ठण्ड से बचाने के लिए इस रोएँदार कोट का उपयोग किया गया था। संक्षेप में, यह पहरावा जो मनुष्य के शरीर को ढंका करता था उसे परमेश्वर के द्वारा उसके अपने हाथों से बनाया गया था। इसे सरलता से विचार के माध्यम से या चमत्कारीय तरीके से बनाने के बजाय जैसा लोग सोचते हैं, परमेश्वर ने वैधानिक तौर पर कुछ ऐसा किया जिसके विषय में मनुष्य सोचता है कि परमेश्वर नहीं कर सकता था और उसे नहीं करना चाहिए था। यह एक साधारण कार्य हो सकता है कि कुछ लोग यहाँ तक सोचें कि यह जिक्र करने के लायक भी नहीं है, परन्तु यह उन सब को अनुमति भी देता है जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं परन्तु उसके विषय में पहले अस्पष्ट विचारों से भरे हुए थे कि वे उसकी विशुद्धता एवं मनोहरता में अन्तःदृष्टि प्राप्त करें, और उसके विश्वासयोग्य एवं दीन स्वभाव को देखें। यह अत्यधिक अभिमानी लोगों को, जो सोचते हैं कि वे ऊँचे एवं शक्तिशाली हैं, परमेश्वर की विशुद्धता एवं विनम्रता के सामने लज्जा से अपने अहंकारी सिरों को झुकाने के लिए मजबूर करता है। यहाँ, परमेश्वर की विशुद्धता एवं विनम्रता लोगों को यह देखने के लिए और अधिक योग्य बनाती है कि परमेश्वर कितना प्यारा है। इसके विपरीत, "असीम" परमेश्वर, "प्यारा" परमेश्वर और "सर्वशक्तिमान" परमेश्वर लोगों के हृदय में कितना छोटा, एवं नीरस है, और एक प्रहार को भी सहने में असमर्थ है। जब तुम इस वचन को देखते हो और इस कहानी को सुनते हो, तो क्या तुम परमेश्वर को नीचा देखते हो क्योंकि उसने एक ऐसा कार्य किया था? शायद कुछ लोग सोचें, लेकिन दूसरों के लिए यह पूर्णत: विपरीत होगा। वे सोचेंगे कि परमेश्वर विशुद्ध एवं प्यारा है, यह बिलकुल परमेश्वर की विशुद्धता एवं विनम्रता है जो उन्हें द्रवित करती है। जितना अधिक वे परमेश्वर के वास्तविक पहलू को देखते हैं, उतना ही अधिक वे परमेश्वर के प्रेम के सच्चे अस्तित्व की, अपने हृदय में परमेश्वर के महत्व की, और वह किस प्रकार हर घड़ी उनके बगल में खड़ा होता है, उसकी सराहना कर सकते हैं।
इस बिन्दु पर, हमें हमारी बातचीत को वर्तमान से जोड़ना चाहिए। यदि परमेश्वर मनुष्यों के लिए ये विभिन्न छोटी छोटी चीज़ें कर सकता था जिन्हें उसने बिलकुल शुरुआत में सृजा था, यहाँ तक कि ऐसी चीज़ें भी जिनके विषय में लोग कभी सोचने या अपेक्षा करने की हिम्मत भी नहीं करेंगे, तो क्या परमेश्वर आज के लोगों के लिए ऐसी चीज़ें करेगा? कुछ लोग कहते हैं, "हाँ!" ऐसा क्यों है? क्योंकि परमेश्वर का सार जाली नहीं है, उसकी मनोहरता जाली नहीं है। क्योंकि परमेश्वर का सार सचमुच में अस्तित्व में है और यह ऐसी चीज़ नहीं है जिसमें दूसरों के द्वारा कुछ जोड़ा गया है, और निश्चित रूप से ऐसी चीज़ नहीं है जो समय, स्थान एवं युगों में परिवर्तन के साथ बदलता जाता है। परमेश्वर की विशुद्धता एवं मनोहरता को कुछ ऐसा करने के द्वारा सामने लाया जा सकता है जिसे लोग सोचते हैं कि साधारण एवं मामूली है, ऐसी चीज़ जो बहुत छोटी है कि लोग सोचते भी नहीं हैं कि वह कभी करेगा। परमेश्वर ढोंगी नहीं है। उसके स्वभाव एवं सार में कोई अतिशयोक्ति, छद्मवेश, गर्व, या अहंकार नहीं है। वह कभी डींगें नहीं मारता है, बल्कि इसके बजाए प्रेम करता है, चिंता करता है, ध्यान देता है, और मानव प्राणियों की अगुवाई करता है जिन्हें उसने विश्वासयोग्यता एवं ईमानदारी से बनाया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि लोग इसमें से कितनी चीज़ों की सराहना, एवं एहसास कर सकते हैं, या देख सकते हैं, क्योंकि परमेश्वर निश्चय ही इन चीज़ों को कर रहा है। क्या यह जानना कि परमेश्वर के पास ऐसा सार है उसके लिए लोगों के प्रेम को प्रभावित करेगा? क्या यह परमेश्वर के विषय में उनके भय को प्रभावित करेगा? मैं आशा करता हूँ कि जब तुम परमेश्वर के वास्तविक पहलु को समझ जाते हो तो तुम उसके और भी करीब हो जाओगे और तुम मानवजाति के प्रति उसके प्रेम एवं देखभाल की सचमुच में और भी अधिक सराहना करने के योग्य होगे, जबकि ठीक उसी समय तुम अपना हृदय भी परमेश्वर को देते हो और आगे से तुम्हारे पास उसके प्रति कोई सन्देह या शंका नहीं होती है। परमेश्वर मनुष्य के लिए सबकुछ चुपचाप कर रहा है, वह यह सब अपनी ईमानदारी, विश्वासयोग्यता एवं प्रेम के जरिए खामोशी से कर रहा है। लेकिन उन सब के लिए जिसे वह करता है उसे कभी कोई शंका या खेद नहीं हुआ, न ही उसे कभी आवश्यकता हुई कि कोई उसे किसी रीति से बदले में कुछ दे या न ही उसके पास कभी मानवजाति से कोई चीज़ प्राप्त करने के इरादे हैं। वह सब कुछ जो उसने हमेशा किया है उसका एकमात्र उद्देश्य यह है ताकि वह मानवजाति के सच्चे विश्वास एवं प्रेम को प्राप्त कर सके।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर I
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