परमेश्वर के दैनिक वचन : अंत के दिनों में न्याय | अंश 87
09 अगस्त, 2020
परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल पीड़ादायक परीक्षाओं का अनुभव करने के द्वारा ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो" | अंश 87
परमेश्वर के द्वारा मनुष्य की सिद्धता किसके द्वारा पूरी होती है? उसके धर्मी स्वभाव के द्वारा। परमेश्वर के स्वभाव में मुख्यतः धार्मिकता, क्रोध, भव्यता, न्याय और शाप शामिल है, और उसके द्वारा मनुष्य की सिद्धता प्राथमिक रूप से न्याय के द्वारा होती है। कुछ लोग नहीं समझते, और पूछते हैं कि क्यों परमेश्वर केवल न्याय और शाप के द्वारा ही मनुष्य को सिद्ध बना सकता है। वे कहते हैं, "यदि परमेश्वर मनुष्य को शाप दे, तो क्या वह मर नहीं जाएगा? यदि परमेश्वर मनुष्य का न्याय करे, तो क्या वह दोषी नहीं ठहरेगा? तब वह कैसे सिद्ध बनाया जा सकता है?" ऐसे शब्द उन लोगों के होते हैं जो परमेश्वर के कार्य को नहीं जानते। परमेश्वर मनुष्य की अवज्ञाकारिता को शापित करता है, और वह मनुष्य के पापों को न्याय देता है। यद्यपि वह बिना किसी संवेदना के कठोरता से बोलता है, फिर भी वह उन सबको प्रकट करता है जो मनुष्य के भीतर होता है, और इन कठोर वचनों के द्वारा वह उन सब बातों को प्रकट करता है जो मूलभूत रूप से मनुष्य के भीतर होती हैं, फिर भी ऐसे न्याय के द्वारा वह मनुष्य को शरीर के सार का गहरा ज्ञान प्रदान करता है, और इस प्रकार मनुष्य परमेश्वर के समक्ष आज्ञाकारिता के प्रति समर्पित होता है। मनुष्य का शरीर पाप का है, और शैतान का है, यह अवज्ञाकारी है, और परमेश्वर की ताड़ना का पात्र है—और इसलिए, मनुष्य को स्वयं का ज्ञान प्रदान करने के लिए परमेश्वर के न्याय के वचनों का उस पर पड़ना आवश्यक है और हर प्रकार का शोधन होना आवश्यक है; केवल तभी परमेश्वर का कार्य प्रभावशाली हो सकता है।
परमेश्वर के द्वारा बोले गए वचनों से यह देखा जा सकता है कि उसने मनुष्य के शरीर को पहले से ही दोषी ठहरा दिया है। क्या ये वचन फिर शाप के वचन हैं? परमेश्वर के द्वारा बोले गए वचन मनुष्य के सच्चे स्वभाव को प्रकट करते हैं, और ऐसे प्रकाशनों के द्वारा उसका न्याय किया जाता है, और जब वह देखता है कि वो परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने में असमर्थ है, तो वो अपने भीतर शोक और ग्लानि को अनुभव करता है, वो महसूस करता है कि वो परमेश्वर का बहुत ऋणी है, और परमेश्वर की इच्छा के लिए अपर्याप्त है। ऐसे समय होते हैं जब पवित्र आत्मा तुम्हें भीतर से अनुशासित करता है, और यह अनुशासन परमेश्वर के न्याय से आता है; ऐसे समय होते हैं जब परमेश्वर तुम्हारा तिरस्कार करता है और अपना चेहरा तुमसे छुपा लेता है, जब वह कोई ध्यान नहीं देता, और तुम्हारे भीतर कार्य नहीं करता, और तुम्हें शुद्ध करने के लिए बिना आवाज के तुम्हें ताड़ना देता है। मनुष्य में परमेश्वर का कार्य प्राथमिक रूप से अपने धर्मी स्वभाव को स्पष्ट करने के लिए होता है। मनुष्य अंततः कैसी गवाही परमेश्वर के बारे में देता है? वह गवाही देता है कि परमेश्वर धर्मी परमेश्वर है, कि उसके स्वभाव में धार्मिकता, क्रोध, ताड़ना और न्याय शामिल हैं; मनुष्य परमेश्वर के धर्मी स्वभाव की गवाही देता है। परमेश्वर अपने न्याय का प्रयोग मनुष्य को सिद्ध बनाने के लिए करता है, वह मनुष्य से प्रेम करता रहा है और उसे बचाता रहा है—परंतु उसके प्रेम में कितना कुछ शामिल है? उसमें न्याय, भव्यता, क्रोध, और शाप है। यद्यपि परमेश्वर ने मनुष्य को अतीत में शाप दिया था, परंतु उसने मनुष्य को अथाह कुण्ड में नहीं फेंका था, बल्कि उसने उस माध्यम का प्रयोग मनुष्य के विश्वास को शुद्ध करने के लिए किया था; उसने मनुष्य को मार नहीं डाला था, उसने मनुष्य को सिद्ध बनाने का कार्य किया था। शरीर का सार वह है जो शैतान का है—परमेश्वर ने इसे बिलकुल सही कहा है—परंतु परमेश्वर के द्वारा बताई गईं वास्तविकताएँ उसके वचनों के अनुसार पूरी नहीं हुई हैं। वह तुम्हें शाप देता है ताकि तुम उससे प्रेम करो, ताकि तुम शरीर के सार को जान लो; वह तुम्हें इसलिए ताड़ना देता है ताकि तुम जागृत हो जाओ, कि वह तुम्हें अनुमति दे कि तुम अपने भीतर की कमियों को जान लो, और मनुष्य की संपूर्ण अयोग्यता को जान लो। इस प्रकार, परमेश्वर के शाप, उसका न्याय, और उसकी भव्यता और क्रोध—वे सब मनुष्य को सिद्ध बनाने के लिए हैं। वह सब जो परमेश्वर आज करता है, और धर्मी स्वभाव जिसे वह तुम लोगों के भीतर स्पष्ट करता है—यह सब मनुष्य को सिद्ध बनाने के लिए है, और परमेश्वर का प्रेम ऐसा ही है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो
परमेश्वर का न्याय है प्यार
1
क्या गवाही देता है अंत में इंसान? परमेश्वर धार्मिक है, गवाही देता है इंसान, क्रोध है, ताड़ना है, न्याय है परमेश्वर। इंसान गवाही देता है, धार्मिक है परमेश्वर। इंसान को पूर्ण बनाने की ख़ातिर, न्याय का प्रयोग करता है परमेश्वर। इंसान को प्रेम करता, बचाता आ रहा है परमेश्वर। कितना कुछ निहित है मगर उसके प्यार में? न्याय है, प्रताप है, बद्दुआ है, क्रोध है उसके प्यार में। श्राप देता है तुम्हें परमेश्वर, ताकि उसे प्रेम कर सको तुम, और जानो देह के सार-तत्वों को तुम। ताड़ना देता है तुम्हें परमेश्वर, ताकि जागो तुम, और अपनी नाकाबिलियत को जानो तुम। इसलिये परमेश्वर का न्याय, प्रताप, श्राप, जो धार्मिकता दिखाता है वो तुम्हारे भीतर, ये सब करता है तुम्हें पूर्ण बनाने के लिये परमेश्वर। यही प्रेम परमेश्वर का, पाया जाता है तुम्हारे भीतर।
2
हालाँकि परमेश्वर ने दिया था श्राप इंसान को अतीत में, डाला नहीं था इंसान को उसने अथाह कुण्ड में, न ही उतारा था मौत के घाट उसे, आस्था की थी शुद्ध उसकी। परमेश्वर का मकसद था पूर्ण करना उसे। देह का सार-तत्व शैतान है। सचमुच सही था वो, जब ऐसा कहा परमेश्वर ने। फिर भी कर्म जो परमेश्वर ने किये हैं नहीं किये जाते उस तरह जैसे कहा गया है परमेश्वर के वचनों में। श्राप देता है तुम्हें परमेश्वर, ताकि उसे प्रेम कर सको तुम, और जानो देह के सार-तत्वों को तुम। ताड़ना देता है तुम्हें परमेश्वर, ताकि जागो तुम, और अपनी नाकाबिलियत को जानो तुम। इसलिये परमेश्वर का न्याय, प्रताप, श्राप, जो धार्मिकता दिखाता है वो तुम्हारे भीतर, ये सब करता है तुम्हें पूर्ण बनाने के लिये। यही प्रेम परमेश्वर का, पाया जाता है तुम्हारे भीतर। इसलिये परमेश्वर का न्याय, प्रताप, श्राप, जो धार्मिकता दिखाता है वो तुम्हारे भीतर, ये सब करता है तुम्हें पूर्ण बनाने के लिये। यही प्रेम परमेश्वर का, पाया जाता है तुम्हारे भीतर। यही प्रेम परमेश्वर का, पाया जाता है तुम्हारे भीतर।
— 'मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ' से
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