परमेश्वर के दैनिक वचन : इंसान की भ्रष्टता का खुलासा | अंश 364
15 अगस्त, 2020
मेरे सभी लोगों को जो मेरे सम्मुख सेवा करते हैं अतीत के बारे में सोचना चाहिए कि: क्या मेरे प्रति तुम लोगों का प्रेम अशुद्धताओं से दागदार था? क्या मेरे प्रति तुम लोगों का वफादारी शुद्ध और सम्पूर्ण हृदय से था? क्या मेरे बारे में तुम लोगों का ज्ञान सच्चा था? मैंने तुम लोगों के हृदयों में मैंने कितना स्थान धारण किया? क्या मैंने उनकी सम्पूर्णता को भर दिया? मेरे वचनों ने तुम लोगों के भीतर कितना निष्पादित किया? मुझे मूर्ख न समझो! ये सब बातें मुझे पूर्णरूप से स्पष्ट हैं! आज, जैसे मेरी उद्धार की वाणी आगे कथन की जाती है, क्या मेरे प्रति तुम लोगों के प्रेम में कुछ वृद्धि हुई है? क्या मेरे प्रति तुम लोगों की निष्ठा का कुछ भाग शुद्ध हुआ है? क्या मेरे बारे में तुम लोगों का ज्ञान अधिक गहरा हुआ है? क्या अतीत की प्रशंसा ने तुम लोगों के आज के ज्ञान की मजबूत नींव डाली थी? तुम लोगों के अंतःकरण का कितना भाग मेरी पवित्रात्मा से भरा हुआ है? तुम लोगों के भीतर कितने स्थान में मेरी छवि है? क्या मेरे कथनों ने तुम लोगों के मर्मस्थल पर चोट की है? क्या तुम सचमुच महसूस करते हो कि तुम लोगों के पास अपनी लज्जा को छिपाने के लिए कोई स्थान नहीं है? क्या तुम सचमुच विश्वास करते हो कि तुम मेरे लोग होने योग्य नहीं हो? यदि तुम उपरोक्त प्रश्नों के प्रति पूर्णतः बेसुध हो, तो यह ये दिखाता है कि तुम गंदले पानी में मछलियाँ पकड़ रहे हो, कि वहाँ तुम केवल संख्या बढ़ाने के लिए हो, और मेरे द्वारा पूर्वनियत समय पर, तुम्हें निश्चित रूप से हटा दिया जाएगा और दूसरी बार अथाह कुंड में डाल दिया जाएगा। ये मेरे चेतावनी के वचन हैं, और जो कोई भी इन्हें हल्के में लेगा उस पर मेरे न्याय की चोट पड़ेगी, और, नियत समय पर आपदा टूट पड़ेगी। क्या यह ऐसा नहीं है? क्या यह समझाने के लिए मुझे उदाहरण देने की आवश्यकता है? क्या तुम्हारे लिए कोई मिसाल देने के लिए मुझे और अधिक स्पष्ट रूप से बोलना आवश्यक है? सृष्टि के सृजन से लेकर आज तक, बहुत से लोगों ने मेरे वचनों की अवज्ञा की है और इसलिए अच्छा होने की धारा से बहिष्कृत कर दिए गए और हटा दिए गए हैं, अंततः उनके शरीर नाश हो जाते हैं और आत्माएँ अधोलोक में डाल दी जाती हैं, और यहाँ तक कि आज भी वे अभी भी दुःखद दण्ड के अधीन किए जाते हैं। बहुत से लोगों ने मेरे वचनों का अनुसरण किया है, परंतु वे मेरी प्रबुद्धता और रोशनी के विरोध में चले गए हैं, और इसलिए, शैतान के अधिकार क्षेत्र में गिरते हुए और मेरा विरोध करने वाले बनते हुए, उन्हें मेरे द्वारा एक तरफ़ निकाल दिया गया है। (आज सीधे तौर पर मेरा विरोध करने वाले सभी मेरे वचनों को केवल सतही तौर पर मानते हैं, और मेरे वचनों के सार की अवज्ञा करते हैं)। बहुतेरे ऐसे भी हुए हैं जिन्होंने केवल मेरे उन वचन को ही सुना है जो मैंने कल बोले थे, जिन्होंने अतीत के कूड़े को पकड़े रखा, और वर्तमान के दिन की उपज को नहीं सँजोया है। ये लोग न केवल शैतान के द्वारा बंदी बना लिए गए हैं, बल्कि अनंत पापी बन गए हैं और मेरे शत्रु बन गए हैं, और वे सीधे तौर पर मेरा विरोध करते हैं। ऐसे लोग मेरे क्रोध की पराकाष्ठा पर मेरे दण्ड के पात्र है, और आज वे अभी भी अंधे हैं, आज भी अँधेरी कालकोठरियों में हैं (जिसका मतलब है, कि ऐसे लोग शैतान द्वारा नियंत्रित सड़ी, सुन्न लाशें हैं; क्योंकि उनकी आँखों पर मैंने परदा डाल दिया है, इसलिए मैं कहता हूँ कि वे अंधे हैं)। तुम लोगों के संदर्भ के लिए एक उदाहरण देना बेहतर होगा, ताकि तुम लोग उससे सीख सकोः
पौलुस का उल्लेख करने पर, तुम लोग उसके इतिहास के बारे में, और उसके बारे में कुछ उन कहानियों को सोचोगे जो अयथार्थ हैं और वास्तविकता से भिन्न हैं। उसे किशोरावस्था से ही माता-पिता द्वारा शिक्षित किया गया था, और उसने मेरा जीवन प्राप्त किया, और मेरे पूर्वनियत के परिणाम स्वरूप वह उस क्षमता से सम्पन्न था जो मैं अपेक्षा करता हूँ। 19 वर्ष की आयु में, उसने जीवन के बारे में विभिन्न पुस्तकें पढ़ी; इस प्रकार मुझे इस बारे में विस्तार में जाने को आवश्यकता नहीं कि कैसे, उसकी योग्यता की वजह से, और मेरे द्वारा प्रबुद्धता और रोशनी की वजह से, वह न केवल आध्यात्मिक विषयों पर कुछ अंर्तदृष्टि के साथ बोल सकता था, बल्कि वह मेरे इरादों को समझने में भी समर्थ था। निस्सन्देह, यह आन्तरिक व बाहरी कारकों के संयोजन को नहीं छोड़ता है। तथापि, उसकी एक अपूर्णता थी कि, अपनी प्रतिभा की वजह से, वह प्रायः बकवादी और डींग मारने वाला बन जाया करता था। परिणाम स्वरूप, उसकी अवज्ञा के कारण, जिसका एक हिस्सा प्रधान स्वर्गदूत का प्रतिनिधित्व करता था, मेरे प्रथम देहधारण के समय, उसने मेरी अवहेलना का हर प्रयास किया। वह उनमें से एक था जो मेरे वचनों को नहीं जानते हैं, और उसके हृदय से मेरा स्थान पहले ही तिरोहित हो चुका था। ऐसे लोग सीधे तौर पर मेरी दिव्यता का विरोध करते हैं, और मेरे द्वारा गिरा दिए जाते हैं, और केवल बिलकुल अन्त में सर झुका कर अपने पापों को स्वीकार करते हैं। इसलिए, जब मैंने उसके मजबूत बिन्दुओं का उपयोग कर लिया—जिसका अर्थ है, कि जब उसने कुछ समयावधि तक मेरे लिए काम कर लिया—उसके बाद वह एक बार और अपने पुराने मार्गों में चला गया, और यद्यपि उसने सीधे तौर पर मेरे वचनों का विरोध नहीं किया, फिर भी उसने मेरे आंतरिक मार्गदर्शन और प्रबुद्धता की अवहेलना की, और इसलिए जो कुछ भी उसने अतीत में किया था वह व्यर्थ था; दूसरे शब्दों में, जिस महिमा के मुकुट के बारे में उसने कहा वे खोखले वचन, उसकी अपनी कल्पनाओं का एक उत्पाद बन गए थे, क्योंकि आज भी वह अभी भी मेरे बंधनों के बीच मेरे न्याय के अधीन किया जाता है।
उपरोक्त उदाहरण से देखा जा सकता है कि जो कोई भी मेरा विरोध करता है (न केवल मेरी देह की अस्मिता का बल्कि अधिक महत्वपूर्ण रूप में, मेरे वचनों और मेरी पवित्रात्मा का—कहने का अर्थ है, मेरी दिव्यता का विरोध करके), वह अपनी देह में मेरा न्याय प्राप्त करता है। जब मेरा आत्मा तुम्हें छोड़ देता है, तो तुम सीधे अधोलोक में उतरते हुए अचानक नीचे की ओर गिर जाते हो। और यद्यपि तुम्हारी देह पृथ्वी पर होती है, फिर भी तुम किसी ऐसे के समान हो जो किसी दिमागी बीमारी से पीड़ित होः तुम अपनी समझ खो चुके हो, और तुरंत ऐसा महसूस करते हो मानो कि तुम एक लाश हो, यहाँ तक कि तुम अपनी देह को अविलंब नष्ट करने के लिए मुझसे याचना करते हो। तुम लोगों में से अधिकांश जो आत्मा से ग्रस्त हैं वे इन परिस्थितियों की एक गहरी सराहना करते हैं, और मुझे आगे विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है। अतीत में, जब मैंने सामान्य मानवता में कार्य किया, तो अधिकांश लोग मेरे कोप और प्रताप के विरूद्ध स्वयं को पहले ही माप चुके थे, और मेरी बुद्धि व स्वभाव को थोड़ा बहुत जानते थे। आज, मैं दिव्यता में सीधे तौर पर बोलता और कार्य करता हूँ, और अभी भी कुछ लोग हैं जो अपनी स्वयं की आँखों से मेरे कोप और न्याय को देखेंगे; इसके अतिरिक्त, न्याय के युग के दूसरे भाग का मुख्य कार्य देह में मेरे कर्मों को मेरे सभी लोगों को सीधे तौर पर ज्ञात करवाना है, और सीधे तौर पर मेरे स्वभाव का तुम लोगों को अवलोकन करवाना है। तब भी, क्योंकि मैं शरीर में हूँ इसलिए मैं तुम लोगों की कमजोरियों के बारे में विचारशील हूँ। मेरी आशा है कि तुम लोग अपनी आत्मा, प्राण, देह को बेपरवाही से शैतान को समर्पित हुए उनसे खिलौनों सा व्यवहार मत करो। जो कुछ तुम लोगों के पास है उसे सँजो कर रखना, और इसे खेल की तरह न समझना बेहतर है, क्योंकि ऐसी बातें तुम लोगों के भविष्य से संबंधित हैं। क्या तुम लोग वास्तव में मेरे वचनों का सही अर्थ समझने में समर्थ हो? क्या तुम लोग वास्तव में मेरी सच्ची भावनाओं के बारे में विचारशील होने में सक्षम हो?
क्या तुम लोग पृथ्वी पर मेरी आशीषों का आनंद लेना चाहते हो, वे उन आशीषों के सदृश हैं जो स्वर्ग में हैं? क्या तुम लोग मेरी समझ को, और मेरे वचनों के आनंद को और मेरे बारे में ज्ञान को, अपने जीवन की सर्वाधिक बहुमूल्य और सार्थक वस्तु मानने के लिये तैयार हो? क्या तुम लोग, अपनी स्वयं के भविष्य की संभावनाओं का विचार किए बिना, वास्तव में मेरे प्रति पूरी तरह से समर्पण करने में समर्थ हो? क्या तुम लोग सचमुच स्वयं को, एक भेड़ के समान, मेरे द्वारा तुम लोगों को मार दिए जाने और अगुआई किए जाने की अनुमति देने में समर्थ हो? क्या तुम लोगों में से कोई है जो इन चीजों को पाने में सक्षम है? क्या ऐसा हो सकता है कि वे सभी जो मेरे द्वारा ग्रहण किए जाते हैं और मेरे वादों को प्राप्त करते हैं वे ही हैं जो मेरे आशीषों को प्राप्त करते हैं? क्या तुम लोग इन वचनों से कुछ समझे हो? यदि मैं तुम लोगों की परीक्षा लूँ, तो क्या तुम लोग सचमुच स्वयं को मेरी दया पर रख सकते हो, और, इन परिक्षणों के बीच, मेरे इरादों की खोज कर सकते हो और मेरे हृदय को महसूस कर सकते हो? मैं नहीं चाहता हूँ कि तुम अधिक मर्मस्पर्शी वचनों को कहने, या बहुत सी रोमांचक कहानियों को कहने में समर्थ बनो; बल्कि, मैं कहता हूँ कि तुम मेरी उत्तम गवाही देने में समर्थ बन जाओ, और यह कि तुम पूर्णतः और गहराई से वास्तविकता में प्रवेश कर सको। यदि मैं सीधे तौर पर तुम से न बोलता, तो क्या तुम अपने आसपास की सब चीजों का त्याग कर स्वयं को मुझे उपयोग करने दे सकते थे? क्या यही वह वास्तविकता नहीं जो मैं अपेक्षा करता हूँ? कौन मेरे वचनों के अर्थ को ग्रहण करने में समर्थ है? फिर भी मैं कहता हूँ कि तुम लोग गलतफहमी में अब और न पड़ना, कि तुम लोग अपने प्रवेश में अग्रसक्रिय बनो और मेरे वचनों के सार को ग्रहण करो। यह तुम लोगों को मेरे वचनों के मिथ्याबोध से और मेरे अर्थ को अस्पष्ट होने से बचाएगा और इस प्रकार मेरे प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन करने से बचाएगा। मैं आशा करता हूँ कि तुम लोग मेरे वचनों में तुम लोगों के लिए मेरे इरादों को ग्रहण करो। अपनी भविष्य की संभावनाओं का और अधिक विचार मत करो, और उस तरह से कार्य करो जैसे तुम लोगों ने मेरे सम्मुख संकल्प लिया है कि सभी को परमेश्वर की दया पर निर्भर रहना चाहिए। वे सभी जो मेरे घर के भीतर खड़े हैं उन्हें जितना अधिक संभव हो उतना करना चाहिए; पृथ्वी पर मेरे कार्य के अंतिम खण्ड में तुम्हें स्वयं का सर्वोत्तम अर्पण करना चाहिए। क्या तुम वास्तव में इस तरह की चीजों को अभ्यास में लाने के लिए तैयार हो?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 4
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