परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 579
26 अक्टूबर, 2020
परमेश्वर को जानने का क्या अभिप्राय है? इसका अभिप्राय है परमेश्वर के आनंद, गुस्से, दुःख और खुशी को समझ पाना, परमेश्वर को जानना यही है। तुम दावा करते हो कि तुमने उसे देखा है, फिर भी तुम उसके आनंद, गुस्से, दुःख और खुशी को नहीं जानते हो, उसके स्वभाव को नहीं जानते हो। न उसकी धार्मिकता को जानते हो, न ही उसकी दयालुता को, न ही तुम ये जानते हो कि वह किन चीज़ों को पसंद करता है और किनसे घृणा करता है। इसे परमेश्वर को जानना नहीं कहा जा सकता है। इसलिए, कुछ लोग परमेश्वर का अनुसरण तो कर पाते हैं, लेकिन ज़रूरी नहीं कि वे सच्चाई से परमेश्वर में विश्वास करने में सक्षम हों; इसी में अंतर निहित है। यदि तुम परमेश्वर को जानते हो, उसे समझते हो, उसकी कुछ इच्छाओं को समझने एवं ग्रहण करने में सक्षम हो, तो तुम सचमुच उस पर विश्वास कर सकते हो, सचमुच में उसके प्रति समर्पित हो सकते हो, सचमुच में उससे प्रेम कर सकते हो, और सचमुच में उसकी आराधना कर सकते हो। यदि तुम इन चीज़ों को नहीं समझते हो, तो तुम सिर्फ एक अनुयायी हो जो भीड़ के साथ में दौड़ता और धारा के साथ बहता है। इसे सच्चा समर्पण या सच्ची आराधना नहीं कहा जा सकता है। सच्ची आराधना कैसे उत्पन्न होती है? बिना किसी अपवाद के, जो भी सचमुच में परमेश्वर को जानते हैं वे जब उसे देखते हैं तो उसकी आराधना और आदर करते हैं। जैसे ही वे परमेश्वर को देखते हैं वे भयभीत हो जाते हैं। वर्तमान में, जब देहधारी परमेश्वर कार्य कर रहा है, तब लोगों के पास उसके स्वभाव की और उसके स्वरूप की जितनी अधिक समझ होती है, उतना ही अधिक लोग इन बातों को संजोकर रखेंगे, उतना ही अधिक वे परमेश्वर का आदर करेंगे। आम तौर पर, जितनी कम समझ लोगों के पास होती है, वे उतना ही अधिक लापरवाह होते हैं, और इसलिए वे परमेश्वर से मनुष्य के समान बर्ताव करते हैं। यदि लोग वास्तव में परमेश्वर को जानते और देखते, तो वे भय के मारे काँपने लगते। "जो मेरे बाद आने वाला है, वह मुझ से शक्तिशाली है; मैं उसकी जूती उठाने के योग्य नहीं"—यूहन्ना ने ऐसा क्यों कहा? यद्यपि अंतरतम में उसके पास गहन समझ नहीं थी, फिर भी वह जानता था कि परमेश्वर विस्मय की भावना जगाता है। आजकल कितने लोग परमेश्वर का आदर करने में सक्षम हैं? अगर वे परमेश्वर के स्वभाव को नहीं जानते, तो वे किस प्रकार उसका आदर कर सकते हैं? लोग न तो मसीह का सार जानते हैं, न ही परमेश्वर के स्वभाव को समझते हैं, न ही परमेश्वर की आराधना करने में और भी समर्थ नहीं होते हैं। यदि वे सिर्फ मसीह के साधारण और सामान्य बाहरी रूप को देखते हैं फिर भी उसके सार को नहीं जानते हैं, तो मसीह के साथ मात्र एक सामान्य मनुष्य की तरह बर्ताव करना लोगों के लिए आसान है। वे उसके प्रति एक अपमानजनक प्रवृत्ति अपना सकते हैं, उसे धोखा दे सकते हैं, उसका प्रतिरोध कर सकते हैं, उसकी अवज्ञा कर सकते हैं, उस पर दोष लगा सकते हैं, और दुराग्रही हो सकते हैं। वे दंभी हो सकते हैं और हो सकता है वे उसके वचन को गंभीरता से न लें, वे परमेश्वर के बारे में धारणाएं भी बना सकते हैं, उसकी निंदा और तिरस्कार कर सकते हैं। इन मुद्दों को सुलझाने के लिए व्यक्ति को मसीह के सार, एवं मसीह की दिव्यता को अवश्य जानना चाहिए। परमेश्वर को जानने का यही मुख्य पहलू है; यही वो है जिसमें व्यवहारिक परमेश्वर में विश्वास करने वाले हर इंसान को प्रवेश और जिसे हासिल करना चाहिए।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन
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