परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 549
09 सितम्बर, 2020
वह क्या है जो तुम सब अब खोज रहे हो? परमेश्वर के द्वारा पूर्ण किया जाना, परमेश्वर को जानना, परमेश्वर को प्राप्त करना हो—या शायद तुम नब्बे के दशक के पतरस के अंदाज़ में व्यवहार करना चाहते हो, या ऐसा विश्वास रखना चाहते हो जो अय्यूब से भी अधिक हो, या शायद तुम परमेश्वर के द्वारा धर्मी कहलाए जाने और परमेश्वर के सिंहासन के समक्ष आने की कोशिश कर रहे हो या पृथ्वी पर परमेश्वर को प्रकट करने के योग्य होने या परमेश्वर के लिए सशक्त और गुंजायमान गवाही देने में समर्थ होने की कोशिश कर रहे हो। तुम लोग जिस भी बात के लिए प्रयास करते हो, कुल मिलाकर, तुम्हारा प्रयास परमेश्वर द्वारा बचाए जाने के लिए ही है। इससे फ़र्क नहीं पड़ता है कि तुम धर्मी बनने की कोशिश करते हो, या तुम पतरस के अंदाज़, या अय्यूब के विश्वास, या परमेश्वर के द्वारा पूर्ण बनाए जाने की कोशिश करते हो; वह सब वह कार्य है जो परमेश्वर मनुष्य पर करता है। दूसरे शब्दों में, चाहे जिसकी भी तुम कोशिश करते हो, यह सब परमेश्वर के द्वारा पूर्ण किये जाने के उद्देश्य से है, यह सब परमेश्वर के वचन को अनुभव करने, परमेश्वर के हृदय को संतुष्ट करने के उद्देश्य से है; तुम चाहे जो भी तलाशो, सब परमेश्वर की मनोरमता की खोज के लिए है, यह सब वास्तविक अनुभव में अभ्यास का पथ खोजने के लिए है, और अपने विद्रोही स्वभाव को उतार फेंकने, अपने भीतर एक स्वाभाविक स्थिति को प्राप्त करने, पूर्ण रूप से परमेश्वर की इच्छा के अधीन होने के योग्य होने, एक सही व्यक्ति बनने और जो कुछ तुम करते हो उसमें सही मन्तव्य रखने के लक्ष्य से है। तुम्हारे द्वारा इन सब बातों को अनुभव करने का कारण परमेश्वर को जानने और जीवन के विकास को प्राप्त करने के लिए है। यद्यपि जो तुम अनुभव करते हो वह परमेश्वर का वचन है, जो तुम अनुभव करते हो वे वास्तविक घटनाएँ हैं, साथ ही लोग, विषय और आस-पास की वस्तुएँ हैं, लेकिन अन्ततः तुम परमेश्वर को जानने और परमेश्वर के द्वारा पूर्ण किए जाने के योग्य हो जाते हो। एक धर्मीजन के मार्ग पर चलने की कोशिश करना या परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में लाने की कोशिश करना : ये दौड़ने के मार्ग हैं, जबकि परमेश्वर को जानना और परमेश्वर के द्वारा पूर्ण किया जाना मंजिल है। चाहे तुम परमेश्वर के द्वारा पूर्ण किए जाने, या परमेश्वर के लिए गवाही देने की कोशिश करो, यह सब अन्ततः परमेश्वर को जानने के लिए है; यह इसलिए है कि जो कार्य वह तुम में करता है, वह व्यर्थ न हो, जिससे अन्ततः तुम परमेश्वर की वास्तविकता, उसकी महानता और इससे भी अधिक परमेश्वर की नम्रता और गोपनीयता जान जाओ और तुम में उसके द्वारा बड़ी मात्रा में किए गए कार्य को जान जाओ। परमेश्वर ने इन अशुद्ध और भ्रष्ट लोगों में कार्य करने और इस समूह के लोगों को पूर्ण बनाने के लिए इस स्तर तक स्वयं को दीन किया है। परमेश्वर लोगों के मध्य जीने और खाने-पीने, वह लोगों की चरवाही करने, और लोगों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए ही देह में नहीं आया। अधिक महत्वपूर्ण यह है कि वह उद्धार और जीतने का विशाल कार्य इन असहनीय रूप से भ्रष्ट लोगों पर करता है। वह इन सबसे अधिक भ्रष्ट लोगों को बचाने के लिए बड़े लाल अजगर के केन्द्र में आया, जिससे सभी लोग परिवर्तित हो सकें और नए बनाए जा सकें। वह अत्यधिक कष्ट, जो परमेश्वर सहन करता है, यह मात्र वह कष्ट नहीं है जो देहधारी परमेश्वर सहन करता है, परन्तु मुख्यतः यह वह अत्यधिक निरादर है जो परमेश्वर का आत्मा सहन करता है—वह स्वयं को इतना अधिक दीन करता है और छिपाए रखता है कि वह एक साधारण व्यक्ति बन जाता है। परमेश्वर ने देहधारण किया और देह का रूप ले लिया था ताकि लोग देखें कि उसका जीवन एक साधारण मानव-जीवन है, और उसकी साधारण मानवीय आवश्यकताएँ भी हैं। यह इस बात को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि परमेश्वर ने स्वयं को हद से ज़्यादा दीन किया है। परमेश्वर का आत्मा देह में साकार होता है। उसका आत्मा सर्वोच्च और महान है, परन्तु फिर भी वह अपने आत्मा का कार्य करने के लिए एक सामान्य मानव, तुच्छ मनुष्य का रूप ले लेता है। तुम में से प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता, अंतर्दृष्टि, समझ, मानवता और जीवन दर्शाते हैं कि तुम सब परमेश्वर के इस प्रकार के कार्य को स्वीकार करने के लिए वास्तव में अयोग्य हो। तुम सब परमेश्वर द्वारा तुम्हारे लिए इस कष्ट को सहन किए जाने के लिए वास्तव में अयोग्य हो। परमेश्वर अत्यधिक महान है। वह इतना सर्वोच्च है और लोग बहुत नीच हैं, फिर भी वह उन पर कार्य करता है। उसने न केवल इसलिए देहधारण किया कि लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करे, लोगों से बात करे, अपितु वह लोगों के साथ रहता भी है। परमेश्वर इतना दीन और इतना प्रेम करने वाला है। जैसे ही परमेश्वर के प्रेम का उल्लेख किया जाता है, जैसे ही परमेश्वर के अनुग्रह का उल्लेख किया जाता है, वैसे ही यदि तुम उसकी अत्यधिक प्रशंसा करते हुए आँसू बहाते हो, यदि तुम इस स्थिति तक पहुँच जाते हो, तब तुम परमेश्वर का वास्तविक ज्ञान प्राप्त कर चुके हो।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल उन्हें ही पूर्ण बनाया जा सकता है जो अभ्यास पर ध्यान देते हैं
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