परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 479

09 फ़रवरी, 2024

पौलुस के द्वारा किए गए कार्य को मनुष्य के सामने प्रदर्शित किया गया था, किन्तु परमेश्वर के लिए उसका प्रेम कितना शुद्ध था, उसके हृदय की गहराई में परमेश्वर के लिए उसका प्रेम कितना अधिक था—इन्हें मनुष्य के द्वारा देखा नहीं जा सकता है। मनुष्य केवल उस कार्य को देख सकता है जिसे उसने किया था, जिससे मनुष्य जान जाता है उसे निश्चित रूप से पवित्र आत्मा के द्वारा उपयोग किया गया था, और इस प्रकार मनुष्य सोचता है कि पौलुस पतरस की अपेक्षा बेहतर था, यह कि उसका कार्य अधिक बड़ा था, क्योंकि वह कलीसियाओं की आपूर्ति करने में सक्षम था। पतरस ने केवल अपने व्यक्तिगत अनुभवों को ही देखा था, और अपने कभी कभार के कार्य के दौरान सिर्फ थोड़े से ही लोगों को अर्जित किया था। उसकी ओर से सिर्फ थोड़ी सी ही जानी मानी पत्रियां हैं, किन्तु कौन जानता है कि उसके हृदय की गहराई में परमेश्वर के लिए उसका प्रेम कितना गहरा था? पौलुस प्रति दिन परमेश्वर के लिए काम करता था: जब तक करने के लिए काम था, उसने उसे किया, उसने सोचा कि इस रीति से वह उस मुकुट को पाने में सक्षम होगा, और परमेश्वर को संतुष्ट कर सकता था, फिर भी उसने अपने कार्य के माध्यम से स्वयं को बदलने के तरीकों की खोज नहीं की थी। पतरस के जीवन की कोई भी चीज़ जिसने परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट नहीं किया था उसने उसे बेचैन कर दिया था। यदि उसने परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट नहीं किया होता, तो उसे ग्लानी महसूस होती, और वह उपयुक्त तरीके की खोज करता जिसके द्वारा वह परमेश्वर के हृदय को संतुष्ट करने के लिए कठिन परिश्रम कर सकता था। यहाँ तक कि उसके जीवन की छोटी से छोटी और अत्यंत महत्वहीन पहलुओं में भी, वह अब भी परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट करने के लिए स्वयं से अपेक्षा करता था। जब उसके पुराने स्वभाव की बात आई तो वह कुछ कम की मांग नहीं कर रहा था, वह सत्य की गहराई में आगे बढ़ने के लिए स्वयं के विषय में अपनी अपेक्षाओं में हमेशा की तरह कठोर था। पौलुस केवल ऊपरी प्रतिष्ठा एवं रुतबे की खोज करता था। वह मनुष्य के सामने स्वयं का दिखावा करने की कोशिश करता था, और उसने जीवन में प्रवेश के लिए कोई गहन प्रगति की कोशिश नहीं की थी। जिसकी वह परवाह करता था वह सिद्धान्त था, वास्तविकता नहीं। कुछ लोग कहते हैं, पौलुस ने परमेश्वर के लिए कितना अधिक कार्य किया था, तो परमेश्वर के द्वारा उसका स्मरणोत्सव क्यों नहीं मनाया गया था? पतरस ने परमेश्वर के लिए सिर्फ थोड़ा सा ही काम किया था, और कलीसिया के लिए कोई बड़ा योगदान नहीं दिया था, अतः उसे क्यों सिद्ध बनाया गया था? पतरस एक निश्चित बिन्दु तक परमेश्वर से प्रेम करता था, जिसकी अपेक्षा परमेश्वर के द्वारा की गई थी; केवल ऐसे लोगों के पास ही गवाही होती है। और पौलुस के विषय में क्या? पौलुस किस हद तक परमेश्वर से प्रेम करता था, क्या तू जानता है? पौलुस का काम किसके लिए था? और पतरस का काम किसके लिए था? पतरस ने अधिक कार्य नहीं किया था, लेकिन क्या तू जानता है कि उसके हृदय की गहराई में क्या था? पौलुस का कार्य कलीसियाओं के प्रयोजन, एवं कलीसियाओं की सहायता से सम्बन्धित था। जो कुछ पतरस ने अनुभव किया था वे उसके जीवन स्वभाव में हुए परिवर्तन थे; उसने परमेश्वर के प्रेम का अनुभव किया था। अब जबकि तू उनके सार के अन्तर को जानता है, तो तू देख सकता है कि कौन, अन्ततः, सचमुच में परमेश्वर पर विश्वास करता था, और कौन वाकई में परमेश्वर पर विश्वास नहीं करता था। उनमें से एक सचमुच में परमेश्वर से प्रेम करता था, और दूसरा वाकई में परमेश्वर से प्रेम नहीं करता था; एक अपने स्वभाव में परिवर्तनों से होकर गुज़रा था, और दूसरा नहीं; एक की लोगों के द्वारा अत्यंत प्रशंसा की गई थी, और वह बड़े शख्सियत का था, और दूसरे ने विनम्रतापूर्वक सेवा की थी, और उस पर लोगों के द्वारा आसानी से ध्यान नहीं दिया गया था; एक ने पवित्रता की खोज की थी, और दूसरे ने नहीं, और हालाँकि वह अशुद्ध नहीं था, फिर भी वह शुद्ध प्रेम को धारण किए हुए नहीं था; एक सच्ची मानवता को धारण किए हुए था, और दूसरा नहीं; एक परमेश्वर के एक प्राणी के एहसास को धारण किए हुए था, और दूसरा नहीं। पतरस एवं पौलुस के सार में भिन्नताएं ऐसी ही हैं। वह पथ जिस पर पतरस चला था वह सफलता का पथ था, जो सामान्य मानवता की पुनः प्राप्ति एवं परमेश्वर के प्राणी के कर्तव्य को हासिल करने का भी पथ है। पतरस उन सभी का प्रतिनिधित्व करता है जो सफल हैं। वह पथ जिस पर पौलुस के द्वारा चला गया था वह असफलता का पथ है, और वह उन सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करता है जो ऊपरी तौर पर स्वयं को समर्पित एवं खर्च करते हैं, और विशुद्ध रूप से परमेश्वर से प्रेम नहीं करते हैं। पौलुस उन सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करता है जो सत्य को धारण नहीं करते हैं। परमेश्वर पर अपने विश्वास में, वह सब जो पतरस ने किया था उसमें उसने परमेश्वर को संतुष्ट करने का प्रयास किया था, और वह सब जो परमेश्वर से आता था उसमें उसने आज्ञा मानने का प्रयास किया था। बिना जरा सी भी शिकायत के, वह अपने जीवन में ताड़ना एवं न्याय, साथ ही साथ शुद्धीकरण, क्लेश एवं कमी को स्वीकार कर सकता था, उसमें से कुछ भी परमेश्वर के प्रति उसके प्रेम को पलट नहीं सकता था। क्या यह परमेश्वर का चरम प्रेम नहीं है? क्या यह परमेश्वर के एक प्राणी के कर्तव्य की परिपूर्णता नहीं है? ताड़ना, न्याय, क्लेश—तू मृत्यु तक आज्ञाकारिता हासिल करने में सक्षम है, और यह वह चीज़ है जिसे परमेश्वर के एक प्राणी के द्वारा हासिल किया जाना चाहिए, यह परमेश्वर के प्रेम की पवित्रता है। यदि मनुष्य इतना कुछ हासिल कर सकता है, तो वह परमेश्वर का एक योग्य प्राणी है, तथा ऐसा और कुछ नहीं है जो सृष्टिकर्ता की इच्छा को बेहतर ढंग से संतुष्ट कर सकता है। कल्पना कर कि तू परमेश्वर के लिए काम कर सकता है, फिर भी तू परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानता है, और सचमुच में परमेश्वर से प्रेम करने में असमर्थ है। इस रीति से, तूने न केवल परमेश्वर के एक प्राणी के अपने कर्तव्य को नहीं निभाया होगा, बल्कि तू परमेश्वर के द्वारा निन्दित भी किया जाएगा, क्योंकि तू ऐसा व्यक्ति है जो सत्य को धारण नहीं करता है, जो परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने में असमर्थ है, और जो परमेश्वर के प्रति अनाज्ञाकारी है। तू केवल परमेश्वर के लिए कार्य करने के विषय में परवाह करता है, और सत्य को अभ्यास में लाने, या स्वयं को जानने के विषय में कोई परवाह नहीं करता है। तू सृष्टिकर्ता को समझता एवं जानता नहीं है, और सृष्टिकर्ता के प्रेम या उसकी आज्ञा का पालन नहीं करता है। तू ऐसा व्यक्ति है जो सहज रूप से परमेश्वर के प्रति अनाज्ञाकारी है, और इस प्रकार ऐसे लोग सृष्टिकर्ता के प्रिय नहीं है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सफलता या विफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है

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