परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 454

03 सितम्बर, 2020

यीशु परमेश्वर के आदेश—समस्त मानवजाति के छुटकारे के कार्य—को पूरा करने में समर्थ था क्योंकि उसने अपनी व्यक्तिगत योजनाओं एवं विचारों के बिना परमेश्वर की इच्छा की पूरी परवाह की। इसलिए भी, वह परमेश्वर—परमेश्वर स्वयं का अंतरंग था, कुछ ऐसा जिसे तुम सभी लोग अच्छी तरह से समझते हो। (वास्तव में, वह परमेश्वर स्वयं था जिसकी गवाही परमेश्वर के द्वारा दी गई थी; इस विषय की व्याख्या करने हेतु यीशु के तथ्य का उपयोग करने के लिए मैंने इसका यहाँ उल्लेख किया है)। वह परमेश्वर की प्रबन्धन योजना को बिलकुल केन्द्र में स्थापित करने में समर्थ था, और स्वर्गिक पिता से हमेशा प्रार्थना करता था और स्वर्गिक पिता की इच्छा की तलाश करता था। उसने प्रार्थना की और कहाः "परमपिता परमेश्वर! जो तेरी इच्छा हो उसे पूरी कर, और मेरी इच्छाओं के अनुसार कार्य मत कर; तू जैसा चाहे वैसे अपनी योजना के अनुसार काम कर। मनुष्य कमज़ोर हो सकता है, किन्तु तुझे उसकी चिंता क्यों करनी चाहिए? मनुष्य तेरी चिंता का विषय कैसे हो सकता है, मनुष्य जो कि तेरे हाथों में एक चींटी के समान है? मैं अपने हृदय में केवल तेरी इच्छा को पूरा करना चाहता हूँ, और चाहता हूँ कि तू वह कर सके जो तू अपनी इच्छाओं के अनुसार मुझ में करना चाहता है।" यरूशलेम जाने के मार्ग पर, यीशु ने संताप में महसूस किया, मानो कि कोई एक नश्तर उसके हृदय में भोंक दिया गया हो, फिर भी उसमें अपने वचन से पीछे हटने की थोड़ी सी भी इच्छा नहीं थी; हमेशा से एक सामर्थ्यवान ताक़त थी जो उसे लगातार उस ओर आगे बढ़ने के लिए बाध्य कर रही थी जहाँ उसे सलीब पर चढ़ाया जाएगा। अंततः, उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया और वह मानवजाति के छुटकारे के कार्य को पूरा करते हुए, तथा मृत्यु एवं अधोलोक के बन्धनों से ऊपर उठते हुए, पापमय देह के सदृश बन गया। उसके सामने नैतिकता, नरक एवं अधोलोक ने अपनी सामर्थ्य खो दी, और उसके द्वारा परास्त हो गए थे। वह तैंतीस वर्षों तक जीवित रहा, पूरे समयकाल में उसने उस वक्त परमेश्वर के कार्य के अनुसार परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए, अपने व्यक्तिगत लाभ या नुकसान के बारे में कभी विचार नहीं करते हुए, और हमेशा परमपिता परमेश्वर की इच्छा के बारे में सोचते हुए, हमेशा अपना अधिकतम प्रयास किया। इस प्रकार, उसका बपतिस्मा हो जाने के बाद, परमेश्वर ने कहाः "यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ।" परमेश्वर के सामने उसकी सेवा के कारण जो परमेश्वर की इच्छा की समरसता में थी, परमेश्वर ने उसके कंधों पर समस्त मानवजाति के छुटकारे की भारी ज़िम्मेदारी डाल दी और उसे पूरा करने के लिए उसे आगे बढ़ा दिया, और वह इस महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने के लिए योग्य एवं पात्र था। अपने पूरे जीवनकाल में, उसने परमेश्वर के लिए अपरिमित कष्ट सहा, और उसे शैतान के द्वारा अनगिनित बार प्रलोभित किया गया, किन्तु वह कभी भी निरुत्साहित नहीं हुआ। परमेश्वर ने उसे ऐसा कार्य इसलिए दिया था क्योंकि वह उस पर भरोसा करता था और उससे प्रेम करता था, और इसलिए परमेश्वर ने व्यक्तिगत रूप से कहाः "यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ।" उस समय, केवल यीशु ही इस आदेश को पूरा कर सकता था, और यह अनुग्रह के युग में परमेश्वर के द्वारा पूर्ण किए गए समस्त मानवजाति के छुटकारे के उसके कार्य का एक भाग था।

यदि, यीशु के समान, तुम लोग परमेश्वर की ज़िम्मेदारी पर पूरा ध्यान देने में समर्थ हो, और अपनी देह से मुँह मोड़ लो, तो परमेश्वर अपना महत्वपूर्ण कार्य तुम लोगों को सौंप देगा, ताकि तुम लोग परमेश्वर की सेवा करने की शर्तों को पूरा करोगे। केवल ऐसी परिस्थितियों में ही तुम लोगों में यह कहने की हिम्मत होगी कि तुम लोग परमेश्वर की इच्छा पर चल रहे हो एवं उसके आदेश को पूरा कर रहे हो, केवल तभी तुम लोग यह कहने की हिम्मत करोगे कि तुम लोग सचमुच में परमेश्वर की सेवा कर रहे हो। यीशु के उदाहरण की तुलना में, क्या तुममें यह कहने की हिम्मत है कि तुम परमेश्वर के अंतरंग हो? क्या तुममें यह कहने की हिम्मत है कि तुम परमेश्वर की इच्छा पर चल रहे हो? क्या तुममें यह कहने की हिम्मत है कि तुम सचमुच परमेश्वर की सेवा कर रहे हो? आज, यदि तुम परमेश्वर के प्रति ऐसी सेवा को नहीं समझते हो, तो क्या तुममें यह कहने की हिम्मत है कि तुम परमेश्वर के अंतरंग हो? यदि तुम कहते हो कि तुम परमेश्वर की सेवा करते हो, तो क्या तुम उसके विरूद्ध ईशनिन्दा नहीं करते हो? इसके बारे में विचार करो: क्या तुम परमेश्वर की सेवा कर रहे हो या स्वयं की सेवा कर रहे हो? तुम शैतान की सेवा करते हो, फिर भी तुम ढिठाई से कहते हो कि तुम परमेश्वर की सेवा कर रहे हो—इसमें क्या तुम परमेश्वर की ईशनिन्दा नहीं कर रहे हो? मेरी पीठ पीछे बहुत से लोग हैसियत के आशीष का लोभ करते हैं, वे ठूँस-ठूँस कर खाना खाते हैं, वे नींद से प्यार करते हैं तथा देह पर बहुत ध्यान देते हैं, हमेशा भयभीत रहते हैं कि देह से बाहर कोई मार्ग नहीं है। वे कलीसिया में अपना सामान्य प्रकार्य नहीं करते हैं, और मुफ़्त में खाते हैं, या अन्यथा मेरे वचनों से अपने भाईयों एवं बहनों की भर्त्सना करते हैं, वे ऊँचे स्थान में खड़े होते हैं तथा दूसरों के ऊपर आधिपत्य जताते हैं। ये लोग निरन्तर कहते रहते हैं कि वे परमेश्वर की इच्छा पर चल रहे हैं, वे हमेशा कहते हैं कि वे परमेश्वर के अंतरंग हैं—क्या यह बेतुका नहीं है? यदि तुम्हारे पास सही प्रेरणाएँ हैं, किन्तु तुम परमेश्वर की इच्छा की सेवा करने में असमर्थ हो, तो तुम मूर्ख हो; किन्तु यदि तुम्हारी प्रेरणाएँ सही नहीं हैं, और तुम तब भी कहते हो कि तुम परमेश्वर की सेवा करते हो, तो तुम एक ऐसे व्यक्ति हो जो परमेश्वर का विरोध करता है, और तुम्हें परमेश्वर के द्वारा दण्डित किया जाना चाहिए! ऐसे लोगों के लिए मेरे पास कोई सहानुभूति नहीं है! परमेश्वर के घर में वे मुफ़्त में भोजन करते हैं, और हमेशा देह के आराम का लोभ करते हैं, और परमेश्वर की रूचियों पर कोई विचार नहीं करते हैं; वे हमेशा उसकी खोज करते हैं जो उनके लिए अच्छा है, वे परमेश्वर की इच्छा पर कोई ध्यान नहीं देते हैं, वे जो कुछ भी करते हैं उस पर परमेश्वर की आत्मा के द्वारा कोई विचार नहीं किया जाता है, वे हमेशा अपने भाईयों एवं बहनों के विरूद्ध चालाकी और साजिश करते रहते हैं, और दो-मुँहे हो कर, वे दाख की बाड़ी में लोमड़ी के समान, हमेशा अंगूरों को चुराते हैं और दाख की बाड़ी को कुचलते हैं। क्या ऐसे लोग परमेश्वर के अंतरंग हो सकते हैं? क्या तुम परमेश्वर की आशीषों को प्राप्त करने के लायक़ हो? तुम अपने जीवन एवं कलीसिया के लिए कोई उत्तरदायित्व नहीं लेते हो, क्या तुम परमेश्वर के आदेश को लेने के लायक़ हो? कौन तुम जैसे व्यक्ति पर भरोसा करने की हिम्मत करेगा? जब तुम इस प्रकार से सेवा करते हो, तो क्या परमेश्वर तुम्हें बड़ा काम देने की हिम्मत कर सकता है? क्या तुम चीजों में विलंब नहीं कर रहे हो?

मैं ऐसा कहता हूँ ताकि तुम लोग जान लो कि परमेश्वर की इच्छा की समरसता में सेवा करने के लिए कौन सी शर्तों को पूरा अवश्य करना चाहिए। यदि तुम लोग अपना हृदय परमेश्वर को नहीं देते हो, यदि तुम लोग यीशु की तरह परमेश्वर की इच्छा की पूरी परवाह नहीं करते हो, तो तुम लोगों पर परमेश्वर के द्वारा भरोसा नहीं किया जा सकता है, और अंतत: परमेश्वर द्वारा तुम्हारा न्याय किया जायेगा। शायद आज, परमेश्वर के प्रति तुम्हारी सेवा में, तुम हमेशा से परमेश्वर को धोखा देने के इरादे को आश्रय देते हो—किन्तु परमेश्वर तब भी तुम्हें ध्यान में रखेगा। संक्षेप में, इन सभी बातों की परवाह किए बिना, यदि तुम परमेश्वर को धोखा देते हो तो तुम्हारे ऊपर क्रूर न्याय पड़ेगा। तुम लोगों को परमेश्वर की सेवा के सही मार्ग पर अभी-अभी प्रवेश करने का लाभ सबसे पहले परमेश्वर को अपने हृदय, विभाजित वफादारी के बिना, देने के लिए उठाना चाहिए। इस बात की परवाह किए बिना कि तुम परमेश्वर के सामने हो, या लोगों के सामने हो, तुम्हारे हृदय को हमेशा परमेश्वर के सम्मुख होना चाहिए, और तुम्हारा यीशु के समान परमेश्वर से प्रेम करने का संकल्प होना चाहिए। इस तरीके से, परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनाएगा, ताकि तुम परमेश्वर के ऐसे सेवक बन जाओ जो उसके हृदय के अनुकूल हो। यदि तुम परमेश्वर के द्वारा वास्तव में पूर्ण बनाए जाना, और अपनी सेवा को उसकी इच्छा की समरसता में होना चाहते हो, तो परमेश्वर के प्रति विश्वास के बारे में तुम्हें अपने पूर्व दृष्टिकोण को बदलना चाहिए, और जिस तरीके से तुम परमेश्वर की सेवा किया करते थे उसे बदलना चाहिए, ताकि परमेश्वर द्वारा तुम्हें अधिक से अधिक पूर्ण बनाया जाए; इस तरीके से, परमेश्वर तुम्हें नहीं त्यागेगा, और, पतरस के समान, तुम उन लोगों की पंक्ति में सबसे आगे होगे जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं। यदि तुम पश्चाताप नहीं करते हो, तो तुम्हारा अंत यहूदा के समान होगा। इसे उन सभी लोगों को समझ लेना चाहिए जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सेवा कैसे करें

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