सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (5) भाग दो
मनुष्य अपनी धारणाओं में किन चीजों को सही और अच्छा मानता है—इस विषय पर मैं पहले ही बहुत-कुछ बोल चुका हूँ, मैंने इसे बार-बार दोहराया है, ताकि तुम लोग यह समझ सको कि हालाँकि ये विषय सत्य से एक हद तक दूर हैं, और वे सत्य की ऊँचाई तक नहीं पहुँचते, फिर भी वे लोगों और चीजों के बारे में मनुष्य के विचारों और उसके आचरण और कार्यकलापों से संबंधित हैं। इसलिए, इन विषयों को गैर-सत्य या एक तरह का ज्ञान या सिद्धांत न समझो। ये खोखले नहीं हैं। जिन चीजों को लोग अपनी धारणाओं में सही और अच्छा मानते हैं, वे हमेशा उनके दिल की गहराइयों में रहती हैं, उनके विचारों को नियंत्रित करती हैं, उस परिप्रेक्ष्य और दृष्टिकोण को नियंत्रित करती हैं जिससे वे लोगों और चीजों को देखते और आचरण व कार्य करते हैं। इसलिए, इन चीजों को स्पष्ट रूप से समझाया जाना चाहिए, ताकि लोग इन्हें समझ सकें और इनके बारे में विवेक हासिल कर सकें, और इस तरह अच्छे व्यवहार और इस तरह की चीजों के बारे में मनुष्य की धारणाएँ छोड़ दें, और फिर कभी इन चीजों को लोगों और चीजों के बारे में अपने विचारों और अपने आचरण और कार्यकलापों के लिए सकारात्मक या व्यवहार संबंधी मानदंड न मानें। ये चीजें परमेश्वर के वचन बिल्कुल नहीं हैं, इनका सत्य होना तो दूर की बात है। तुम लोगों को जो करने की आवश्यकता है, वह है लगातार उस दृष्टिकोण और रुख को सही करना, जिससे तुम लोगों और चीजों को देखते हो और आचरण व कार्य करते हो, साथ ही लगातार यह भी जाँचते रहना कि तुम्हारे दिमाग में उठने वाली प्रत्येक धारणा और दृष्टिकोण सत्य के अनुरूप है या नहीं। तुम्हें तुरंत अपनी भ्रामक धारणाओं और दृष्टिकोणों को उलट देना चाहिए, और फिर सही रुख पर कायम रहना चाहिए, और परमेश्वर द्वारा अपेक्षित व्यवहार संबंधी मानदंडों का उपयोग करते हुए परमेश्वर के वचनों के अनुसार लोगों और चीजों को देखना और आचरण और कार्य करना चाहिए। यह सत्य के अनुसरण का सबसे बुनियादी अभ्यास है। यह एक तरह की अनुसरण की दिशा और लक्ष्य भी है, जो तुममें उद्धार प्राप्त करने और सामान्य मानवता को जीने का प्रयास करते समय होना चाहिए। चूँकि तुम लोगों ने ये वचन अभी-अभी सुने हैं, हो सकता है कि इनके बारे में तुम्हारी समझ उतनी गहरी या ठोस न हो, लेकिन चिंता न करो। जब परमेश्वर के वचनों का तुम्हारा अनुभव लगातार गहरा होगा, और जब तुम लोग परंपरागत संस्कृति की धारणाओं के भीतर सही मानी जाने वाली चीजों का लगातार विश्लेषण करोगे और उन्हें पहचानोगे, तो तुम अंततः परंपरागत संस्कृति के विभिन्न दावे छोड़ने में सक्षम होगे। तुम फिर कभी लोगों के व्यवहार का मूल्यांकन परंपरागत संस्कृति के अनुसार नहीं करोगे; इसके बजाय, तुम लोगों का मूल्यांकन परमेश्वर के वचनों और सत्य के अनुसार करोगे। इस तरह, तुम परंपरागत संस्कृति की धारणाओं को पूरी तरह से हटा और त्याग चुके होगे। अगर तुम सत्य नहीं समझते, और सिर्फ सरल धर्म-सिद्धांत समझते हो, और जानते हो कि परंपरागत संस्कृति द्वारा अपेक्षित व्यवहार अमान्य हैं, तो तुम सोच सकते हो, “मैं एक आधुनिक व्यक्ति हूँ, जो सांसारिक जन-समूह से अलग है। मैं बहुत परंपरागत नहीं हूँ और मैं वास्तव में परंपरागत संस्कृति के खिलाफ हूँ, मुझे थकाऊ रीति-रिवाजों और संस्कारों का पालन करना पसंद नहीं है।” लेकिन जब तुम लोगों और चीजों को देखते हो, तो तुम अभी भी बहुत स्वाभाविक रूप से उन्हें देखने और उनका मूल्यांकन करने के लिए अपनी पिछली धारणाओं का उपयोग करोगे। उस समय तुम्हें पता चलेगा कि एक आधुनिक व्यक्ति, जो पुराने जमाने का या बहुत परंपरागत नहीं है, और जो सत्य स्वीकार सकता है, होने के बारे में तुम्हारे सभी दावे वास्तव में झूठे और गलत थे, और कि तुम अपनी भावनाओं से धोखा खा गए थे। सिर्फ तभी तुम्हें पता चलेगा कि पुराने विचार, दृष्टिकोण और धारणाएँ बहुत पहले ही तुम्हारे हृदय में गहरी जड़ें जमा चुकी हैं, और तुम्हारे अपनी धारणाएँ बदलने या कुछ विचार त्यागने पर वे तुरंत गायब नहीं होतीं। यह कहना कि तुम नए युग के व्यक्ति, एक आधुनिक व्यक्ति हो, सिर्फ एक सतही ठप्पा है; यह सिर्फ इसलिए है कि तुम एक अलग पीढ़ी और युग में पैदा हुए हो, लेकिन वे सभी चीजें जो पुराने जमाने की और परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण हैं, जो सभी मनुष्यों में समान हैं, बिना किसी अपवाद के तुममें भी मौजूद हैं। अगर तुम इंसान हो, तो तुममें ये चीजें होंगी। अगर तुम्हें इस पर विश्वास नहीं है, तो ज्यादा अनुभव प्राप्त करो। एक दिन आएगा, जब तुम मेरे इन वचनों पर “आमीन” कहोगे। जिन लोगों को आध्यात्मिक समझ नहीं है, और जो अहंकारी और अहम्मन्य हैं, वे सोचते हैं, “मेरे पास स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट की डिग्रियाँ है। मैं इस समाज में कई वर्षों से रह रहा हूँ, और मैं नए युग की संस्कृति और शिक्षा, खासकर पश्चिमी शिक्षा से भी परिचित हूँ। मैं अभी भी वे पुराने जमाने की चीजें मन में कैसे रख सकता हूँ? मेरे लिए परंपराएँ सबसे खराब हैं। मैं सबसे ज्यादा उन निरर्थक नियमों से घृणा करता हूँ। जब मेरा परिवार इकट्ठा होकर परंपरागत चीजों और नियमों के बारे में बात करता है, तो मैं बिल्कुल नहीं सुनना चाहता।” इसे नकारने में जल्दबाजी न करो। अंततः एक दिन आएगा, जब तुम अपने ये विचार छोड़ दोगे। तुम स्वीकारोगे कि शैतान द्वारा भ्रष्ट मानवजाति का तुमसे ज्यादा साधारण सदस्य कोई नहीं हो सकता। हालाँकि तुमने स्वेच्छा से अपने अंदर पुराने जमाने की धारणाओं को स्वीकारा या उड़ेला नहीं था, लेकिन परंपरागत संस्कृति और मानवजाति के पूर्वजों ने तुम्हें उनसे बहुत पहले ही संक्रमित और अनुकूलित कर दिया था। ये चीजें, बिना किसी अपवाद के, तुम्हारे आंतरिक परिदृश्य में, और तुम्हारे विचारों और धारणाओं में मौजूद हैं। ऐसा क्यों है? क्योंकि परंपरागत संस्कृति के ये पहलू सरल वक्तव्य नहीं हैं, न ही ये सरल कहावतें या नजरिये हैं। बल्कि, ये एक तरह की सोच और सिद्धांत हैं। ये मनुष्य को गुमराह और भ्रष्ट करते हैं। ये कहावतें और नजरिये भ्रष्ट मानवता से नहीं आते, ये शैतान से आते हैं। अगर तुम शैतान की सत्ता के अधीन रह रहे हो, तो तुम इन चीजों से अनुकूलित, गुमराह और भ्रष्ट होने से नहीं बच सकते। अब जबकि तुमने मेरे वचन सुन लिए हैं, तुम पाओगे कि ये सब तथ्य और सत्य हैं। जब तुम मेरे इन वचनों का अनुभव कर लोगे, तो तुम पाओगे कि हालाँकि तुम्हें परंपरागत संस्कृति या थकाऊ रीति-रिवाज या निरर्थक नियम पसंद नहीं हैं, फिर भी लोगों और चीजों के बारे में तुम्हारे विचारों और तुम्हारे आचरण और कार्यकलापों के आधार अनिवार्य रूप से मनुष्य से आते हैं। वे परंपरागत संस्कृति के मूल से संबंधित हैं, वे परंपरागत संस्कृति के भीतर की चीजें हैं। लोगों और चीजों के बारे में तुम्हारे विचार और तुम्हारा आचरण और तुम्हारे कार्यकलाप, सत्य को अपनी कसौटी मानते हुए, परमेश्वर के वचनों पर आधारित नहीं हैं। उस समय, तुम जान लोगे, तुम स्पष्ट रूप से देख पाओगे कि सत्य प्राप्त करने से पहले लोग अगर सत्य का अनुसरण नहीं करते या उसे समझते नहीं, तो वे सबसे बुनियादी सामान्य मानवता को जीते हुए अपने साथ शैतान का विष, शैतान का एक अंश और शैतान की साजिशें लिए रहते हैं। वे जो कुछ भी जीते हैं, वह नकारात्मक होता है, जिसे परमेश्वर तिरस्कृत करता है। यह सब देह का होता है, जिसका उन सकारात्मक चीजों से कोई लेना-देना नहीं होता, जिन्हें परमेश्वर प्रस्तुत और पसंद करता है, और जो उसके इरादों के अनुसार होते हैं। उनमें कोई परस्पर-व्याप्ति नहीं होती, यहाँ तक कि उनमें कोई समानता भी नहीं होती। इन समस्याओं को स्पष्ट रूप से देखना बहुत महत्वपूर्ण है, वरना लोग यह नहीं जान पाएँगे कि सत्य का अभ्यास करने का क्या अर्थ है। वे हमेशा उन अच्छे व्यवहारों से चिपके रहेंगे, जिन्हें मनुष्य सकारात्मक चीजें मानता है, इसलिए उनके व्यवहार और अभिव्यक्तियों को कभी भी परमेश्वर की स्वीकृति नहीं मिलेगी। अगर व्यक्ति सत्य से प्रेम करता है, तो वह उसे स्वीकारने और उसका अनुसरण करने में सक्षम होगा। वह पूरी तरह परमेश्वर के वचनों के अनुसार, सत्य को अपनी कसौटी मानकर लोगों और चीजों को देखेगा और आचरण और कार्य करेगा। इस तरह, वह उस जीवन-पथ पर चलने में सक्षम होगा, जो परमेश्वर ने मनुष्य को दिखाया है। पूरी तरह परमेश्वर के वचनों के अनुसार, सत्य को अपनी कसौटी मानकर लोगों और चीजों को देखना और आचरण और कार्य करना—यह सत्य-सिद्धांत मनुष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और अनिवार्य है। यह वह सत्य-सिद्धांत है, जो उद्धार का अनुसरण करते समय और एक सार्थक जीवन जीने का प्रयास करते समय व्यक्ति के पास होना चाहिए। तुम्हें इसे स्वीकारना चाहिए। इस मामले में विकल्प की कोई गुंजाइश नहीं है और किसी के लिए भी कोई अपवाद नहीं है। अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते और सत्य-सिद्धांत को नहीं स्वीकारते, तो चाहे तुम बूढ़े हो या जवान, ज्ञानी हो या नहीं, चाहे तुम आस्था वाले व्यक्ति हो या कम आस्था वाले व्यक्ति, और चाहे तुम जिस भी सामाजिक वर्ग से संबंधित हो, या तुम्हारी जो भी नस्ल हो, बिना किसी अपवाद के, तुम्हारा उन मानकों से कोई लेना-देना नहीं होगा, जिनकी परमेश्वर माँग करता है। तुम्हें जो करना चाहिए, वह है पूरी तरह परमेश्वर के वचनों के अनुसार, सत्य को अपनी कसौटी मानकर लोगों और चीजों को देखना और आचरण और कार्य करना। यही एकमात्र रास्ता है, जिस पर तुम्हें चलना चाहिए। तुम्हें यह कहते हुए चुनाव नहीं करना चाहिए, “अगर कोई चीज मेरी धारणाओं के अनुरूप हुई, तो मैं उसे सत्य के रूप में स्वीकार लूँगा और अगर वह मेरी धारणाओं के अनुरूप न हुई, तो मैं उसे स्वीकारने से मना कर दूँगा। मैं चीजों को अपने तरीके से करूँगा, मुझे सत्य का अनुसरण करने की कोई आवश्यकता नहीं है। मुझे लोगों, मामलों और चीजों को परमेश्वर के वचनों के दृष्टिकोण से देखने की जरूरत नहीं है; मेरे अपने विचार हैं, और वे काफी उदात्त, वस्तुनिष्ठ और सकारात्मक हैं। वे परमेश्वर के वचनों से उतने भिन्न नहीं हैं, इसलिए, निस्संदेह, वे परमेश्वर के वचनों और सत्य का स्थान ले सकते हैं। मुझे इस संबंध में परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने या उनके अनुसार कार्य करने की आवश्यकता नहीं है।” अनुसरण करने का इस तरह का दृष्टिकोण और तरीका गलत है। व्यक्ति के विचार कितने भी अच्छे या सही क्यों न हों, फिर भी वे गलत होते हैं। वे किसी भी तरह से सत्य का स्थान नहीं ले सकते। अगर तुम सत्य नहीं स्वीकार सकते, तो तुम जिसका भी अनुसरण करोगे, वह गलत होगा। इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुम लोगों के पास “पूरी तरह परमेश्वर के वचनों के अनुसार, सत्य को अपनी कसौटी मानकर लोगों और चीजों को देखने और आचरण और कार्य करने” के मामले में कोई विकल्प नहीं है। तुम बस इतना ही कर सकते हो कि कर्तव्यपरायणता से इस वाक्यांश के अनुसार कार्य करो, इसे कार्यान्वित करो और इसका व्यक्तिगत रूप से अनुभव करो, धीरे-धीरे इसका ज्ञान प्राप्त करो, अपने भ्रष्ट स्वभाव को पहचानो, और इस वाक्यांश की वास्तविकता में प्रवेश करो। सिर्फ तभी अंततः तुम्हारे द्वारा प्राप्त किया जाने वाला लक्ष्य वह लक्ष्य होगा, जिसे सत्य का अनुसरण करके प्राप्त करना चाहिए। अन्यथा तुम्हारी कड़ी मेहनत, तुम्हारे द्वारा त्यागी गई हर चीज और तुम्हारे द्वारा चुकाई गई सभी कीमतें हवा हो जाएँगी, वे सब व्यर्थ हो जाएँगी। क्या तुम समझ रहे हो?
सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है? (पूरी तरह परमेश्वर के वचनों के अनुसार, सत्य को अपनी कसौटी मानकर लोगों और चीजों को देखना और आचरण और कार्य करना।) यह सही है। इन वचनों का कर्तव्यनिष्ठा से, पूर्ण रूप से और व्यापक रूप से अभ्यास करो। इस वाक्यांश को अपने अनुसरण का लक्ष्य और अपने जीवन की वास्तविकता बना लो, तब तुम वह व्यक्ति होगे जो सत्य का अनुसरण करता है। किसी भी तरह से दूषित न हो, मनुष्य की किसी भी इच्छा से दूषित न हो, और भाग्य की किसी भी मानसिकता को पकड़े न रहो। कार्य करने का यही सही तरीका है, और तब तुम लोगों को सत्य प्राप्त करने की आशा होगी। तो, क्या अच्छे व्यवहार के बारे में मनुष्य की धारणाओं पर संगति और उनका विश्लेषण करना आवश्यक है? (हाँ, आवश्यक है।) यह तुम लोगों को क्या सकारात्मक मार्गदर्शन और सहायता प्रदान कर सकता है? क्या ये वचन इस बात का आधार और कसौटी बन सकते हैं कि तुम लोग, लोगों और चीजों को कैसे देखते हो और कैसे आचरण और कार्य करते हो? (हाँ, बन सकते हैं।) अगर बन सकते हैं, तो अपनी सभाओं और भक्ति-कार्य के दौरान इन दो संगतियों का अच्छी तरह से प्रार्थना-पाठ करो। जब तुम इन वचनों को पूरी तरह से समझ लोगे, तो तुम परमेश्वर के वचनों के अनुसार सही ढंग से लोगों और चीजों को देखने और आचरण और कार्य करने में सक्षम हो जाओगे। इस तरह, तुम जो कहते और करते हो, उसके लिए तुम्हारे पास एक आधार और कसौटी होगी। तुम लोगों को सही ढंग से देख पाओगे और चीजों को देखने का तुम्हारा नजरिया और रुख भी सही होगा। अब तुम लोगों और चीजों को अपनी भावनाओं या अनुभूतियों के आधार पर नहीं देखोगे, न ही परंपरागत संस्कृति या शैतानी फलसफों के आधार पर देखोगे। जब तुम्हारे पास सही आधार होगा, तो लोगों और चीजों को देखने के परिणाम अपेक्षाकृत सटीक होंगे। क्या ऐसा ही नहीं है? (हाँ, है।) इसलिए, तुम लोग इन वचनों को बस ले या छोड़ नहीं सकते। मैं तुम लोगों के साथ सभाएँ करके इन विषयों पर इसलिए संगति नहीं कर रहा कि मुझे समय गुजारना है या मैं ऊब गया हूँ तो मन बहलाना है। मैं ऐसा इसलिए करता हूँ, क्योंकि ये समस्याएँ सभी लोगों में आम हैं, और ये ऐसी समस्याएँ हैं जिन्हें लोगों को सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने के अपने मार्ग पर समझना चाहिए। लेकिन लोग अभी भी इन मुद्दों पर स्पष्ट नहीं हैं। वे अक्सर इन्हीं चीजों में बँधे और उलझे रहते हैं। ये समस्याएँ उन्हें बाधित और परेशान करती हैं। निस्संदेह, लोग उद्धार प्राप्त करने के मार्ग को भी नहीं समझते। चाहे निष्क्रिय परिप्रेक्ष्य से हो या सक्रिय परिप्रेक्ष्य से, या चाहे सकारात्मक परिप्रेक्ष्य से हो या नकारात्मक परिप्रेक्ष्य से, लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे इन समस्याओं पर स्पष्ट हैं और इन्हें समझते हैं। इस तरह, जब तुम वास्तविक जीवन में इस तरह की समस्याओं का सामना करते हो और अपने सामने एक विकल्प पाते हो, तो तुम सत्य खोजने में सक्षम होगे; समस्या को देखने का तुम्हारा नजरिया और रुख सही होगा, और तुम सिद्धांतों का पालन करने में सक्षम होगे। इस तरह, तुम्हारे निर्णयों और विकल्पों का आधार होगा, और वे परमेश्वर के वचनों के अनुरूप होंगे। फिर कभी तुम शैतानी फलसफों और भ्रांतियों से गुमराह नहीं होगे; फिर कभी तुम शैतान के विषों और बेतुके दावों से परेशान नहीं होगे। फिर, जब लोगों और चीजों को देखने की बात आती है, जो कि सबसे बुनियादी स्तर है, तो तुम किसी चीज या व्यक्ति को देखने के तरीके में वस्तुनिष्ठ और न्यायपूर्ण होने में सक्षम होगे; तुम अपनी भावनाओं या शैतानी फलसफों से प्रभावित या नियंत्रित नहीं होगे। इसलिए, हालाँकि उन व्यवहारों को पहचानना और समझना, जिन्हें लोग अपनी धारणाओं के अनुसार अच्छा मानते हैं, सत्य का अनुसरण करने की प्रक्रिया में एक बड़ा मामला नहीं है, फिर भी यह लोगों के दैनिक जीवन से निकटता से जुड़ा हुआ है। दूसरे शब्दों में, लोग अपने दैनिक जीवन में इन चीजों का अक्सर सामना करते हैं। उदाहरण के लिए, मान लो कि कुछ होता है, और तुम एक तरह से कार्य करना चाहते हो, लेकिन कोई दूसरा व्यक्ति एक अलग दृष्टिकोण सामने रखता है, और वह व्यक्ति सामान्य तौर पर जैसा व्यवहार करता है, उससे तुम्हें असहजता होती है—तो तुम्हें उसके विचार को कैसे लेना चाहिए? तुम्हें इस मामले को कैसे सँभालना चाहिए? तुम्हारा बस उसे अनदेखा कर देना गलत होगा। चूँकि तुम उसके बारे में एक खास दृष्टिकोण रखते हो या खास तरह से उसका आकलन करते हो, या तुमने उसके बारे में कोई निष्कर्ष निकाल रखा है, इसलिए ये चीजें तुम्हारी सोच और परख को प्रभावित करेंगी, और इनसे इस मामले पर तुम्हारा फैसला प्रभावित होने की संभावना है। यही कारण है कि तुम्हें उसका भिन्न दृष्टिकोण शांति से समझना चाहिए, और उसे सत्य के अनुसार पहचानना और स्पष्ट रूप से देखना चाहिए। अगर उसने जो कहा, वह सत्य-सिद्धांतों के अनुरूप है, तो तुम्हें उसे स्वीकारना चाहिए। इस तरह की स्थिति या व्यक्ति का फिर से सामना करने पर अगर तुम मामला स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते, तो तुम हमेशा भ्रमित, बिना तैयारी के, उत्तेजित और उद्विग्न महसूस करोगे। कुछ लोग स्थिति को सँभालने और उससे निपटने के लिए चरम उपाय भी अपना सकते हैं, जिनके अंतिम परिणाम निश्चित रूप से कोई नहीं देखना चाहता। अगर तुम किसी व्यक्ति को देखने के लिए माप के उन मानकों का उपयोग करते हो जिनकी परमेश्वर माँग करता है, तो अंतिम परिणाम अच्छा और सकारात्मक होने की संभावना है—तुम दोनों के बीच कोई संघर्ष नहीं होगा और तुम्हारी आपस में बनेगी। हालाँकि, अगर तुम व्यक्ति को देखने के लिए शैतान के तर्क और अच्छे व्यवहार की मनुष्य की धारणाओं के मानकों का उपयोग करते हो, तो तुम दोनों में लड़ाई और बहस होने की संभावना है। इसका परिणाम यह होगा कि तुम्हारी आपस में नहीं बनेगी, और उसके बाद बहुत-सी चीजें होंगी : तुम एक-दूसरे को दुर्बल बना सकते हो, एक-दूसरे को नीचा दिखा सकते हो, और एक-दूसरे की आलोचना कर सकते हो, गंभीर मामलों में तुम एक-दूसरे के साथ हाथापाई तक कर सकते हो, और अंत में, दोनों पक्ष आहत होंगे और हारेंगे। कोई यह नहीं देखना चाहता। इसलिए, जो चीजें शैतान लोगों में बिठाता है, वे कभी भी उन्हें किसी व्यक्ति या चीज को वस्तुनिष्ठ, न्यायपूर्ण या यथोचित रूप से देखने में मदद नहीं कर सकतीं। लेकिन जब लोग किसी चीज या व्यक्ति को उस व्यवहार संबंधी मानदंड के अनुसार देखते और उसका मूल्यांकन करते हैं, जिसकी परमेश्वर माँग करता है और जिसे उसने मनुष्य को सूचित किया है, और परमेश्वर के वचनों और सत्य के अनुसार देखते और मूल्यांकन करते हैं, तो अंतिम परिणाम निश्चित रूप से वस्तुनिष्ठ होगा, क्योंकि वह उग्रता या मनुष्य की भावनाओं और अनुभूतियों से दूषित नहीं होता। उससे अच्छी चीजें ही आ सकती हैं। इसके आलोक में, लोगों को क्या स्वीकारने की आवश्यकता है : अच्छी चीजों के बारे में मनुष्य की धारणाएँ या वह व्यवहार संबंधी मानदंड, जिसकी परमेश्वर माँग करता है? (वह व्यवहार संबंधी मानदंड, जिसकी परमेश्वर माँग करता है।) तुम सभी लोग इस प्रश्न का उत्तर जानते हो, और इसका सही तरह से उत्तर दे सकते हो। ठीक है, हम इस विषय पर अपनी संगति यहीं छोड़ेंगे। अब तुम लोगों को यह करना है कि इन चीजों पर विचार और संगति करना जारी रखो, इन मुद्दों को एक व्यवस्थित तरीके से संगठित करो, अभ्यास के कई सिद्धांत और अभ्यास के मार्ग निकालो, और फिर लगातार अपने दैनिक जीवन में उनसे गुजरो और उनका अनुभव करो, और इन वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करो। स्वाभाविक रूप से, इन वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करना पहली सत्य-वास्तविकता है, जिसका लोग अनुसरण कर उसमें प्रवेश करते हैं। इस तरह, अनुभव के दौरान लोग धीरे-धीरे इस संगति की विषयवस्तु के प्रत्येक पहलू की अलग-अलग मात्रा में समझ और ज्ञान तक पहुँचते हैं, और विभिन्न परिप्रेक्ष्यों से उत्तरोत्तर लाभ प्राप्त करते हैं। जितना ज्यादा तुम प्राप्त करोगे, इन वचनों में उतना ही गहरा तुम्हारा अनुभवजन्य ज्ञान और प्रवेश होगा। जितना गहरे तुम उनमें प्रवेश और उनका अनुभव करोगे, लोगों और चीजों को देखने में और तुम्हारे आचरण और कार्यकलापों में तुम्हारा प्रवेश और अनुभवजन्य ज्ञान उतना ही गहरा हो जाएगा। इसके विपरीत, अगर तुम इन वचनों में बिल्कुल भी प्रवेश नहीं करते, और बस इन वचनों का शाब्दिक अर्थ देखते और समझते हो, और इसे उसी पर छोड़ देते हो, उसी तरह जीते रहते हो जैसे हमेशा जीते रहे हो, समस्याएँ उत्पन्न होने पर सत्य नहीं खोजते, और उन समस्याओं को तुलना के लिए परमेश्वर के वचनों के सामने नहीं रखते, या परमेश्वर के वचनों के अनुसार उनका समाधान नहीं करते, तो तुम कभी परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश नहीं कर पाओगे। यह कहने का क्या अर्थ है कि तुम कभी सत्य-वास्तविकता में प्रवेश नहीं कर पाओगे? इसका अर्थ यह है कि तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो जो सत्य से प्रेम करता है, और तुम कभी सत्य का अभ्यास नहीं करोगे, क्योंकि तुम कभी सत्य को अपनी कसौटी मानकर, परमेश्वर के वचनों के अनुसार लोगों और चीजों को नहीं देखोगे या आचरण और कार्य नहीं करोगे। तुम कहते हो, “मैं अभी भी अच्छी तरह से जी रहा हूँ, भले ही मैं परमेश्वर के वचनों को अपने आधार के रूप में नहीं लेता या सत्य को अपनी कसौटी नहीं मानता।” “अच्छी तरह से जीने” से तुम्हारा क्या मतलब है? अगर तुम मरते नहीं, तो क्या इसका मतलब है कि सब चीजें ठीक चल रही हैं? तुम्हारे अनुसरण का लक्ष्य उद्धार प्राप्त करना नहीं है, और तुम सत्य नहीं स्वीकारते या समझते, फिर भी तुम कहते हो कि तुम अच्छी तरह से जी रहे हो। अगर ऐसा है, तो तुम्हारे जीवन की गुणवत्ता औसत से बहुत कम है, और जिस मानवता को तुम जीते हो उसकी गुणवत्ता बहुत निम्न है। बोलचाल की कहावत उद्धृत करें तो, तुम एक व्यक्ति से ज्यादा राक्षस हो, क्योंकि तुम परमेश्वर के वचन नहीं खाते-पीते और सत्य नहीं समझते, तुम अभी भी शैतानी स्वभाव और शैतानी फलसफों से जीते हो—तुम मानव की खाल पहने सिर्फ एक गैर-मानव हो। ऐसे व्यक्ति के जीवन का क्या गुण या मूल्य होता है? इसका तुम्हें या दूसरों को कोई फायदा नहीं। इस तरह के जीवन की गुणवत्ता बहुत खराब है—इसका कोई मूल्य नहीं है।
क्या तुम लोग जानते हो कि मैं आज इन परंपरागत धारणाओं और परंपरागत संस्कृति पर संगति कर इनका विश्लेषण क्यों कर रहा हूँ? क्या सिर्फ इसलिए कि मैं इन्हें पसंद नहीं करता? (नहीं, यह कारण नहीं है।) तो फिर इन विषयों पर संगति करने का क्या महत्व है? इसका अंतिम लक्ष्य क्या है? (इससे हमें यह जाँच करने में मदद मिलती है कि हम अभी भी ऐसे कौन-से व्यवहार और अभिव्यक्तियाँ पाले बैठे हैं जो परंपरागत संस्कृति द्वारा निर्देशित हैं, और कौन-से शैतानी फलसफों से जीते हैं। जब हम सत्य समझेंगे और विवेक प्राप्त करेंगे, तो हम उन माँगों और मानदंडों के अनुसार सामान्य मानवता को जीने में सक्षम होंगे जो परमेश्वर ने हमें दिए हैं, और सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चल पाएँगे।) यह सही है, लेकिन थोड़ा शब्द-बहुल है। सबसे सरल और सबसे सीधा उत्तर क्या है? इन विषयों पर संगति करने का सिर्फ एक ही अंतिम लक्ष्य है, और वह है लोगों को यह समझाना कि सत्य क्या है, और सत्य का अभ्यास क्या है। जब लोग इन दो चीजों के बारे में स्पष्ट हो जाते हैं, तो वे उन अच्छे व्यवहारों के बारे में समझ पाते हैं, जिन्हें परंपरागत संस्कृति बढ़ावा देती है। फिर वे उन अच्छे व्यवहारों को सत्य का अभ्यास करने या मानवीय समानता को जीने के मानक नहीं समझते। सिर्फ सत्य समझकर ही लोग परंपरागत संस्कृति की बेड़ियाँ उतारकर फेंक सकते हैं, और सत्य का अभ्यास करने और उन अच्छे व्यवहारों के बारे में, जो लोगों के पास होने चाहिए, अपनी गलत समझ और विचारों को दूर कर सकते हैं। केवल इसी तरह से लोग सही तरीके से सत्य का अभ्यास और अनुसरण कर सकते हैं। अगर लोग नहीं जानते कि सत्य क्या है और वे परंपरागत संस्कृति को ही सत्य मान लेते हैं, तो उनके अनुसरण की दिशा, लक्ष्य और मार्ग सब गलत हो जाएँगे। वे परमेश्वर के वचनों से अलग हो गए होंगे, सत्य का उल्लंघन कर चुके होंगे, और सच्चे मार्ग से भटक गए होंगे। इस तरह, वे अपनी ही राह पर चल रहे हैं और भटक रहे हैं। अगर सत्य को न समझने वाले लोग उसे खोजकर उसका अभ्यास करने में अक्षम रहते हैं, तो इसका अंतिम परिणाम क्या होगा? वे सत्य प्राप्त नहीं करेंगे। और अगर वे सत्य प्राप्त नहीं करते, तो वे लोग चाहे कितनी भी मेहनत से विश्वास करें, वह कुछ नहीं माना जाएगा। इसलिए, इन परंपरागत धारणाओं और परंपरागत संस्कृति के इन दावों पर आज की संगति और इनका विश्लेषण सभी विश्वासियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और अत्यधिक अर्थपूर्ण विषय है। तुम लोग परमेश्वर में विश्वास करते हो, लेकिन क्या तुम वास्तव में समझते हो कि सत्य क्या है? क्या तुम वास्तव में जानते हो कि सत्य का अनुसरण कैसे करना है? क्या तुम अपने लक्ष्यों के बारे में निश्चित हो? क्या तुम अपने मार्ग के बारे में निश्चित हो? अगर तुम किसी भी चीज के बारे में निश्चित नहीं हो, तो तुम सत्य का अनुसरण कैसे कर सकते हो? क्या ऐसा हो सकता है कि तुम गलत चीज का अनुसरण कर रहे हो? क्या तुम मार्ग से भटक रहे हो? इसकी अत्यधिक संभावना है। इसलिए, हालाँकि आज मैं जिन वचनों पर संगति कर रहा हूँ, वे ऊपर से बहुत सरल लगते हैं, वचन जिन्हें लोग सुनते ही तुरंत समझ जाते हैं, और तुम लोगों के परिप्रेक्ष्य से, वे उल्लेखनीय तक नहीं लगते, फिर भी यह विषय और यह विषयवस्तु सीधे सत्य से संबंधित है, और परमेश्वर की माँगों से सरोकार रखती है। यह वह चीज है, जिसके बारे में तुम लोगों में से अधिकांश को जानकारी नहीं है। हालाँकि, धर्म-सिद्धांत के संबंध में, तुम लोग समझते हो कि परंपरागत संस्कृति और मनुष्य के सामाजिक विज्ञान सत्य नहीं हैं, और कि नस्ली रीति-रिवाज और प्रथाएँ निश्चित रूप से सत्य नहीं हैं, पर क्या तुम लोग वास्तव में इन चीजों का सार स्पष्ट रूप से देखते हो? क्या तुम लोगों ने वास्तव में इन चीजों की बेड़ियाँ उतार फेंकी हैं? आवश्यक रूप से नहीं। परमेश्वर के घर ने कभी भी लोगों से नस्ली संस्कृति, रीति-रिवाजों और प्रथाओं का अध्ययन करने के लिए प्रयास करने की अपेक्षा नहीं की है, और परमेश्वर के घर ने निश्चित रूप से लोगों को परंपरागत संस्कृति से कुछ भी स्वीकार करने को मजबूर नहीं किया है। परमेश्वर के घर ने कभी भी इन चीजों का उल्लेख नहीं किया है। फिर भी, आज जिस विषय पर मैं संगति कर रहा हूँ, वह बहुत महत्वपूर्ण है। मेरे लिए यह स्पष्ट रूप से कहना आवश्यक है, ताकि तुम लोग समझ सको। मेरे इन चीजों को कहने का लक्ष्य लोगों को सत्य और परमेश्वर के इरादे समझाने के अलावा कुछ नहीं है, लेकिन क्या तुम सब लोग समझ सकते हो कि मैं क्या कह रहा हूँ? अगर तुम लोग कुछ प्रयास करते हो, थोड़ी कीमत चुकाते हो, और इसमें कुछ ऊर्जा लगाते हो, तो तुम अंततः इस क्षेत्र में लाभ प्राप्त करने में सक्षम होगे और इन सत्यों को समझने में सफल होगे। और इन सत्यों को समझकर, और फिर सत्य-वास्तविकता में प्रवेश करने का प्रयास करके, तुम्हारे लिए परिणाम प्राप्त करना आसान होगा।
जिन चीजों को मनुष्य अपनी धारणाओं में सही और अच्छा मानता है, उनके एक पहलू पर हमने पहले संगति की थी, जो कि मनुष्य का अच्छा व्यवहार था। दूसरा पहलू क्या था? (नैतिकता और मनुष्य की मानवता की गुणवत्ता।) सरल शब्दों में, यह मनुष्य का नैतिक आचरण है। हालाँकि सभी भ्रष्ट मनुष्य अपने शैतानी स्वभावों के अनुसार जीते हैं, फिर भी वे खुद को छिपाने में असाधारण रूप से अच्छे होते हैं। खास तौर से सतह-स्तर के नजरियों और व्यवहारों से संबंधित कहावतों के अलावा उन्होंने मनुष्य के नैतिक आचरण से संबंधित कई कथन और अपेक्षाएँ भी प्रस्तुत की हैं। नैतिक आचरण के बारे में कौन-सी कहावतें लोगों के बीच प्रचलित हैं? जिन्हें तुम लोग जानते हो और जिनसे परिचित हो, उन्हें सूचीबद्ध करो, फिर हम विश्लेषण और संगति करने के लिए कुछ आम कहावतें चुनेंगे। (उठाए गए धन को जेब में मत रखो। दूसरों की मदद करने में खुशी पाओ।) (दयालुता का बदला कृतज्ञतापूर्वक लौटाना चाहिए।) (दूसरों की खातिर अपने हित त्याग दो।) (बुराई का बदला भलाई से चुकाओ।) (महिला को सच्चरित्र, दयालु, सौम्य और नैतिकतायुक्त होना चाहिए।) (अपने प्रति सख्त और दूसरों के प्रति सहिष्णु बनो।) हाँ, ये सभी अच्छे उदाहरण हैं। इनके अलावा ये भी हैं, “कुएँ का पानी पीते हुए यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि इसे किसने खोदा था,” “अगर तुम दूसरों पर वार करते हो, तो उनके चेहरे पर वार मत करो; अगर तुम दूसरों की आलोचना करते हो, तो उनकी कमियों की आलोचना मत करो,” और “मारने से कोई फायदा नहीं होता; जहाँ कहीं भी संभव हो वहाँ उदार बनो।” ये सभी अपेक्षाएँ मनुष्य के नैतिक आचरण के संबंध में रखी गई हैं। क्या कोई और भी हैं? (एक बूँद पानी की दया का बदला झरने से चुकाना चाहिए।) यह भी मनुष्य की परंपरागत संस्कृति द्वारा मनुष्य के नैतिक आचरण के संबंध में और लोगों के नैतिक आचरण के मूल्यांकन के लिए एक मानक के रूप में रखी गई अपेक्षा है। और क्या है? (दूसरों पर वह मत थोपो जो तुम अपने लिए नहीं चाहते।) यह थोड़ा सरल है, पर यह भी मायने रखता है। ये भी हैं, “मैं अपने दोस्त के लिए गोली भी खा लूँगा,” “वफादार प्रजा दो राजाओं की सेवा नहीं कर सकती, अच्छी महिला दो पतियों से शादी नहीं कर सकती,” “धन से कभी भ्रष्ट नहीं होना चाहिए, गरीबी से कभी बदल नहीं जाना चाहिए, बल से कभी झुकना नहीं चाहिए,” और “कोई कार्य स्वीकार करो और मरते दम तक सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करो।” क्या ये कुछ और उदाहरण नहीं हैं? (हाँ, हैं।) ऐसा ही यह है, “वसंत के रेशम के कीड़े मरते दम तक बुनते रहेंगे, और मोमबत्तियाँ बाती खत्म होने तक जलती रहेंगी।” देखो, मनुष्य के आचरण और व्यवहार के लिए उनकी अपेक्षाएँ कितनी ऊँची हैं! वे चाहते हैं कि लोग पूरी जिंदगी मोमबत्ती की तरह जलते रहें और राख हो जाएँ। व्यक्ति को उच्च नैतिक चरित्र वाला तभी माना जाता है, जब वह इस तरह से आचरण करता है। क्या यह बड़ी अपेक्षा नहीं है? (हाँ, है।) हजारों वर्षों से लोग परंपरागत संस्कृति के इन पहलुओं से प्रभावित और बँधे हैं, और इसका परिणाम क्या हुआ है? क्या वे इंसानों की तरह जी रहे हैं? क्या वे सार्थक जीवन जी रहे हैं? लोग परंपरागत संस्कृति द्वारा अपेक्षित इन चीजों के लिए जीते हैं, इनके लिए अपनी जवानी या अपना पूरा जीवन तक कुरबान कर देते हैं, और पूरे समय यह मानते रहते हैं कि उनका जीवन बहुत गर्वपूर्ण और गौरवशाली है। अंत में, जब वे मरते हैं, तो वे नहीं जानते कि वे किसलिए मरे, या क्या उनकी मृत्यु का कोई मूल्य और अर्थ था, या क्या उन्होंने अपने स्रष्टा की माँगें पूरी कीं। लोग इन चीजों से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। लोगों के नैतिक आचरण के संबंध में परंपरागत संस्कृति की और कौन-सी कहावतें और अपेक्षाएँ हैं? “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है,” और “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है, उसे निष्ठापूर्वक संभालने की पूरी कोशिश करो,” ये उपयुक्त हैं। यह भी है, “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है,” यह एक ऐसी अपेक्षा है, जो मनुष्य की विश्वसनीयता से संबंधित है। क्या कुछ और है? (कीचड़ से बेदाग निकल आना, साफ लहरों में नहाकर भी भड़कीला न दिखना।) इस वाक्यांश की इस विषय के साथ कुछ अतिव्याप्ति है। मैं समझता हूँ, हमने पर्याप्त उदाहरण सूचीबद्ध कर दिए हैं। जो कहावतें हमने अभी-अभी शामिल की हैं, उनमें मनुष्य के समर्पण, देशभक्ति, विश्वसनीयता, शुद्धता; साथ ही दूसरों के साथ बातचीत करने के सिद्धांतों, और लोगों को अपनी मदद करने वाले व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, या दयालुता का बदला कैसे चुकाना चाहिए, इत्यादि के बारे में की गई अपेक्षाएँ शामिल हैं। इनमें से कुछ कहावतें सरल हैं, जबकि दूसरी कहावतें थोड़ी गहरी हैं। सबसे सरल हैं : “दूसरों की मदद करने में खुशी पाओ,” “उठाए गए धन को जेब में मत रखो,” और, “धन से कभी भ्रष्ट नहीं होना चाहिए, गरीबी से कभी बदल नहीं जाना चाहिए, बल से कभी झुकना नहीं चाहिए।” ये माँगें मनुष्य के आचरण से संबंधित हैं। “वफादार प्रजा दो राजाओं की सेवा नहीं कर सकती, अच्छी महिला दो पतियों से शादी नहीं कर सकती,” लोगों की नैतिक अखंडता और शुद्धता से संबंधित माँग है। ये कमोबेश परंपरागत चीनी संस्कृति की “परोपकार, धार्मिकता, उपयुक्तता, बुद्धिमत्ता और विश्वसनीयता,” की अवधारणाओं के दायरे में आती हैं। हमने अभी कितनी कहावतें सूचीबद्ध की हैं? (इक्कीस।) मुझे वे पढ़कर सुनाओ। (“उठाए गए धन को जेब में मत रखो,” “दूसरों की मदद करने में खुशी पाओ,” “अपने प्रति सख्त और दूसरों के प्रति सहिष्णु बनो,” “बुराई का बदला भलाई से चुकाओ,” “दयालुता का बदला कृतज्ञतापूर्वक लौटाना चाहिए,” “दूसरों की खातिर अपने हित त्याग दो,” “महिला को सच्चरित्र, दयालु, सौम्य और नैतिकतायुक्त होना चाहिए,” “कुएँ का पानी पीते हुए यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि इसे किसने खोदा था,” “अगर तुम दूसरों पर वार करते हो, तो उनके चेहरे पर वार मत करो; अगर तुम दूसरों की आलोचना करते हो, तो उनकी कमियों की आलोचना मत करो,” “मारने से कोई फायदा नहीं होता; जहाँ कहीं भी संभव हो वहाँ उदार बनो,” “एक बूँद पानी की दया का बदला झरने से चुकाना चाहिए,” “दूसरों पर वह मत थोपो जो तुम अपने लिए नहीं चाहते,” “मैं अपने दोस्त के लिए गोली भी खा लूँगा,” “वफादार प्रजा दो राजाओं की सेवा नहीं कर सकती, अच्छी महिला दो पतियों से शादी नहीं कर सकती,” “धन से कभी भ्रष्ट नहीं होना चाहिए, गरीबी से कभी बदल नहीं जाना चाहिए, बल से कभी झुकना नहीं चाहिए,” “कोई कार्य स्वीकार करो और मरते दम तक सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करो,” “वसंत के रेशम के कीड़े मरते दम तक बुनते रहेंगे, और मोमबत्तियाँ बाती खत्म होने तक जलती रहेंगी,” “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है,” “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है, उसे निष्ठापूर्वक संभालने की पूरी कोशिश करो,” “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है,” और “कीचड़ से बेदाग निकल आना, साफ लहरों में नहाकर भी भड़कीला न दिखना।”) आज हम उन सभी प्रकार के “अच्छे” गुणों का एक उन्नत अध्ययन करेंगे, जिन्हें मनुष्य ने नैतिक आचरण के बारे में सारांशित किया है। नैतिक आचरण के बारे में परंपरागत संस्कृति के विभिन्न दावे मनुष्य की मानवता और नैतिक आचरण के लिए विभिन्न अपेक्षाएँ सामने रखते हैं। कुछ अपेक्षा करते हैं कि लोग खुद को मिली दयालुता का बदला चुकाएँ, कुछ माँग करते हैं कि लोग दूसरों की मदद करने में आनंद लें, कुछ ऐसे लोगों से व्यवहार करने के तरीके हैं जिन्हें व्यक्ति नापसंद करता है, जबकि अन्य दूसरे लोगों की खामियों और कमियों से या ऐसे लोगों से निपटने के तरीके हैं जिनके साथ समस्याएँ हैं। इन क्षेत्रों में, वे लोगों की सीमाएँ निर्धारित करते हैं, और कुछ माँगें और मानक सामने रखते हैं। ये सभी वे माँगें और मानक हैं, जिनकी परंपरागत संस्कृति मनुष्य के नैतिक आचरण के संबंध में माँग करती है, और ये सभी ऐसी चीजें हैं जो लोगों के बीच परिचालित की जाती हैं। जो कोई भी चीन में पला-बढ़ा है, उसने ये चीजें अक्सर सुनी होंगी, और वह इन्हें रट चुका होगा। परंपरागत संस्कृति द्वारा नैतिक आचरण के बारे में ये दावे कमोबेश परोपकार, धार्मिकता, उपयुक्तता, बुद्धिमत्ता और विश्वसनीयता के दायरे में आते हैं। बेशक, कुछ कहावतें इस दायरे से बाहर भी हैं, लेकिन सभी प्रमुख कहावतें कमोबेश इसके दायरे में आती हैं। तुम्हें इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए।
आज हम इस बारे में ठोस तरीके से संगति नहीं करेंगे कि नैतिक आचरण पर किसी विशेष कथन का क्या प्रयोजन है, न ही हम ठोस तरीके से इसका विश्लेषण करेंगे कि किसी विशेष कहावत का सार क्या है। मैं तुम लोगों से पहले थोड़ा प्रारंभिक अध्ययन करवाऊँगा। देखो कि नैतिक आचरण के बारे में परंपरागत संस्कृति के दावों और उन मानकों के बीच क्या अंतर हैं, जिनकी माँग परमेश्वर मनुष्य से सामान्य मानवता को जीने के लिए करता है। परंपरागत संस्कृति की कौन-सी कहावतें स्पष्ट रूप से परमेश्वर के वचनों और सत्य के विपरीत हैं? अगर शाब्दिक रूप से व्याख्या की जाए, तो कौन-सी कहावतें परमेश्वर के वचनों और सत्य से मिलती-जुलती हैं, या उनसे कुछ हद तक जुड़ी हुई हैं? इनमें से किन कहावतों को तुम सकारात्मक चीजें मानते हो, और परमेश्वर में विश्वास करने के बाद इनमें से किन कहावतों से तुम कड़ाई से चिपके रहे हो और उनका अभ्यास और अनुपालन ऐसे किया है, मानो वे सत्य के तुम्हारे अनुसरण के मानदंड हों? उदाहरण के लिए, “दूसरों की खातिर अपने हित त्याग दो।” क्या तुम सभी लोग इस कहावत से परिचित हो? परमेश्वर में विश्वास करना शुरू करने के बाद, क्या तुमने नहीं सोचा कि तुम्हें इस तरह का अच्छा इंसान बनना चाहिए? और जब तुमने दूसरों की खातिर अपने हित त्याग दिए, तो क्या तुमने यह नहीं सोचा कि तुममें बहुत अच्छी मानवता है और परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हें पसंद करेगा? या, परमेश्वर में विश्वास करने से पहले, शायद तुम मानते थे कि जिन लोगों में “बुराई का बदला भलाई से चुकाने” का गुण है, वे अच्छे लोग हैं—तुम ऐसा करने के इच्छुक नहीं थे, तुम ऐसा करने में असमर्थ थे, और इसे कायम नहीं रख पाए थे, लेकिन परमेश्वर में विश्वास करने के बाद, तुमने खुद को उस मानक पर कायम रखा, और तुम उन लोगों के प्रति “क्षमा करके भूलने” का अभ्यास करने में सक्षम हो गए, जिन्होंने तुम्हें अतीत में चोट पहुँचाई थी या जिनसे तुम नाराज थे या जिनसे नफरत करते थे। शायद तुम्हें लगे कि नैतिक आचरण के बारे में यह कहावत उसके अनुरूप है कि जब प्रभु यीशु ने लोगों को सत्तर गुना सात बार क्षमा करने के लिए कहा था, और इस तरह, इसके अनुसार तुम खुद को संयमित करने के बहुत इच्छुक हो गए। तुम इसका इस तरह अभ्यास और पालन भी कर सकते हो, जैसे कि यह सत्य हो, और सोच सकते हो कि जो लोग बुराई का बदला भलाई से चुकाने का अभ्यास करते हैं, वे ऐसे लोग हैं, जो सत्य का अभ्यास और परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करते हैं। क्या तुम लोगों में इस तरह के विचार या अभिव्यक्तियाँ हैं? तुम लोगों को अब भी कौन-सी कहावत सार में सत्य और परमेश्वर के वचनों के इस हद तक समान लगती है कि वह सत्य का स्थान तक ले सकती है, और यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह सत्य है? बेशक, इस कहावत को समझना आसान होना चाहिए : “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है।” अधिकांश लोग देख सकते हैं कि यह कहावत सत्य नहीं है, और यह सिर्फ एक भ्रामक, आडंबरपूर्ण नारा है। “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है,” ऐसी चीज है, जो परमेश्वर में आस्था न रखने वाले गैर-विश्वासियों से कही जाती है; यह वह अपेक्षा है, जो किसी देश की सरकार अपने लोगों से करती है ताकि वे अपने देश से प्यार करना सीखें। यह कहावत सत्य के साथ असंगत है, और परमेश्वर के वचनों में इसका बिल्कुल भी कोई आधार नहीं है। कहा जा सकता है कि यह कहावत मूलभूत रूप से सत्य नहीं है, और यह सत्य का स्थान नहीं ले सकती। यह कहावत वह दृष्टिकोण है, जो पूरी तरह से शैतान से आता है और शैतान में उत्पन्न होता है, और यह शासक वर्ग के काम आता है। इसका परमेश्वर के वचनों या सत्य से बिल्कुल भी कोई लेना-देना नहीं है। इसीलिए “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है,” कहावत बिल्कुल भी सत्य नहीं है, और न ही यह कोई ऐसी चीज है, जिसका पालन सामान्य मानवता वाले व्यक्ति को करना चाहिए। तो, किस तरह के लोग इस कहावत को सत्य समझने की भूल कर सकते हैं? वे लोग, जो हमेशा प्रतिष्ठा, हैसियत और व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने के तरीके खोजते रहते हैं, और वे लोग, जो अधिकारी बनना चाहते हैं। शासक वर्गों की लल्लो-चप्पो करके अपने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए वे इस कहावत का अभ्यास इस तरह करते हैं, जैसे कि यह सत्य हो। कुछ कहावतें ऐसी हैं, जिन्हें समझ पाना लोगों के लिए आसान नहीं होता। हालाँकि लोग जानते हैं कि ये कहावतें सत्य नहीं हैं, फिर भी वे अपने हृदय में महसूस करते हैं कि ये कहावतें सही और सिद्धांत के अनुरूप हैं। अपनी नैतिकता का स्तर बढ़ाने और अपना व्यक्तिगत आकर्षण बढ़ाने के लिए वे इन कहावतों के अनुसार जीना और आचरण करना चाहते हैं, और साथ ही इसलिए भी ऐसा करना चाहते हैं ताकि दूसरे यह सोचें कि उनमें मानवता है और वे गैर-मानव नहीं हैं। तुम लोगों के लिए कौन-सी कहावतें समझना मुश्किल था? (मुझे लगता है कि “दयालुता का बदला कृतज्ञतापूर्वक लौटाना चाहिए” को समझना बहुत मुश्किल था। मैंने इसे ऐसे लिया, जैसे कि यह एक सकारात्मक चीज हो, और मुझे लगता था कि जो लोग दयालुता का बदला कृतज्ञतापूर्वक लौटाते हैं, वे वो लोग हैं जिनमें जमीर है। “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है, उसे निष्ठापूर्वक संभालने की पूरी कोशिश करो,” ऐसी दूसरी कहावत है। इसका मतलब यह है कि चूँकि किसी ने किसी और से कोई कार्य स्वीकार किया है, इसलिए उसे यह सुनिश्चित करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए कि उसे अच्छी तरह से किया जाए। मैंने महसूस किया कि यह एक सकारात्मक चीज है, और ऐसी चीज है जिसे जमीर और विवेक वाले व्यक्ति को करना चाहिए।) और कौन बताना चाहेगा? (यह भी है, “एक बूँद पानी की दया का बदला झरने से चुकाना चाहिए।” मुझे लगता था कि जो व्यक्ति ऐसा कर सकता है, वह सापेक्ष मानवता और नैतिकता वाला व्यक्ति है।) और कुछ? (“सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है।” मैं सोचता था कि अगर कोई व्यक्ति वह करता है जो वह कहता है और विश्वसनीय है, तो यह अच्छा नैतिक आचरण है।) पहले, तुम सोचते थे कि यह अच्छा नैतिक आचरण है। अब तुम इसे कैसे देखते हो? (हमें यह देखना होगा कि इस “वचन” की प्रकृति क्या है—यह सही है या गलत है? यह सकारात्मक है या नकारात्मक है? अगर कोई दुष्ट लोगों और मसीह-विरोधियों से कहता है, “मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा। सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है,” और फिर, जब परमेश्वर का घर जाँच कर स्थिति की छानबीन करता है, और यह व्यक्ति उन बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों की रक्षा करता है, तो वह बुराई और परमेश्वर का विरोध कर रहा है।) यह समझ सही है। तुम्हें इस “वचन” की प्रकृति अवश्य देखनी चाहिए—कि यह सकारात्मक है या नकारात्मक। अगर कोई “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है” का अभ्यास करते हुए कुछ खराब या बुरा करता है, तो उसके दुष्कर्म के पदचिह्न तेज घोड़ों की विक्षिप्त दौड़ की तरह होते हैं, जो दौड़ते हुए सीधे नरक में जाते हैं और अथाह गड्ढे में जा गिरते हैं। लेकिन अगर उसका “वचन” सत्य के अनुरूप है, और उसमें न्यायप्रियता का बोध है, और वह परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा करता है, और परमेश्वर को प्रसन्न करता है, तो “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है” का अभ्यास करना सही है। इन उदाहरणों से तुम समझ सकते हो कि तुम्हें परंपरागत संस्कृति के वचनों के प्रति विवेकशील होना चाहिए। तुम्हें विभिन्न स्थितियों और पृष्ठभूमियों को पहचानना चाहिए, तुम इन शब्दों का अंधाधुंध उपयोग नहीं कर सकते। कुछ शब्द हैं, जो स्पष्ट रूप से वास्तविकता से मेल नहीं खाते, और स्पष्ट रूप से गलत हैं। इन शब्दों के साथ पेश आते समय तुम्हें विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए। तुम्हें उनसे वैसे ही पेश आना चाहिए जैसे पाखंडों और भ्रांतियों से आते हो। कुछ शब्द ऐसे होते हैं, जो सिर्फ कुछ संदर्भों और दायरों में ही सही होते हैं। अलग संदर्भ या परिवेश में वे शब्द नहीं टिकते; वे गलत और लोगों के लिए हानिकारक होते हैं। अगर तुम उन्हें पहचान नहीं सकते, तो उनके द्वारा तुम्हें विषाक्त किए जाने और नुकसान पहुँचाए जाने की संभावना है। चाहे परंपरागत संस्कृति के शब्द सही हों या गलत, या चाहे वे मनुष्य की नजरों में सही हों या नहीं, उनमें से कोई भी सत्य नहीं है और उनमें से कोई भी परमेश्वर के वचनों के अनुरूप नहीं है। यह निश्चित है। जिन चीजों को मनुष्य सही मानता है, जरूरी नहीं कि उन्हें परमेश्वर भी सही मानता हो। जिन बातों को मनुष्य अच्छा समझता है, जरूरी नहीं कि अभ्यास में लाए जाने पर वे लोगों के लिए लाभदायक ही हों। जो भी हो, चाहे लोग उनका अभ्यास करें या न करें, या उनके लिए उनका उपयोग हो या नहीं, जो चीजें सत्य के अनुरूप नहीं हैं, वे सत्य नहीं हैं, वे सब मनुष्य के लिए हानिकारक हैं, उन्हें स्वीकार और उनका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे बहुत-से लोग हैं, जो इन चीजों को समझने में असमर्थ हैं। वे उन चीजों को सत्य मानते हैं, जिन्हें मनुष्य सही मानता है या जिन्हें भ्रष्ट मानवजाति आम तौर पर सही मानती है, और उनका इस तरह पालन और अभ्यास करते हैं मानो वे सत्य हों। क्या यह उचित है? क्या झूठे और छद्म सत्यों का अभ्यास करके परमेश्वर की स्वीकृति पाई जा सकती है? जिस किसी चीज को मानवजाति सामान्य रूप से सही और सत्य स्वीकारती है, वह झूठ है, नकल है, और उसे हमेशा के लिए खारिज कर दिया जाना चाहिए। अब, क्या वे चीजें, जिन्हें तुम लोग सही और सकारात्मक समझते हो, वास्तव में सत्य हैं? हजारों वर्षों में, किसी भी व्यक्ति ने कभी इन शब्दों का खंडन नहीं किया है; सभी लोग मानते हैं कि ये शब्द सही और सकारात्मक हैं, पर क्या ये शब्द वास्तव में सत्य बन सकते हैं? (नहीं, वे नहीं बन सकते।) अगर ये शब्द सत्य नहीं बन सकते, तो क्या वे सत्य हैं? (नहीं, वे सत्य नहीं हैं।) वे सत्य नहीं हैं। अगर लोग इन शब्दों को सत्य मानते हैं, और इन्हें परमेश्वर के वचनों के साथ मिलाकर इनका एक-साथ अभ्यास करते हैं, तो क्या ये शब्द और कहावतें सत्य के स्तर तक उठ सकती हैं? वे बिल्कुल नहीं उठ सकतीं। चाहे लोग इन चीजों का कैसे भी अनुसरण करें या कैसे भी उनसे चिपके रहें, परमेश्वर उन्हें कभी स्वीकार नहीं करेगा, क्योंकि परमेश्वर पवित्र है। वह भ्रष्ट मनुष्यों को सत्य या अपने वचनों में शैतानी चीजें बिल्कुल भी मिलाने नहीं देता। मनुष्य के विचारों और दृष्टिकोणों से उत्पन्न होने वाली सभी चीजें शैतान से आती हैं—चाहे वे कितनी भी अच्छी क्यों न हों, वे सत्य नहीं हैं और वे व्यक्ति का जीवन नहीं बन सकतीं।
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