परमेश्वर के दैनिक वचन : देहधारण | अंश 127

मनुष्य की देह को शैतान के द्वारा भष्ट कर दिया गया है, उसे एकदम अन्धा करके बुरी तरह से नुकसान पहुँचाया गया है। परमेश्वर देह में आकर निजी तौर पर कार्य इसलिए करता है क्योंकि उसके उद्धार का लक्ष्य हाड़-माँस का इंसान है, और इसलिए भी क्योंकि परमेश्वर के कार्य को बिगाड़ने के लिए शैतान भी मनुष्य की देह का उपयोग करता है। दरअसल, शैतान के साथ युद्ध इंसान पर विजय पाने का कार्य है, और साथ ही, इंसान परमेश्वर के उद्धार का लक्ष्य भी है। इस तरह, देहधारी परमेश्वर का कार्य आवश्यक है। शैतान के हाथों भ्रष्ट होकर इंसान शैतान का मूर्त रूप बन गया है, परमेश्वर के हाथों हराये जाने का लक्ष्य बन गया है। इस तरह, पृथ्वी पर शैतान से युद्ध करने और मनुष्यजाति को बचाने का कार्य किया जाता है। इसलिए शैतान से युद्ध करने के लिए परमेश्वर का मनुष्य बनना आवश्यक है। यह अत्यंत व्यावहारिकता का कार्य है। जब परमेश्वर देह में कार्य कर रहा होता है, तो वह वास्तव में देह में शैतान से युद्ध कर रहा होता है। जब वह देह में कार्य करता है, तो वह आध्यात्मिक क्षेत्र में अपना कार्य कर रहा होता है, वह आध्यात्मिक क्षेत्र के अपने समस्त कार्य को पृथ्वी पर साकार करता है। जिस पर विजय पायी जाती है वो इंसान है, वो इंसान जो उसके प्रति अवज्ञाकारी है, जिसे पराजित किया जाता है वो शैतान का मूर्त रूप है (बेशक, यह भी इंसान ही है) जो उससे शत्रुता रखता है, और अंतत: जिसे बचाया जाता है वह भी इंसान ही है। इस तरह, यह परमेश्वर के लिए और भी अधिक आवश्यक हो जाता है कि वह ऐसा इंसान बने जिसका बाहरी आवरण एक सृजन का हो, ताकि वह शैतान से वास्तविक युद्ध कर सके, समान बाहरी आवरण धारण किए हुए अपने प्रति अवज्ञाकारी और शैतान द्वारा नुकसान पहुँचाये गये इंसान पर विजय पा सके, उसे बचा सके। उसका शत्रु मनुष्य है, उसकी विजय का लक्ष्य मनुष्य है, और उसके उद्धार का लक्ष्य भी मनुष्य ही है, जिसे उसने बनाया है। इसलिए उसे मनुष्य बनना ही होगा, मनुष्य बनकर उसका कार्य कहीं ज़्यादा आसान हो जाता है। वह शैतान को हराने और मनुष्य को जीतने में समर्थ है, और मनुष्य को बचाने में समर्थ है। हालाँकि यह देह सामान्य और वास्तविक है, फिर भी यह मामूली देह नहीं है : यह ऐसी देह नहीं है जो केवल मानवीय हो, बल्कि ऐसी देह है जो मानवीय और दिव्य दोनों है। यही उसमें और मनुष्य में अन्तर है, और यही परमेश्वर की पहचान का चिह्न है। ऐसे ही देह से वह अपेक्षित कार्य कर सकता है, देह में परमेश्वर की सेवकाई को पूरा कर सकता है, और मनुष्यों के बीच में अपने कार्य को पूर्ण कर सकता है। यदि यह ऐसा नहीं होता, तो मनुष्यों के बीच उसका कार्य हमेशा खोखला और त्रुटिपूर्ण होता। यद्यपि परमेश्वर शैतान की आत्मा के साथ युद्ध कर सकता है और विजयी हो सकता है, फिर भी भ्रष्ट हो चुके मनुष्य की पुरानी प्रकृति का समाधान कभी नहीं किया जा सकता, ऐसे लोग जो परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी हैं और उसका विरोध करते हैं, वे कभी भी उसके प्रभुत्व में नहीं आ सकते, यानी वह कभी भी मनुष्यजाति को जीत कर उसे प्राप्त नहीं कर सकता। यदि पृथ्वी पर उसके कार्य का समाधान न हो, तो उसका प्रबन्धन कभी समाप्त नहीं होगा, और संपूर्ण मनुष्यजाति विश्राम में प्रवेश नहीं कर पाएगी। यदि परमेश्वर अपने सभी प्राणियों के साथ विश्राम में प्रवेश नहीं कर सके तो ऐसे प्रबंधन-कार्य का कभी भी कोई परिणाम नहीं होगा, और फलस्वरूप परमेश्वर की महिमा विलुप्त हो जाएगी। यद्यपि उसके देह के पास कोई अधिकार नहीं है, फिर भी उसका कार्य अपना प्रभाव प्राप्त कर लेगा। यह उसके कार्य की अनिवार्य दिशा है। उसके देह में अधिकार हो या न हो, अगर वह स्वयं परमेश्वर का कार्य कर पाता है, तो वह स्वयं परमेश्वर है। यह देह कितना भी सामान्य और साधारण क्यों न हो, वह वो कार्य कर सकता है जिसे उसे करना चाहिए, क्योंकि यह देह परमेश्वर है, मात्र मनुष्य नहीं है। यह देह उस कार्य को कर सकता है जिसे मनुष्य नहीं कर सकता क्योंकि उसका आंतरिक सार इंसान से अलग है, वह इंसान को इसलिए बचा सकता है क्योंकि उसकी पहचान किसी भी इंसान से अलग है। यह देह इंसान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि वह इंसान है और उससे भी बढ़कर वह परमेश्वर है, क्योंकि वह उस कार्य को कर सकता है जिसे हाड़-माँस का कोई सामान्य इंसान नहीं कर सकता, क्योंकि वह भ्रष्ट इंसान को बचा सकता है, जो पृथ्वी पर उसके साथ मिलकर रहता है। हालाँकि वह इंसान जैसा ही है, फिर भी देहधारी परमेश्वर किसी भी मूल्यवान व्यक्ति की तुलना में मनुष्यजाति के लिए अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह उस कार्य को कर सकता है जो परमेश्वर के आत्मा के द्वारा नहीं किया जा सकता, वह स्वयं परमेश्वर की गवाही देने के लिए परमेश्वर के आत्मा की तुलना में अधिक सक्षम है, और मनुष्यजाति को पूरी तरह से प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के आत्मा की तुलना में अधिक समर्थ है। परिणामस्वरूप, यद्यपि यह देह सामान्य और साधारण है, लेकिन मनुष्यजाति के प्रति उसका योगदान और मनुष्यजाति के अस्तित्व के प्रति उसके मायने उसे अत्यंत बहुमूल्य बना देते हैं। इस देह का वास्तविक मूल्य और मायने किसी भी इंसान के लिए विशाल हैं। यद्यपि यह देह सीधे तौर पर शैतान को नष्ट नहीं कर सकता, फिर भी वह मनुष्यजाति को जीतने और शैतान को हराने के लिए अपने कार्य का उपयोग कर सकता है, शैतान को पूरी तरह से अपने प्रभुत्व में ला सकता है। चूँकि परमेश्वर देहधारी है, वह शैतान को हरा कर इंसान को बचा सकता है। वह सीधे तौर पर शैतान को नष्ट नहीं करता, बल्कि जिस मनुष्यजाति को शैतान ने भ्रष्ट किया है, उसे जीतने का कार्य करने के लिए वह देह बनता है। इस तरह से, वह अपने प्राणियों के बीच बेहतर ढंग से गवाही दे सकता है, और वह भ्रष्ट हुए इंसान को बेहतर ढंग से बचा सकता है। परमेश्वर के आत्मा के द्वारा शैतान के प्रत्यक्ष विनाश की तुलना में देहधारी परमेश्वर के द्वारा शैतान की पराजय अधिक बड़ी गवाही देती है और ज़्यादा प्रेरक है। देहधारी परमेश्वर सृजनकर्ता को जानने में मनुष्य की बेहतर ढंग से सहायता कर सकता है, और अपने प्राणियों के बीच स्वयं की बेहतर ढंग से गवाही दे सकता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, भ्रष्ट मनुष्यजाति को देहधारी परमेश्वर द्वारा उद्धार की अधिक आवश्यकता है

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