परमेश्वर का कार्य और स्वभाव जानने के बारे में वचन (अंश 22)
“वचन देह में प्रकट होता है” की सामग्री विशेष रूप से काफी समृद्ध है, इसमें सत्य के विभिन्न पहलुओं के साथ-साथ कुछ भविष्यसूचक बयान भी शामिल हैं, जो आने वाले युगों की स्थिति के बारे में भविष्यवाणी करते हैं। वास्तव में ये भविष्यवाणियाँ बहुत सामान्य हैं और इस पुस्तक में शामिल अधिकांश शब्द जीवन प्रवेश पर चर्चा करते हैं, मानवीय प्रकृति को उजागर करते हैं और इस पर बात करते हैं कि हम परमेश्वर और उसके स्वभाव के बारे में कैसे जान सकते हैं। और जहाँ तक यह बात है कि आगे कौन सा युग आने वाला है, कुल कितने युग होंगे, मानवजाति को किस प्रकार की परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा, क्या यह सच नहीं है कि इस पुस्तक में इसका कोई निश्चित खाका, कोई संदर्भ या कोई विशिष्ट युग नहीं बताया है? कहने का मतलब यह है कि लोगों को आने वाले युगों के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, वह समय अभी तक नहीं आया है और अभी भी बहुत दूर है। अगर मैं तुम लोगों को इन चीजों के बारे में बताऊँ, तो भी तुम लोग इन्हें समझ नहीं पाओगे और इसके अलावा, लोगों को अभी इन चीजों को समझने की जरूरत भी नहीं है। इन चीजों का लोगों के जीवन स्वभाव में बदलाव से बहुत कम संबंध होता है। तुम लोगों को केवल उन शब्दों को समझने की जरूरत है जो मानव स्वभाव को उजागर करते हैं। बस यह तुम्हारे लिए काफी है। अतीत में, कुछ भविष्यवाणियाँ हुईं थीं, जैसे सहस्राब्दी राज्य, परमेश्वर और मनुष्य का एक साथ विश्राम में प्रवेश करना, और वचन के युग के बारे में भी। भविष्यवाणी के सारे वचन जल्द ही आने वाले समय से संबंधित हैं; जिन का उल्लेख नहीं किया गया वे वो चीज़ें हैं जो बहुत दूर हैं। तुम्हें उन चीज़ों का अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं है जो बहुत दूर हैं; जिसके बारे में तुम्हें नहीं पता होना चाहिए वह तुम्हें नहीं बताया जाएगा; जो तुम्हें पता होना चाहिए वह वो पूरी सच्चाई है जो परमेश्वर से आती है—उदाहरण के लिए, मनुष्य के प्रति व्यक्त किया गया परमेश्वर का स्वभाव, अर्थात् परमेश्वर के पास क्या है और परमेश्वर क्या है, जो परमेश्वर के वचनों से प्रकट होता है, और न्याय और ताड़ना के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति का प्रकाशन, साथ ही जीवन में परमेश्वर द्वारा लोगों को दिया गया मार्गदर्शन, क्योंकि लोगों को बचाने के परमेश्वर के कार्य के मूल में इन चीज़ों को शामिल किया गया है।
मानवजाति के प्रबंधन के कार्य को करते समय इन चीज़ों को कहने में परमेश्वर का मुख्य उद्देश्य लोगों को जीतना तथा बचाना, और उनके स्वभाव को बदलना है। वर्तमान में, वचन का युग एक यथार्थवादी युग है, मनुष्य को जीतने और बचाने के लिए सच्चाई का युग है; बाद में और भी वचन होंगे—अभी काफ़ी कुछ है जो नहीं कहा गया है। कुछ लोग सोचते हैं कि ये मौजूदा वचन पूरी तरह से परमेश्वर की अभिव्यक्ति हैं—यह एक बेहद गलत व्याख्या है, क्योंकि वचन के युग के कार्य की चीन में बस केवल शुरूआत ही हुई है, लेकिन भविष्य में परमेश्वर के सार्वजनिक रूप से प्रकट होने और कार्य करने के बाद, और भी वचन होंगे। राज्य का युग कैसा होगा, मानवजाति किस तरह के गंतव्य में प्रवेश करेगी, उस गंतव्य में प्रवेश करने के बाद क्या होगा, मानवजाति के लिए तब किस तरह का जीवन होगा, तब मानवीय सहज प्रवृति किस स्तर पर पहुँच सकेगी, किस प्रकार के नेतृत्व और किस प्रकार के प्रावधान की आवश्यकता होगी, इत्यादि, यह सब वचन के युग के कार्य में शामिल है। परमेश्वर की सर्व-समावेशिता वैसी नहीं है जैसी कि तुम केवल “वचन देह में प्रकट होता है” पुस्तक से कल्पना करते हो। क्या परमेश्वर के स्वभाव की अभिव्यक्ति और परमेश्वर के कार्य उस तरह से सामान्य हो सकते हैं जिस तरह से तुम कल्पना करते हो? परमेश्वर की सर्व-समावेशिता, सर्वव्यापकता, सर्वशक्तिमत्ता, और सर्वोच्चता कोरे शब्द नहीं हैं—यदि तुम कहते हो कि “वचन देह में प्रकट होता है” पुस्तक परमेश्वर का पूरी तरह से प्रतिनिधित्व करती है और ये वचन परमेश्वर के सभी प्रबंधन को समाप्त करते हैं, तो तुमने परमेश्वर को बहुत छोटे ढंग से देखा है; क्या यह फिर से परमेश्वर को सीमित करना नहीं है? तुम्हें जानना चाहिए कि ये वचन सर्व-समावेशी परमेश्वर का एक बहुत ही छोटा हिस्सा हैं। सभी धार्मिक मंडलियों ने परमेश्वर को बाइबल के भीतर सीमित कर दिया है। और आज क्या तुम लोग भी उसे सीमित नहीं कर रहे हो? क्या तुम नहीं जानते कि परमेश्वर को सीमित करना परमेश्वर को छोटा बनाना है? कि यह परमेश्वर को दोषित और निन्दित करना है? वर्तमान में, ज्यादातर लोग सोचते हैं, “अंतिम दिनों में परमेश्वर ने जो कहा है वह सब ‘वचन देह में प्रकट होता है’ में है, तथा परमेश्वर के और कोई वचन नहीं हैं; परमेश्वर ने बस यही कहा है।” है ना? इस तरह सोचना एक बड़ी भूल है! “वचन देह में प्रकट होता है” में मौजूद शब्द केवल अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्यों के शुरुआती शब्द हैं, इस कार्य के शब्दों का एक हिस्सा हैं, ये शब्द मुख्य रूप से दर्शन की सच्चाइयों से संबंधित हैं। बाद में आगे चलकर इसमें अभ्यास के अनेक विवरणों के संबंध में बोले गए शब्द भी होंगे। इसलिए, “वचन देह में प्रकट होता है” को जनता के लिए जारी करने का मतलब यह नहीं है कि परमेश्वर के कार्य का एक चरण समाप्त होने वाला है और इसका यह मतलब तो बिलकुल भी नहीं है कि अंत के दिनों के परमेश्वर का न्याय का कार्य निर्णायक रूप से समाप्त हो गया है। परमेश्वर के पास व्यक्त करने के लिए अभी भी बहुत से वचन हैं और उसके द्वारा ये वचन व्यक्त किए जाने के बाद भी, कोई यह नहीं कह सकता कि परमेश्वर का सारा प्रबंधन कार्य समाप्त हो गया है। जब पूरे ब्रह्मांड का कार्य समाप्त हो जाता है, तो कोई केवल इतना ही कह सकता है कि छह हजार साल की प्रबंधन योजना समाप्त हो गई है; लेकिन उस समय, क्या लोग मौजूद न होंगे? जब तक जीवन का अस्तित्व है, जब तक मानवजाति मौजूद है, तब तक परमेश्वर का प्रबंधन जारी रहना चाहिए। जब छह हजार साल की प्रबंधन योजना पूरी हो जाती है, तो जब तक मानवजाति, जीवन और यह ब्रह्मांड मौजूद होंगे, तब तक परमेश्वर इसका प्रबंधन करता रहेगा, लेकिन उसे अब छह हजार साल की प्रबंधन योजना नहीं कहा जाएगा। अब इसे परमेश्वर का प्रबंधन कहा जाता है। शायद इसे भविष्य में एक अलग नाम दिया जाएगा; वह मानवजाति और परमेश्वर के लिए एक अन्य जीवन होगा; यह नहीं कहा जा सकता कि परमेश्वर लोगों का नेतृत्व करने के लिए आज भी मौजूदा वचनों का उपयोग करेगा, क्योंकि ये वचन केवल इस अवधि के लिए उपयुक्त हैं। इसलिए, किसी भी समय परमेश्वर के काम को निरुपित मत करो। कुछ लोग कहते हैं कि “परमेश्वर लोगों को केवल ये वचन प्रदान करता है, और कुछ भी नहीं; कि परमेश्वर केवल इन वचनों को ही कह सकता है।” यह भी परमेश्वर को एक निश्चित दायरे में सीमित करना है। यह वर्तमान में, इस राज्य के युग में, यीशु के युग में बोले गए वचनों को लागू करने जैसा है—क्या यह उचित होगा? कुछ वचन लागू होंगे, और कुछ को मिटाने की आवश्यकता है, इसलिए तुम यह नहीं कह सकते हो कि परमेश्वर के वचनों को कभी मिटाया नहीं जा सकता। क्या लोग आसानी से चीज़ों को निरुपित करते हैं? कुछ क्षेत्रों में, वे परमेश्वर को निरुपित करते हैं। शायद एक दिन, परमेश्वर के कदमों का साथ न निभाते हुए, तुम “वचन देह में प्रकट होता है” पढ़ोगे, जैसे लोग आज बाइबल पढ़ते हैं। अभी “वचन देह में प्रकट होता है” पढ़ने का सही समय है; यह नहीं कहा जा सकता कि कितने वर्षों बाद इसे पढ़ना किसी पुराने कैलेंडर को देखने जैसा होगा, क्योंकि उस समय पुराने का स्थान लेने के लिए कुछ नया आ चुका होगा। लोगों की ज़रूरतें परमेश्वर के कार्य के अनुसार उत्पन्न और विकसित होती हैं। उस समय, मानव प्रकृति, और वे सहज प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ जो लोगों के पास होनी चाहिए, कुछ हद तक बदल चुकी होंगी; इस दुनिया के बदलने के बाद, मानवजाति की ज़रूरतें अलग होंगी। कुछ लोग पूछते हैं : “क्या परमेश्वर बाद में बात करेगा?” कुछ इस निष्कर्ष पर आ जाएँगे कि “परमेश्वर बात नहीं कर पाएगा, क्योंकि जब वचन के युग का कार्य समाप्त हो जाएगा, तो और कुछ नहीं कहा जा सकता है, और अन्य कोई भी वचन झूठे होंगे।” क्या यह भी गलत नहीं है? मानवजाति के लिए परमेश्वर को चित्रित करने की गलती करना काफी आसान है; लोगों का रुझान अतीत से चिपके रहने और ईश्वर को चित्रित करने की ओर होता है। यह स्पष्ट है कि वे उसे नहीं जानते, लेकिन फिर भी बेतुके तौर पर उसके कार्य को चित्रित करते हैं। लोगों की प्रकृति इतनी घमंडी होती है! वे हमेशा अतीत की पुरानी धारणाएँ थामे रहना चाहते हैं और बीते हुए दिनों की बातें अपने दिल में बसाए रखना चाहते हैं। वे उन्हें अपनी पूँजी की तरह उपयोग करते हैं, वे अहंकारी और दंभी होते हैं और यह सोचते हैं कि उन्हें सब कुछ समझ आता है और वे परमेश्वर के कार्य को चित्रित करने का साहस करते हैं। ऐसा करने में, क्या वे परमेश्वर की आलोचना नहीं कर रहे होते? इसके अलावा, लोग परमेश्वर के नए कार्य पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते; इससे पता चलता है कि उनके लिए नई चीजें स्वीकारना मुश्किल होता है और फिर भी वे आँख बंद करके परमेश्वर को चित्रित करते हैं। लोग इतने घमंडी होते हैं कि वे तर्कहीन हो जाते हैं, वे किसी की भी नहीं सुनते हैं और यहाँ तक कि परमेश्वर के वचन भी नहीं स्वीकारते हैं। ऐसी होती है मनुष्य की प्रकृति : पूरी तरह से घमंडी और आत्मतुष्ट, और समर्पण रत्ती भर भी नहीं। फरीसी ऐसे ही तो थे जब उन्होंने यीशु की निंदा की थी। उन्होंने सोचा “भले ही तुम सच्चे हो, मैं फिर भी तुम्हारे पीछे नहीं चलूँगा—केवल यहोवा ही सच्चा परमेश्वर है।” आज, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कहते हैं : “क्या वह मसीह है? अगर वह वास्तव में मसीह होता तो तब भी मैं उसके पीछे नहीं चलता!” क्या इस तरह के लोग मौजूद हैं? ऐसे बहुत सारे धार्मिक लोग हैं जो ऐसे ही हैं। इससे पता चलता है कि मनुष्य का स्वभाव बहुत भ्रष्ट है और लोगों को उद्धार मिलना कठिन है।
युग-युगों के संतों में से, केवल मूसा और पतरस ही थे जो वास्तव में परमेश्वर को जानते थे, और परमेश्वर ने उनको स्वीकृति दी थी; बहरहाल, क्या वे परमेश्वर की थाह ले सके थे? वे जो समझे थे वह भी सीमित है। उन्होंने खुद ने यह कहने की हिम्मत नहीं की थी कि वे परमेश्वर को जानते थे। जो लोग वास्तव में परमेश्वर को जानते हैं, वे उसे निरुपित नहीं करते हैं, क्योंकि वे इसका एहसास करते हैं कि परमेश्वर अथाह और असीम है। जो लोग परमेश्वर को नहीं जानते हैं, वे ही उसको, जो उसके पास है और जो वह है, उसे निरुपित करने के लिए तत्पर होते हैं, वे परमेश्वर के बारे में कल्पना से भरे होते हैं, परमेश्वर ने जो कुछ भी किया है उसके बारे में आसानी से धारणाएँ बना लेते हैं। इसलिए, जो लोग मानते हैं कि वे परमेश्वर को जानते हैं, वे परमेश्वर के प्रति सबसे अधिक प्रतिरोधी होते हैं, और वे वो लोग हैं जो सबसे अधिक ख़तरे में हैं।
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