परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर के कार्य को जानना | अंश 145

तुम कैसे भी खोज करो, तुम्हें सर्वोपरि, परमेश्वर द्वारा आज किए जाने वाले कार्य और उसके महत्व को समझना चाहिए। तुम्हें यह अवश्य समझना और जानना चाहिए कि जब परमेश्वर अंत के दिनों में आता है तो वह कौन-सा कार्य लाता है, कैसा स्वभाव लेकर आता है, और मनुष्य में क्या चीज़ पूर्ण की जाएगी। यदि तुम उस कार्य को नहीं जानते या समझते, जिसे करने के लिए वह देह धारण करके आया है, तो तुम उसकी इच्छा कैसे समझ सकते हो, और तुम उसके अंतरंग कैसे बन सकते हो? वास्तव में, परमेश्वर का अंतरंग होना जटिल नहीं है, किंतु यह सरल भी नहीं है। यदि लोग इसे पूरी तरह से समझ सकें और इसे अमल में ला सकें, तो यह सरल बन जाता है; यदि लोग इसे पूरी तरह से न समझ सकें, तो यह बहुत कठिन बन जाता है, और, इतना ही नहीं, वे अपनी खोज द्वारा खुद को अस्पष्टता में ले जाए जाने के लिए प्रवण हो जाते हैं। यदि परमेश्वर की खोज में लोगों की साथ खड़े होने की अपनी स्थिति नहीं है, और वे नहीं जानते कि उन्हें किस सत्य को धारण करना चाहिए, तो इसका अर्थ है कि उनका कोई आधार नहीं है, और इसलिए उनके लिए अडिग रहना आसान नहीं है। आज, ऐसे बहुत लोग हैं जो सत्य को नहीं समझते, जो भले और बुरे के बीच अंतर नहीं कर सकते या यह नहीं बता सकते कि किससे प्रेम या घृणा करें। ऐसे लोग मुश्किल से ही अडिग रह पाते हैं। परमेश्वर में विश्वास की कुंजी सत्य को अभ्यास में लाने, परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखने, और जब परमेश्वर देह में आता है, तब मनुष्य पर उसके कार्य और उन सिद्धांतों को, जिनसे वह बोलता है, जानने में सक्षम होना है। भीड़ का अनुसरण मत करो। तुम्हारे पास इसके सिद्धांत होने चाहिए कि तुम्हें किसमें प्रवेश करना चाहिए, और तुम्हें उन पर अडिग रहना चाहिए। अपने भीतर परमेश्वर की प्रबुद्धता द्वारा लाई गई चीजों पर अडिग रहना तुम्हारे लिए सहायक होगा। यदि तुम ऐसा नहीं करते, तो आज तुम एक दिशा में जाओगे तो कल दूसरी दिशा में, और कभी भी कोई वास्तविक चीज़ प्राप्त नहीं करोगे। ऐसा होना तुम्हारे जीवन के लिए ज़रा भी लाभदायक नहीं है। जो सत्य को नहीं समझते, वे हमेशा दूसरों का अनुसरण करते हैं : यदि लोग कहते हैं कि यह पवित्र आत्मा का कार्य है, तो तुम भी कहते हो कि यह पवित्र आत्मा का कार्य है; यदि लोग कहते हैं कि यह दुष्टात्मा का कार्य है, तो तुम्हें भी संदेह हो जाता है, या तुम भी कहते हो कि यह किसी दुष्टात्मा का कार्य है। तुम हमेशा दूसरों के शब्दों को तोते की तरह दोहराते हो, और स्वयं किसी भी चीज़ का अंतर करने में असमर्थ होते हो, न ही तुम स्वयं सोचने में सक्षम होते हो। ऐसे व्यक्ति का कोई दृष्टिकोण नहीं होता, वह अंतर करने में असमर्थ होता है—ऐसा व्यक्ति बेकार अभागा होता है! तुम हमेशा दूसरों के वचनों को दोहराते हो : आज ऐसा कहा जाता है कि यह पवित्र आत्मा का कार्य है, परंतु संभव है, कल कोई कहे कि यह पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, और कि यह असल में मनुष्य के कर्मों के अतिरिक्त कुछ नहीं है—फिर भी तुम इसे समझ नहीं पाते, और जब तुम इसे दूसरों के द्वारा कहा गया देखते हो, तो तुम भी वही बात कहते हो। यह वास्तव में पवित्र आत्मा का कार्य है, परंतु तुम कहते हो कि यह मनुष्य का कार्य है; क्या तुम पवित्र आत्मा के कार्य की ईशनिंदा करने वालों में से एक नहीं बन गए हो? इसमें, क्या तुमने परमेश्वर का इसलिए विरोध नहीं किया है, क्योंकि तुम अंतर नहीं कर सकते? शायद किसी दिन कोई मूर्ख प्रकट होकर कहे कि "यह किसी दुष्टात्मा का कार्य है," और इन शब्दों को सुनकर तुम हैरान रह जाओ, और एक बार फिर तुम दूसरों के शब्दों में बँध जाओगे। हर बार जब कोई गड़बड़ी करता है, तो तुम अपने दृष्टिकोण पर अडिग रहने में असमर्थ हो जाते हो, और यह सब इसलिए होता है क्योंकि तुम्हारे पास सत्य नहीं है। परमेश्वर पर विश्वास करना और परमेश्वर को जानना आसान बात नहीं है। ये चीज़ें एक-साथ इकट्ठे होने और उपदेश सुनने भर से हासिल नहीं की जा सकतीं, और तुम केवल जुनून के द्वारा पूर्ण नहीं किए जा सकते। तुम्हें अपने कार्यों को अनुभव करना और जानना चाहिए, और उनमें सैद्धांतिक होना चाहिए, और पवित्र आत्मा के कार्य को प्राप्त करना चाहिए। जब तुम अनुभवों से गुज़र जाओगे, तो तुम कई चीजों में अंतर करने में सक्षम हो जाओगे—तुम भले और बुरे के बीच, धार्मिकता और दुष्टता के बीच, देह और रक्त से संबंधित चीज़ों और सत्य से संबंधित चीज़ों के बीच अंतर करने में सक्षम हो जाओगे। तुम्हें इन सभी चीजों के बीच अंतर करने में सक्षम होना चाहिए, और ऐसा करने में, चाहे कैसी भी परिस्थितियाँ हों, तुम कभी भी नहीं खोओगे। केवल यही तुम्हारा वास्तविक आध्यात्मिक कद है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो परमेश्वर को और उसके कार्य को जानते हैं, केवल वे ही परमेश्वर को संतुष्ट कर सकते हैं

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