परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 100

केवल परमेश्वर, जिसके पास सृष्टिकर्ता की पहचान है, ही अद्वितीय अधिकार रखता है (चुने हुए अंश)

अधिकार को अपने आप में परमेश्वर के सामर्थ्य के रूप में समझाया जा सकता है। पहले, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अधिकार और सामर्थ्य दोनों सकारात्मक हैं। उनका किसी भी नकारात्मक चीज से कोई संबंध नहीं, और वे किसी भी सृजित या गैर-सृजित प्राणियों से संबंधित नहीं हैं। परमेश्वर का सामर्थ्य जीवन और जीवन-शक्ति रखने वाले किसी भी रूप की चीजें बनाने में सक्षम है, और यह परमेश्वर के जीवन द्वारा निर्धारित किया जाता है। परमेश्वर जीवन है, इसलिए वह सभी जीवों का स्रोत है। इसके अलावा, परमेश्वर का अधिकार सभी जीवित प्राणियों से परमेश्वर के प्रत्येक वचन का पालन करवा सकता है, अर्थात्, उन्हें परमेश्वर के मुँह से निकले वचनों के अनुसार अस्तित्व में ला सकता है, और परमेश्वर की आज्ञा से जीने और प्रजनन करने दे सकता है, जिसके बाद परमेश्वर सभी जीवित प्राणियों पर शासन और नियंत्रण करता है, और इसमें कभी विचलन नहीं होगा, न अभी, न भविष्य में कभी। किसी व्यक्ति या वस्तु के पास ये चीजें नहीं हैं; केवल सृष्टिकर्ता के पास ही ऐसा सामर्थ्य है और वही इसे धारण करता है, इसलिए इसे अधिकार कहा जाता है। यह सृष्टिकर्ता की अद्वितीयता है। इसलिए, चाहे वह "अधिकार" शब्द हो या उस अधिकार का सार, दोनों केवल सृष्टिकर्ता के साथ जोड़े जा सकते हैं, क्योंकि ये सृष्टिकर्ता की अद्वितीय पहचान और सार के प्रतीक हैं, और सृष्टिकर्ता की पहचान और हैसियत दर्शाते हैं; सृष्टिकर्ता के अलावा, किसी व्यक्ति या चीज को "अधिकार" शब्द के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। यह सृष्टिकर्ता के अद्वितीय अधिकार की व्याख्या है।

हालाँकि शैतान ने अय्यूब को ललचाई आँखों से देखा, लेकिन परमेश्वर की अनुमति के बिना उसने अय्यूब के शरीर का एक बाल भी छूने की हिम्मत नहीं की। हालाँकि शैतान अंतर्निहित रूप से दुष्ट और क्रूर है, लेकिन परमेश्वर द्वारा उसे आदेश दिए जाने के बाद, उसके पास परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। इस प्रकार, भले ही शैतान जब वह अय्यूब के पास आया, तो वह भेड़ों के बीच भेड़िये की तरह उन्मत्त था, लेकिन उसने परमेश्वर द्वारा उसके लिए निर्धारित सीमाएँ भूलने की हिम्मत नहीं की, परमेश्वर के आदेशों का उल्लंघन करने की हिम्मत नहीं की, और जो कुछ भी उसने किया, उसमें शैतान ने परमेश्वर के वचनों के सिद्धांतों और सीमाओं से भटकने की हिम्मत नहीं की—क्या यह एक तथ्य नहीं है? इससे यह देखा जा सकता है कि शैतान यहोवा परमेश्वर के किसी भी वचन का उल्लंघन करने की हिम्मत नहीं करता। शैतान के लिए परमेश्वर के मुख से निकला प्रत्येक वचन एक आदेश और एक स्वर्गिक व्यवस्था है, परमेश्वर के अधिकार की अभिव्यक्ति है—क्योंकि परमेश्वर के प्रत्येक वचन के पीछे परमेश्वर के आदेशों का उल्लंघन करने वालों और स्वर्गिक व्यवस्थाओं की अवज्ञा और विरोध करने वालों के लिए परमेश्वर की सजा निहित है। शैतान स्पष्ट रूप से जानता है कि अगर वह परमेश्वर के आदेशों का उल्लंघन करेगा, तो उसे परमेश्वर के अधिकार का उल्लंघन करने और स्वर्गिक व्यवस्थाओं का विरोध करने के परिणाम स्वीकारने होंगे। आखिर वे परिणाम क्या हैं? कहने की जरूरत नहीं कि वे परमेश्वर द्वारा उसे दी जाने वाली सजा हैं। अय्यूब के प्रति शैतान के कार्य उसके द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट किए जाने का केवल एक सूक्ष्म रूप थे, और जब शैतान ये कार्य कर रहा था, तो परमेश्वर ने जो सीमाएँ निर्धारित कीं और जो आदेश उसने शैतान को दिए, वे सब उसके द्वारा की जाने वाली हर चीज के पीछे के सिद्धांतों का एक सूक्ष्म रूप मात्र थे। इसके अलावा, इस मामले में शैतान की भूमिका और स्थिति, परमेश्वर के प्रबंधन के कार्य में उसकी भूमिका और स्थिति का एक सूक्ष्म रूप मात्र थी, और शैतान द्वारा अय्यूब की परीक्षा में परमेश्वर के प्रति उसकी पूर्ण आज्ञाकारिता केवल इस बात का एक सूक्ष्म रूप थी कि कैसे शैतान ने परमेश्वर के प्रबंधन-कार्य में परमेश्वर का थोड़ा-सा भी विरोध करने की हिम्मत नहीं की। ये सूक्ष्म रूप तुम लोगों को क्या चेतावनी देते हैं? शैतान समेत सभी चीजों में, कोई भी व्यक्ति या चीज ऐसी नहीं है, जो सृष्टिकर्ता द्वारा निर्धारित स्वर्गिक व्यवस्थाओं और आदेशों का उल्लंघन कर सकती हो, और कोई भी व्यक्ति या चीज ऐसी नहीं है जो इन स्वर्गिक नियमों और आदेशों का उल्लंघन करने की हिम्मत करती हो, क्योंकि कोई भी व्यक्ति या चीज उस सजा को बदल या उससे बच नहीं सकती, जो सृष्टिकर्ता उनकी अवज्ञा करने वालों को देता है। केवल सृष्टिकर्ता ही स्वर्गिक व्यवस्थाएँ और आदेश स्थापित कर सकता है, केवल सृष्टिकर्ता के पास ही उन्हें लागू करने का सामर्थ्य है, और केवल सृष्टिकर्ता के सामर्थ्य का ही किसी भी व्यक्ति या चीज द्वारा उल्लंघन नहीं किया जा सकता। यह सृष्टिकर्ता का अद्वितीय अधिकार है, और यह अधिकार सभी चीजों में सर्वोच्च है, और इसलिए, यह कहना असंभव है कि "परमेश्वर महानतम है और शैतान दूसरे नंबर पर है।" अद्वितीय अधिकार से संपन्न सृष्टिकर्ता के अलावा कोई दूसरा परमेश्वर नहीं है!

क्या तुम लोगों को अब परमेश्वर के अधिकार का नया ज्ञान है? पहले, क्या अभी-अभी उल्लिखित परमेश्वर के अधिकार और मनुष्य के सामर्थ्य के बीच कोई अंतर है? क्या अंतर है? कुछ लोगों का कहना है कि दोनों में कोई तुलना नहीं है। यह सही है! हालाँकि लोग कहते हैं कि दोनों के बीच कोई तुलना नहीं है, लेकिन मनुष्य के विचारों और धारणाओं में, मनुष्य का सामर्थ्य अक्सर अधिकार के साथ भ्रमित किया जाता है, और दोनों की अक्सर साथ-साथ तुलना की जाती है। यहाँ क्या हो रहा है? क्या लोग अनजाने में एक को दूसरे के साथ प्रतिस्थापित करने की गलती नहीं कर रहे? ये दोनों असंबद्ध हैं, और इनके बीच कोई तुलना नहीं है, फिर भी लोग बाज नहीं आते। इसका समाधान कैसे किया जाना चाहिए? अगर तुम वास्तव में समाधान खोजना चाहते हो, तो एकमात्र तरीका परमेश्वर के अद्वितीय अधिकार को समझना और जानना है। सृष्टिकर्ता के अधिकार को समझने और जानने के बाद तुम मनुष्य के सामर्थ्य और परमेश्वर के अधिकार का एक-साथ उल्लेख नहीं करोगे।

मनुष्य के सामर्थ्य से क्या तात्पर्य है? सीधे तौर पर कहें तो, यह एक क्षमता या कौशल है जो मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव, इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं को अधिकतम सीमा तक फैलने या पूरा होने में सक्षम बनाता है। क्या इसे अधिकार माना जा सकता है? मनुष्य की महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ चाहे जितनी भी बड़ी या आकर्षक हों, यह नहीं कहा जा सकता कि उस व्यक्ति के पास अधिकार है; ज्यादा से ज्यादा, यह घमंड और सफलता मनुष्यों के बीच शैतान के मसखरेपन का एक प्रदर्शन मात्र है; ज्यादा से ज्यादा यह एक प्रहसन है, जिसमें शैतान परमेश्वर होने की अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए खुद को अपना ही पूर्वज बना लेता है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I

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