सत्य का अनुसरण कैसे करें (6) भाग दो
लोगों में दमन की नकारात्मक भावना क्यों उभरती है, पिछली बार हमने इसके एक कारण के बारे में संगति की थी। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वे मनमर्जी नहीं कर सकते हैं। आज हम दमन की इस नकारात्मक भावना के उभरने के दूसरे कारण पर संगति करना जारी रखेंगे, यानी लोग अक्सर इस दमनकारी भावना में इसलिए रहते हैं क्योंकि वे अपनी विशेषज्ञता का उपयोग नहीं कर पाते। क्या यह दूसरा कारण नहीं है? (हाँ, है।) पिछली बार, हमने इस बारे में बात की थी कि कैसे कुछ लोग अक्सर कलीसिया में या अपने दैनिक जीवन में अपनी मनमर्जी करना चाहते हैं, काम में टालमटोल करते हैं और अपना उचित काम करने में असफल रहते हैं, ऐसे में जब उनकी इच्छाएँ अधूरी रह जाती हैं, तो वे दमित महसूस करते हैं। इस बार, हम लोगों के दूसरे समूह की अभिव्यक्तियों के बारे में संगति करेंगे। इन लोगों के पास कुछ विशेष गुण, खूबियाँ या पेशेवर कौशल और क्षमताएँ होती हैं या उन्होंने किसी विशेष प्रकार के तकनीकी पेशे वगैरह में महारत हासिल की होती है, फिर भी वे कलीसिया के भीतर सामान्य रूप से अपने गुणों, खूबियों और पेशेवर कौशल का उपयोग करने में असमर्थ होते हैं, और इस वजह से, वे अक्सर निराश रहते हैं, महसूस करते हैं कि इस माहौल में जीवन असहज और दुखदायी है, और वे खुश नहीं रहते हैं। संक्षेप में, इस भावना का वर्णन करने वाला शब्द दमन है। सांसारिक समाज में, ऐसे लोगों को क्या कहा जाता है? उन्हें पेशेवर, तकनीकी विशेषज्ञ और विशेष जानकार कहा जाता है—संक्षेप में, उन्हें विशेषज्ञ कहा जाता है। विशेषज्ञों के पास क्या विशेषताएँ होती हैं? उनका माथा ऊँचा और आँखें चमकीली होती हैं, वे चश्मा पहनते हैं और अपना सिर ऊँचा रखते हैं, तेज चलते हैं, मामलों को निर्णायक रूप से और कुशलता से संभालते हैं। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे जहाँ भी जाते हैं अपने बैग में लैपटॉप रखते हैं। वे देखते ही पेशेवर और तकनीकी विशेषज्ञ के रूप में पहचान लिए जाते हैं। संक्षेप में, इस तरह के लोगों में कुछ पेशेवर योग्यताएँ होती हैं या वे किसी विशेष प्रकार की तकनीक में बहुत कुशल होते हैं। उन्होंने पेशेवर शिक्षा और प्रशिक्षण हासिल किया होता है, वे पेशेवर निर्देशों और प्रशिक्षण से गुजरे होते हैं, या उनमें से कुछ ने पेशेवर शिक्षण और प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया होता, लेकिन फिर भी वे कुछ प्रतिभाओं और काबिलियत के साथ पैदा होते हैं। ऐसे लोग पेशेवर और तकनीकी विशेषज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। जब ऐसे लोग कलीसिया में शामिल होते हैं, तो जैसे समाज में करते हैं, वैसे ही, वे अक्सर अपना लैपटॉप साथ रखते हैं और जहाँ भी काम करते हैं वहाँ पेशेवर और तकनीकी विशेषज्ञों के रूप में पहचाने जाना चाहते हैं। उन्हें विशेषज्ञ कहलाना अच्छा लगता है और यहाँ तक कि अपने उपनामों के आगे “प्रोफेसर” जैसे शब्द जोड़ना पसंद करते हैं; जब उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है और उन्हें इस तरह संबोधित किया जाता है तो उन्हें अच्छा लगता है। हालाँकि, कलीसिया एक विशेष स्थान है जहाँ विशेष कार्य किया जाता है। यह सांसारिक समाज के किसी भी समूह या संगठन या संस्था से अलग है। यहाँ आम तौर पर किस चीज पर चर्चा की जाती है? सत्य, सिद्धांत, नियम और कार्य व्यवस्थाओं के साथ ही परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने और परमेश्वर की गवाही देने पर। बेशक, स्पष्टता से कहें, तो लोगों से सत्य का अभ्यास करने, परमेश्वर के वचनों और सत्य सिद्धांतों के प्रति समर्पित होने, और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं और उसके द्वारा निर्देशित सिद्धांतों के प्रति समर्पण करने की भी अपेक्षा की जाती है। जैसे ही इन स्पष्ट नियमों को बढ़ावा दिया जाता है, लोगों से उनका अभ्यास और पालन करने की अपेक्षा की जाती है, तो कलीसिया में शामिल हुए इन विशेषज्ञों को लगता है कि उनके साथ कुछ गलत हो रहा है। उन्होंने जो कौशल सीखा है या कुछ खास क्षेत्रों में जो ज्ञान उनके पास है, वह अक्सर कलीसिया में व्यर्थ चला जाता है। उन्हें आम तौर पर महत्वपूर्ण पदों पर नहीं रखा जाता है या उच्च सम्मान नहीं दिया जाता है, और उन्हें अक्सर किनारे कर दिया जाता है। स्वाभाविक रूप से, ये लोग अक्सर अकेला महसूस करते हैं, और उन्हें लगता है कि उनकी क्षमताओं का उपयोग नहीं किया जा रहा है। वे क्या सोचते हैं? “अरे, यह तो बिल्कुल उस कहावत जैसा है, ‘जब कोई शेर मैदानी इलाके में आता है, तो कुत्ते भी उसका अपमान करते हैं!’ उन दिनों जब मैं फलाँ सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी के लिए या फलाँ विदेशी कंपनी के लिए काम करता था, तो वहाँ कितना सम्मान था! मुझे अपना बैग भी नहीं उठाना पड़ता था, दूसरे लोग मेरे दैनिक जीवन और काम के हर पहलू की व्यवस्था करते थे। मुझे किसी भी चीज के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं थी। मैं एक उच्च स्तर का विशेषज्ञ, एक माहिर तकनीशियन था, इसलिए कंपनी के लिए मैं एक ऊँची हस्ती था। ऊँची हस्ती होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि मेरे बिना, कंपनी काम नहीं कर सकती थी, उसे कोई ऑर्डर भी नहीं मिलते, और उसके सभी कर्मचारियों को छुट्टी लेनी पड़ती—कंपनी का व्यवसाय ठप होने का खतरा बना रहता, मेरे बिना उसका काम नहीं चलता। वे गौरवशाली दिन थे, एक ऐसा समय था जब मुझे लगता था कि मेरी अहमियत है!” अब परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद भी वे उसी स्तर के गौरव का आनंद उठाना चाहते हैं। वे मन में सोचते हैं, “मेरी क्षमताओं के साथ, परमेश्वर के घर में चमकने के लिए मेरे लिए और भी अधिक जगह होनी चाहिए। तो मेरा उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा है? कलीसिया में अगुआ और भाई-बहन हमेशा मुझे नजरंदाज क्यों करते हैं? दूसरों की तुलना में मुझमें क्या कमी है? शक्ल-सूरत के मामले में, मैं अच्छा दिखता हूँ; स्वभाव के मामले में, मैं किसी और से बुरा नहीं हूँ; सम्मान और प्रतिष्ठा के मामले में मुझे कोई समस्या नहीं है; और तकनीकी विशेषज्ञता के मामले में, मुझे महारत हासिल है। तो कोई मुझ पर ध्यान क्यों नहीं देता? मेरी बातें और सुझाव कोई क्यों नहीं सुनता? परमेश्वर के घर में मेरा स्वागत क्यों नहीं होता? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर के घर को मेरे जैसे विशेषज्ञ की आवश्यकता ही नहीं है? जब से यहाँ आया हूँ, मुझे अपने कौशल का उपयोग करने के लिए कोई जगह क्यों नहीं मिल रही? परमेश्वर के घर के कार्य के किसी एक पहलू के लिए तो उस तकनीकी कौशल की आवश्यकता होगी जो मैंने सीखा है। यहाँ मेरी विशेषज्ञता को अहमियत दी जानी चाहिए! मैं एक पेशेवर हूँ, मुझे टीम अगुआ, सुपरवाइजर या अगुआ होना चाहिए—मुझे अन्य लोगों की अगुआई करनी चाहिए। मैं हमेशा निचले पद पर क्यों रहता हूँ? कोई मुझ पर ध्यान नहीं देता, कोई मेरा सम्मान नहीं करता। यह क्या हो रहा है? यदि मैं सत्य नहीं समझता तो क्या वास्तव में मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया जाना चाहिए?” वे खुद से ये सवाल बार-बार पूछते हैं, लेकिन उन्हें कभी जवाब नहीं मिल पाता और इसलिए वे दमित महसूस करते हैं।
एक बार जब गायक मंडली भजन गाने के लिए मंच पर आई, तो उन्होंने मुझसे उनकी हेयर स्टाइल के बारे में पूछा। मैंने कहा, “बहनें अपने बालों को पोनीटेल में बाँध सकती हैं या उन्हें कान या कंधे की लंबाई तक कटवा सकती हैं। बेशक, वे अपने बालों का जूड़ा भी बना सकती हैं या उसे ऊपर करके भी बाँध सकती हैं। भाई क्रू कट कर सकते हैं या मांग निकालकर बाल बना सकते हैं। इसमें किसी साज-सज्जा या स्टाइल की जरूरत नहीं है। बस यह ध्यान रखना कि बाल साफ-सुथरे, तराशे हुए और स्वाभाविक दिखें। संक्षेप में, अगर तुम ईमानदार और मर्यादित दिखते हो, और एक ईसाई जैसे दिखते हो, तो सब ठीक है। मुख्य बात अच्छे से गाना और कार्यक्रम प्रस्तुत करना है।” क्या मेरी बात स्पष्ट थी? क्या उसे समझना आसान था? (हाँ।) पुरुषों और महिलाओं, दोनों के लिए हेयर स्टाइल स्पष्ट कर दी गई थी। हेयर स्टाइल चुनने के सिद्धांत क्या हैं? भाई मांग निकालकर बाल बना सकते हैं या क्रू कट रख सकते हैं, और बहनें छोटे या लंबे बाल रख सकती हैं। यदि बाल लंबे हैं, तो वे इसे पोनीटेल में बाँध सकती हैं, और छोटे हैं, तो ध्यान रहे कि ये ज्यादा छोटे न हों। यह एक सिद्धांत है। दूसरा सिद्धांत है साफ और सुव्यवस्थित होने का, ऐसा रूप-रंग जो सकारात्मक और गरिमापूर्ण हो, और चरित्र सकारात्मक हो। हमारा मकसद समाज की कोई बड़ी हस्ती या मशहूर व्यक्ति बनना नहीं है। हम कोई आकर्षक छवि नहीं चाहते, बस एक ईमानदार और गौरवशाली रूप-रंग रखना चाहते हैं। संक्षेप में, व्यक्ति को साफ-सुथरा, ईमानदार और गौरवशाली दिखना चाहिए। क्या मेरी बात स्पष्ट है? क्या इन दोनों सिद्धांतों को समझना और लागू करना आसान है? (आसान है।) इन्हें एक बार सुन लेने के बाद, लोग अपने दिलों में इन्हें स्पष्टता से समझ जाते हैं, और उन्हें दोहराने की कोई आवश्यकता नहीं होती। उन सभी को लागू करना बहुत आसान होता है। करीब दस दिनों के बाद, उन्होंने मुझे एक वीडियो भेजा। उस वीडियो में मैंने बहनों को तीन या चार कतारों में खड़ी देखा। पहली कतार में सबके बाल करीने से सँवारे हुए थे, हर किसी की हेयर स्टाइल और बालों की सज्जा अलग थी। हर बहन अलग दिख रही थी, हर किसी की बालों की शैली अजीब लग रही थी, और बीस-पच्चीस बरस की कुछ बहनें करीब पैंतीस से पैंतालीस बरस की दिख रही थीं, और कुछ तो बुजुर्ग महिलाओं जैसी लग रही थीं। संक्षेप में, हरेक की हेयर स्टाइल अलग थी। वीडियो भेजने वाले व्यक्ति ने कहा, “हमने आपके चुनने के लिए कई अलग-अलग हेयर स्टाइल की व्यवस्था की है। आप उनमें से किसी एक को चुन सकते हैं, और हम उसे इस्तेमाल कर लेंगे। यह हमारे लिए मुश्किल नहीं होगा! अपना फैसला करके बस हमें बता दीजिए और हम कर देंगे, कोई दिक्कत नहीं है!” तुम लोगों को क्या लगता है, यह वीडियो देखकर मुझे कैसा लगा होगा? मुझे थोड़ी घृणा महसूस हुई, फिर बारीकी से जाँचने पर मुझे गुस्सा आने लगा। जब मुझे वे सिद्धांत याद आए जो मैंने उन्हें समझाए थे, तो मैं कुछ बोल ही न पाया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहूँ। मैंने सोचा, “अरे, ये लोग इंसानी भाषा नहीं समझते।” मैंने उन शब्दों पर विचार किया जो मैंने कहे थे और जो सिद्धांत मैंने उन्हें बताए थे, वे ऐसी चीजें थीं जिन्हें कोई भी समझ-बूझ सकता था। ऐसी सरल चीजें लोगों के लिए कठिन नहीं थीं, और वे उन्हें कर सकते थे—फिर उन्होंने मुझे ऐसा वीडियो क्यों भेजा? छानबीन करने के बाद, मुझे समझ आया कि ऐसा नहीं था कि मैंने अपनी बात स्पष्ट नहीं की थी, और ऐसा तो बिल्कुल नहीं था कि मैंने उन्हें विभिन्न अलग-अलग हेयर स्टाइल बनाने के लिए कहा था। इस व्यवहार के दो कारण हैं : एक कारण यह है कि वे मेरी बात नहीं समझ पाए। दूसरा कारण यह है कि जैसे ही लोग कुछ करने में सक्षम होते हैं, जैसे ही वे कुछ समझते हैं और कुछ कौशल और तकनीकों में महारत हासिल कर लेते हैं, तो वे संसार में अपनी जगह भूल जाते हैं। वे किसी का सम्मान नहीं करते और हमेशा दिखावा करना चाहते हैं। वे बेहद अहंकारी हो जाते हैं। यदि वे मेरी बातें समझते भी हैं, तो उन्हें स्वीकार नहीं करते या उन्हें अभ्यास में नहीं लाते हैं। वे मेरी बातों को दिल में नहीं उतारते, उन्हें महत्वपूर्ण नहीं मानते, और मेरी बातों को सीधे नजरंदाज कर देते हैं। मैं उनसे जो करने को कहता हूँ या जो कराना चाहता हूँ उसमें उनकी कोई दिलचस्पी नहीं होती है। जब उन्होंने मुझसे सिद्धांतों के बारे में पूछा, तो वास्तव में उन्होंने पहले ही तय कर लिया था कि वे क्या और कैसे करेंगे। उनका मेरी राय माँगना उनकी प्रक्रिया का बस एक हिस्सा था। क्या उनका यह पूछना एक प्रकार से मजाक उड़ाना नहीं है? (है।) वे जब मजाक उड़ा लेते हैं, फिर चाहे मैंने कुछ भी कहा हो, अंत में उन्होंने अपनी मनमर्जी ही चलाई और मेरी बात बिल्कुल नहीं मानी। वे इतने मनमाने निकले! उनके मन में क्या चल रहा था? “तुम हमें कमतर समझते हो। हम पेशेवर तकनीशियन हैं। हम समाज के प्रभावशाली लोगों के साथ कामकाज करते हैं। हमारे पास ये कौशल और महारत है, और हम जहाँ भी जाएँ, वहाँ एक अच्छा जीवन जी सकते हैं और लोगों का सम्मान पा सकते हैं। परमेश्वर के घर में आकर ही हम सेवाकर्मी बन जाते हैं, और हमें लगातार नीची नजरों से देखा जाता है। हमारे पास कौशल है, हम विशेषज्ञ हैं, हम सामान्य लोगों जैसे नहीं हैं। परमेश्वर के घर में हमारा सम्मान होना चाहिए। तुम हमारी प्रतिभा को इस तरह दबा नहीं सकते। हम परमेश्वर के घर में अपनी विशेषज्ञता का उपयोग करते हैं, और तुम्हें हमारा समर्थन और सहयोग करना चाहिए।” क्या यह अभद्र और अनुचित नहीं है? (हाँ।) क्या इसमें कोई सामान्य मानवता है? (नहीं, नहीं है।) इसे देखने के बाद मैंने सोचा, “ओह, इन लोगों के साथ बहस करना बेकार है!” जब मैंने उन्हें सिद्धांत बताए, तो मैंने उनसे बार-बार पूछा भी, “क्या तुम समझ गए? क्या तुम इसे याद रखोगे?” उन्होंने मुझसे वादा किया कि वे इसे याद रखेंगे, लेकिन फिर जैसे ही वे पीछे मुड़े, तुरंत अपनी बात से मुकर गए। वे ऐसी बातें कहते हैं जो सुनने में बहुत अच्छी लगती हैं, “मैं यहाँ अपना कर्तव्य निभाने के लिए हूँ, मैं यहाँ परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए हूँ।” क्या इसे ही तुम अपना कर्तव्य निभाना कहते हो? क्या तुम वास्तव में परमेश्वर को संतुष्ट कर रहे हो? तुम अपनी देह को, अपनी प्रतिष्ठा को संतुष्ट कर रहे हो। तुम अपना कर्तव्य निभाने के लिए नहीं, बल्कि अपना करियर बनाने के लिए यहाँ हो। दूसरे शब्दों में, तुम भारी अव्यवस्था पैदा करने के लिए परमेश्वर के घर में आए हो। मुझे बताओ, परमेश्वर के घर के कार्य के सभी पहलुओं में लोगों को जिन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए, उन पर अंतिम निर्णय किसका होता है? तुम्हारा या परमेश्वर का? (अंतिम निर्णय परमेश्वर का होता है।) तुम्हारी बातें सत्य हैं या परमेश्वर के वचन? (परमेश्वर के वचन सत्य हैं।) जो भी तुम लोग कहते हो वह एक प्रकार का धर्म-सिद्धांत है। यदि वह धर्म-सिद्धांत सत्य से मेल नहीं खाता है, तो वह भ्रांति बन जाता है। चूँकि तुम लोग यह मानते हो कि मैं जो कहता हूँ वह सत्य है, तो फिर उसे स्वीकारने में असमर्थ क्यों हो? मेरी बातों का तुम लोगों पर कोई असर क्यों नहीं होता है? तुम लोग मेरे सामने तो अच्छी बातें कहते हो, लेकिन मेरी पीठ पीछे सत्य का अभ्यास नहीं करते। यह क्या चल रहा है? जब भ्रष्ट मनुष्यों के पास थोड़ी-सी भी प्रतिभा, विशेषज्ञता या विचार हों, तो वे अहंकारी और दंभी बन जाते हैं और किसी का भी कहना मानने से इनकार कर देते हैं। वे किसी की बात नहीं सुनते। क्या यह बेहद बेतुकी बात नहीं है? यदि तुम लोगों को लगता है कि तुम जो कर रहे हो वह सही है, तो तुम मुझे उसकी जाँच क्यों करने देते हो? जब मैं तुम लोगों की कमियाँ बताता हूँ और तुम्हारी गलतियाँ उजागर करता हूँ, तो तुम लोग इसे स्वीकार क्यों नहीं कर पाते हो? तुम लोग सत्य नहीं समझते, लेकिन मैं सत्य के बारे में तुम्हारे साथ संगति कर सकता हूँ। मैं सत्य के अनुरूप, सिद्धांतों के अनुरूप, संतों जैसी शालीनता के साथ कार्य करना जानता हूँ। मैं जानता हूँ कि इस तरह से कैसे कार्य करना है जिससे दूसरों को सीख मिले। क्या तुम सब यह जानते हो? यदि तुम ये बातें भी नहीं जानते, तो सत्य स्वीकारने में असमर्थ क्यों हो? जैसा मैं कहता हूँ तुम वैसा क्यों नहीं करते?
कुछ लोग बहुत अच्छा लिखते हैं; उनमें स्वाभाविक रूप से भाषा को व्यवस्थित करने और विचारों को संप्रेषित करने का गुण होता है। उनके पास एक विशेष स्तर की साहित्यिक क्षमता भी हो सकती है, जिससे वे चीजों का वर्णन करते हुए कुछ तकनीकों और शैलियों का उपयोग करते हैं। लेकिन क्या ये गुण होने का मतलब यह है कि वे सत्य समझते हैं? (नहीं, ऐसा नहीं है।) यह ज्ञान का बस एक पहलू है, किसी व्यक्ति के गुणों और प्रतिभाओं का एक पहलू है। इसका मतलब है कि तुम्हारे पास एक खास प्रतिभा है, तुम लिखने और भाषा के माध्यम से विचार व्यक्त करने में अच्छे हो, और तुम शब्दों के उपयोग में भी माहिर हो। ऐसी चीजों में अच्छा होना कुछ लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर देता है, “मैं परमेश्वर के घर में कलम चलाता हूँ; मुझे पाठ्य-सामग्री आधारित कार्य में शामिल होना चाहिए।” पाठ्य-सामग्री आधारित कार्य में अधिक लोगों को शामिल करना अच्छी बात है; परमेश्वर के घर को इसकी आवश्यकता है। हालाँकि, परमेश्वर के घर को केवल उसकी जरूरत नहीं है जिसमें तुम माहिर हो, न ही इसे सिर्फ तुम्हारी पेशेवर काबिलियत की जरूरत है। तुम्हारे पेशेवर कौशल और विशेषज्ञता उस कार्य के लिए उपकरण मात्र हैं जिससे तुम जुड़े हुए हो। तुम्हारी पेशेवर क्षमताएँ और कौशल का स्तर चाहे जो भी हो, तुम्हें परमेश्वर के घर के अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार खुद को ढालना चाहिए और परमेश्वर के घर द्वारा निर्धारित वांछित नतीजे और लक्ष्य हासिल करने चाहिए। परमेश्वर के घर में इन नतीजों और लक्ष्यों के लिए आवश्यक मानक और संबंधित सिद्धांत हैं; यह तुम्हें अपनी पसंद या प्राथमिकताओं के आधार पर कार्य करने की अनुमति नहीं देता है। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों में अच्छा लेखन कौशल होता है, और वे सजावटी भाषा और सजीव और व्यवस्थित कथानक वाली स्क्रिप्ट लिखते हैं। लेकिन क्या इससे इच्छित परिणाम प्राप्त होता है? परमेश्वर की गवाही देने के प्रभाव को हासिल करना तो दूर, ऐसी स्क्रिप्ट कहीं टिकती ही नहीं है। हालाँकि, ये स्क्रिप्ट राइटर दिलचस्प भाषा में लिखने की अपनी क्षमता से संतुष्ट और आश्वस्त महसूस करते हैं, और वे अपने बारे में बहुत ऊँचा सोचते हैं। लेकिन वे यह नहीं समझते कि एक स्क्रिप्ट को परमेश्वर की गवाही देने, परमेश्वर का वचन फैलाने का प्रभाव प्राप्त करना चाहिए। यही लक्ष्य है। परमेश्वर का घर यह अपेक्षा करता है कि स्क्रिप्ट में परमेश्वर के उन वचनों का वर्णन होना चाहिए जिन्हें नायक पढ़ता है और इसमें ऐसी वास्तविक समझ होनी चाहिए जो नायक परमेश्वर के कार्य के मार्गदर्शन में परमेश्वर के वचनों का अनुभव और अभ्यास करके प्राप्त करता है। एक ओर इसे परमेश्वर की गवाही के रूप में काम करना चाहिए, तो दूसरी ओर इसे परमेश्वर के वचन फैलाने चाहिए। तभी स्क्रिप्ट वांछित नतीजा प्राप्त करती है। परमेश्वर के घर की यही अपेक्षाएँ हैं। क्या तुम सबको लगता है कि इससे लोगों के लिए चीजें कठिन हो जाती हैं? (नहीं, ऐसा नहीं होता है।) नहीं, यह परमेश्वर के घर का कार्य है। हालाँकि, ये स्क्रिप्ट राइटर इस तरह से काम करने को तैयार नहीं होते हैं। उनका रवैया कुछ ऐसा होता है, “मैंने जो लिखा है वह पहले से ही सही और पर्याप्त रूप से विशिष्ट है। यदि तुम मुझे इसमें वह सामग्री जोड़ने के लिए कहोगे, तो यह जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं होगा। मैं इससे खुश नहीं हूँ, और मैं इसे इस तरह लिखना नहीं चाहता।” भले ही वे बाद में यह सामग्री अनिच्छा से इसमें जोड़ दें, लेकिन तब तक उनकी भावनाएँ काफी बदल चुकी होती हैं। कुछ लोग कहते हैं, “परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाना बहुत दमनकारी लगता है। लोग हमेशा हमारी काट-छाँट करते हैं और हमारी गलतियाँ निकालते हैं। मैं बहुत चिंतित हो जाता हूँ, लेकिन कहावत है ना कि जब कोई व्यक्ति कम ऊँचे छज्जे के नीचे खड़ा होता है, तो उसके पास अपना सिर नीचा करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता है। यदि आखिरी फैसला मेरा होता और मैं जो चाहूँ वो लिख सकता, तो कितना अच्छा होता! परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाते हुए हमें हमेशा दूसरों की बात सुननी पड़ती है और अपनी काट-छाँट स्वीकारनी पड़ती है। यह बहुत दमनकारी है!” क्या यह सही रवैया है? यह किस प्रकार का स्वभाव है? यह बहुत अहंकारी और दंभी स्वभाव है! गायक मंडली में वे लोग भी होते हैं जो मेकअप करने का कर्तव्य निभाते हैं। उन्हें अविश्वासियों के हेयर स्टाइल पसंद हैं, लेकिन उन हेयर स्टाइल का अंतिम नतीजा ठुकरा दिया जाता है। ऐसा क्यों? क्योंकि परमेश्वर का घर राक्षसों जैसा हेयर स्टाइल नहीं चाहता; वह ऐसे हेयर स्टाइल चाहता है जो सामान्य, मर्यादित और सधे हुए हों। तुम चाहे जो भी हेयर स्टाइल बनाने में सक्षम हो, उसे अविश्वासियों के संसार में जाकर दिखा सकते हो। उन्हें ऐसे विशेषज्ञों की जरूरत है, लेकिन परमेश्वर के घर को नहीं। कुछ लोग कहते हैं कि वे परमेश्वर के घर में मुफ्त में ये हेयरस्टाइल अपनाने को तैयार हैं, लेकिन तब भी यह वांछित या सराहनीय नहीं है; यह देखना घिनौना है। परमेश्वर का घर तुमसे एक सभ्य व्यक्ति की तरह गरिमामय और ईमानदार दिखने की अपेक्षा करता है। यह तुमसे आकर्षक लगने, महलों में रहने वाले कुलीन लोगों जैसा दिखने, और यकीनन किसी राजकुमारी, किसी संभ्रांत महिला, किसी अमीर युवा मालिक या स्वामी जैसा दिखने की अपेक्षा नहीं करता है। हम सामान्य लोग हैं, हमारा कोई रुतबा, ओहदा, या मूल्य नहीं है, हम सबसे सामान्य और साधारण लोग हैं। कुलीन या परिष्कृत होने के बजाय एक साधारण व्यक्ति बनना, साधारण कपड़े पहनना और एक साधारण व्यक्ति की तरह दिखना, दिखावा न करना, बल्कि जो भी तुम करने में सक्षम हो उसका आनंद लेना और बिना महत्वकांक्षा या इच्छा के एक साधारण व्यक्ति का जीवन जीकर संतुष्ट रहना सबसे अच्छा है। यह सर्वोत्तम है, यही सामान्य मानवता वाले व्यक्ति का जीवन है। तुम बस एक साधारण व्यक्ति हो, फिर भी तुम हमेशा एक कुलीन व्यक्ति जैसा व्यवहार करने का प्रयास करते रहते हो। क्या यह घिनौना नहीं है? (यह घिनौना है।) तुम हमेशा परमेश्वर के घर में अपनी विशेषज्ञता प्रदर्शित करने और दिखावा करने की कोशिश करते हो। मैं तुम्हें बता दूँ, क्या अपनी विशेषज्ञता का प्रदर्शन करना मूल्यवान है? यदि इसका वास्तव में कोई मूल्य है, तो यह स्वीकार्य है। लेकिन यदि इसका कोई मूल्य नहीं है और इसके बजाय यह विघटनकारी और विनाशकारी बन जाता है, तो तुम केवल अपनी घिनौनी प्रकृति और अनचाहे गुण दिखा रहे हो। क्या तुम्हें ऐसी चीजें उजागर करने के परिणाम पता हैं? यदि तुम्हें नहीं पता तो उन्हें उजागर भी मत करो। तुम क्या कर सकते हो, तुम्हारे पास कौन-से तकनीकी कौशल हैं, तुम किन विशेष प्रतिभाओं में स्वाभाविक रूप से उत्कृष्ट हो या कौन-सी प्रतिभाएँ तुम्हारे पास हैं, इनमें से कुछ भी कुलीन नहीं माना जाता है; तुम महज एक साधारण व्यक्ति हो। कुछ लोग कहते हैं, “मैं कई भाषाओं में माहिर हूँ।” तो फिर जाओ, एक अनुवादक के रूप में काम करो और अपना अनुवाद का कार्य अच्छे से करो; तब तुम्हें एक अच्छा इंसान माना जा सकता है। कुछ लोग कहते हैं, “मैं पूरी शिन्हुआ डिक्शनरी सुना सकता हूँ।” तो क्या हुआ यदि तुमने पूरी शिन्हुआ डिक्शनरी याद कर ली है? क्या यह तुम्हें सुसमाचार फैलाने में सक्षम बनाता है? क्या यह तुम्हें परमेश्वर की गवाही देने में सक्षम बनाता है? कुछ लोग कहते हैं, “मैं एक बार में दस पंक्तियाँ पढ़ सकता हूँ। मैं एक दिन में परमेश्वर के वचन के 100 पन्ने पढ़ सकता हूँ। इस कौशल को देखो, क्या यह प्रभावशाली नहीं है?” तुम एक दिन में “वचन देह में प्रकट होता है” के 100 पन्ने पढ़ने में सक्षम हो सकते हो, लेकिन क्या तुम इससे कुछ समझ पाते हो? तुम सत्य का कौन-सा पहलू समझ पाते हो? क्या तुम इसे अभ्यास में ला सकते हो? कुछ लोग कहते हैं, “मैं बचपन से ही प्रतिभाशाली हूँ। मैं पाँच साल की उम्र में ही कविताएँ गाने और लिखने में सक्षम था।” क्या यह उपयोगी है? हो सकता है कि अविश्वासी तुम्हारी प्रशंसा करें, लेकिन परमेश्वर के घर में तुम्हारा कोई उपयोग नहीं है। मान लो कि मैं तुम्हें अभी परमेश्वर की स्तुति वाला एक भजन लिखने के लिए कहता हूँ। क्या तुम यह कर सकोगे? यदि नहीं कर सकते, तो इसका मतलब है कि तुम सत्य का कोई भी पहलू नहीं समझते हो। सिर्फ गुण होना कोई बड़ी बात नहीं है। यदि तुम सत्य नहीं समझते, तो तुम कुछ भी हासिल नहीं कर पाओगे। किसी व्यक्ति के पास चाहे जो भी गुण, कौशल या प्रतिभा हो, वास्तव में ये साधन मात्र हैं। यदि उनका उपयोग सकारात्मक चीजों के लिए किया जा सकता है और उनका सकारात्मक प्रभाव हो सकता है, तो कहा जा सकता है कि उनका कुछ मूल्य है। यदि उनका उपयोग सकारात्मक चीजों के लिए नहीं किया जा सकता या वे सकारात्मक प्रभाव नहीं डाल सकते, तो उनका कोई मूल्य नहीं है, और उन्हें सीखना तुम्हारे लिए बेकार और बोझिल है। यदि तुम अपने पेशेवर कौशल या प्रतिभा को अपने कर्तव्य निर्वहन में इस्तेमाल कर सकते हो और सत्य सिद्धांतों के अनुसार परमेश्वर के घर में कोई कार्य पूरा कर सकते हो, तो यह कहा जा सकता है कि तुम्हारे पेशेवर कौशल और प्रतिभा का उचित स्थान पर और एक उद्देश्य को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया गया है—यही उनका मूल्य है। दूसरी ओर, यदि तुम उन्हें अपने कर्तव्य निर्वहन में इनका बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं कर सकते, तो तुम्हारे पेशेवर कौशल और प्रतिभा का कोई मूल्य नहीं है और मेरे लिए उनका कोई महत्व नहीं है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग स्वाभाविक रूप से वाक्पटु होते हैं और स्पष्टता से बोल पाते हैं, और वे कुशल भाषाविद् होते हैं और तेजी से सोच पाते हैं। इसे एक प्रतिभा माना जा सकता है। संसार में, यदि इस तरह के लोग सार्वजनिक भाषण, प्रचार या बातचीत में शामिल होते हैं, या न्यायाधीश, वकील या इसी तरह के पेशों में काम करते हैं, तो वहाँ उनकी प्रतिभाओं के लिए एक स्थान होता है। हालाँकि, परमेश्वर के घर में, यदि तुम्हारे पास ऐसी प्रतिभा है, लेकिन तुम सत्य के किसी भी पहलू को नहीं समझते, यहाँ तक कि दर्शनों के सत्य की बुनियादी समझ भी नहीं रखते, और सुसमाचार प्रचार नहीं कर सकते या परमेश्वर की गवाही नहीं दे सकते, तो तुम्हारे गुण या प्रतिभा का कोई मूल्य नहीं है। यदि तुम लगातार अपने गुणों के आधार पर जीते हो, जहाँ भी जाते हो अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हो, शेखी बघारते हो और शब्द और धर्म-सिद्धांत का प्रचार करते हो, तो तुम लोगों के लिए घृणित बन जाओगे। क्योंकि तुम्हारे कहे हरेक शब्द से उबकाई आएगी, और तुम्हारा व्यक्त किया गया हरेक विचार या दृष्टिकोण थका देगा। उस स्थिति में, तुम्हारे लिए चुप रहना ही बेहतर होगा। जितना अधिक तुम खुद को दिखाने और प्रदर्शन करने की कोशिश करोगे, तुम उतने ही अधिक घृणित होते जाओगे। लोग कहेंगे, “अपना गंदा मुँह बंद ही रखो! तुम्हारी सारी बातें धर्म-सिद्धांत मात्र हैं, लेकिन कौन इसे पहले से नहीं समझता? तुम कितने वर्षों से प्रवचन दे रहे हो? तुम्हारे शब्द फरीसियों के शब्दों से अलग नहीं हैं, वे कलीसिया के माहौल को प्रदूषित करने वाले खोखले सिद्धांतों से भरे हुए हैं। इन्हें कोई सुनना नहीं चाहता!” देखा तुमने, यह गुस्सा भड़काता है और लोगों को दूर करता है। इसलिए, तुम्हारे लिए बेहतर है कि तुम सत्य पर ज्यादा ध्यान दो और सत्य की अधिक समझ हासिल करने का प्रयास करो, और यही सच्ची क्षमता है। जितना अधिक मैं यह कहता हूँ, उतना ही अधिक ये “सक्षम” और “विशेषज्ञ” लोग दमित महसूस करते हैं; वे सोचते हैं, “अब सब खत्म हो गया है, कोई रास्ता नहीं बचा है। मैंने हमेशा अपने आप को प्रतिभाशाली, उत्कृष्ट माना है और मैं जहाँ भी जाता हूँ, मुझे प्रमुख पदों पर रखा जाता है। वो कहावत है न, ‘अगर यह सोना है, फिर आज नहीं तो कल जरूर चमकेगा’? लेकिन अप्रत्याशित रूप से परमेश्वर के घर में मेरे सारे रास्ते बंद हो गए हैं। यह दमनकारी लगता है, बहुत दमनकारी! मेरे साथ ऐसा कैसे हो गया?” परमेश्वर में विश्वास रखना अच्छी बात है, तो जब ऐसे असाधारण प्रतिभाशाली और उन्नत विशेषज्ञ परमेश्वर के घर में आते हैं, तो वे दमित क्यों महसूस करते हैं? वे इतने वर्षों से दमित महसूस कर रहे हैं कि अब अवसाद से पीड़ित हो गए हैं। वे अब बोलना या व्यवहार करना भी नहीं जानते। अंत में, कुछ लोग कहते हैं, “लगातार काट-छाँट बहुत दमनकारी लगती है। अब मेरा व्यवहार बहुत अच्छा हो गया है, और कलीसिया के अगुआ या समूह के अगुआ जो भी कहते हैं, मैं उससे सहमत हो जाता हूँ और हमेशा ‘हाँ’ या ‘ठीक है’ में जवाब देता हूँ।” ऐसा लग सकता है कि उन्होंने समर्पण और आज्ञा का पालन करना सीख लिया है, लेकिन वे अभी भी सिद्धांतों को या अपने कर्तव्यों को ठीक से पूरा करने का तरीका नहीं समझते हैं। वे दमन की इस भावना को अपने साथ लेकर चलते हैं और खुद को अपमानित महसूस करते हैं उन्हें लगता है कि उन्हें कम आँका जा रहा है। जब उनसे उनकी शिक्षा के स्तर के बारे में पूछा जाता है, तो कुछ लोग कहते हैं, “मुझे स्नातक की डिग्री प्राप्त है,” दूसरे कहते हैं, “मैंने स्नातकोत्तर की डिग्री ली है,” अन्य लोग कहते हैं, “मेरे पास पीएच.डी. की डिग्री है,” या “मैंने मेडिकल स्कूल से ग्रेजुएशन किया है,” “मैंने फाइनेंस का अध्ययन किया है,” या “मैंने प्रबंधन का अध्ययन किया है,” जबकि अन्य लोग प्रोग्रामर या इंजीनियर होते हैं। यदि उनके नाम के आगे पहले से ही “डॉ.” नहीं लगा है, तो उनके नाम के आगे कोई अन्य औपचारिक उपाधि होती है। इन लोगों को परमेश्वर के घर में इस तरह संबोधित नहीं किया जाता है, न ही उनके साथ कोई उच्च सम्मान वाला व्यवहार किया जाता है। वे अक्सर दमित महसूस करते हैं और अपनी पहचान की भावना तक खो देते हैं। कलीसिया में सभी प्रकार के विशेषज्ञ हैं, जिनमें संगीतकार, नर्तक, फिल्म निर्माता, तकनीशियन, व्यावसायिक पेशेवर, अर्थशास्त्री और यहाँ तक कि राजनेता भी शामिल हैं। भाई-बहनों के बीच, ये लोग अक्सर कहते हैं, “मैं सरकारी स्वामित्व वाले उद्यम में एक सम्मानित कार्यकारी हूँ। मैं एक बहुराष्ट्रीय कंपनी का वरिष्ठ कार्यकारी हूँ। मैं सीईओ हूँ, आज तक मैं किस से डरा हूँ? मैंने कब किसी के आगे समर्पण किया है? मैं प्रबंधन कौशल के साथ पैदा हुआ हूँ, और मैं जहाँ भी जाऊँ, मेरे पास अधिकार वाला ओहदा होना चाहिए, मुझे प्रभारी होना चाहिए, हमेशा अन्य लोगों को प्रबंधित करने वाला व्यक्ति होना चाहिए, कोई भी मुझे प्रबंधित नहीं कर सकता। तो, परमेश्वर के घर में मुझे कम से कम समूह अगुआ या प्रभारी व्यक्ति तो होना ही चाहिए!” जल्द ही, सबको पता चल जाता है कि इन लोगों के पास कोई सत्य वास्तविकता नहीं है, वे कोई भी कार्य करने में असमर्थ हैं, और विशेष रूप से अहंकारी और दंभी हैं। वे किसी भी कर्तव्य को ठीक से पूरा करने में विफल रहते हैं, और अंत में, उनमें से कुछ को केवल शारीरिक श्रम का कार्य सौंप दिया जाता है, जबकि अन्य हमेशा समर्पण करने से इनकार करते हैं, लगातार अपनी क्षमताएँ दिखाने की कोशिश करते हैं और बेकाबू हो जाते हैं। नतीजतन, वे बहुत अधिक संताप खड़ी करते हैं, सभा को क्रोधित करते हैं, और अंत में हटा दिए जाते हैं। क्या ये लोग दमित महसूस नहीं करेंगे? अंत में, वे अपने अनुभव को इस कथन के साथ सारांशित करते हैं : “परमेश्वर का घर हमारे जैसे प्रतिभाशाली लोगों के लिए सही जगह नहीं है। हम उन्नत नस्ल के घोड़ों जैसे हैं, लेकिन परमेश्वर के घर में हमें पहचानने वाला कोई नहीं है। परमेश्वर में विश्वास रखने वाले, खासकर विभिन्न स्तरों पर मौजूद अगुआ अज्ञानी और अल्पज्ञ हैं। भले ही वे सत्य समझते हैं, लेकिन वे यह पहचानने में असफल रहते हैं कि हम उन्नत नस्ल के हैं। हमें किसी ऐसे व्यक्ति को ढूँढना होगा जो हमारी प्रतिभाएँ पहचान सके।” अंत में वे इसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। कुछ अन्य लोग कहते हैं, “परमेश्वर के घर में हमारे रहने के लिए बहुत कम जगह है। हम सभी महत्वपूर्ण हस्तियाँ हैं, जबकि परमेश्वर में विश्वास रखने वाले समाज के निचले वर्ग के विनम्र लोग हैं : जिनमें किसान, रेहड़ी-पटरी वाले और छोटे कारोबार के मालिक शामिल हैं। उनमें कोई शीर्ष-वरीयता वाले विशेषज्ञ नहीं हैं। भले ही कलीसिया छोटी है, संसार बहुत बड़ा है, और इतने बड़े संसार में हमारे लिए जगह तो होनी ही चाहिए। हम, प्रतिभाशाली लोग, आखिर में अपना प्रशंसक खुद ढूँढ लेंगे!” आओ इन लोगों को अपना प्रशंसक ढूँढने के लिए शुभकामनाएँ दें, है न? (ठीक है।) जिस दिन वे अपने प्रशंसक को ढूँढने के बाद हमें अलविदा कहेंगे, उस दिन हम उन्हें विदाई भोज देंगे और आशा करेंगे कि उन्हें उनका सही स्थान मिल जाए, जहाँ वे दमन की किसी भी भावना से मुक्त हों। वे हमसे बेहतर जिएँ और उन्हें शांतिपूर्ण जीवन मिले, यही हमारी कामना है। हमारे ऐसा कहने से क्या इन दमित भावनाओं वाले लोगों को कुछ राहत महसूस होती है? उनकी छाती में जकड़न, सिर में सूजन, हृदय में भारीपन, शारीरिक संताप और बेचैनी की भावनाएँ—क्या वे भावनाएँ गायब हो गई हैं? मैं आशा करता हूँ कि उनकी सभी इच्छाएँ पूरी हों, वे अब दमित महसूस न करें, और वे खुशी से और आजादी से जीने में सक्षम हों।
मुझे बताओ, क्या तुम लोगों को लगता है कि परमेश्वर का घर जानबूझकर इन प्रतिभाशाली व्यक्तियों के लिए चीजें कठिन बना रहा है? (नहीं।) बिल्कुल नहीं। तो फिर परमेश्वर के घर में विभिन्न सिद्धांत, कार्य व्यवस्थाएँ, और हरेक कार्य की अपेक्षाएँ उनमें दमनकारी भावनाओं को क्यों जन्म देती हैं? ये प्रतिभाशाली व्यक्ति परमेश्वर के घर में दमनकारी भावनाओं में क्यों फँस जाते हैं? क्या परमेश्वर के घर से कोई गलती हुई? या क्या परमेश्वर का घर जानबूझकर इन लोगों के लिए चीजें कठिन बना रहा है? (ऐसा नहीं है।) धर्म-सिद्धांत के संदर्भ में, तुम सभी समझते हो कि ये दोनों स्पष्टीकरण बिल्कुल गलत हैं। तो फिर ऐसा क्यों होता है? (ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग अपने कर्तव्य निभाने के दौरान लौकिक संसार में हासिल की गई पेशेवर विशेषज्ञता या अपनी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं को परमेश्वर के घर के सिद्धांतों और अपेक्षाओं पर थोपते हैं।) लेकिन क्या परमेश्वर का घर उन्हें इन चीजों को अपनी अपेक्षाओं और सिद्धांतों पर थोपने देता है? बिल्कुल नहीं। कुछ लोग इसलिए दमित महसूस करते हैं क्योंकि परमेश्वर का घर ऐसा नहीं करने देता है। तुम लोगों को क्या लगता है कि उन्हें इस बारे में क्या करना चाहिए? (प्रत्येक कर्तव्य निभाने से पहले लोगों को उस कर्तव्य के लिए परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं और सिद्धांतों को समझना चाहिए। इन सिद्धांतों को सटीक रूप से समझने के बाद, वे उस पेशेवर विशेषज्ञता को विवेक के साथ लागू कर सकते हैं जिसमें उन्होंने महारत हासिल की है।) यह सिद्धांत सही है। अब मुझे बताओ, क्या परमेश्वर के घर में लगातार अपनी विशेषज्ञता प्रदर्शित करने और अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करने की चाहत सही शुरुआत है? (नहीं, सही नहीं है।) यह किस प्रकार गलत है? इसका कारण समझाओ। (उनका इरादा दिखावा करना और खुद को अलग दिखाना है—वे अपने करियर के पीछे भाग रहे हैं। वे इस बारे में नहीं सोच रहे हैं कि वे अपने कर्तव्य अच्छी तरह से कैसे निभा सकते हैं या इस तरह से कार्य कैसे करें जिससे परमेश्वर के घर के कार्य को फायदा हो। इसके बजाय, वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा किए बिना या सत्य सिद्धांतों को खोजे बिना अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार कार्य करना चाहते हैं।) अन्य लोग इस मामले को कैसे देखते हैं? (कुछ भी होने पर हमेशा दिखावा करना एक शैतानी स्वभाव है। वे यह नहीं सोचते कि अपने कर्तव्य कैसे निभाएँ और परमेश्वर की गवाही कैसे दें; वे हमेशा खुद की गवाही देना चाहते हैं, और यह रास्ता सरासर गलत है।) यह शुरुआत सरासर गलत है, इसमें कोई शक नहीं। तो, यह किस प्रकार गलत है? यह ऐसी समस्या है जिसका खंडन करने में तुम सभी असमर्थ हो। ऐसा लगता है कि तुम सभी दमित महसूस कर रहे हो, और तुम सभी अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करने के लिए अपनी विशेषज्ञता प्रदर्शित करना चाहते हो—क्या यह सही नहीं है? अविश्वासियों के बीच एक कहावत है, और यह क्या है? “एक बुजुर्ग औरत तुम्हें दिखाने के लिए लिपस्टिक लगाती है।” क्या “अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करने” का यही मतलब नहीं है? (हाँ।) अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करने का अर्थ है अपनी काबिलियत को प्रदर्शित करने और दिखावा करने, दूसरों के बीच प्रतिष्ठा और रुतबा हासिल करने और उच्च सम्मान पाने की चाह रखना। और कुछ नहीं तो यह अपनी क्षमताओं को प्रदर्शित करने के अवसर का उपयोग करने की चाह रखना है ताकि दूसरों को बताया और सूचित किया जा सके कि : “मेरे पास कुछ असल कौशल हैं, मैं एक साधारण व्यक्ति नहीं हूँ, मुझे नीची नजरों से मत देखो, मैं एक प्रतिभाशाली व्यक्ति हूँ।” इसके पीछे कम से कम इतना अर्थ तो है ही। तो, जब किसी के ऐसे इरादे हों और वह हमेशा अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करना चाहता हो, तो इसकी प्रकृति क्या है? वे अपना करियर बनाना चाहते हैं, अपना रुतबा बनाए रखना चाहते हैं, अन्य लोगों के बीच पाँव जमाना और प्रतिष्ठा हासिल करना चाहते हैं। यह इतनी सरल बात है। वे इसे अपना कर्तव्य निभाने के लिए या परमेश्वर के घर की खातिर नहीं कर रहे हैं, और न वे सत्य खोज रहे हैं और न ही परमेश्वर के घर के सिद्धांतों और अपेक्षाओं के अनुसार कार्य कर रहे हैं। वे इसे अपने लिए कर रहे हैं, ताकि खुद को अधिक व्यापक रूप से पहचान दिला सकें, अपनी अहमियत और प्रतिष्ठा बढ़ा सकें; वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि लोग उन्हें सुपरवाइजर या अगुआ के रूप में चुनें। एक बार जब वे अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में चुन लिए जाएँगे, तो क्या फिर उनके पास रुतबा नहीं होगा? क्या तब वे सुर्खियों में नहीं रहेंगे? यही उनका मकसद है, उनका शुरुआती बिंदु इतना सरल है—यह रुतबे के पीछे भागने से अधिक कुछ नहीं है। वे जानबूझकर रुतबे के पीछे भाग रहे हैं, और वे परमेश्वर के घर के कार्य या उसके हितों की रक्षा नहीं कर रहे हैं।
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