असफलता, पतन, परीक्षण और शोधन झेलने के तरीकों के बारे में वचन (अंश 62)
यह कहा गया है कि “वह जो अंत तक अनुसरण करता है, उसे निश्चित ही बचाया जाएगा,” लेकिन क्या इसे अभ्यास में लाना आसान है? यह आसान नहीं है, और लाल अजगर जिन लोगों का पीछा कर सताता है, वे बहुत डरपोक बन जाते हैं परमेश्वर का अनुसरण करने से डरते हैं। उनका पतन क्यों हुआ? क्योंकि उनमें सच्ची आस्था नहीं थी। कुछ लोग सत्य स्वीकार सकते हैं, परमेश्वर से प्रार्थना कर सकते हैं, उस पर निर्भर रह सकते हैं, परीक्षणों और क्लेशों में अडिग रह सकते हैं, जबकि बाकी लोग अंत तक अनुसरण नहीं कर पाते। परीक्षणों और क्लेशों के दौरान एक मुकाम पर आकर गिर पड़ते हैं, अपनी गवाही गँवा देते हैं और फिर से उठकर चल नहीं पाते। शायद प्रतिदिन होने वाली सभी चीज़ें, चाहे वे बड़ी हों या छोटी, जो तुम्हारे संकल्प को डगमगा सकती हैं, तुम्हारे दिल पर कब्ज़ा कर सकती हैं, या कर्तव्य निभाने की तुम्हारी क्षमता और आगे की प्रगति को बाधित कर सकती हैं, परिश्रमयुक्त उपचार माँगती हैं; तुम्हें उनकी सावधानीपूर्वक जाँच करनी चाहिए और सत्य का पता लगाया जाना चाहिए। जैसे-जैसे तुम अनुभव करते हो, तुम्हें इन सभी चीजों का समाधान करना चाहिए। कुछ लोग नकारात्मक होकर शिकायत करने लगते हैं, जब मुश्किलें आती हैं तो वे अपने कर्तव्य छोड़ भागते हैं और प्रत्येक नाकामयाबी के बाद वे घिसटकर वापस अपने पैरों पर उठ खड़े होने में असमर्थ होते हैं। ये सभी लोग मूर्ख हैं, जो सत्य से प्रेम नहीं करते, और वे जीवन भर के विश्वास के बाद भी उसे हासिल नहीं करेंगे। ऐसे मूर्ख अंत तक अनुसरण कैसे कर सकते थे? यदि तुम्हारे साथ एक ही बात दस बार होती है, लेकिन तुम उससे कुछ हासिल नहीं करते, तो तुम एक औसत दर्जे के, निकम्मे व्यक्ति हो। दक्ष और सच्ची काबिलियत वाले जिन लोगों के पास आध्यात्मिक समझ होती है, वे सत्य के अन्वेषक होते हैं; यदि उनके साथ कुछ दस बार घटित होता है, तो शायद उनमें से आठ मामलों में वे कुछ प्रबोधन प्राप्त करने, कुछ सबक सीखने, कुछ सत्य समझने और कुछ प्रगति कर पाने में समर्थ होंगे। जब चीज़ें दस बार किसी मूर्ख पर पड़ती हैं—किसी ऐसे पर जिसे आध्यात्मिक समझ नहीं होती है—तो इससे एक बार भी उनके जीवन को लाभ नहीं होगा, एक बार भी यह उन्हें नहीं बदलेगा, और न ही एक बार भी यह उनके बदसूरत चेहरे को जानने का कारण बनेगा, और ऐसे में यही उनके लिए अंत है। हर बार जब उनके साथ कुछ घटित होता है, तो वे गिर पड़ते हैं, और हर बार जब वे गिर पड़ते हैं, तो उन्हें समर्थन और दिलासा देने के लिए किसी और की ज़रूरत होती है; बिना सहारे और दिलासे के वे उठ नहीं सकते, और हर बार जब कुछ होता है, तो उन्हें गिरने और अपमानित होने का खतरा होता है। तो क्या उनके लिए यही अंत नहीं है? क्या ऐसे निकम्मे लोगों के बचाए जाने का कोई और आधार बचा है? परमेश्वर द्वारा मानवजाति का उद्धार उन लोगों का उद्धार है, जो सत्य से प्रेम करते हैं, उनके उस हिस्से का उद्धार है, जिसमें इच्छा-शक्ति और संकल्प हैं, और उनके उस हिस्से का उद्धार है, जो उनके दिल में सत्य और इंसाफ के लिए तड़पता है। किसी व्यक्ति का संकल्प उसके दिल का वह हिस्सा है, जो धार्मिकता, भलाई और सत्य के लिए तरसता है, और विवेक से युक्त होता है। परमेश्वर लोगों के इस हिस्से को बचाता है, और इसके माध्यम से, वह उनके भ्रष्ट स्वभाव को बदलता है, ताकि वे सत्य को समझ सकें और हासिल कर सकें, ताकि उनकी भ्रष्टता परिमार्जित हो सके, और उनका जीवन-स्वभाव रूपांतरित किया जा सके। यदि तुम्हारे भीतर ये चीज़ें नहीं हैं, तो तुमको बचाया नहीं जा सकता। यदि तुम्हारे भीतर सत्य के लिए कोई प्रेम या इंसाफ और प्रकाश के लिए कोई आकांक्षा नहीं है; यदि, जब भी तुम बुरी चीजों का सामना करते हो, तब तुम्हारे पास न तो उन्हें दूर फेंकने की इच्छा-शक्ति होती है और न ही कष्ट सहने का संकल्प; यदि, इसके अलावा, तुम्हारा जमीर सुन्न है; यदि सत्य को प्राप्त करने की तुम्हारी क्षमता भी सुन्न है, और तुम सत्य या होने वाली घटनाओं को महसूस करने में सक्षम नहीं हो; और यदि तुम सभी मामलों में विवेकहीन हो, और कोई भी मुसीबत आने पर समस्या का हल ढूँढ़ने के लिए सत्य नहीं खोज पाते हो और लगातार नकारात्मक हो रहे हो, तो तुम्हें बचाए जाने का कोई रास्ता नहीं है। ऐसे व्यक्ति के पास अपनी सिफ़ारिश करवाने के लिए ऐसा कुछ भी नहीं होता जिस पर परमेश्वर काम कर सके। उनका जमीर सुन्न होता है, उनका मन मैला होता है, और वे सत्य से प्रेम नहीं करते, न ही अपने दिल की गहराई में वे इंसाफ के लिए तरसते हैं, और परमेश्वर चाहे कितने ही स्पष्ट या पारदर्शी रूप से सत्य की बात करे, वे जरा-सी भी प्रतिक्रिया नहीं देते, मानो पहले से ही उनका हृदय मृत हो। क्या उनके लिए खेल ख़त्म नहीं हो गया है? किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसकी साँस बाक़ी हो, कृत्रिम श्वसन द्वारा बचाया जा सकता है, लेकिन अगर वह पहले से ही मर चुका हो और उसकी आत्मा उसे छोड़कर जा चुकी है, तो कृत्रिम श्वसन कुछ नहीं कर पाएगा। यदि, समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करने पर, कोई व्यक्ति पीछे हट जाता है और उनसे बचता है, तो वह सत्य नहीं खोजता, और अपने काम में नकारात्मक और सुस्त होने का चुनाव करता है, फिर उसकी असलियत उजागर कर दी जाती है। ऐसे लोगों के पास कोई अनुभवजन्य गवाही नहीं होती। वे मुफ्तखोर और व्यर्थ का बोझ होते हैं, परमेश्वर के घर में बेकार होते हैं और वे पूरी तरह अभिशप्त होते हैं। जो लोग समस्याओं के हल के लिए सत्य खोजते हैं, उन्हीं के पास आध्यात्मिक कद होता है और वही लोग दृढ़ता से गवाही दे सकते हैं। जब समस्याएँ और कठिनाइयाँ आएँ, तो तुम्हें उन पर ठंडे दिमाग से सोचना चाहिए और उन पर सही तरीके से प्रतिक्रिया देनी चाहिए और कोई एक विकल्प चुनना चाहिए। तुम्हें समस्याओं के हल के लिए सत्य का उपयोग करना सीखना चाहिए। जिन सत्यों को तुम आमतौर पर समझते हो, वे चाहे गहन हों या उथले, तुम्हें उनका उपयोग करना चाहिए। सत्य केवल वे शब्द नहीं हैं जो तुम्हारे मुंह से उस समय निकलते हैं जब तुम्हारे साथ कुछ हो जाता है, न ही वे खास तौर पर दूसरों की समस्याओं को हल करने के लिए उपयोग किए जाते हैं; इसके बजाय, उनका उपयोग तुम्हारी समस्याओं और कठिनाइयों को हल करने के लिए किया जाना चाहिए। यही सबसे महत्वपूर्ण है। जब तुम अपनी समस्याएँ हल करोगे तभी तुम दूसरों की समस्याएँ भी हल कर पाओगे। पतरस को फल क्यों कहा जाता है? क्योंकि उसमें मूल्यवान चीजें हैं, जो पूर्ण करने के लायक हैं। उसने सभी बातों में सत्य की खोज की, उसमें संकल्प था और दृढ़ इच्छाशक्ति थी; उसमें विवेक था, वह कठिनाई सहने के लिए तैयार था और दिल से सत्य से प्रेम करता था; उसने आने वाली हर चीज को थामे रखा, और हर चीज से सबक सीख सका। ये सभी बड़ी खूबियाँ हैं। यदि तुम्हारे पास इनमें से कोई भी बड़ी खूबी नहीं है, तो यह परेशानी की बात है। तुम्हारे लिए सत्य प्राप्त करना और बचाया जाना आसान नहीं होगा। यदि तुम्हें नहीं पता कि अनुभव कैसे करना है या तुम्हें कोई अनुभव नहीं है, तो तुम अन्य लोगों की कठिनाइयों को हल करने में सक्षम नहीं होगे। चूँकि तुम परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और अनुभव करने में असमर्थ हो, इसलिए तुम नहीं जानते कि अगर कुछ हो जाए तो क्या करना है, जब तुम समस्याओं का सामना करते हो तो तुम परेशान हो जाते हो और आंसू बहाने लगते हो, तुम नकारात्मक हो जाते हो और छोटी-मोटी असफलता पर भाग खड़े होते हो और तुम सही तरीके से प्रतिक्रिया नहीं दे पाते। इस कारण, तुम्हारे लिए जीवन प्रवेश पाना असंभव है। तुम जीवन प्रवेश के बिना दूसरों को पोषण कैसे दे सकते हो? लोगों के जीवन को पोषण देने के लिए, तुम्हें सत्य की स्पष्ट रूप से संगति करनी चाहिए और समस्याओं को हल करने के लिए अभ्यास के सिद्धांतों की स्पष्ट संगति करना आना चाहिए। जिसमें दिल और आत्मा है, उसे ज्यादा बताने की जरूरत नहीं है, वह थोड़ी बातों से ही समझ जाएगा। लेकिन केवल सत्य की थोड़ी सी समझ से काम नहीं चलेगा। उनके पास अभ्यास के मार्ग और सिद्धांत भी होने चाहिए। इसी से उन्हें सत्य का अभ्यास करने में मदद मिलेगी। भले ही लोगों में आध्यात्मिक समझ हो और थोड़ा-सा ही बोलने पर वे समझ जाते हों, पर यदि वे सत्य का अभ्यास नहीं करते तो जीवन प्रवेश नहीं होगा। यदि वे सत्य नहीं स्वीकार पाते, तो उनके लिए सब खत्म है और वे कभी भी सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश नहीं कर पाएँगे। तुम कुछ लोगों का हाथ पकड़कर उन्हें सिखा सकते हो, उस समय तो लगेगा कि वे समझ रहे हैं, लेकिन जैसे ही तुम उनका हाथ छोड़ते हो, वे फिर से भ्रमित हो जाते हैं। यह ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसमें आध्यात्मिक समझ हो। चाहे कोई भी समस्या हो, अगर तुम नकारात्मक और कमजोर होते हो, तुम्हारे पास कोई गवाही नहीं होती और तुम्हें जो करना चाहिए उसमें सहयोग नहीं करते, जिसमें सहयोग करना चाहिए उसमें सहयोग नहीं करते, तो इससे साबित होता है कि तुम्हारे दिल में परमेश्वर नहीं है, तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो जो सत्य से प्रेम करता है। पवित्र आत्मा का कार्य लोगों को चाहे जैसे प्रेरित करे, कई वर्षों तक परमेश्वर के कार्य का अनुभव करके, इतने सारे सत्य सुनकर, थोड़ा जमीर रखकर और आत्म-संयम पर भरोसा करके ही, लोगों को कम से कम न्यूनतम मानकों को पूरा करने में सक्षम होना चाहिए और अपने जमीर से फटकार नहीं खानी चाहिए। लोगों को उतना सुस्त और कमजोर नहीं होना चाहिए जितना वे अब हैं, उनका ऐसी स्थिति में होना अकल्पनीय है। शायद तुम लोगों के पिछले कुछ वर्ष भ्रम की अवस्था में, सत्य का अनुसरण और कोई प्रगति न करते हुए गुजरे हैं। यदि ऐसा नहीं है, तो तुम अभी भी इतने सुन्न और नीरस कैसे हो सकते हो? तुम्हारा इस तरह होना, पूरी तरह से तुम्हारी मूर्खता और अज्ञानता के कारण है, इसके लिए तुम किसी और को दोष नहीं दे सकते। सत्य दूसरों के मुकाबले कुछ खास लोगों के प्रति पक्षपातपूर्ण नहीं होता। यदि तुम सत्य नहीं स्वीकारते और समस्याओं को हल करने के लिए सत्य नहीं खोजते, तो तुम कैसे बदल सकते हो? कुछ लोगों को लगता है कि उनमें बहुत कम काबिलियत है और उनमें समझने की क्षमता नहीं है, इसलिए वे खुद को सीमित कर लेते हैं, उन्हें लगता है कि वे चाहे कितना भी सत्य का अनुसरण कर लें, परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर सकते। वे सोचते हैं कि चाहे वे कितनी भी कोशिश कर लें, सब बेकार है, और इसमें बस इतना ही है, इसलिए वे हमेशा नकारात्मक होते हैं, परिणामस्वरूप, बरसों परमेश्वर में विश्वास रखकर भी, उन्हें सत्य प्राप्त नहीं होता। सत्य का अनुसरण करने के लिए कड़ी मेहनत किए बिना, तुम कहते हो कि तुम्हारी क्षमता बहुत खराब है, तुम हार मान लेते हो और हमेशा एक नकारात्मक स्थिति में रहते हो। नतीजतन उस सत्य को नहीं समझते जिसे तुम्हें समझना चाहिए या जिस सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हो, उसका अभ्यास नहीं करते—क्या तुम अपने लिए बाधा नहीं बन रहे हो? यदि तुम हमेशा यही कहते रहो कि तुममें पर्याप्त क्षमता नहीं है, क्या यह अपनी जिम्मेदारी से बचना और जी चुराना नहीं है? यदि तुम कष्ट उठा सकते हो, कीमत चुका सकते हो और पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त कर सकते हो, तो तुम निश्चित ही कुछ सत्य समझकर कुछ वास्तविकताओं में प्रवेश कर पाओगे। यदि तुम परमेश्वर से उम्मीद न करो, उस पर निर्भर न रहो और बिना कोई प्रयास किए या कीमत चुकाए, बस हार मान लेते हो और समर्पण कर देते हो, तो तुम किसी काम के नहीं हो, तुममें अंतरात्मा और विवेक का एक कण भी नहीं है। चाहे तुम्हारी क्षमता खराब हो या अत्युत्तम हो, यदि तुम्हारे पास थोड़ा-सा भी जमीर और विवेक है, तो तुम्हें वह ठीक से पूरा करना चाहिए, जो तुम्हें करना है और जो तुम्हारा ध्येय है; पलायनवादी होना एक भयानक बात है और परमेश्वर के साथ विश्वासघात है। इसे सही नहीं किया जा सकता। सत्य का अनुसरण करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है, और जो लोग बहुत अधिक नकारात्मक या कमज़ोर होते हैं, वे कुछ भी संपन्न नहीं करेंगे। वे अंत तक परमेश्वर में विश्वास नहीं कर पाएँगे, और, यदि वे सत्य को प्राप्त करना चाहते हैं और स्वभावगत बदलाव हासिल करना चाहते हैं, तो उनके लिए अभी भी उम्मीद कम है। केवल वे, जो दृढ़-संकल्प हैं और सत्य का अनुसरण करते हैं, ही उसे प्राप्त कर सकते हैं और परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जा सकते हैं।
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