परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 530

आज, कुछ लोग परमेश्वर के द्वारा इस्तेमाल किए जाने का लगातार प्रयास करते हैं, किन्तु जब उन पर विजय पा लिया जाता है उसके बाद उन्हें सीधे तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। जहाँ तक आज बोले गए वचनों की बात है, यदि, जब परमेश्वर लोगों को इस्तेमाल करता है, तू अभी भी उन्हें पूरा करने में असमर्थ है, तो तुझे सिद्ध नहीं बनाया गया है। दूसरे शब्दों में, जब मनुष्य को सिद्ध बनाया जाता है तब उस समयावधि के अंत का आगमन यह निर्धारित करेगा कि परमेश्वर के द्वारा मनुष्य को ख़त्म किया जाएगा या इस्तेमाल किया जाएगा। ऐसे लोग जिन पर विजय पा लिया गया है वे निष्क्रियता और नकारात्मकता के उदाहरणों से बढ़कर और कुछ नहीं हैं; वे नमूने और आदर्श हैं, किन्तु वे सुर में सुर मिलानेवाले से बढ़कर और कुछ नहीं हैं। जब मनुष्य के पास जीवन होता है, केवल तभी उसका स्वभाव बदलता है, और जब वह भीतरी और बाहरी परिवर्तन हासिल कर लेता है तो उसे पूरी तरह सिद्ध बना दिया जाएगा। आज, तुम में से कौन चाहता है कि उस पर विजय पा लिया जाए, या उसे सिद्ध बना दिया जाए? तू किसे हासिल करना चाहता है? सिद्ध किए जाने की कितनी शर्तों को तूने पूरा किया है? तूने किसे पूरा नहीं किया है? तुझे स्वयं को सुसज्जित कैसे करना चाहिए, तुझे अपनी कमियों को कैसे पूरा करना चाहिए? तुझे सिद्ध किए जाने के पथ पर कैसे प्रवेश करना चाहिए? तुझे स्वयं को पूरी तरह कैसे सौंपना चाहिए? तू कहता है कि तुझे सिद्ध बनाया जाए, तो क्या तू पवित्रता का अनुसरण करता है? क्या तू ताड़ना और न्याय का अनुसरण करता है ताकि तुझे परमेश्वर के द्वारा सुरक्षित किया जा सके? तू शुद्ध होने का अनुसरण करता है, तो क्या तू ताड़ना और न्याय को स्वीकार करने के लिए तैयार है? तू परमेश्वर को जानने की बात कहता है, किन्तु क्या तेरे पास उसकी ताड़ना और उसके न्याय का ज्ञान है? आज, अधिकतर कार्य जो मैं तुझ पर करता हूँ वह ताड़ना और न्याय है; उस कार्य के विषय में तेरा ज्ञान क्या है, जिसे तेरे ऊपर किया गया है? क्या वह ताड़ना और न्याय जिसका तूने अनुभव किया है उसने तुझे शुद्ध किया है? क्या इसने तुझे परिवर्तित किया है? क्या इसका तेरे ऊपर कोई प्रभाव पड़ा है? क्या तू आज के बहुत से कार्यों—शाप, न्याय, और रहस्यों का खुलासा—से थक गया है, या क्या तू महसूस करता है कि वे तेरे लिए बहुत लाभदायक हैं? तू परमेश्वर से प्रेम करता है, किन्तु तू किस कारण उस से प्रेम करता है? क्या तू उस से प्रेम करता है क्योंकि तूने थोड़ा सा अनुग्रह प्राप्त किया है, या क्या तू शांति और आनन्द प्राप्त करने के बाद उस से प्रेम करता है? क्या तू उसकी ताड़ना और उसके न्याय के द्वारा शुद्ध किए जाने के बाद उस से प्रेम करता है? वह वास्तव में कौन सी बात है जो तुझे परमेश्वर से प्रेम करने के लिए प्रेरित करती है? सिद्ध होने के लिए पतरस ने वास्तव में किन शर्तों को पूरा किया था? सिद्ध होने के बाद, वह कौन सा निर्णायक तरीका था जिसके तहत उसे प्रकट किया गया था? क्या उसने प्रभु यीशु से इसलिए प्रेम किया क्योंकि वह उसकी लालसा करता था, या इसलिए क्योंकि वह उसे देख नहीं सकता था, या इसलिए क्योंकि उसकी निन्दा की गई थी? या क्या वह प्रभु यीशु से कहीं ज़्यादा प्रेम इसलिए किया क्योंकि परमेश्वर ने क्लेशों के कष्ट को स्वीकार किया था, और स्वयं की अशुद्धता और अनाज्ञाकारिता को जान पाया था, और प्रभु की पवित्रता को जान पाया था? क्या परमेश्वर की ताड़ना और उसके न्याय के कारण परमेश्वर के प्रति उसका प्रेम और अधिक शुद्ध हो गया था, या किसी और कारण से? वह क्या था? तू परमेश्वर के अनुग्रह के कारण उस से प्रेम करता है और इसलिए क्योंकि आज उसने तुझे थोड़ी सी आशीष दी है। क्या यह सच्चा प्रेम है? तुझे परमेश्वर से प्रेम कैसे करना चाहिए? उसके धर्मी स्वभाव को देखने के बाद, क्या तुझे उसकी ताड़ना और उसके न्याय को स्वीकार करना चाहिए, और क्या तुझे उस से सचमुच में प्रेम करने के योग्य होना चाहिए, कुछ इस तरह कि तू पूरी तरह विश्वस्त हो जाता है, और क्या तेरे पास उसका ज्ञान होना चाहिए? पतरस के समान, क्या तू कह सकता है कि तू परमेश्वर से पर्याप्त प्रेम नहीं कर सकता है? क्या ताड़ना और न्याय के बाद जीत लिए जाने के लिए तू इसका अनुसरण करता है, या ताड़ना और न्याय के बाद शुद्ध, सुरक्षित और सँभाले जाने के लिए अनुसरण करता है? तू इन में से किसका अनुसरण करता है? क्या तेरा जीवन अर्थपूर्ण है, या निराधार और बिना किसी मूल्य का है? क्या तुझे शरीर चाहिए, या तुझे सत्य चाहिए? तू न्याय की इच्छा करता है या राहत की? परमेश्वर के कार्यों का इतना अनुभव करने के बाद, और परमेश्वर की पवित्रता और धार्मिकता को देखने के बाद, तुझे किस प्रकार अनुसरण करना चाहिए? तुझे इस पथ पर किस प्रकार चलना चाहिए? तू परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम को व्यवहार में कैसे ला सकता है? क्या परमेश्वर की ताड़ना और न्याय ने आपमें कोई असर डाला है? तुझ में परमेश्वर की ताड़ना और उसके न्याय का ज्ञान है कि नहीं यह इस पर निर्भर होता है कि तू किस प्रकार का जीवन जीता है, और तू किस सीमा तक परमेश्वर से प्रेम करता है! तेरे होंठ कहते हैं कि तू परमेश्वर से प्रेम करता है, फिर भी तू जिस प्रकार का जीवन जीता है वह पुराना और भ्रष्ट स्वभाव का है; तुझ में परमेश्वर का कोई भय नहीं है, और तेरे पास विवेक तो बिलकुल भी नहीं है। क्या ऐसे लोग परमेश्वर से प्रेम करते हैं? क्या ऐसे लोग परमेश्वर के प्रति वफादार होते हैं? क्या वे ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर की ताड़ना और उसके न्याय को स्वीकार करते हैं? तू कहता है कि तू परमेश्वर से प्रेम करता है और उस पर विश्वास करता है, फिर भी तू अपनी धारणाओं को नहीं छोड़ता है। तेरे कार्य में, तेरे लिखने में, उन शब्दों में जो तू बोलता है, और तेरे जीवन में परमेश्वर के प्रति तेरे प्रेम का कोई प्रकटीकरण नहीं है, और परमेश्वर के प्रति कोई आदर नहीं है। क्या यह एक ऐसा इंसान है जिसने ताड़ना और न्याय को प्राप्त किया है? क्या ऐसा कोई इंसान पतरस के समान हो सकता है? क्या वे लोग जो पतरस के समान हैं उनके पास केवल ज्ञान होता है, परन्तु वे उसे जीते नहीं हैं? आज, वह कौन सी शर्त है जिसकी जरूरत मनुष्य को है जिस से वह एक वास्तविक जीवन बिता सके? क्या पतरस की प्रार्थनाएँ उसके मुँह से निकलने वाले शब्दों से बढ़कर और कुछ नहीं थे? क्या वे उसके हृदय की गहराईयों से निकले हुए शब्द नहीं थे? क्या पतरस ने केवल प्रार्थना किया था, और सत्य को व्यवहार में नहीं लाया था? तेरा अनुसरण किसके लिए है? तुझे परमेश्वर की ताड़ना और उसके न्याय के दौरान अपने आपको किस प्रकार सुरक्षित और शुद्ध रखना चाहिए था? क्या परमेश्वर की ताड़ना और न्याय से मनुष्य को कोई लाभ नहीं है? क्या सभी न्याय सज़ा है? क्या ऐसा हो सकता है कि केवल शांति एवं आनन्द, और केवल भौतिक आशीषें एवं क्षणिक राहत ही मनुष्य के जीवन के लिए लाभदायक हैं? यदि मनुष्य एक सुहावने और आरामदेह वातावरण में रहे, बिना किसी न्यायिक जीवन के, तो क्या उसे शुद्ध किया जा सकता है? यदि मनुष्य बदलना और शुद्ध होना चाहता है, तो उसे सिद्ध किए जाने को कैसे स्वीकार करना चाहिए? आज तुझे कौन सा पथ चुनना चाहिए?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान

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