मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग दो) खंड एक

II. मसीह-विरोधियों के हित

आज, हम मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों के मद नौ पर संगति जारी रखेंगे। उनकी अभिव्यक्तियों का नौवाँ मद कुछ इस प्रकार है : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं। पिछली बार, हमने इसके एक छोटे से हिस्से पर संगति की थी, बस अपना विषय शुरू किया था और इस बारे में संगति की थी कि हित क्या हैं, जो कि पहला मुद्दा है। दूसरे मुद्दे के लिए, हमने इस बारे में संगति की थी कि लोगों के हित क्या हैं और उनके हितों का सार क्या है। तीसरा मुद्दा जिसके बारे में हमने संगति की थी वह यह था कि परमेश्वर के हित क्या हैं और परमेश्वर के हितों का सार क्या है—यह कमोबेश उन तीन मुद्दों की विषय-वस्तु थी जिस पर हमने संगति की थी। पिछली बार हम अनिवार्य रूप से अवधारणात्मक सत्यों के बारे में संगति करते हुए हितों के विभिन्न पहलुओं की परिभाषा पर पहुँचे थे और लोगों को बुनियादी अवधारणाओं की समझ प्रदान की थी। इस बार हम उपरोक्त विषय-वस्तु पर और बात नहीं करेंगे, क्योंकि अपने नौवें मद के लिए हम जिस विषय-वस्तु के बारे में संगति करेंगे उसका उद्देश्य मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों पर प्रकाश डालना है। इसलिए, हम इस मद की अपनी संगति में मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों पर ध्यान देना जारी रखेंगे। हम मुख्य रूप से मसीह-विरोधियों से संबंधित विभिन्न हितों के प्रति उनके रवैये और व्यवहार का गहन-विश्लेषण करेंगे, मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार और स्वभाव की पहचान करने और इस दृष्टिकोण से उनका गहन-विश्लेषण करने की कोशिश करेंगे। हम इस विषय के साथ संगति शुरू करेंगे कि मसीह-विरोधियों की नजरों में, उनके हितों के लिए कौन-सी चीजें प्रासंगिक हैं।

मसीह-विरोधियों की नजरों में, परमेश्वर, परमेश्वर का घर और कलीसिया सिर्फ ठप्पे हैं, शायद नाम से बढ़कर और कुछ नहीं, उनका कोई वास्तविक मूल्य नहीं है। इसलिए, वे परमेश्वर, परमेश्वर के घर और कलीसिया के हितों को अवमानना की दृष्टि से देखते हैं, और वे उन्हें स्वीकारने से इनकार कर देते हैं या ध्यान देने लायक नहीं मानते हैं। इसके विपरीत, मसीह-विरोधियों के व्यक्तिगत हित उनके लिए सबसे ज्यादा महत्व रखते हैं। नतीजतन, मसीह-विरोधी अक्सर अपने व्यक्तिगत हितों के बदले में कलीसिया और परमेश्वर के घर के हितों के साथ विश्वासघात कर देते हैं। अब, आओ मसीह-विरोधियों के हितों के लिए प्रासंगिक चीजों को श्रेणियों में बाँटें और उनका अच्छी तरह से गहन-विश्लेषण करें, ताकि लोगों को हितों के मामलों पर उनके दृष्टिकोण के बारे में स्पष्ट जानकारी मिल सके। पहली बात, चाहे मसीह-विरोधियों को कैसे भी लेबल किया जाए, चाहे वे मसीह-विरोधी हों, बुरे लोग हों या ऐसे व्यक्ति हों जो सत्य का अभ्यास नहीं करते या उसके प्रति शत्रुता रखते हैं, इस तरह के लोग शून्य में नहीं रहते। वे देह में रहते हैं और उनकी जरूरतें भी सामान्य मानव जीवन वाली ही होती हैं। इसलिए, मसीह-विरोधियों जैसे लोग जो भाई-बहनों के बीच या परमेश्वर के घर और कलीसिया के भीतर रहते हैं, उनके भी अपनी सुरक्षा से जुड़े हित होते हैं। यह मसीह-विरोधियों के हितों के बारे में पहला उपखंड है—उनकी अपनी सुरक्षा। मसीह-विरोधियों के हितों के बारे में दूसरा उपखंड उनकी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा है, जो उनके अधिकार से संबंधित है। मसीह-विरोधियों के हितों के बारे में तीसरे उपखंड में उनके लाभ शामिल हैं। क्या इन तीन उपखंडों के जरिये मसीह-विरोधियों के हितों का गहन-विश्लेषण करना उनके बारे में अव्यवस्थित और सीधे तरीके से संगति करने की तुलना में ज्यादा स्पष्ट है? (बिल्कुल।) अगर मैं तुम सबसे इन तीन उपखंडों के आधार पर संगति करने के लिए कहूँ, तो क्या तुम्हारे पास कोई अंतर्दृष्टि है? क्या तुम थोड़ी समझ के बारे में संगति कर सकते हो? (मैं दूसरे उपखंड के बारे में कुछ अंतर्दृष्टियों पर चर्चा कर सकती हूँ, मगर मुझे व्यक्तिगत सुरक्षा और लाभ के बारे में ज्यादा स्पष्ट समझ नहीं है।) ठीक है, चूँकि मैं संगति कर रहा हूँ, इसलिए तुम लोग जहाँ भी स्पष्टता से बोलने में सक्षम हो, वहाँ बोल सकते हो, और तुम लोगों को जो भी अस्पष्ट लगे उसके बारे में मैं संगति करूँगा। क्या यह ठीक रहेगा? (बिल्कुल।)

क. उनकी अपनी सुरक्षा

हम अपनी संगति की शुरुआत मसीह-विरोधियों के हितों के पहले उपखंड—उनकी अपनी सुरक्षा से करेंगे। इस उपखंड का अर्थ सभी को स्पष्ट होना चाहिए; यह व्यक्ति की शारीरिक सुरक्षा के बारे में है। मुख्यभूमि चीन में, परमेश्वर में विश्वास रखने का मतलब है एक खतरनाक परिवेश में रहना। परमेश्वर का अनुसरण करने वाले हरेक व्यक्ति को रोज गिरफ्तार किए जाने, सजा पाने और बड़े लाल अजगर द्वारा क्रूर उत्पीड़न दिए जाने के जोखिम का सामना करना पड़ता है। मसीह-विरोधियों के साथ भी यही होता है। भले ही परमेश्वर के घर में उन्हें मसीह-विरोधियों के रूप में निरूपित किया जाए, धार्मिक दुनिया के साथ मिलकर बड़ा लाल अजगर, परमेश्वर की कलीसिया और उसके चुने हुए लोगों को दबाने और सताने के लिए लगातार अपनी पूरी कोशिश करता है, और बेशक, मसीह-विरोधी भी खुद को ऐसे परिवेश में पाते हैं और वे भी गिरफ्तारी के खतरे से मुक्त नहीं हो पाते। इसलिए, उन्हें अक्सर अपनी सुरक्षा की समस्या का सामना करना पड़ता है। अब सवाल उठता है कि मसीह-विरोधी अपनी सुरक्षा के मामले से कैसे निपटते हैं। इस उपखंड के लिए हम मुख्य रूप से अपनी सुरक्षा के प्रति मसीह-विरोधियों के रवैये के बारे में संगति कर रहे हैं। उनका रवैया क्या है? (वे अपनी सुरक्षा बनाए रखने के लिए भरसक प्रयास करते हैं।) मसीह-विरोधी अपनी सुरक्षा बनाए रखने के लिए हरसंभव प्रयास करते हैं। वे मन ही मन यह सोचते हैं : “मुझे अपनी सुरक्षा अवश्य सुनिश्चित करनी चाहिए। चाहे जो भी पकड़ा जाए, मैं न पकड़ा जाऊँ।” इसे लेकर, वे अक्सर प्रार्थना करने परमेश्वर के सामने आते हैं और गुहार लगाते हैं कि परमेश्वर उन्हें मुसीबत में पड़ने से बचाए। उन्हें लगता है कि चाहे कुछ भी हो, वे वास्तव में कलीसिया की अगुआई का कार्य कर रहे हैं और परमेश्वर को उनकी रक्षा करनी चाहिए। अपनी सुरक्षा की खातिर और गिरफ्तार होने से बचने के लिए, तमाम उत्पीड़न से बचने और खुद को एक सुरक्षित वातावरण में रखने के लिए मसीह-विरोधी अक्सर अपनी सुरक्षा के लिए याचना और प्रार्थना करते हैं। जब उनकी अपनी सुरक्षा की बात आती है, तभी वे वास्तव में परमेश्वर पर भरोसा और खुद को परमेश्वर को अर्पित करते हैं। बात जब इस पर आती है, तभी वे वास्तविक आस्था रखते हैं और तभी परमेश्वर पर उनका भरोसा वास्तविक होता है। कलीसिया के काम या अपने कर्तव्य के बारे में जरा-सा भी विचार न करते हुए वे केवल परमेश्वर से यह कहने के लिए प्रार्थना करने की जहमत उठाते हैं कि वह उनकी सुरक्षा करे। अपने काम में व्यक्तिगत सुरक्षा ही वह सिद्धांत होता है, जो उनका मार्गदर्शन करता है। अगर कोई स्थान सुरक्षित होता है, तो मसीह-विरोधी उस स्थान को कार्य करने के लिए चुनेगा, और बेशक, वह बहुत सक्रिय और सकारात्मक दिखाई देगा, अपनी महान “जिम्मेदारी की भावना” और “निष्ठा” दिखाएगा। अगर किसी कार्य में जोखिम होता है और उसके घटना का शिकार होने या उसे करने वाले के बारे में बड़े लाल अजगर को पता चल जाने की संभावना होती है, तो वे बहाने बना देते हैं और इससे इनकार करते हुए बचकर भागने का मौका ढूँढ़ लेते हैं। जैसे ही कोई खतरा होता है, या जैसे ही खतरे का कोई संकेत होता है, वे भाई-बहनों की परवाह किए बिना, खुद को छुड़ाने और अपना कर्तव्य त्यागने के तरीके सोचते हैं। वे केवल खुद को खतरे से बाहर निकालने की परवाह करते हैं। दिल में वे पहले से ही तैयार रह सकते हैं : जैसे ही खतरा प्रकट होता है, वे उस काम को तुरंत छोड़ देते हैं जिसे वे कर रहे होते हैं, इस बात की परवाह किए बिना कि कलीसिया का काम कैसे होगा, या इससे परमेश्वर के घर के हितों या भाई-बहनों की सुरक्षा को क्या नुकसान पहुँचेगा। उनके लिए जो मायने रखता है, वह है भागना। यहाँ तक कि उनके पास एक “तुरुप का इक्का,” खुद को बचाने की एक योजना भी होती है : जैसे ही उन पर खतरा मँडराता है या उन्हें गिरफ्तार किया जाता है, वे जो कुछ भी जानते हैं, अपनी सुरक्षा बनाए रखने के लिए वह सब कह देते हैं और खुद को पाक-साफ बताकर तमाम जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। उनके पास यह योजना तैयार रहती है। ये लोग परमेश्वर पर विश्वास करने के कारण उत्पीड़न सहने को तैयार नहीं होते; वे गिरफ्तार होने, प्रताड़ित किए जाने और दोषी ठहराए जाने से डरते हैं। सच तो यह है कि वे बहुत पहले ही अपने दिलों में शैतान के आगे घुटने टेक चुके हैं। वे शैतानी शासन की शक्ति से भयभीत हैं, और इससे भी ज्यादा वे खुद पर होने वाली यातना और कठोर पूछताछ जैसी चीजों से डरते हैं। इसलिए, मसीह-विरोधियों के साथ अगर सब-कुछ सुचारु रूप से चल रहा होता है, और उनकी सुरक्षा को कोई खतरा या उसे लेकर कोई समस्या नहीं होती, और कोई जोखिम संभव नहीं होता है, तो वे अपने उत्साह और “वफादारी,” यहाँ तक कि अपनी संपत्ति की भी पेशकश कर सकते हैं। लेकिन अगर हालात खराब हों और परमेश्वर में विश्वास रखने और अपना कर्तव्य करने के कारण उन्हें किसी भी समय गिरफ्तार किया जा सकता हो, और अगर परमेश्वर पर उनके विश्वास के कारण उन्हें उनके आधिकारिक पद से हटाया जा सकता हो या उनके करीबी लोगों द्वारा त्यागा जा सकता हो, तो वे असाधारण रूप से सावधान रहेंगे, न तो सुसमाचार का प्रचार करेंगे, न ही परमेश्वर की गवाही देंगे और न ही अपना कर्तव्य करेंगे। जब परेशानी का कोई छोटा-सा भी संकेत होता है, तो वे अपने खोल में छिपने वाले कछुए की तरह पीछे हट जाते हैं; जब परेशानी का कोई छोटा-सा भी संकेत होता है, तो वे परमेश्वर के वचनों की अपनी पुस्तकें और परमेश्वर पर विश्वास से संबंधित कोई भी चीज फौरन कलीसिया को लौटा देना चाहते हैं, ताकि खुद को सुरक्षित और हानि से बचाए रख सकें। क्या वे खतरनाक नहीं हैं? गिरफ्तार किए जाने पर क्या वे यहूदा नहीं बन जाएँगे? मसीह-विरोधी इतने खतरनाक होते हैं कि कभी भी यहूदा बन सकते हैं; इस बात की संभावना हमेशा बनी रहती है कि वे परमेश्वर से विश्वासघात करेंगे। इतना ही नहीं, वे बेहद स्वार्थी और नीच होते हैं। यह मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार से निर्धारित होता है।

कुछ लोग कह सकते हैं, “शायद ऐसी अभिव्यक्तियों वाले लोग केवल बड़े लाल अजगर के देश में, चीन के सामाजिक संदर्भ में ही पाए जाते हैं। जब तुम विदेश जाते हो, तो कोई उत्पीड़न या गिरफ्तारी नहीं होती है, इसलिए व्यक्तिगत सुरक्षा का कोई मतलब नहीं रह जाता। क्या इस विषय की अभी भी आवश्यकता है?” क्या तुम लोग सोचते हो कि इसकी आवश्यकता है? (हाँ।) विदेशों में भी, परमेश्वर के घर में कर्तव्य निभाने वाले कई लोग अक्सर ऐसे व्यवहार दिखाते हैं। जैसे ही चर्चा किसी खास देश की राजनीतिक सत्ता द्वारा, गैर-विश्वासियों या धार्मिक दुनिया द्वारा परमेश्वर के घर के खिलाफ किए गए हमलों, बदनामी और आंदोलनों की ओर मुड़ती है, कुछ लोग अंदर से बेहद डर जाते हैं और घोर कायरता महसूस करते हैं। उन्हें यह भी लग सकता है कि अगर वे परमेश्वर में विश्वास न करते तो इस समय बेहतर और ज्यादा स्वतंत्र होते, उनमें से कुछ लोग परमेश्वर में आस्था रखने पर पछताते हैं, और अपने दिलों में, कुछ लोग तो पीछे हटने के बारे में भी सोचते हैं और ऐसे विचारों पर गौर करते हैं। ऐसे लोग हर वक्त अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं, उन्हें लगता है कि इससे ज्यादा महत्वपूर्ण और कुछ नहीं है। उनके जीवन और उनकी अपनी सुरक्षा उनके दिलों की गहराई में सबसे बड़ी चिंताएँ हैं। इसलिए, जब संसार और पूरी मानवता कलीसिया और परमेश्वर के कार्य का अपमान करती है, उसे बदनाम करती है और उसकी निंदा करती है, तो ये लोग यह देखकर भी अपने दिलों में परमेश्वर के साथ खड़े नहीं होते हैं। बल्कि, जब ये चीजें होती हैं, जब वे परमेश्वर की बदनामी होते और उसकी निंदा होते सुनते हैं, तो वे अंदर-ही-अंदर परमेश्वर के विरोध में खड़े होते हैं। वे तत्परता से खुद को परमेश्वर, उसके घर और कलीसिया से अलग रखना चाहते हैं। इसके अलावा, ऐसे पलों में, यह स्वीकारना कि वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, उनके लिए मुश्किल और दर्दनाक कार्य होता है। वे हर हाल में परमेश्वर, उसके घर या कलीसिया से सभी संबंध तोड़ लेना चाहते हैं। ऐसे समय में, वे असहज और शर्मिंदा तक महसूस करते हैं और परमेश्वर के घर का सदस्य होने के नाते अपना चेहरा दिखाने में भी उन्हें संकोच होता है। क्या ऐसे लोग वास्तव में परमेश्वर के अनुयायी हैं? क्या उन्होंने वास्तव में परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए सब कुछ त्याग दिया है? (नहीं।) जब लोग मुख्यभूमि चीन में परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, तो उन्हें अक्सर उत्पीड़न और गिरफ्तारी का सामना करना पड़ता है और वे अक्सर व्यक्तिगत सुरक्षा की समस्याओं का भी सामना करते हैं; भले ही विदेशों का परिवेश इतना बुरा नहीं है, फिर भी लोगों को समान परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। वे धार्मिक दुनिया से बदनामी और निंदा का सामना करते हैं, और उन्हें कलीसिया के प्रति विभिन्न देशों की बेरुखी या उनको न समझे जाने के बयानों से जूझना पड़ता है। कुछ लोग असमंजस में होते हैं और यहाँ तक कि उन्हें इस बात पर भी अनिश्चितता और संदेह होता है कि क्या परमेश्वर का कार्य सच्चा है, वे परमेश्वर के सही या गलत होने पर और ज्यादा सवाल उठाते हैं। क्योंकि वे अक्सर अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं, इसलिए वे परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्यों को स्थिर और सहज दिल के साथ नहीं कर पाते हैं। क्या इन लोगों ने वास्तव में अपना जीवन परमेश्वर को समर्पित कर दिया है? (नहीं, उन्होंने नहीं किया है।) कुछ लोग तो यह भी सोचते हैं, “विदेश आने का मतलब है बड़े लाल अजगर के चंगुल से बच निकलना, है कि नहीं? विदेशों में धार्मिक स्वतंत्रता है न? सब कुछ स्वतंत्र और आजाद है न? अब जबकि परमेश्वर ने हमें अपने कर्तव्य निभाने के लिए विदेश भेजा है, तो हमें अभी भी उन्हीं कठोर परिस्थितियों का सामना क्यों करना पड़ता है? हमें अभी भी ये सबक क्यों सीखने पड़ते हैं और विदेश में इस पीड़ा से क्यों जूझना पड़ता है?” कुछ लोगों के दिलों में संदेह होता है, और कुछ लोग न केवल संदेह करते हैं बल्कि विरोध भी करते हैं, और उनके मन में इस तरह के सवाल होते हैं, “चूँकि यह सच्चा मार्ग है, चूँकि यह परमेश्वर का कार्य है, तो हमें, जो अपना कर्तव्य निभाने में वफादार हैं, जिन्होंने परमेश्वर की खातिर खुद को खपाने के लिए सब कुछ त्याग दिया है, इस संसार में ऐसा असमान व्यवहार क्यों सहना पड़ता है?” वे नहीं समझते हैं। और क्योंकि वे समझते नहीं हैं और अपनी सुरक्षा को सबसे ज्यादा प्राथमिकता देते हैं, इसलिए वे इस समझ की कमी को परमेश्वर के प्रति शिकायतों और सवालों में बदल देते हैं। ऐसा ही होता है न? (हाँ।) विदेशों में कुछ लोग अपने कर्तव्यों को करने में जोखिम उठाने से भी डरते हैं। अगर उन्हें कोई ऐसा काम सौंपा जाता है जिसमें थोड़ा जोखिम शामिल है, तो वे ऐसे बहाने ढूँढ़ते हैं, “मैं इस कर्तव्य के लिए उपयुक्त नहीं हूँ। मेरा परिवार अभी भी मुख्यभूमि चीन में है, और अगर बड़े लाल अजगर ने मुझे ढूँढ़ लिया, तो क्या यह मेरे लिए परेशानी का कारण नहीं होगा?” वे ऐसे कर्तव्यों को निभाने से इनकार करते हैं। वे खुद को बचाने, अपनी सुरक्षा को बनाए रखने और अपनी जान बचाने को चुनते हैं। वे खुद को पूरी तरह समर्पित करने, सब कुछ त्याग देने और अपने कर्तव्यों को स्वीकारने के लिए सब कुछ त्यागने के बजाय खुद के लिए एक रास्ता छोड़ देते हैं। वे इसे हासिल नहीं कर सकते। जब उनकी अपनी सुरक्षा की बात आती है तो उनके व्यवहार कुछ ऐसे ही होते हैं। कुछ लोग अपने दिलों में बेचैनी महसूस करते हैं और अक्सर इस बारे में प्रार्थना करते हैं। कुछ लोग यह सोचकर अक्सर डर और कायरता महसूस करते हैं कि शैतान की ताकतें बहुत शक्तिशाली हैं और उनके जैसा एक साधारण व्यक्ति इनका प्रतिरोध कैसे कर सकता है? इसलिए, वे अक्सर इस बारे में डरते और चिंता करते रहते हैं। कुछ लोगों को तो यह भी लगता है कि अगर उन्हें गिरफ्तार किया गया, तो कलीसिया या परमेश्वर का घर कुछ भी नहीं कर पाएगा, अगर कुछ हुआ तो कोई भी प्रभावी नहीं होगा। इसलिए, वे खुद को सुरक्षित रखना सबसे जरूरी समझते हैं। इसलिए, जब उन्हें आगे बढ़कर जोखिम भरा कर्तव्य करना पड़ता है, तो वे खुद को छिपा लेते हैं, और कोई भी उन्हें मना नहीं सकता। वे सक्षम न होने का दावा करते हैं, परमेश्वर के घर द्वारा उन्हें सौंपे गए महत्वपूर्ण कर्तव्यों से बचने के लिए हर तरह के बहाने और तर्क ढूँढ़ते हैं। अगर परिवेश अच्छा हो, तो शायद ये लोग एक बड़ी भीड़ के सामने किसी सार्वजनिक जगह पर माइक्रोफोन के साथ खड़े होकर चिल्लाएँ भी, “मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का सदस्य हूँ। मैं आशा करता हूँ कि हर कोई आकर सच्चे मार्ग की जाँच कर सकेगा।” जब उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा पर कोई जोखिम न हो तो वे निडर होकर ऐसा कर सकते हैं। जब किसी खतरे या किसी ऐसी स्थिति का थोड़ा-सा भी संकेत मिलता है जिसमें उनकी अपनी सुरक्षा शामिल होती है, या जब अचानक परिस्थितियाँ सामने आती हैं, तो उनका उत्साह गायब हो जाता है, उनकी “निष्ठा” गायब हो जाती है, और उनकी “आस्था” फीकी पड़ जाती है। वे बस इधर-उधर भागना जानते हैं, हमेशा कुछ छोटे-मोटे, पर्दे के पीछे वाले काम खोजने की कोशिश करते हैं, उन कार्यों और कर्तव्यों को दूसरों पर थोपते रहते हैं जिनमें उन्हें आगे बढ़कर काम करना पड़े और अपनी गर्दन जोखिम में डालनी पड़े। जैसे ही परिवेश सुधरता है, वे फिर से मंच के मसखरों की तरह वापस आ जाते हैं। वे वापस क्यों प्रकट होते हैं? अपना दिखावा करने के लिए, लोगों को अपने अस्तित्व के बारे में बताने के लिए, परमेश्वर को अपना उत्साह दिखाने के लिए, उस पल परमेश्वर को अपनी निष्ठा दिखाने के लिए, और साथ ही, जो कुछ उन्होंने पहले किया था उसकी भरपाई करने के लिए, वे हर हाल में सब कुछ ठीक करने की कोशिश करते हैं। मगर, जैसे ही किसी मुसीबत या परिवेश में बदलाव के संकेत मिलते हैं, तो ये लोग फिर से गायब हो जाते और छिप जाते हैं।

जब सुसमाचार कार्य फैलना बस शुरू ही हुआ था, तब सुसमाचार का प्रचार करना काफी मुश्किल था। उस समय, ऐसे ज्यादा लोग नहीं थे जो सुसमाचार का प्रचार कर सकें, और जो यह काम कर सकते थे, सत्य के बारे में उनकी समझ काफी उथली थी। वे लोगों की धार्मिक धारणाओं का भेद अच्छी तरह से नहीं पहचान पाते थे, और लोगों को प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण था। इसके अलावा, सुसमाचार का प्रचार करने में जोखिम भी था। जब कुछ हद तक अच्छी मानवता वाले लोगों से तुम्हारा सामना होता था, तो ज्यादा से ज्यादा, वे बस इसे स्वीकारने से मना कर देते थे, और बात वहीं खत्म कर देते थे, मगर वे तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचाते थे या तुम्हारा अपमान नहीं करते थे। अगर तुम उनसे संपर्क में रहते, तो उन्हें प्राप्त करने की उम्मीद अभी भी बनी रहती थी, जिससे कुछ परिणाम मिल सकते थे। लेकिन, जब तुम्हारा सामना बुरे लोगों या विभिन्न संप्रदायों के पादरियों और एल्डरों से होता था, तो ये लोग न केवल स्वीकारने से इनकार करते थे, बल्कि मिलकर तुम पर हमला भी करते थे, तुम्हें अपने पापों को कबूलने के लिए मजबूर करते थे, और अगर तुम ऐसा नहीं करते, तो वे शायद तुमसे मारपीट भी कर सकते थे। अधिक गंभीर मामलों में, वे शायद पुलिस को तुम्हारी रिपोर्ट कर देते और पुलिस के हवाले भी कर देते थे, जिससे तुम्हें किसी भी समय हिरासत में लिए जाने का खतरा होता था। कुछ कलीसिया अगुआ इन मामलों से बेबस नहीं होते थे। जब उन्हें अपना कर्तव्य करना होता था, वे कर्तव्य करना जारी रखते थे और यहाँ तक कि सुसमाचार का प्रचार करने और परमेश्वर की गवाही देने में सबकी अगुआई करते थे। हालाँकि, कुछ तथाकथित अगुआ या झूठे अगुआ इस तरह से काम नहीं करते थे। जब उन्हें ऐसे खतरों का सामना करना पड़ता, तो वे खुद जाने के बजाय दूसरों को भेजते थे। मैंने एक अगुआ के बारे में सुना था, जिसे पता चला कि एक संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता किसी संप्रदाय का अगुआ है। वह किसी और को उसे सुसमाचार का प्रचार करने का काम सौंपना चाहती थी। इस पर विचार करने के बाद, जब उसे कोई सही व्यक्ति नहीं मिला तो उसने सोचा कि खुद जाना ही अच्छा होगा। मगर उसे खतरे का डर था और वह जाना नहीं चाहती थी, इसलिए उसने अपनी जगह अठारह या उन्नीस साल की एक युवा बहन के जाने की व्यवस्था की। तुम सबको क्या लगता है? क्या उसे इस युवा बहन के जाने की व्यवस्था करनी चाहिए थी? (नहीं करनी चाहिए थी।) क्यों नहीं करनी चाहिए थी? (क्योंकि संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता अनेक धार्मिक धारणाओं वाले किसी संप्रदाय का अगुआ था। युवा बहन का आध्यात्मिक कद छोटा था, सत्य की उसकी समझ उथली थी, वह संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता की समस्याएँ हल करने के लिए सत्य के बारे में संगति नहीं कर सकती थी, और न केवल वह उसका मत-परिवर्तन करने में सक्षम नहीं हुई होती, बल्कि खुद भी गुमराह हो गई होती।) जितनी उसकी उम्र थी उसके हिसाब से यह युवा बहन वास्तव में कितना सत्य समझ सकती थी? उसे बाइबल का कितना ज्ञान था? इस बात की कितनी संभावना है कि वह उस संप्रदाय के अगुआ का धर्म-परिवर्तन कर देती? उसकी उम्र को देखें तो यकीनन उसे सुसमाचार प्रचार करने का ज्यादा अनुभव नहीं था। इसके अलावा, वह अभी-अभी बड़ी हुई थी और उसके पास अनुभव की कमी थी। क्या वह बड़ों की धारणाओं, विचारों और कठिनाइयों को समझ सकती थी? (नहीं, वह नहीं समझ सकती थी।) बिल्कुल नहीं। अपनी उम्र में, वह बड़ों के विचारों से निपटने में सक्षम नहीं थी। मुझे बताओ, उसकी उम्र को देखें, तो क्या यह युवा बहन सर्वोत्तम विकल्प थी? (नहीं थी।) वह सर्वोत्तम विकल्प नहीं थी। तो, युवा बहन को भेजने में, क्या इस अगुआ का इरादा सही था? (उसका इरादा सही नहीं था।) उसका इरादा सही नहीं था। उसे युवा बहन को नहीं भेजना चाहिए था। बाद में, जब युवा बहन ने उस संप्रदाय के अगुआ से संपर्क किया और पाया कि वह अच्छा व्यक्ति नहीं है, तो उसने अपनी अगुआ को वापस उसकी रिपोर्ट की, उसे बताया कि वह बहुत डर गई है और फिर से वहाँ जाने की हिम्मत नहीं कर सकेगी। इस अगुआ ने उस पर दबाव डालते हुए जोर देकर कहा, “नहीं, यह तुम्हारा कर्तव्य है, और तुम्हें जाना ही होगा!” युवा बहन यह कहते हुए रो पड़ी, “यह मेरा कर्तव्य है, और मुझे जाना चाहिए, मगर मुझसे यह नहीं होगा, मैं यह नहीं कर सकती।” फिर भी, इस अगुआ ने नरमी नहीं दिखाई और कहती रही, “भले ही तुम यह न कर सको, पर तुम्हें जाना ही होगा; कोई और नहीं है, इसलिए तुम्हें ही जाना होगा!” तुम सबको क्या लगता है कि यह किस किस्म की अगुआ है? खतरा सामने देखकर न सिर्फ उसने अपनी रक्षा की, बल्कि खुद पीछे हटते हुए उसने दूसरों को भी खतरे में डाल दिया। यहाँ तक कि ऐसी परिस्थितियों में भी जब इस युवा बहन ने अपनी असमर्थता व्यक्त की और डर के मारे रो पड़ी, तब भी वह नहीं मानी। यह किस किस्म की दुष्ट है? क्या यह इंसान है? (नहीं।) यह इंसान नहीं है। उसने अपने भाई-बहनों की सुरक्षा के बारे में नहीं सोचा, सिर्फ अपने बारे में सोचा। उसने अपने हित के लिए दूसरों की सुरक्षा का सौदा तक किया, ठीक वैसे ही जैसे जुआ खेलने वाले माता-पिता, जब अपना सारा पैसा हार जाते हैं और उनके पास कुछ नहीं बचता, तो वे अपने कर्ज चुकाने के लिए अपनी बेटियों तक को गिरवी रख देते हैं, ताकि वे मुश्किल समय का सामना कर सकें और आपदा से बच सकें, अपनी खुशी के बदले में वे अपने सबसे प्रिय लोगों की बलि चढ़ा देते हैं। यह अगुआ कैसी दुष्ट है? क्या उसमें कोई मानवता बची है? (नहीं।) उसमें रत्ती भर भी मानवता नहीं है। इस व्यवहार को देखते हुए, क्या इस तरह के लोगों को मसीह-विरोधियों के रूप में निरूपित किया जा सकता है? (हाँ, रखा जा सकता है।) बिल्कुल रखा जा सकता है! कुछ लोग कह सकते हैं, “वे जो भी कर रहे हैं वह कलीसिया के कार्य की खातिर कर रहे हैं, सुसमाचार का प्रचार करने के लिए कर रहे हैं। क्या उनका इरादा अच्छा नहीं है? क्या वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा के लिए ऐसा नहीं कर रहे हैं? उन्हें मसीह-विरोधियों के रूप में कैसे निरूपित किया जा सकता है?” क्या किसी ने कभी इस तरह से सोचा है? क्या यह दलील दी जा सकती है? (नहीं, नहीं दी जा सकती।) तो, मुझे बताओ, इस समस्या की प्रकृति क्या है? (इस अगुआ ने, अपने हितों और सुरक्षा की खातिर, युवा बहन के जीवन और सुरक्षा का सौदा किया, यानी उसने जानबूझकर उसे गड्ढे में धकेल दिया—उसकी मानवता बहुत दुर्भावनापूर्ण है।) ज्यादा बेबाकी से कहें, तो इस अगुआ ने यह जानते हुए कि युवा बहन इस कार्य के लिए पूरी तरह से अक्षम थी, खुद को बचाने के लिए यह व्यवस्था की। साथ ही, उसने अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए ऐसा किया, अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों को पाने के लिए दूसरे के हितों और सुरक्षा का बलिदान किया। यही उसका इरादा था। उसने इस कार्य के लिए सबसे अच्छा व्यक्ति ढूँढ़ने के लिए इस बात पर बिल्कुल विचार नहीं किया कि कौन इस काम को कर पाएगा, कौन इस व्यक्ति का मत-परिवर्तन कर पाएगा, या कौन इस काम को प्रभावी ढंग से कर पाएगा। उसके क्रियाकलापों का सार अपना कर्तव्य निभाना या अपनी निष्ठा दिखाना या जिम्मेदारी निभाना नहीं था, बल्कि अपने वरिष्ठों को जवाब देने में सक्षम होना और दूसरों के हितों का त्याग करके खुद को बचाना और यहाँ तक कि दूसरों को नुकसान पहुँचाना भी था। उसने खुद को बचाने और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए इस तरह से काम किया जिससे दूसरों को नुकसान हुआ—क्या यह इसका सार नहीं है? (है।) यही इसका सार है। इसलिए, इस अगुआ के क्रियाकलापों को मसीह-विरोधी के क्रियाकलापों के रूप में निरूपित किया जा सकता है। क्या यही मामले की जड़ नहीं है? (हाँ, यही है।) बिल्कुल यही बात है। अगर कोई उपयुक्त उम्मीदवार नहीं था, और यह युवा बहन वहाँ नहीं होती, और अगर उसे उस संप्रदाय के अगुआ का मत-परिवर्तन करने के लिए खुद जाने को कहा जाता, तो क्या वह जाती? क्या वह यह कह पाती, “अगर कोई उपयुक्त उम्मीदवार नहीं हैं, तो मैं चली जाऊँगी। मैं नहीं डरती। भले ही मुझे इस व्यक्ति को प्राप्त करने के लिए अपना जीवन त्यागना पड़े, मैं इसे त्यागने के लिए तैयार हूँ, क्योंकि यह मेरा कर्तव्य और मेरी जिम्मेदारी है”? क्या वह ऐसा कर पाती? (नहीं।) हम क्यों कहते हैं कि वह ऐसा नहीं कर पाती? हम यहाँ अटकलें नहीं लगा रहे हैं। हम यह किस आधार पर कह रहे हैं कि वह ऐसा नहीं कर पाती? (क्योंकि जब वह अपना कर्तव्य निभा रही थी, तो उसका उद्देश्य वास्तव में नतीजे हासिल करना और उस संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता का मत-परिवर्तन करना नहीं था। इसलिए, वह उस युवा बहन को भेजकर बस खानापूर्ति कर रही थी। अगर युवा बहन वहाँ नहीं होती, तो वह इस व्यक्ति को प्राप्त करने के लिए खुद नहीं जाती।) यह सही है, ऐसा ही होता। जब उसने देखा कि कोई उपयुक्त उम्मीदवार मौजूद नहीं है, तो क्या उसे खुद नहीं जाना चाहिए था? (बिल्कुल जाना चाहिए था।) अगर वह वास्तव में अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान थी और उसे व्यक्तिगत सुरक्षा की फिक्र नहीं थी, तो वह युवा बहन को नहीं जाने देती, बल्कि खुद चली जाती। तो, उसके खुद न जाने से किस समस्या का पता चलता है? (यही कि वह अपनी सुरक्षा और अपने हितों की रक्षा कर रही थी।) सही कहा, ऐसी ही बात थी। अगर वह वाकई अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान होती, तो वह भारी जिम्मेदारी उसे ही उठानी चाहिए थी। मगर, उसने ऐसा नहीं किया; बल्कि, उसने अपनी जगह पर सबसे कम उपयुक्त उम्मीदवार को भेजने के लिए चुना। क्या उसका इरादा खुद को खतरे से बचाने और अपनी सुरक्षा करने के लिए सबसे कम उपयुक्त व्यक्ति को सबसे खतरनाक जगह पर भेजने का था? (बिल्कुल ऐसा ही था।) यह मसीह-विरोधियों का व्यवहार है। इसका संबंध लोगों की व्यवस्था करने से है।

मुख्यभूमि चीन में, बड़े लाल अजगर ने अक्सर परमेश्वर के विश्वासियों को खतरनाक परिवेशों में रखते हुए लगातार और क्रूरता से उनका दमन किया, उन्हें गिरफ्तार करके उनका उत्पीड़न किया है। उदाहरण के लिए, सरकार विश्वासियों को पकड़ने के लिए तमाम तरह के बहाने बनाती है। जब भी उन्हें किसी मसीह-विरोधी के ठिकाने का पता चलता है, तो मसीह-विरोधी सबसे पहले किस बारे में सोचता है? वह कलीसिया के काम को ठीक से व्यवस्थित करने के बारे में नहीं, बल्कि इस खतरनाक परिस्थिति से बच निकलने के बारे में सोचता है। जब कलीसिया को दमन और गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ता है, तो मसीह-विरोधी कभी भी आगे के काम में नहीं लगते। वे कलीसिया के लिए जरूरी संसाधनों या कर्मियों की व्यवस्था नहीं करते हैं। बल्कि, अपने लिए एक सुरक्षित जगह पक्की करने और इससे निपटने के लिए बहाने और तर्क ढूँढ़ते हैं, और उनका काम पूरा हो जाता है। जब उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा पक्की हो जाती है, तो वे कलीसिया के काम, कर्मियों या संसाधनों की व्यवस्था करने में शायद ही कभी व्यक्तिगत रूप से शामिल होते हैं, और न ही वे मामले की जाँच करते या कोई विशेष व्यवस्थाएँ करते हैं। इस वजह से कलीसिया के संसाधनों और पैसों को तुरंत सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया नहीं जा सकता है, और अंत में, बहुत कुछ बड़े लाल अजगर द्वारा लूट और छीन लिया जाता है, जिससे कलीसिया को काफी नुकसान होता है और ज्यादा भाई-बहनों को पकड़ लिया जाता है। जब मसीह-विरोधी अपनी जिम्मेदारी से बचते हैं तो यही परिणाम होता है। मसीह-विरोधियों के दिलों की गहराई में, उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा हमेशा सबसे ऊपर होती है। यह मुद्दा उनके दिलों में लगातार चिंता का विषय बना रहता है। वे मन-ही-मन सोचते हैं, “मुझे मुसीबत में नहीं पड़ना चाहिए। चाहे कोई भी पकड़ा जाए, बस मैं न पकड़ा जाऊँ—मुझे जिंदा रहना है। मैं अभी भी परमेश्वर का कार्य पूरा होने पर परमेश्वर की महिमा में हिस्सा पाने का इंतजार कर रहा हूँ। अगर मैं पकड़ा गया, तो यहूदा की तरह बन जाऊँगा, और मेरे लिए सब खत्म हो जाएगा। मेरा परिणाम अच्छा नहीं होगा। मुझे दंडित किया जाएगा।” इसलिए, जब भी वे काम करने के लिए किसी नई जगह जाते हैं, तो सबसे पहले यह जाँच-पड़ताल करते हैं कि किसके पास सबसे सुरक्षित और सबसे शक्तिशाली घर है, जहाँ वे सरकार की तलाशी से छिप सकें और सुरक्षित महसूस कर सकें। इसके बाद, वे ऐसे घर ढूँढ़ते हैं जहाँ का रहन-सहन बेहतर हो, जहाँ हर भोजन में माँस परोसा जाता हो, गर्मियों में एयर कंडीशनिंग और सर्दियों में घर को गर्म रखने की व्यवस्था हो। इसके अलावा, वे इस बात की भी पूछताछ करते हैं कि विश्वासियों में से कौन ज्यादा उत्साही है और किसकी नींव अधिक मजबूत है, कोई ऐसा व्यक्ति जो मुसीबत आने पर सुरक्षा दे सके। वे पहले इन सभी बातों की जाँच-पड़ताल करते हैं। अपनी जाँच-पड़ताल के बाद, वे रहने के लिए कोई जगह ढूँढ़ते हैं और कुछ सतही काम करते हैं, एक चिट्ठी भेजकर या फिर मौखिक रूप से कुछ जानकारी या कार्य व्यवस्थाएँ बताते हैं। अब, क्या तुम्हें लगता है कि मसीह-विरोधी काम करने में सक्षम हैं? अगर तुम यह देखो कि वे कैसे सावधानी बरतते हुए और साफ-सुथरे ढंग से अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा के बारे में सोचते और उसकी व्यवस्था करते हैं, तो ऐसा लग सकता है कि वे कोई विशिष्ट कार्य करना जानते हैं, और वे अपने दिल में जानते हैं कि इसे कैसे करना है। लेकिन, उनके इरादे सही नहीं हैं, वे केवल व्यक्तिगत लाभ के बारे में सोचते हैं, और वे सत्य से विमुख होते हैं; भले ही उन्हें पता हो कि वे जो कर रहे हैं वह सत्य के विरुद्ध है, स्वार्थी और घृणित है, फिर भी वे अपने तरीके से काम करने पर जोर देते हैं और अनियंत्रित तरीके से और लापरवाही से काम करते हैं। वे जो कुछ भी करते हैं वह उनकी अपनी सुरक्षा के लिए होता है। अपना डेरा जमाने और यह महसूस करने के बाद कि वे हानि से दूर हैं, और खतरा टल गया है, मसीह-विरोधी कुछ सतही काम करने में लग जाते हैं। मसीह-विरोधी अपनी व्यवस्थाओं में काफी सावधानी बरतते हैं, मगर यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे किसके साथ काम कर रहे हैं। वे अपने हितों से जुड़े मामलों के बारे में बहुत सावधानी से सोचते हैं, मगर जब बात कलीसिया के कार्य या उनके अपने कर्तव्यों की आती है, तो वे अपनी स्वार्थपरता और नीचता दिखाते हैं और कोई जिम्मेदारी नहीं उठाते, उनमें जरा भी जमीर या विवेक नहीं होता है। ठीक इन्हीं व्यवहारों के कारण उन्हें मसीह-विरोधियों के रूप में निरूपित किया जाता है। अगर हमें सिर्फ उनकी काबिलियत के आधार पर आकलन करना होता, तो यह देखकर कि वे कितनी अच्छी तरह से सोचते हैं और अपनी सुरक्षा के लिए कितनी सावधानी से और ठोस योजनाएँ बनाते हैं, उनमें काबिलियत की कमी नहीं है और उनके पास दिमाग भी है। उन्हें परमेश्वर के घर के काम को सँभालने में सक्षम होना चाहिए। अब, अगर तुम उनकी काबिलियत के आधार पर गौर करो, तो उन्हें मसीह-विरोधी नहीं कहा जाना चाहिए, मगर फिर भी उन्हें ऐसा क्यों कहा गया है? यह उनके सार के आधार पर तय होता है कि क्या वे सत्य को स्वीकार सकते हैं और उसका अभ्यास कर सकते हैं, या क्या वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं। वे अपने रहने के परिवेश, अपने खान-पान और अपनी सुरक्षा के बारे में विचारशील होकर और विशेष ध्यानपूर्वक व्यवस्थाएँ करते हैं। लेकिन, जब परमेश्वर के घर के काम की बात आती है, तो वे पूरी तरह से अलग लोग बन जाते हैं, खास तौर पर स्वार्थी और नीच, जो परमेश्वर के इरादों के प्रति बिल्कुल भी विचारशीलता नहीं दिखाते। ये यकीनन सत्य का अनुसरण करने वाले लोग नहीं हैं। मसीह-विरोधी, परमेश्वर के घर के कार्य और ऊपरवाले की कार्य व्यवस्थाओं को चुनिंदा तरीके से छाँटते हैं। वे इन बातों को चुनिंदा तरीके से छाँटते हैं कि वे क्या करना चाहते हैं और क्या नहीं करना चाहते, कौन-सी चीज उनकी अपनी सुरक्षा से संबंधित है और कौन-सी नहीं। फिर, वे कुछ आसान काम करते हैं जिनमें कोई खतरा नहीं होता, बस ऊपरवाले को यह पता न चलने देने के लिए कि वे खाने में जल्दबाज और काम में धीमे हैं, और वे अपने उचित कर्तव्यों का पालन नहीं करते। काम की व्यवस्था करने के बाद, वे कभी पूछताछ या निगरानी नहीं करते हैं कि विशेष कार्य कैसे किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के घर में भेंटों और विभिन्न संसाधनों को लेकर विशिष्ट सिद्धांत और विनियम हैं : उन्हें कैसे व्यवस्थित करना है, कहाँ रखना है, कैसे सुरक्षित रखना है, और कौन उन्हें सुरक्षित रखेगा। दूसरी ओर, मसीह-विरोधी इन चीजों के बारे में सिर्फ बात करते हैं, और व्यवस्थाएँ कर लेने के बाद, सोचते हैं कि काम पूरा हो गया है। चाहे परिवेश उपयुक्त हो या न हो, वे कभी भी निरीक्षण करने के लिए स्थल पर नहीं जाते हैं; वे केवल अपने होंठ हिलाते हैं, और अपने दिल में वे इसे समझते नहीं हैं और पूछताछ नहीं करते, जाँच-पड़ताल नहीं करते हैं, या इसकी परवाह नहीं करते हैं कि परमेश्वर के घर के इन संसाधनों के लिए की गई विशेष व्यवस्थाएँ उपयुक्त या सुरक्षित हैं या नहीं। इसलिए, अगुआ के रूप में मसीह-विरोधियों के कार्यकाल के दौरान, उनके कार्यक्षेत्र के भीतर, बुरे लोग परमेश्वर के वचनों की कुछ पुस्तकें जब्त कर लेते हैं। सही ढंग से न रखने के कारण कुछ पुस्तकों में फफूंदी लग जाती है, और कभी-कभी, कुछ पुस्तकों या संसाधनों को ऐसी जगहों पर रखा जाता है जहाँ कोई उनकी देखभाल नहीं करता है। मसीह-विरोधी न केवल इन मामलों के लिए विशेष व्यवस्थाएँ करने में विफल रहते हैं, बल्कि उनके बारे में पूछताछ या जाँच-पड़ताल भी नहीं करते हैं। बल्कि, व्यवस्थाएँ करने के बाद वे मान लेते हैं कि उनका काम पूरा हो गया है। वे बस बातें करते हैं और कुछ नहीं; वे वास्तविक परिणाम पाने की कोशिश किए बिना केवल खानापूर्ति करते रहते हैं। क्या मसीह-विरोधी इन व्यवहारों के जरिये निष्ठा दिखाते हैं? (नहीं।) उनमें कोई निष्ठा नहीं होती। जब कलीसिया के विभिन्न संसाधनों की व्यवस्था करने की बात आती है, तो मसीह-विरोधी कभी पूछताछ नहीं करते। “कभी पूछताछ नहीं करने” का क्या मतलब है? क्या इसका मतलब यह है कि वे कोई भी व्यवस्था नहीं करते हैं? वे बस खानापूर्ति करते हैं और लोगों की आँखों में धूल झोंकने के लिए व्यवस्थाएँ करते हैं, ताकि कोई उनके बारे में वरिष्ठों से शिकायत न कर दे। मगर वे कभी कोई विशिष्ट कार्य नहीं करते हैं। विशिष्ट कार्य क्या होते हैं? इनमें यह निर्धारित करना शामिल है कि इन चीजों को कहाँ रखा जाना चाहिए, यह जगह सुरक्षित है या नहीं, कहीं इन चीजों को कुछ हो न जाए, कहीं चूहे आकर चीजों को काट और चबा न डालें, कहीं उनमें पानी न भर जाए या उनकी चोरी न हो जाए, और क्या इन्हें सुरक्षित रखने के लिए जिम्मेदार व्यक्ति उपयुक्त हैं या नहीं, वगैरह। मगर, मसीह-विरोधी कभी पूछताछ नहीं करते, कभी जाँच-पड़ताल नहीं करते, और कभी इनकी चिंता नहीं करते हैं। अपने दिलों में, वे मानते हैं कि वे इन चीजों का आनंद नहीं ले सकते; वे उन्हें महत्व नहीं देते और उनके लिए इन चीजों का कोई उपयोग नहीं है। वे दूसरे लोगों के हैं, परमेश्वर के घर के हैं, और उनसे संबंधित नहीं हैं। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता; जो भी इनकी चिंता करना चाहता है, उसे चिंता करने दो—उन्हें इनकी चिंता नहीं है। वे बस चीजों को व्यवस्थित करते हैं, और कुछ नहीं। कुछ मसीह-विरोधी व्यवस्था करने की भी परवाह नहीं करते। वे मानते हैं कि भले ही वे यह काम अच्छी तरह से करें, उन्हें कोई इनाम नहीं मिलेगा, और कोई भी उन्हें इसे खराब तरीके से करने के लिए जवाबदेह नहीं ठहराएगा। इतनी छोटी-सी बात के लिए कौन उनकी शिकायत करेगा? क्या परमेश्वर उन्हें इसके लिए दंड देगा? अपने कर्तव्यों के प्रति मसीह-विरोधियों का रवैया और दृष्टिकोण बिल्कुल ऐसा ही है : वे बस काम करने का दिखावा करते हैं और मामलों को अनमने ढंग से सँभालते हैं। अगर ये चीजें उनके अपने रुतबे या सुरक्षा को प्रभावित नहीं करतीं, तो उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनका प्रबंध किया जा रहा है या नहीं। फिर चाहे ये चीजें खो जाएँ, कम हो जाएँ या खराब हो जाएँ, इसका उनसे कोई सरोकार नहीं है। मसीह-विरोधी अपने मन में परमेश्वर के घर के इन संसाधनों को सार्वजनिक संपत्ति मानते हैं। उन्हें इनकी चिंता करने की जरूरत नहीं है, उन्हें इन पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है, और न ही इनका प्रबंध करने के लिए कोई ऊर्जा खपाने की जरूरत है। इसलिए, मसीह-विरोधियों के अगुआओं के रूप में कार्यकाल के दौरान, अपने कर्तव्य के प्रति उनकी लापरवाही, निजी मौज-मजे पर ज्यादा ध्यान देने, और विशिष्ट कार्यों को करने में उनकी विफलता के कारण, बड़ा लाल अजगर परमेश्वर के घर के विभिन्न संसाधनों को लूट या छीन लेता है, या कुछ बुरे लोग उन्हें जब्त कर लेते हैं। ऐसे कई मामले हुए। कुछ लोग कह सकते हैं, “ऐसे शत्रुतापूर्ण परिवेश में, कौन सब कुछ इतनी सावधानी से देख सकता है? थोड़ी-सी लापरवाही या कुछ गलतियाँ करने से कौन बच सकता है?” क्या यह सिर्फ कुछ ही गलतियाँ करने की बात है? मैं यह कहने की हिम्मत करता हूँ, अगर लोग अपनी जिम्मेदारियाँ निभा सकें और निष्ठा दिखा सकें, तो इन संसाधनों का नुकसान इतना बड़ा नहीं होगा; इसमें गिरावट जरूर आएगी, और कार्य की प्रभावशीलता में भी बहुत सुधार होगा।

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