मद पाँच : वे लोगों को गुमराह करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं (खंड पाँच)
III. मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को धमकाने का गहन-विश्लेषण
हमने मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को गुमराह करने और उन्हें फुसलाने की दो अभिव्यक्तियों के बारे में संगति समाप्त कर ली है; अब, आओ इस बारे में संगति करें कि वे लोगों को कैसे धमकाते हैं। मसीह-विरोधियों के इन तरीकों में से हर तरीका उसके पिछले वाले से ज्यादा गंभीर है। गुमराह करने और फुसलाने से तुलना करने पर, क्या धमकी देने का यह तरीका ज्यादा परिष्कृत है या कम? (कम परिष्कृत है।) अगर गुमराह करने और फुसलाने से काम नहीं बनता है तो वे धमकियों का सहारा लेते हैं। मसीह-विरोधी लोगों को कैसे धमकाता है? वह ऐसे तरीके का सहारा क्यों लेता है? (क्योंकि उसके उद्देश्य पूरे नहीं हुए।) उसके उद्देश्य पूरे नहीं हुए। धमकी देने में एक और मतलब निहित है—इसे व्यक्त करने के लिए किस वाक्यांश का उपयोग किया जा सकता है? (अपना असली रंग प्रकट करना।) यह पूरी तरह से सटीक नहीं है; कोई दूसरा वाक्यांश बताओ। (शर्मिंदगी से क्रोधित होना।) तुम सही जवाब के पास पहुँच रहे हो। क्या कोई और ज्यादा उपयुक्त वाक्यांश है? (हताश और आगबबूला महसूस करना।) बिल्कुल सही कहा, हताश और आगबबूला महसूस करना। यह स्थानीय कहावत “अचानक गुस्से से फट पड़ने” के जैसा है; इसका मतलब है, “मैंने करुणामय और कठोर दोनों तरह के शब्दों का उपयोग किया है। ज्यादातर समय मैंने तुम्हारे साथ कभी अनुचित व्यवहार नहीं किया। तो तुम मेरी बात क्यों नहीं सुनते? चूँकि तुम नहीं सुनते तो तुम्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी : मैं तुम पर इस युक्ति का उपयोग करूँगा—धमकियाँ!” वे अपनी युक्ति बदल देते हैं। शैतान के पास कई तरह की युक्तियाँ होती हैं और सभी घिनौनी हैं। आमतौर पर, धमकियों के साथ प्रलोभन भी मिला होता है। अगर वे सिर्फ धमकियों का उपयोग करते हैं तो कुछ लोग डरते नहीं हैं और उनकी बात नहीं सुनते। फिर उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचता है और कभी-कभी वे प्रलोभन का सहारा ले सकते हैं। अगर एक से काम नहीं बनता है तो वे दूसरे से काम निकालने का प्रयास करते हैं—वे नर्म और कठोर दोनों तरह की युक्तियों का उपयोग करते हैं। तो, मसीह-विरोधी लोगों को क्यों धमकाते हैं? वे किन परिस्थितियों में धमकियों का सहारा लेते हैं? अगर दो लोग शांति से साथ रह सकते हैं, हर एक अपने-अपने मार्ग पर चलता है, उनके बीच हितों का कोई टकराव नहीं है तो क्या वे धमकियों का सहारा लेंगे? (नहीं, वे नहीं लेंगे।) तो फिर किन परिस्थितियों में धमकियाँ देने का यह व्यवहार और अभ्यास उत्पन्न होता है? बेशक, यह तब होता है जब बात उनके हित या प्रतिष्ठा पर आती है, जब उनके उद्देश्य पूरे नहीं किए जा रहे होते हैं। वे बड़े कदम उठाते हैं और सोचते हैं, “तो तुम मेरी बात नहीं सुनोगे? तो फिर मैं तुम्हें इसके परिणाम दिखाऊँगा!” ये परिणाम क्या हैं? जिससे भी तुम्हें डर लगता है। क्या तुम्हें कुछ धमकियों के उदाहरण याद हैं जिनसे तुम्हारा सामना हुआ है? (कुछ मसीह-विरोधी जब यह देखते हैं कि भाई-बहन उनके प्रति समर्पण नहीं कर रहे हैं तो वे उनके बारे में राय बनाना और उनकी निंदा करना शुरू कर देते हैं और कहते हैं, “अगुआ के प्रति समर्पण करने से चूकना परमेश्वर के प्रति समर्पण करने से चूकना है,” और वे इसका उपयोग लोगों को धमकाने के लिए करते हैं।) (मेरे मन में एक और मिसाल आ रही है जहाँ अगर कोई अगुआ की बात नहीं सुनता है तो अगुआ उसे बर्खास्त करने के लिए अपने अधिकार का उपयोग करता है।) कुछ भी हो, वे चाहते हैं कि लोग यह समझें कि उनकी बात नहीं सुनने के नतीजे उन्हें भुगतने होंगे। तो, लोगों को उनकी बात सुनने के लिए मजबूर करने का उनका आधार क्या है? वे अक्सर कहते हैं, “अगुआई के प्रति समर्पण परमेश्वर के प्रति समर्पण है, क्योंकि अगुआई परमेश्वर द्वारा विहित होती है। तुम्हें जरूर समर्पण करना चाहिए। अगर तुम अगुआओं के प्रति समर्पण नहीं करते हो या उनकी बात नहीं सुनते हो तो यह घमंड, आत्मतुष्टता और परमेश्वर के प्रति प्रतिरोध है। परमेश्वर का प्रतिरोध करने का परिणाम निकाल दिया जाना है। मामूली मामलों में, तुम्हें आत्म-चिंतन के लिए सबसे अलग-थलग किया जा सकता है; गंभीर मामलों में, तुम्हें कलीसिया से बहिष्कृत भी किया जा सकता है!” वे लोगों को उनके प्रति समर्पण करने के लिए मजबूर करने के लिए इन विश्वासयोग्य भ्रांतियों का उपयोग करते हैं। इसके अलावा, कुछ अन्य मसीह-विरोधी लोगों को कैसे धमकाते हैं? वे दूसरों को उन लोगों का विरोध करने और उन्हें अस्वीकार करने के लिए उकसाते हैं, जो उनके प्रति समर्पण नहीं करते हैं। साथ ही, वे उन लोगों को बर्खास्त कर देते हैं जो उनकी आज्ञा नहीं मानते हैं या उनका कर्तव्य बदल देते हैं। कुछ व्यक्ति सचमुच डरते हैं कि उनके पास करने के लिए कोई कर्तव्य नहीं होगा। वे मानते हैं कि अपने कर्तव्यों को करके उन्हें उद्धार का एक मौका मिल सकता है और कर्तव्य करने से चूकने पर वह मौका उनसे छिन सकता है। मसीह-विरोधी अपने दिलों में सोचते हैं, “मुझे तुम्हारी कमजोरी मालूम है। अगर तुम मेरी बात नहीं सुनोगे तो मैं तुम्हें तुम्हारे कर्तव्य करने के अधिकार से वंचित कर दूँगा। मैं तुम्हें तुम्हारा कर्तव्य नहीं करने दूँगा!” क्या वे लोगों को उनका कर्तव्य इसलिए नहीं करने देते हैं क्योंकि ये लोग अपने कर्तव्य में मानक स्तर के नहीं हैं या क्योंकि उनका अपना कर्तव्य करना परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाता है? (नहीं।) तो फिर वे ऐसा क्यों करते हैं? यह अपने विरोधियों को बाहर निकाल देने और इस तरीके का उपयोग लोगों को धमकाने और उनकी बात सुनने के लिए मजबूर करने के लिए है। जब धमकियों की बात आती है तो मसीह-विरोधी लोगों से निपटने या मामलों को सँभालने में निश्चित रूप से सत्य सिद्धांतों का पालन नहीं करते हैं। इसके बजाय, वे डराने-धमकाने, बल और दबाव का उपयोग करते हैं ताकि लोगों को आज्ञाकारिता से समर्पण करने, उनकी बात सुनने और उन्हें परेशान न करने या उनके मामलों को खराब नहीं करने के लिए मजबूर कर सकें।
मसीह-विरोधी द्वारा धमकियों का उपयोग सिर्फ इसलिए नहीं किया जाता है क्योंकि लोग उनकी आज्ञा नहीं मानते हैं या उन्हें गंभीरता से नहीं लेते हैं और उनकी अवहेलना करते हैं—यह इसका सिर्फ एक पहलू है। एक और कारण है, जो यह है कि जब दूसरों को मसीह-विरोधी की समस्याओं का पता लगता है और वे उसे उजागर करना चाहते हैं या ऊपरवाले को उसकी रिपोर्ट करना चाहते हैं तो वह इस बात से डरता है कि ऊपरवाले को पता चल सकता है या ज्यादा लोगों को इसके बारे में पता चल सकता है, इसलिए वह इन बातों को छिपाने और दबाने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा देता है और उन्हें कभी भी उजागर नहीं होने देता है। अगर ज्यादा लोगों को पता चल गया तो क्या होगा? वे मसीह-विरोधी को अस्वीकार कर देंगे और उसे कोसेंगे, उसके बाद से कोई भी उसकी आराधना नहीं करेगा और वह अपना पद और अधिकार खो देगा। इसलिए, लोगों को धमकाने के इस तरीके का उपयोग करने में मसीह-विरोधी का उद्देश्य अपने पद और अधिकार की रक्षा करना भी है। वह मानता है कि अगर उसने ऐसा नहीं किया तो भाई-बहन उसे पहचानना शुरू कर देंगे और उसे अगले चुनाव में नहीं चुना जाएगा, जिससे वह एक आम विश्वासी बन जाएगा। उसके लिए एक आम विश्वासी होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि उसके पास कोई अधिकार नहीं है, उसका अनुसरण करने वाला या उसका अनुयायी बनने वाला कोई नहीं है, उसके पद और अधिकार छीन लिए गए हैं, जिससे उसकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ असंतुष्ट रह गई हैं। वह एक आम विश्वासी या अनुयायी नहीं बनना चाहता है, इसलिए वह लोगों को डराने और उन्हें उसकी बात सुनने के लिए मजबूर करने के लिए धमकाने के इस तरीके का उपयोग करता है, जिससे वह अपने अधिकार और पद पर बना रहता है, लोगों को नियंत्रित करता और कुछ लोगों का समर्थन प्राप्त करना जारी रखता है। मसीह-विरोधी जो कुछ भी करता है, वह उसके पद पर केंद्रित होता है। जब भी उसके पद पर कोई बात आती है तो वह जोरदार तरीके से उसका बचाव करने और उसकी रक्षा करने के लिए कुछ साधनों या तरीकों का उपयोग करता है; यहाँ तक कि जब ऊपरवाला उनमें से कुछ लोगों से कुछ मामलों के बारे में पूछता है तो वे उसके सामने बेशर्मी से झूठ भी बोल पाते हैं। मिसाल के तौर पर, ऊपरवाले द्वारा यह पूछे जाने पर कि इस महीने सुसमाचार प्रचार कर कलीसिया ने कितने लोग प्राप्त किए हैं तो भले ही मसीह-विरोधी यह जानता हो कि कोई भी प्राप्त नहीं हुआ तो भी वह झूठ बोल सकता है और कह सकता है कि पाँच लोग प्राप्त किए गए हैं। जब सत्य जानने वाले भाई-बहन मसीह-विरोधी का सामना करते हैं और कहते हैं, “वे पाँच लोग सिर्फ जाँच कर रहे थे। तुमने यह क्यों कहा कि हमें पाँच लोग प्राप्त हुए हैं? तुम्हें ऊपरवाले को सत्य बताना चाहिए” तो मसीह विरोधी क्या कहता है? “हमें पाँच क्यों नहीं प्राप्त हो सकते हैं? मैंने पाँच लोग कहा तो फिर पाँच ही हैं। तुम्हारी राय का कोई महत्व नहीं है। अगर हमने कहा कि हमें एक भी व्यक्ति प्राप्त नहीं हुआ तो मैं ऊपरवाले को यह बात कैसे समझाऊँगा? अगर तुम लोग इसकी रिपोर्ट करना चाहते हो तो जाओ करो, लेकिन अगर तुमने सच बता दिया तो हो सकता है कि ऊपरवाला तुम्हारी काट-छाँट कर दे। वह तुममें से उन सभी लोगों को बर्खास्त कर सकता है जो सुसमाचार प्रचार करने में शामिल हैं, यहाँ तक कि सुसमाचार दल को भी भंग कर सकता है। फिर तुम अपने कर्तव्य नहीं कर पाओगे और इसके लिए मैं दोषी नहीं होऊँगा।” जब यह व्यक्ति यह बात सुनता है तो वह भौंचक्का रह जाता है और इसकी रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं करता। क्या यह धमकी नहीं है? (हाँ है।) यह एक स्पष्ट धमकी है, इसलिए खुल्लम-खुल्ला दी गई है। जब कुछ लोग इसे सुनते हैं तो वे सोचते हैं, “ईमानदार व्यक्ति होने के परिणाम भुगतने होते हैं। अगर मैं ईमानदार रहा तो मैं अपना कर्तव्य नहीं कर पाऊँगा, इसलिए मैं इसकी रिपोर्ट नहीं करूँगा। हमें पाँच लोगों की ही रिपोर्ट करनी चाहिए।” कुछ लोगों के दिल बेचैन हो जाते हैं और वे कहते हैं, “अगर हमने किसी को प्राप्त नहीं किया तो यही सही। ऊपरवाला जिस भी तरीके से हमें सँभालने का फैसला लेगा, हमें उसके प्रति समर्पण कर देना चाहिए।” यह सुनकर मसीह-विरोधी का क्या दृष्टिकोण होता है? “समर्पण? यह परिस्थिति पर निर्भर करता है। क्या ऊपरवाला उन मुश्किलों के बारे में जानता है जिनका सामना अभी हम सुसमाचार प्रचार में करते हैं? क्या उसे इसकी परवाह है?” जब ऊपरवाले ने सुसमाचार प्रचार की स्थिति के बारे में पूछताछ की तो वह इसमें शामिल चुनौतियों से अनजान नहीं था। उसे पता था कि हर महीने कम से कम कितने लोगों को प्राप्त किया जा सकता है और उसने यह कभी नहीं कहा कि अगर सुसमाचार दल ने एक महीने में किसी को भी प्राप्त नहीं किया तो उसे भंग कर दिया जाएगा। तो मसीह-विरोधी यह बयान कहाँ से लेकर आया? (उसने इसे खुद बनाया।) उसने अपने झूठों को छिपाने, इन लोगों को नियंत्रित करने, ऊपरवाले या भाई-बहनों को उनके झूठ को समझ लेने से रोकने और अपना पद सुरक्षित करने के लिए इसे खुद ही बनाया ताकि उसे बर्खास्त न कर दिया जाए—इसके लिए उसने ऐसे शैतानी शब्दों का आविष्कार करने की हिम्मत की। पहचान कर पाने वाले व्यक्ति उसे उजागर कर सकते हैं, लेकिन जो लोग पहचान नहीं कर पाते, वे गुमराह हो जाते हैं और सोचते हैं, “सच में, यह कर्तव्य आसानी से नहीं मिलता है। हम ऊपरवाले के साथ ईमानदार नहीं हो सकते हैं। अगर तुम कहते हो कि पाँच लोग थे तो पाँच ही थे। वैसे तो इस महीने हमें पाँच नहीं मिले, लेकिन हम अगले महीने उन्हें प्राप्त करने का लक्ष्य रखेंगे। आखिरकार, अगर हम उन्हें अगले महीने प्राप्त कर लेते हैं तो यह झूठ नहीं होगा।” मसीह-विरोधी फरेब करता है और पहचान न कर पाने वाले लोग उसके साथ इसमें शामिल रहते हैं; वे फरेबियों का एक समूह हैं। लोगों को धमकाने में मसीह-विरोधी का क्या लक्ष्य है? यह उन्हें आज्ञा मानने और उसकी बात सुनने के लिए मजबूर करना है। वह झूठ बोलता है और बुराई करता है, कलीसिया को नियंत्रित करता है, लोगों को गुमराह करता है, सिद्धांतों या कार्य-व्यवस्थाओं का पालन किए बिना कार्य संचालित करता है और वह चाहे कितने भी लापरवाह तरीके से व्यवहार क्यों ना करे, वह भाई-बहनों को ऊपरवाले के पास उसे उजागर करने या उसकी रिपोर्ट करने की अनुमति नहीं देता है। जब एक बार उसे यह पता चल जाता है कि कोई ऊपरवाले के पास उसकी रिपोर्ट करने की योजना बना रहा है, तब वह धमकियों का सहारा लेने लगता है। वह उस व्यक्ति को कैसे धमकाता है? वह कहता है, “हम नीचे कार्य कर रहे हैं और यह कार्य मुश्किल है। यहाँ तक कि हम बड़े लाल अजगर द्वारा गिरफ्तार किए जाने के जोखिम का भी सामना करते हैं। ऊपरवाला हमेशा यह माँग करता है कि हमारा अभ्यास कार्य-व्यवस्था के अनुरूप हो। हम सुसमाचार प्रचार करने में बहुत ज्यादा कष्ट सहन करते हैं और बहुत ज्यादा जोखिम उठाते हैं। जब परिणाम खराब होते हैं, तब भी तुम ऊपरवाले को उनकी रिपोर्ट करना चाहते हो; जब तुम अपनी रिपोर्ट कर दोगे, उसके बाद वह तुम्हारी काट-छाँट करेगा। तुम्हारी काट-छाँट के बाद मैं एक अगुआ के रूप में बर्खास्त कर दिए जाने से नहीं डरता, मुझे यह डर है कि उसके बाद तुम लोगों के पास करने के लिए कोई कर्तव्य नहीं होगा। अगर तुम लोगों के पास करने के लिए कोई और कर्तव्य ना हो तो मुझे दोष मत देना!” सुनने में यह बहुत उचित लगता है! वह यह भी कहता है, “कौन वाकई इसकी रिपोर्ट करना चाहता है? अगर तुम लोग इसकी रिपोर्ट करना चाहते हो तो मैं तुम्हें नहीं रोकूँगा; हर कोई इन चीजों के बारे में वैसे भी जानता है। अगर तुम ऊपरवाले के पास इसकी रिपोर्ट नहीं करते हो तो वह हमें दोष नहीं देगा। अगर तुम इसकी रिपोर्ट करते हो तो हमारी काट-छाँट की जाएगी। तुम लोग अपना चुनाव खुद कर सकते हो; अगर तुम लोग ऊपरवाले के पास इसकी रिपोर्ट करना चाहते हो तो जाओ करो। अब, जो कोई भी इसकी रिपोर्ट करना चाहता है, वह अपना हाथ उठाए।” उसका यह लहजा सुनकर हर व्यक्ति यह सोच-विचार करना शुरू कर देता है, “क्या मुझे वाकई इसकी रिपोर्ट करने की अनुमति है या नहीं?” सोच-विचार करने के बाद, कुछ लोग अपने हाथ उठाते हैं। मसीह-विरोधी यह देखता है और सोचता है, “तुम अब भी इसकी रिपोर्ट करना चाहते हो? क्या तुम मुसीबत को दावत नहीं दे रहे हो? ठीक है, मैं तुम्हें नहीं भूलूँगा।” बाद में वह इस व्यक्ति को सताने के अवसरों के बारे में सोच-विचार करना शुरू कर देता है। वह एक बहाना ढूँढ़ लेता है और कहता है, “तुमने हाल ही में अपने कर्तव्य करते समय कोई परिणाम पेश नहीं किए हैं। जिस किसी ने भी तीन महीने अपने कर्तव्य करते समय परिणाम पेश नहीं किए हैं, उसका कर्तव्य करने का अधिकार रद्द कर दिया जाएगा। अगर उसके प्रदर्शन में सुधार नहीं होता है तो उसे सबसे अलग-थलग कर दिया जाएगा। अगर फिर भी उसने पश्चात्ताप नहीं किया तो उसे बहिष्कृत या निष्कासित कर दिया जाएगा!” क्या वह बेवकूफ, वह कायर अब भी इसकी रिपोर्ट करने की हिम्मत करता है? यह सुनकर वह सोचता है, “मैं अपनी खातिर इसकी रिपोर्ट नहीं कर रहा हूँ। मेरे रिपोर्ट करने का क्या फायदा है? क्या होगा अगर मैं इसकी रिपोर्ट करूँ और फिर अगुआ मुझ पर हमला कर दे और मुझसे बदला ले और मेरे भाई-बहन मुझे अस्वीकार कर दें? तब मैं कलीसिया में अलग-थलग पड़ जाऊँगा। अगुआ को सुनना मेरे लिए ज्यादा जरूरी है; मुझे तो यह तक पता नहीं है कि परमेश्वर कहाँ है तो क्या वह मेरे जीवन और मृत्यु की परवाह कर सकता है?” इसलिए, अब वह इसकी रिपोर्ट नहीं करता है। क्या वह मसीह-विरोधी द्वारा डराया नहीं गया है? (हाँ।) यह व्यक्ति मानता है, “परमेश्वर के विरुद्ध पाप करना कोई बड़ी बात नहीं है। परमेश्वर प्रेममय, दयालु, सहनशील और धैर्यवान है; वह आसानी से न तो गुस्सा करता है और न ही लोगों को शाप और सजा देता है। लेकिन अगर मैंने अगुआ को नाराज किया तो मुझे कष्ट सहना पड़ेगा। समस्याओं की रिपोर्ट करने से मेरा कुछ भला नहीं होगा; मुझे सभी अस्वीकार कर देंगे। मैं ऐसी बेवकूफी वाली चीज नहीं कर सकता।” क्या यह बुजदिल होना नहीं है? (हाँ है।) ऐसे बुजदिल व्यक्ति से कैसे निपटा जाना चाहिए? क्या वह तरस खाने लायक है? ऐसे बुजदिल व्यक्ति को शैतान को, मसीह-विरोधी को सौंप दिया जाना चाहिए, ताकि मसीह-विरोधी उसे सता सके—वह इसी के लायक है। उसमें सत्य का अभ्यास करने और परमेश्वर के प्रति समर्पण करने के लिए आस्था, संकल्प और ताकत का अभाव है, लेकिन जब मसीह-विरोधी के प्रति समर्पण करने की बात आती है तो वह खास शक्ति हासिल कर लेता है, उससे जो भी कहा जाता है वह उसे करने के लिए तैयार रहता है और जोश से भरा होता है। जब मसीह-विरोधी उसे धमकाता और डराता है तो उसके बाद से वह समस्याओं की रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं करता है। क्या यह कायरता नहीं है? बोलचाल की भाषा में इसके लिए क्या शब्द है? दब्बू होना और मसीह-विरोधी से सामना होने पर हार मान लेना। कलीसिया में ऐसे बहुत-से लोग हैं जो मसीह-विरोधियों की धमकियों के कारण दब्बू बन गए हैं! इन लोगों को नहीं पता है कि “परमेश्वर सभी पर संप्रभु है” वाक्यांश को कैसे समझा जाए। जब मसीह-विरोधी उन्हें धमकाता है, अस्वीकार करता है, या सबसे अलग-थलग कर देता है तो उन्हें लगता है कि उनके पास अब कोई सहारा नहीं है, वे हर चीज पर परमेश्वर की संप्रभुता या परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास नहीं करते हैं और वे यह भी नहीं मानते हैं कि लोगों का जीवन परमेश्वर के हाथों में है। मसीह-विरोधी की तरफ से कुछ डराने या धमकाने वाले शब्द आते ही वे डर जाते हैं, हार मान लेते हैं और फिर उसकी रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं करते हैं।
जब मसीह-विरोधी अपने कार्य की रिपोर्ट ऊपरवाले को करता है तो वह बेशर्मी से झूठ बोलता और उसे धोखा देता है। कुछ लोग जिन्हें सत्य पता होता है, वे इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं और ऊपरवाले को स्थिति की रिपोर्ट करना चाहते हैं। मसीह-विरोधी लोगों पर कड़ा नियंत्रण रखता है और उन पर कड़ी नजर रखता है। वह ऐसे व्यक्ति को फौरन पहचान सकता है जो ऊपरवाले को किसी मुद्दे की रिपोर्ट करने के लिए इच्छुक हो सकता है। जब उसके पास करने के लिए कुछ नहीं होता है तो वह लोगों को, उनके शब्दों और चेहरे के भावों को देखने पर अपना ध्यान केंद्रित करता है, उन लोगों की तलाश करता है जो उसके बारे में राय रखते हैं, जो विश्वासघाती हैं, जो उसकी आज्ञा नहीं मानते हैं, जो उसके पद के लिए खतरा हैं, जो उसके प्रति बेपरवाह हैं, जो उसके साथ गंभीरता से पेश नहीं आते हैं, जो उसे सम्मान का आसन नहीं देते हैं और जो उसे भोजन करने के दौरान सबसे पहले भोजन नहीं करने देते हैं। यह इन लोगों के लिए मुसीबत का कारण बन जाता है। मसीह-विरोधी ऐसे व्यक्तियों के साथ क्या करता है? कुछ मसीह-विरोधी जो कपटी होते हैं, वे तुरंत अपने असली रंग प्रकट नहीं करते हैं। वे तुमसे निपटने के लिए अवसर का इंतजार करते हैं। अगर उससे काम नहीं बनता है तो वे तुम्हें यह महसूस कराने के लिए जोरदार धमकियों का सहारा लेते हैं कि तुम्हारा जीवन उसकी मुट्ठी में है। एक विश्वासी के रूप में तुम्हें बचाया जा सकता है या नहीं, तुम अंत तक पहुँच पाते हो या नहीं, तुम कलीसिया में रह सकते हो या नहीं—यह सब कुछ उसकी मुट्ठी में है और इसके लिए उससे सिर्फ एक शब्द की जरूरत है। उसका फैसला ही अंतिम है। अगर तुम उसकी बात नहीं सुनते, उसके नियंत्रण को नहीं मानते, उसे गंभीरता से नहीं लेते हो और उसके मुद्दों की रिपोर्ट करने का प्रयास करते रहते हो तो तुम्हें कष्ट सहना पड़ेगा। वह तुम्हें सताने के तरीके की योजना बनाना शुरू कर देगा। मसीह-विरोधी भाई-बहनों द्वारा उसकी समस्याओं की रिपोर्ट ऊपरवाले को करने के व्यवहार को कैसे देखता है? (चुगली करने की तरह।) बिल्कुल सही कहा, वह इसे स्थिति की रिपोर्ट करने के रूप में नहीं देखता है; वह इसे चुगली करने के रूप में देखता है। चुगली करने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि वह सत्य के विरुद्ध जाने वाली जो तरह-तरह की चीजें करता है उन सभी की और उसके सभी बुरे कर्मों की रिपोर्ट ऊपरवाले को करना, या ऊपरवाले को उसके बारे में उन चीजों का ब्योरा देना जिनसे दूसरे लोग अनजान हैं। वह इसे चुगली करना मानता है। एक बार जब वह किसी को चुगली करते हुए पाता है तो उस व्यक्ति को जरूर सताया जाना चाहिए। कुछ भ्रमित और बुजदिल लोग मसीह-विरोधी की धमकियों से, उसके रोबदार और बेईमान तरीकों से डर जाते हैं। जब मसीह-विरोधी पूछता है कि ऊपरवाले से किसका संपर्क है तो उसके उन तक पहुँचने से पहले ही वे जल्दी से यह बात साफ कर देते हैं, “वो मैं नहीं हूँ।” मसीह-विरोधी पूछता है, “तो ऊपरवाला उस मामले के बारे में कैसे जानता है?” वे इस बारे में सोचते हैं और कहते हैं, “मुझे भी नहीं पता।” मसीह-विरोधी उन्हें इस हद तक सताता है कि वे लगातार डर के साये में जीते हैं, हमेशा घबराए रहते हैं और डरते हैं कि मसीह-विरोधी उन्हें कलीसिया से निष्कासित कर सकता है। वे इस हद तक परेशान और भयभीत रहते हैं कि उनके लिए दिन गुजारना भी मुश्किल होता है। अगर मसीह-विरोधी ने उन्हें इस तरह से धमकाया नहीं होता तो क्या वे इतने डरे हुए होते? नहीं, वे नहीं होते। इसके अलावा, क्या वे परमेश्वर में सच्चा विश्वास रखते हैं? नहीं, वे नहीं रखते हैं। वे बुजदिल और गड़बड़ी करने वाले व्यक्ति हैं। जब उनका सामना मसीह-विरोधी से होता है तो वे दुबक जाते हैं। उनका परमेश्वर में सच्चा विश्वास नहीं है, लेकिन वे खुशी से मसीह-विरोधी के आगे झुक जाते हैं, उसकी हर आज्ञा को मानने के लिए तैयार रहते हैं। वे प्रकृति से ही शैतान के सेवक होते हैं।
मसीह-विरोधी लोगों को धमकाने के लिए और कौन से अभ्यासों का उपयोग करते हैं? कुछ मसीह-विरोधी तुम्हें रोकने और बेबस करने के लिए कुछ सही और आकर्षक सिद्धांत बोलने में माहिर होते हैं। वे कहते हैं, “क्या तुम सत्य से प्रेम नहीं करते हो? अगर तुम सत्य से प्रेम करते हो तो तुम्हें मेरी बात जरूर सुननी चाहिए क्योंकि मैं अगुआ हूँ। मैं जो भी कहता हूँ, वह सत्य के अनुरूप होता है। मैं जो भी कहता हूँ, तुम्हें उसे मानना चाहिए; जब मैं कहता हूँ कि पूर्व की तरफ जाओ तो तुम्हें पश्चिम की तरफ नहीं जाना चाहिए। जब मैं कुछ कहता हूँ तो तुम्हें पुनर्विचार नहीं करना चाहिए; तुम्हें कोई राय नहीं बनानी चाहिए या आँख मूँदकर दखल नहीं देना चाहिए। मैं जो कहता हूँ, वही सत्य है।” अगर तुम उनकी बात नहीं सुनते हो तो वे तुमसे नफरत कर सकते हैं या तुम्हारी निंदा कर सकते हैं। किस तरह की निंदा? वे कहेंगे, “तुम सच में ऐसे व्यक्ति नहीं हो जो सत्य से प्रेम करता है; अगर तुम सचमुच सत्य से प्रेम करते हो तो अगुआ के रूप में, मेरे शब्द सही हैं—तुम लोग उन्हें क्यों नहीं सुनते?” मसीह-विरोधी तुम्हें नियंत्रित करने और रोकने के लिए इन सही प्रतीत होने वाले मतों और धर्म-सिद्धांतों का उपयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ मसीह-विरोधी लोगों को उनके निजी मामलों को सँभालने के लिए कहते हैं, “अब मैं एक अगुआ हूँ और मेरे पास कुछ निजी मामलों के लिए समय नहीं है। इसके अलावा, मैं एक अगुआ हूँ और मेरे मामले परमेश्वर के घर के मामले हैं। परमेश्वर के घर के मामले भी मेरे मामले हैं। अब हम उतनी स्पष्टता से उनमें अंतर नहीं कर सकते हैं। इसलिए, तुम लोगों को मेरे घर के मामलों में से कुछ बोझ मेरे साथ साझा करना पड़ेगा, जैसे कि बच्चों की देखभाल करना, खेती करना, सब्जियाँ बेचना, या घर बनाना और घर में पर्याप्त पैसे नहीं होने जैसी चीजें। इससे पहले ये चीजें मेरा कर्तव्य हुआ करती थीं, लेकिन अब जब मैं एक अगुआ हूँ तो ये तुम लोगों की जिम्मेदारी बन गई हैं—तुम लोगों को यह बोझ साझा करना पड़ेगा। नहीं तो, मैं लगातार अपने घर के मामलों की चिंता करता रहूँगा, ये मामले मेरा ध्यान खींचते रहेंगे तो क्या तब भी मैं एक प्रभावी अगुआ बन सकूँगा?” वे जितना ज्यादा कहते हैं, उतने ही बेशर्म होते जाते हैं। कुछ लोग यह सुनते हैं और सोचते हैं, “हम तुम्हारे दिल के प्रति विचारशील होना नहीं जानते थे—हम सच में बेरहम थे! तुम्हें कुछ कहने की जरूरत नहीं है; अब से हम तुम्हारे घर के सभी कामों को सँभालेंगे।” ये मसीह-विरोधी अपने घर के मामलों और अपने दैनिक जीवन के मामलों को किस तरह के मीठे नाम देते हैं? वे उन्हें “लोगों का कर्तव्य” कहते हैं, यानी मसीह-विरोधी लोगों से उनके परिवार के लिए काम करने, उनके परिवार में छोटे-बड़े सदस्यों की सेवा करने और उनके निजी जीवन के मामलों को सँभालने का काम लेकर उन्हें परमेश्वर के घर के मामलों में बदल देते हैं। चूँकि अब ये परमेश्वर के घर के मामले हैं, इसलिए हर व्यक्ति को अपने हिस्से का योगदान करना चाहिए और अगर अगुआ चाहता है कि तुम लोग कुछ करो तो यह तुम्हारा कर्तव्य बन जाता है। क्या यह सुनने में सही नहीं लगता है? जो लोग पहचान नहीं पाते हैं, वे इसे सही मान सकते हैं। वे मानते हैं कि चूँकि अगुआ इतना व्यस्त रहता है कि उसके पास अपने घर के मामलों को सँभालने का समय नहीं है, खुद उनके पास कम काबिलियत है और वे कोई कर्तव्य नहीं कर सकते हैं, इसलिए वे सिर्फ अगुआ के घर के कुछ कामों को करने में ही उसकी मदद कर सकते हैं। इसलिए, जब भी वे व्यस्त नहीं होते हैं तो वे अगुआ के घर पर काम करते हैं और तरह-तरह के कामों में उसकी मदद करते हैं। क्या इसे उनका कर्तव्य करना माना जा सकता है? इसे सिर्फ जोश से लोगों की मदद करने के रूप में ही देखा जा सकता है। जो लोग सही मायने में परमेश्वर के लिए खुद को खपाते हैं, जो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलते हैं, जब उनके परिवार मुश्किलों का सामना करते हैं तो कलीसिया उनकी मदद करने और उनके घरेलू मामलों को सँभालने के लिए लोगों की व्यवस्था करता है। ऐसे मामलों में, इसे कुछ हद तक कर्तव्य का प्रदर्शन माना जा सकता है। क्या अब इसका कोई मतलब बनता है? कलीसिया में लोगों को गुमराह करने और नियंत्रित करने में व्यस्त मसीह-विरोधी भाई-बहनों के लिए अपने घरेलू कामों की व्यवस्था करता है और दावा करता है कि यह भी उनका कर्तव्य करना है। कुछ भाई-बहन सत्य की समझ का अभाव होने के कारण गुमराह हो जाते हैं और अपनी मर्जी से इन कामों की जिम्मेदारी ले लेते हैं और ऐसा करके खुश होते हैं। आखिर में, उन्हें यह भी लगता है कि वे अगुआ के कर्जदार हैं और सोचते हैं, “अगुआ ने हमारे लिए अपना दिल तोड़ दिया है और अपने होंठ फाड़ दिए हैं। हम कितने नालायक हैं। हमने इतना सारा कार्य किया है, फिर भी ऐसा कैसे है कि हम अब भी कोई सत्य नहीं समझते हैं?” अगर तुम दिन भर अगुआ के लिए काम करने में व्यस्त रहते हो और सभाओं में हिस्सा लेने या धर्मोपदेश सुनने के प्रति लापरवाह होते हो तो क्या तुम सत्य समझ सकोगे? यह पूरी तरह से असंभव है। यह मर-मिटने की हद तक खुशामद करना है! यह मसीह-विरोधी के पीछे भागना और भटककर कुटिल मार्ग पर आ जाना है। मसीह-विरोधी अक्सर सही प्रतीत होने वाले बयानों का उपयोग करता है, उन्हें ऐसा बनाकर तैयार करता है कि वे सही बातें लगें, जिससे लोग गलत ढंग से यह मान लेते हैं कि ये शब्द वाकई सत्य हैं, कुछ ऐसी चीजें हैं जिनका उन्हें अनुसरण और अभ्यास करना चाहिए और यह कि उन्हें इन शब्दों को स्वीकार करना चाहिए। इस तरह, लोगों को यह समझने की जरूरत नहीं पड़ती है कि क्या अगुआ जो कर रहा है वह सही है या गलत है, या वह जिसका अनुसरण कर रहे हैं वह सही है या गलत है। क्या यही मामला नहीं है? इसे गुमराह करना कहते हैं और यह लोगों को धमकाना भी है। मसीह-विरोधी इन लोगों को नियंत्रित करने के लिए इन सही प्रतीत होने वाले मतों और बयानों का उपयोग करता है। वह उन्हें किस हद तक नियंत्रित करता है? ये लोग अपनी मर्जी से उसके लिए कड़ी मेहनत करते हैं, उसके लिए जी-तोड़ मेहनत करते हैं और उसके सभी निजी मामलों का प्रबंध करते हैं। वे पूरा समय बस मसीह-विरोधी को अपनी सेवाएँ देने और उसके लिए जी-जान से कार्य करने के लिए सभाओं को छोड़ना पसंद करते हैं, अपने खुद के कर्तव्यों के प्रति लापरवाह हो जाते हैं, अपने खुद के कार्यों को पीछे छोड़ देते हैं और आध्यात्मिक भक्ति, सभा और परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने के लिए अपने खुद के समय को कुर्बान कर देते हैं। वे इस तरह से जी-तोड़ मेहनत क्यों कर पाते हैं? इसका एक कारण है। क्या कारण है? वह यह है कि मसीह-विरोधी उनसे जानबूझकर कहता है, “अगर तुम लोग इन मामलों को भी उचित रूप से नहीं सँभाल सकते तो फिर तुम और क्या कर्तव्य कर सकते हो? अगर तुम अपना कर्तव्य नहीं कर सकते, क्या तब भी तुम परमेश्वर के घर के सदस्य हो? फिर ठीक है, मैं तुम्हारी अगुआई नहीं करूँगा। अगर मैंने तुम्हारी अगुआई नहीं की तो तुम्हें परमेश्वर के घर के जन में नहीं गिना जाएगा। चूँकि मुझे अगुआ के रूप में चुना गया है, इसलिए मैं इस कलीसिया का प्रवेश द्वार हूँ। जो कोई भी इस कलीसिया में प्रवेश करने की इच्छा रखता है, उसे मुझसे अनुमति लेनी पड़ेगी। मेरी सहमति के बगैर कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता है। चाहे कलीसिया किसी को बाहर ही क्यों ना निकाल रहा हो, मुझसे अनुमति लेने के बाद ही वह यहाँ से जा सकता है। इसलिए, मैं तुम लोगों को जो कार्य सौंपता हूँ और तुम लोगों को जिन कार्यों की जिम्मेदारी देता हूँ, वे तुम्हारे कर्तव्य हैं। यदि तुम यह कर्तव्य नहीं करते हो तो परमेश्वर के वचनों में कहा गया है कि जो लोग कर्तव्य नहीं करते हैं उन्हें उद्धार का अवसर नहीं मिलेगा और वे परमेश्वर के घर की गिनती में महत्वपूर्ण नहीं होंगे!” क्या यह धमकी नहीं है? (हाँ, है।) लोगों को धमकाने के लिए किस तरीके का उपयोग किया जाता है? (सही शब्दों का।) यह सही शब्दों का उपयोग करके लोगों को धमकाना है, ऐसे शब्द जो सुनने में सत्य के अनुरूप प्रतीत होते हैं—यह सेब और संतरे को मिलाना है। मसीह-विरोधी अपने निजी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कर्तव्य करने को बहाने के रूप में उपयोग करते हैं। लेकिन क्या उसके लिए चीजें करना वाकई में कर्तव्य करना है? वह इसे तोड़ता-मरोड़ता है ताकि ऐसा प्रतीत हो कि यह एक ऐसा कर्तव्य है जिसे लोगों को करना चाहिए और फिर कर्तव्य करने के सिद्धांत और मानकों का उपयोग करके यह माँग करता है कि भाई-बहन उनके लिए जी-तोड़ मेहनत करें। वह यह धमकी तक देता है कि अगर वे उसके लिए जी-तोड़ मेहनत नहीं करेंगे तो उनके पास उद्धार का कोई अवसर नहीं होगा, उन्हें कलीसिया से बहिष्कृत कर दिया जाएगा और परमेश्वर के घर से अलग कर दिया जाएगा। जब ये बेवकूफ, पहचान न कर पाने वाले व्यक्ति सुनते हैं कि परिणाम कितने गंभीर होंगे तो वे जल्दी से अगुआ के घर के सभी कामों और उसके दैनिक मामलों की जिम्मेदारी ले लेते हैं और काम पूरे कर लेने के बाद राहत महसूस करते हैं। वे खुद से खुश होकर यह तक सोचते हैं, “अब मैंने अपना कर्तव्य उचित रूप से पूरा कर लिया है। मैं बिल्कुल भी आलसी नहीं रहा हूँ और मैं अगुआ की इच्छा के प्रति विचारशील रहा हूँ। मैंने वह सब कुछ किया है जिसे अगुआ ने मुझे करने के लिए कहा और मैंने अगुआ के घर के सारे कामों को सँभाल लिया है। परमेश्वर के प्रति विचारशील होने का यही मतलब है! अगुआ संतुष्ट है और परमेश्वर भी। अब मुझे उद्धार की उम्मीद है!” क्या इसे उम्मीद कहते हैं? क्या वे मसीह-विरोधी के गुलाम नहीं बन गए हैं? क्या मसीह-विरोधी उन्हें गलत दिशा में नहीं ले गया है? यहाँ मसीह-विरोधी क्या भूमिका निभा रहा है? क्या वह एक अपहरणकर्ता की तरह कार्य नहीं कर रहा है? वह दुष्ट स्वभाव का है और दुष्टता निश्चित रूप से धोखेबाजी से कहीं ज्यादा गंभीर है। इसलिए वह पूरी तरह से जानता है कि लोगों को रोकने, अपनी गुप्त योजना को पूरा करने, लोगों के दिल जीतने और उनके व्यवहार और विचारों को नियंत्रित करने के लिए क्या कहना है और किन मतों का उपयोग करना है। वह इन सब बातों को बड़ी अच्छी तरह से जानता है। इसलिए, मसीह-विरोधी अपनी हर बात और अपने हर कार्य के जरिये जिन लक्ष्यों को हासिल करना चाहता है, वे ध्यान से सोचे-समझे और बहुत पहले से तय किए हुए होते हैं। यह निश्चित रूप से अनजाने में कुछ कहने या करने और फिर अनपेक्षित परिणाम हासिल करने का मामला नहीं है—यह ऐसा बिल्कुल नहीं है। इसलिए, जो लोग अपनी मर्जी से मसीह-विरोधी को अपनी सेवाएँ देते हैं और उसके लिए जी-तोड़ मेहनत करते हैं, वे उसके शब्दों से गुमराह होने के अलावा, मसीह-विरोधी की एक तरह की बयानबाजी से डरते और मजबूर भी होते हैं। शायद वे मसीह-विरोधी के लिए ये सारी चीजें अपनी मर्जी से करते हैं, लेकिन क्या इस “मर्जी” में कोई समस्या नहीं है? क्या इसे उद्धरण चिह्नों में नहीं रखा जाना चाहिए? (हाँ।) यह बिल्कुल भी कर्तव्य का सच्चा प्रदर्शन नहीं है, बल्कि लोगों को गुमराह करने वाले एक खास मत, एक खास सही और सुनने में मीठी लगने वाली दलील या बयानबाजी से गुमराह होने का परिणाम है। क्योंकि वे चिंतित हैं कि वे अपना कर्तव्य नहीं कर पाएँगे, कि उन्हें बहिष्कृत कर दिया जाएगा और वे बचाए नहीं जाएँगे, इसलिए वे मसीह-विरोधी द्वारा उन्हें निर्दिष्ट किए गए कार्यों को अपनी मर्जी से स्वीकार कर लेते हैं, यहाँ तक कि यह भी सोचते हैं कि वे परमेश्वर के लिए अपना कर्तव्य कर रहे हैं। वे कितने भ्रमित हो गए हैं!
मसीह-विरोधियों की धमकियाँ लोगों को उनके असली चेहरों को स्पष्ट रूप से देखने देती हैं। क्या तुम लोग ऐसी धमकियाँ देते हो? क्या धमकियों और चेतावनियों या सलाह में कोई अंतर है? (हाँ।) तुम लोग इसे पहचान सकते हो या नहीं? यह अंतर कहाँ है? यह अंतर ढूँढ़ लो और तुम लोग समझ जाओगे और पहचान पाओगे। (यहाँ इरादे अलग-अलग हैं।) इरादों और उद्देश्यों में निश्चित रूप से अंतर है। तो, यह अंतर ठीक-ठीक कहाँ है? धमकी क्या होती है? धमकी में ऐसे शब्द शामिल होते हैं जो अच्छे और सही लग सकते हैं और लोग उन्हें सुनकर बहुत ज्यादा परेशान नहीं होते हैं, लेकिन उनका उद्देश्य निजी फायदा होता है। दूसरी तरफ, सलाह और चेतावनियों का क्या उद्देश्य होता है? लोगों की मदद करना, उन्हें गलतियाँ करने, मार्ग से भटकने या घूम कर जाने और गुमराह होने से रोकना और नुकसान को कम करने या रोकने में उनकी मदद करना। इसका लक्ष्य निजी फायदा नहीं है, बल्कि पूरी तरह से दूसरों की मदद करना है। क्या यही अंतर नहीं है? (हाँ।) इस बारे में, तुम्हें पहचान करना सीखना होगा। सिर्फ इसलिए कि मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को धमकाने की अभिव्यक्ति के बारे में संगति की जा चुकी है, इसका यह मतलब नहीं है कि तुम लोग दूसरों से बात करते समय जरूरत पड़ने पर चेतावनियाँ देने की हिम्मत ही न करो। जब चेतावनी की जरूरत हो तो तुम्हें चेतावनी देनी चाहिए। चेतावनी और सलाह धमकियों के समान नहीं हैं। चेतावनियों का सही मायने में लक्ष्य लोगों की मदद करना होता है ताकि वे अपने कर्तव्य उचित रूप से कर सकें, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि परमेश्वर के घर के कार्य के साथ कोई समझौता नहीं किया जाए। उनका लक्ष्य जायज है। दूसरी तरफ, धमकाने में एक नाजायज और गुप्त योजना होती है—इसमें निजी महत्वाकांक्षा और मतलबी इच्छा शामिल रहती है। मिसाल के तौर पर, जब मसीह-विरोधी दूसरों से अपने घर के काम करवाता है तो उसकी मतलबी इच्छा क्या होती है? वह सिर्फ रुतबे का फायदा उठाना चाहता है, दूसरों से गंदे और थकाने वाले काम करवाता है जबकि वह खुद कुछ नहीं करता है। फिर, किसी को उसे दिन में तीन बार खाना भी परोसना पड़ता है। उसका मानना है कि अब जब वह एक पद पर आसीन है तो उसका आनंद लेना शुरू हो सकता है। हालाँकि, लोगों को सीधे उसके लिए कार्य करने के लिए कहना अनुचित है, इसलिए मसीह-विरोधी बहाने बनाता है और कहता है, “अब जब मैं एक अगुआ हूँ तो मैं अपने कर्तव्यों में बहुत व्यस्त रहता हूँ। अगर तुम लोगों के पास बोझ और मानवता है तो तुम्हें सहयोग करना सीखना चाहिए। तुम क्या कर सकते हो? तुम लोग बस अपना भरसक प्रयास कर सकते हो, है ना? मेरे घर पर सब्जी के बाग में कार्य करने वाला कोई नहीं है और तुम लोग मदद नहीं कर रहे हो! अगर तुम लोग मदद करते हो तो उससे यह साबित होता है कि तुम्हारा दिल दयालु है और तुम लोग कार्य में मेरी मदद करके वाकई अपना कर्तव्य कर रहे हो। मैं तुम लोगों का अगुआ हूँ—क्या मेरे मामले तुम लोगों के भी मामले नहीं हैं? क्या तुम लोगों के मामले ऐसी चीजें नहीं हैं जिन्हें तुम लोगों को करना चाहिए और जो तुम लोगों को करना चाहिए वह तुम लोगों का कर्तव्य है, है ना?” जब वह तुम्हारे कंधों पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी डाल देता है और तुम सोचते हो कि अगुआ जो कह रहा है उसका मतलब बनता है तो तुम जाकर उसके लिए कार्य करते हो। क्या यह किसी घोटाले में फँसना नहीं है? मसीह-विरोधी के अपने लक्ष्य होते हैं और इससे पहले कि वह उन लक्ष्यों को हासिल कर सके, उसे एक मिथ्या कारण स्थापित करने के लिए उचित बहाने और मत ढूँढ़ने की जरूरत पड़ती है। फिर, जो लोग इन मतों को स्वीकार कर लेते हैं, वे उसके लिए काम करने चले जाते हैं, वह अपना उद्देश्य हासिल कर लेता है और फिर वह रुतबे के फायदों का आनंद ले सकता है। क्या यह ऐसा व्यक्ति नहीं है जो कलीसिया पर पल रहा है? (हाँ।) यह बिल्कुल वही है। वह आलसी है और कार्य करने के लिए अनिच्छुक है, वह शारीरिक सुख-सुविधाओं और रुतबे के फायदों की लालसा करता है। वह राजनीति करता है और जब उसे उपयुक्त शब्द नहीं मिलते हैं तो वह परमेश्वर के वचनों और जिन धर्म-सिद्धांतों को वह समझता है उनमें से मुनासिब और आसानी से स्वीकार्य वाक्यांशों को निकाल लेता है। वह इन शब्दों का उपयोग उन लोगों को गुमराह करने और रोकने के लिए करता है जो सत्य नहीं समझते हैं और बेवकूफ हैं। ऐसा करके वह अपने गुप्त उद्देश्यों को हासिल करता है, जिससे लोग खुशी से उसकी चालाकी को स्वीकार कर लेते हैं। यहाँ तक कि कुछ लोग यह भी सोचते हैं कि अगर उन्होंने अगुआ की बातों पर ध्यान नहीं दिया या वे अपने अगुआ द्वारा सौंपे गए कार्यों को अच्छी तरह करने से चूक गए तो इसका मतलब है कि उन्होंने अपना कर्तव्य उचित रूप से नहीं किया। उन्हें लगता है कि वे परमेश्वर के कर्जदार हैं और यहाँ तक कि वे आँसू भी बहाते हैं। क्या यह बहुत गहरी भ्रामक स्थिति नहीं है? वे इतने भ्रमित हैं कि यह घिनौना है।
मसीह-विरोधी अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अक्सर धमकियों का उपयोग करके बोलते हैं, लेकिन कभी-कभी उनकी धमकियाँ सही शब्दों के रूप में और कोमल तरीके से दी जाती हैं, जैसे कोई साँप धीरे-धीरे खुद को तुम्हारे इर्द-गिर्द लपेट रहा हो—एक बार जब तुम उसकी लपेट में आ जाते हो तो वह तुम्हारी जान माँगने के लिए तैयार हो जाता है। दूसरे मौकों पर, उसकी धमकियाँ कोमल नहीं, बल्कि कठोर और क्रूर होती हैं, जैसे कोई भेड़िया किसी भेड़ को घूर रहा हो और अपना क्रूर चेहरा प्रकट कर रहा हो। उसका इरादा लोगों को यह बताना है : “अगर तुम ने मेरी बात नहीं सुनी तो तुम जिस चीज के लायक हो, वह तुम्हें मिलेगा और अगर परिणाम सामने आए तो तुम खुद उसकी जिम्मेदारी उठाओगे!” मसीह-विरोधी अपनी धमकियों में किस तरह के विशिष्ट सौदेबाजी के सिक्कों का उपयोग करते हैं? वे लोगों के गंतव्य, उनके कर्तव्य और यहाँ तक कि उनके पद और कलीसिया से जाने या रहने को भी निशाना बनाते हैं। मसीह-विरोधी लोगों को धमकाने के लिए इन युक्तियों का और यकीनन कई दूसरी चालों का उपयोग करते हैं। हालाँकि, आमतौर पर, उनकी रणनीतियाँ इन दो श्रेणियों में आती हैं : कभी-कभी, वे तुम्हें मीठे शब्दों से मनाएँगे, और दूसरे मौकों पर, वे तुमसे जबर्दस्ती और दुर्भावनापूर्ण रूप से पेश आएँगे। तो, मसीह-विरोधियों की धमकियों का क्या उद्देश्य है? सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि वे चाहते हैं कि लोग उनकी बात सुनें। उनका लक्ष्य दूसरे लोगों से फायदे बटोरना, रुतबे के फायदों का आनंद लेना और इसके साथ आने वाली तरह-तरह की सुविधाओं और सुखों में लिप्त होना है। दूसरा यह कि वे नहीं चाहते हैं कि कोई भी उनके मामलों की वास्तविक स्थिति का खुलासा करे या उनकी स्थिति को चुनौती दे। वे लोगों द्वारा ऐसा कुछ भी करना बर्दाश्त नहीं करेंगे जो उनकी स्थिति को खतरे में डालता हो। मिसाल के तौर पर, अगर कुछ लोग उनकी स्थिति के बारे में उच्च-अधिकारियों को रिपोर्ट करना चाहते हैं या अगर कुछ लोग उन्हें पहचान लेते हैं और उन्हें अस्वीकार करने और उनके पद से उन्हें हटाने के लिए भाई-बहनों को एकजुट करना चाहते हैं तो मसीह-विरोधी धमकाने की युक्तियों का सहारा लेंगे। धमकियाँ देने के लक्ष्य का एक पहलू अपने पद के साथ आने वाले कई फायदों का आनंद लेना है और दूसरा अपना पद सुरक्षित करना है। लोगों को धमकाने में मसीह-विरोधियों के सटीक रूप से यही दो उद्देश्य होते हैं—ये दोनों ही पद पर केंद्रित होते हैं। ये सभी तरह-तरह के फायदे कहाँ से आते हैं? वे भी उसके पद से आते हैं। कुछ मसीह-विरोधी कहते हैं, “अगर तुम लोग इस मामले में अनुपालन नहीं करोगे तो तुम परिणाम भुगतोगे!” अगर कोई उन्हें पहचान लेता है और उनकी बात नहीं सुनता है तो क्या वे इसे सँभालने का कोई तरीका सोचते हैं? आगे चाहे कुछ भी आए, वे उसे आसानी से स्वीकार नहीं करेंगे। जब तक उन्हें अपने पद को बचाए रखने की जरा सी भी उम्मीद रहेगी, वे उसके लिए जी-जान से लड़ेंगे। पद के लिए उनकी उत्सुकता ज्यादातर लोगों से बहुत ज्यादा है। यह भेड़िये का भेड़ को एकटक देखने जैसा है—खाने से पहले ही उसके मुँह में पानी आने लगता है। उसकी आँखों में एक तेज चमक आ जाती है और वह उसे खाने के बारे में सोचने लगता है; उसमें इसी तरह की लालसा होती है। क्या यह उसकी प्रकृति नहीं है? (हाँ।) पद के लिए मसीह विरोधियों की लालसा भेड़िये की भेड़ के लिए लालसा के समान है, एक ऐसी जरूरत है जो उसकी दुर्भावनापूर्ण प्रकृति में निहित है। इसलिए, वे दूसरों को जो धमकियाँ देते हैं, वे अनिवार्य हैं।
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