अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (3) खंड पाँच

III. नकली अगुआ दूसरों को सताने वाले और कलीसिया के कार्य में बाधा डालने वाले पर्यवेक्षकों से कैसे पेश आते हैं

तीसरी तरह की स्थिति में वे पर्यवेक्षक शामिल होते हैं जो दूसरों को सताते हैं और बेबस करते हैं, जिससे कलीसिया का काम बाधित होता है। पहली स्थिति, जिसके बारे में हमने पहले बात की थी, वह थी जिसमें कुछ पर्यवेक्षक अपेक्षाकृत अच्छी काबिलियत होने और अपना काम करने में सक्षम होने के बावजूद काम को गंभीरता से नहीं लेते हैं, और बस अनमने तरीके से व्यवहार करते हैं, जबकि नकली अगुआ इस बात से अनभिज्ञ होते हैं और उन्हें तुरंत बर्खास्त नहीं करते हैं। दूसरी स्थिति में कुछ पर्यवेक्षकों की काबिलियत कम होती है और वे काम सँभालने में सक्षम नहीं होते हैं, लेकिन नकली अगुआ इस पर ध्यान देने या उन्हें तुरंत बदलने में असफल रहते हैं। यह तीसरी स्थिति उन पर्यवेक्षकों के बारे में है जिनकी काबिलियत अच्छी हो या बुरी, वे अपने उचित काम पर ध्यान नहीं देते हैं और बस दूसरों को सताते हैं और बेबस करते हैं, जिससे कलीसिया का काम बाधित होता है। पर्यवेक्षक के रूप में चुने जाने के बाद से वे अपने क्षेत्र के बारे में जानने या अध्ययन करने की कोशिश नहीं करते, न ही वे सत्य सिद्धांतों को खोजते हैं और वे निश्चित रूप से, अपने कर्तव्य ठीक से करने के लिए दूसरों का मार्गदर्शन नहीं करते हैं। इसके बजाय, जब भी उन्हें मौका मिलता है, वे किसी को परेशान करते हैं और किसी और का मजाक उड़ाते हैं और उसका उपहास करते हैं; जब तक उन्हें मौका मिलता है, वे दिखावा करते रहते हैं और वे चाहे जो भी कर रहे हों, उनके पैर कभी जमीन पर मजबूती से नहीं टिकते। एक दिन वे लोगों को किसी एक तरह से काम करने के लिए कहते हैं और अगले दिन वे उन्हें दूसरी तरह से काम करने के लिए कहते हैं; वे बस नई-नई तरकीबें निकालते हैं, हमेशा दूसरों से अलग दिखने की चाहत रखते हैं। यह सब लोगों को घबराहट की स्थिति में पहुँचा देता है। वे जब भी बोलते हैं तो कुछ लोगों के दिल काँपने लगते हैं। जब वे सभी को अपने अधीन कर लेते हैं और सभी को डरने और अपनी आज्ञा मानने पर मजबूर कर देते हैं तो वे बहुत खुश होते हैं। वे चाहे नकली अगुआ हों या मसीह-विरोधी और चाहे वे सत्ता में हों या न हों, इस तरह के लोग कलीसिया की शांति को नष्ट कर देते हैं। वे न केवल वास्तविक कार्य नहीं कर सकते या अपने कर्तव्य का सामान्य रूप से निर्वाह नहीं करते हैं, बल्कि वे लोगों के बीच कलह पैदा करते हैं और लड़ाइयाँ भी करवाते हैं, जिससे कलीसिया का जीवन बाधित हो जाता है। वे न केवल सत्य समझने में दूसरों की मदद नहीं कर पाते, बल्कि वे अक्सर लोगों के बारे में निर्णय सुनाते हैं और उनकी निंदा करते हैं, और लोगों को हर बात में अपनी आज्ञा मानने के लिए मजबूर करते हैं और उन्हें इस हद तक बेबस करते हैं कि वे यह भी नहीं समझ पाते कि उचित तरीके से कार्य कैसे करें। खास तौर पर रहन-सहन के मामले में, लोग थोड़ा पहले या थोड़ी देर से सो भी नहीं सकते। कुछ भी करते हुए उन्हें इन लोगों के चेहरे के भावों पर नजर रखनी पड़ती है, जिससे उनका जीवन बेहद थका देने वाला हो जाता है। अगर इस तरह के लोग पर्यवेक्षक बन जाएँगे तो बाकी सभी के लिए मुश्किल समय आ जाएगा। अगर तुम उनसे ईमानदारी से बात करते हो और उनके मसले उजागर करते हो तो वे कहेंगे कि तुम उन्हें जानबूझकर निशाना बना रहे हो और उजागर कर रहे हो। अगर तुम उनसे उनकी समस्याओं के बारे में बात नहीं करते तो वे कहेंगे कि तुम उन्हें नीचा दिखा रहे हो। अगर तुम काम के बारे में गंभीर और जिम्मेदार हो और उन्हें कुछ सलाह देते हो तो वे अवज्ञाकारी हो जाएँगे और कहेंगे कि तुम उन पर हमला कर रहे हो और वे तुम्हें घमंडी बताएँगे। बहरहाल, तुम जो भी करोगे, वे उसे नापसंद करेंगे। वे हमेशा लोगों को सताने के बारे में सोचते रहते हैं और वे लोगों को इस तरह से बेबस करते हैं कि उनके हाथ-पैर बँध जाते हैं और उन्हें लगता है कि वे जो कुछ भी कर रहे हैं वह सही नहीं है। ऐसे पर्यवेक्षक कलीसिया के काम में बाधा डालते हैं।

नकली अगुआ सतही कार्य करने में तो माहिर होते हैं, लेकिन वे कभी भी वास्तविक कार्य नहीं करते। वे विभिन्न पेशेवर कार्यों का निरीक्षण, पर्यवेक्षण या निर्देशन नहीं करते या समय-समय पर यह पता नहीं लगाते कि विभिन्न टीमों में क्या चल रहा है, यह निरीक्षण नहीं करते कि कार्य किस तरह से आगे बढ़ रहा है, समस्याएँ क्या हैं, क्या टीम पर्यवेक्षक अपना काम करने में निपुण हैं और भाई-बहन पर्यवेक्षकों के बारे में कैसी सूचना देते हैं या उनका कैसा मूल्यांकन करते हैं। वे यह नहीं जाँचते हैं कि टीम के अगुआ या पर्यवेक्षक किसी को बेबस तो नहीं कर रहे हैं, क्या लोगों के सही सुझावों को अपनाया जा रहा है या नहीं, क्या किसी प्रतिभाशाली व्यक्ति या सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति को दबाया या बहिष्कृत तो नहीं किया जा रहा है, क्या किसी सीधे-सादे व्यक्ति को धमकाया तो नहीं जा रहा है, क्या नकली अगुआओं को उजागर कर उनकी सूचना देने वाले लोगों पर हमला तो नहीं किया जा रहा है, उनसे बदला तो नहीं लिया जा रहा है, उन्हें हटाया या निष्कासित तो नहीं किया जा रहा है, क्या टीम के अगुआ या पर्यवेक्षक बुरे लोग तो नहीं हैं और क्या किसी को सताया तो नहीं जा रहा है। अगर नकली अगुआ इनमें से कोई भी ठोस कार्य नहीं करते तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, मान लो कि कोई व्यक्ति नकली अगुआ को सूचना देता है कि एक पर्यवेक्षक अक्सर लोगों को बेबस करता है और दबाता है। पर्यवेक्षक ने कुछ कार्य गलत किए हैं, लेकिन वह भाई-बहनों को कोई सुझाव नहीं देने देता और वह खुद को सही साबित करने और अपना बचाव करने के बहाने भी तलाशता है और कभी अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करता। क्या ऐसे पर्यवेक्षक को तुरंत बर्खास्त नहीं किया जाना चाहिए? ये ऐसी समस्याएँ हैं जिन्हें अगुआओं को समय रहते ठीक कर लेना चाहिए। कुछ नकली अगुआ अपने द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षकों को उजागर नहीं होने देते, फिर चाहे उनके काम में कोई भी समस्या क्यों न पैदा हो रही हो और वे निश्चित रूप से उनकी रिपोर्ट उच्च अधिकारियों तक नहीं जाने देते—यहाँ तक कि वे लोगों को समर्पण करना सीखने को कहते हैं। यदि कोई व्यक्ति पर्यवेक्षक से जुड़े मसले उजागर करता है तो ये नकली अगुआ यह कहते हुए उन्हें बचाने या वास्तविक तथ्यों को छिपाने की कोशिश करते हैं कि “पर्यवेक्षक के जीवन प्रवेश में समस्या है। उसका अहंकारी स्वभाव होना सामान्य है—थोड़ी-सी भी काबिलियत वाला हर इंसान अहंकारी होता है। यह कोई बड़ी बात नहीं है, मुझे बस उनके साथ थोड़ी संगति करने की आवश्यकता है।” संगति में पर्यवेक्षक अपना पक्ष रखता है, “मैं मानता हूँ कि मैं अभिमानी हूँ। मैं मानता हूँ कि ऐसे मौके होते हैं जब मैं अपने घमंड, गर्व और रुतबे की परवाह कर दूसरे लोगों के सुझाव स्वीकार नहीं करता। लेकिन दूसरे लोग इस पेशे में अच्छे नहीं हैं, वे अक्सर बेकार सुझाव देते हैं, यही कारण है कि मैं उनकी बातें नहीं सुनता।” नकली अगुआ स्थिति को पूरी तरह से समझने की कोशिश नहीं करता, वह पर्यवेक्षक के कार्य के नतीजे नहीं देखता और उसकी मानवता, स्वभाव और अनुसरण कैसे हैं, इस पर तो बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता। वह बस चीजों को कम आँकते हुए कहता है, “मुझे यह सूचना दी गई थी, इसलिए मैं तुम पर नजर रख रहा हूँ। मैं तुम्हें एक और मौका दे रहा हूँ।” इस बातचीत के बाद पर्यवेक्षक कहता है कि वह पश्चात्ताप करने के लिए तैयार है, लेकिन नकली अगुआ इस बात पर कोई ध्यान नहीं देता कि उस पर्यवेक्षक ने बाद में वास्तव में पश्चात्ताप किया या नहीं या सिर्फ झूठ बोला है और धोखा दिया है। इस मामले पर अगर कोई सवाल उठाता है तो नकली अगुआ कहते हैं, “मैंने उनसे पहले ही बात कर ली है और यहाँ तक कि परमेश्वर के वचनों के कई अंशों पर उनसे संगति भी की है। वे पश्चात्ताप करने को तैयार हैं और समस्या पहले ही हल हो चुकी है।” जब वह व्यक्ति पूछता है, “उस पर्यवेक्षक की मानवता कैसी है? क्या वह सत्य स्वीकार करने वाला व्यक्ति है? तुमने उसे एक मौका दिया है, लेकिन क्या वह असल में पश्चात्ताप कर पाएगा और बदल जाएगा?” नकली अगुआ, इसकी असलियत समझ पाने में असमर्थ होकर जवाब देते हैं, “मैं अभी भी उन्हें देख-परख रहा हूँ।” वह व्यक्ति जवाब देता है : “तुम कितने समय से उन्हें देख-परख कर रहे हो? क्या तुम किसी निष्कर्ष पर पहुँचे हो?” नकली अगुआ कहते हैं : “छह महीने से अधिक समय हो गया है और मैं अभी भी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा हूँ।” यदि छह महीने से अधिक समय तक उनकी देख-परख करने के बाद भी कोई नतीजा नहीं मिला है तो यह कैसी कार्य कुशलता है? नकली अगुआ मानते हैं कि पर्यवेक्षक के साथ एक बार बातचीत करना कारगर है और इससे मसले का समाधान हो जाता है। क्या यह विचार स्वीकार्य है? उन्हें लगता है कि उनके एक बार किसी से बात कर लेने पर वह व्यक्ति बदल सकता है और अगर कोई व्यक्ति वह गलती न दोहराने का दृढ़ संकल्प व्यक्त करता है तो वे आगे और जाँच-पड़ताल या स्थिति पर दोबारा गौर किए बिना उस पर पूरी तरह से भरोसा कर लेते हैं। अगर कोई मामले के पीछे नहीं पड़े तो वे शायद छह महीने तक काम को देखने या उसकी खोज-खबर लेने का कष्ट भी न करें। नकली अगुआ तब भी अनजान बने रहते हैं जब कोई पर्यवेक्षक काम को बिगाड़ देता है। वे समझ ही नहीं पाते कि पर्यवेक्षक कैसे उनके साथ छल और खिलवाड़ कर रहा है। इससे भी अधिक घृणित बात यह है कि जब कोई व्यक्ति पर्यवेक्षक के मसलों के बारे में सूचना देता है तो नकली अगुआ उन्हें अनदेखा कर देते हैं और वास्तव में यह नहीं देखते कि मसले मौजूद हैं या नहीं, या जिन मसलों की सूचना दी गई है, वे वास्तविक हैं या नहीं। वे इन मसलों पर विचार नहीं करते—वास्तव में, उन्हें खुद पर बहुत अधिक भरोसा होता है! कलीसिया के काम में चाहे जो भी स्थितियाँ उत्पन्न हों, नकली अगुआ उन पर उचित कार्रवाई करने की जल्दी नहीं करते; उन्हें लगता है कि यह वैसे भी उनकी चिंता का विषय नहीं है। इन समस्याओं के प्रति नकली अगुआओं की प्रतिक्रिया बड़ी ही ढीली-ढाली होती है, वे बहुत सुस्त गति से चलते और जरूरी उपाय करते हैं, टालमटोल करते रहते हैं और लोगों को पश्चात्ताप करने के और मौके देते रहते हैं, मानो जो मौके लोगों को देते हैं, वे बहुत कीमती और महत्वपूर्ण हों, मानो वे मौके उनकी नियति बदल सकते हैं। नकली अगुआ नहीं जानते कि किसी व्यक्ति में जो कुछ अभिव्यक्त होता है, उसके जरिये उसका प्रकृति सार कैसे देखें या उसके प्रकृति सार के आधार पर यह कैसे आँकें कि वह व्यक्ति किस मार्ग पर चल रहा है या उसके चलने के मार्ग के आधार पर देख सकें कि व्यक्ति पर्यवेक्षक बनने या अगुआई का कार्य करने लायक है या नहीं। वे इस तरह से चीजें देख पाने में सक्षम नहीं होते। नकली अगुआ अपने काम में केवल दो ही चीजें करने में सक्षम होते हैं : एक, बातचीत करने के लिए लोगों को बुलाना और बेमन से काम करना; दो, लोगों को मौके देना, दूसरों को खुश करना और किसी को नाराज न करना। क्या वे वास्तविक कार्य कर रहे हैं? स्पष्ट रूप से नहीं। लेकिन नकली अगुआ मानते हैं कि बातचीत के लिए किसी को बुलाना वास्तविक काम है। वे इन वार्तालापों को बहुत मूल्यवान और महत्वपूर्ण मानते हैं और जो खोखले शब्द और सिद्धांत वे झाड़ते हैं, उन्हें अत्यंत सार्थक समझते हैं। उन्हें लगता है कि उन्होंने इन वार्तालापों के माध्यम से बड़ी समस्याएँ सुलझाई हैं और वास्तविक कार्य किया है। वे नहीं जानते कि परमेश्वर लोगों का न्याय और ताड़ना, उनकी काट-छाँट और निपटारा या उनका परीक्षण और शोधन क्यों करता है। वे नहीं जानते कि केवल परमेश्वर के वचन और सत्य ही मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव का समाधान कर सकते हैं। वे परमेश्वर के कार्य और उसके द्वारा मानवजाति के उद्धार का अति सरलीकरण कर देते हैं। वे मानते हैं कि कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलना परमेश्वर के कार्य की जगह ले सकते हैं, कि यह मनुष्य की भ्रष्टता की समस्या हल कर सकते हैं। क्या यह नकली अगुआओं की मूर्खता और अज्ञानता नहीं है? नकली अगुआओं में रत्ती भर भी सत्य वास्तविकता नहीं होती, फिर वे इतने आश्वस्त क्यों रहते हैं? क्या कुछ धर्म-सिद्धांत झाड़ने से लोग स्वयं को जानने हेतु प्रेरित हो जाते हैं? क्या यह उन्हें उनका भ्रष्ट स्वभाव दूर करने में सक्षम बनाएगा? ये नकली अगुआ इतने अज्ञानी और मूढ़ कैसे हो सकते हैं? क्या व्यक्ति के गलत अभ्यास और भ्रष्ट व्यवहार सुलझाना वास्तव में इतना आसान है? क्या मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव का मसला हल करना इतना आसान है? नकली अगुआ कितने मूर्ख और छिछले होते हैं! परमेश्वर मनुष्य की भ्रष्टता का मसला हल करने के लिए केवल एक तरीके का उपयोग नहीं करता। वह लोगों को प्रकट, शुद्ध और पूर्ण करने के लिए बहुत सारे तरीकों का उपयोग करता है और विभिन्न परिवेशों का आयोजन करता है। इसके विपरीत नकली अगुआ अत्यंत नीरस और सतही तरीके से काम करते हैं : वे लोगों को बातचीत के लिए बुलाते हैं, उनके सोचने के तरीके पर थोड़ा परामर्श का कार्य करते हैं, लोगों को थोड़ा प्रोत्साहित करते हैं और मानते हैं कि यही असली कार्य है। यह सतही है, है न? और इस सतहीपन के पीछे कौन-सी समस्या छिपी है? क्या यह बुद्धिहीनता नहीं है? नकली अगुआ बेहद बुद्धिहीन होते हैं और वे लोगों और चीजों को भी अत्यंत बुद्धिहीन ढंग से देखते हैं। लोगों के भ्रष्ट स्वभावों का समाधान करने से ज्यादा कठिन कुछ नहीं है—तेंदुआ अपने धब्बे नहीं बदल सकता। नकली अगुआ इस समस्या की असलियत बिल्कुल नहीं समझ पाते। इसलिए जब कलीसिया में ऐसे पर्यवेक्षकों की बात आती है जो लगातार बाधाएँ पैदा करते हैं, जो हमेशा लोगों को बेबस करते और पीड़ा पहुँचाते हैं तो नकली अगुआ उनसे बात करने और चंद शब्दों में उनकी काट-छाँट करने के सिवाय और कुछ नहीं करते और बस काम खत्म। वे तुरंत फेरबदल कर उन्हें बर्खास्त नहीं करते। नकली अगुआओं का यह दृष्टिकोण कलीसिया के कार्य को बहुत नुकसान पहुँचाता है और अक्सर कुछ बुरे लोगों के बाधा डालने के कारण कलीसिया का कार्य अटक जाता है, उसमें देरी होती है, क्षति होती है और वह सामान्य रूप से, सुचारु रूप से और कुशलता से आगे नहीं बढ़ पाता—यह सब नकली अगुआओं द्वारा अपनी भावनाओं के आधार पर कार्य करने, सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन करने और गलत लोगों का उपयोग करने का गंभीर दुष्परिणाम होता है। बाहरी तौर पर देखें तो नकली अगुआ मसीह-विरोधियों की तरह जानबूझकर असंख्य बुरे काम नहीं कर रहे होते, न ही अपने तरीके से काम कर रहे होते हैं और न अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर रहे होते हैं। लेकिन नकली अगुआ कलीसिया के कार्य में आने वाली विभिन्न समस्याओं को तुरंत हल करने में सक्षम नहीं होते और जब विभिन्न टीमों के पर्यवेक्षकों के साथ समस्याएँ आती हैं और जब ये पर्यवेक्षक अपने कार्य की जिम्मेदारी उठाने में असमर्थ होते हैं तो नकली अगुआ उनके कर्तव्यों को तुरंत बदल नहीं पाते या उन्हें बर्खास्त नहीं कर पाते, जिससे कलीसिया के कार्य को गंभीर नुकसान होता है। और इस सबका कारण यह है कि नकली अगुआ अपनी जिम्मेदारी में लापरवाही बरतते हैं। क्या नकली अगुआ अत्यंत घिनौने नहीं हैं? (हैं।)

IV. नकली अगुआ कार्य व्यवस्थाओं के विरुद्ध जाने और अपने तरीके से चीजें करने वाले पर्यवेक्षकों से कैसा व्यवहार करते हैं

नकली अगुआ कलीसिया में होने वाले बुरे कर्मों, जैसे कि पर्यवेक्षकों द्वारा दूसरों को सताना, उन्हें बेबस करना और कलीसिया के कार्य में बाधा डालना, आदि को तुरंत नहीं सँभाल पाते हैं। इसी तरह, जब कुछ पर्यवेक्षक परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्था के विरुद्ध जाते हैं और अपने तरीके से काम करते हैं तो नकली अगुआ इन मुद्दों को तत्काल हल करने के लिए उचित समाधान नहीं निकाल पाते हैं। इसके परिणामस्वरूप कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के घर के भौतिक और वित्तीय संसाधनों को नुकसान होता है। नकली अगुआ नासमझ और उथले होते हैं, सत्य सिद्धांत समझने में असमर्थ होते हैं और विशेष रूप से लोगों के प्रकृति सारों की असलियत समझने में असमर्थ होते हैं। फलस्वरूप वे अक्सर अपना काम सतही तरीके से करते हैं, वे औपचारिकता निभाते हैं, विनियमों का पालन करते हैं और नारे लगाते हैं, लेकिन कार्यस्थल पर जाकर कार्य का निरीक्षण करने, अवलोकन करने और प्रत्येक पर्यवेक्षक के बारे में सवाल पूछने में अथवा समयबद्ध तरीके से यह पूछने में विफल रहते हैं कि उन पर्यवेक्षकों ने क्या कार्य किया है, उनके क्रियाकलापों को निर्देशित करने वाले सिद्धांत कैसे हैं और परवर्ती प्रभाव क्या हैं। परिणामतः, वे इस बारे में बिल्कुल अनभिज्ञ होते हैं कि वे जिन लोगों का उपयोग कर रहे हैं, वे वास्तव में कौन हैं और उन्होंने क्या किया है। इसलिए जब ये पर्यवेक्षक गुप्त रूप से परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं के विरुद्ध जाते हैं और अपने तरीके से चीजें करते हैं तो न केवल इन नकली अगुआओं को इस बारे में पता नहीं होता, बल्कि वे इन पर्यवेक्षकों का बचाव करने का प्रयास भी करते हैं। अगर वे इसके बारे में सुनते भी हैं तो वे इस पर ध्यान नहीं देते और इसे तुरंत नहीं सँभालते हैं। नकली अगुआ एक ओर अपने काम में अक्षम होते हैं तो दूसरी ओर अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह होते हैं। आओ, एक उदाहरण लेते हैं। एक अगुआ ने किसी ऐसी महिला को रोपण तकनीशियन के रूप में चुना जिसे दूसरी टीम से निकाला जा चुका था। उसने यह नहीं देखा कि इस महिला के पास उपयुक्त अनुभव और विशेषज्ञता है या नहीं, क्या वह काम अच्छी तरह से कर सकती है या क्या उसका रवैया गंभीर और जिम्मेदार है, और उसे वह भूमिका देने के बाद अगुआ ने उसे पूरी तरह से अनियंत्रित छोड़ते हुए कहा, “जाओ और सब्जियाँ लगाना शुरू करो। तुम बीज चुन सकती हो और तुम जो भी धनराशि खर्च करोगी उसे मैं मंजूरी दे दूँगा। इस काम को तुम जैसे ठीक समझो, बस वैसे ही करो!” अगुआ ने यह कहा, इसलिए इस पर्यवेक्षक ने जैसे उसे उचित लगा, वैसे काम करना शुरू कर दिया। उसका पहला काम बीजों का चयन करना था। जब उसने ऑनलाइन पता किया तो पाया कि “सब्जियों की बहुत सारी किस्में हैं—यह विशाल दुनिया असाधारण चीजों से भरी है! बीज चुनना तो काफी मजेदार है। मैंने पहले कभी यह काम नहीं किया है और मुझे नहीं पता था कि मेरा इसमें इतना मन लगेगा। चूँकि मुझे इसमें इतनी रुचि है, इसलिए मैं पूरे मन से इसमें लगूँगी!” उसने सबसे पहले टमाटर के बीजों का भाग खोला और वह हैरान रह गई। वहाँ हर किस्म और हर आकार के बीज थे और रंगों के लिहाज से, लाल, पीले और हरे रंग के टमाटरों के बीज थे। एक तो बहुरंगी भी था—उसने ऐसा टमाटर पहले कभी नहीं देखा था और इस भाग ने वास्तव में उसके क्षितिज फैला दिया था! लेकिन वह सही बीज कैसे चुनती? उसने हर किस्म के कुछ पौधे लगाने का फैसला किया, खासकर कई रंगों वाले जो बहुत अनोखे लग रहे थे। पर्यवेक्षक ने अलग-अलग आकार, रंग और आकृति के 10 से अधिक टमाटरों की किस्मों का चयन किया। टमाटर के बीजों का चयन करने के बाद अब बैंगन के बीज चुनने की बारी थी। आम तौर पर लोग लंबे और बैंगनी रंग के बैंगन या सफेद बैंगन खाते हैं, लेकिन उसने सोचा, “बैंगन सिर्फ इन्हीं दो तरह के नहीं होने चाहिए। हरे, पैटर्न वाले, लंबे, गोल और अंडाकार किस्म के बैंगन होते हैं। मैं थोड़े-थोड़े हर किस्म के बैंगन चुनूँगी, ताकि सबके दिमाग का विस्तार हो सके और वे हर तरह के बैंगन खा सकें। देखो, पर्यवेक्षक के रूप में मैं बीज चुनने में कितनी कुशल और साहसी हूँ, मैं भाई-बहनों का कितना ख्याल रखती हूँ, हर किसी के स्वाद को संतुष्ट करती हूँ।” फिर उसने प्याज के बीजों का चयन किया। स्थानीय स्तर पर प्याज की कुल 14 किस्में थीं, उसने उन सभी का चयन किया और जब उसका काम पूरा हो गया तो वह काफी संतुष्ट महसूस कर रही थी। क्या यह पर्यवेक्षक “साहसी” है? इतनी सारी किस्में चुनने की हिम्मत कौन करेगा? बाद में मैं इस मामले का गहन-विश्लेषण करता रहा और किसी ने यह भी बताया कि “स्थानीय स्तर पर सिर्फ 14 किस्में नहीं हैं; और भी कुछ किस्में हैं जिन्हें उसने नहीं चुना!” उसका मतलब था कि 14 किस्में इतनी ज्यादा नहीं थीं और ऐसी भी कई किस्में थीं जिन्हें पर्यवेक्षक ने नहीं चुना था, इसलिए उसने कुछ भी गलत नहीं किया। क्या यह कहने वाला व्यक्ति मंदबुद्धि नहीं है? यह मंदबुद्धि होना, मानवीय भाषा को नहीं समझना और इस बात से अनभिज्ञ होना है कि मैं मामले का गहन-विश्लेषण क्यों कर रहा था। प्याज के बीज चुनने के बाद पर्यवेक्षक ने आलू की भी कम से कम आठ किस्में चुनीं। इतनी सारी किस्में चुनने में उसका उद्देश्य क्या था? सभी के क्षितिज को विस्तार देना और उन्हें विभिन्न स्वादों को चखने का मौका देना। पर्यवेक्षक का मानना था कि बीजों का चयन भाई-बहनों को लाभ पहुँचाने के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए। तुम उसकी इस प्रेरणा के बारे में क्या सोचते हो? क्या सभी की ओर से सोचने और सभी की सेवा करने के रवैये के आधार पर कार्य करना परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांत है? (नहीं।) तो बीजों के चयन के लिए परमेश्वर के घर का सिद्धांत क्या है? कुछ अजीब और दुर्लभ किस्में मत लगाओ जिन्हें हम आम तौर पर नहीं खाते। जहाँ तक आम तौर पर खाए जाने वाली किस्मों का सवाल है, अगर हमने उन्हें पहले नहीं लगाया है और हम नहीं जानते हैं कि वे स्थानीय मिट्टी और जलवायु के लिए उपयुक्त हैं या नहीं तो एक या दो किस्में चुनो, ज्यादा से ज्यादा तीन या चार। पहली बात, उन्हें स्थानीय मिट्टी और जलवायु के उपयुक्त होना चाहिए; दूसरी बात, उन्हें उगाना आसान होना चाहिए और बीमारियों और कीटों के प्रति अतिसंवेदनशील नहीं होना चाहिए; तीसरी बात, उनसे अगले वर्ष के लिए बीज मिलना चाहिए; अंतिम बात, उनकी उपज अच्छी होनी चाहिए। यदि वे स्वादिष्ट हैं लेकिन उनसे मिलने वाली फसल कम होती है तो वे उपयुक्त नहीं हैं। बीजों के चयन के मामले के आधार पर देखें तो क्या इस पर्यवेक्षक ने सिद्धांतों के अनुसार काम किया? क्या उसने खोज की? क्या उसने समर्पण किया? क्या उसने परमेश्वर के घर के प्रति विचारशीलता दिखाई? क्या उसने उस दृष्टिकोण के साथ काम किया जो उसे कर्तव्य के निर्वहन में रखना चाहिए था? (नहीं।) स्पष्टतः वह बेकाबू होकर खराब चीजें कर रही थी, खुले तौर पर परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्था के खिलाफ जा रही थी और अपने तरीके से काम कर रही थी! उसने अपनी व्यक्तिगत जिज्ञासा और मौज-मस्ती की इच्छा को संतुष्ट करने के लिए परमेश्वर की भेंटों को इस तरह से बर्बाद कर दिया और इस तरह के महत्वपूर्ण कार्य को एक खेल माना, लेकिन उसके नकली अगुआ ने उसे बिना किसी सवाल या हस्तक्षेप के अपनी मर्जी से काम करने दिया। जब उससे पूछा गया, “क्या जो पर्यवेक्षक तुमने चुना है, उसने वास्तव में कोई काम किया? क्या नतीजे रहे? क्या तुमने बीजों के चयन के समय पुनरीक्षण के माध्यम से उसकी मदद की?” उसने इन मामलों पर ध्यान नहीं दिया और केवल इतना कहा, “बीज बोए गए हैं; हमने बीजारोपण के दौरान खेतों का दौरा किया था।” उन्हें किसी अन्य मुद्दे की परवाह नहीं थी। अंत में इस पर्यवेक्षक की समस्या का पता कैसे चला? उसने कुछ स्ट्रॉबेरी लगाईं और संबंधित तकनीकी विनिर्देशों के अनुसार, स्ट्रॉबेरी के पौधों को पहले वर्ष में न ढँका जाना चाहिए न ही उन पर फल लगने देना चाहिए और सभी फूलों को हटा दिया जाना चाहिए; अन्यथा, दूसरे वर्ष कोई फल नहीं लगेगा और अगर पहले वर्ष फल लग भी गए, तो वे बहुत छोटे होंगे। भले ही विशेषज्ञों ने पर्यवेक्षक को यह बताया, लेकिन उसने नहीं सुना। उसका तर्क ऑनलाइन जानकारी पर आधारित था जिसमें कहा गया था कि पहले वर्ष में स्ट्रॉबेरी के पौधों को प्लास्टिक की फिल्म से ढँकना और उन पर फल लगने देना ठीक है। इसका परिणाम यह हुआ कि बीजों से ढँकी विभिन्न प्रकार से विकृत छोटी-छोटी स्ट्रॉबेरी प्राप्त हुईं—कुछ खट्टी, कुछ मीठी और कुछ बेस्वाद—सभी प्रकार की स्ट्रॉबेरी थीं। समस्या इतनी गंभीर थी, फिर भी वहाँ के नकली अगुआओं ने इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया। क्यों? क्योंकि उन्हें लगा कि उन्हें वैसे भी वे स्ट्रॉबेरी खाने को नहीं मिलेंगी, इसलिए उन्होंने इस मुद्दे को नजरअंदाज करना चुना। क्या खाने को नहीं मिलने का मतलब यह है कि उन्हें इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए? आलू और प्याज के बारे में क्या जो उन्हें खाने को मिलेंगे—क्या उन्होंने उनकी परवाह की? इन नकली अगुआओं में से किसी को भी परवाह नहीं थी; पर्यवेक्षक अपनी मर्जी से जो कुछ कर रही थी, उसे वे बस देखते रहे। एक दिन मैं उनके पास गया तो किसी ने बताया कि सलाद के पत्ते कड़े हो गए हैं और अगर उन्हें जल्दी से न काटा गया तो वे खाने लायक नहीं रहेंगे और बर्बाद हो जाएँगे। परंतु पर्यवेक्षक ने इसे लगे रहने पर जोर दिया और कहा कि अगर उसे काटा जाएगा तो उन्हें दूसरी सब्जियाँ लगानी होंगी, जो उसके लिए दिक्कत की बात थी। इस बारे में जानने के बावजूद नकली अगुआओं ने कुछ नहीं किया। आखिरकार, ऊपरवाले को उन्हें जल्दी से सलाद की कटाई करने और स्थिति को सँभालने का आदेश देना पड़ा; अन्यथा सलाद जमीन पर फैलता जाता और गर्मियों की सब्जियों का रोपण नहीं हो पाता। काम में इतनी उल्लेखनीय समस्या उत्पन्न होने के बावजूद नकली अगुआओं में से किसी ने भी इस बारे में कुछ नहीं किया, वे लोगों को नाराज करने से बहुत डरते थे। चूँकि पर्यवेक्षक को एक नकली अगुआ ने पदोन्नत किया था और पदोन्नत करने के बाद कभी भी उसके काम की जाँच नहीं की, उसे स्वतंत्र रूप से काम करने दिया और उसे सहायता और समर्थन दिया, और अन्य अगुआओं ने हस्तक्षेप करने की हिम्मत न करते हुए उनके साथ मिलकर काम किया, इसलिए अंततः बहुत सारी परेशानियाँ उत्पन्न हो गईं। यह वह काम है जो अगुआओं ने किया। क्या उन्हें अभी भी अगुआ कहा जा सकता है? उनकी नाक के नीचे इतनी गंभीर समस्या होने के बावजूद वे इसे एक समस्या के रूप में पहचानने में विफल रहे, हल करना तो दूर की बात है। क्या ये नकली अगुआ नहीं हैं? (हाँ, वे हैं।) एक तरह से वे खुशामदी इंसान थे और दूसरों को नाराज करने से डरते थे। दूसरे लिहाज से वे जानते ही नहीं थे कि समस्या कितनी गंभीर थी, उनमें सटीक निर्णय क्षमता नहीं थी, उन्हें नहीं पता था कि यह एक मुद्दा है और उन्हें यह भी नहीं पता था कि यह काम उनकी जिम्मेदारियों के दायरे में आता है। क्या वे निकम्मे और बरबादी करने वाले नहीं हैं? क्या यह जिम्मेदारी की उपेक्षा नहीं है? (है।) यह चौथी स्थिति है जिसमें पर्यवेक्षक परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्था के विरुद्ध जाकर अपने तरीके से काम करते हैं। हमने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है, जो इस मामले में नकली अगुआओं द्वारा अपनी जिम्मेदारियों की उपेक्षा करने की अभिव्यक्ति को उजागर करता है और नकली अगुआओं के प्रकृति सार को प्रकाश में लाता है।

V. नकली अगुआ उन पर्यवेक्षकों से कैसा व्यवहार करते हैं जो मसीह-विरोधी हैं और अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करते हैं

एक और स्थिति तब होती है जब पर्यवेक्षक अपने वरिष्ठों के खिलाफ विद्रोह करते हैं और अपने स्वतंत्र राज्य बना लेते हैं—ये पर्यवेक्षक मसीह-विरोधी होते हैं। जब पर्यवेक्षकों की खराब काबिलियत, बुरी मानवता या उनके बेकाबू होकर खराब काम करने जैसे मुद्दों की बात आती है तो नकली अगुआ निरीक्षक की भूमिका निभाने में सक्षम नहीं होते। वे इन प्रकार के पर्यवेक्षकों की उपयुक्तता तय करने के लिए उनके द्वारा किए जा रहे काम और उनकी समस्याओं का जायजा लेने और इनके बारे में पूछताछ करने में भी विफल रहते हैं। इसी तरह, नकली अगुआ मनहूस और क्रूर मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार को समझने में और भी अधिक असमर्थ होते हैं। वे न केवल इसकी असलियत समझने में असमर्थ होते हैं, बल्कि साथ ही वे इन लोगों से एक हद तक डरते हैं और इस हद तक थोड़े असहाय और शक्तिहीन होते हैं कि मसीह-विरोधी अक्सर उनकी नाक में नकेल डाले रखते हैं। यह कितना गंभीर हो सकता है? मसीह-विरोधी नकली अगुआओं के कार्यक्षेत्र में गुट बना सकते हैं, अपनी फौज खड़ी कर सकते हैं और स्वतंत्र राज्य स्थापित कर सकते हैं और अंततः वे सत्ता पर कब्जा कर सकते हैं, स्थितियों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर सकते हैं और नकली अगुआओं को नाममात्र का अगुआ बना सकते हैं। ये नकली अगुआ उन चीजों पर ध्यान नहीं देते जिन्हें मसीह-विरोधी तय करते हैं और जानते हैं और उन्हें इन चीजों के बारे में तभी पता चलता है जब कुछ घटित होता है और कोई उन्हें इनकी सूचना देता है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। नकली अगुआ मसीह-विरोधियों से यह भी पूछते हैं कि उन्हें क्यों नहीं बताया गया और उनका जवाब होता है, “तुम्हें बताने का क्या फायदा? तुम किसी भी चीज के बारे में निर्णय नहीं ले सकते, इसलिए तुमसे इस पर चर्चा करने की कोई जरूरत नहीं थी, हमने खुद ही निर्णय कर लिया। अगर हमने तुम्हें सूचित भी किया होता तो तुम निश्चित रूप से सहमत होते। तुम्हारी क्या राय हो सकती थी?” ऐसे मामलों में नकली अगुआ असहाय होते हैं। यदि तुम इन मसीह-विरोधियों का भेद नहीं पहचान सकते, उनका समाधान नहीं कर सकते या उनसे निपट नहीं सकते तो तुम्हें इनके बारे में ऊपरवाले को रिपोर्ट करनी चाहिए, लेकिन तुम ऐसा करने की हिम्मत तक नहीं करते—क्या तुम निकम्मे नहीं हो? (बिल्कुल।) ऐसे मामलों के सामने आने पर ये घोर निकम्मे लोग आँसू बहाते हुए मेरे पास शिकायत करने आते हैं, बड़बड़ाते हैं, “यह मेरी गलती नहीं है; मैंने वह निर्णय नहीं लिया था। उन्होंने जो निर्णय लिया वह सही हो या न हो, इससे मेरा कोई लेना-देना नहीं होता, क्योंकि उन्होंने निर्णय करते समय मुझे इसकी सूचना नहीं दी थी या मुझे इसके बारे में नहीं बताया था।” यह सब कहने से उनका क्या मतलब होता है? (वे जिम्मेदारी से बच रहे होते हैं।) अगुआ के तौर पर तुम्हें इन मामलों की जानकारी और इन पर पकड़ होनी चाहिए; यदि मसीह-विरोधी तुम्हें चीजों के बारे में सूचित नहीं करते तो तुम खुद ही आगे बढ़कर क्यों नहीं पूछते? अगुआ के तौर पर तुम्हें हर मामले को व्यवस्थित करना चाहिए, अध्यक्षता करनी चाहिए और निर्णय लेने चाहिए; यदि वे तुम्हें किसी भी बात की जानकारी नहीं देते और खुद ही निर्णय लेते हैं, तुम्हारे हस्ताक्षर के लिए बाद में बीजक भेजते हैं तो क्या वे तुम्हारे अधिकार को हड़प नहीं रहे हैं? जब नकली अगुआ कलीसिया के कार्य में बाधा डालने वाले मसीह-विरोधी लोगों का सामना करते हैं तो वे भौंचक रह जाते हैं; वे भेड़िये का सामना करने वाले मूर्खों की तरह असहाय हो जाते हैं और शक्तिहीन होकर खड़े रहते हैं, जबकि मसीह-विरोधी उन्हें नाममात्र के मुखिया में बदल देते हैं और उनका अधिकार हड़प लेते हैं। वे इस बारे में कुछ भी नहीं कर सकते हैं—ये कितने बेकार लोग हैं! वे मुद्दों को हल नहीं कर सकते, मसीह-विरोधियों को पहचान या उजागर नहीं कर सकते और निश्चित ही उन्हें कोई भी बुरा काम करने से रोक नहीं सकते। इसी के साथ वे ऊपरवाले को इन मुद्दों की सूचना नहीं देते। क्या ये लोग निकम्मे नहीं हैं? तुम्हें अगुआ के रूप में चुनने का क्या फायदा? मसीह-विरोधी बेकाबू होकर खराब चीजें करते हैं, खुलेआम चढ़ावे को बर्बाद करते हैं, अपनी फौज बनाते हैं और कलीसिया के भीतर अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करते हैं; इस बीच तुम उनका पर्यवेक्षण करने, उन्हें उजागर करने, उन्हें नियंत्रित करने या उनसे निपटने में पूरी तरह विफल रहते हो, फिर भी तुम मेरे पास शिकायत करने आते हो। तुम किस तरह के अगुआ हो? तुम वास्तव में बेकार हो! मसीह-विरोधियों के नेतृत्व वाले ये गिरोह चाहे जो कुछ भी कर रहे हों, वे आपस में गुप्त रूप से चर्चा करते हैं और फिर बिना प्राधिकार के निर्णय लेते हैं। निर्णय लेने का अधिकार देने की बात तो दूर रही, वे अगुआओं को यह जानने का अधिकार भी नहीं देते कि क्या चल रहा है। वे अगुआओं को सीधे नकारते हैं, सारी शक्ति खुद अपने हाथ में लेकर सारे फैसले करते हैं। इन सबके बीच वे अगुआ क्या कर रहे होते हैं जिन्हें इन लोगों को प्रबंधित करने का काम सौंपा गया होता है? वे इस कार्य के बारे में निरीक्षण करने, निगरानी करने, प्रबंधन करने या निर्णय लेने में पूरी तरह विफल रहते हैं। अंत में वे मसीह-विरोधियों को अपना नियंत्रण और प्रबंधन करने देते हैं। क्या यह समस्या नकली अगुआओं के काम से उत्पन्न नहीं हुई होती? इस समस्या का सार क्या है? यह कहाँ से पैदा होती है? यह नकली अगुआओं में कमजोर काबिलियत होने, काम करने की क्षमता न होने और मसीह-विरोधियों में उनके प्रति बिल्कुल भी सम्मान न होने से पैदा होती है। मसीह-विरोधी सोचते हैं, “अगुआओं के रूप में तुम क्या कर सकते हो? मैं अभी भी तुम्हारी बात नहीं सुनूँगा और तुम्हारी बात काटते हुए काम करता रहूँगा। अगर तुम ऊपरवाले को इसकी सूचना देते हो तो हम तुम्हें सताएँगे!” नकली अगुआ ऐसे मामलों की सूचना देने की हिम्मत नहीं करते। नकली अगुआओं में न केवल काम करने की क्षमता नहीं होती, बल्कि उनमें सिद्धांतों को बनाए रखने का साहस भी नहीं होता, वे लोगों को अपमानित करने से डरते हैं और उनमें निष्ठा बिल्कुल नहीं होती—क्या यह गंभीर समस्या नहीं है? अगर उनमें वाकई कुछ काबिलियत होती और वे सत्य समझते तो यह देखकर कि ये लोग बुरे हैं, वे कहते, “मैं उन्हें अकेले उजागर करने की हिम्मत नहीं कर सकता, इसलिए मैं इन मुद्दों को हल करने के लिए सत्य का अनुसरण करने वाले और सत्य को अधिक समझने वाले कुछ भाई-बहनों के साथ संगति करूँगा। अगर उनके साथ संगति करने के बाद भी हम मसीह-विरोधियों से नहीं निपट पाते तो मैं ऊपरवाले को समस्या की सूचना दूँगा और इसे उससे हल करवाऊँगा। मैं और कुछ नहीं कर सकता, लेकिन मुझे पहले परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करनी चाहिए; जिन मुद्दों की असलियत मैंने समझी है और जिन समस्याओं का मैंने पता लगाया है, उन्हें बिल्कुल भी बड़ा नहीं होने देना चाहिए।” क्या यह समस्या से निपटने का एक तरीका नहीं है? क्या इसे भी अपनी जिम्मेदारी पूरी करना नहीं माना जा सकता? अगर तुम ऐसा कर सकते तो ऊपरवाला यह नहीं कहता कि तुम में कम काबिलियत है और कार्य क्षमता का अभाव है। लेकिन तुम ऊपरवाले को समस्याओं की रिपोर्ट भी नहीं कर सकते, इसीलिए तुम्हें बेकार और नकली अगुआ के रूप में चित्रित किया जाता है। तुम में न केवल कम काबिलियत है और कार्य क्षमता का अभाव है, बल्कि तुम्हारे पास मसीह-विरोधियों को उजागर करने और उनके खिलाफ लड़ने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करने की आस्था और साहस भी नहीं है। क्या तुम बेकार नहीं हो? मसीह-विरोधियों ने जिन लोगों पर कब्जा कर लिया है, क्या वे लोग दयनीय हैं? वे दयनीय लग सकते हैं; उन्होंने कुछ भी खराब नहीं किया है और अपने काम में वे बहुत सतर्क हैं, वे गलतियाँ करने, काट-छाँट का सामना करने और भाई-बहनों द्वारा तिरस्कृत किए जाने से बहुत डरते हैं। फिर भी वे अपनी आँखों के सामने खुद पर पूरी तरह मसीह-विरोधियों का कब्जा करा बैठते हैं, वे जो कुछ भी कहते हैं उसका कोई असर नहीं होता और उनके वहाँ होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। ऊपरी तौर पर वे दयनीय लग सकते हैं, लेकिन वे वास्तव में बहुत घृणित हैं। मुझे बताओ, क्या परमेश्वर का घर उन समस्याओं को हल कर सकता है जिन्हें लोग हल नहीं कर सकते? क्या लोगों को समस्याओं की सूचना ऊपरवाले को देनी चाहिए? (हाँ, उन्हें देनी चाहिए।) परमेश्वर के घर में ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसे हल नहीं किया जा सकता है और परमेश्वर के वचन किसी भी मसले को हल कर सकते हैं। क्या तुम में परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था है? अगर तुम में इतनी भी आस्था नहीं है तो तुम अगुआ बनने के योग्य कैसे हो? क्या तुम बेकार के दुष्ट नहीं हो? इसका संबंध केवल नकली अगुआ होने से नहीं है; तुम में परमेश्वर के प्रति सबसे बुनियादी आस्था भी नहीं है। तुम छद्म-विश्वासी हो और तुम अगुआ बनने के लायक नहीं हो!

अगुआओं और कार्यकर्ताओं की चौथी जिम्मेदारी के संबंध में हमने पाँच स्थितियों को सूचीबद्ध किया है ताकि यह उजागर किया जा सके कि नकली अगुआ कार्य की विभिन्न मदों और पर्यवेक्षकों से कैसे पेश आते हैं। इन पाँच स्थितियों के आधार पर हमने नकली अगुआओं की बेहद कम काबिलियत, अक्षमता और वास्तविक कार्य करने में अयोग्यता की विभिन्न अभिव्यक्तियों का गहन-विश्लेषण किया है। इस तरह से संगति करने से क्या तुम लोग इस बारे में थोड़ा स्पष्ट हुए हो कि नकली अगुआओं का भेद कैसे पहचाना जाए? (हाँ।) तो ठीक है, चलो आज अपनी संगति यहीं समाप्त करते हैं। अलविदा!

23 जनवरी 2021

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें