अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (28) खंड दो

कायर लोगों में और कौन-सी दूसरी अभिव्यक्तियाँ होती हैं? ये लोग किसी भी समय परमेश्वर का नाम नकार सकते हैं और त्याग सकते हैं, किसी भी समय परमेश्वर के साथ विश्वासघात कर सकते हैं और किसी भी समय यहूदा बन सकते हैं। कायर लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लायक नहीं हैं—क्या यही मामला नहीं है? (हाँ।) कायर लोगों की घातक कमजोरी क्या होती है? (वे मृत्यु से डरते हैं और विश्वासघात कर सकते हैं।) ये लोग ओछे तरीके से जीवन में लक्ष्यहीन होकर चलते रहते हैं, जीवन का लालच करते हैं और मृत्यु से डरते हैं। मृत्यु का डर उनकी घातक कमजोरी है। जब तक उन्हें मरने के लिए मजबूर नहीं किया जाता, तब तक वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं—चाहे वह यहूदा बनना हो, विनाश का बेटा बनना हो या शापित किया जाना हो—जब तक वे जीवित रह सकते हैं, तब तक वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। जीना उनका सर्वोच्च लक्ष्य है। चाहे तुम इस बात की संगति कैसे भी करो कि लोगों का जीवन और मृत्यु परमेश्वर के हाथों में है; परमेश्वर लोगों की किस्मत को नियंत्रित करता है, उस पर संप्रभु है और उसका आयोजन करता है; और यह कि लोगों को परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना चाहिए, वे न तो इन वचनों पर विश्वास करते हैं और ना ही उन्हें स्वीकार करते हैं। वे बस यही सोचते हैं कि मनुष्य के रूप में पुनर्जन्म लेना एक दुर्लभ अवसर है, इसलिए वे बिल्कुल भी नहीं मर सकते; वे यह भी सोचते हैं कि एक बार जो वे मर गए और उनका देह नष्ट हो गया, तो उनकी आत्मा या तो किसी जानवर के रूप में पुनर्जन्म लेगी या भटकता हुआ भूत बन जाएगी, जिसे फिर कभी मनुष्य के रूप में पुनर्जन्म लेने का मौका नहीं मिलेगा। इसलिए, वे मृत्यु से विशेष रूप से डरते हैं। उनके लिए मृत्यु एक भयावह आपदा है, यह अगले पुनर्जन्म के लिए एक अच्छा अवसर नहीं है और ना ही दूसरे पुनर्जन्म के लिए एक नई शुरुआत है। इसलिए, वे अपने जीवन बचाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। भले ही इसका अर्थ दूसरों के साथ विश्वासघात करना हो या कलीसिया के कार्य को किसी भी तरह का नुकसान पहुँचाना हो, वे ऐसा करने से नहीं हिचकिचाएँगे; और भले ही इसका अर्थ परमेश्वर का नाम त्यागना हो, वे परिणामों की परवाह नहीं करते हैं—वे सिर्फ सुरक्षित रूप से जीने की परवाह करते हैं। ये किस तरह के लोग हैं? (ऐसे लोग हैं जो एक ओछे अस्तित्व को घसीटते रहते हैं।) वे नीच लोग हैं जो एक ओछे अस्तित्व को घसीटते रहते हैं! वे गरिमा या ईमानदारी के बिना जीते हैं, बस जिंदा रहने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं, किसी भी हद तक गिर सकते हैं। कुछ लोगों ने पहले से ही अपने दिलों में यह हिसाब लगा लिया है कि किसी खतरनाक हालात का सामना करने से पहले उन्हें क्या करना है : “अगर मुझे गिरफ्तार किया गया, तो मैं बस सब कुछ उगल दूँगा। जब बड़ा लाल अजगर तुम लोगों को यातना देता है, धमकाता और डराता है, तुम लोगों को कलीसिया के साथ विश्वासघात करने के लिए मजबूर करता है, तब तुम लोग एक शब्द भी कहने से इनकार कर देते हो। देखो, मैं तुम लोगों जैसा बेवकूफ नहीं हूँ, जो सब कुछ उगल देने के बजाय शारीरिक दर्द सहना पसंद करते हैं। मैं तो पीटे या डराए जाने से पहले ही सब कुछ उगल दूँगा—देखो मैं कितना होशियार हूँ! जैसी कि कहावत है, ‘बुद्धिमान इंसान हालात के अनुसार अपना रुख बदलता है।’ मेरा कलीसिया के भाई-बहनों के साथ विश्वासघात करने में इतना क्या बुरा है? हर किसी को स्वार्थी होना ही पड़ता है, है ना? क्या अपने हितों का ध्यान नहीं रखना बेवकूफी नहीं है?” इससे पहले कि कुछ हो, वे पहले से ही खुद को बचाने का तरीका निकाल लेते हैं। वे बहुत पहले ही इस बारे में अच्छी तरह से सोच चुके होते हैं। वे जिस तरीके से आचरण करते हैं उसके हिसाब से उनका मत क्या है? “कोई व्यक्ति अपने लिए जीवन कठिन क्यों बनाए? इतना जिद्दी होना ही क्यों? सिर्फ अपने साथ अच्छा व्यवहार करने से यह जीवन बेकार नहीं जाएगा!” यह उनके आचरण का अपना मत है। उनकी कोई नैतिक सीमा नहीं होती। तुम लोगों को क्या लगता है कि ऐसे लोगों के साथ क्या करना चाहिए? (अगर ऐसे लोगों का पता चलता है, तो उन्हें बुद्धिमानी से बाहर निकाल देना चाहिए—वे किसी भी समय फटने वाले टाइम बम जैसे हैं।) बिल्कुल सही कहा, वे किसी भी समय फटने वाले टाइम बम जैसे हैं। वे पूरी तरह से कायर हैं और जब खतरा आएगा, तो वे कलीसिया के साथ विश्वासघात करेंगे। अगर किसी व्यक्ति में सामान्य मानवता है, तो वह खतरनाक हालात से निपटने के लिए बुद्धिमान तरीकों का उपयोग करेगा और उसकी परमेश्वर में वास्तविक आस्था होगी। वह सभाओं में शामिल होने या अपना कर्तव्य करने में बाधा डालने नहीं देगा और वह अपने आध्यात्मिक कद और हालात के आधार पर परमेश्वर के लिए खुद को खपाने का पूरा प्रयास करेगा। यह सामान्य मानवता का प्रकाशन है। लेकिन कायर लोग अपने जीवन को विशेष रूप से सँजोते हैं; वे जीवन का लालच करते हैं और मृत्यु से डरते हैं, अपने जीवन को बाकी सभी चीजों से ज्यादा महत्व देते हैं। उनकी परमेश्वर में कोई वास्तविक आस्था नहीं होती है और वे यह नहीं देख पाते हैं कि परमेश्वर हर चीज पर संप्रभु है। इसलिए, सताए जाने पर वे स्वाभाविक रूप से कायर लोगों के रूप में बेनकाब हो जाते हैं। कायर लोग अपनी रक्षा करने के लिए यहूदा बन सकते हैं। ऐसे लोग खतरनाक तत्व होते हैं, वे डरावने व्यक्ति होते हैं। कलीसिया उन्हें कोई कार्य बिल्कुल नहीं दे सकती और ना ही उन्हें कोई कर्तव्य करने की अनुमति दे सकती है। वरना अगर उन्होंने विश्वासघात किया, तो कलीसिया के कार्य को बहुत ही ज्यादा नुकसान होगा; इससे भला कम और बुरा ज्यादा होगा।

कायर और संदेही लोगों की संदेहशीलता कैसे अभिव्यक्त होती है? कुछ लोग परमेश्वर के घर के कार्य के विभिन्न पहलुओं को कभी स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते हैं। उन्हें यह नहीं पता होता है कि परमेश्वर वास्तव में क्या कार्य कर रहा है या परमेश्वर जो वचन बोलता है क्या वे सत्य हैं। उन्हें इन मामलों की सही समझ नहीं होती या उनके पास इन मामलों पर सही दृष्टिकोण नहीं होता है, इसलिए वे इस बात की पुष्टि नहीं कर सकते हैं कि परमेश्वर के घर के कार्य में वास्तव में क्या किया जा रहा है, यह कार्य क्या नतीजे हासिल करने का लक्ष्य रखता है या क्या यह लोगों को बचाने के उद्देश्य से किया जा रहा है। वे इनमें से कोई भी चीज स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते हैं। वे इस बारे में भी अस्पष्ट हैं कि कलीसिया क्या है। चाहे वे कितने भी धर्मोपदेश क्यों ना सुन लें, वे जरा सा भी सत्य नहीं समझते हैं। उन्हें हमेशा भाई-बहनों द्वारा अपने कर्तव्य करने के बारे में संदेह होता है, वे मन ही मन सोचते हैं, “ये लोग लगातार व्यस्त रहते हैं, हर रोज आते-जाते रहते हैं—वे आखिर क्या कर रहे हैं?” विशेष रूप से, परमेश्वर में विश्वास रखने और बड़े लाल अजगर के देश में कर्तव्य करने के संदर्भ में अगुआ और कार्यकर्ता कलीसिया के कार्य की कुछ मदों पर संगति और चर्चा करते हैं—जैसे कि प्रशासनिक कार्य, कार्मिक कार्य, सामान्य मामलों वाले कार्य और विशेष रूप से, कुछ ऐसे कार्य जिनमें जोखिम उठाना शामिल है—जिनके बारे में साधारण भाई-बहनों को नहीं बताया जाता है। यह उनकी रक्षा करता है, यह उन्हें नुकसान नहीं पहुँचाता है। लेकिन कुछ लोग यह बात नहीं समझते हैं और हमेशा इन चीजों के बारे में पूछताछ करना चाहते हैं। मिसाल के तौर पर, वे इस बारे में पूछताछ करते हैं कि किताबें कहाँ छापी जाती हैं या कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं की मेजबानी कहाँ की जा रही है। क्या इन बातों को जानने से तुम्हें कोई फायदा होगा? (नहीं।) क्या इन बातों को नहीं जानने से तुम्हें कोई नुकसान होगा? (नहीं।) इन बातों को नहीं जानने से तुम्हारा परमेश्वर के वचन को खाना और पीना प्रभावित नहीं होता है, इससे तुम्हारी सत्य की प्राप्ति प्रभावित नहीं होती है और यह यकीनन तुम्हारे जीवन प्रवेश या तुम्हारे स्वभाव के परिवर्तन में बाधा नहीं डालता है। तो क्या तुम्हारे लिए इन मामलों के बारे में पूछताछ करना और उनकी जाँच-पड़ताल करना फिजूल नहीं है? मेजबानी करने वाले कुछ लोग हमेशा संदेही होते हैं। जब अगुआ और कार्यकर्ता उन्हें कलीसियाई कार्य पर अपनी संगति और चर्चाओं की जानकारी नहीं देते हैं, तो वे सोचते हैं, “अगुआ और कार्यकर्ता हमेशा मेरी पीठ पीछे क्यों सभाएँ और संगति करते हैं? वे किन गतिविधियों में लगे हुए हैं?” उनके साथ कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं की व्यक्तिगत जानकारी साझा नहीं की जाती है और उन्हें अचरज होने लगता है, “वे मेरे साथ इसे साझा क्यों नहीं करते हैं? मैं उनके नाम, वे कहाँ रहते हैं या उनकी वास्तविक परिस्थिति के बारे में नहीं जानता। क्या ये लोग परमेश्वर में मेरे विश्वास में मेरी अगुआई करते समय मेरे साथ कोई चाल चल सकते हैं या मुझे नुकसान पहुँचा सकते हैं?” कुछ संवेदनशील प्रकार के कार्य भी होते हैं, जैसे कि चढ़ावा चढ़ाने से जुड़े कार्य या कोई खतरनाक कार्य—ये ऐसी चीजें हैं जिनके बारे में अव्वल तो पूछना ही नहीं चाहिए, फिर भी ये लोग हमेशा उनके बारे में पूछताछ करना चाहते हैं। जब दूसरे लोग उन्हें उत्तर नहीं देते हैं, तो वे और भी संदेही हो जाते हैं। विशेष रूप से, ऐसे कुछ लोग हैं जिन्हें शुरू-शुरू में कभी परमेश्वर में ज्यादा आस्था नहीं थी—लेकिन परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करने के बाद वे देखते हैं कि उनका पारिवारिक व्यवसाय बेहतर चल रहा है और उनके परिवार के सदस्य स्वस्थ हैं और उन्हें लगता है कि यह परमेश्वर का अनुग्रह और आशीष है। इस क्षणिक खुशी के कारण वे थोड़े-से पैसे चढ़ाते हैं, लेकिन फिर वे सोच में पड़ जाते हैं, “मैंने जो पैसे चढ़ाए थे, वे कहाँ खर्च किए गए? क्या उसका उपयोग कलीसियाई कार्य के लिए किया गया? क्या उसे व्यवसाय में निवेश किया गया या उसका उपयोग गैर-कानूनी गतिविधियों के लिए किया गया?” वे हमेशा इन चीजों के बारे में पूछताछ करना और पता लगाना चाहते हैं और हमेशा इन चीजों की तह तक पहुँचना चाहते हैं। कुछ लोगों के संदेह और भी मजबूत होते हैं। मिसाल के तौर पर, जब कलीसिया कार्य की जरूरतों के कारण कुछ उपकरण या सामग्री खरीदती है या जब यह अपने कर्तव्य करने वालों के दैनिक जीवन के लिए कुछ देखभाल और सहायता प्रदान करती है, तो इस तरह का संदेही व्यक्ति हमेशा संदेह करता है, “इतने सारे अलग-अलग क्षेत्रों में पैसे खर्च किए जा रहे हैं—यह कहाँ से आता है? क्या कलीसिया भी किसी तरह का व्यवसाय कर रही है? क्या इसका कोई अमीर संरक्षक है या पर्दे के पीछे कोई शक्तिशाली समर्थक है? क्या कोई समूह कलीसिया का समर्थन कर रहा है?” विशेष रूप से, जब वे अधिकारियों की ऐसी कुछ निराधार अफवाहों और शैतानी शब्दों को सुनते हैं जो कलीसिया को बदनाम करते हैं—जैसे कि ऐसे दावे कि कलीसिया के अमुक व्यक्ति ने हत्या की और कानून तोड़ा, अमुक व्यक्ति एक अपराधी है जिसे राज्य ढूँढ़ रहा है, अमुक व्यक्ति बहुत सारा पैसा लेकर विदेश भाग गया, वगैरह-वगैरह—तो कलीसिया के बारे में और परमेश्वर के कार्य के बारे में उनके संदेह और भी मजबूत हो जाते हैं। क्या ऐसे लोगों की सोच सामान्य है? क्या वे उन सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से देख पाते हैं जिनका विश्वासियों को पालन करना चाहिए? ज्यादातर लोग जब एक बार इस बारे में आश्वस्त हो जाते हैं कि यह परमेश्वर का कार्य है, तो फिर उन्हें परमेश्वर के बारे में कोई संदेह नहीं रहता है। कलीसिया में चाहे कोई भी समस्या उत्पन्न हो या किसी भी तरह के लोग दिखें, वे परमेश्वर के वचनों के अनुसार उनसे व्यवहार करने में समर्थ होते हैं। भले ही बुरे लोग या मसीह-विरोधी बाधाएँ उत्पन्न करें, वे इसे सही ढंग से समझ पाते हैं। उन्हें कभी भी परमेश्वर या परमेश्वर के कार्य या कलीसिया या परमेश्वर के घर के बारे में संदेह नहीं होते हैं। ज्यादा से ज्यादा, उनकी कुछ व्यक्तियों के बारे में राय हो सकती हैं या परमेश्वर के कार्य के बारे में कुछ धारणाएँ हो सकती हैं, लेकिन वे कलीसियाई जीवन जीकर धीरे-धीरे इन्हें हल कर पाते हैं। लेकिन संदेही लोग अलग होते हैं। परमेश्वर में अपने विश्वास की शुरुआत से ही वे संदेह और सभी प्रकार की धारणाएँ रखते हैं। वे इस बारे में अनिश्चित होते हैं कि क्या परमेश्वर के वचन सत्य हैं, इस बारे में अनिश्चित होते हैं कि क्या परमेश्वर द्वारा ये वचन व्यक्त करना परमेश्वर का कार्य है और इससे भी ज्यादा अनिश्चित इस बारे में होते हैं कि भाई-बहनों का एक साथ जुटना परमेश्वर की कलीसिया है। वे लगातार संदेह रखते हैं और अपने संदेह सही साबित करने के लिए हमेशा तथ्यात्मक प्रमाणों की तलाश करते हैं। यह किस तरह का रवैया है? क्या तुम्हें लगता है कि ऐसा रवैया रखने वाले लोग परमेश्वर में अपने विश्वास में सत्य समझ सकते हैं? (नहीं।) वे कभी भी सत्य नहीं समझ पाएँगे। वे अपने दिलों में सबसे ज्यादा किस चीज पर ध्यान केंद्रित करते हैं? वे हमेशा सोचते रहते हैं, “ये लोग कौन हैं? क्या यह किसी तरह का सामाजिक संगठन है? वैसे तो जब मैं इन लोगों की मेजबानी करता हूँ, तो परमेश्वर का घर इनके जीवन निर्वाह का खर्च उठाता है, फिर भी मैं इनका मेजबान बनकर जोखिम उठा रहा हूँ। तो क्या परमेश्वर मेरे अच्छे कर्मों को याद रखेगा? अगर परमेश्वर उन्हें याद नहीं रखता है, तो क्या मेरी मेजबानी बेकार नहीं जाएगी?” उनके दिलों में लगातार ऐसे संदेह रहते हैं। क्या तुम्हें लगता है कि वे भाई-बहनों की मेजबानी खुशी से करते हैं? (नहीं।) वे पूरी तरह से ऐसा आशीषें पाने की इच्छा से करते हैं जबकि उनके मन संदेहों से भरे होते हैं। विशेष रूप से, जब वे कुछ ऐसी चीजें सुनते हैं जिन्हें वे स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते हैं और अपनी धारणाओं के अनुसार नकारात्मक मानते हैं, तो उनके दिलों में संदेह बढ़ जाते हैं। मिसाल के तौर पर, सभाओं के दौरान कोई व्यक्ति ऐसे विषय उठा सकता है जिसमें बड़े लाल अजगर के शासन के क्रियाकलाप और राक्षस राजाओं के बदसूरत चेहरे शामिल हों या कभी-कभी सत्य पर संगति बड़े लाल अजगर द्वारा किए गए दमन और गिरफ्तारियों और बड़े लाल अजगर के प्रकृति सार, वगैरह का जिक्र कर सकती है। ये विषय वास्तव में राजनीति से संबंधित नहीं होते हैं—वे बस लोगों को बड़े लाल अजगर को पहचानने और उसका चेहरा स्पष्ट रूप से देखने में मदद करते हैं ताकि वे बड़े लाल अजगर से नफरत करना और उसे अस्वीकार करना शुरू कर सकें और फिर शैतान के प्रभाव से बेबस ना हों और उससे बँधे ना रहें। लेकिन जब संदेही लोग ऐसे विषय सुनते हैं, तो वे कायर और भयभीत हो जाते हैं : “ये लोग तो राजनीति पर भी चर्चा कर रहे हैं! क्या वे राजनीतिक अपराधी नहीं हैं? क्या वे प्रतिक्रांतिकारी नहीं हैं? ये विषय बहुत ही संवेदनशील हैं! जल्दी करो, खिड़कियाँ बंद करो, दरवाजे बंद करो, इंटरनेट और फोन लाइनें काट दो! अगर सरकार ने छिपकर ये बातें सुन लीं, तो हम बड़ी मुसीबत में पड़ सकते हैं! हमें तो यकीनन आजीवन कैद की सजा मिलेगी!” वे ऐसे विषय सुनने के इच्छुक नहीं होते हैं और उन पर चर्चा करना रोकने के लिए संगति में रुकावट डालने का हर संभव प्रयास करेंगे। वे मन ही मन सोचते हैं, “आखिर ये लोग किस तरह का कार्य करते हैं? ऐसा कहा जाता है कि परमेश्वर मानवीय राजनीति में शामिल नहीं होता है, तो ये लोग राजनीति के बारे में क्यों बात कर रहे हैं? क्या विश्वासियों को सिर्फ परमेश्वर में विश्वास रखने के मामलों के बारे में बात नहीं करनी चाहिए? वे इन चीजों पर चर्चा क्यों कर रहे हैं? क्या यह सिर्फ मुसीबत को दावत देना नहीं है? अगर वे इन चीजों के बारे में बात करना चाहते हैं, तो वे इसे जहाँ चाहें वहाँ कर सकते हैं, लेकिन उन्हें मेरे घर में ऐसा करने की बिल्कुल अनुमति नहीं है। मैं नहीं चाहता कि यह बंदूक मेरे कंधे पर रखकर चलाई जाए!” वे कुछ भी स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते हैं। जब वे सरकार द्वारा गढ़ी कुछ अफवाहें सुनते हैं, तो वे ना सिर्फ उनका भेद पहचानने में विफल होते हैं, बल्कि उनकी आशंकाएँ और भी मजबूत हो जाती हैं। अगर वे सत्ताधारी राक्षसों के समूह या धर्म में मौजूद मसीह-विरोधी शक्तियों और दुष्ट आत्माओं के संप्रदायों के प्रति अक्सर संदेही और आशंकित होते, तो इससे उन्हें अपनी रक्षा करने के लिए वास्तव में मदद मिलती। लेकिन जिस कलीसिया में परमेश्वर कार्य करता है, वहाँ परमेश्वर ने बहुत सारा सत्य व्यक्त किया है और फिर भी वे इसे समझ नहीं पाते हैं और यह तय नहीं कर पाते हैं कि यही सच्चा मार्ग है। इतने लंबे समय तक धर्मोपदेश सुनने और परमेश्वर को इतना बोलते हुए देखने के बाद भी उनकी संदेहशीलता अनसुलझी रह गई है और उनकी धारणाएँ और कल्पनाएँ जड़ से नहीं मिटी हैं। यह स्पष्ट है कि उनकी काबिलियत बहुत ही खराब है, उनमें समझने की क्षमता बिल्कुल नहीं है और वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग नहीं हैं। परमेश्वर में अपने विश्वास की शुरुआत से ही उन्होंने कभी यह नहीं माना है कि परमेश्वर हर चीज पर संप्रभु है और उन्होंने कभी यह नहीं माना है कि परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं; और उन्होंने यह तो बिल्कुल नहीं माना है कि परमेश्वर के घर का कार्य पूरी तरह से पवित्र आत्मा द्वारा निर्देशित है। फलस्वरूप, हर चीज उन्हें संशयी बना देती है। मिसाल के तौर पर, सभाओं के दौरान अलग-अलग तरह के लोगों का भेद पहचानने के बारे में संगति करते समय हम इस बारे में बात कर सकते हैं कि मसीह-विरोधी लोगों को कैसे गुमराह करते हैं; या कैसे कुछ लोग परमेश्वर के चढ़ावों का उपयोग करके सारी चीजों का उपभोग करने और जीवनयापन की चीजें प्रदान किए जाने का आनंद लेने के बावजूद कोई वास्तविक कार्य नहीं करते हैं, जिसमें कलीसिया पर पलना शामिल है; या कैसे कुछ लोग चढ़ावा चुराते या बर्बाद करते हैं; या कैसे कलीसिया में कुछ व्यक्ति व्यभिचारी गतिविधियों में शामिल होते हैं; या कैसे कुछ लोग सुसमाचार प्रचार करते समय परमेश्वर को अपमानित करने वाली चीजें करते हैं। हम इन मामलों पर चर्चा करते हैं ताकि लोग दूसरों का भेद पहचानना सीख सकें और ताकि वे लोगों और मामलों को परमेश्वर के वचनों और सत्य सिद्धांतों के अनुसार देख सकें, इन चीजों से सबक ले सकें और सीख सकें और दूसरों द्वारा गुमराह या बेबस होने से बच सकें। लेकिन संदेही लोग ये बातें सुनकर कहते हैं, “अरे नहीं! यह परमेश्वर का घर है, वह जगह है जहाँ परमेश्वर का कार्य किया जाता है—यहाँ ऐसी चीजें कैसे हो सकती हैं? ऐसा लगता है कि मेरा पहले से संदेही होना सही था। अब से मुझे और ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। सभी लोग बहुत ही गैर भरोसेमंद होते हैं और परमेश्वर का घर भी भरोसेमंद नहीं है। तो क्या परमेश्वर भरोसेमंद है? कौन जाने—शायद परमेश्वर भी भरोसेमंद नहीं है।” देखो, वे सत्य नहीं समझते हैं और ना ही वे इसे समझ सकते हैं। परमेश्वर के घर द्वारा सत्य के चाहे किसी भी पहलू पर संगति क्यों ना की जाए, अंत में वे हमेशा किस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं? यही कि उन सभी वर्षों में उनका संदेही होना सही था और यह अनावश्यक नहीं था। अगर सत्य का अनुसरण करने वाले और सामान्य मानवता की सोच वाले लोग ये बातें सुनते हैं, तो वे उन्हें सही तरह से सँभाल पाते हैं। एक लिहाज से, उनकी सोच का दायरा व्यापक हो जाता है और वे इन चीजों से भेद पहचानना प्राप्त करते हैं। दूसरे लिहाज से, वे इन चीजों से सबक ले सकते हैं और सीख सकते हैं और यह समझ सकते हैं कि लोग दूसरे लोगों का अनुसरण नहीं कर सकते हैं, उन्हें दूसरों का भेद पहचानने और सत्य को अधिक समझने की जरूरत है; अगर व्यक्ति सत्य नहीं समझता है, तो उसे किसी भी समय और किसी भी जगह गुमराह किया जा सकता है; और एक बार जब वह सत्य समझ जाता है और उसके पास आध्यात्मिक कद होता है, तो वह दूसरों से बेबस, गुमराह या नियंत्रित नहीं होगा। लेकिन संदेही लोग कभी इस तरह से नहीं सोचेंगे। परमेश्वर का घर विभिन्न प्रकार के लोगों और मामलों का भेद पहचानने के बारे में जितनी ज्यादा संगति करता है, उतना ही उन्हें लगता है कि उनके संदेह सही और पक्के हैं : “देखो, मैं होशियार व्यक्ति हूँ! अच्छा हुआ कि मैं सावधान बना रहा। लोग अक्सर कहते हैं कि मैं संदेही और अविश्वासी हूँ, लेकिन तथ्यों से यह प्रमाणित होता है कि मेरा संदेह करना सही था। देखो तुम सब कितने बेवकूफ हो—परमेश्वर में अपने विश्वास में तुम सिर्फ अपने कर्तव्य करना और अपने अनुभवजन्य ज्ञान के बारे में बात करना जानते हो। उसका क्या फायदा है? क्या यह तुम्हारी रक्षा कर सकता है? नहीं! तुम चाहे किसी भी परिस्थिति का सामना क्यों ना करो, तुम अपनी रक्षा सिर्फ तभी कर सकते हो अगर तुम सावधान रहते हो और चीजों पर ज्यादा प्रश्न करते हो। तुम्हें हर किसी से चौकस रहना होगा। तुम खुद पर जितना भरोसा कर सकते हो उतना किसी और पर नहीं कर सकते, यहाँ तक कि अपने माता-पिता पर भी नहीं!” मुझे बताओ, आखिर वे किस तरह के लोग हैं? क्या वे परमेश्वर के विश्वासी हैं? (नहीं।) इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि परमेश्वर का घर किस तरह के कार्य के बारे में संगति करता है या किस तरह के लोगों का भेद पहचानता है और परमेश्वर लोगों के लिए चाहे किसी भी परिवेश की व्यवस्था करता हो, इसका उद्देश्य यह है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग इन चीजों से सबक सीखें, वे राज्य में ज्यादा व्यावहारिक तरीके से प्रशिक्षण प्राप्त करें और वे—इन व्यावहारिक सबक के जरिए—सत्य समझने लगें और लोगों के भेद पहचानने लगें, लोगों और विभिन्न मामलों को स्पष्ट रूप से देखने लगें और इस प्रकार बेहतर ढंग से यह समझ सकें कि परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए वचन और सत्य आखिर किन वास्तविक लोगों, घटनाओं और चीजों के बारे में बात कर रहे हैं। लेकिन संदेही लोग इन चीजों से सबक सीखने में ही असमर्थ नहीं होते हैं, बल्कि वे और भी संदेही और चालाक बन जाते हैं।

कुछ संदेही लोग जब भी परमेश्वर के घर में कुछ कहते या करते हैं, तो वे हमेशा बेहद सावधान रहते हैं, लगातार इस बात से डरते हैं कि भाई-बहन या अगुआ और कार्यकर्ता उनकी काट-छाँट करेंगे या यहाँ तक कि उन्हें सताएँगे भी। वे कहते हैं, “अगर मैं परमेश्वर में विश्वास रखना बंद कर दूँ और कलीसिया छोड़ दूँ, तो क्या कलीसिया मुझसे प्रतिशोध लेगी?” उन्हें इस बारे में निश्चिंत रहना चाहिए। अगर कोई छद्म-विश्वासी कलीसिया छोड़ देता है, तो यह सभी पक्षों के लिए खुशी का मौका है—इससे सभी का फायदा है। इसलिए, अगर तुम कलीसिया छोड़ना चाहते हो या अपने घर वापस जाने और अपना जीवन जीने के लिए अपना कर्तव्य छोड़ देना चाहते हो, तो तुम्हें बिना किसी चिंता के यह बात बेधड़क उठानी चाहिए। तुम एक बयान भी लिख सकते हो, उसमें यह कहना : “अमुक तारीख से मैं आधिकारिक रूप से सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया छोड़ रहा हूँ और अपना कर्तव्य करने वालों की श्रेणी से हट रहा हूँ।” इसकी पूरी तरह से अनुमति है। परमेश्वर के घर के दरवाजे खुले हैं और तुम बिना इस चिंता के बेधड़क इसे छोड़ सकते हो कि कोई तुमसे प्रतिशोध लेगा। डरने या संदेही होने की कोई जरूरत नहीं है। क्या तुम्हें कलीसिया में इन लोगों के बीच बुरे व्यक्ति दिखाई देते हैं? बिल्कुल नहीं। फिर भी अगर बुरे लोग हों, तो उन्हें दूर कर देना चाहिए। ज्यादातर लोग काफी शिष्ट होते हैं और जीवन में सही रास्ते पर चलना पसंद करते हैं। दूसरों से प्रतिशोध लेना या उन्हें नुकसान पहुँचाना सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन है और वे ऐसा कभी नहीं कर सकते हैं। तुम लोगों को क्या लगता है कि संदेही लोगों के आचरण के तरीके में क्या गलत है? उनके पास सिर्फ एक अविश्वासी मन है, लेकिन प्रतिभा नहीं है। वे मानते हैं कि जब बात उनके आचरण के तरीके की आती है, तो उनका चालाक, धोखेबाज और अविश्वासी मन ही बुद्धि का सर्वोच्च रूप होता है। उन्हें न तो सत्य सिद्धांतों में दिलचस्पी है और ना ही परमेश्वर के कार्य और वचनों में—वे न तो समझते हैं और ना ही समझने का प्रयास करते हैं। इसके बजाय, वे सिर्फ शैतान के फलसफों के अनुसार जीते हैं, यह सोचते हैं, “मेरे साथ चाहे कुछ भी हो जाए, मुझे चीजों पर ज्यादा प्रश्न करने चाहिए। इसके अलावा, मुझे लगता है कि मैं चाहे किसी के भी प्रति संदेह क्यों ना रखूँ, मेरा ऐसा करना उचित है और चाहे मेरा संदेह तथ्यों से मेल खाए या ना खाए, यह जायज है। संक्षेप में, परिस्थितियों का सामना करने पर ज्यादा संदेह करना मेरे लिए फायदेमंद है।” फलस्वरूप, वे चाहे कितने भी वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास क्यों ना रख लें, वे कभी भी परमेश्वर के वचनों में सत्य की तलाश नहीं करते हैं और ना ही वे अपनी विभिन्न समस्याओं और आशंकाओं का समाधान करने के लिए परमेश्वर के वचनों में उत्तर तलाशते हैं। इसके बजाय, वे इन मामलों का विश्लेषण करने और उनसे निपटने के लिए अपने मन, अविश्वासी मानसिकता, सांसारिक आचरण के फलसफों या अपने जीवन के अनुभवों पर भरोसा करते हैं। अंत में, वे जितना ज्यादा विभिन्न परिस्थितियों का सामना करते हैं और वे जितना ज्यादा विभिन्न प्रकार की जानकारी सुनते हैं, उससे ना सिर्फ उनकी संदेही प्रकृति अपरिवर्तित रहती है, बल्कि उनकी आशंकाएँ भी लगातार बढ़ती जाती हैं। मिसाल के तौर पर, जब इस तरह के संदेही व्यक्ति को परमेश्वर में विश्वास रखते हुए एक-दो वर्ष हो जाते हैं और वह परमेश्वर के घर को बदनाम करने के लिए सीसीपी द्वारा गढ़ी गई झाओयुआन की घटना के बारे में सुनता है, तो वह सोचता है, “हो सकता है कि यह परमेश्वर के घर ने ही किया हो। अगर इसका आदेश परमेश्वर के घर ने नहीं भी दिया हो, तो भी इसे जरूर नीचे के कुछ भाई-बहनों ने किया होगा और तुम लोग बस इसे मान नहीं रहे हो।” तीन से पाँच वर्ष तक परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद भी वे घटनाओं के बारे में बड़े लाल अजगर की बातों पर विश्वास करते हैं। आठ से दस वर्ष बाद भी परमेश्वर के घर के बारे में उनकी आशंकाएँ अनसुलझी रहती हैं। वे यह नहीं मानते कि बड़ा लाल अजगर ही कलीसिया को फँसा रहा था और बदनाम कर रहा था; वे सीधा यह मान लेते हैं कि यह परमेश्वर के घर के लोगों की ही करतूत है। देखा तुमने, जब वे किसी मामले को देखते हैं, तो यह कभी भी परमेश्वर के वचनों या सत्य सिद्धांतों पर आधारित नहीं होता है—वे बड़े लाल अजगर की बातों पर विश्वास करते हैं और मामले को राक्षसों और शैतान के नजरिये से देखते हैं। शैतान परमेश्वर के चुने हुए लोगों का चाहे कैसे भी दमन करे और उनके साथ क्रूर व्यवहार करे, उन्हें लगता है कि यह स्वाभाविक बात है, लेकिन वे कभी भी यह नहीं मानते कि परमेश्वर का घर निर्दोष है या जो भाई-बहन परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण उत्पीड़न सहते हैं वे निर्दोष हैं। भले ही वे अपनी आँखों से यह देखें कि परमेश्वर के घर में सभी भाई-बहन शिष्ट लोग हैं और अपनी सीमा में रहते हैं, फिर भी वे अपने दिल में बिना किसी संदेह के उन चीजों पर विश्वास करते हैं जो बड़े लाल अजगर ने कलीसिया को बदनाम करने के लिए की हैं। भले ही ऐसे लोग परमेश्वर में विश्वास रखने में कष्ट सह सकते हैं, कीमत चुका सकते हैं और यहाँ तक कि चढ़ावा भी चढ़ा सकते हैं, लेकिन आखिरकार वे छद्म-विश्वासी ही हैं। दरअसल, संदेही लोग उन लोगों की तुलना में ज्यादा परेशान करने वाले लोग होते हैं जो सत्य से प्रेम नहीं करते हैं या उसे स्वीकार नहीं करते हैं। वे किस तरह से ज्यादा परेशान करने वाले लोग हैं? जो लोग सत्य में दिलचस्पी नहीं रखते हैं वे कलीसिया के कार्य में और कर्तव्यों के निर्वहन में पूरी तरह से उदासीन होते हैं और उनकी इनमें कोई दिलचस्पी नहीं होती है; विश्वासी लोग चाहे जैसे भी परमेश्वर का अनुसरण करें या अपने कर्तव्य करें, यह उनके लिए महत्वहीन है। फलस्वरूप, उन्हें परमेश्वर में विश्वास रखने या कोई कर्तव्य करने के मामलों के बारे में आशंकाएँ नहीं होती हैं और वे आम तौर पर कलीसिया के मामलों के बारे में कभी पूछताछ नहीं करते हैं। लेकिन संदेही लोग इसके बिल्कुल विपरीत होते हैं—वे सुनी-सुनाई बातों के बारे में पूछताछ करना पसंद करते हैं। वे इन चीजों के बारे में क्यों पूछताछ करना चाहते हैं? उनका एक लक्ष्य निश्चित रूप से यह है : “अगर मैं ज्यादा पूछताछ करता हूँ और ज्यादा जानता हूँ, तो मुझे पहले से ही अपनी अतिरिक्त योजना तैयार करने और किसी भी समय यह तय करने में मदद मिलेगी कि मुझे कलीसिया में रहना है या इसे छोड़ना है।” वे कुछ मामलों के बारे में पूछताछ करने पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं, जैसे कि किसी विशेष अगुआ या कार्यकर्ता का असली नाम क्या है, वह कहाँ रहता है, लौकिक दुनिया में उसका किस तरह का पेशा है या उसने अपना कर्तव्य करने के लिए अपना घर क्यों छोड़ा। वे सुसमाचार प्रचार करने वालों के बारे में भी पूछताछ कर सकते हैं, जैसे कि उन्होंने किसे सुसमाचार सुनाया, उनके परिवार के कौन-से सदस्य परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, वे कितने वर्षों से सुसमाचार प्रचार कर रहे हैं, उन्होंने कितने लोग प्राप्त किए हैं, वगैरह-वगैरह। वे इन सभी चीजों के बारे में बहुत विस्तार से पूछताछ करते हैं। संदेही लोग इस तरह की जानकारी इकट्ठा करना पसंद करते हैं और एक बार जब वे इसे इकट्ठा कर लेते हैं, तो वे निश्चिंत हो जाते हैं, यह सोचते हैं कि इन चीजों को जानना बहुत जरूरी है और वे महत्वपूर्ण समय में इस जानकारी का उपयोग कर सकते हैं। संदेही लोगों के पास बहुत ज्यादा जानकारी होती है। वे “सूचना का भंडार” होते हैं और वे कुछ ऐसी चीजें भी जानते हैं जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को नहीं पता होती हैं, जैसे कि कौन अपना कर्तव्य करने के लिए विदेश गया है और वह किस देश में गया है—उन्हें दूसरे देशों में जाने वाले लोगों के बारे में भी ये चीजें पता होती हैं। लेकिन अगर तुम उनसे पूछो कि धर्मोपदेशों का कौन-सा भाग सबसे हाल ही में जारी किया गया है, तो वे तुम्हें नहीं बता पाएँगे। वे जीवन प्रवेश के मामलों पर कभी ध्यान नहीं देते हैं, लेकिन जब भाई-बहनों की व्यक्तिगत जानकारी और कलीसिया की कुछ परिस्थितियों की बात आती है, तो वे उन चीजों पर बहुत स्पष्ट होते हैं। अक्सर चीजों के बारे में पूछताछ करने का उनका एक उद्देश्य सभी प्रकार की परिस्थितियों के बारे में ज्यादा जानना होता है जिसके बाद वे किसी भी समय अपने लिए बाहर निकलने का रास्ता तैयार कर सकते हैं। उनका मानना है कि अपने बाहर निकलने के रास्ते के बारे में नहीं सोचना निहायत बेवकूफी होगी—अविश्वासियों के शब्दों में कहें, तो वे “किसी के द्वारा धोखे से बेचे जाने के बाद उसके पैसे गिनने में उसकी मदद कर रहे होंगे।” दरअसल, वे सड़े हुए पुराने भोजन की तरह हैं, एक धेले के भी लायक नहीं हैं और फिर भी वे खुद को बहुत मूल्यवान समझते हैं। तुम लोग क्या सोचते हो, क्या ये लोग संदेही हैं? (हाँ।) ये सचमुच संदेही लोग हैं। संदेही लोगों में विशेष रूप से चालाक और धोखेबाज मानवता होती है। कुछ लोग चालाकी और धोखेबाजी को उच्च प्रतिभा के संकेतों के रूप में देखते हैं, लेकिन यह गलत है। दरअसल, ये चालाक और धोखेबाज लोग निहायत बेवकूफ होते हैं और इनमें बिल्कुल भी काबिलियत नहीं होती है। उनकी काबिलियत बहुत खराब होती है और इसे बदलना पहले से ही कठिन होता है; उनके चालाक भी होने का अर्थ है कि उन्हें ठीक करना और भी कठिन होता है। अगर कोई व्यक्ति सिर्फ खराब काबिलियत वाला है, लेकिन वह अपेक्षाकृत ईमानदार है और चालाक नहीं है और वह ईमानदारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन कर सकता है, तो शायद अब भी उसके पास बचाए जाने की उम्मीद की एक किरण बाकी है। अगर उसकी काबिलियत खराब है और वह कुछ हद तक धोखेबाज है, लेकिन वह सत्य स्वीकार सकता है और खुद को जान सकता है, तो शायद उसके पास अपना धोखेबाज स्वभाव छोड़ देने की उम्मीद की एक किरण बाकी है। अगर वह सत्य समझ सकता है और धीरे-धीरे उसे जान सकता है और उसमें प्रवेश कर सकता है, तो उसकी संदेहशीलता थोड़ी-थोड़ी करके हट सकती है। लेकिन बदकिस्मती से इन लोगों में काबिलियत की कमी होती है, वे धोखेबाज, चालाक और काफी हद तक बेवकूफ भी होते हैं। यह उस अंधे व्यक्ति की तरह है जिसे आँख की समस्या है—इसका कोई इलाज नहीं है, है ना? (सही कहा।) ऐसे लोगों को ठीक नहीं किया जा सकता। चूँकि ये लोग इस हद तक संदेही होते हैं कि इन्हें ठीक नहीं किया जा सकता, तुम लोगों को क्या लगता है कि उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? (अगर ऐसे लोगों का पता चलता है, तो उनसे चौकस रहना चाहिए। वे अपनी रक्षा करने के लिए कलीसिया के साथ विश्वासघात करने में सक्षम हैं; वे खतरनाक व्यक्ति हैं। हम उन्हें उजागर करने और उन्हें बाहर निकालने के अवसर तलाश सकते हैं या अगर हमें ऐसा करने का कोई अवसर नहीं मिलता है, तो हम बुद्धिमानी से उन्हें कलीसिया छोड़ने के लिए राजी कर सकते हैं।) एक बार जब तुम आश्वस्त हो जाते हो कि कोई व्यक्ति संदेही है, तो उसके साथ मेलजोल मत रखो। उसके साथ मेलजोल रखने से सिर्फ मुसीबत ही खड़ी होगी। अगर तुम उससे मेलजोल रखोगे, तो वह हमेशा तुम्हें समझने का प्रयास करेगा। अगर तुम बाहर जाने वाले होगे, तो वह तुम पर कड़ी नजर रखेगा, लगातार पूछता रहेगा, “तुम कहाँ जा रहे हो? कितने दिनों के लिए जा रहे हो? क्या करने जा रहे हो?” जब तुम वापस आओगे, तो वह पूछेगा, “तुम किससे मिले? क्या तुमने अपना कार्य पूरा किया? तुम लोगों ने किस बारे में बात की?” अगर तुमने उसे उत्तर नहीं दिया, तो वह शिकायत करेगा : “वे मेरे साथ किसी भी चीज की जानकारी साझा नहीं करते हैं। उन्हें मुझ पर भरोसा नहीं है, है ना? वे मुझे परमेश्वर के घर का सदस्य नहीं मान रहे हैं! उन्होंने कहा कि वे कलीसियाई कार्य करने जा रहे हैं, लेकिन वे मुझसे यह बात क्यों छिपा रहे हैं? वे जरूर कोई गैर-कानूनी चीज करने गए होंगे।” वह हमेशा तुम्हारी पीठ पीछे तुम्हारी जासूसी करेगा। ऐसे लोग वाकई परेशान करने वाले लोग होते हैं। वे ढेरों चीजों के बारे में पूछताछ करते हैं, सब कुछ जानना चाहते हैं। लेकिन एक बार जब उन्हें वे चीजें मालूम हो जाती हैं, तो वे उन्हें विशुद्ध रूप से समझ नहीं पाते हैं या उन्हें सही तरीके से सँभाल नहीं पाते हैं और वे उनमें संदिग्ध भागों की तलाश भी करते हैं जिससे उनका संदेह लगातार बढ़ता जाता है। मान लो कि तुम उन्हें सलाह देते हुए कहते हो, “चूँकि तुम्हें परमेश्वर के बारे में इतने बड़े संदेह हैं और चूँकि तुम यह विश्वास नहीं करते कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं और वे मनुष्य को शुद्ध कर सकते हैं और बचा सकते हैं, इसलिए तुम्हें परमेश्वर में विश्वास रखना ही बंद कर देना चाहिए!” वे ऐसा करने के इच्छुक नहीं होंगे—वे अब भी विश्वास करना चाहेंगे और अब भी आशीषें प्राप्त करना चाहेंगे। क्या ये लोग परेशान करने वाले लोग नहीं हैं? (हाँ।) इन लोगों से निपटना आसान है। अगर वे कलीसिया में बड़ी मुसीबत ला सकते हैं, तो जल्दी से उन्हें छोड़ने के लिए राजी करो। ये लोग भरोसेमंद नहीं हैं, उनमें सत्य समझने की क्षमता नहीं है और अगर वे थोड़ा-सा कर्तव्य कर भी सकते हों, तो भी वे परमेश्वर के घर में बड़ी मुसीबत ले आएँगे—वे भला कम और बुरा ज्यादा करते हैं। इसलिए, उन्हें कलीसिया छोड़ने के लिए राजी करना जरूरी है।

कायर लोग समस्यात्मक होते हैं और संदेही लोग भी समस्यात्मक होते हैं। लेकिन जो लोग कायर और संदेही दोनों होते हैं, वे और भी ज्यादा समस्यात्मक होते हैं। ये लोग बेहद डरपोक होते हैं और मृत्यु से डरते हैं; वे हर चीज के बारे में संदेही होते हैं, लगातार इस बारे में संदेही होते हैं कि क्या परमेश्वर में विश्वास रखने से वे चालबाजी का शिकार हो जाएँगे। वे डरते हैं कि उनकी संभावनाओं में बाधा आ सकती है और उन्हें लगता है कि गिरफ्तार होने और सताए जाने के कारण उनकी मृत्यु होना शायद ही सार्थक होगा। अगर वे इस हद तक संदेही हैं, तो परमेश्वर में विश्वास रखने में उनका क्या उद्देश्य है? क्या यह उनके लिए सिर्फ चीजें कठिन नहीं बना रहा है? वे भाई-बहनों और परमेश्वर के घर की हर कार्य-व्यवस्था से ऐसे चौकस रहते हैं मानो वे ठगों से चौकस हों, ठीक वैसे ही जैसे वे बड़े लाल अजगर या राक्षसों और शैतान से चौकस रहते हैं। कुछ लोग अब भी उन्हें सलाह देने का प्रयास करते हुए कहते हैं, “बस यह सुनिश्चित करो कि तुम निष्ठापूर्वक परमेश्वर में विश्वास रखो, सत्य का अनुसरण करो और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करो और परमेश्वर तुम्हें स्वीकृति देगा।” लेकिन वे अपने मन में क्या सोच रहे हैं? “तुम चाहते हो कि मैं अपना कर्तव्य उचित रूप से करूँ, लेकिन एक बार जब मैं मशहूर हो जाऊँगा और बड़ा लाल अजगर मुझे गिरफ्तार कर लेगा, तो क्या वह मेरा अंत नहीं होगा?” अगर उनकी वाकई यह मानसिकता है, तो उन्हें सलाह देने का प्रयास करने का कोई अर्थ नहीं है। वे बेहद डरपोक हैं और हमेशा मृत्यु से आतंकित रहते हैं। जब वे सुनते हैं कि परमेश्वर में विश्वास रखने वालों को गिरफ्तार किया गया है, तो वे इतने डर जाते हैं कि उनकी पतलूनें गीली हो जाती हैं। लेकिन जब व्यापार में लोगों को ठगने और धोखा देने की बात आती है, तो चाहे वे कितनी भी मुसीबत में क्यों ना पड़ जाएँ, वे बिल्कुल भी नहीं डरते हैं—वे इस संबंध में बहुत साहसी हैं। लेकिन जब परमेश्वर में विश्वास रखने के मामलों की बात आती है, तो वे बेहद डरपोक होते हैं। वे भाई-बहनों के बारे में, परमेश्वर के घर के बारे में और विशेष रूप से, परमेश्वर और परमेश्वर के वचनों और कार्य के बारे में सभी तरह की आशंकाओं से भरे होते हैं और कितनी भी संगति इन आशंकाओं को दूर नहीं कर सकती है। वे चाहे कितने भी वर्षों तक विश्वास क्यों ना रखें, उन्हें अब भी यह नहीं पता होता है कि परमेश्वर में विश्वास रखने का क्या अर्थ है या उन्हें क्यों सभाएँ करने और अपना कर्तव्य निभाने की जरूरत है। यह स्पष्ट है कि ये लोग कमजोर बुद्धि वाले होते हैं; काफी चालाक और धोखेबाज होते हैं। ऐसे लोगों को जल्दी से कलीसिया छोड़ने के लिए राजी करना चाहिए। अगर वे सभाओं में आना बंद कर देते हैं और अब अपना कर्तव्य नहीं करना चाहते हैं क्योंकि वे कायर हैं या कोई दूसरा कारण है, तो यह बढ़िया है—इससे उन्हें बाहर निकाल देने की परेशानी से छुटकारा मिल जाता है और झंझट से बचा जा सकता है। अगर किसी दिन उनकी परमेश्वर में विश्वास रखने में फिर से दिलचस्पी हो जाती है और वे परमेश्वर में विश्वास रखने में लौटना चाहते हैं, तो तुम उन्हें बता सकते हो, “परमेश्वर के विश्वासी के रूप में तुम्हें कभी भी गिरफ्तार करके जेल में डाला जा सकता है और यहाँ तक कि इसमें तुम्हारी जान जाने का भी जोखिम है। लेकिन अगर तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते हो, बल्कि दुनिया में व्यापार करते हो और बहुत पैसे कमाते हो, तो शायद तुम कुछ आरामदायक दिनों का आनंद ले पाओगे।” यह सुनने के बाद उनके दिल पूरी तरह से निश्चिंत हो जाएँगे और फिर वे परमेश्वर में विश्वास रखने के बारे में और नहीं सोचेंगे। वे सोचेंगे, “आखिरकार मेरी चिंता और डर के वर्ष समाप्त हो गए हैं। अब मुझे कलीसिया, भाई-बहनों या परमेश्वर के घर पर संदेह करने की जरूरत नहीं है। आखिरकार मैं आजाद हो गया हूँ।” और बस ऐसे ही ये कायर और संदेही लोग कलीसिया छोड़ने के लिए मान जाते हैं। यह बड़ी मुसीबत को दूर कर देता है, है ना? (हाँ।) यह इस मामले को हल करने का एक बढ़िया तरीका है।

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