अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (20) खंड पाँच

नकली अगुआ लोगों से परमेश्वर के वचनों के अनुसार नहीं अपितु अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार व्यवहार करते हैं। वे बिना किसी सिद्धांतों के कार्य करते हैं, और जो चाहते हैं वही करते हैं। जब वे देखते हैं कि मसीह-विरोधी कलीसिया में विघ्न डाल रहे हैं, तो नकली अगुआ उनसे नफरत नहीं करते। वे मानते हैं कि परमेश्वर के कुछ वचनों को मसीह-विरोधियों को पढ़कर सुनाने से उनकी गड़बड़ियाँ और बाधाएँ सीमित की जा सकती हैं। मसीह-विरोधी किस तरह के लोग हैं? वे दानव हैं, वे शैतान हैं! मसीह-विरोधी चाहे कितने भी वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास करते रहे हों, वे सत्य बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं और वे कलीसिया के कार्य में गड़बड़ कर और बाधा डाल सकते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में बाधा डाल सकते हैं। वे वास्तविक जीवन के दानव और शैतान हैं। नकली अगुआ मसीह-विरोधियों को पश्चाताप का एहसास कराने और परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश पढ़कर उनका मन बदलने की उम्मीद करते हैं। क्या यह बेहद मूर्खतापूर्ण नहीं है? मसीह-विरोधियों जैसे लोग सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं। चाहे उन्होंने कितने भी बुरे काम क्यों न किए हों, वे आत्म-चिंतन करने या खुद को जानने का प्रयास नहीं करेंगे, और चाहे उन्होंने कितनी भी गलतियाँ क्यों न की हों, वे अपनी त्रुटियाँ स्वीकार नहीं करेंगे। वे कमबख्त नरक के लिए नियत हैं, फिर भी तुम सोचते हो कि परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश पढ़ने और कुछ प्रोत्साहन देने से वे बदल सकते हैं—क्या यह खयाली पुलाव पकाना नहीं है? यदि भ्रष्ट मानवजाति इतनी आसानी से सत्य स्वीकार कर लेती, तो परमेश्वर को न्याय और ताड़ना का कार्य करने की आवश्यकता नहीं होती। परमेश्वर अपने कार्य में इतने सारे वचन क्यों कहता है और इतने सारे सत्य क्यों व्यक्त करता है? ऐसा इसलिए है क्योंकि लोगों को बचाना आसान नहीं है, क्योंकि लोगों की मुश्किलें बहुत ज्यादा हैं और उनका विद्रोह बहुत बड़ा है! केवल उसी को बचाया जा सकता है जो सत्य को स्वीकार कर सकता है। जो सत्य से विमुख हैं और उससे नफरत करते हैं उन्हें नहीं बचाया जा सकता। हालाँकि, नकली अगुआओं का मानना है कि यदि वे छद्म-विश्वासियों, कुकर्मियों, और मसीह-विरोधियों को कुछ कठोर शब्द कह देते हैं, तो ये व्यक्ति पश्चाताप महसूस करेंगे और स्वयं को जानेंगे, और यदि वे तब उनसे कुछ उपदेशात्मक और सांत्वनापूर्ण शब्द कहेंगे, तो वे पश्चाताप करेंगे, जिससे वे अपने कर्तव्यों को करने पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकेंगे, वफादार बन सकेंगे, और स्वभाव में परिवर्तन कर पाएँगे, और मसीह-विरोधी आज्ञाकारी भेड़ में बदल जाएँगे। क्या यह एक मूर्खतापूर्ण विचार नहीं है? यह विचार बहुत ज्यादा मूर्खतापूर्ण है! यह किसी पगले की बकवास जैसा है—चीजें इतनी सरल कैसे हो सकती हैं! परमेश्वर तीस वर्षों से अधिक समय से न्याय करने का काम कर रहा है, और लोगों को कितना आत्म-ज्ञान और परिवर्तन हासिल हुआ है? केवल चंद लोगों को कुछ परिणाम प्राप्त हुए हैं। जो लोग सत्य से प्रेम नहीं करते हैं, चाहे वे कितने भी धर्मोपदेश क्यों न सुन लें, ज्यादा से ज्यादा उन्हें कुछ धर्म-सिद्धांत समझ आएँगे। उनका जीवन स्वभाव बिल्कुल भी नहीं बदला है, और यहाँ तक कि वे अच्छा व्यवहार और अच्छे कार्य करते शायद ही दिखाई देते हैं। ये किस तरह के लोग हैं? ये वो लोग हैं जो पेट भर खाते हैं—वे सत्य बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं। उनका ध्यान केवल परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद लेने पर होता है और केवल आशीष की तलाश में रहते हैं; वे कुछ नहीं बस इंसान की खाल में जानवर हैं! शैतान ने लोगों को बुरी तरह भ्रष्ट कर दिया है; वे भ्रष्ट स्वभावों से भरे हुए हैं, और उनकी हड्डियों और खून में शैतान का विष भरा हुआ है। यदि वे सत्य, परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार नहीं कर सकते, तो वे परमेश्वर के सामने सचमुच समर्पण कैसे कर सकते हैं? वे अपना कर्तव्य वफादारी से कैसे निभा सकते हैं? वे परमेश्वर का भय कैसे मान सकते हैं और बुराई से कैसे दूर हो सकते हैं? क्या उद्धार पाना इतना आसान हो सकता है जितनी लोग कल्पना करते हैं? शैतान ने लोगों को हजारों सालों से, उस हद तक भ्रष्ट किया है कि वे दानव बन गए हैं। अब परमेश्वर उनको बचाने आया है, और चाहे वह कितने भी वचन क्यों न बोले, दानव बन चुके लोगों को सचमुच इंसान बनाना अविश्वसनीय रूप से कठिन कार्य है। न केवल परमेश्वर को अनेक सत्य उजागर करने की जरूरत होती है, अपितु लोगों को भी सत्य का अनुसरण करके, उसे स्वीकार करके, और उसका अभ्यास करके सहयोग करने के लिए अपनी भरपूर कोशिश करनी चाहिए—केवल तभी वे शैतान के प्रभाव से मुक्त हो सकते हैं और परमेश्वर का उद्धार पा सकते हैं। परमेश्वर ने एक बार कहा था, “बुलाए बहुत जाते हैं लेकिन चुने कुछ ही जाते हैं।” हालाँकि अनेक लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, जिन लोगों को परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का सचमुच अनुभव होता है, और जो उसके कार्य के प्रति पूरी तरह समर्पित हो जाते हैं, केवल उन्हें ही शुद्ध किया और पूर्ण बनाया जा सकता है। जो छद्म-विश्वासी, कुकर्मी, और मसीह-विरोधी थोड़ा-भी सत्य स्वीकार नहीं करते, अपने दिलों में सत्य से विमुख हैं, उन्हें परमेश्वर का उद्धार कभी प्राप्त नहीं होगा, और परमेश्वर के कार्य द्वारा केवल उनका खुलासा किया और हटाया ही जा सकता है। नकली अगुआओं को परमेश्वर के कार्य की कोई समझ नहीं है। वे लोगों को बचाने के परमेश्वर के कार्य के बारे में ऐसे सरल शब्दों में सोचते हैं, और मानते हैं कि कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों को परमेश्वर के कुछ वचन पढ़कर सुनाने और काट-छाँट के कुछ कठोर वचन कहने से, वे पश्चाताप करेंगे और बदल जाएँगे, और अपने कर्तव्यों को निभाने में वफादार बन जाएँगे। यहाँ समस्या क्या है? सत्य का अनुसरण न करने और सत्य को न समझने के अलावा, यह इसलिए भी है क्योंकि नकली अगुआओं की क्षमता बेहद खराब होती है; इसलिए, जब परमेश्वर के कार्य और परमेश्वर लोगों को कैसे बचाता है, इसकी बात आती है तो उन्हें बिल्कुल भी समझ नहीं होती है। यह देखने के लिए कि किसी व्यक्ति का सार क्या है, क्या उसमें सत्य वास्तविकता है, और उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए, उसकी काबिलियत और सत्य के प्रति उसके दृष्टिकोण पर विचार करना आवश्यक है—तुम्हें यह देखना चाहिए कि सत्य के बारे में उसकी समझ कैसी है और क्या वह सत्य स्वीकार कर सकता है। तो, यह मापने का आधार क्या है कि कोई व्यक्ति सत्य समझ सकता है या नहीं? यह मुख्य रूप से उसकी काबिलियत की गुणवत्ता और इस बात पर निर्भर करता है कि परमेश्वर के वचनों की उसकी समझ शुद्ध है या नहीं। कुछ लोग पचास या साठ साल तक जीवित रहते हैं और फिर भी मानवजाति के भ्रष्टाचार के सार और वास्तविकता की असलियत नहीं जान पाते हैं। वे अभी भी मानव समाज को सुंदर मानते हैं और दूसरों के साथ शांति और सद्भाव से रहना चाहते हैं। क्या यह बेहद मूर्खतापूर्ण और सरल होना नहीं है? यदि परमेश्वर पर विश्वास करने से सभी लोग अच्छे इंसान बन सकते, तो क्या लोगों को बचाने के लिए परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के कार्य की आवश्यकता होती? नकली अगुआ विभिन्न लोगों का निरूपण परमेश्वर के वचनों के आधार पर नहीं करते हैं, बल्कि केवल उनके बाहरी व्यवहार और व्यक्तिगत प्रभावों के आधार पर निर्णय लेते हैं। वे जो काम करते हैं वह भी बच्चों के घर-घर खेलने जैसे बहुत सतही होते हैं। वे सोचते हैं कि वे कभी-कभी किसी निश्चित स्थिति पर लागू करने के लिए परमेश्वर के सही वचन पा सकते हैं, और लोगों को परमेश्वर के कुछ वचन पढ़कर सुनाने मात्र से उनमें बदलाव आ जाएगा : “देखो, मेरी अगुआई और प्रोत्साहन के तहत, मेरी प्रेमपूर्ण सहायता से, परमेश्वर के वचनों ने लोगों पर प्रभाव डाला है। वे अब मसीह-विरोधी बने रहना नहीं चाहते और वे परमेश्वर में विश्वास करने के बारे में अपने विचार बदलने को तैयार हैं। वे अब सत्ता और लाभ के लिए होड़ नहीं करेंगे, न ही वे स्वतंत्र राज्य स्थापित करेंगे; वे अब कलीसिया के काम में गड़बड़ नहीं करेंगे और बाधा नहीं डालेंगे और न ही भाई-बहनों को गुमराह करेंगे या उन्हें अपने साथ जोड़ेंगे!” क्या तुम उन्हें रोक सकते हो? तुम उन लोगों को कभी नहीं रोक सकते जो वास्तव में कुकर्मी हैं और गड़बड़ियाँ करते और बाधाएँ डालते हैं। क्योंकि उनमें कुकर्मियों का सार है, वे दिन या रात के किसी भी समय बुरे काम करते हैं; जब भी उन्हें मौका मिलता है, वे बुरे काम करते हैं। क्या तुम्हारे लिए उन्हें कलीसिया से बाहर नहीं निकालना ठीक है? क्या वे स्वेच्छा से अपने बुरे कार्य छोड़ देंगे? वे इंसान नहीं हैं; वे दानव और शैतान हैं! दानवों और शैतान ने कितने साल परमेश्वर का विरोध किया? वे आज तक भी परमेश्वर का प्रतिरोध करते आ रहे हैं। मसीह-विरोधी और सभी प्रकार के बुरे लोग जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में गड़बड़ करते और बाधा डालते हैं, वे वास्तविक जीवन के दानव और शैतान हैं; वे वास्तविक जीवन में दुश्मन हैं। क्या वे तुम्हारे कुछ शब्दों या तुम्हारे प्रेमपूर्ण हृदय के कारण अपना सार बदल सकते हैं? तुम बहुत मूर्ख हो! तुम सोचते हो कि तुम लोगों को पाप से बचा सकते हो, सिर्फ इसलिए कि तुम थोड़ा धर्म-सिद्धांत समझते हो? क्या तुम उन्हें बचा सकते हो? नरक उनकी नियति है, और तुम सोचते हो कि कुछ अच्छे शब्द उन्हें बदल सकते हैं। क्या यह इतना आसान है? अगर लोगों को बचाना इतना आसान होता, तो परमेश्वर को इतने सारे वचन कहने या न्याय और ताड़ना का कार्य करने की जरूरत नहीं होती। क्या उसे लोगों को बचाने के लिए इतना समय लगाने और अपने हृदय का इतना रक्त बहाने की जरूरत होती?

अब, कलीसिया में, विभिन्न लोगों का पहले ही खुलासा किया जा चुका है और उन्हें उनके प्रकार के अनुसार छाँटा जा चुका है। हरेक को उनकी किस्म के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा, और परमेश्वर के घर में इस बात को नियमित करने के लिए सिद्धांत और प्रशासनिक आदेश हैं कि विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना है और उन्हें कैसे सँभालना है। परमेश्वर में धैर्य और सहनशीलता, कृपा और प्रेमपूर्ण-करुणा, और धार्मिकता का स्वभाव है—लेकिन यह बात न भूलो कि परमेश्वर में क्रोध और प्रताप भी है। कुछ लोग कहते हैं, “परमेश्वर चाहता है कि प्रत्येक व्यक्ति उद्धार पाए और वह नहीं चाहता कि कोई भी तबाही झेले।” यह सच है, लेकिन परमेश्वर चाहता है कि “प्रत्येक व्यक्ति” बचाया जाए, प्रत्येक चीज या प्रत्येक दानव को नहीं। जब लोग बर्बाद होते हैं, तो परमेश्वर को दुःख और शोक का एहसास होता है। जब दानव तबाह होते हैं, तो यह उनका सही अंत है और उचित सजा है; परमेश्वर उनके लिए दुःख नहीं होता है। यह परमेश्वर का स्वभाव है और लोगों से निपटने का उसका सिद्धांत है। लोग यह सोचते हुए हमेशा परमेश्वर का विरोध करना चाहते हैं कि वे छद्म-विश्वासी, कुकर्मी, और मसीह-विरोधी भी इंसान हैं। उनका मानना है कि जो निरंतर कलीसिया के कार्य में गड़बड़ करते और बाधा डालते हैं वे भी इंसान हैं, जो रुतबे की होड़ में लगे रहते हैं और स्वतंत्र राज्यों की स्थापना करते हैं वे भी इंसान हैं, और जो निरंतर कामुकतापूर्ण व्यवहार में लिप्त रहते हैं वे भी इंसान हैं। वे इन सभी शैतानी किस्म के लोगों को परमेश्वर के चुने हुए लोगों में सूचीबद्ध करते हैं। क्या यह बेतुकी बात नहीं है? परमेश्वर जो चाहता है क्या यह उसके विरुद्ध नहीं है? क्योंकि मामलों पर उनके दृष्टिकोण परमेश्वर के वचनों और सत्य के पूरी तरह विरुद्ध होते हैं, विभिन्न नकारात्मक हस्तियों, दानवों, और शैतानों के संबंध में उनकी राय परमेश्वर के वचनों के पूरी तरह विपरीत है, और बहुत भिन्न है। परमेश्वर ने शैतान का अनुसरण करने वाले दानवों के साथ कभी भी इंसान जैसा व्यवहार नहीं किया है। परमेश्वर इन लोगों को कैसे निरूपित करता है? वे दानव शैतान के चाकर हैं; वे जानवर हैं। नकली अगुआ अपने अच्छे इरादों और भ्रमित प्रेम की वजह से, और अपनी खुद की स्वेच्छाचारी सोच से विवश होकर इन छद्म-विश्वासियों, दानवों और शैतान के चाकरों को भाई-बहन मानते हैं। इसलिए, वे उनसे बड़ा प्रेम और दया जताते हैं, निरंतर उनकी सहायता और उनका समर्थन करते हैं। क्योंकि नकली अगुआ उन लोगों को अपना समर्थन, सहायता, और अगुआई प्रदान करते हैं, इसलिए सच्चे भाई-बहन, जिन्हें परमेश्वर बचाना चाहता है, बुरी तरह परेशान होते हैं; कलीसिया का जीवन कभी भी सही मार्ग पर प्रवेश नहीं कर पाता है, और भाई-बहन कभी भी सामान्य रूप से परमेश्वर के वचनों को खा और पी नहीं सकते और कुकर्मियों से किसी बाधा के बिना सत्य की संगति नहीं कर पाते हैं। क्या यह नकली अगुआओं की “उपलब्धि” नहीं है? उनकी “उपलब्धि” बेहद महत्वपूर्ण है : न केवल वे भाई-बहनों को बचाने में विफल होते हैं, अपितु वे उन कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों को अनुचित सम्मान और संरक्षण भी प्रदान करते हैं। क्या इससे कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी पैदा नहीं होती? ऐसा करने वाले नकली अगुआओं की प्रकृति गड़बड़ी करने वाली होती है, फिर भी वे सोचते हैं कि वे कलीसिया के कार्य को सँभाल रहे हैं तथा परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सहायता कर रहे और सहारा दे रहे हैं। परमेश्वर नकली अगुआओं के इन क्रियाकलापों को कैसे देखता है? परमेश्वर उनसे घृणा करता है, वह उनसे खास तौर पर घृणा करता है! नकली अगुआ वास्तविक कार्य नहीं करते हैं लेकिन शैतान के चाकरों के रूप में काम करते हुए बुरे लोगों को बचाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इस वजह से परमेश्वर के चुने हुए लोग—जो सत्य से प्रेम करते हैं—कलीसिया का जीवन जीने के बावजूद कलीसिया का सहारा और पोषण पाने में असमर्थ रहते हैं, और अपने कर्तव्यों को पूरा करना चाहते हैं फिर भी उनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं हो पाती है। नकली अगुआ इन मामलों से पूरी तरह अनजान होते हैं और वे सोचते हैं, “मैं हरेक के साथ समान व्यवहार करता हूँ, तो तुम लोग शिकायत क्यों कर रहे हो? मुझे तुम लोगों को संतुष्ट करने के लिए क्या करना पड़ेगा? लोगों से निष्‍पक्ष व्यवहार करने का यही अर्थ है। तुम लोग बस मीनमेख निकाल रहे हो और तुम लोगों को प्रसन्न करना बड़ा मुश्किल है। कोई बात नहीं, मैं परमेश्वर के प्रति जवाबदेह हूँ; मैं सब कुछ उसके सामने कर रहा हूँ!” जब वे ऐसी बयानबाजी करते हैं तो क्या वे तर्कसंगत बातों से परे नहीं हैं? क्या वे अत्यंत मूर्ख नहीं हैं? उन पर वास्तव में तर्कसंगत बातों का कोई असर नहीं होता और वे अत्यंत मूर्ख भी हैं। परमेश्वर का घर प्रतिदिन इस बारे में बात करता है कि परमेश्वर मानवजाति को कैसे बचाता है, लेकिन नकली अगुआ कभी भी परमेश्वर के वचनों को नहीं समझते हैं। वे सोचते हैं कि चाहे व्यक्ति कोई भी क्यों न हो, चाहे उनका सार कुछ भी क्यों न हो, चाहे उन्होंने जो काम किए वे कितने भी बुरे क्यों न हों, और चाहे उनकी मानवता कितनी भी द्वेषपूर्ण क्यों न हो, परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन में और लोगों के प्रेमपूर्वक समर्थन की सहायता से, वे अंततः पश्चाताप करेंगे और वापस लौट आएँगे। क्या यह नजरिया पूरी तरह गलत नहीं है? (हाँ है।) परमेश्वर के वचनों की गंभीर रूप से गलत समझ रखने के अलावा, नकली अगुआ परमेश्वर के इरादों को समझने का दिखावा भी करते हैं और एकतरफा ढंग से सोचते हुए और अपनी स्वार्थी इच्छाओं के अनुसार काम करते हुए, वे कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों के प्रति दया और प्रेम दिखाते हैं। और इसका नतीजा क्या होता है? वे कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों को बचाते हैं, उनके साथी बन जाते हैं, उन्हें कलीसिया के कार्य और कलीसिया के जीवन में गड़बड़ करने और बाधा डालने के लिए अवसर और फलने-फूलने का स्थान प्रदान करते हैं। इस बीच, जिन भाई-बहनों को वास्तव में सुरक्षा की आवश्यकता है, उन्हें नकली अगुआओं द्वारा नजरअंदाज कर दिया जाता है, वे उनसे कभी नहीं पूछते हैं, “तुम लोगों को कलीसिया में इन कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों, और नकारात्मकता और धारणाएँ फैलाने वाले लोगों को देखकर कैसा महसूस होता है? क्या तुम लोग उन्हें कलीसिया में रखे जाने से सहमत हो? क्या तुम लोग उनके साथ मिलकर अपने कर्तव्य निभाने और कलीसिया का जीवन जीने के लिए तैयार हो?” वे कभी नहीं पूछते कि भाई-बहन इस बारे में क्या सोचते हैं। तुम लोग क्या सोचते हो—क्या ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता बहुत ही घृणित नहीं हैं? वे अगुआ और कार्यकर्ता के नाम तले काम करते हैं, ऐसी उपाधियाँ धारण करते हैं, लेकिन वास्तव में वे शैतान और उसके चाकरों की सुरक्षा करने का काम कर रहे हैं। यह वाकई दुःख की बात है! अगर तुम कहते हो कि ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की काबिलियत खराब है और वे वास्तविक काम नहीं करते हैं, तो वे शायद इस बात से सहमत न हों। वे यह सोचकर अन्याय महसूस करेंगे कि वे हर दिन व्यस्त रहते हैं और बेकार नहीं बैठते, तो ऐसा कैसे हो सकता है कि वे वास्तविक काम न करते? लेकिन उनकी अभिव्यक्तियों के आधार पर—सिक्के के दोनों पहलू महत्वपूर्ण होते हैं, दोनों तरफ के लोगों को समान मानना, निष्पक्ष व्यवहार को एक बहाने के रूप में उपयोग करना ताकि कुकर्मी और गड़बड़ करने और बाधा डालने वाले लोग कलीसिया पर हावी हो सकें, तथा कलीसिया में विभिन्न बुरे कामों को जारी रहने देना—ये अगुआ और कार्यकर्ता क्या हैं? उनकी अभिव्यक्तियों, उनके काम करने के तरीके और सिद्धांतों और काम करने के उनके प्रयोजनों के आधार पर, वे निःसंदेह नकली अगुआ और भ्रमित मूर्ख लोग हैं। क्या ऐसा कहना एकदम सही है? (हाँ।)

समाज में, चाहे वे जिस भी समूह या वर्ग के लोग हों, वे बुरे लोगों और अच्छे लोगों के बीच अंतर नहीं करते हैं, वे इस संबंध में तो और भी कम चर्चा करते हैं कि शैतान लोगों को कैसे भ्रष्ट करता है या भ्रष्ट मानवजाति का सार क्या है; वे अच्छाई और बुराई के बीच भी अंतर नहीं करते हैं। लेकिन परमेश्वर के घर में, हरेक चीज परमेश्वर के वचनों पर आधारित होती है; सत्य कभी नहीं बदलता, और परमेश्वर के वचन हर चीज पूरी करते हैं। कलीसिया में, परमेश्वर के वचनों से सभी प्रकार के लोगों का खुलासा किया जाता है, और उन्हें उनके प्रकार के अनुसार स्वाभाविक रूप से छाँटा जाता है। सभी प्रकार के लोगों का उनकी मानवता, उद्यम और सार के आधार पर सर्वोत्तम उपयोग किया जाना चाहिए। क्या यह लोगों को उनकी श्रेणी के अनुसार वर्गीकृत करना है? यह लोगों को उनकी श्रेणी के अनुसार वर्गीकृत करना नहीं, अपितु उन्हें वर्गीकृत करना है। प्रत्येक व्यक्ति को उसके प्रकार के अनुसार छाँटा जाना चाहिए—वे जहाँ के हैं उन्हें वहीं रखा जाना चाहिए। एक साथ मिलाना स्वीकार्य नहीं है; मिलाना अस्थायी है और उसकी नियत अवधि है। उदाहरण के लिए, जब खरपतवार और गेहूँ को एक साथ मिलाया जाता है, तो यदि खरपतवार को निकालने से गेहूँ प्रभावित होता है और उस वजह से गेहूँ खत्म हो सकता है, तो खरपतवार को अभी अलग नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन उन्हें न निकालने के मायने ये नहीं हैं कि उन्हें वर्गीकृत नहीं किया गया है—तो उन्हें कब निकाला जाना चाहिए? सही समय पर; परमेश्वर वक्त तैयार करेगा। अब हरेक को उसके प्रकार के अनुसार छाँटे जाने का समय है; हर प्रकार के लोगों को वर्गीकृत किया जाना चाहिए। यह आवश्यक है। यह कार्य क्यों किया जाना चाहिए? सैद्धांतिक परिप्रेक्ष्य में, परमेश्वर के वचनों का आधार होता है; वास्तविक स्थिति के परिप्रेक्ष्य में, यह करना आवश्यक है—इसका व्यावहारिक मोल है, और ऐसा करना अनिवार्य है। जब खरपतवार को निकालने से गेहूँ प्रभावित नहीं होता है तो खरपतवार को निकालकर गेहूँ से अलग कर लिया जाना चाहिए। यदि छद्म-विश्वासी और बुरे लोगों—जो खरपतवार हैं—को भाई-बहन माना जाता है तो यह परमेश्वर के लिए खुद को ईमानदारी से खपाने वाले सभी भाई-बहनों के लिए बहुत ही अनुचित है। एक बात यह है कि ये लोग अक्सर कलीसिया के कार्य में गड़बड़ करने और बाधा डालने वाले बुरे लोगों द्वारा बाधित, परेशान और प्रभावित किए जाएँगे, और वे इन्हें नुकसान पहुँचाएँगे। दूसरी बात यह है, छोटे आध्यात्मिक कद वाले कुछ लोग सत्य नहीं समझते और गड़बड़ करने और बाधा डालने वाले बुरे लोगों के संपर्क में आने पर बेबस हो जाएँगे, नकारात्मक और कमजोर हो जाएँगे, या यहाँ तक कि लड़खड़ा जाएँगे। इसके अलावा, गड़बड़ करने और बाधा डालने वाले लोग जो कुछ करते हैं और जो भी शब्द बोलते हैं उनसे अफरा-तफरी, अव्यवस्था और उपद्रवी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। सबसे वास्तविक स्थिति यह है कि जब वे कोई कर्तव्य निभाते हैं या कोई काम करते हैं, तो वे लापरवाही से गलत काम करते हैं और सिद्धांतों का पालन नहीं करते हैं, जिसकी वजह से जनशक्ति, भौतिक संसाधनों और वित्तीय संसाधनों का भारी अपव्यय होता है और कोई नतीजा प्राप्त नहीं होता। अंत में क्या होता है? जब उन्हें बर्खास्त कर दिया जाता है, तो हरेक को बुरे कार्यों के लिए भुगतान करना पड़ता है। काम को फिर से करना पड़ता है, और उन लोगों के बर्खास्त होने से पहले खपत हुई जनशक्ति, भौतिक संसाधन, समय और हरेक की अत्यंत कीमती ऊर्जा लापरवाही से किए गए गलत कार्यों के कारण बर्बाद हो जाती है और उसकी भरपाई नहीं की जा सकती। इस कार्य पर उनका जो नकारात्मक प्रभाव पड़ता है वह बहुत ज्यादा है! कोई भी इसकी जिम्मेदारी नहीं उठा सकता है। बाद में अगर काम अच्छे से हो भी जाता है, तो कोई भी पहले हुए नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता है। कुछ लोग कहते हैं कि उन्हें नुकसान के एवज में पैसे देने के लिए मजबूर करना चाहिए; ऐसा भी करना चाहिए, लेकिन क्या पैसे से समय खरीदा जा सकता है? क्या पैसे से भाई-बहनों के समय और ऊर्जा, या जो ईमानदार कीमत उन्होंने चुकाई, उसे खरीदा जा सकता है? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता—वे अमूल्य हैं! कलीसिया में चाहे कितने भी लोग विघ्न-बाधा क्यों न डालें, उसके परिणाम अथाह होते हैं। अनेकों भाई-बहनों का जीवन प्रवेश प्रभावित होगा। नुकसान बहुत ज्यादा है और उसकी भरपाई नहीं की जा सकती। क्या भाई-बहनों के जीवन के नुकसान की भरपाई की जा सकती है? इस नुकसान के लिए कौन भुगतान करेगा? इसलिए इन बुरे लोगों को दूर कर देना चाहिए। वे सत्य का अनुसरण करने वाले भाई-बहनों की किस्म के नहीं हैं। वे दानवों और शैतान के जत्थे से संबंधित हैं, जो परमेश्वर के घर को बाधित और बर्बाद करने आए हैं। यदि इन बुरे लोगों को कलीसिया से बाहर नहीं निकाला जाता, तो कलीसिया का कार्य और कलीसिया के जीवन की व्यवस्था की गारंटी कभी नहीं दी जा सकती है। चाहे किसी खास समूह में कितने ही लोग क्यों न हो, जब तक उनमें एक भी व्यक्ति गड़बड़ करने और विघ्न डालने वाला है—कोई भी व्यक्ति जो लापरवाही से बुरे काम करता है, सिद्धांतों के अनुसार कभी भी मामलों को सँभालता नहीं है, कभी भी सकारात्मक चीजों या सत्य को स्वीकार नहीं करता, किसी की बात नहीं सुनता, चाहे उसका रुतबा या ताकत कुछ भी हो, वह स्वेच्छा से मनमाने ढंग से काम करता है और अनिवार्य रूप से जीवित शैतान है—ऐसा व्यक्ति जब तक कलीसिया में रहता है, देर-सबेर कलीसिया के कार्य में बहुत बड़ी बाधा और तबाही लाएगा। जब उसे बाहर निकालने और उसे सँभालने का दिन आता है, तो कितने लोगों को उसके कारण उत्पन्न हुए प्रतिकूल परिणामों और उपद्रवी स्थितियों को ठीक करना पड़ेगा! इसलिए इन बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को बाहर निकालना या निष्‍कासित करना एक महत्वपूर्ण कार्य है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए और इसे लेकर उन्हें लापरवाह नहीं होना चाहिए। हालाँकि, जिन लोगों को बाहर निकाला या निष्‍कासित किया जाना चाहिए, उनके प्रति नकली अगुआ दया और प्रेम दिखाते हैं, उनके बुरे कार्यों के प्रति आँखें मूँद लेते हैं, उन्हें सहन करते हैं और भाई-बहनों के रूप में उन्हें स्थान देते हैं, और उनमें से जो उनके लिए उपयोगी होते हैं उन्हें प्रतिभावान व्यक्ति के तौर पर सम्मान देते हैं और उन्हें विकसित करते तथा उनका उपयोग करते हैं। चाहे वे कितने भी बुरे काम क्यों न करें, नकली अगुआ उन्हें निर्दोष ठहराने के बहाने ढूँढ़ लेते हैं, और उन्हें प्रेमपूर्वक सहायता और समर्थन भी देते हैं। एक स्तर पर, क्या यह जानबूझकर की गई गड़बड़ी नहीं है? (हाँ है।) नकली अगुआ अपने विचारों और अपनी खुद की दयालुता और उत्साह से कार्य करते हैं, और अंततः कलीसिया और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर देते हैं! यदि ये बुरे लोग सत्ता पा जाते हैं, तो उनके कारण कलीसिया पर जो विपत्तियाँ आती हैं और जो परिणाम उसे भुगतने पड़ते हैं, उनकी गणना नहीं की जा सकती।

परमेश्वर के घर में फिलहाल ए‍क विनियम है कि चाहे कोई भी बुरे काम क्यों न करे, अगर इससे परमेश्वर के घर का नुकसान होता है, तो उसे इसकी भरपाई करनी होगी। यदि नुकसान बहुत ज्यादा है और इसके परिणाम गंभीर हैं, तो क्या समस्या का हल पैसे से भरपाई करके किया जा सकता है? कुछ नुकसान ऐसे होते हैं जिनकी भरपाई कितने भी पैसे से नहीं की जा सकती है; वे अपूरणीय और अप्राप्य होते हैं। प्रत्येक दिन अब बेहद कीमती और महत्वपूर्ण है। एक बार दिन बीत जाए, तो क्या उस समय को फिर से प्राप्त किया जा सकता है? वह भी अप्राप्य है। हम ऐसा क्यों कहते हैं कि कुछ चीजों का हाथ से निकल जाना जीवन भर का पछतावा होता है? ठीक इसीलिए क्योंकि समय को फिर से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। मेरा यह कहने से क्या मतलब है? समस्याओं के होने के बाद उन्हें ह‍ल करने के लिए उन पर पैसे खर्च करने से अच्छा है समस्याओं के उत्पन्न होने से पहले उन्हें रोक दिया जाए; समस्याओं को हल करने का यह सबसे अच्छा तरीका है। “घोड़े के भाग जाने के बाद अस्तबल का दरवाजा बंद करना” अंतिम उपाय है। समस्या होने से पहले ही उसकी रोकथाम करना सबसे अच्‍छी बात होती है। इसका अर्थ है कि कोई विघ्न-बाधा उत्पन्न होने से पहले, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कलीसिया में विभिन्न प्रकार के लोगों के बारे में स्पष्ट विवेक और गहन समझ होनी चाहिए, और विभिन्न प्रकार के लोगों की अवस्थाओं, स्वभावों और अनुसरणों के साथ-साथ कर्तव्य निभाते समय उनके रवैये और दृष्टिकोण का सावधानीपूर्वक निरीक्षण करना चाहिए और उन्हें तुरंत समझना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी भाई-बहनों के पास अपने कर्तव्य निभाने के लिए कलीसिया का सामान्य जीवन और परिवेश हो। इस तरह, कलीसिया का कार्य व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ सकता है। ये अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ हैं। बेशक, नकली अगुआ इस काम के लिए नहीं हैं; वे भ्रमित और बेकार लोग हैं। अब उनके पास एक चतुर विचार है : “जो कोई भी सिद्धांतों का पालन नहीं करता है और काम में गड़बड़ी करता है, उस पर जुर्माना लगाया जाएगा! अगर कोई मसीह-विरोधी कुछ गलत करता है, तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा!” वे सोचते हैं कि जुर्माना लगाना सबसे अच्छा समाधान और अभ्यास का सबसे अच्छा सिद्धांत है। अगर जुर्माना लगाने से सभी समस्याओं का समाधान हो सकता, तो सत्य का अनुसरण करने का क्या फायदा होता? नकली अगुआ को नकली क्यों कहा जाता है? इसलिए क्योंकि वह सत्य नहीं समझता है, और वह विनियमों का पालन करने को सत्य का अभ्यास करने के समान मानता है और जिन वचनों और धर्म-सिद्धांतों को वह समझता है, उन्हें सत्य मानता है, और जब समस्याएँ होती हैं, तो वह बिल्कुल भी सही सिद्धांत या दिशा नहीं ढूँढ़ पाता है और समस्याओं का जड़ से समाधान नहीं कर पाता है। वह परमेश्वर के वचनों को नहीं समझता और यह नहीं समझ पाता है कि परमेश्वर का क्या मतलब है, लेकिन फिर भी काम करना चाहता है और अगुआ या कार्यकर्ता बनना चाहता है—कितनी मूर्खतापूर्ण बात है! इस संबंध में, नकली अगुआ की मुख्य अभिव्यक्ति क्या है? वह कलीसिया के काम में विघ्न-बाधा डालने वाले विभिन्न प्रकार के लोगों के सार को नहीं देख सकता है, उन्हें वर्गीकृत नहीं कर सकता है, और निश्चित रूप से सिद्धांतों के अनुसार उनके साथ व्यवहार नहीं कर सकता है और उन्हें सँभाल नहीं सकता है। नकली अगुआ के मन में ये सब गड़बड़झाला है। वह अपनी उत्सुकता और अपनी खुद की धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर परमेश्वर के वचनों और उसके अर्थ के बारे में अनुमान लगाता है। साथ ही, वह यह मानते हुए परमेश्वर पर अपनी दयालुता, उत्साह, और व्यक्तिगत कल्पनाओं और धारणाओं को थोप देता है कि ये चीजें सत्य के अनुरूप हैं, परमेश्वर के इरादों के अनुरूप हैं, और परमेश्वर की इच्छा को प्रस्तुत कर सकती हैं। इस प्रकार, वह काम करने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुआई करने के लिए इन चीजों पर भरोसा करता है। एक नकली अगुआ की यह प्रमुख अभिव्यक्ति है। हम नकली अगुआओं की दूसरी अभिव्यक्ति पर संगति यहीं समाप्त करेंगे।

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