अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (20) खंड दो

III. बुरे लोगों के बुरे कर्मों को उजागर करना ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग भेद पहचानने की समझ विकसित करें और सबक सीखें

अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी में तीसरी अपेक्षा यह है कि बुरे लोगों द्वारा उत्पन्न की गई गड़बड़ियों और बाधाओं से निपटते समय अगुआओं और कार्यकर्ताओं को परमेश्वर के चुने हुए लोगों के साथ मिलकर परमेश्वर के वचनों को खाना और पीना चाहिए ताकि वे आत्मचिंतन कर सकें और स्वयं को जान सकें, और वास्तविक बदलाव ला सकें। उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य वास्तविकता में प्रवेश कराने, उनके भ्रष्ट स्वभावों को त्यागने और परमेश्वर का अनुसरण करने, परमेश्वर के प्रति समर्पण करने, और परमेश्वर की गवाही देने में सक्षम होना चाहिए। केवल इस तरह का कार्य परमेश्वर के इरादों के अनुरूप होता है। एक बात तो यह है कि इस तरह से काम करने वाले अगुआ और कार्यकर्ता समस्याओं का समाधान करने और कार्य करते समय स्वयं को सत्य से लैस करने में सक्षम होते हैं। इसके अलावा, समस्याओं का समाधान करने के लिए सत्य पर संगति करने के द्वारा वे भाई-बहनों को सत्य समझने, स्वयं के बारे में आत्मचिंतन करने और स्वयं को जानने, अपने भ्रष्ट स्वभावों को त्यागने, अपने कर्तव्य अच्छे से निभाने, लोगों को पहचानने और उनके साथ व्यवहार करने, परमेश्वर का अनुसरण करने और उसके प्रति समर्पित होने, दूसरों द्वारा विवश न होने, अपनी गवाही में दृढ़ रहने में सक्षम होने में सहायता करते हैं। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं के कर्तव्यों को पूरा करना है; अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कलीसिया का कार्य करते समय समस्याओं को हल करने के लिए इस सिद्धांत का अभ्यास करना चाहिए। कलीसिया में भले ही कैसी भी समस्याएँ उत्पन्न हों, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले सत्य की तलाश करनी चाहिए, परमेश्वर के इरादों को समझना चाहिए, और साथ मिलकर परमेश्वर का मार्गदर्शन खोजना चाहिए। फिर उन्हें विभिन्न मौजूदा समस्याओं का समाधान करने के लिए परमेश्वर के प्रासंगिक वचनों को जानना चाहिए। समस्याओं का समाधान करने की प्रक्रिया में, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को भाई-बहनों के साथ परमेश्वर के प्रासंगिक वचनों के बारे में और ज्यादा संगति करनी चाहिए, और परमेश्वर के वचनों के आधार पर समस्याओं का सार समझना चाहिए। उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों से इन मुद्दों को पहचानने के लिए उनकी खुद की समझ पर संगति करानी चाहिए। एक बार जब अधिकांश लोग एक समान समझ और एकमत होने में समर्थ हो जाते हैं, तो समस्याओं का समाधान करना आसान हो जाता है। समस्याओं का समाधान करने में, घटनाओं का बार-बार जिक्र न करो, या मामूली ब्यौरों के पीछे मत भागो या समस्याओं में शामिल व्यक्तियों को दोष न दो। सबसे पहले, मामूली मुद्दों पर ध्यान न दो, इसके बजाय, स्पष्ट रूप से सत्य पर संगति करो, क्योंकि इससे समस्याओं की प्रकृति का खुलासा होगा। केवल इस तरह से परमेश्वर के चुने हुए लोगों की परमेश्वर के वचनों के आधार पर मुद्दों को पहचानने, लोगों, घटनाओं और उत्पन्न होने वाली चीजों से विवेक प्राप्त करने और उनसे व्यावहारिक सबक सीखने में मदद मिलती है। यह उन्हें उन वचनों और धर्म-सिद्धांतों की वास्तविक जीवन से तुलना करने का भी अवसर देता है जिन्हें वे आमतौर पर समझते हैं, जिससे वे सत्य को सही मायने में समझने में सक्षम हो जाते हैं। क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यही काम नहीं करना चाहिए? परमेश्वर के चुने हुए लोगों का सत्य वास्तविकता में प्रवेश कराने में उनकी धारणाओं और उनकी कल्पनाओं और उनके भ्रष्ट स्वभावों का समाधान करने के लिए प्राथमिक तौर पर सत्य का उपयोग करना शामिल है। इस तरह से सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त होते हैं। जितने ज्यादा अगुआ और कार्यकर्ता समस्याएँ हल करने के लिए सत्य का उपयोग करने में सक्षम होंगे, उतनी आसानी से परमेश्वर के चुने हुए लोग सत्य समझ सकते हैं। इस तरीके से, वे जान सकेंगे कि वास्तविक जीवन में परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और अनुप्रयोग कैसे किया जाए। यदि अगुआ और कार्यकर्ता अक्सर वास्तविक समस्याओं को हल करने के लिए परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुआई करते हैं, तो वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य वास्तविकता में लाने में सक्षम होंगे और परमेश्वर के वचनों को अपने खुद के दैनिक जीवन में समाहित भी कर पाएँगे। कुछ लोगों का कहना है, “क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं से यह अपेक्षा बहुत ज्यादा नहीं है? हममें इतनी समझ कैसे हो सकती है?” हो सकता है कि तुम्हारे पास पहले ऐसी समझ न रही हो, लेकिन क्या तुम यह परिणाम प्राप्त करने के लिए सीख नहीं सकते और अभ्यास नहीं कर सकते हो? यही तरीका है जिससे परमेश्वर का कार्य अगुआओं और कार्यकर्ताओं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में प्रशिक्षित करता है। यदि तुम्हें तरीका नहीं पता है, तो तुम सीख और अभ्यास कर सकते हो। चाहे कैसी भी समस्याएँ आएँ, तुम्हें परमेश्वर के वचनों के आधार पर आत्मचिंतन करना और स्वयं को जानना सीखना चाहिए; यह अभ्यास करने की प्रक्रिया है। कुछेक बार अभ्यास करने और परिणाम प्राप्त होने के बाद, तुम्हारे पास एक रास्ता होगा और तुम जान जाओगे कि सत्य का अभ्यास कैसे करना है। जब परमेश्वर कार्य करने लगता है, तो यही वह तरीका है जिससे वह सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में लोगों की अगुआई करता है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अ‍क्सर भाई-बहनों से बातचीत करनी चाहिए, समस्याओं का मिलकर सामना करना चाहिए, समस्याओं को मिलकर हल करना चाहिए, और कलीसिया का कार्य अच्छे से करना चाहिए। कलीसिया के अगुआओं को परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुआई कैसे करनी चाहिए? प्रमुख तरीका है कि वास्तविक जीवन की समस्याओं की पहचान करने और उन्हें हल करने में परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुआई करना, वास्तविक जीवन में परमेश्वर के वचन का अभ्यास और अनुभव करना ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग न केवल सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हों, अपितु नकारात्मक चीजों और नकारात्मक लोगों—नकली अगुआओं, नकली कार्यकर्ताओं, बुरे लोगों, छद्म-विश्वासियों, और मसीह-विरोधियों को पहचानने में भी सक्षम हों। विभिन्न लोगों को पहचानने का उद्देश्य समस्याओं का समाधान करना है। केवल बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों द्वारा उत्पन्न की गई बाधाओं का पूरी तरह समाधान करके ही कलीसिया का कार्य निर्विघ्न रूप से चल सकता है, और परमेश्वर की इच्छा को कलीसिया में कार्यान्वित किया जा सकता है। उसी समय, बुरे लोगों को संबोधित करना भी गलतियाँ करने या बुराई करने से बचने की चेतावनी का काम करता है, और व्यक्ति को परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने में सक्षम बनाता है। इस तरह, न केवल तुम अपना कर्तव्य निभाते हो और जीवन प्रवेश पाते हो, अपितु तुम सत्य भी समझते हो और सत्य वास्तविकता में प्रवेश भी करते हो। क्या यह एक तीर से दो निशाने लगाना नहीं है? जब तुम सत्य समझते हो और समस्याओं को हल कर सकते हो, तो यह प्रमाणित करता है कि तुम्हारे भीतर अगुआ या कार्यकर्ता बनने की काबिलियत है और तुम परमेश्वर के घर में विकसित किए जाने की अपेक्षाओं को पूरा करते हो; इस प्रकार तुम्हें वास्तविक जीवन में विभिन्न लोगों, घटनाओं, और चीजों को पहचानना सीखने में भाई-बहनों की अगुआई और मार्गदर्शन करना चाहिए; सत्य की समझ प्राप्त करनी चाहिए; यह जानना चाहिए कि कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी करने और बाधा डालने वाले सभी प्रकार के लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना है; यह जानना चाहिए कि सत्य का अभ्यास कैसे करना है, सिद्धांतों के अनुसार विभिन्न लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना है, और समस्याओं को हल करने के लिए सत्य पर संगति कैसे करनी है। यह तुम्हारी जिम्मेदारी है। इस तरीके से अभ्यास करके, तुम परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करते हो। तुम सबक सीखोगे, विवेक प्राप्त करोगे और वास्तविक जीवन में तुम्हारी राह में आने वाले हर मामले में परमेश्वर के इरादों को समझोगे, तुम्हारे पास मामलों को सँभालने, लोगों के साथ व्यवहार करने और अपने कर्तव्य करने के तरीके में अभ्यास के सिद्धांत होंगे। इस तरह, तुम सत्य का अभ्यास करने में सक्षम होगे। लोगों के लिए परमेश्वर की अपेक्षा ऐसे परिणाम प्राप्त करना है। इसलिए, चाहे जो भी मामले उत्पन्न हों, तुम्हें सदैव अपना सब‍क सीखना चाहिए और विवेक विकसित करना चाहिए; तुम उन्हें यूं ही हाथ से जाने नहीं दे सकते, न ही तुम अपना सबक सीखने और विवेक विकसित करने का कोई अवसर चूक सकते हो। चूँकि बात ऐसी है कि कुछ घटित हुआ है, इसलिए हमें इसे नकारात्मक, शिकायती रवैये से नहीं देखना चाहिए; इसके बजाय हमें इसका सामना सकारात्मक रवैये से करना चाहिए। यह किस तरह किया जाता है? समस्या का समाधान करने के लिए सत्य की तलाश करके। सभी लोगों में भ्रष्ट स्वभाव होते हैं और उनकी मानवता भली या बुरी हो सकती है तो लोगों के संगति करते समय समस्याएँ कैसे उत्पन्न नहीं होंगी? इस बात के मद्देनजर कि परमेश्वर ने तुम्हारे लिए यह परिवेश बनाया, उसने तुम्हें ऐसे लोग, घटनाएँ और चीजें दिखाईं जो तुम्हारे आसपास होती हैं तो तुम्हारा रवैया कैसा होना चाहिए? अपने समक्ष इन विभिन्न समस्याओं को रखने के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करो। वह तुम्हें अभ्यास करने, सबक सीखने और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने का अवसर दे रहा है। अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में ऐसा अवसर प्रदान करने के लिए तुम्हें परमेश्वर का धन्यवाद भी करना चाहिए। चाहे तुम्हारे सामने जो भी समस्याएँ आएँ, तुम्हें अपने साथ-साथ भाई-बहनों को भी भेद पहचानने, सबक सीखने और अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए अग्रसर करना चाहिए। इसके अलावा तुम्हें अपने साथ-साथ उनको भी इस बात पर आत्मचिंतन करने और समझने की ओर ले जाना चाहिए कि समस्या के संबंध में लोगों की क्या धारणाएँ और कल्पनाएँ हैं, कौन से विकृत दृष्टिकोण मौजूद हैं, इस मामले का सामना करने से क्या सबक मिले हैं, कौन-सी गलत धारणाओं और दृष्टिकोण का समाधान हो गया है, और आखिरकार कौन-कौन-से सत्य समझ में आ गए हैं। व्यक्ति को एक भी मामला चूके बिना, इस तरह परमेश्वर के कार्य का अनुभव करना चाहिए। यदि तुमने कई वर्षों से परमेश्वर के कार्य का अनुभव किया है, तो तुम देखोगे कि परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं और वे लोगों को पूरी तरह से शुद्ध कर सकते हैं और उन्हें शैतान के प्रभाव से बचा सकते हैं। जब लोग सत्य समझ लेते हैं और उसे पा लेते हैं, तो उन्हें दिखाई देगा कि परमेश्वर के वचन पूरी तरह से निभाए जाते और पूरे किए जाते हैं। जब परमेश्वर के चुने हुए लोग परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और अनुभव करने में सक्षम होते हैं, तो फिर वे परमेश्वर के वचनों को अपने वास्तविक जीवन में समाहित करने, लोगों और मामलों को सही से देखने के लिए परमेश्वर के वचनों का सही ढंग से उपयोग करने, और परमेश्वर के वचनों द्वारा लोगों तथा उनके द्वारा किए जाने वाले हरे‍क कार्य का मूल्यांकन करने में सक्षम हो जाएँगे, जो उन्हें दिखाई देता है या जो उनकी भावनाएँ हैं, उन पर भरोसा नहीं करेंगे, धारणाओं और कल्पनाओं पर तो बिल्कुल भी नहीं। एक बार जब वे ये सबक सीख लेते हैं, तो उनके लिए परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीना आसान हो जाता है, और वे अक्सर परमेश्वर की उपस्थिति में जी सकते हैं। इस तरह, अगुआ और कार्यकर्ता अपने कार्य में पूरी तरह से मानक पर खरे उतरते हैं, और उनकी जिम्मेदारियाँ पूरी होती हैं। जब अगुआ और कार्यकर्ता अपना कार्य अच्छी तरह से करते हैं, केवल तभी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को ये लाभ प्राप्त होते हैं। यदि, तुम्हारे सामने आने वाली अनेक स्थितियों में, तुम्हें यह पता नहीं है कि सबक सीखने के लिए भाई-बहनों को कैसे आगे बढ़ाना है और तुम विभिन्न लोगों, घटनाओं, और चीजों को पहचान नहीं सकते हो, तो फिर तुम अंधे, सुन्न और मंदबुद्धि वाले भ्रमित व्यक्ति हो। ऐसी स्थितियों का सामना होने पर, न केवल तुम अभिभूत हो जाओगे, उनसे निपटने के तरीके से अनभिज्ञ होगे, और इस कार्य के अयोग्य होगे, बल्कि इससे इन लोगों, घटनाओं, और चीजों के प्रति भाई-बहनों का अनुभव भी प्रभावित होगा। यदि तुम इन चीजों से अनुचित ढंग से निपटते हो, कोई कार्य नहीं करते हो, सत्य पर संगति करने के लिए एक भी बात नहीं कहते हो जोकि तुम्हें कहनी चाहिए, और दूसरों के लिए कुछ भी लाभप्रद या शिक्षाप्रद नहीं कह सकते हो, तो जब बहुत-से लोग गड़बड़ी और बाधाएँ पैदा करने वाले इन लोगों, घटनाओं और चीजों का सामना करते हैं, तो वे न केवल परमेश्वर की ओर से इन मामलों को स्वीकार करने, उनके साथ सकारात्मक और सक्रिय रूप से पेश आने में, और उनसे सबक सीखने में विफल रहेंगे, बल्कि परमेश्वर के प्रति उनकी धारणाएँ और सतर्कता उत्तरोत्तर गंभीर होती जाएगी, साथ ही उनके मन में परमेश्वर के प्रति अविश्वास और संदेह भी बढ़ता जाएगा। क्या यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं में सत्य वास्तविकता की कमी और समस्याओं को हल करने के लिए सत्य का उपयोग करने में असमर्थ होने का परिणाम नहीं है? क्या यह संकेत नहीं है कि अगुआ और कार्यकर्ता वास्तविक कार्य नहीं कर सकते हैं? तुमने कलीसिया का कार्य सही ढंग से नहीं किया है, परमेश्वर ने जो आदेश तुम्हें सौंपा तुमने उसे पूरा नहीं किया है, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों को पूरा नहीं किया है, और भाई-बहनों को शैतान की ताकत से बाहर नहीं निकाला है। वे अभी भी भ्रष्ट स्वभावों और शैतान के प्रलोभनों में जीते हैं। क्या तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में विलंब नहीं कर रहे हो? तुम लोगों को गहराई तक नुकसान पहुँचा रहे हो! एक अगुआ या कार्यकर्ता के तौर पर, तुम्हें परमेश्वर के आदेश को स्वीकार करना चाहिए, भाई-बहनों को परमेश्वर के समक्ष ले जाना चाहिए, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने देना चाहिए ताकि वे सत्य की समझ हासिल कर सकें और सिद्धांतों के साथ अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें, और इससे परमेश्वर में उनका विश्वास बढ़े। न केवल तुम इस तरह से अभ्यास करने में विफल रहे हो, अपितु तुमने बुरे लोगों द्वारा उत्पन्न विघ्नों को न तो रोका, न ही उनका समाधान नहीं किया, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को नुकसान पहुँचाया। कई वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास करने के बाद भी न उन्होंने प्रगति की, न सत्य को समझा, न परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त किया, बल्कि उन्होंने परमेश्वर के बारे में कई धारणाएँ और गलतफहमियाँ पैदा कर लीं, जिनमें किसी भी प्रकार का वास्तविक समर्पण नहीं है। तो फिर क्या तुमने जो कुछ भी किया है, वह वास्तव में परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ियाँ और व्यवधान उत्पन्न नहीं कर रहा है? तुम न केवल परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य वास्तविकता की ओर नहीं ले गए, उनकी रक्षा नहीं की है, बल्कि इसके बजाय उन्हें दुष्ट लोगों द्वारा बाधित होने दिया है और मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और नियंत्रित होने दिया है। क्या तुमने ऐसे काम नहीं किए हैं जिनसे तुम्हारे अपने लोगों को ठेस पहुँची और तुम्हारे शत्रु प्रसन्न हुए? क्या तुम बुराई की मदद और उसे बढ़ावा नहीं दे रहे हो? तुमने इतने लंबे समय तक काम किया है; लेकिन, तुम न केवल सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने में विफल रहे हो, बल्कि तुमने भाई-बहनों और परमेश्वर के बीच की दूरी को और भी अधिक बढ़ा दिया है, और ऐसा कर दिया है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग सत्य को समझे बिना या बुरे लोगों की विघ्न-बाधाओं को पहचाने बिना वर्षों तक परमेश्वर पर विश्वास करते रहे हैं, जिससे उनके जीवन प्रवेश पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। यहाँ समस्या क्या है? क्या यह हर तरह की बुराई करना नहीं है? चाहे कार्य करने वाले अगुआ और कार्यकर्ता कुछ भी करें, अगर वे परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य नहीं कर सकते और मामलों को सत्य सिद्धांतों के अनुसार नहीं सँभाल सकते और समस्याओं को हल नहीं कर सकते, तो उनका प्रभाव खुद तक या सिर्फ कुछ लोगों तक ही सीमित नहीं रहेगा; यह कलीसिया के काम, कलीसिया में परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों के जीवन प्रवेश, परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा अपने कर्तव्यों को निभाने के परिणामों, राज्य के सुसमाचार के प्रसार के परिणामों पर नहीं पड़ेगा और यहाँ तक कि इस पर भी कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बचाया जा सकता है या नहीं और परमेश्वर के राज्य में लाया जा सकता है या नहीं—इन सभी क्षेत्रों पर इसका प्रभाव पड़ सकता है। कुछ लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं लेकिन नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों का अनुसरण करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनका विनाश होता है। यह ठीक वैसा ही है जैसे धार्मिक मंडलियों में लोग पादरियों और एल्डरों द्वारा गुमराह और नियंत्रित होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे परमेश्वर के लौटने पर उसका स्वागत करने में विफल होते हैं और इसके बजाय आपदा में पड़ जाते हैं। यह सब स्पष्ट रूप से सत्य है। इसलिए नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों को पहचानने में सक्षम होना परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के लिए अत्यंत लाभदायक है!

अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी उनसे तीन अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य करने की अपेक्षा करती है : पहला, उन्हें कलीसिया के कार्य में गड़बड़ियाँ और बाधाएँ उत्पन्न करने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं, और चीजों की पहचान करनी चाहिए। दूसरे, उनकी पहचान और चरित्रांकन कर लेने के बाद, उन्हें बुरे लोगों को तुरंत रोकना और प्रतिबंधित करना चाहिए; यह दूसरा कदम है। तीसरा, बुरे लोगों को रोकते और प्रतिबंधित करते और चीजों को बदलते समय, उन्हें बुरे लोगों के बुरे कार्यों को उजागर करने के लिए भाई-बहनों के साथ अक्सर परमेश्वर के वचनों की संगति करनी चाहिए, और इस मामले के संबंध में भाई-बहनों की प्रतिक्रियाओं और समझ की करीब से निगरानी करनी चाहिए, और अगर उनके कुछ गलत दृष्टिकोण हों तो उन्हें तुरंत सही करना चाहिए। बेशक, यदि सत्य का अनुसरण करने वाले कुछ भाई-बहनों की अंतर्दृष्टि है, तो उन्हें और ज्यादा संगति करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके अलावा, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कमजोर या छोटे आध्यात्मिक कद वाले लोगों की मदद भी करनी चाहिए, और उन्हें और ज्यादा बोलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इसका अभीष्ट परिणाम यह है कि भाई-बहनों को विवेक हासिल करने और होने वाली घटनाओं से सबक सीखने में मदद मिले, तथा वे लोगों और मामलों को पहचानना सीखें। लोगों और मामलों को पहचानने का उद्देश्य उन्हें विभिन्न प्रकार के लोगों को सही ढंग से पहचानने में सक्षम बनाना है, और सत्य सिद्धांतों के अनुसार, सही तरीकों का उपयोग करके उनके साथ व्यवहार करना है, साथ ही स्वयं भी सबक सीखना है। उन्हें कौन-से सबक सीखने चाहिए? उन्हें यह देखना चाहिए कि जब परमेश्वर इन लोगों की अवस्थाओं का गहन-विश्लेषण करता है और उन्हें उजागर करता है तो उनके प्रति परमेश्वर का रवैया कैसा होता है—इन लोगों के प्रति परमेश्वर के रवैये को जानना यह स्पष्ट करता है कि उसे किस प्रकार का व्यक्ति होना चाहिए और उसे किस तरह का रास्ता लेना चाहिए, है न? (हाँ।) संक्षेप में, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए प्राप्त होने वाला अंतिम परिणाम है सत्य को समझना और वास्तविक जीवन के परिवेशों में वास्तविकता में प्रवेश करना, अपना कर्तव्य सामान्‍य तरीके से निभाने में सक्षम होना, और परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित रहना है। इस तरीके से, अगुआओं और कार्यकर्ताओं का कलीसिया के कार्य का निष्पादन परमेश्वर के इरादों के अनुरूप होगा। इस कार्य के निष्पादन के तीन चरणों के मद्देनजर, क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए यह काम अच्छे ढंग से करना कठिन है? (नहीं।) यदि इंसानी दयालुता और काबिलियत पर भरोसा करें, तो इस कार्य को अच्‍छे ढंग से करना कुछ हद तक बहुत मेहनत का काम हो सकता है, क्योंकि तुम्हें परमेश्वर द्वारा अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं होगा और तुम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की सही जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर पाओगे। भ्रष्ट मानवीय स्वभावों पर भरोसा करके क्या तुम इस कार्य को अच्छे ढंग से कर सकते हो? (नहीं।) स्पष्ट रूप से कहें, तो इस कार्य को करने के लिए भ्रष्ट स्वभावों पर भरोसा करने का मतलब है कि अपने खुद के विचारों के अनुसार कार्य करना। इसका क्या परिणाम होगा? (इससे कलीसिया में अव्यवस्था फैल जाएगी।) यह एक परिणाम है : जितना तुम कार्य करोगे, चीजें उतना अव्यवस्थित होती जाएँगी। अव्यवस्था क्या है? अव्यवस्था की विशिष्ट दशाएँ क्या हैं? वे हैं, सभाओं में लोगों का सामान्य रूप से परमेश्वर के वचनों को खा और पी न पाना या सत्य पर संगति नहीं कर पाना। बुरे लोग और छद्म-विश्वासी सदैव विघ्न उत्पन्न करते हैं, या जब हरेक स्वयं के नजरिये पर अडिग होता है और दल या गुट बनाने लगता है; तो निरंतर विवाद होते हैं; भाई-बहनों में पहचान कर पाने की कमी होती है और वे उलझन में पड़े होते हैं, आध्यात्मिक समझ वाले और सत्य से प्रेम करने वाले भी बाधित होते हैं और उनके जीवन का विकास नहीं होता है। ऐसी कलीसिया में, बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों की सत्ता है, और पवित्र आत्मा काम नहीं करता है। ऐसी कलीसिया में, चाहे जो हो जाए, सभी लोग एक साथ बात करते रहते हैं, हर तरह के विचार व्यक्त करते हैं, और शायद ही कोई सही दृष्टिकोण पेश करता है। कलीसिया तुरंत कई दलों में बट जाती है, लोगों में कोई एकता नहीं होती, और पवित्र आत्मा के कार्य या मार्गदर्शन का कोई चिह्न नहीं होता है। लोग एक-दूसरे से सावधान रहते हैं और एक-दूसरे को संदेह से देखते हैं; दो या तीन समूह सत्ता और लाभ पाने के लिए होड़ लगाते हैं; हरेक अपने समर्थकों की तलाश करता है, और असहमति जताने वालों पर हमला करता है और उन्हें अलग-थलग करता है; और हर तरह के बुरे कर्म किए जा सकते हैं। अव्यवस्था का यह दृश्य होता है। यह स्थिति कैसे उत्पन्न होती है? क्या इसका कारण यह नहीं है कि अगुआ और कार्यकर्ता अपना कार्य करने में असमर्थ हैं? (हाँ।) अपने स्वयं के विचारों के अनुसार कार्य करने वाले अगुआओं और कार्यकर्ताओं के कारण ये परिणाम सामने आते हैं। अपने स्वयं के विचारों के अनुसार कार्य करने का क्या मतलब है? इसका मतलब है सत्य को नहीं समझना, सिद्धांतों की कमी, और भ्रष्ट स्वभावों और मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर बिना सोचे-समझे कार्य करना, जिसकी वजह से कलीसिया में और भी ज्यादा अव्यवस्था फैल जाती है। शायद कुछ लोग कहें, “बुरे लोग कैसे कलीसिया में विघ्न उत्पन्न कर सकते हैं? मुझे मालूम नहीं कि कौन सही है और कौन गलत है, या किसका साथ देना है।” अन्य लोग कह सकते हैं, “कलीसिया कई गुटों में बटी हुई है। हमें कलीसियाई जीवन कैसे जीना चाहिए? प्रत्येक सभा निष्फल होती है और समय व्यर्थ होता है। इस तरह विश्वास करते रहने से कोई परिणाम नहीं निकलेंगे।” जब कलीसिया इतनी अव्यवस्थित हो जाती है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग कलीसियाई जीवन जीने में असमर्थ हो जाते हैं, तो परमेश्वर इसे पूरी तरह ठुकरा देता है। इससे स्पष्ट दिखाई देता है कि जब तक बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों के पास सत्ता है, वे कलीसिया को नष्ट करेंगे। अच्छे लोगों और सत्य का अभ्यास करने वाले अगुआओं और कार्यकर्ताओं के बिना कलीसिया कार्य नहीं कर सकती है—उनके बिना, चीजों को नियंत्रित करना नामुमकिन होगा! यदि बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों को नहीं रोका जाता है, तो कोई कलीसियाई जीवन नहीं होगा, कलीसिया की सामान्य व्यवस्था पूरी तरह बिगड़ जाएगी, और अव्यवस्थित हो जाएगी। जब अगुआ और कार्यकर्ता अपना कार्य अच्छे ढंग से नहीं करते हैं तो उसका यह परिणाम निकलता है। यदि अगुआ और कार्यकर्ता सत्य को स्वीकार नहीं कर सकते, परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील नहीं हो सकते, या परमेश्वर पर भरोसा नहीं कर सकते, तो वे कलीसिया का काम अच्छी तरह से नहीं कर पाएँगे। वे कलीसिया में उत्पन्न होने वाली किसी भी समस्या या परमेश्वर के चुने हुए लोगों को आने वाली किसी भी मुश्किल का समाधान करने में असमर्थ होंगे। यदि सत्ता ऐसे अगुआ और कार्यकर्ताओं के पास हो तो क्या वे अच्छे परिणाम दे सकते हैं? वे कलीसिया में केवल अव्यवस्था फैला सकते हैं—अंततः इस तरह की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यह कलीसिया फिर वीरान हो जाएगी, एक ऐसा स्थान जहाँ शैतान की सत्ता है; यह बिगड़कर कुछ और बन जाती है। परमेश्वर इस कलीसिया को स्वीकार नहीं करेगा, और पवित्र आत्मा इसमें कार्य नहीं करेगा। ऐसी कलीसिया केवल नाममात्र की होती है और इसे बंद कर दिया जाना चाहिए।

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