सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (16) भाग तीन

पिछली बार हमने “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है” विषय पर संगति की थी। यह वह कहावत है, जिसका इस्तेमाल शैतान लोगों को नैतिक आचरण की दृष्टि से भ्रष्ट करने के लिए करता है। इस कहावत का समर्थन लोगों की सोच पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है और नैतिक आचरण संबंधी अन्य कहावतों की तरह यह भी बेतुकी है और तथ्यों के अनुरूप नहीं है। कोई कुछ भी कहता हो, अगर वह ऐसा करता है, तो दूसरे लोगों को लगता है कि उनमें उत्कृष्ट नैतिकता और सम्माननीय चरित्र है, और यह बेतुका और हास्यास्पद दोनों है। यह कहावत इस बात में नैतिक आचरण संबंधी अन्य कहावतों के बिल्कुल समान है कि वे सभी बेतुकी और हास्यास्पद पाखंड और भ्रांतियाँ हैं। वे सब इस तरह संदर्भित की जा सकती हैं और उन्हें अत्यधिक बेतुकी और जाँच के सामने न टिकने वाली चीजों के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। आओ, आज नैतिक आचरण संबंधी इस कहावत को देखें, “कीचड़ से बेदाग निकल आना, साफ लहरों में नहाकर भी भड़कीला न दिखना।” इस पर औपचारिक रूप से संगति करने से पहले, क्या तुम लोगों ने कभी इस बात पर विचार किया है कि इस कहावत को कैसे समझाया जाए? इसके सार का विश्लेषण कैसे किया जा सकता है? यह अपने अंदर कौन-से जहर रखे है? शैतान इस कहावत के जरिये लोगों के मन में कौन-से विचार बैठाना चाहता है? शैतान का क्या दुष्ट इरादा है? इस कहावत का इस्तेमाल करके शैतान मनुष्य के किस पहलू को भ्रष्ट करता है? क्या तुम लोगों ने कभी इन चीजों पर विचार किया है? “कीचड़ से बेदाग निकल आना, साफ लहरों में नहाकर भी भड़कीला न दिखना” कहावत सरल रूप में बुरे लोगों के साथ न जाने और खुद को बुरे प्रभावों से बचाने में सक्षम होने के रूप में समझाई जा सकती है। चाहे कोई अन्य व्यक्ति यह मूल्यांकन करे कि एक व्यक्ति “कीचड़ से बेदाग निकल आया” है, या व्यक्ति स्वयं ही इस कहावत को साकार करना चाहता हो, आम तौर पर कहें तो वे किस तरह के व्यक्ति हैं? वे बहुत ही सच्चरित्र, ईमानदार, खुले और निष्कपट होने का दावा करते हैं, कि वे उत्कृष्ट नैतिक चरित्र वाले सज्जन हैं, लेकिन वे इस युग, इस दुनिया, इस मानवजाति, यहाँ तक कि इस देश, इस शाही दरबार और इस नौकरशाही को ऐसा नहीं समझते। क्या ये लोग आम तौर पर चीजों को व्यंग्यपूर्वक नहीं देखते और वास्तविकता से असंतुष्ट महसूस नहीं करते? उन्हें अक्सर लगता है कि उनकी आकांक्षाएँ ऊँची हैं लेकिन उनका जन्म गलत समय पर हुआ है, कि उनके पास प्रतिभा है लेकिन वे उसका इस्तेमाल नहीं कर सकते। वे मानते हैं कि नौकरशाही में हो या समाज में, हमेशा घटिया लोग उनका मार्ग रोकते हैं, कि उनके पास भव्य, रणनीतिक दिमाग है, वे उत्कृष्ट व्यक्ति हैं लेकिन कोई उनकी प्रतिभा नहीं पहचानता या कभी उन्हें महत्वपूर्ण कार्य नहीं सँभालने देता। वे वास्तविकता से असंतुष्ट होकर निंदक बन जाते हैं और इसलिए वे स्वयं का वर्णन करने के लिए इस कहावत का उपयोग करते हैं—“कीचड़ से बेदाग निकल आना, साफ लहरों में नहाकर भी भड़कीला न दिखना,” कहते हैं कि वे खुद को बुरे प्रभावों से बचाएँगे और निष्कलंक रहेंगे। स्पष्ट रूप से कहें तो, ऐसे लोग खुद को पवित्र और उच्च मानते हैं और वास्तविकता से असंतुष्ट होते हैं। जरूरी नहीं कि उनके पास कोई सच्ची प्रतिभा या वास्तविक क्षमता हो, और जरूरी नहीं कि जिन परिप्रेक्ष्यों से वे लोगों और चीजों को देखते और आचरण और कार्य करते हैं, वे सही या व्यावहारिक हों और, बेशक, यह भी जरूरी नहीं कि वे कुछ हासिल कर सकते हों। फिर भी वे खुद को साधारण लोगों से अलग मानते हैं और हमेशा आहें भरते हैं, “सारा संसार गंदा है, मैं अकेला निर्मल हूँ; तमाम लोग नशे में चूर हैं, मैं अकेला होश में हूँ,” मानो नश्वर संसार से उनका भ्रम दूर हो गया हो और वे अक्सर संसार की बुराई और उसका अंधकार देखते हों। सटीक रूप से कहें तो, ऐसे लोग निंदक होते हैं। वे राजनीतिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों से घृणा करते हैं, और वे साहित्यिक, कलात्मक और शैक्षिक क्षेत्रों से भी घृणा करते हैं। वे अपने कार्यों के प्रति बुद्धिजीवियों के परिप्रेक्ष्यों से घृणा करते हैं, और वे किसानों और धार्मिक विश्वास वाले लोगों को हेय दृष्टि से देखते हैं। ये किस तरह के लोग हैं? क्या ये बिल्कुल अलग तरह के लोग नहीं हैं? क्या ये किसी रूप में असामान्य नहीं हैं? इन लोगों में कोई वास्तविक क्षमता या ज्ञान नहीं होता। अगर तुम उनसे कुछ व्यावहारिक कार्य करने के लिए कहो, तो जरूरी नहीं कि वे उसे कर पाने में सक्षम हों। उन्हें शिकायत करने में मजा आता है, और अपने खाली समय में वे किसी एक अवधि के दौरान राजनीति, सरकार, समाज और किसी समूह विशेष के व्यक्तियों के मामले उजागर करने के लिए लेख और कविता-संग्रह प्रकाशित करते हैं। वे आज इसकी आलोचना करते हैं और कल उसकी, वे वाक्पटुता से बोलते हैं, लेकिन जब कुछ करते हैं तो मुसीबत में पड़ जाते हैं। अंत में, वे किसी के साथ हिलमिल कर नहीं रह पाते, वे कहीं कुछ हासिल नहीं कर सकते, और वे अपना काम करने में सक्षम नहीं होते। वे गलत ढंग से यह मानते हैं, “मैं बहुत प्रतिभाशाली हूँ! साधारण लोग मेरे विचार के दायरे तक नहीं पहुँच सकते!” वे अपने दिल में निरुत्साहित, परेशान और उदास महसूस करते हैं। अपने खाली समय में वे इधर-उधर घूमते हैं, और जब भी वे किसी ऐतिहासिक रुचि वाले स्थान पर जाते हैं, तो जोर से चिल्लाते हैं, “मैं एक कुंठित प्रतिभा हूँ! मैं एक उत्कृष्ट व्यक्ति हूँ, लेकिन ऐसे लोग कम ही हैं जो सच्ची प्रतिभा को पहचान सकें! मेरी आकांक्षाएँ ऊँची हैं, यह शर्म की बात है कि मैं गलत समय पर पैदा हुआ और मेरी किस्मत खोटी है!” वे हमेशा खुद को महत्वाकांक्षी और ज्ञान से भरपूर मानते हैं, लेकिन कभी भीड़ से अलग नहीं हो पाते या किसी सत्ताधारी व्यक्ति द्वारा ऊँचे पद पर नहीं रखे जाते, इसलिए वे चिड़चिड़े और असंतुष्ट हो जाते हैं, वे हर व्यक्ति को हेय दृष्टि से देखते हैं, जब तक कि अंततः वे बिल्कुल अकेले नहीं रह जाते। क्या यह दयनीय नहीं है? स्पष्ट रूप से कहें तो, ऐसे लोग आडंबरपूर्ण, बेहद अलग रहने वाले और वास्तविकता से असंतुष्ट लोगों का एक पागल समूह हैं, जो हमेशा असफल महसूस करते हैं। असल में, ये लोग कुछ नहीं होते, ये कुछ नहीं कर सकते, ये हर काम खराब तरीके से करते हैं और जब ये थोड़ा ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं तो उसके बारे में बेशुमार बातें करके दिखावा करते हैं। प्राचीन काल में ऐसे लोग कविता पढ़ते थे, गीत लिखते थे और अपने साहित्यिक कौशल का दिखावा करते थे, अपनी पांडित्यपूर्ण छवि बनाए रखते थे। आजकल ऐसे लोगों के पास दिखावा करने के कहीं ज्यादा मौके हैं। वे अपना खुद का मीडिया बना सकते हैं, ब्लॉग्स पर कमेंट्स पोस्ट कर सकते हैं, इत्यादि। अपेक्षाकृत मुक्त सामाजिक प्रणालियों वाले कुछ देशों में वे अक्सर विभिन्न उद्योगों के अँधेरे पक्ष को उजागर करते हैं, जैसे कि साहित्यिक, कलात्मक, वाणिज्यिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों के अँधेरे और बुरे पहलू। पूरे दिन वे एक की आलोचना तो दूसरे का अपमान करते हैं, खुद को बहुत प्रतिभाशाली मानते हैं। उनके ये तमाम चीजें करने की जड़ उनका यह विश्वास है कि उनके बारे में सब-कुछ अच्छा और सही है, और उन्होंने महानता, महिमा और शुद्धता पा ली है। सटीक रूप से कहें तो, वे खुद को बुरे प्रभावों से बचाते हैं और वे “कीचड़ से बेदाग निकल आते हैं, साफ लहरों में नहाकर भी भड़कीले नहीं दिखते।” वे मानते हैं कि वे हर चीज स्पष्ट रूप से देखते हैं, हर चीज समझ सकते हैं। वे कुछ भी करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ परोक्ष आलोचना का इस्तेमाल करते हैं और उसे घृणा और तिरस्कार की नजर से देखते हैं। कोई कुछ भी करे, उसके बारे में कहने के लिए उनके पास हमेशा कुछ न कुछ होता है और वे उसकी आलोचना और अपमान करते हैं। वास्तव में, उन्हें नहीं पता कि वे खुद क्या हैं, वे कभी नहीं जानते कि जब वे बातें करते हैं तो उन्हें कौन-सा परिप्रेक्ष्य और दृष्टिकोण अपनाना चाहिए जो सही और उचित हो। वे तो बस बक्की होना और जो भी कहना चाहें, उसे लापरवाही से कहकर खुद को संतुष्ट करना जानते हैं। क्या समाज में ऐसे बहुत लोग हैं? (हाँ।) ये कौन लोग हैं? सटीक रूप से कहें तो, वे ऐसे पागल लोगों का समूह हैं जो आडंबरपूर्ण हैं और खुद को शुद्ध और ऊँचा समझते हैं। पूरे इतिहास में ऐसे कई लोग हुए हैं, है न? (हाँ।) तुम्हें इन लोगों को कैसे वर्णित और परिभाषित करना चाहिए? क्या वे आदर्शवादी नहीं हैं? सटीक रूप से कहें तो, ये लोग आदर्शवादी होते हैं। वे वर्तमान वास्तविक जीवन-परिवेश में रहने के इच्छुक नहीं होते, और उनका दिमाग लगातार कल्पना-लोक में रहता है और हवाई, खोखली, अदृश्य और अमूर्त चीजों से भरा रहता है। वे एक अस्तित्वहीन और अलौकिक दुनिया में रहते हैं—ये लोग आदर्शवादी कहलाते हैं। तो, वे दूसरे लोगों का मूल्यांकन करने के लिए क्या परिप्रेक्ष्य अपनाते हैं? वे नैतिक रूप से ऊँचा स्थान ग्रहण कर लेते हैं और दूसरे लोगों का मूल्यांकन करने के लिए उनका शुरुआती बिंदु यह होता है, “मैं तुम लोगों का बुरा और काला पक्ष स्पष्ट रूप से देख सकता हूँ और उसे उजागर कर सकता हूँ। मेरा तुम लोगों द्वारा की जाने वाली खराब और बुरी चीजें उजागर करने में सक्षम होना साबित करता है कि मैं तुम्हारे जैसा नहीं हूँ।” यहाँ उनका अंतर्निहित अर्थ यह है, “‘कीचड़ से बेदाग निकल आना, साफ लहरों में नहाकर भी भड़कीला न दिखना’—यह कहावत मुझपर सही बैठती है। तुम सब लोग इस बुरी प्रवृत्ति से दूषित हो चुके हो; तुम लोग अच्छे नहीं हो।” क्या यह उनका खुद को शुद्ध और ऊँचा समझना नहीं है? क्या यह उनका खुद को ज्यादा आँकना और प्रदर्शनप्रिय होना नहीं है? क्या यह उनके द्वारा वास्तविकता की आलोचना करने, समाज के अँधेरे पक्ष को उजागर करने और वास्तविकता से असंतुष्ट होने की आड़ में खुद को ऊँचा उठाने का एक प्रच्छन्न प्रयास नहीं है? (है।) तो, हम ऐसे लोगों को कैसे परिभाषित करें? एक लोकोक्ति है, “मैं पहले भी बेशर्म लोगों से मिला हूँ, लेकिन तुम जैसे बेशर्म से पहले कभी नहीं मिला।” क्या यह इन लोगों के बारे में नहीं बताता? (बताता है।) वे बेशर्म हैं। उनके पास ऐसे मुँह हैं जो सिर्फ सही और गलत के बारे में बात करते हैं, और ऐसी आँखें हैं जो सिर्फ दूसरों की कमियाँ और खामियाँ देखती हैं। अपने चतुर मुँह से वे सार्वजनिक रूप से दूसरों की कमियाँ और खामियाँ उजागर करते हैं, और ऐसा करके वे अपने विचार व्यक्त करते हैं और अन्य लोगों को दिखाते हैं कि वे खुद को बुरे प्रभावों से कैसे बचाते हैं, और वे कितने अद्वितीय और महान हैं। क्या वे सचमुच महान हैं? क्या वे सचमुच अद्वितीय हैं? वे अन्य सभी जैसे ही हैं। दूसरे लोग प्रसिद्धि और लाभ पाने के लिए जो भी तरीके अपनाते हों, उनके तरीके स्पष्ट होते हैं। लेकिन ये लोग प्रतिष्ठित होने का दिखावा करते हैं, और उनके द्वारा दूसरों को उजागर करना और उनकी आलोचना ऐसे विषयों और आगे बढ़ने की प्रेरणा का काम देती है, जिनके द्वारा वे खुद को ऊँचा उठाते और बढ़ावा देते हैं, और वे इन साधनों का इस्तेमाल प्रसिद्ध और प्रभावशाली बनने के लिए करते हैं। क्या वे भी प्रसिद्धि और लाभ का अनुसरण नहीं कर रहे? क्या उनके लक्ष्य बिल्कुल एक-जैसे नहीं हैं? क्या नतीजे बिल्कुल एक-जैसे नहीं हैं? वे अलग-अलग साधन और तरीके इस्तेमाल करते हैं, बस। यह किसी को विनम्र भाषा का इस्तेमाल करके अपमानित करने और अभद्र भाषा का इस्तेमाल करके अपमानित करने जैसा ही है, अपमान करने की प्रकृति फिर भी बिल्कुल एक-जैसी है। दूसरे लोग एक तरीके से प्रसिद्ध बनते हैं, और ये लोग दूसरे तरीके से प्रसिद्ध बनते हैं—अंतिम परिणाम एक-जैसा ही होता है, और इरादा, उद्देश्य और प्रेरणा भी एक ही जैसी होती है, इसलिए उनमें बिल्कुल भी अंतर नहीं होता।

जहाँ तक समाज में उन लोगों का सवाल है, जो खुद को “कीचड़ से बेदाग निकल आना, साफ लहरों में नहाकर भी भड़कीला न दिखना” घोषित करते हैं, हमने उन्हें आदर्शवादियों के रूप में परिभाषित किया है। ऐसे लोगों का लक्षण यह है कि वे असाधारण रूप से अलग-थलग रहते हैं, उन्हें लगता है कि वे अन्य सबसे बेहतर हैं, वे बाकी सभी को असंतोषजनक मानते हैं, और अंततः वे यह निष्कर्ष निकालते हैं कि, “तुम सभी लोग कीचड़ में धँसे और बुरी प्रवृत्तियों में डूबे हुए हो। मैं तुम लोगों से आगे निकल गया हूँ और मैं ‘कीचड़ से बेदाग निकल आता हूँ, साफ लहरों में नहाकर भी भड़कीला नहीं दिखता।’” यह उनका आडंबर है, और यह दिखाता है कि वे वास्तविकता से कितने असंतुष्ट हैं, मानो वे खुद बहुत पवित्र और साफ हों। वास्तव में, चूँकि वे दूसरों की तरह सक्षम नहीं हैं और उनके पास वे साधन नहीं हैं जो दूसरे लोगों के पास हैं, चूँकि वे हमेशा भीड़ से अलग दिखने की कोशिश करते हैं लेकिन कभी उनकी इच्छा पूरी नहीं हो पाती, चूँकि वे हमेशा आदर्श, अलौकिक और खोखली चीजें खोजा करते हैं लेकिन कभी संतुष्ट नहीं होते और कभी इन चीजों को वास्तविकता में नहीं ला सकते, और चूँकि उनमें वास्तविकता का सामना करने या अपने आदर्श छोड़ने की कोई इच्छा नहीं होती, इसलिए, रूप के संदर्भ में, उनके पास आधिकारिक, राजनीतिक, कलात्मक और साहित्यिक, और सांस्कृतिक क्षेत्रों से दूर रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। चूँकि ऐसे क्षेत्रों में उनका स्वागत नहीं किया जाता, उन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता, इसलिए वे अपनी महत्वाकांक्षाएँ पूरी नहीं कर सकते, और उनके आदर्श और आकांक्षाएँ साकार नहीं हो सकतीं, इसलिए अंत में वे खुद को “कीचड़ से बेदाग निकल आना, साफ लहरों में नहाकर भी भड़कीला न दिखना” घोषित कर देते हैं और कहते हैं कि वे धारा के विपरीत तैरते हैं, कि उनके पास महान नैतिक चरित्र है, और वे खुद को सांत्वना देने के लिए ऐसी कहावतों का इस्तेमाल करते हैं। क्या उन पर हमारी ऐसी संगति से अब तुम लोग जान गए हो कि ऐसे लोगों को कैसे पहचाना जाए? सार में ये लोग असल में क्या हैं? वे कुछ नहीं हैं, पर फिर भी आडंबरी हैं। क्या यह सटीक आकलन है? (हाँ।) ऐसे लोगों के पास बहुत सारे आदर्श होते हैं, लेकिन उनमें से एक भी साकार नहीं किया जा सकता, न ही उनमें से कोई वास्तविकता के अनुरूप होता है। जिन सभी चीजों के बारे में वे सोचते हैं, वे खोखली और अवास्तविक हैं। पूरे दिन, ये लोग कोई उचित काम नहीं करते, सिर्फ कविता पढ़ना और कसीदे लिखना जानते हैं, इसकी आलोचना करना, उसका अपमान करना—यह उनका कोई उचित काम न करना है, है न? उनका सार उनके व्यवहार से देखा जा सकता है : उनमें कोई वास्तविक प्रतिभा या ज्ञान नहीं होता, वास्तविकता और जीवन पर उनके तमाम विचार और दृष्टिकोण खोखले, अस्पष्ट और अवास्तविक होते हैं, यही कारण है कि वे “कीचड़ से बेदाग निकल आना, साफ लहरों में नहाकर भी भड़कीला न दिखना” की भ्रांति का पालन कर सकते हैं। वे यह आशा करते हुए ऐसा बनने का प्रयास करते हैं कि और भी लोग ऐसे होंगे—यह भ्रामक है। अगर लोग ऐसे हुए, तो वे क्या हासिल कर सकते हैं? सटीक रूप से कहें तो, ऐसे लोग जीवन में वास्तविक लक्ष्य या दिशा से रहित, सच्चे विश्वास से रहित, जीवन में सच्चे विकल्प से रहित और अभ्यास के सही मार्ग से रहित होते हैं। पूरे दिन, उनके विचार जंगली और अनियंत्रित रहते हैं, वे तमाम तरह के विचित्र विचारों पर सोचते हैं, उनके दिमाग अराजक, खोखली और अवास्तविक चीजों से भरे रहते हैं, जिनमें से कोई भी चीज यथार्थवादी नहीं होती, और ये लोग वास्तव में मनुष्य से अलग किस्म के होते हैं। उनकी सोच खोखली और बेहद बेतुकी और अतिवादी दोनों होती है। चाहे वे किसी भी समूह के लोग हों, या चाहे वे समाज में उच्च वर्ग के हों या मध्यम वर्ग या निम्न वर्ग के, वे कभी दूसरों के साथ सामंजस्य नहीं बना पाते और लोग उन्हें कभी स्वीकार नहीं कर सकते। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है, क्योंकि उनकी सोच, उनके अनुसरण और वे परिप्रेक्ष्य, जिनसे वे लोगों और चीजों को देखते हैं, अतिवादी और एक अलग तरह के होते हैं। शिष्टता से कहें तो, ये लोग आदर्शवादी होते हैं, लेकिन सटीक रूप से कहें तो, ये मानसिक रूप से बीमार और मानसिक रूप से असामान्य होते हैं। मुझे बताओ, क्या मानसिक रूप से बीमार लोगों की सामान्य लोगों के साथ बन सकती है? न सिर्फ उनकी अपने दोस्तों और सहकर्मियों के साथ नहीं बनती, बल्कि उनकी अपने परिवार से भी नहीं बनती। जब ये लोग अपने विचार और वक्तव्य सामने रखते हैं, तो दूसरे लोग अजीब और विमुख महसूस करते हैं, और वे उन्हें बिल्कुल भी सुनना नहीं चाहते। इन कथनों में कोई दम नहीं होता और ये वास्तविक जीवन में काम नहीं करते। वास्तविक जीवन में, लोगों को जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, वे उनके भीतर उत्पन्न हो सकती हैं, वे लोगों के वस्तुनिष्ठ परिवेशों से उत्पन्न हो सकती हैं, या वे जीवन की मुख्य दैनिक जरूरतों से जुड़ी हो सकती हैं—इन चीजों का सामना कैसे किया जाना चाहिए, इन्हें कैसे सँभाला और हल किया जाना चाहिए? छोटी कठिनाइयों की बात करें तो, वे ऐसी कठिनाइयाँ होती हैं जो जीवन की मुख्य दैनिक जरूरतों से जुड़ी होती हैं, जबकि बड़ी कठिनाइयों की बात करें तो, ये वे कठिनाइयाँ होती हैं जो जीवन के प्रति लोगों के दृष्टिकोण, उनके जीने के नियमों, उनके द्वारा अनुसरण किए जाने वाले मार्ग और उनके विश्वासों से संबंधित हैं, और यही समस्याएँ सबसे वास्तविक होती हैं। फिर भी ये आदर्शवादी हमेशा इन समस्याओं से खुद को अलग रखना चाहते हैं और कभी वास्तविक जीवन की स्थितियों में नहीं रहना चाहते। उनके विचार, परिप्रेक्ष्य और आरंभ बिंदु, जिनसे वे लोगों और चीजों को देखते हैं, इन वास्तविक समस्याओं पर आधारित नहीं होते, बल्कि जंगली और अनियंत्रित होते हैं। तुम्हें कभी पता नहीं चलता कि वे क्या सोच रहे हैं, मानो वे दूसरे ग्रहों के लोगों की तरह सोचते हों, ऐसी चीजें जो यहाँ पृथ्वी पर लोगों ने पहले कभी नहीं सुनीं, ऐसी चीजें जो उन्हें असामान्य लगती हैं। किसी को असामान्य चीजें कहते हुए कौन सुनना चाहता है? जब लोग पहली बार इस व्यक्ति से मिलते हैं और उसे बोलते हुए सुनते हैं, तो उन्हें लग सकता है कि वे जो कह रहे हैं वह वास्तव में ताजा और नया है, साधारण लोग जो कहते हैं उससे ज्यादा गहन और चतुराई भरा है। लेकिन थोड़ी देर बाद ही उन्हें पता चल जाता है कि यह सब सिर्फ बकवास है, इसलिए फिर कोई उस व्यक्ति पर ध्यान नहीं देता, वे उसकी बात नहीं सुनते, और वह जो कुछ भी कहता है, वह न तो उनके कानों में प्रवेश करता है, न ही उनके दिल में। जब दूसरे लोग उसके प्रति ऐसा रवैया अपनाते हैं, तो क्या वह व्यक्ति इसे समझ पाता है? समय बीतने पर उसे इसका पता चल जाता है, और वह अपने दिल में सोचता है, “कोई मुझे पसंद नहीं करता, इसका क्या कारण है? वे मुझे पसंद क्यों नहीं करते? ओह, मैं एक उत्कृष्ट व्यक्ति हूँ, लेकिन बहुत कम लोग हैं जो सच्ची प्रतिभा पहचान सकते हैं!” देखा, वे हमेशा आडंबरपूर्ण होते हैं, हमेशा खुद को प्रतिभाशाली, चतुर और सक्षम मानते हैं, जबकि असल में वे कुछ नहीं हैं। चाहे वे खुद को किसी भी जन-समूह में पाएँ, उनके लिए अंतिम परिणाम और अंत हमेशा अस्वीकृति ही होता है। ऐसा उनके इस कथन का अनुसरण करने के कारण होता है, “कीचड़ से बेदाग निकल आना, साफ लहरों में नहाकर भी भड़कीला न दिखना।” अगर तुमने कभी ऐसा बनना चाहा हो, तो मैं तुमसे कहता हूँ कि वहीं रुक जाओ, क्योंकि ये लोग सामान्य नहीं होते। अगर तुम्हारी सोच और तुम्हारी मानवता का विवेक सामान्य है, तो तुम वही करो जो तुम्हें करना चाहिए और जो तुम कर सकते हो, और उन लोगों में से एक बनने की कोशिश न करो जो “कीचड़ से बेदाग निकल आना, साफ लहरों में नहाकर भी भड़कीला न दिखना।” ये लोग एक पतित और अलग किस्म के इंसान होते हैं, ये सामान्य नहीं होते।

उन लोगों के सार का विश्लेषण कर लेने के बाद, जो कि “कीचड़ से बेदाग निकल आना, साफ लहरों में नहाकर भी भड़कीला न दिखना,” आओ, वास्तविकता से असंतोष और दोषदर्शिता की समस्याओं के बारे में बात करें, जिनका उल्लेख हमने तब किया था जब हमने इन लोगों को उजागर किया था। कुछ लोग मानते हैं, “हम परमेश्वर में विश्वास करते हैं, इसलिए हमें समाज के स्याह पक्ष और समाज में व्याप्त बुरी प्रवृत्तियों को समझना चाहिए, और उनका अनुसरण नहीं करना चाहिए। हमें राजनीति, मनुष्य की दुष्टता, मनुष्य की विभिन्न सामान्य प्रथाओं और मनुष्य की उन तमाम अँधेरी और बुरी चीजों को भी समझना होगा, जो विभिन्न समयों पर, दुनिया के विभिन्न कोनों में और विभिन्न जातियों और समूहों के बीच मौजूद हैं। ऐसा करने से हममें विवेक का विकास होगा।” क्या परमेश्वर मनुष्य से यही चाहता है? इससे पहले कि हम इस विषय पर संगति करें, तुम लोगों में से कुछ ने इसे अपना अनुसरण बना लिया होगा, लेकिन अब मैं तुम्हें स्पष्ट रूप से बताता हूँ, यह वह चीज नहीं है जो तुम्हें करनी चाहिए, और यह वह चीज नहीं है जो परमेश्वर तुमसे चाहता है। तुम्हें इस दुनिया, इस समाज और मानवजाति, या इस राजनीतिक, वाणिज्यिक, साहित्यिक या धार्मिक क्षेत्र, या समाज से आने वाली किसी सामान्य प्रथा, या समाज में किसी समूह या बल की संचालन-पद्धति इत्यादि समझने की जरूरत नहीं है—यह वह सबक नहीं है जिसे तुम्हें सीखने की जरूरत हो। तुम्हें वास्तविकता से असंतुष्ट होने की जरूरत नहीं है, और तुम्हें खुद को बुरे प्रभावों से बचाने की जरूरत भी नहीं है। यह वह दृष्टिकोण या परिप्रेक्ष्य नहीं है जो तुम्हें अपनाना चाहिए, और यह वह विचार नहीं है जो तुम्हें अपनाना चाहिए। परमेश्वर ने तुम्हें चुना है और तुम्हें अपने पर विश्वास करने और अपना अनुसरण करने दिया है; वह तुमसे मनुष्य-विरोधी, समाज-विरोधी, राजनीति-विरोधी या राज्य-विरोधी होने के लिए नहीं कहता, न ही वह तुमसे किसी समूह, जाति या धर्म का विरोध करने के लिए कहता है। वह बस कहता है कि तुम उसका अनुसरण करो और शैतान को नकारो, उसके अर्थात परमेश्वर के सामने आओ और उसके वचन स्वीकारो और उनके प्रति समर्पित बनो, उसके मार्ग का अनुसरण करो और उसका भय मानो और बुराई से दूर रहो। परमेश्वर ने कभी यह नहीं कहा है कि तुम मनुष्य-विरोधी, समाज-विरोधी या राज्य-विरोधी बनो। ज्यादा सटीक रूप से कहें तो, परमेश्वर ने कभी तुमसे किसी निश्चित सरकार, किसी निश्चित सामाजिक या राजनीतिक प्रणाली, या किसी निश्चित राजनीतिक नीति का विरोध करने के लिए नहीं कहा है—परमेश्वर ने तुमसे कभी कोई ऐसी चीज करने के लिए नहीं कहा है। कुछ लोग कहते हैं, “सभी मनुष्य हमें नकारते हैं, हमारा विरोध करते है और सताते हैं। क्या हमारा उठकर उनका विरोध करना और उनके खिलाफ लड़ना गलत है? वे सब हमारे खिलाफ हैं, तो हम उनके खिलाफ क्यों नहीं हो सकते?” व्यक्तिगत रूप से तुम चाहे जैसे भी सोचो या कार्य करो, या समाज, दुनिया और राष्ट्रीय राजनीतिक प्रणालियों के संबंध में व्यक्तिगत रूप से चाहे जैसे भी विचार रखो, यह तुम्हारा अपना मामला है और इसका उस मार्ग से कोई लेना-देना नहीं है, जिसका परमेश्वर तुमसे अनुसरण करने के लिए कहता है, न ही उसका परमेश्वर की शिक्षाओं या अपेक्षाओं से कोई लेना-देना है। कुछ लोग कहते हैं, “चूँकि तुम कहते हो कि इन चीजों का परमेश्वर की शिक्षाओं से कोई लेना-देना नहीं है, कि ये वे नहीं हैं जो परमेश्वर हमसे चाहता है और न ही ये वे हैं जो परमेश्वर हमसे करने के लिए कहता है, तो फिर परमेश्वर शैतान, सामाजिक प्रवृत्तियों, समाज के स्याह पक्ष, यहाँ तक कि धर्म को भी उजागर क्यों करता है?” परमेश्वर इन चीजों को सिर्फ इसलिए उजागर करता है, ताकि तुम उन्हें समझ सको, क्योंकि परमेश्वर द्वारा उजागर की जाने वाली ये चीजें लोगों के भ्रष्ट स्वभावों और उनके परमेश्वर-विरोधी विचारों और धारणाओं से संबंधित हैं। इसलिए, इस तरह की स्थिति में, हमारा ऐसे विषयों पर संगति करना और ऐसे उदाहरण इस्तेमाल करना अनिवार्य है, जिसका उद्देश्य लोगों को भ्रष्ट मनुष्य द्वारा प्रकट किए जाने वाले शैतानी स्वभावों को ज्यादा सटीक और व्यावहारिक रूप से जानने और वे तमाम विभिन्न भ्रांतिपूर्ण विचार और दृष्टिकोण और परमेश्वर-विरोधी धारणाएँ समझने में सक्षम बनने देना है, जो शैतान उनके मन में बैठाता है, और कुछ नहीं। ऐसा इसलिए नहीं किया जाता कि लोग व्यक्तिगत रूप से राजनीति का विरोध कर सकें, समाज का विरोध कर सकें और मनुष्य का विरोध कर सकें। परमेश्वर ने कभी लोगों से वास्तविकता से असंतुष्ट होने, दोषदर्शी होने या खुद को बुरे प्रभावों से बचाने के लिए नहीं कहा। कुछ लोग कहते हैं, “हालाँकि परमेश्वर ने मुझसे ऐसा बनने के लिए कभी नहीं कहा, लेकिन मैं परमेश्वर में विश्वास करता ही इसलिए हूँ क्योंकि मैं दोषदर्शी हूँ और वास्तविकता से असंतुष्ट हूँ, क्योंकि मुझे लगता है कि परमेश्वर के घर में निष्पक्षता और धार्मिकता है और यहाँ सत्य का बोलबाला है, और यहाँ मेरे साथ उचित व्यवहार किया जाता है।” यह तुम्हारा मामला है और इसका परमेश्वर की अपेक्षा से कोई लेना-देना नहीं है। बेशक, सभी अलग-अलग कारणों से परमेश्वर में विश्वास करते हैं : कुछ लोग आशीष पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास करते हैं, तो कुछ आपदाओं से बचने के लिए, कुछ इसलिए कि उनकी बीमारी ठीक हो जाए, तो कुछ इसलिए कि उन्हें भविष्य में एक अच्छी मंजिल मिल जाए; और फिर कुछ ऐसे भी हैं जो वास्तविकता से असंतुष्ट हैं, दुनिया से असंतुष्ट हैं, समाज से असंतुष्ट हैं, या जिनके साथ समाज में गलत व्यवहार किया गया है, इसलिए जो आराम और शरण की तलाश में परमेश्वर के घर आते हैं। परमेश्वर में विश्वास को लेकर सभी के विचार और परमेश्वर में अपने विश्वास के पीछे उनका मूल इरादा या प्रेरणा अलग-अलग होती है। ऐसे लोग भी हैं, जिनके हृदय में ये चीजें नहीं होतीं, जो सिर्फ परमेश्वर में विश्वास करना चाहते हैं और महसूस करते हैं कि परमेश्वर में विश्वास करना अच्छी चीज है। जो भी हो, जब दोषदर्शी और वास्तविकता से असंतुष्ट लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, तो परमेश्वर सिर्फ इसलिए उनकी सराहना या उनके साथ दयालुतापूर्ण व्यवहार नहीं कर देता कि वे कुछ हद तक गुणी या प्रतिभाशाली हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे सत्य नहीं स्वीकारते, अत्यधिक अहंकारी और आत्म-तुष्ट होते हैं और दूसरों का तिरस्कार करते हैं, और ऐसे लोगों को सत्य स्वीकारना बेहद कठिन लगता है। तुम्हें ऐसे लोगों के लिए कोई आशा नहीं रखनी चाहिए, न ही तुम लोगों को खुद ऐसा बनना चाहिए। मैं तुम लोगों से सिर्फ ईमानदार बनने, सत्य का अनुसरण करने, परमेश्वर के वचनों के प्रति समर्पित बनो, और परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के लिए कहता हूँ। इसलिए, यह कभी न मानो कि सिर्फ इसलिए कि तुम समाज से असंतुष्ट हो और उसे स्पष्ट रूप से समझते हो, या चूँकि तुम पहले किसी विशेष उद्योग में संलग्न थे और उस उद्योग के स्याह पक्ष की गहरी समझ रखते हो, इस कारण तुम्हारे पास परमेश्वर में अपने विश्वास में पूँजी और आध्यात्मिक कद है, इस कारण परमेश्वर तुमसे प्रेम करता है, तुम परमेश्वर द्वारा अपेक्षित मानक पूरे करते हो, या तुम एक योग्य सृजित प्राणी हो। अगर तुम ऐसा मानते हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम गलत हो, जिन विचारों से तुम स्थिति माप रहे हो वे गलत हैं, जिस परिप्रेक्ष्य से तुम चीजों को देख रहे हो वह गलत है, और जो दृष्टिकोण तुम अपना रहे हो वह गलत है। मैं यह क्यों कहता हूँ? मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ कि चूँकि जो दृष्टिकोण तुम अपना रहे हो और जिस परिप्रेक्ष्य और जिन दृष्टिकोणों से तुम लोगों और चीजों को देखते हो, वे परमेश्वर के वचनों पर आधारित नहीं हैं और सत्य उनकी कसौटी नहीं है। अगर तुम हमेशा सांसारिक लोगों का परिप्रेक्ष्य अपनाते हो और वास्तविकता से असंतुष्ट और दोषदर्शी महसूस करते हो, तो तुम उनसे घृणा करोगे, उनके खिलाफ लड़ना और संघर्ष करना चाहोगे, उनसे तर्क करना चाहोगे और सही-गलत के बारे में उनसे बहस करना चाहोगे; तुम मानवजाति को बदलना चाहोगे, समाज को बदलना चाहोगे, यहाँ तक कि देश की राजनीतिक प्रणाली को भी बदलना चाहोगे। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो यह मानते हुए अपने देश के राजनीतिक अभिजात-वर्ग का स्याह पक्ष उजागर करना चाहेंगे कि ऐसा करके वे शैतान को नकार रहे हैं और सत्य का अभ्यास कर रहे हैं। यह सब गलत है। राजनीतिक अभिजात-वर्ग के क्षेत्रों में, व्यावसायिक क्षेत्रों में, या कलात्मक और साहित्यिक क्षेत्रों में चाहे जितनी भी चीजें चलती हों, उनमें से किसी का भी सत्य के तुम्हारे अनुसरण से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसी चीजों के बारे में चाहे तुम जितना भी जानते हो, यह सब बेकार है, और यह ये प्रदर्शित नहीं करता कि तुम शैतान का सार जानते हो या तुम अपने अंतरतम हृदय में शैतान को नकार सकते हो। चाहे तुम ऐसी चीजों को कितना भी जानते या समझते हो, और चाहे तुम्हारी समझ कितनी भी विशिष्ट, कितनी भी सच्ची या कितनी भी सटीक हो, यह ये नहीं दर्शाता कि तुम सत्य का अभ्यास कर रहे हो, कि तुम खुद को जान रहे हो, या कि तुम अपने भीतर के शैतानी विचारों और दृष्टिकोणों का विश्लेषण कर रहे हो, न ही यह ये दर्शाता है कि तुम परमेश्वर के वचनों और सत्य से प्रेम करते हो, और तुम्हारे द्वारा परमेश्वर का भय मानने को तो बिल्कुल नहीं दर्शाता। यह मत सोचो कि सिर्फ इसलिए कि तुम समाज के बारे में थोड़ा-बहुत समझते हो, या तुम किसी उद्योग के वे अंदरूनी नियम या कुछ सुनी-सुनाई बातें जानते हो जिनके बारे में ज्यादातर लोग नहीं जानते, कि चूँकि तुम दोषदर्शी और समाज से असंतुष्ट हो और तुममें समाज का स्याह पक्ष उजागर करने का साहस है, इसलिए तुम एक नेक और सम्माननीय व्यक्ति हो, औरों से कहीं बेहतर हो, और “कीचड़ से बेदाग निकल आना, साफ लहरों में नहाकर भी भड़कीला न दिखना।” परमेश्वर ऐसे लोगों को नहीं चाहता।

परमेश्वर में विश्वास करने से पहले कुछ लोग डरपोक थे और झिझकते थे, समाज के स्याह पक्ष को उजागर करने की हिम्मत नहीं करते थे, ऐसा करने का साहस नहीं रखते थे। अब जब वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, तो उन्हें लगता है कि परमेश्वर उन्हें प्रोत्साहित कर उनका समर्थन कर रहा है, इसलिए वे अब ऐसी चीजों को उजागर करने से नहीं डरते। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो विदेश में लोकतांत्रिक देशों में जाते हैं और सीसीपी नामक राक्षस के कुछ बुरे काम उजागर करने का साहस करते हैं। तब इन लोगों को लगता है कि वे सत्य समझते हैं, कि उनका आध्यात्मिक कद है और वे परमेश्वर में आस्था रखते हैं। ये सब गलत विचार और दृष्टिकोण हैं, और उनके लिए इन चीजों का अनुसरण करना व्यर्थ है। चाहे तुम वास्तविकता से असंतुष्ट हो, चाहे तुम दोषदर्शी हो या नहीं, चाहे तुम बाकी समाज से बेहतर हो या नहीं, और चाहे तुम ऐसे व्यक्ति हो या नहीं जो “कीचड़ से बेदाग निकल आना, साफ लहरों में नहाकर भी भड़कीला न दिखना,” परमेश्वर के लिए इनमें से कुछ भी मायने नहीं रखता; वह ऐसी चीजें नहीं देखता। परमेश्वर क्या देखता है? परमेश्वर पहले यह देखता है कि तुम अपने अंतरतम हृदय में शैतान से आने वाले विचार और दृष्टिकोण पहचानते हो या नहीं, और जब तुम उन्हें पहचान लेते हो, तो क्या तुम उन्हें उजागर करते हो और उनके बारे में दूसरों से खुलकर बात करते हो, और जब तुम उन्हें स्पष्ट रूप से समझ लेते हो तो क्या तुम उन्हें नकारते हो। इसके अलावा, परमेश्वर यह देखता है कि तुम वास्तविक जीवन में सचेत रूप से सत्य का अनुसरण करते हो या नहीं, तुम लोगों और चीजों को जैसे देखते हो और जैसे आचरण और कार्य करते हो, क्या उसमें सचेत रूप से सत्य सिद्धांतों की खोज करते हो, और सत्य के प्रति वास्तव में तुम्हारा क्या रवैया है। यह ऐसी चीज है, जिसके बारे में तुम्हें अपने दिल में स्पष्ट होना चाहिए। कुछ लोगों को अतीत और वर्तमान पर चर्चा करने, ऐतिहासिक दरबारी साजिशों के बारे में प्रचुरता और प्रबलता से बोलने, राजनीतिक क्षेत्रों में किस अवधि में कौन-सी बड़ी घटनाएँ हुईं, महत्वपूर्ण मुद्दे क्या थे, और महत्वपूर्ण क्षणों में किसने भूमिका निभाई, आदि-इत्यादि को विस्तार से रेखांकित करने में आनंद आता है। फिर वे सोचते हैं कि उनका आध्यात्मिक कद है, वे ईमानदार हैं और उनमें न्याय की गहरी भावना है, और कहते हैं, “देखते हो, मैं समाज से बहुत असंतुष्ट हूँ। मेरी नजर नौकरशाही के अँधेरे को बेध जाती है, और मैं उसे बहुत गहराई से और पूरी तरह से समझता हूँ!” ऐसी बातें करने से क्या फायदा? तुम किसे मस्का लगाने की कोशिश कर रहे हो? परमेश्वर को? क्या तुम दिखावा कर रहे हो कि तुम बहुत बुद्धिजीवी हो और बहुत-सी चीजों के बारे में जानते हो? ये चीजें कहना बेकार है। मैंने कभी ऑनलाइन किसी बेकार कचरे पर नजर नहीं डाली है, न ही मुझे कभी किसी तरह के समाचार या खबरों में दिलचस्पी रही है। मैं इन चीजों पर नजर क्यों नहीं डालता? क्योंकि यह खीझ पैदा करने वाला और घिनौना है। कुछ लोग मानते हैं कि परमेश्वर में विश्वास करने लगने के बाद उनमें न्याय की भावना होनी चाहिए, और वे अक्सर प्रसिद्ध लोगों, मशहूर हस्तियों और राजनेताओं पर टीका-टिप्पणी करते हैं और शेखी से भरे होते हैं, और वे इन लोगों के निजी जीवन को प्रकाश में लाकर सभी की आँखें खोलने की उम्मीद करते हैं। उन्हें लगता है कि वे हरफनमौला हैं, बुद्धिमान व्यक्ति हैं, तमाम रहस्य जानते हैं, और वे बहुत चतुर, ज्ञानी और ईमानदार हैं। ऐसी चीजें जानने का क्या फायदा? क्या यह दर्शाता है कि तुम सत्य का अभ्यास कर रहे हो? क्या यह दर्शाता है कि तुमने सत्य समझ लिया है? क्या यह दर्शाता है कि तुम्हारा आध्यात्मिक कद है? (नहीं।) तुम समाज में उन चीजों के बारे में बात करना बंद नहीं कर सकते, लेकिन क्या तुम इस बारे में कुछ कह सकते हो कि तुम्हारी आँखों के ठीक सामने जो चीजें हैं और वह कर्तव्य जो तुम्हें करना चाहिए, उन्हें सत्य सिद्धांतों के अनुरूप कैसे निभाया जाए? तुम नहीं कह सकते; तुम्हारे पास कहने के लिए कुछ नहीं है। तुम समाज में उन चीजों के बारे में चाहे जितना भी जानते हो, इससे यह प्रदर्शित नहीं होता कि तुम सत्य समझते हो या तुम्हारा आध्यात्मिक कद वास्तविक है। यह मत सोचो कि चूँकि तुम नकली समाचारों और भ्रांतियों की असलियत देख सकते हो, सिर्फ इसलिए तुम्हारे पास आध्यात्मिक कद है, और तुमने दुनिया त्याग दी है, शैतान को नकार दिया है, कि तुम अब शैतान के साथ दोस्ती नहीं गाँठते, और तुम्हें परमेश्वर में आस्था है और तुम उसके प्रति वफादार हो—ये सब भ्रामक विचार हैं, और इनमें से कोई भी जीवन का प्रतिनिधित्व बिल्कुल नहीं करता। अगर तुम सोचते हो, “क्या ऐसा नहीं है कि मैं वास्तविकता से जितना ज्यादा असंतुष्ट होता हूँ, जितना ज्यादा बड़े लाल अजगर को उजागर करता हूँ, जितना ज्यादा मैं बड़े लाल अजगर से नफरत करता हूँ, जितना ज्यादा मैं दुनिया से नफरत करता हूँ और जितना ज्यादा मैं दोषदर्शी हूँ, परमेश्वर उतना ही ज्यादा प्रसन्न होता है और उतना ही ज्यादा मुझे पसंद करता है?” तो तुम गलत हो। जितना ज्यादा तुम उन चीजों का अनुसरण करते हो और जितना ज्यादा तुम उस मार्ग का अनुसरण करते हो, उतना ही कम परमेश्वर तुम्हें पसंद करता है और उतना ही ज्यादा वह तुमसे विमुख होता है। ऐसा क्यों है कि जितना ज्यादा तुम उन सांसारिक चीजों का अनुसरण करते हो, उतना ही कम परमेश्वर तुम्हें पसंद करता हैं? ऐसा इसलिए है, क्योंकि तुम सही मार्ग पर नहीं चल रहे और उचित काम नहीं कर रहे। इसलिए, जब तुम्हारे पास कुछ समय हो, तो तुम परमेश्वर के वचन ज्यादा पढ़ सकते हो, भजन सुन सकते हो, अपने भाई-बहनों के जीवन अनुभवजन्य गवाहियाँ सुन सकते हो, और सभी एक-साथ परमेश्वर के वचनों पर चिंतन और संगति कर सकते हो। उस अफवाह के बारे में मत पूछो, जिसका तुम्हारे जीवन-प्रवेश या उद्धार के अनुसरण से कोई लेना-देना नहीं है। यह उन लोगों द्वारा किया जाता है, जिनके पास करने के लिए कुछ बेहतर नहीं होता। समाज कैसे विकसित होता है, दुनिया क्या रुख अपनाएगी, मानवजाति कितनी गंदी और बुरी है और राजनीति कितनी अंधकारमय है—क्या इन चीजों का तुमसे कोई लेना-देना है? अगर समाज और दुनिया अंधकारमय, बुरी और गंदी न होती, तो क्या तुम उद्धार प्राप्त कर लेते? (नहीं।) उन चीजों का तुमसे कुछ लेना-देना नहीं है। तुम उद्धार प्राप्त कर सकते हो या नहीं, यह सिर्फ इस बात से संबंधित है कि तुम कितना सत्य स्वीकारते और समझते हो, तुम कितना सत्य वास्तविकता में प्रवेश करते हो, और यह इस बात से संबंधित है कि तुम अपना कर्तव्य कितनी अच्छी तरह निभाते हो—यह सिर्फ इन कुछ चीजों से संबंधित है। बार-बार प्रसिद्ध लोगों और मशहूर हस्तियों पर टिप्पणी मत करो, समय गुजारने के लिए मशहूर हस्तियों का शर्मनाक और गंदा व्यवहार उजागर मत करो, यह दिखावा मत करो कि तुम कितने चतुर और दूसरों से कितने बेहतर हो। ये मूर्खतापूर्ण चीजें हैं; ऐसे मत बनो। ऐसा व्यक्ति वह होता है, जो कोई उचित कार्य नहीं करता और सही मार्ग पर नहीं चलता।

जहाँ तक, नैतिक आचरण संबंधी इस कहावत कि “कीचड़ से बेदाग निकल आना, साफ लहरों में नहाकर भी भड़कीला न दिखना,” के सार का सवाल है, हमने अब इसके बारे में काफी संगति और इसका काफी विश्लेषण कर लिया है। इसके अलावा, क्या हमने अब इस कथन के अनुसार आचरण करने के रवैये और विचारों पर और साथ ही इस बात पर कि परमेश्वर की अपेक्षाएँ और रवैया क्या है, स्पष्ट रूप से संगति नहीं कर ली है? (कर ली है।) क्या तुम लोग अब उस मार्ग को भी समझते हो, जिसका लोगों को अनुसरण करना चाहिए? (समझते हैं।) क्या जिस दोषदर्शिता के बारे में हम यहाँ बात कर रहे हैं, वह एक सकारात्मक चीज है? क्या वास्तविकता से असंतोष एक सकारात्मक चीज है? क्या खुद को बुरे प्रभावों से बचाना सकारात्मक चीज है? (नहीं।) इनमें से कोई भी सकारात्मक चीज नहीं है। हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि ये तुम्हारे आचरण और कार्य करने के आधार नहीं हैं, इन्हें तुम्हारे आचरण और कार्य करने के आधार नहीं बनना चाहिए, इन्हें तुम्हारे आचरण और कार्य करने के सिद्धांत तो बिल्कुल भी नहीं बनना चाहिए। इसलिए, ये वे चीजें हैं, जिन्हें तुम्हें छोड़ देना और नकार देना चाहिए। तुम लोगों को परंपरागत संस्कृति से आने वाली इन कहावतों और सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से समझकर पूरी तरह से त्याग देना चाहिए, और तुम्हें इन विशिष्ट चीजों को सत्य के रूप में नहीं स्वीकारना चाहिए या इन्हें भ्रम से सत्य नहीं समझना चाहिए। ऐसा इसलिए है, क्योंकि चाहे ये चीजें मानवजाति के बीच कितने भी वर्षों से घूम रही हों, या इनकी जड़ें मानवजाति के बीच कितनी भी गहरी क्यों न हों, ये सत्य के सामने एक क्षण भी नहीं टिक सकतीं। ये बिल्कुल भी सकारात्मक चीजें नहीं हैं और सत्य के साथ उल्लेख करने लायक नहीं हैं। इन चीजों का लोगों पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता; न सिर्फ ये लोगों की अगुआई नहीं कर सकतीं और उन्हें सही मार्ग पर नहीं ला सकतीं, बल्कि, इसके विपरीत, ये लोगों को एक के बाद एक गलत मार्ग पर ले जाती हैं, जिससे लोग और ज्यादा अलग-थलग और बेशर्म, स्वयं के बारे में कम अवगत और कम विवेकशील बन जाते हैं, जिससे परमेश्वर उनका तिरस्कार करने लगता है और उसे उनसे घृणा महसूस होती है। अगर तुम ये चीजें छोड़ देते हो, ये धारणाएँ छोड़ देते हो, लोगों और चीजों को देखने और आचरण और कार्य करने के शैतान से आने वाले ये विचार और दृष्टिकोण, ये तरीके और आधार छोड़ देते हो, और परमेश्वर के सामने आकर पूरी तरह से परमेश्वर के वचनों के अनुसार लोगों और चीजों को देखते और आचरण और कार्य करते हो, तो इन चीजों का तुम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। जहाँ तक वास्तविकता से असंतुष्ट होने और दोषदर्शी महसूस करने का सवाल है, तो परमेश्वर को तुमसे यह समझने या सीखने के लिए प्रयास करवाने की जरूरत नहीं है कि समाज में कौन-सा अँधेरा घात लगाए हुए है। तुम्हें सिर्फ पूरी तरह से और सार में यह जानने की जरूरत है कि दुनिया और मानवजाति शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दी गई है और वे उस दुष्ट के चंगुल में हैं। चाहे सामाजिक प्रवृत्ति हो, रीति-रिवाज हो, परंपरागत संस्कृति हो, ज्ञान हो, शिक्षा हो—यह किसी भी स्तर पर, किसी भी पहलू के संबंध में, या किसी भी उद्योग में हो—यह सब शैतान के विचारों और दृष्टिकोणों और उसके पाखंडों और भ्रांतियों से भरा हुआ है। चाहे कोई भी देश, जाति, या समाज में लोगों का कोई भी समूह या संगठन हो, न तो सत्य और न ही परमेश्वर के वचन उन पर प्रभाव रखते हैं; निस्संदेह, उनमें निष्पक्षता या धार्मिकता दिखने की संभावना और भी कम है। यह निश्चित है, और अगर तुम बस इसे जानते हो, तो यह पर्याप्त है। इसके अलावा, सबसे महत्वपूर्ण चीज यह है कि अपने हृदय को शांत करो और खुद को परमेश्वर के वचनों से अधिक सुसज्जित करो, और अपने भीतर शैतान से आने वाले पाखंड और भ्रांतियाँ, विचार और दृष्टिकोण पहचानो। सिर्फ इन चीजों की वास्तविक समझ से ही तुम वास्तव में इनकी असलियत देख सकते हो; सिर्फ वास्तव में इनकी असलियत देखकर ही तुम वास्तव में इन्हें नकार और छोड़ सकते हो; और सिर्फ वास्तव में इन्हें छोड़कर ही तुममें सत्य की निरंतर स्वीकृति और उसके प्रति समर्पण हो सकता है। इस तरह, तुम जिस मार्ग का अनुसरण करोगे वह सही होगा, और वह रोशन होगा। तुम्हारा लक्ष्य भी सही होगा और अंत में तुम्हें उद्धार की प्राप्ति एक निर्विवाद तथ्य होगी। इसलिए तुम्हें शैतान द्वारा तुम्हारे मन में बैठाए जाने वाले पाखंडों, भ्रांतियों, विचारों और दृष्टिकोणों को बिल्कुल भी अपने विचारों को भ्रमित करने और अपनी आँखों पर पर्दा डालने नहीं देना चाहिए; तुम्हें दोषदर्शी और वास्तविकता से असंतुष्ट नहीं होना चाहिए और इस तरह सुन्न नहीं होना चाहिए और खुद को और दूसरों को धोखा नहीं देना चाहिए। इसके बजाय, तुम्हें सत्य का अनुसरण करना चाहिए, सत्य को अपने जीवन के रूप में प्राप्त करना चाहिए, एक सच्चे इंसान की तरह जीना चाहिए और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना चाहिए। यह तुम्हारा उचित कार्य है, और यही वह मार्ग है जिसका तुम्हें अब अनुसरण करना चाहिए। जहाँ तक समाज, देश या किसी उद्योग की स्थिति का सवाल है, उन चीजों का तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। ऐसा क्यों है? क्योंकि उनका सत्य के तुम्हारे अनुसरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, उनका सत्य के तुम्हारे अनुसरण से कोई संबंध नहीं है, तुम्हारे अंत से कोई संबंध नहीं है, और तुम्हारे उद्धार की प्राप्ति से कोई संबंध नहीं है। समझे? (हाँ।) अगर तुम इसे समझ गए हो, तो तुम्हें यह स्पष्ट होना चाहिए कि सत्य का अनुसरण कैसे करना है और जीवन कैसे प्राप्त करना है।

14 जुलाई 2022

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2024 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें