सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (16) भाग दो
अब हम नैतिक आचरण पर विभिन्न कहावतों से संबंधित एक और व्यावहारिक समस्या पर संगति करेंगे। नैतिक आचरण संबंधी जिन विभिन्न कहावतों पर हमने पहले संगति की थी, वे मूल रूप से परंपरागत चीनी संस्कृति का नमूने के रूप में प्रदर्शन करके उजागर की गई थीं, जिससे भ्रष्ट मनुष्यों के अंतरतम हृदयों में मौजूद ये बहुआयामी शैतानी कहावतें उजागर हो गई थीं। कुछ लोग कहते हैं, “यह देखते हुए कि नैतिक आचरण से संबंधित इन कहावतों को प्रदर्शित करने के लिए परंपरागत चीनी संस्कृति का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन हम चीनी नहीं हैं, तो क्या हम इन वचनों को अस्वीकार नहीं सकते, जिनकी तुम संगति कर रहे हो? क्या हमें वाकई शैतान द्वारा मनुष्य की भ्रष्टता से जुड़ी इन नैतिक आचरण से संबंधित विभिन्न कहावतों को जानने की आवश्यकता है?” क्या यह कहना सही है? (नहीं।) बहुत स्पष्ट रूप से, यह गलत है। शैतान द्वारा मनुष्य की भ्रष्टता नस्ल या समय के बीच अंतर नहीं करती, बल्कि वह नस्ल या समय या धार्मिक पृष्ठभूमि का भेद किए बिना मनुष्य को भ्रष्ट करती है। इसलिए, अगर तुम चीनी नस्ल के हो, चाहे तुम हान चीनी हो या मंगोलियाई, हुई, मियाओ, यी इत्यादि जैसे अल्पसंख्यक जातीय समूह के हो, तो बिना किसी अपवाद के शैतान से आई नैतिक आचरण संबंधी तमाम तरह की कहावतें तुम्हारे मन में भरी गई हैं और तुम्हें उनकी शिक्षा दी गई है। कहने का तात्पर्य यह है कि तुम भी, बिना किसी अपवाद के, अपनी सोच के संदर्भ में शैतान द्वारा मनुष्य की भ्रष्टता के भागी बनाए गए हो। सटीक रूप से कहें तो, तुम्हारी सोच, तुम्हारी अंतरतम आत्मा और तुम्हारा अंतरतम हृदय भी शैतान ने गहराई से भ्रष्ट और संसाधित किया है। अगर तुम चीनी नहीं हो—अगर तुम जापानी, कोरियाई, जर्मन या किसी भी राष्ट्रीयता के हो—चाहे तुम एशियाई, यूरोपीय, अफ्रीकी या अमेरिकी हो, चाहे तुम्हारी त्वचा पीली, काली, भूरी या सफेद हो, चाहे तुम्हारी जातीयता कुछ भी हो और तुम किसी भी नस्ल के हो, अगर तुम एक सृजित मनुष्य हो, तो शैतान ने तुम्हें बिना किसी अपवाद के गहराई से भ्रष्ट किया है। तुम्हारे शैतानी भ्रष्ट स्वभाव होने के अलावा, बिना किसी अपवाद के शैतान ने तुममें शैतानी विचार और दृष्टिकोण डाले हैं, और निस्संदेह तुम्हारा दिल भी शैतान ने गहराई से भ्रष्ट कर दिया है। बात सिर्फ इतनी है कि, विभिन्न देशों और विभिन्न नस्लों के लोगों के लिए, शैतान उनमें वही चीजें डालने के लिए विभिन्न तरीके इस्तेमाल करता है। ये चीजें कहने में भिन्न हो सकती हैं, कुछ अंतर हो सकता है, लेकिन लोगों को भ्रष्ट करने का अंतिम परिणाम हमेशा एक-सा ही होता है और व्यापक रूप से समान होता है, सिर्फ मामूली अंतर होते हैं। वे सब लोगों को अपने व्यवहार के माध्यम से अपना असली रूप-रंग छिपाने के लिए प्रेरित करती हैं और कई दिखावटी, अवास्तविक, यहाँ तक कि मानवता-विरोधी अनैतिक कहावतों के माध्यम से वे माँग करती हैं कि लोग एक निश्चित तरीके से पेश आएँ और अपने नैतिक चरित्र के संदर्भ में एक निश्चित तरीके से व्यवहार करें, और माँग करें कि लोगों को कैसे आचरण करना चाहिए और कुछ चीजें कैसे करनी चाहिए। भले ही इन कहावतों में अंतर हो, और भले ही वे अलग-अलग समय पर उत्पन्न होती हों और विभिन्न कोनों, विभिन्न इलाकों और विभिन्न क्षेत्रों से आती हों, और विभिन्न लोगों से उत्पन्न हुई हों, फिर भी अंतिम परिणाम हमेशा यही होता है कि वे लोगों के विचारों और दिलों को नियंत्रित करती हैं, लोगों के विचारों और दिलों को सीमित कर देती हैं, और लोगों की सोच में वे विचार और धारणाएँ भर देती हैं जिनमें शैतान के जहर और उसका प्रकृति-सार होता है। उनकी वजह से लोगों के अंतरतम हृदय शैतान के विचारों, उसके दुष्ट सार और उसकी दुष्ट धारणाओं से भर जाते हैं। अंततः, सभी मनुष्य, चाहे वे किसी भी जाति या नस्ल के हों, और चाहे वे किसी भी जनजाति या समयावधि के हों, शैतान द्वारा गुमराह किए और कुचले गए हैं और उसने उनके विचारों और अंतरतम हृदयों को भिन्न मात्राओं में भ्रष्ट किया है। अंत में, जिन पर शैतान भ्रष्टता का यह कार्य करता है, वे लोग चाहे दुनिया के किसी भी कोने में हों, या किसी भी नस्ल के हों, या किसी भी समयावधि में रहे हों, इसका परिणाम हमेशा मनुष्य को पूर्ण रूप से शैतान की संतान, उसका प्रवक्ता और मूर्त रूप बनाना, और मनुष्य को पूर्ण रूप से बड़े-छोटे, मूर्त-अमूर्त दोनों तरह के जीवित शैतान बनाना होता है। निस्संदेह, ऐसा मनुष्य परमेश्वर का पक्का शत्रु और विरोधी भी बन जाता है। इसलिए, चाहे अब जिस तरह के लोग उपदेश सुन रहे हों या जितने भी लोग हों, यह एक निर्विवाद तथ्य है : संपूर्ण मानवजाति उस दुष्ट के चंगुल में है—यह एक तथ्य है। अगर हम इसे दूसरे तरीके से कहें तो, इसका मतलब यह है कि जहाँ पूरी मानवजाति शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट की जा रही है, वहीं पूरी मानवजाति के विचार और दिल भी पूरी तरह से शैतान के नियंत्रण और उसकी कैद में हैं—यह निर्विवाद है। इसलिए, कोई भी महान जाति और किसी भी शक्तिशाली देश से संबंधित राष्ट्रीयता वाले कोई भी लोग, बिना किसी अपवाद के शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट किए गए हैं, और शैतान द्वारा गहराई से प्रभावित, नियंत्रित और सीमित किए गए हैं। अगर तुम मानवजाति के सदस्य हो, पृथ्वी पर रहते हो, अगर तुम हवा में साँस लेने, पानी पीने और अनाज खाने वाले मनुष्य हो, तो तुम्हारा शैतान द्वारा भ्रष्ट होना अपरिहार्य रहा है और बिना किसी अपवाद के, अपने विचारों, अपने हृदय, अपने स्वभाव और अपने सार में तुम शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए हो। इसे और ज्यादा सटीक रूप से कहें तो, अगर तुम एक सृजित मनुष्य हो और अगर तुम शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए हो, तो तुम परमेश्वर के दुश्मन हो। अगर तुम शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए हो, तो अगर तुम अतीत में शैतान द्वारा नियंत्रित और सीमित थे या अब किए जा रहे हो, तुम परमेश्वर द्वारा बचाए जाने वाली वस्तु हो, और इसमें कोई शक नहीं है। अगर तुम शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए मनुष्य हो, तो बिना किसी अपवाद के तुममें शैतान का स्वभाव और सोच है और एक ऐसा दिल है जो शैतान के विषों से भरा और उनके कब्जे में है। इसलिए, शैतान से आने वाले विभिन्न विचारों, दृष्टिकोणों और नैतिक आचरण से संबंधित विविध कहावतों को पहचानना और समझना सिर्फ चीनी लोगों का काम नहीं है, न ही यह कोई ऐसी चीज है जिस पर चीनी लोगों का एकाधिकार हो। इसके विपरीत, यह एक सबक है जिसे परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से हर एक को, जिसे उसने चुना है, सीखना चाहिए और एक वास्तविकता है जिसमें उसे प्रवेश करना चाहिए। बिना किसी अपवाद के, परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से हर एक को शैतान से आने वाले तमाम असंख्य भ्रामक और बुरे विचारों और दृष्टिकोणों को पहचानना और समझना चाहिए। यह मत सोचो कि सिर्फ इसलिए कि तुम एक अमीर परिवार में, एक प्रमुख स्थान रखने वाले परिवार में पैदा हुए हो, तो तुम खुद को शैतान द्वारा भ्रष्ट न मानते हुए श्रेष्ठता की भावना रख सकते हो, और सिर्फ इसलिए कि तुम्हारे पास एक सम्मानजनक पहचान है, तो तुम्हारी आत्मा भी कुलीन होगी—यह एक विकृत समझ है। या शायद तुम मानते हो कि तुम्हारा वंश कुलीन है, और तुम्हारी त्वचा का रंग दर्शाता है कि तुम्हारी एक सम्मानजनक पहचान, पद और मूल्य है, इसलिए तुम गलत ढंग से यह मानते हो कि तुम्हारा सार, तुम्हारी सोच और तुम्हारा हृदय दूसरों से ज्यादा श्रेष्ठ और ऊँचा है। अगर ऐसा है, तो मैं कहता हूँ कि तुम्हारी यह समझ मूर्खतापूर्ण और अवास्तविक है, क्योंकि परमेश्वर जिस मानवजाति की बात कर रहा है, वह राष्ट्रीयता, नस्ल या धर्म से विभाजित नहीं है। तुम चाहे जैसी भी सामाजिक परिस्थितियों या धार्मिक स्थिति में रहते हो, और चाहे तुम जिस भी नस्ल में पैदा हुए हो, या समाज में तुम्हारा स्थान निम्न हो या उच्च, या चाहे तुम अन्य लोगों के बीच उच्च प्रतिष्ठा रखते हो या न रखते हो, इत्यादि, तुम इनमें से किसी भी चीज का इस्तेमाल परमेश्वर के इन वचनों को न स्वीकारने या इस तथ्य को न स्वीकारने के बहाने के रूप में नहीं कर सकते कि शैतान मनुष्य को भ्रष्ट करता है। अगर तुम एक मनुष्य हो, तो “मनुष्य” शब्द के पहले गुणवाचक शब्द “भ्रष्ट” होना ही चाहिए। सटीक रूप से कहें तो, अगर तुम एक मनुष्य हो, तो तुम अवश्य ही एक भ्रष्ट मनुष्य होगे, और यह तमाम संदेहों से परे है। इसके अलावा, हम कह सकते हैं कि अगर तुम एक भ्रष्ट मनुष्य हो, तो तुम्हारी प्राकृतिक सोच के भीतर की चीजें और तुम्हारे अंतरतम हृदय में मौजूद चीजें शैतान से आती हैं और वे सब शैतान द्वारा गहराई से संसाधित और भ्रष्ट कर दी गई हैं—तुम्हें यह तथ्य स्वीकारना चाहिए। तुममें स्वाभाविक रूप से सत्य से संबंधित कुछ भी नहीं है, ऐसा कुछ भी नहीं है जिसका परमेश्वर के वचनों या परमेश्वर के जीवन से कोई लेना-देना हो, उलटे तुम शैतान द्वारा गुमराह और भ्रष्ट किए गए और नियंत्रित किए गए हो। तुम्हारा दिमाग शैतान के विचारों, फलसफों, तर्क और जीने के नियमों से भरा है, और तुम्हारे दिमाग में सब-कुछ शैतान से आता है। यह तथ्य लोगों को क्या बताता है? किसी को भी परमेश्वर का उद्धार नकारने या परमेश्वर के वचनों को चुनिंदा रूप से स्वीकारने के लिए कोई बहाना नहीं बनाना चाहिए। एक भ्रष्ट मनुष्य के रूप में तुम्हें बिना कोई चुनाव किए परमेश्वर के वचन स्वीकारने चाहिए। यह तुम्हारी जिम्मेदारी है और तुम्हें इसकी आवश्यकता भी है। अगर किसी व्यक्ति का जन्म एक धनी और शक्तिशाली राष्ट्र में हुआ है और वह श्रेष्ठ सामाजिक परिस्थितियों में रहता है, या उसका जन्म एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ है और उसने उच्च शिक्षा प्राप्त की है, और इसलिए वह खुद को बाकी सबसे अलग और परमेश्वर के चुने हुए अन्य लोगों से ज्यादा श्रेष्ठ मानता है, और इसलिए खुद को परमेश्वर के चुने हुए अन्य सभी लोगों में ऊपर रखना चाहता है, तो यह बेतुकी सोच है, यह मूर्खतापूर्ण सोच है, यहाँ तक कि इसे बेहद मूर्खतापूर्ण भी कहा जा सकता है। चाहे तुम्हारी पहचान, पद या मूल्य कितना भी विशेष हो, या तुम्हारी पहचान, पद या सामाजिक परिस्थितियाँ साधारण लोगों की तुलना में कितनी भी ऊँची हों, परमेश्वर के सामने तुम हमेशा एक सृजित प्राणी ही रहोगे। परमेश्वर यह नहीं देखता कि तुम कहाँ से आए हो या तुम्हारे जन्म के समय की परिस्थितियाँ क्या थीं, वह तुम्हारी राष्ट्रीयता या नस्ल नहीं देखता, और वह समाज या दुनिया में तुम्हारा मूल्य, प्रतिष्ठा या उपलब्धियाँ नहीं देखता। परमेश्वर सिर्फ यह देखता है कि तुम उसके वचनों को स्वीकारते हो या नहीं, तुम उसके वचनों को सत्य के रूप में लेते हो या नहीं, और तुम उसके वचनों के अनुसार लोगों और चीजों को देख सकते और आचरण और कार्य कर सकते हो या नहीं। अगर तुम वास्तव में खुद को परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन साधारण सृजित प्राणियों में से एक मानते हो, तो तुम्हें अपनी सामाजिक परिस्थितियाँ, अपनी नस्लीय पृष्ठभूमि, अपनी राष्ट्रीय पृष्ठभूमि और अपनी धार्मिक पृष्ठभूमि छोड़ देनी चाहिए और एक साधारण सृजित प्राणी के रूप में परमेश्वर के सामने आना चाहिए, बिना किसी ठप्पे या पृष्ठभूमि के उसके वचन स्वीकारने चाहिए, ऐसा करने से तुम्हारी पहचान और हैसियत ठीक हो जाएगी। अगर तुम इस सही पहचान और हैसियत के साथ परमेश्वर के वचन स्वीकारना चाहते हो, तो पहली चीज तुम्हें यह समझनी चाहिए कि मनुष्य का सार क्या है, और पहली चीज तुम्हें यह स्वीकारनी चाहिए कि मनुष्य का सार शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट कर दिया गया है, और मनुष्य के विचारों और उसके अंतरतम हृदय को भरने वाली और उन पर कब्जा कर लेने वाली सभी चीजें शैतान से आती हैं। चूँकि लोग परमेश्वर के वचन स्वीकारना चाहते हैं और सत्य को जीवन के रूप में स्वीकारना चाहते हैं, इसलिए उन्हें पहले अपनी सोच और अंतरतम हृदयों में सत्य के विपरीत और उसके प्रति शत्रुतापूर्ण चीजों का पता लगाना चाहिए, उन पर विचार करना चाहिए और उन्हें जानना चाहिए। जब इन चीजों को स्पष्ट रूप से पहचाना जाता है, अच्छी तरह से समझा जाता है और उनका पूरी तरह से विश्लेषण किया जाता है, तभी लोग उन्हें सही समय पर और सही परिवेश में त्याग सकते हैं, जिससे उनके अंतरतम हृदयों में पूर्ण परिवर्तन हो सकता है। जब वे शैतान की सभी चीजें निष्कासित कर देते हैं और परमेश्वर के वचन और सत्य स्वीकार लेते हैं, तो वे नए लोग बन जाते हैं। जब उस परिप्रेक्ष्य, उन दृष्टिकोणों और नजरिये में, जिनसे वे लोगों और चीजों को देखते हैं, पूर्ण परिवर्तन आता है, तभी वे परमेश्वर के वचनों के अनुसार लोगों और चीजों को सच में और सटीक रूप से देख सकते हैं। तब वे अपेक्षाकृत शुद्ध, निष्कलंक लोग बन जाते हैं। लोग अभी भी इसे हासिल नहीं कर सकते। हालाँकि वे अपने दिलों में थोड़ा-बहुत सत्य समझ सकते हैं, फिर भी वे तमाम तरह के बेतुके विचारों और गलत और बेतुकी चीजों से दूषित होते हैं। वे परमेश्वर के आधे वचन और आधा सत्य स्वीकारते हैं और दूसरे आधे को छोड़ देते हैं; वे चुनिंदा रूप से थोड़ा-सा स्वीकारते हैं, अलग-अलग मात्राओं में थोड़ा-सा स्वीकारते हैं, फिर भी अपने दिल में हमेशा शैतान के विचारों और तर्क के लिए और शैतान द्वारा उनमें डाली जाने वाली दिखावटी चीजों के लिए जगह छोड़ देते हैं, और उन चीजों को हमेशा अपने दिल में रखते हैं। लोगों के भीतर की ये चीजें उनके दिमाग, उनके निर्णय और उस परिप्रेक्ष्य और उन दृष्टिकोणों को प्रभावित करती हैं जिनके द्वारा वे लोगों और चीजों को देखते हैं, और इसका, जिस हद तक वे सत्य स्वीकारते हैं, उस पर जबरदस्त प्रभाव पड़ता है।
शैतान द्वारा परंपरागत संस्कृति का इस्तेमाल करते हुए लोगों के मन में बैठाई जाने वाली नैतिक आचरण से संबंधित विभिन्न कहावतों के कारण मनुष्य व्यापक रूप से भ्रष्ट और गुमराह होता है। यह कोई ऐसी चीज नहीं है जो सिर्फ चीनी लोगों तक ही सीमित हो, बल्कि यह पूरी मानवजाति तक, हर कोने और हर समयावधि में पहुँचती है। यह लोगों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रभावित और नियंत्रित करती है, और विभिन्न जातियों, राष्ट्रीयताओं और धर्मों के लोगों को प्रभावित और नियंत्रित करती है। जब लोग इसे समझ जाते हैं, तो “परंपरागत संस्कृति” के साथ लगने वाला विशेषणात्मक शब्द सिर्फ “चीनी” नहीं होता; यह कहा जा सकता है कि हर राष्ट्र या जाति की परंपरागत संस्कृति शैतान से आती है और शैतान की भ्रष्टता से उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए, परंपरागत जापानी संस्कृति, परंपरागत कोरियाई संस्कृति, परंपरागत भारतीय संस्कृति, परंपरागत फिलिपीनी संस्कृति, परंपरागत वियतनामी संस्कृति, परंपरागत अफ्रीकी संस्कृति, गोरे लोगों की परंपरागत संस्कृति, और साथ ही यहूदी धर्म, ईसाई धर्म, कैथोलिक धर्म की परंपरागत संस्कृतियाँ, और वे अन्य परंपरागत संस्कृतियाँ जो धर्मों से उत्पन्न हुई हैं। ये तमाम परंपरागत संस्कृतियाँ सत्य के विपरीत हैं और लोगों के इस बात से संबंधित विचारों, दृष्टिकोणों और परिप्रेक्ष्यों पर गहरा प्रभाव डालती हैं कि वे लोगों और चीजों को कैसे देखते हैं और कैसे आचरण और कार्य करते हैं। वे ठीक उन लोकप्रिय ब्रांडों की तरह हैं, जो लोगों के अंतरतम विचारों और दिलों पर गहरी छाप छोड़ते हैं। वे लोगों के जीवन, लोगों के जीवन जीने के नियमों, जीवन में उनके द्वारा अपनाए जाने वाले मार्गों और उनके आचरण की दिशा और लक्ष्यों पर प्रभुत्व रखती हैं; यहाँ तक कि लोग जिन लक्ष्यों का अनुसरण करते हैं, वे उन पर भी नियंत्रण रखती हैं। ये चीजें उस रवैये को गंभीर रूप से बाधित और प्रभावित करती हैं, जिससे लोग सकारात्मक चीजों, परमेश्वर के वचनों, सत्य और परमेश्वर को देखते हैं। बेशक, वे लोगों के इस बात से संबंधित दृष्टिकोणों और विचारों को भी गंभीर रूप से प्रभावित और बाधित करती हैं कि वे लोगों और चीजों को कैसे देखते हैं और कैसे आचरण और कार्य करते हैं, यानी कि लोगों के सत्य स्वीकारकर उसका अभ्यास करने पर उनका गंभीर प्रभाव पड़ता है। और अंत में परिणाम क्या होता है? (लोग उद्धार प्राप्त करने का मौका खो देते हैं।) यह सही है, इससे अंततः लोगों के उद्धार प्राप्त करने का महत्वपूर्ण मामला ही प्रभावित होता है। क्या यह गंभीर परिणाम नहीं है? (हाँ, है।) यह बहुत गंभीर परिणाम है! व्यक्ति चीजों को कैसे देखता है, चीजों को देखने के लिए किस तरह का परिप्रेक्ष्य अपनाता है, चीजों को देखने के लिए कौन-से विचार अपनाता है और कौन-सी धारणाएँ रखता है, यह सब उसके भ्रष्ट स्वभावों और उसकी सोच में मौजूद चीजों के आधार पर तय होता है। अगर उसकी सोच में मौजूद चीजें सकारात्मक होती हैं, तो वह लोगों और चीजों को सही परिप्रेक्ष्य से देखेगा; अगर उसकी सोच में मौजूद चीजें नकारात्मक और निष्क्रिय होती हैं और शैतान से आई होती हैं, तो वह अनिवार्य रूप से लोगों और चीजों को गलत और बेतुके परिप्रेक्ष्यों, दृष्टिकोणों और विचारों से देखेगा, और अंततः इसका प्रभाव उस मार्ग पर पड़ेगा, जिसका वह अनुसरण करता है। अगर लोगों और चीजों को देखने के तुम्हारे दृष्टिकोण, विचार और परिप्रेक्ष्य गलत हैं, तो तुम्हारे अनुसरण के लक्ष्य और दिशा भी गलत है, और वह मार्ग भी गलत है जो तुम अपने आचरण में अपनाते हो। अगर तुम ये गलत चीजें जारी रखते हो, तो तुम्हारे पास उद्धार प्राप्त करने का मौका बिल्कुल नहीं होगा, क्योंकि तुम जिस मार्ग का अनुसरण करते हो, वह गलत है। अगर लोगों और चीजों को देखने के तुम्हारे परिप्रेक्ष्य, दृष्टिकोण, विचार और मत सही हैं, तो जो परिणाम निकलेंगे वे भी सही होंगे, वे सकारात्मक चीजों से संबंधित होंगे और सत्य के विपरीत नहीं होंगे। जब मनुष्य लोगों और चीजों को सत्य के अनुरूप परिप्रेक्ष्यों से देखता है, तो उसके द्वारा चुना गया मार्ग भी सही होता है, साथ ही उसके लक्ष्य और उसकी दिशा भी सही होती है, और अंत में उसके पास उद्धार प्राप्त करने की आशा होगी। लेकिन, चूँकि लोग अब शैतान के कब्जे में और उसके द्वारा नियंत्रित हैं, इसलिए लोगों और चीजों को देखने के उनके परिप्रेक्ष्य, दृष्टिकोण और विचार भी गलत होते हैं, जिसके कारण उनका अनुसरण और वह मार्ग, जिस पर वे चलते हैं, भी गलत होता है। उदाहरण के लिए, जब लोग प्रसिद्धि और लाभ, इज्जत और हैसियत की खातिर काम करते और कीमत चुकाते हैं, तो क्या यह मार्ग गलत होता है? (हाँ।) ऐसा कैसे होता है कि लोग ऐसे गलत मार्ग पर चल पड़ते हैं? क्या ऐसा इसलिए नहीं होता कि इन चीजों को देखने के उनके परिप्रेक्ष्य, दृष्टिकोण और शुरुआती बिंदु गलत होते हैं? (ऐसा ही है।) इसके कारण लोग गलत मार्ग पर चल पड़ते हैं। और अगर लोग ऐसे गलत मार्ग पर चलते रहते हैं, तो क्या अंत में वे उद्धार प्राप्त कर पाएँगे? नहीं, वे नहीं कर पाएँगे। अगर तुम लोगों और चीजों को शैतान द्वारा तुममें डाले गए किसी विचार या दृष्टिकोण के अनुसार देखते हो और आचरण और कार्य करते हो, तो वह मार्ग, जिस पर तुम चलते हो, अनिवार्य रूप से तबाही का मार्ग होगा। वह उद्धार का मार्ग बिल्कुल नहीं होगा, क्योंकि वह उद्धार के मार्ग का ठीक विरोधी और विपरीत मार्ग है। अगर लोग इस गलत मार्ग पर चलते हैं, तो वे उद्धार प्राप्त करने का अपना मौका नष्ट कर लेते हैं, वह पूरी तरह से खत्म हो जाता है, और वे कभी उद्धार के मार्ग पर नहीं चल सकते। लेकिन अगर तुम सही दृष्टिकोण से अनुसरण करते हो और परमेश्वर के वचनों के अनुसार लोगों और चीजों को देखते और आचरण और कार्य करते हो, तो इससे उत्पन्न होने वाले अभ्यास के सिद्धांत सकारात्मक होंगे, तुम्हारा मार्ग सकारात्मक होगा, और चूँकि तुम सही जगह से शुरुआत कर रहे हो, इसलिए अंततः जिस मार्ग पर तुम चलोगे, वह भी सही होगा। अगर तुम ऐसे मार्ग पर चलते रहते हो, तो तुम उद्धार प्राप्त करने में निश्चित रूप से सक्षम होगे। सत्य का यह पहलू कुछ हद तक गहन है और तुम लोगों में से ज्यादातर शायद इसे नहीं समझते। तुम्हें इसकी कोई समझ नहीं है, और तुममें अभी तक सत्य वास्तविकता का यह पहलू नहीं है। तुम नहीं जानते कि तुम गलत विचारों के आधार पर लोगों और चीजों को देखते और आचरण और कार्य करते हो या सही विचारों के आधार पर—तुम्हें अभी तक इसका अनुभव नहीं है। अभी तुम लोग सिर्फ कार्य करना, अपनी ताकत लगाना, प्रयास करना और कीमत चुकाना जानते हो, लेकिन तुमने यह जाँचना भी शुरू नहीं किया है कि तुम्हारे अंतरतम दिलों के दृष्टिकोणों और विचारों को क्या प्रभावित और नियंत्रित करता है। इसलिए यह विषय कुछ हद तक तुम लोगों की पहुँच से बाहर है और हम इसके बारे में यहीं बात करना बंद करते हैं।
हमने अभी नैतिक आचरण संबंधी कहावतों के सार के बारे में बात की थी और इस बारे में भी कि इसका दायरा सिर्फ चीनी मुख्य भूमि तक सीमित नहीं है, बल्कि संपूर्ण मानवजाति से संबंधित है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि संपूर्ण मानवजाति उस दुष्ट के चंगुल में है, और प्रत्येक मनुष्य शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट कर दिया गया है और वह शैतान के नियंत्रण में है। ऐसा कहने का तथ्यात्मक आधार है। सिर्फ चीनी मुख्य भूमि के लोग ही शैतान द्वारा भ्रष्ट नहीं किए गए हैं, बल्कि संपूर्ण मानवजाति शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दी गई है, और सभी मनुष्य उस दुष्ट के चंगुल में हैं। मानवजाति शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट कर दी गई है, इसे कुछ हद तक सभी लोग देख सकते हैं। हम पिछले कुछ समय से इस पर संगति कर रहे हैं कि शैतान लोगों के विचारों में नैतिक आचरण संबंधी विभिन्न कहावतें डाल देता है, और वह इसका इस्तेमाल लोगों को गुमराह कर उन्हें नियंत्रित और सीमित करने और इस प्रकार उन्हें भ्रष्ट करने का अपना उद्देश्य हासिल करने के लिए करता है। यह तथ्य चीनी लोगों तक सीमित नहीं है, बल्कि विभिन्न जातियों, विभिन्न राष्ट्रीयताओं और विभिन्न नस्लों के सभी लोगों में मौजूद है। शैतान द्वारा सभी मनुष्य गहराई से भ्रष्ट कर दिए गए हैं, जिनमें सभी जातियों और नस्लों के लोग शामिल हैं; वे बहुआयामी सत्याभासी चीजें जो शैतान द्वारा परंपरागत संस्कृति का इस्तेमाल करके लोगों के मन में बैठाई जाती हैं और जिन्हें पहचानना मुश्किल है, और वे चीजें भी, जो लोगों को अपेक्षाकृत सकारात्मक और अपने आचार-विचार, सोच और रुचियों के अनुरूप लगती हैं, वास्तव में शैतान द्वारा की गई मानवजाति की भ्रष्टता का हिस्सा हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि शैतान ने इस तरह से सभी मनुष्यों को भ्रष्ट कर दिया है, और हर जाति, नस्ल या राष्ट्रीयता के सभी मनुष्य, चाहे वे पृथ्वी के किसी भी स्थान पर या किसी भी क्षेत्र या भूमि पर पैदा हुए हों, शैतान ने उन्हें मन और हृदय दोनों में गहराई से गुमराह, नियंत्रित और भ्रष्ट किया है। तुम चाहे कहीं भी या कभी भी पैदा हुए हो, या किसी भी जाति या राष्ट्र में पैदा हुए हो, बिना किसी अपवाद के तुम शैतान द्वारा तुम्हारे मन में बैठाई गई परंपरागत संस्कृति की कहावतों से गुमराह और भ्रष्ट किए गए हो। इसलिए, तुम्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि चूँकि हम सिर्फ परंपरागत चीनी संस्कृति का विश्लेषण कर रहे हैं, इसलिए तुम्हारे अपने राष्ट्र या जाति की कोई शैतानी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि नहीं है और तुम चीनी लोगों से बेहतर हो, न ही तुम्हारे अंदर श्रेष्ठता की भावना होनी चाहिए जिससे तुम चीनी लोगों से ज्यादा माननीय और श्रेष्ठ महसूस करो। श्रेष्ठता की यह भावना एक गलत धारणा है, यह गलत है, बेतुकी है, और हम यहाँ तक कह सकते हैं कि यह मूर्खतापूर्ण है। अगर भ्रष्ट मानवजाति का उल्लेख किया जाता है, तो तुम्हें खुद को उससे अलग नहीं करना चाहिए; अगर भ्रष्ट मानवजाति का उल्लेख किया जाता है, तो तुम उसका हिस्सा हो। निस्संदेह, अगर यह कहा जाता है कि तुम एक भ्रष्ट मनुष्य हो, तो तुम्हारा अंतरतम हृदय उस परंपरागत संस्कृति के प्रभुत्व वाले विचारों से भरा होता है जिसे शैतान तुम्हारे मन में बैठाता है, और यह एक निर्विवाद तथ्य है, ऐसा तथ्य जो सदैव अपरिवर्तनीय है। तुम लोगों को यह तथ्य स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए—यह सवाल से परे है और इस पर संदेह नहीं किया जाना चाहिए। हम इस विषय पर अपनी संगति यहीं समाप्त करते हैं।
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