सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (15) भाग दो
पिछली बार हमने नैतिक आचरण से संबंधित इस कहावत पर संगति समाप्त की थी : “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है, उसे निष्ठापूर्वक संभालने की पूरी कोशिश करो।” इसके बाद, हम इस कहावत पर संगति करेंगे, “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है।” सबसे पहले, हमें यह पता लगाने का प्रयास करना चाहिए कि नैतिक आचरण से संबंधित इस कहावत में भ्रामक विचारों और दृष्टिकोणों का विश्लेषण कैसे किया जाए, और इसे गढ़ने के पीछे शैतान का क्या इरादा है। एक चीनी मुहावरा है, “व्यक्ति के वास्तविक इरादे जानना कठिन है,” तो शैतान के वास्तविक इरादे कहाँ छिपे होते हैं? हमें इसी का अनावरण और विश्लेषण करने की आवश्यकता है। “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है” एक और विचार और कथन है, जिसे शैतान लोगों के बीच कहता है, और बाहर से यह काफी नेक प्रतीत होता है; यह भावोत्तेजक और सशक्त है। तो, इस कहावत में इतना प्रभावशाली क्या है? क्या यह सँजोने और गंभीरता से लेने लायक है? क्या इस विचार और दृष्टिकोण के अनुसार लोगों और चीजों को देखना, आचरण और कार्य करना उचित है? क्या इसमें कोई खूबी है? क्या यह सकारात्मक कहावत है? अगर यह कोई सकारात्मक चीज या सही विचार और दृष्टिकोण नहीं है, तो इसका लोगों पर क्या नकारात्मक प्रभाव होता है? जब शैतान ऐसी कहावत सुनाता है और लोगों के मन में यह विचार और दृष्टिकोण बैठाता है, तो उसका क्या इरादा होता है? हमें इसे कैसे पहचानना चाहिए? अगर तुम इसे पहचान सकते हो, तो इस वाक्यांश को तुम अपने दिल की गहराई से नकारकर ठुकरा दोगे, और इससे कभी प्रभावित नहीं होगे। भले ही यह वाक्यांश तुम्हारे दिमाग में कौंधेगा और समय-समय पर तुम्हें अंदर तक परेशान करेगा, लेकिन अगर तुम इसे पहचानने में सक्षम हो, तो तुम इससे बँधे या अटके नहीं रहोगे। क्या तुम लोगों को लगता है कि “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है” कहावत में कोई खूबी है? क्या यह ऐसी कहावत है, जिसका लोगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है? (नहीं।) क्या तुम लोग सज्जन बनना चाहोगे? सज्जन बनना अच्छी बात है या बुरी? सज्जन बनना बेहतर है या नकली सज्जन बनना? सज्जन बनना बेहतर है या खलनायक बनना? क्या तुम लोगों ने इन मुद्दों के बारे में नहीं सोचा है? (नहीं।) हालाँकि तुम लोगों ने इन चीजों के बारे में नहीं सोचा है, फिर भी एक चीज निश्चित है : तुम लोग अक्सर “सज्जन” शब्द का इस्तेमाल ऐसी बातें कहते हुए करते हो—“नकली सज्जन की तुलना में सच्चा खलनायक बनना बेहतर है” और “वास्तविक सज्जन आत्मा से इतना उदार होता है कि अगर कोई उसे ठेस पहुँचाता है तो वह इसका बुरा नहीं मानता और उसे माफ कर सकता है। इसे कहते हैं सज्जन!” यह तथ्य कि तुम ये बातें कह सकते हो, तुम्हारे बारे में क्या साबित करता है? क्या यह साबित करता है कि तुम्हारे विचारों और दृष्टिकोणों में सज्जन की एक निश्चित हैसियत है, और सज्जन के बारे में विचार और कहावतें तुम्हारे दिमाग में मौजूद हैं? क्या हम यह कह सकते हैं? (हाँ।) तुम समाज के उन लोगों का अनुमोदन और प्रशंसा करते हो, जो सज्जनों की तरह व्यवहार करते हैं या जिन्हें सज्जन कहा जाता है, और तुम सज्जन बनने और खलनायक के बजाय सज्जन समझे जाने के लिए कड़ी मेहनत करते हो। अगर कोई कहता है, “तुम असली खलनायक हो,” तो तुम बहुत दुखी हो जाते हो। लेकिन अगर कोई कहता है, “तुम असली सज्जन हो,” तो तुम प्रसन्न हो जाते हो। इसका कारण यह है कि तुम्हें लगता है कि अगर कोई तुम्हें सज्जन कहकर तुम्हारी सराहना करता है, तो तुम्हारा चरित्र ऊँचा हो जाता है, और तुम्हारे आचरण करने और मामले सँभालने के तरीकों की पुष्टि हो जाती है। निस्संदेह, समाज में इस तरह की पुष्टि मिलने के बाद तुम्हें लगता है कि तुम्हारी हैसियत उत्कृष्ट है और तुम निम्न वर्ग के या तुच्छ व्यक्ति नहीं हो। वास्तविक सज्जन, चाहे वह मिथक हो या वास्तव में मौजूद हो, लोगों के दिलों की गहराई में एक निश्चित स्थान रखता है। इसलिए, जब मैंने तुम लोगों से पूछा कि सज्जन बेहतर है या खलनायक, तो तुम लोगों में से किसी ने भी उत्तर देने का साहस नहीं किया। क्यों? क्योंकि तुम लोगों ने सोचा, “तुम यह कैसे पूछ सकते हो? बेशक खलनायक बनने से बेहतर सज्जन बनना है। क्या सज्जन अच्छा, ईमानदार और उच्च नैतिक चरित्र वाला नहीं होता? यह कहना कि सज्जन होना अच्छा नहीं है, सहज बुद्धि के विपरीत है, है न? यह सामान्य मानवता के विरुद्ध होगा, है न? अगर सज्जन अच्छा नहीं होता, तो किस तरह का व्यक्ति अच्छा होता है?” तो तुम लोगों ने जवाब देने की हिम्मत नहीं की, क्या यह सच नहीं है? (हाँ, सच है।) क्या यह पुष्टि करता है कि तुम लोगों के दिल में सज्जन और खलनायक के बीच एक स्पष्ट पसंद है? तुम लोग किसे पसंद करते हो? (सज्जन को।) तो हमारा उद्देश्य स्पष्ट है। आओ, सज्जन की पहचान और विश्लेषण करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। किसी को भी खलनायक पसंद नहीं है, यह स्पष्ट है। तो सज्जन असल में क्या होता है? अगर तुम पूछो, “सज्जन बनना बेहतर है या खलनायक?” मेरे लिए, उत्तर स्पष्ट है : दोनों बुरे हैं, क्योंकि न तो सज्जन कोई सकारात्मक चरित्र है, न ही खलनायक। बात सिर्फ इतनी है कि लोग खलनायक के व्यवहार, कार्यों, चरित्र और नैतिकता को अपेक्षाकृत खराब मानते हैं, इसलिए उसे पसंद नहीं करते। जब खलनायक की निम्न नैतिकता और चरित्र खुलेआम प्रदर्शित होता है, तो लोग उसे और भी ज्यादा खलनायक समझते हैं। लेकिन सज्जन अक्सर अपने बोलने और कार्य करने का सुरुचिपूर्ण तरीका, अपनी अच्छे नैतिक मूल्य और परिष्कृत चरित्र प्रदर्शित करता है, और लोग उसका सम्मान करते हैं और उससे समृद्ध महसूस करते हैं। नतीजतन, वे उसे सज्जन कहते हैं। जब कोई सज्जन खुद को इस तरह प्रस्तुत करता है, तो उसकी प्रशंसा की जाती है, उसे सराहा जाता है और उच्च सम्मान दिया जाता है। इसलिए, लोग सज्जन को पसंद करते हैं और खलनायक को नापसंद करते हैं। लेकिन, वह कौन-सा आधार है जिस पर लोग किसी को सज्जन या खलनायक निर्धारित करते हैं? (उसके बाहरी व्यवहार के आधार पर।) लोग व्यक्ति को उसके व्यवहार के आधार पर महान या नीच आँकते हैं, लेकिन लोग दूसरों को उनके व्यवहार के आधार पर क्यों आँकते हैं? इसका उत्तर यह है कि ज्यादातर लोगों के पास जो क्षमता होती है, वह सिर्फ इस स्तर तक पहुँचने में ही सक्षम होती है। वे सिर्फ यह देख पाते हैं कि किसी व्यक्ति का व्यवहार अच्छा है या बुरा; वे उस व्यक्ति का सार स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते। नतीजतन, वे सिर्फ उसके व्यवहार के आधार पर ही यह निर्धारित कर पाते हैं कि व्यक्ति सज्जन है या खलनायक। तो, क्या परखने का यह तरीका सही है? (नहीं।) यह पूरी तरह से गलत है। तो फिर, क्या किसी सज्जन को परिष्कृत चरित्र और अच्छी नैतिकता वाले व्यक्ति के रूप में देखना सटीक है? (नहीं।) बिल्कुल सही, यह सटीक नहीं है। सज्जनों की यह व्याख्या करना गलत है कि वे परिष्कृत चरित्र वाले, नैतिक, प्रतिष्ठित और सदाचारी होते हैं। इसलिए, अब इसे देखते हुए, क्या “सज्जन” शब्द सकारात्मक है? (नहीं।) यह सकारात्मक नहीं है। कोई सज्जन किसी खलनायक से ज्यादा महान नहीं होता। तो, अगर कोई पूछता है, “क्या सज्जन बनना बेहतर है या खलनायक?” तो जवाब क्या है? (दोनों बुरे हैं।) यह सटीक है। अगर कोई पूछे कि वे दोनों बुरे क्यों हैं, तो उत्तर सरल है। सज्जन और खलनायक दोनों ही सकारात्मक चरित्र नहीं हैं; उनमें से कोई भी वास्तव में अच्छा व्यक्ति नहीं है। वे शैतान के भ्रष्ट स्वभाव और जहर से भरे हैं। वे शैतान द्वारा नियंत्रित और विषाक्त हैं, और उसके तर्क और नियमों के अनुसार जी रहे हैं। इसलिए, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जहाँ खलनायक अच्छा व्यक्ति नहीं होता, वहीं सज्जन भी सकारात्मक व्यक्ति नहीं हो सकता। भले ही सज्जन दूसरों को अच्छा व्यक्ति दिखाई दे, वह सिर्फ अच्छा होने का दिखावा कर रहा होता है। वह परमेश्वर द्वारा स्वीकृत ईमानदार व्यक्ति नहीं है, और ऐसा व्यक्ति तो बिल्कुल नहीं है जो परमेश्वर का भय मानता हो और बुराई से दूर रहता हो। बात सिर्फ इतनी है कि सज्जन थोड़ा ज्यादा बार अच्छा और थोड़ा कम बार खराब व्यवहार करता है, जबकि खलनायक थोड़ा ज्यादा बार खराब और थोड़ा कम बार अच्छा व्यवहार करता है। सज्जन को थोड़ा ज्यादा सम्मान दिया जाता है, जबकि खलनायक को थोड़ा ज्यादा तिरस्कृत किया जाता है। सज्जन और खलनायक के बीच यही एकमात्र अंतर है। अगर लोग उनके व्यवहार के अनुसार उनका मूल्यांकन करेंगे, तो उन्हें यही एकमात्र परिणाम प्राप्त होगा।
लोग व्यक्ति के व्यवहार के आधार पर यह तय करते हैं कि वह सज्जन है या खलनायक। वे कह सकते हैं, “यह व्यक्ति सज्जन है, क्योंकि इसने सभी के लाभ के लिए बहुत सारे काम किए हैं। सभी ऐसा सोचते हैं। इसलिए, वह एक सज्जन और उच्च नैतिक चरित्र वाला व्यक्ति है।” अगर सभी कहते हैं कि कोई व्यक्ति सज्जन है, तो क्या इससे वह व्यक्ति एक अच्छा इंसान और सकारात्मक चरित्र वाला बन जाता है? (नहीं।) क्यों नहीं? क्योंकि सभी लोग भ्रष्ट हैं, उनमें भ्रष्ट स्वभाव हैं और उनमें सत्य-सिद्धांत नहीं हैं। इसलिए, चाहे कोई भी कहे कि कोई व्यक्ति सज्जन है, यह कथन शैतान और एक भ्रष्ट व्यक्ति की ओर से आता है। लोगों के मूल्यांकन का मानक सही नहीं है, इसलिए उससे मिलने वाला परिणाम भी सही नहीं होता। परमेश्वर कभी सज्जनों या खलनायकों के संदर्भ में बात नहीं करता। वह लोगों से नकली सज्जन के बजाय सच्चा सज्जन बनने की अपेक्षा नहीं करता, न ही वह कभी यह कहता है, “तुम सभी लोग खलनायक हो। मुझे खलनायक नहीं, सज्जन चाहिए।” क्या परमेश्वर ऐसा कहता है? (नहीं।) वह ऐसा नहीं कहता। परमेश्वर कभी किसी व्यक्ति की कथनी-करनी से यह आकलन या निर्धारण नहीं करता कि वह अच्छा है या बुरा। बल्कि, वह उसके सार के अनुसार उसका मूल्यांकन और निर्धारण करता है। इसका क्या अर्थ है? पहली बात, इसका अर्थ यह है कि लोगों का मूल्यांकन उनकी मानवता की गुणवत्ता, और उनमें जमीर और समझ है या नहीं, इसके आधार पर किया जाता है। दूसरे, उनका मूल्यांकन सत्य और परमेश्वर के प्रति उनके रवैये के आधार पर किया जाता है। परमेश्वर इसी तरह मूल्यांकन और निर्धारण करता है कि कोई व्यक्ति श्रेष्ठ है या निम्न। इसलिए, परमेश्वर के वचनों में सज्जन या खलनायक जैसी कोई चीज नहीं है। कलीसिया में, परमेश्वर जिन लोगों को बचाता है, उनसे सज्जन बनने की अपेक्षा नहीं करता, या सज्जन होने के विचार को बढ़ावा नहीं देता, और वह लोगों से खलनायकों की आलोचना करने के लिए नहीं कहता। परमेश्वर का घर निश्चित रूप से नैतिक आचरण से संबंधित पारंपरिक सांस्कृतिक कहावतों के अनुसार यह निर्णय नहीं करता कि कौन उच्च नैतिक चरित्र वाला है। यहाँ किसी ऐसे व्यक्ति को बढ़ावा और प्रोत्साहन नहीं दिया जाता जो सज्जन हो, और किसी ऐसे व्यक्ति को बाहर निकाला और हटाया नहीं जाता जो खलनायक हो। परमेश्वर का घर अपने सिद्धांतों के अनुसार लोगों को बढ़ावा और प्रोत्साहन देता है, बाहर निकालता या हटाता है। वह लोगों को नैतिक आचरण से संबंधित मानकों और कहावतों के अनुसार नहीं देखता, और जो सज्जन है उसे बढ़ावा नहीं देता और जो खलनायक है उसे नकारता नहीं। बल्कि, वह सभी लोगों के साथ परमेश्वर के वचनों और सत्य के अनुसार व्यवहार करता है। तुम लोग कलीसिया में उन कुछ लोगों के बारे में क्या सोचते हो, जो हमेशा सज्जन बनने की कोशिश करते हैं? (वे बेकार हैं।) कुछ नए विश्वासी हमेशा लोगों को सज्जन या खलनायक के मानक के अनुसार परखते हैं। जब वे कलीसिया के अगुआओं को विघ्न और गड़बड़ियाँ पैदा करने वाले लोगों की काट-छाँट करते देखते हैं, तो कहते हैं, “यह अगुआ सज्जन नहीं है! जब कोई भाई-बहन कोई छोटी-सी गलती कर देता है, तो यह उसे पकड़ लेता है और छोड़ता नहीं। कोई सज्जन इसकी परवाह नहीं करेगा। सज्जन सहनशील, क्षमाशील, यहाँ तक कि तुष्टीकरण करने वाला होगा—वह कहीं ज्यादा बरदाश्त करने वाला होगा! यह अगुआ लोगों पर बहुत सख्ती करता है। यह बिल्कुल खलनायक है!” ये लोग कहते हैं कि जो लोग परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करते हैं, वे सज्जन नहीं हैं। वे कहते हैं कि जो लोग गंभीरता, सावधानी और जिम्मेदारी से काम करते हैं, वे खलनायक होते हैं। तुम उन लोगों के बारे में क्या सोचते हो, जो दूसरों को इस तरह से देखते हैं? क्या वे लोगों को सत्य या परमेश्वर के वचनों के अनुसार देखते हैं? (नहीं।) वे लोगों को सत्य और परमेश्वर के वचनों के अनुसार नहीं देखते। यही नहीं, वे ऐसे विचार, दृष्टिकोण, तरीके और साधन अपनाते हैं जिनके जरिये शैतान लोगों का मूल्यांकन करता है, और इन्हें कलीसिया में फैला देते और जारी कर देते हैं। ये चीजें स्पष्ट रूप से अविश्वासियों और छद्म-विश्वासियों के विचार और दृष्टिकोण हैं। अगर तुम समझदार नहीं हो और सोचते हो कि सज्जन उच्च नैतिक चरित्र वाला अच्छा व्यक्ति होता है, ऐसा व्यक्ति जो कलीसिया में एक स्तंभ है, तो तुम उसके द्वारा गुमराह हो सकते हो। चूँकि तुम्हारे विचार और दृष्टिकोण उसके जैसे ही हैं, इसलिए जब कोई व्यक्ति सज्जनों के बारे में कथन या कहावतें कहता है, तो तुम निश्चित रूप से इसमें शामिल हो जाओगे और अनजाने ही गुमराह हो जाओगे। लेकिन अगर तुम ऐसी चीजों के बारे में समझदारी दिखाओगे, तो तुम ऐसी कहावतों को नकार दोगे और उनसे गुमराह नहीं होगे। इसके बजाय, तुम परमेश्वर के वचनों और सत्य सिद्धांतों के अनुसार लोगों और चीजों का मूल्यांकन और सही-गलत का निर्णय करने पर जोर दोगे। तब तुम लोगों और चीजों को सटीक रूप से देखोगे और परमेश्वर के इरादों के अनुसार कार्य करोगे। जो छद्म-विश्वासी सत्य का अनुसरण नहीं करते, और जो समझदार नहीं हैं और परमेश्वर के घर के नियमों का पालन करने के इच्छुक नहीं हैं, वे भाई-बहनों को गुमराह करने और सत्य की उनकी समझ बाधित करने के लिए अक्सर ऐसे विचार और कथन लाते हैं, जो शैतान से आते हैं और अविश्वासियों के बीच आम हैं। अगर लोग समझदार नहीं हैं, तो भले ही वे उन लोगों द्वारा गुमराह या परेशान न किए जा सकें, लेकिन वे अक्सर उनके कथनों से बेबस होंगे, और कार्य करने या बोलने से कतराएँगे। वे सत्य सिद्धांतों को कायम रखने की हिम्मत नहीं करेंगे और परमेश्वर के वचनों की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करने पर जोर नहीं देंगे, परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने की हिम्मत करना तो दूर की बात है। क्या यह शैतान के विचारों और कथनों की समझ की कमी के कारण होता है? (हाँ।) जाहिर तौर पर यही कारण है। कलीसिया में “सज्जन” और “खलनायक” शब्द मान्य नहीं हैं। अविश्वासी लोग दिखावा करने और मुखौटों के पीछे रहने में कुशल हैं। वे खलनायक के बजाय सज्जन बनने की वकालत करते हैं, और वे अपने जीवन में इन छद्मवेशों को अपनाते हैं। वे इन चीजों का उपयोग लोगों के बीच खुद को स्थापित करने, खुद को ख्याति और अच्छी प्रतिष्ठा देने के लिए अन्य लोगों को बरगलाने और प्रसिद्धि और सौभाग्य प्राप्त करने के लिए करते हैं। परमेश्वर के घर से इन सभी चीजों को मिटाकर प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। इन्हें परमेश्वर के घर में या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच फैलने नहीं देना चाहिए, न ही इन चीजों को परमेश्वर के चुने हुए लोगों को परेशान और गुमराह करने का अवसर दिया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए है, क्योंकि ये सभी चीजें शैतान से आती हैं, इनका परमेश्वर के वचनों में कोई आधार नहीं है, और ये निश्चित रूप से वे सत्य सिद्धांत नहीं हैं जिनका लोगों को इस दृष्टि से पालन करना चाहिए कि वे किस तरह लोगों और चीजों को देखें, आचरण और कार्य करें। इसलिए, “सज्जन,” “नकली सज्जन” और “खलनायक” किसी व्यक्ति के सार को परिभाषित करने के लिए सही शब्द नहीं हैं। क्या मैंने “सज्जन” शब्द की स्पष्ट रूप से व्याख्या कर दी है? (हाँ।)
आओ, “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है” कहावत पर एक और नजर डालें और देखें कि इसका वास्तव में क्या अर्थ है। इस वाक्यांश का शाब्दिक अर्थ यह है कि सज्जन को अपने शब्द गंभीरता से लेने चाहिए। जैसा कि कहा जाता है, व्यक्ति उतना ही अच्छा होता है, जितने अच्छे उसके शब्द होते हैं; सज्जन को अपने कहे पर कायम रहना चाहिए और अपने वादों पर अमल करना चाहिए। इसलिए, उच्च नैतिक चरित्र वाला सज्जन बनने के लिए, जिसे बहुत पसंद किया जाता है और अत्यधिक सम्मान दिया जाता है, व्यक्ति को इस कहावत के अनुसार कार्य करना चाहिए “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है।” अर्थात् सज्जन को विश्वसनीय होना चाहिए। वह जो कहता और वादा करता है, उसे उसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए और उसका पालन सुनिश्चित करना चाहिए। वह अपने शब्दों से पीछे नहीं हट सकता या दूसरों से किए गए वादे पूरे करने में विफल नहीं हो सकता। जो व्यक्ति अक्सर दूसरों से किए गए अपने वादे पूरे करने में विफल रहता है, वह सज्जन या अच्छा व्यक्ति नहीं है, बल्कि खलनायक है। “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है” वाक्यांश की व्याख्या इसी तरह की जा सकती है। यह मुख्य रूप से नैतिकता और विश्वसनीयता के संदर्भ में सज्जन के शब्दों और कार्यों पर जोर देता है। पहली बात, मैं पूछता हूँ कि “सज्जन का वचन” में “वचन” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ दो चीजें हैं : वादा जो वह करता है, या कुछ करने की प्रतिज्ञा। जैसा कि मैंने पहले कहा, सज्जन अच्छे लोग नहीं होते, बल्कि शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट किए गए साधारण लोग होते हैं। तो, लोगों के सार के संदर्भ में, वे कौन-से मुख्य तरीके हैं जिनसे लोग खुद को उन चीजों में प्रकट करते हैं जिनका वे वादा करते हैं? अहंकारपूर्वक बोलना, बढ़ा-चढ़ाकर बोलना, अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना, अपने बारे में वे बातें कहना जो सच नहीं होतीं, ऐसी बातें कहना जो तथ्यों से मेल नहीं खातीं, झूठ बोलना, कठोरता से बोलना और भड़ास निकालना। ये तमाम चीजें उन चीजों में पाई जा सकती हैं, जो लोग कहते हैं और जिनका वादा करते हैं। तो, जब कोई व्यक्ति ये बातें कहता है और तुम उससे अपना वादा निभाने, अपना कहा पूरा करने और अपने शब्दों से पीछे न हटने के लिए कहते हो, और अगर वह इसका पालन करता है, तो तुम्हें लगता है कि वह सज्जन और अच्छा व्यक्ति है। क्या यह बेतुका नहीं है? अगर भ्रष्ट लोगों की रोजाना कही जाने वाली बातों की सावधानीपूर्वक जाँच-पड़ताल की जाए, तो तुम पाओगे कि वे शत-प्रतिशत झूठी, खोखली बातें या अर्धसत्य हैं। एक भी बात सटीक, सच्ची या तथ्यपरक नहीं है। इसके बजाय, उनके कथन तथ्यों को तोड़ते-मरोड़ते हैं, काले को सफेद बताते हैं, और उनमें से कुछ तो बुरे इरादे भी रखते हैं या शैतानी चालें भी चलते हैं। अगर ये सभी शब्द पूरे किए जाएँ, तो इससे बहुत अराजकता फैल जाएगी। हम इस बारे में बात न करके कि इससे लोगों के एक बड़े समूह में क्या होगा, बस इस बारे में बात करते हैं कि क्या किसी परिवार में ऐसा कोई तथाकथित सज्जन है जो लगातार अविवेकपूर्ण टिप्पणियाँ करता हो, और ढेर सारे निरर्थक सिद्धांत और अहंकार से भरी, गलत, भयावह और दुष्टतापूर्ण बातें उगलता हो। अगर वह अपने शब्दों को गंभीरता से ले और उसका वचन उसका अनुबंध हो, तो क्या परिणाम होंगे? यह परिवार कितना अराजक हो जाएगा? यह ठीक बड़े लाल अजगर के देश के शैतान राजा की तरह है। चाहे उसकी नीतियाँ कितनी भी बेतुकी या बुरी हों, वह फिर भी उन्हें आगे रखता है, और उसके मातहत लोग इन नीतियों को पूरी तरह से कार्यान्वित और लागू करते हैं—कोई उनका विरोध करने या उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं करता, जिससे राष्ट्रीय अराजकता पैदा होती है। इसके अलावा, राष्ट्र विभिन्न आपदाओं से घिर गया है और युद्ध की तैयारी शुरू हो गई है, जिससे पूरा देश घोर असमंजस में डूब गया है। अगर कोई शैतान नेता किसी देश या राष्ट्र में लंबे समय तक शासन करे, तो उस देश के लोग गंभीर संकट में पड़ जाएँगे। चीजें कितनी अराजक हो जाएँगी? अगर लोग शैतान राजाओं द्वारा जारी की गई तमाम बेहूदी चीजें, भ्रांतियाँ और झूठ अपनाकर उन्हें क्रियान्वित कर दें, तो क्या इससे मानवजाति का कुछ भी भला होगा? मानवजाति सिर्फ ज्यादा से ज्यादा अराजक, अंधकारमय और दुष्ट बन जाएगी। सौभाग्य से “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है” खोखले शब्दों से ज्यादा कुछ नहीं है; यह सिर्फ एक शब्दाडंबर है, शैतान इसे साकार करने में सक्षम नहीं है, और जो वह कहता है उसे हासिल करने में सक्षम नहीं है। इसलिए, दुनिया में अभी भी थोड़ी व्यवस्था है और लोग अभी भी अपेक्षाकृत स्थिर हैं। अगर ऐसा न होता, तो मानव-जगत का हर कोना, हर वह जगह जहाँ “सज्जन” हैं, अराजकता में पड़ा होता। तो यह “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है” कहावत से जुड़ी भ्रामक चीजों में से एक है। लोगों के सार के परिप्रेक्ष्य से हम देख सकते हैं कि उनके कथन, उनकी बातें और उनके वादे अविश्वसनीय हैं। एक और चीज जो इसमें गलत है, वो यह है कि मानवजाति इस विचार और दृष्टिकोण से बेबस होती है, “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है।” लोग सोचते हैं, “हमें अपने कहे पर कायम रहना चाहिए और वही करना चाहिए जो हम कहते हैं कि हम करने जा रहे हैं, क्योंकि सज्जन बनने का यही तरीका है।” यह विचार और दृष्टिकोण लोगों की सोच पर हावी हो जाता है और वह मानक बन जाता है, जिसके द्वारा वे किसी व्यक्ति को देखते, उसका मूल्यांकन करते और उसकी विशेषताएँ बताते हैं। क्या यह उचित और सटीक है? (नहीं, यह सटीक नहीं है।) यह सटीक क्यों नहीं है? पहली बात, क्योंकि लोग जो कहते हैं उसका कोई महत्व नहीं है और वह सिर्फ खोखले शब्द, झूठ और अतिशयोक्ति होती है। दूसरे, लोगों को नियंत्रित करने के लिए इस विचार और दृष्टिकोण का उपयोग करना और उनसे अपने शब्दों पर कायम रहने की अपेक्षा करना अनुचित है। किसी व्यक्ति की श्रेष्ठता या हीनता मापने के लिए लोग अक्सर “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है” का उपयोग करते हैं। अनजाने ही लोग अक्सर इस बात की चिंता करते हैं कि अपने वादे कैसे पूरे किए जाएँ और इसी से बेबस होते हैं। अगर वे अपने वादे पूरे नहीं कर पाते, तो उन्हें दूसरों के भेदभाव और डाँट-फटकार का शिकार होना पड़ता है, और अगर वे किसी छोटी-मोटी चीज पर अमल नहीं कर पाते तो उनके लिए समुदाय में खुद को स्थापित करना कठिन होता है। यह इन लोगों के साथ अन्याय है और अमानवीय है। अपने भ्रष्ट स्वभावों के कारण लोग अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार बोलते हैं, जो कहना चाहते हैं सो कहते हैं; वे इसकी परवाह नहीं करते कि उनके कथन कितने बेतुके या तथ्यों के विपरीत हैं। भ्रष्ट लोग ऐसे ही होते हैं। हर चीज का अपने स्वभाव के अनुसार कार्य करना स्वाभाविक है : मुर्गे को कुड़कुड़ करना सीखना चाहिए, कुत्ते को भौंकना और भेड़िये को गुर्राना सीखना चाहिए। अगर कोई चीज इंसान नहीं है, फिर भी उससे इंसानी चीजें कहने और करने की सख्त अपेक्षा की जाए, तो यह उसके लिए बहुत कठिन होगा। लोगों में शैतान का भ्रष्ट स्वभाव है, ऐसा स्वभाव जो अहंकारी और कपटी है, इसलिए उनका झूठ बोलना, बढ़ा-चढ़ाकर बोलना और खोखले शब्द बोलना स्वाभाविक है। अगर तुम सत्य समझते हो और लोगों की असलियत देख सकते हो, तो यह सब तुम्हें सामान्य और साधारण लगेगा। तुम्हें लोगों और चीजों को देखने और यह निर्णय करने और बताने के लिए कि लोग अच्छे या भरोसेमंद हैं या नहीं, इस भ्रामक विचार और परिप्रेक्ष्य का उपयोग नहीं करना चाहिए कि “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है।” मूल्यांकन का यह तरीका सही नहीं है और इसे नहीं अपनाया जाना चाहिए। सही तरीका क्या है? लोगों का भ्रष्ट स्वभाव होता है, इसलिए उनका बढ़ा-चढ़ाकर बोलना और ऐसी बातें कहना जो उनकी वास्तविक स्थिति प्रतिबिंबित नहीं करतीं, सामान्य है। तुम्हें इसे सही ढंग से सँभालना चाहिए। तुम्हें किसी व्यक्ति से सज्जन के मानकों के अनुसार अपने वादे पूरे करने के लिए नहीं कहना चाहिए, और तुम्हें निश्चित रूप से दूसरों को या खुद को इस विचार और दृष्टिकोण से नहीं बाँधना चाहिए कि “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है।” यह ठीक नहीं है। यही नहीं, किसी व्यक्ति की मानवता और नैतिक चरित्र को इस आधार पर आँकना कि वह सज्जन है या नहीं, एक बुनियादी गलती है, न कि सही दृष्टिकोण। इसका आधार गलत है और परमेश्वर के वचनों या सत्य के अनुरूप नहीं है। इसलिए, अविश्वासियों की दुनिया किसी व्यक्ति का मूल्यांकन करने के लिए चाहे जिस भी तरह के विचारों और दृष्टिकोणों का उपयोग करे, और चाहे अविश्वासियों की दुनिया सज्जन होने की वकालत करे या खलनायक होने की, परमेश्वर के घर में “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है” कहावत को बढ़ावा नहीं दिया जाता, किसी से यह अनुशंसा नहीं की जाती है कि वह सज्जन बने और तुम्हें निश्चित रूप से इस कहावत के अनुसार कार्य करने की आवश्यकता नहीं है कि “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है।” अगर तुम सख्ती से खुद से सज्जन होने की माँग करते भी हो और इस कहावत को चरितार्थ करते भी हो कि “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है,” तो भी क्या? तुम इसे बहुत अच्छी तरह से कर सकते हो और ऐसे विनम्र सज्जन बन सकते हो जो अपने वादे निभाता है और अपने वचन पूरे करने में कभी विफल नहीं होता। लेकिन अगर तुम कभी भी परमेश्वर के वचनों के अनुसार लोगों और चीजों को नहीं देखते, आचरण और कार्य नहीं करते, या सत्य सिद्धांतों का पालन नहीं करते, तो तुम पूरी तरह से छद्म-विश्वासी हो। भले ही बहुत-से लोग तुमसे सहमत होते हों और तुम्हारा समर्थन करते हों, कहते हों कि तुम सज्जन हो, अपना कहा पूरा करने में कभी विफल नहीं होते और अपने वादों को गंभीरता से लेते हो, तो भी क्या? क्या इसका मतलब यह है कि तुम सत्य समझते हो? क्या इसका मतलब यह है कि तुम परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करते हो? चाहे तुम इस नैतिक आचरण के बारे में इस कहावत का कि “सज्जन का वचन उसका अनुबंध होता है,” कितनी भी अच्छी तरह और उचित ढंग से पालन करते हो, अगर तुम परमेश्वर के वचन नहीं समझते, और सत्य सिद्धांतों के अनुसार नहीं देखते और कार्य करते, तो फिर तुम्हें परमेश्वर की स्वीकृति मिलने से रही।
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