सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (15) भाग एक
वर्तमान में आपदाएँ बद से बदतर होती जा रही हैं। न सिर्फ महामारी फैलती जा रही है, बल्कि लोगों पर अकाल भी मँडरा रहा है। कुछ क्षेत्रों में युद्ध छिड़ गया है और दुनिया भर के कई देशों में अराजकता है। वहाँ पहले से ही बड़े पैमाने पर फूट है। अतीत में यह कहा गया है कि, “युद्ध की लपटें चक्कर लगाती हैं, तोप का धुआं हवा में भर गया है, मौसम गर्म हो गया, जलवायु परिवर्तित हो रही है, महामारी फैलेगी,” और यह भविष्यवाणी पहले से ही सच हो रही है। महामारी फैल रही है और कम नहीं हो रही, और अविश्वासी भीषण दुर्दशा में जी रहे हैं। हर दिन और साल पिछले दिन और साल से बदतर है, और वे पहले ही आपदा में घिर चुके हैं। वे सभी इस पीड़ा से मुक्त होना चाहते हैं और आपदा से बचना चाहते हैं। वे सभी उम्मीद करते हैं कि सरकार उन्हें बचा लेगी और उन्हें आपदा से छुटकारा दिलाएगी, लेकिन सरकार लहरों के थपेड़े खाते रेत के महल की तरह है—शक्तिहीन और खुद को भी बचाने में असमर्थ, किसी और की तो बात ही छोड़ दो। अब किसी भी दिन सरकार गिर सकती है और नष्ट हो सकती है; यह अपरिहार्य है। तुम सभी ने देखा है कि अविश्वासियों पर क्या बीत रही है—वे वाकई पीड़ित हैं! इस समय तुम लोगों का क्या हाल है? क्या तुम उनसे बहुत बेहतर स्थिति में नहीं हो? (हाँ, हैं।) तुम कैसे उनसे बेहतर स्थिति में हो? (हम अभी भी परमेश्वर के वचन एक-साथ पढ़ने और सत्य पर संगति करने में सक्षम हैं। हम अभी भी परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाने और जीवन प्रवेश खोजने में सक्षम हैं। हमारे दिल शांत और चिंता से मुक्त हैं। हम अविश्वासियों की तुलना में बहुत बेहतर स्थिति में हैं।) कम से कम, जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे अविश्वासियों की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं, क्योंकि उनके पास भरोसा करने के लिए कुछ है। वे परमेश्वर की संप्रभुता में विश्वास करते हैं; वे मानते हैं कि सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है, और वे परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं में विश्वास करते हैं। चूँकि परमेश्वर में उनकी आस्था और वास्तविक विश्वास है, इसलिए उनके पास भरोसा करने के लिए कुछ वास्तविक है, और सुरक्षा की भावना है। जो लोग ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उनके दिल में वास्तविक सहारे की भावना होती है, साथ ही सुरक्षा, शांति और खुशी की भावना भी होती है, चाहे बाहर का व्यापक परिवेश कितना भी खतरनाक या अराजक क्यों न हो। इसलिए, चाहे लोग किसी भी स्थिति का अनुभव करें, चाहे बाहर का परिवेश कैसे भी बदले, चाहे कुछ भी हो, चाहे कोई आपदा, युद्ध या महामारी हो, और चाहे कोई बड़ी घटना हो या छोटी समस्या, अगर वे ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, तो वे परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाने, परमेश्वर के वचन खाने-पीने, परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने और सत्य प्राप्त करने की कोशिश करने के लिए खुद को समर्पित कर सकते हैं, क्योंकि वे परमेश्वर का अनुसरण करते हैं और धर्मनिरपेक्ष प्रवृत्तियों से दूर रहते हैं। यह बात अपरिवर्तित रहती है। सबसे अहम चीज और सबसे अहम लक्ष्य, जिसे तुम्हें परमेश्वर में अपने विश्वास में खोजना चाहिए, बदल नहीं सकता, और वह है सत्य का अनुसरण करना, अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना और परमेश्वर की सुंदर गवाही देना। यह बिल्कुल नहीं बदल सकता।
चाहे दुनिया कैसे भी बदले, चाहे शैतान की ताकतें कैसे भी लड़ें-झगड़ें और चाहे यह समाज और दुनिया कितनी भी अराजक हो जाए, शैतान द्वारा गुमराह किए जाने, उसकी भ्रष्टता, बंधन और मानवजाति पर नियंत्रण जैसी अपरिहार्य समस्याएँ अपरिवर्तित रहती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि विभिन्न पाखंड और भ्रांतियाँ जो शैतान लोगों में भरता है, और वे तमाम विचार और कथन जो परमेश्वर का विरोध करते हैं और परमेश्वर द्वारा मनुष्यों और सभी चीजों की रचना के नियमों और विनियमों के विपरीत हैं, अपरिवर्तित रहते हैं। एक बात तो यह है कि ये शैतानी चीजें नहीं बदली हैं। दूसरी बात यह कि चाहे इस दुनिया की अवस्था और संरचना कैसे भी बदल जाए, शैतान द्वारा लोगों के दिलों में गहराई से रोपे गए पाखंड और भ्रांतियाँ दूर नहीं हुईं। ऐसा इसलिए नहीं है कि दुनिया अराजकता की स्थिति में है, या शैतान की हालत अब खराब है और वह दुनिया को नियंत्रित करने में इतना कमजोर हो गया है कि जिन पाखंडों और भ्रांतियों से वह लोगों को गुमराह करता और भ्रष्ट करता है, वे लोगों के दिलों से मिट गए हैं। यह मामला नहीं है। शैतान के पाखंड और भ्रांतियाँ अभी भी लोगों के दिलों में मौजूद हैं और कोई उन्हें दूर नहीं कर सकता। शैतान द्वारा मानवजाति को भ्रष्ट करने की शुरुआत से ही, शैतान के पाखंड और भ्रांतियाँ धीरे-धीरे हर सृजित मनुष्य के दिलो-दिमाग में गहराई से रोपी गई हैं। ये चीजें आज भी लोगों के दिलो-दिमाग में पूरी तरह से अपरिवर्तित हैं। यहाँ तक कि परमेश्वर द्वारा कई वर्षों तक कार्य करने और लोगों को बहुत सारा सत्य प्रदान करने के बाद भी, लोग अभी भी शैतान द्वारा उनमें डाले गए विभिन्न विचार, दृष्टिकोण और कहावतें पहचानने में असमर्थ हैं, परिवेशगत कारकों के प्रभाव की अनुपस्थिति में सक्रिय रूप से इन चीजों को पहचानने या इन्हें अपने दिल से निकाल देने का प्रयास करना तो दूर की बात है। न ही वे, परमेश्वर के वचनों का पोषण और मार्गदर्शन मिलने के बावजूद सक्रिय रूप से उन विभिन्न विचारों और कथनों को नकारने में सक्षम हैं, जो शैतान ने उनमें डाले हैं। हालाँकि शुरुआत में लोगों को शैतान द्वारा निष्क्रिय रूप से भ्रष्ट किया गया था, फिर भी शैतान द्वारा मानवजाति को भ्रष्ट करने की पूरी प्रक्रिया के दौरान, लोगों ने शैतान के स्वभाव के अनुसार जीना शुरू कर दिया, और चीजों को शैतान के विचारों और परिप्रेक्ष्य के अनुसार देखा। धीरे-धीरे, लोगों ने शैतान के साथ अधिकाधिक सक्रिय रूप से सहयोग करना शुरू कर दिया, और परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करने, परमेश्वर से विमुख होने और परमेश्वर को त्यागने में और अधिक सक्रिय हो गए, जब तक कि अंत में शैतान ने उन पर पूर्ण नियंत्रण नहीं कर लिया। जब शैतान के बुरे और हास्यास्पद विचारों और दृष्टिकोण पूरी तरह से लोगों में भर जाते हैं, तब वे पूरी तरह से शैतान द्वारा कैद कर लिए जाते हैं और उसके गुलाम बन जाते हैं, या, अधिक सटीक रूप से कहें तो, वे शैतान का मूर्त रूप बन जाते हैं। जब ऐसा होता है, तो लोग पूरी तरह से शैतान के स्वभाव को जीते हैं। वे न सिर्फ शैतान के फलसफों और विचारों के अनुसार जीते हैं, बल्कि शैतान ने उनमें जो विभिन्न धारणाएँ और विचार डाले हैं, वे उनकी प्रकृति में शामिल हो गए हैं। अधिक सटीक रूप से कहें तो, लोग न सिर्फ शैतान की छवि को जी रहे हैं, बल्कि वे शैतानों के रूप में, दानवों के रूप में जी रहे हैं। जब ऐसा होता है, तब लोग शैतान द्वारा निष्क्रिय रूप से भ्रष्ट, प्रभावित, गुमराह या नियंत्रित नहीं किए जाते, बल्कि वे परमेश्वर का विरोध करते हुए पूरी तरह से शैतान के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। जब लोग इस हद तक भ्रष्ट हो जाते हैं, तो तुम कह सकते हो कि वे शैतान के लिए एक निकास और उसका मूर्त रूप बन गए हैं। परमेश्वर के लिए एक ऐसे सृजित प्राणी को बचाने हेतु जो शैतान के लिए एक निकास और उसका मूर्त रूप है, सत्य प्रदान करने और लोगों के परमेश्वर के प्रति विद्रोहपूर्ण विभिन्न भ्रष्ट स्वभावों और क्रियाकलापों को बेनकाब करने के अलावा लोगों के दिलों में गहरे बैठे उन विचारों, दृष्टिकोणों और कथनों का पर्दाफाश और गहन-विश्लेषण करना ज्यादा अहम है जो बिल्कुल वही हैं जो शैतान के हैं। लोगों और शैतान के विचार, दृष्टिकोण और कथन एक-जैसे हैं। शैतान इन चीजों के अनुसार जीवन जीता है, और इसी तरह, चूँकि लोगों को शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट कर दिया गया है, इसलिए वे भी स्वाभाविक रूप से इन्हीं चीजों के अनुसार जी रहे हैं। यह बिल्कुल इसी वजह से है कि चूँकि लोग इन चीजों के अनुसार जीते हैं और इन दृष्टिकोणों से इतने प्रभावित, शासित और नियंत्रित होते हैं कि सत्य का एक भाग समझने और यह जानने के बाद भी कि परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, वे परमेश्वर में अपने विश्वास के आधार पर उसके सामने सिर झुका नहीं सकते या पूरी तरह से उसके प्रति समर्पित नहीं हो सकते, न ही वे सच्चे दिल से उसकी आराधना कर सकते हैं। लोगों के सच्चे दिल से परमेश्वर की आराधना न कर पाने का कारण यह है कि अपने दिलो-दिमाग की गहराई में वे अभी भी शैतान के विभिन्न विचारों और दृष्टिकोणों से ग्रस्त और नियंत्रित हैं। यही कारण है कि जब लोग परमेश्वर का कार्य स्वीकार लेते और जीत लिए जाते हैं, तो वे परमेश्वर के वचनों को जीवन के रूप में स्वीकारने में सक्षम होने के बावजूद शैतान के विभिन्न पाखंडों और भ्रांतियों को पूरी तरह से त्यागने में असमर्थ होते हैं; वे अभी भी अंधकार के प्रभाव से पूरी तरह से मुक्त नहीं हो पाते और परमेश्वर के प्रति वास्तव में समर्पित नहीं हो पाते या उसकी आराधना नहीं कर पाते। इसलिए, अगर परमेश्वर को मानवजाति को बचाना है, तो एक तो उसे लोगों का न्याय कर उनके भ्रष्ट स्वभावों को स्वच्छ करने के लिए सत्य व्यक्त करना होगा; लोगों को सत्य समझकर परमेश्वर को जानने और उसके प्रति समर्पित होने के लिए प्रेरित करना होगा; लोगों को सिखाना होगा कि उन्हें कैसे आचरण करना चाहिए और वे सही मार्ग पर कैसे चल सकते हैं; और लोगों को बताना होगा कि उन्हें सत्य का अभ्यास कैसे करना चाहिए, वे अपना कर्तव्य कैसे अच्छी तरह से निभा सकते हैं और सत्य-वास्तविकताओं में कैसे प्रवेश कर सकते हैं। दूसरे, उसे शैतान के विचार और दृष्टिकोण उजागर करने होंगे। उसे उन विभिन्न पाखंडों और भ्रांतियों को उजागर कर उनका विश्लेषण करना होगा, जिनके द्वारा शैतान लोगों को भ्रष्ट करता है, ताकि लोग उन्हें पहचान सकें। तब लोग इन शैतानी चीजों को अपने दिलों से निकाल सकते हैं, स्वच्छ हो सकते हैं और उद्धार प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह, लोग समझेंगे कि सत्य क्या है, और वे शैतान के स्वभाव, शैतान की प्रकृति और उसके पाखंड और भ्रांतियाँ भी पहचान पाएँगे। जब लोग स्वीकारते हैं कि परमेश्वर सृष्टिकर्ता है और उनमें परमेश्वर का अनुसरण करने की आस्था होती है, तो वे अपने दिल की गहराई में शैतान की कुरूपता देख पाएँगे और वास्तव में शैतान को नकार देंगे। तब इन लोगों के हृदय पूरी तरह से परमेश्वर की ओर लौट सकते हैं। कम से कम, जब व्यक्ति का हृदय परमेश्वर की ओर लौटना शुरू कर रहा होता है, लेकिन अभी तक पूरी तरह से वापस नहीं लौटा होता, अर्थात् जब उसके हृदय में अभी तक सत्य नहीं होता, और अभी तक उसे परमेश्वर द्वारा प्राप्त नहीं किया गया होता, तो वह अपने जीवन में उन सभी कथनों को पहचानने, उनका विश्लेषण कर उन्हें समझने के लिए परमेश्वर के वचनों का उपयोग करेगा, जिन्हें शैतान लोगों में भरता है, और अंततः शैतान को त्याग देगा। इस तरह, लोगों के दिलों में शैतान का स्थान लगातार घटते-घटते पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। उसकी जगह परमेश्वर के वचन, परमेश्वर से मिलीं शिक्षाएँ, परमेश्वर से मिले सत्य सिद्धांत इत्यादि ले लेंगे। सकारात्मकता और सत्य का यह जीवन धीरे-धीरे लोगों के भीतर जड़ें जमा लेगा और उनके दिलों में सबसे अहम जगह ले लेगा, और नतीजतन, लोगों के दिलों पर परमेश्वर का प्रभुत्व होगा। अर्थात्, जब लोगों को भ्रष्ट बनाने वाले विभिन्न शैतानी विचारों, दृष्टिकोणों, पाखंडों और भ्रांतियों को पहचानकर उनकी असलियत जान ली जाएगी, ताकि लोग उनका तिरस्कार और त्याग करें, तो सत्य धीरे-धीरे लोगों के दिलों पर कब्जा कर लेगा। वह धीरे-धीरे लोगों का जीवन बन जाएगा और वे सक्रिय रूप से परमेश्वर के प्रति समर्पण और उसका अनुसरण करेंगे। परमेश्वर चाहे कैसे भी कार्य और अगुआई करे, लोग सक्रिय रूप से सत्य और परमेश्वर के वचन स्वीकारने और परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पित होने में सक्षम होंगे। इसके अलावा, इस अनुभव के माध्यम से वे सक्रिय रूप से सत्य के लिए प्रयास करेंगे और सत्य की समझ हासिल करेंगे। इसी तरह से लोग परमेश्वर में सच्ची आस्था विकसित करते हैं, और जैसे-जैसे सत्य उन्हें ज्यादा से ज्यादा स्पष्ट होता जाता है, उनकी आस्था लगातार बढ़ती जाती है। जब लोगों में परमेश्वर में सच्ची आस्था होती है, तो इससे उनमें परमेश्वर का भय भी पैदा होता है। जब लोग परमेश्वर का भय मानते हैं, तो उनके दिल की गहराई में परमेश्वर को पाने और स्वेच्छा से उसके प्रभुत्व के प्रति समर्पित होने की इच्छा होती है। वे परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति, और अपनी नियति के लिए परमेश्वर की योजनाओं के प्रति समर्पित होते हैं। वे परमेश्वर द्वारा उनके लिए निर्धारित हर दिन और हर विशेष परिस्थिति के प्रति समर्पित होते हैं। जब लोगों में ऐसी इच्छा और प्यास होती है, तो वे परमेश्वर की अपेक्षाओं को भी सक्रिय रूप से स्वीकार कर उनके प्रति समर्पित होते हैं। जब इसके नतीजे लोगों में ज्यादा से ज्यादा स्पष्ट और ज्यादा से ज्यादा वास्तविक हो जाते हैं, तो शैतान के कथन, विचार और दृष्टिकोण लोगों के दिलों में अपना प्रभाव खो देते हैं। दूसरे शब्दों में, लोगों पर शैतान के कथनों, विचारों और दृष्टिकोणों का वश और प्रभाव घटता जाता है। संघर्ष की एक अवधि के बाद, और लोगों के परमेश्वर के प्रति समर्पित होने के लिए सक्रिय सहयोग और संकल्प की एक अवधि के बाद वे शैतान के बंधन और नियंत्रण से मुक्त होने में सक्षम होंगे। जब लोग इस बिंदु पर पहुँचेंगे, तो वे शैतान की सत्ता से निकल चुके होंगे। वे उन कथनों, विचारों और दृष्टिकोणों को पूरी तरह से त्याग देंगे, जिनका उपयोग शैतान ने उन्हें गुमराह करने के लिए किया था, और परमेश्वर में उनकी आस्था और भी ज्यादा बढ़ जाएगी। निस्संदेह, यह प्रभाव परमेश्वर के वचनों और कार्य पर निर्भर करता है, और इससे भी ज्यादा अहम रूप से, लोगों के अनुसरण और सहयोग पर निर्भर करता है। अगर कोई व्यक्ति सत्य और उपदेश बहुत ज्यादा सुनता है, लेकिन फिर भी उसे शैतान के विचारों और दृष्टिकोणों के बारे में कोई जानकारी नहीं है और वह इन चीजों से घृणा नहीं करता, और अगर व्यक्ति इन शैतानी चीजों को सक्रिय रूप से पहचानना, समझना और त्यागना नहीं चाहता, बल्कि इनके प्रति निष्क्रिय नजरिया अपनाता है या इन्हें अनदेखा करता है, तो शैतान के विभिन्न विचार और दृष्टिकोण अभी भी उस व्यक्ति में गहराई से समाए रहेंगे। ऐसे लोग अपने दैनिक जीवन में और अपने पूरे जीवन-मार्ग के दौरान अभी भी न चाहते हुए भी शैतान के विभिन्न विचारों और परिप्रेक्ष्यों से प्रभावित और नियंत्रित होंगे, और लोगों और चीजों के बारे में उनके विचार और उनका आचरण और कार्यकलाप अभी भी शैतान से उत्पन्न होंगे। अगर यह सब शैतान से उत्पन्न होता है, तो फिर परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास कोई सच्ची आस्था नहीं बल्कि सिर्फ परमेश्वर के अस्तित्व की स्वीकृति है, और तुम परमेश्वर की पहचान और सार कभी भी सच्चे मन से नहीं स्वीकार पाओगे। निस्संदेह, तुम्हारा हृदय अपने आप परमेश्वर की ओर नहीं मुड़ेगा, और तुम अपना हृदय परमेश्वर की ओर नहीं लौटा पाओगे। यह कहा जा सकता है कि तुम परमेश्वर के सौंपे हुए कर्तव्य और दायित्वों के प्रति थोड़ा-सा भी सच्चा समर्पण करने में सक्षम नहीं हो, और परमेश्वर के प्रति सचमुच समर्पण करना तो दूर रहा, तुम वास्तव में उसका भय नहीं मान सकते हो। अगर तुम ये चीजें पूरी करने में विफल रहते हो, तो इसका स्पष्ट परिणाम क्या होगा? तुम बचाए नहीं जाओगे। क्या यही होगा? (हाँ।) यही होगा। यह स्पष्ट है कि जिन विचारों, दृष्टिकोणों और धारणाओं से शैतान लोगों को भ्रष्ट करता है और जिन्हें उनके दिलों में गहरे रोपता है, यही वो चीजें हैं जो लोगों को परमेश्वर की वाणी सुनने, परमेश्वर के वचनों पर विश्वास करने, सकारात्मक चीजें स्वीकारने और निश्चित रूप से सत्य स्वीकारने और सत्य में प्रवेश करने से रोकती हैं। ये चीजें मनुष्यों के भ्रष्ट स्वभावों से ऊपरी तौर पर भिन्न होती हैं। लेकिन इन चीजों का सार शैतान की प्रकृति का हिस्सा है और ये वे चीजें हैं जिनसे शैतान मनुष्यों को भ्रष्ट करता है। बाहर से देखें तो शैतान के मानवजाति को भ्रष्ट करने वाले कार्यकलापों और शैतान के अच्छा करने के दिखावे में साफ अंतर है, लेकिन यह ऐसा अंतर है जिसे पहचानना साधारण लोगों के लिए मुश्किल है। लेकिन शैतान द्वारा लोगों को गुमराह करने और भ्रष्ट करने के दुष्परिणाम बेहद स्पष्ट हैं। यह स्पष्ट तथ्य है कि इसने मुख्यधारा के समस्त समाज को परमेश्वर को नकारने, उसका प्रतिरोध करने, यहाँ तक कि उसके विरोध में खड़े होने के लिए प्रेरित किया है।
लोगों के भीतर का शैतानी स्वभाव पूरी तरह से उन्हें शैतान द्वारा गुमराह और भ्रष्ट किए जाने का नतीजा होता है। यही नहीं, लोग जिन तमाम शैतानी पाखंडों, भ्रांतियों, फलसफों और नियमों को मानते हैं, और जीवन और मूल्यों के बारे में उनका दृष्टिकोण, ये सारी चीजें शैतान द्वारा गुमराह और भ्रष्ट किए जाने की ठोस अभिव्यक्तियाँ हैं। दूसरे शब्दों में, लोगों को गुमराह करने और परमेश्वर से विमुख करने और उसे नकारने के लिए बाध्य करने के बाद शैतान पूरी तरह से उनके मन में तमाम तरह के शैतानी विचार, दृष्टिकोण, पाखंड और भ्रांतियाँ बैठा देता है। इतना ही नहीं, शैतान खुले तौर पर तमाम तरह की धारणाओं, दृष्टिकोणों और कथनों सहित बहुत सारा ऐसा दुष्प्रचार फैलाता है जिसे लोग दिल में बैठा लेते हैं और इसी के प्रभाव में आकर हर चीज से निपटते हैं। नतीजतन, उनके भीतर विभिन्न भ्रष्ट शैतानी स्वभाव विकसित हो जाते हैं। यही तरीका है, जो शैतान लोगों को भ्रष्ट करने के लिए अपनाता है। अर्थात्, जब लोगों की आत्मा में भारी खोखलापन होता है, जब वे सही नहीं सोच रहे होते और जब वे एक खाली बर्तन होते हैं, तो शैतान के विभिन्न कथन उनके दिलों में जाकर रच-बस जाते हैं। उदाहरण के लिए, जब ऐसे कथन गढ़े जाते हैं कि “कभी कोई उद्धारकर्ता नहीं हुआ है,” “आकाश और पृथ्वी और सभी चीजें प्रकृति द्वारा बनाई गई हैं,” “मैं अपने दोस्त के लिए गोली भी खा लूँगा,” “महिला को सच्चरित्र, दयालु, सौम्य और नैतिकतायुक्त होना चाहिए,” “पुरुषों को मर्दाना होना चाहिए,” इत्यादि, तो लोग अनजाने में ही उनसे प्रभावित हो जाते हैं। इन बुरी ताकतों, पाखंडों और भ्रांतियों के बारे में जागरूकता के बिना, और उन्हें पहचानने की क्षमता या उनका विरोध करने की शक्ति के बिना लोग शैतान के तमाम तरह के विचार और दृष्टिकोण स्वीकार लेते हैं। जिस प्रक्रिया से लोग ये शैतानी विचार और दृष्टिकोण स्वीकारते हैं, वह ठीक वही प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोगों को गुमराह किया जाता है, उकसाया जाता है और भ्रष्ट किया जाता है। उदाहरण के लिए, अगर तुम एक ऐसी महिला हो जो नहीं जानती कि महिला के जीने का सही तरीका क्या है और उसे क्या चीजें करनी चाहिए, तो शैतान अपने पाखंड और भ्रांतियाँ सामने रख देगा, जैसे, “महिला को सच्चरित्र, दयालु, सौम्य और नैतिकतायुक्त होना चाहिए, घर पर रहना चाहिए और बाहर नहीं जाना चाहिए,” “महिला का अकुशल होना उसका सद्गुण है,” इत्यादि। तुम सोचते हो कि ये कहावतें काफी बुद्धिमत्तापूर्ण और अच्छी लगती हैं, इसलिए तुम इन्हें स्वीकार लेते हो। जब ये पाखंड और भ्रांतियाँ समाज और पृथ्वी पर फैल रही होती हैं, तो महिला होने के नाते तुम इन्हें अनजाने में ही स्वीकार लोगी और इन पर सख्ती से खरा उतरना चाहोगी। पहले, तुम यह मानते हुए उनसे अपनी तुलना करोगी कि चूँकि तुम एक महिला हो, इसलिए तुम्हें सच्चरित्र, दयालु, सौम्य और नैतिकतायुक्त होना चाहिए, घर पर रहना चाहिए, तुममें अकुशल महिला का सद्गुण होना चाहिए, आदि। इस प्रक्रिया के दौरान, तुम धीरे-धीरे समाज में प्रचलित कथनों, विचारों और दृष्टिकोणों के उकसावे, बहकावे और प्रभाव में आने लगोगी, और अंत में इनमें समा जाओगी। और भी ठीक से कहें तो, शैतान के विचारों और दृष्टिकोणों द्वारा गुमराह होकर तुम इन्हीं से बँधकर चलने लगोगे, और फिर अनजाने में ही इन्हीं के अनुसार दिल की गहराई से खुद से अपेक्षाएँ करोगे और दूसरों को भी देखोगे। इसलिए, तुम्हारे ये विचार और कथन तुम्हारे दिल में गहराई तक जाकर विचार और दृष्टिकोण बना लेंगे, और फिर तुम दैनिक जीवन में इन्हें अपने आचरण और व्यवहार के मानदंड और आधार बना लोगे। शैतान के विभिन्न विचार और दृष्टिकोण इसी ढंग से धीरे-धीरे समाज और समुदाय में आम चलन बन जाते हैं। जैसे-जैसे यह चलन समाज में बढ़ता जाता है और इसके उकसावे और प्रभाव में आने वाली आबादी बढ़ती जाती है तो यह चलन एक तरह की शक्ति बन जाता है। इसके शक्ति बनने पर मानवजाति पूरी तरह इन विचारों और दृष्टिकोणों की गिरफ्त और नियंत्रण में आ जाती है, या दूसरे शब्दों में, वह उनके वश में आ जाती है। ज्यादा सटीक रूप से कहें तो लोगों को शैतान ने बंधक बना लिया है। उदाहरण के लिए, शैतान की दुनिया में, “पुरुषों को मर्दाना, सख्त और महत्वाकांक्षी होना चाहिए,” “पुरुषों में दूरगामी महत्वाकांक्षाएँ, सपने और अदम्य भावना होनी चाहिए,” “पुरुषों को खुद को उन्नत करना चाहिए, अपने परिवार में व्यवस्था बनाए रखनी चाहिए, राष्ट्र का संचालन करना चाहिए और सभी में शांति लानी चाहिए,” “पुरुषों को शक्ति का उपयोग करना, स्थिति पर नियंत्रण रखना और दुनिया पर हावी होना सीखना चाहिए,” “पुरुष आसानी से आँसू नहीं बहाते,” इत्यादि। प्रत्येक मनुष्य प्रारंभ से ही इन अपेक्षाओं, विचारों और दृष्टिकोणों से बँधा हुआ है। महिला-पुरुष दोनों ही पारंपरिक संस्कृति के विभिन्न कहावतों से नियंत्रित और बँधे होते हैं। अगर पुरुष यह नहीं जानते कि किसी पुरुष को कैसे कार्य करना चाहिए, या अपने समुदाय, समाज या देश में खुद को कैसे स्थापित करना चाहिए, तो वे इन विचारों और दृष्टिकोणों को सुनकर अनजाने में ही इन्हें स्वीकार लेंगे। वे धीरे-धीरे इनके आदी बनते जाएँगे और फिर एक दिन इन्हें खुद से सख्त माँग करने के मानदंड और आधार के रूप में अपना लेंगे। इसके अलावा, वे इन विचारों और दृष्टिकोणों को अभ्यास में लाएँगे, हकीकत में ऐसा व्यक्ति होने का अनुभव करेंगे और फिर इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में काम करके एक मिसाल पेश करेंगे। उदाहरण के लिए, पुरुषों को दूरगामी महत्वाकांक्षाएँ रखनी चाहिए, बड़े काम करने चाहिए और बड़ा करियर बनाना चाहिए। उन्हें प्रेमपूर्ण रिश्ते नहीं रखने चाहिए, न ही अपने माता-पिता का सहारा बनने या बच्चों का पालन-पोषण करने को अपनी जीवन भर की जिम्मेदारी या लक्ष्य बनाना चाहिए। बल्कि, उन्हें अपने क्षितिज का विस्तार करना चाहिए, अपनी आकांक्षाओं का अनुसरण करना चाहिए, स्थिति को नियंत्रित करना सीखना चाहिए, यहाँ तक कि मानवजाति और महिलाओं को नियंत्रित करने की शक्ति भी हासिल करनी चाहिए। लोग इन विचारों और दृष्टिकोणों को स्वीकार चुके हैं; वे अपने जीवन में इनके अनुसार अभ्यास कर और जी रहे हैं, और इनके द्वारा अपेक्षित लक्ष्यों का अनुसरण कर रहे हैं। इसके अलावा, जब ये विचार और दृष्टिकोण निर्मित होकर लोगों के दिलों में गहराई से जड़ें जमा लेते हैं, तो वे मानवजाति, समाज और पूरी दुनिया को इनके माध्यम से देखते हैं। जब ये मनुष्य के हृदय में इतनी गहरी जड़ें जमा लेते हैं कि इन्हें उखाड़ा नहीं जा सकता, तो वह “पुरुषों को मर्दाना और सख्त होना चाहिए” जैसे विचारों और दृष्टिकोणों के अनुसार ही लोगों और चीजों को देखता है और आचरण और कार्य करता है। पुरुषों की विश्व-दृष्टि और जीवन-दृष्टि का उद्गम और मूल कारण यही है। जब पुरुष शैतान के बैठाए विचारों और दृष्टिकोणों के अनुसार लोगों और चीजों को देखते हैं और आचरण और कार्य करते हैं, तो ये विचार और दृष्टिकोण अलक्षित रूप से लोगों और समाज में फैल जाते हैं, और धीरे-धीरे हर व्यक्ति के दिल में गहरे पैठ जाते हैं—पुरुषों के ही नहीं, बल्कि महिलाओं के दिल में भी। जब ये चीजें हर व्यक्ति के दिल में गहरे पैठ जाती हैं, यहाँ तक कि उन छोटे बच्चों के दिलों में भी बैठा दी जाती हैं जो अभी बोलना सीख रहे होते हैं, तो ये विचार और दृष्टिकोण समुदाय और समाज में आम प्रथा बन जाते हैं। यह प्रथा तब तक ज्यादा से ज्यादा तेजी से फैलती जाएगी और ज्यादा से ज्यादा व्यापक होती जाएगी, जब तक कि सभी इसे अच्छी तरह से नहीं जान जाते, और इसे शत-प्रतिशत मान्यता और स्वीकृति नहीं दे देते। जब चीजें इस चरण तक आगे बढ़ जाती हैं, तो समाजशास्त्री, राजनेता और राष्ट्राध्यक्ष, या ज्यादा सटीक रूप से कहें तो शैतान का अनुसरण करने वाले दुष्ट राजा मानवजाति के बीच इन विचारों और कथनों की स्थिति मजबूत करने के लिए आगे बढ़ते हैं। वे इन चीजों को लिख डालते हैं, और तमाम तरह के परिस्थितिजन्य साक्ष्यों, अनुकूल परिस्थितियों, लोगों, घटनाओं और चीजों का उपयोग करके व्यवस्थित रूप से इन कथनों को व्यापक रूप से प्रचारित-प्रसारित कर देते हैं, ताकि ये कथन मानवजाति के बीच फैल कर समाज में एक सामाजिक माहौल और एक निश्चित नैतिक संहिता का निर्माण कर दें। इस नैतिक संहिता के जरिये वे लोगों को नियंत्रित और बाध्य कर देते हैं और इस बिंदु पर शैतान का लक्ष्य हासिल हो जाता है। जब शैतान यह लक्ष्य हासिल कर लेता है, तो इन विचारों और दृष्टिकोणों से महिला-पुरुष समेत पूरी मानवजाति को गुमराह कर भ्रष्ट और वश में कर लिया जाता है। क्या तुम लोग जानते हो कि जब शैतान के विचारों और दृष्टिकोणों से मानवजाति को गुमराह कर भ्रष्ट और वश में किया जाता है, तो क्या दुष्परिणाम निकलते हैं? तुम लोगों को क्या लगता है कि शैतान इन विचारों, कथनों, पाखंडों और भ्रांतियों को सामने क्यों रखता है? क्या यह सिर्फ मानवजाति को भ्रष्ट करने के लिए है? क्या यह सिर्फ लोगों को छीनने के लिए है? इन सबका निशाना कौन है? (परमेश्वर।) सही है, तुम लोगों को इस बारे में स्पष्ट होना होगा। शैतान द्वारा की जाने वाली तमाम बुरी चीजों में, और खास तौर से उन तमाम चीजों में जो शैतान मानवजाति को गुमराह करने, बाधित करने, नियंत्रित करने और भ्रष्ट करने के लिए करता है, लोग सिर्फ सेवा में काम आने वाली चीजें और साधन होते हैं। वे सिर्फ ऐसे पात्र होते हैं जिनका उपयोग शैतान अपनी तमाम क्षमताएँ और कौशल काम में लाने के लिए करता है। शैतान जो कुछ भी करता है उसके निशाने पर लोगों के बजाय परमेश्वर होता है। वह परमेश्वर का विरोध करना चाहता है और लोग सिर्फ ऐसे पात्र या साधन होते हैं जिनका उपयोग वह ऐसा करने के लिए करता है। तो, शैतान परमेश्वर से क्यों लड़ना चाहता है? वह मानवजाति को इस तरह भ्रष्ट क्यों करना चाहता है? ऐसा इसलिए है, क्योंकि मानवजाति की रचना परमेश्वर ने की है और वह इसे बचाना चाहता है। शैतान जानवरों, पौधों या दूसरे ग्रहों के वासियों को भ्रष्ट क्यों नहीं करता? क्योंकि परमेश्वर जानवरों, पौधों या दूसरे ग्रहों के वासियों, या किसी मनुष्येतर प्राणी को बचाने की कोशिश नहीं करता। परमेश्वर मनुष्यों को बचाने का प्रयास करता है, जिन्हें उसने इस पृथ्वी पर सृजित किया है। वह पृथ्वी पर मनुष्यों के इस समूह को प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है। कैसे मनुष्यों को? उन मनुष्यों के समूह को, जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं और मृत्यु तक उसके वफादार रहते हैं, जो परमेश्वर के साथ एक दिल और एक दिमाग वाले हैं, और जो परमेश्वर का भय मानते हैं और बुराई से दूर रहते हैं। यही वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर प्राप्त करना चाहता है। इससे पहले कि परमेश्वर इन लोगों को बचाकर प्राप्त करने का अपना कार्य करे, शैतान उन्हें भ्रष्ट करने की कोशिश कर बाजी मार लेना चाहता है। शैतान कहता है, “परमेश्वर, क्या तुम मानवजाति को बचाना चाहते हो? तो मैं पहले ही उसे भ्रष्ट कर दूँगा। जब लोग इस हद तक भ्रष्ट हो जाएँगे कि वे मानव के बजाय पूरी तरह से दानव हो जाएँगे, तो तुम उन्हें नहीं बचा पाओगे। तुम सफल नहीं हो पाओगे, और अंत में असफल हो जाओगे।” शैतान का लक्ष्य यही है। अब उस प्रश्न पर वापस आते हैं, जो मैंने पहले पूछा था। जब शैतान मानव-स्वभाव को भ्रष्ट करता है, और मानव-मन और हृदय को गुमराह करने, पंगु बनाने और नियंत्रित करने के लिए विभिन्न पाखंड और भ्रांतियाँ और तमाम तरह के विचार और दृष्टिकोण भी सामने रखता है, तो उसका उद्देश्य क्या होता है? तुम लोग इसका उत्तर नहीं दे सकते; तुम लोग इसे नहीं समझते। जब शैतान यह सब करता है तो वह लोगों को निशाना नहीं बना रहा होता, भले ही वे लोग ही होते हैं जिन्हें वह भ्रष्ट और नियंत्रित करता है। बल्कि, इस सब के निशाने पर परमेश्वर ही होता है। लोगों को भ्रष्ट करने का शैतान का अंतिम लक्ष्य या परिणाम क्या होता है? यही कि लोगों को परमेश्वर के विरोध में खड़ा करना। जब लोग परमेश्वर के पूर्ण विरोधी और उसके शत्रु बन जाते हैं तो शैतान मानता है कि उसकी साजिश और स्वार्थी गणनाएँ सफल हो जाएँगी, और पृथ्वी पर लोग उसकी आराधना और अनुसरण करेंगे। इसलिए, जब शैतान के विभिन्न विचार, कथन, पाखंड और भ्रांतियाँ लोगों के दिलों में गहरी जड़ें जमा लेती हैं, तो वे फिर कभी नहीं मानेंगे कि परमेश्वर का अस्तित्व है, या उसके आयोजन और व्यवस्थाएँ, या उसकी संप्रभुता नहीं स्वीकारेंगे। लोग परमेश्वर को पूरी तरह से नकार देंगे और उसके साथ विश्वासघात करेंगे। शैतान सोचता है कि लोगों को इस हद तक भ्रष्ट करना पर्याप्त है कि वे परमेश्वर को नकार सकें। क्यों? क्योंकि उस समय, जिन लोगों को परमेश्वर बचाना चाहता है, शैतान उन्हें पूरी तरह से बंदी बनाकर उन पर कब्जा कर लेगा, और वे पूरी तरह से परमेश्वर के विरोधी बन जाएँगे, और पूरी तरह से और सरासर परमेश्वर के विरोधी बन जाएँगे। यही शैतान का उद्देश्य है। क्या यह सच है कि तुम लोगों ने इस बारे में पहले कभी नहीं सोचा? (हाँ।) तुम लोग नहीं समझते। लोग सोचते हैं, “शैतान हमें पकड़ने, फँसाने, हमें नुकसान पहुँचाने, हमें मरने देने, हमें नरक में भेजने और हमें परमेश्वर के उद्धार और जीवन में सही मार्ग से दूर रखने के लिए भ्रष्ट करता है। शैतान हमें कष्ट सहने को मजबूर करता है।” यह इसका एक हिस्सा है, लेकिन यह सिर्फ एक वस्तुनिष्ठ प्रभाव है जो शैतान के हर काम से उत्प्रेरित होता है, और यह वास्तव में अंतर्निहित लक्ष्य नहीं है। क्या तुम लोग अब समझ गए हो कि अंतर्निहित लक्ष्य क्या है? मुझे बताओ, शैतान लोगों के दिमाग को गुमराह क्यों करता है, उसे नियंत्रित और कैद क्यों करता है? (शैतान जो कुछ भी करता है, उसका निशाना परमेश्वर होता है, और उसका अंतर्निहित लक्ष्य सभी लोगों को परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा करना है।) और कुछ? (चूँकि परमेश्वर मनुष्यों को बचाना चाहता है, इसलिए शैतान उन्हें भ्रष्ट कर परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा कर देना चाहता है, ताकि वे परमेश्वर का उद्धार प्राप्त न कर पाएँ। शैतान मानवजाति को बचाने की परमेश्वर की प्रबंधन योजना नष्ट करना चाहता है।) शैतान लोगों के मन में तमाम तरह के पाखंड और भ्रांतियाँ बैठाता है, और जब ये गलत विचार और दृष्टिकोण, पाखंड और भ्रांतियाँ लोगों के दिलों में गहरी जड़ें जमा लेती हैं, तो वे उनके दिमाग को नियंत्रित और कैद कर लेती हैं। इससे एक विशेष स्थिति उत्पन्न होती है। कैसी स्थिति? ऐसी स्थिति जिसमें परमेश्वर का विरोध पूरी तरह से निर्मित हो जाता है, मानवजाति परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से शत्रुतापूर्ण शक्ति बन जाती है, और शैतान खुश होता है। यही वह लक्ष्य है जिसे शैतान हासिल करने की कोशिश कर रहा है। यह सब करने में शैतान का क्या उद्देश्य है? इसका सार एक वाक्य में बताओ। (शैतान लोगों के मन में हर तरह के पाखंड और भ्रांतियाँ बैठाता है, और जब ये गलत विचार और दृष्टिकोण, पाखंड और भ्रांतियाँ लोगों के दिलों में गहरी जड़ें जमा लेती हैं, तो एक ऐसी स्थिति बन जाती है जिसमें परमेश्वर का विरोध पूरी तरह से निर्मित हो जाता है, और मनुष्य ऐसे लोग बन जाते हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं। वे परमेश्वर के दुश्मन बन जाते हैं और शैतान अपना लक्ष्य हासिल कर लेता है।) यही है उत्तर—क्या यह आसान नहीं है? (हाँ, है।) यही वह लक्ष्य और परिणाम है जिसे शैतान मानवजाति को भ्रष्ट करके प्राप्त करना चाहता है।
क्या तुम लोगों को लगता है कि परमेश्वर उन चीजों के बारे में जानता है, जो शैतान मानवजाति को भ्रष्ट करने के लिए करता है? (हाँ।) तो फिर परमेश्वर शैतान को ऐसा करने क्यों देता है? इसे स्पष्ट करने के लिए तुम लोग सत्य के बारे में जो समझते हो, उसका उपयोग करो। क्या इसके बारे में एक कहावत नहीं है? “परमेश्वर की बुद्धि का प्रयोग शैतान की चालबाजी के आधार पर किया जाता है।” यह इस कहावत के सच होने का उदाहरण है, है न? (हाँ।) साथ ही, क्या “शैतान परमेश्वर के कार्य में विषमता और सेवा की वस्तु है” वाक्यांश यहाँ लागू होता है? (हाँ।) ये दोनों कहावतें प्रासंगिक हैं और ऊपर दिए गए प्रश्न को समझाने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं। क्या यह सही नहीं है? (हाँ, है।) ऐसा ही है। अगर कोई यह सवाल उठाए, तो तुम उसे कैसे समझाओगे? अगर तुम अस्पष्ट रूप से बस यह कहते हो, “परमेश्वर की बुद्धि का प्रयोग शैतान की चालबाजी के आधार पर किया जाता है,” तो वे भ्रमित हो जाएँगे और समझ नहीं पाएँगे। क्या तुम लोग जानते हो कि इसे ज्यादा विस्तार से कैसे समझाया जाए? यह समझाना आसान है, है न? परमेश्वर शैतान को मानवजाति को भ्रष्ट करने वाली चीजें इसलिए नहीं करने देता कि परमेश्वर उन्हें रोकने या उन पर ध्यान देने में असमर्थ है, बल्कि एक कारण से करने देता है। वह कारण यह है कि, जैसा कि मैंने पहले कहा था, “परमेश्वर की बुद्धि का प्रयोग शैतान की चालबाजी के आधार पर किया जाता है।” यह कोई कथन या सिद्धांत नहीं, बल्कि एक निर्विवाद सत्य है, जिसे इस तथ्य से सत्यापित किया जा सकता है कि शैतान द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट करने के बाद परमेश्वर उसे बचा सकता है। मानव-स्वभावों को भ्रष्ट करने और लोगों के मन को नियंत्रित और कैद करने के लिए उनके मन में तमाम तरह के पाखंड और भ्रांतियाँ बैठाने में शैतान का क्या उद्देश्य है? क्या उसका अंतिम लक्ष्य परमेश्वर के कार्य को दबाना और उसकी प्रबंधन योजना को हवा में उड़ा देना है? क्या यह शैतान की चालबाजी है? (हाँ।) यह शैतान की चालबाजी है। जब शैतान ऐसी चालें चलता है, तो परमेश्वर क्या सोचता है? परमेश्वर क्या करता है? उसके मन में क्या होता है? इस सब में उसकी बुद्धि कैसे प्रकट होती है? परमेश्वर शैतान की चालबाजी का उपयोग करता है। शैतान की एक चाल है। वह कहता है, “मैं लोगों को तब तक उकसाता और भ्रष्ट करता हूँ, जब तक वे मेरे जैसे नहीं हो जाते। वे छोटे-मोटे शैतान बन जाते हैं जो मेरे विचार और दृष्टिकोण साझा करते हैं, मेरे शैतानी दृष्टिकोण के अनुसार लोगों और चीजों को देखते हैं, आचरण और कार्य करते हैं, और परमेश्वर के विरोधी हो जाते हैं। मैं परमेश्वर द्वारा सृजित तमाम लोगों को लेकर उन्हें अपना, शैतान का, बना देना चाहता हूँ, ताकि लोगों में परमेश्वर का कार्य व्यर्थ और बेकार हो जाए। निश्चित रूप से इससे परमेश्वर की प्रबंधन योजना हवा में उड़ जाएगी।” क्या यह शैतान की चाल है? (हाँ।) तो फिर परमेश्वर क्या सोचता है? और वह क्या करता है? परमेश्वर कहता है, “शैतान, तू लोगों को परेशान करने और गुमराह करने के लिए पाखंड और भ्रांतियाँ फैलाता है, और परमेश्वर के कार्य को बाधित और नष्ट करने के लिए कई चीजें करता है। इससे लोगों में सिर्फ कुछ पाखंड और भ्रांतियाँ पैदा होंगी, ताकि वे उनके अनुसार जिएँ और परमेश्वर का विरोध करें। तब मैं अपने वचनों और कार्य को मानवजाति की भ्रष्टता पर आधारित करूँगा, उन पाखंडों और भ्रांतियों को उजागर करूँगा जिनका उपयोग तुम मानवजाति को भ्रष्ट करने के लिए करते हो, लोगों के विभिन्न भ्रष्ट स्वभावों का न्याय करूँगा और लोगों को तुम्हारे द्वारा उनके मन में बैठाए गए विभिन्न विचारों और कथनों की पहचान करने दूँगा। इस तरह, न सिर्फ लोग सत्य और परमेश्वर को समझेंगे, बल्कि वे शैतान के विभिन्न कथनों, विचारों और दृष्टिकोणों का पता भी लगा पाएँगे और शैतान के स्वभाव, सार और विभिन्न बुरे कर्मों की असलियत भी जान लेंगे। सत्य की समझ को अपनी नींव के रूप में इस्तेमाल करके लोग शैतान को ज्यादा सटीकता से और ज्यादा ताकत के साथ पहचान और नकार पाएँगे। नकार के पहलू से, लोग अब शैतान द्वारा गुमराह नहीं होंगे या उसके द्वारा दूसरी बार बंदी नहीं बनाए जाएँगे और निगले नहीं जाएँगे। सकारात्मक पहलू से, वे परमेश्वर के अस्तित्व और उसकी पहचान पर, और इस तथ्य पर कि वह सभी प्राणियों और चीजों पर प्रभुत्व रखता है, विश्वास करने और इसकी पुष्टि करने में ज्यादा सक्षम होंगे। ये दो चीजें हासिल हो जाने के बाद, उनमें परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय जागेगा और वे सच्चे मन से परमेश्वर को समर्पित होंगे। परमेश्वर उनके दिल जीत लेगा, या, ज्यादा सटीक रूप से कहें तो परमेश्वर उन्हें प्राप्त कर लेगा। जब लोग इस स्तर पर पहुँच जाएँगे, तो वे शैतान द्वारा फिर कभी गुमराह नहीं होंगे और वह उनका उपयोग नहीं कर सकेगा। बल्कि, वे शैतान का पूरी तरह से पता लगाने, उसे समझने और उसे अपने दिल की गहराई से नकारने में सक्षम होंगे। वे स्वीकारेंगे कि वे परमेश्वर के सृजित प्राणी हैं, स्वेच्छा से सृष्टिकर्ता की संप्रभुता और उसके आयोजन स्वीकारेंगे, और इस प्रकार पूरी तरह से परमेश्वर के पास लौट आएँगे।” परमेश्वर की विशिष्ट व्यवस्था और योजना यही है। निस्संदेह, यह भी कहा जा सकता है कि यह वह विचार और भाव है, जो परमेश्वर के हृदय की गहराई में है। परमेश्वर इसी तरह सोचता है, उसके विचार इसी तरह काम करते हैं, और उसने इसे इसी तरह आयोजित किया है। जबकि शैतान लोगों को गुमराह कर भ्रष्ट करता आ रहा है, तो परमेश्वर समस्त प्राणियों और चीजों को क्रमबद्ध ढंग से व्यवस्थित करता आ रहा है, और अपनी योजना और प्रबंधन को अब तक लगातार संगठित तरीके से कदम-दर-कदम आगे बढ़ाता आ रहा है। शैतान ने मानवजाति को पूरी तरह से भ्रष्ट कर उस पर कब्जा कर लिया है। लेकिन, यह एक निर्विवाद तथ्य है कि शैतान के तमाम तरह के जहरों से ओतप्रोत और भरी हुई यह मानवजाति जब परमेश्वर द्वारा बुलाई जाती है और उसकी आवाज सुनती है, तो वह अभी भी परमेश्वर के सामने आ सकती है, उसका आह्वान स्वीकार कर सकती है, और उसका न्याय और ताड़ना प्राप्त करने के लिए तैयार हो सकती है। भले ही परमेश्वर ऐसी मानवजाति की शैतान जैसी और अपनी शत्रु होने के कारण निंदा करे और उसे शाप दे, फिर भी वह उसे कभी नहीं छोड़ेगी। भले ही लोगों के विचार और दृष्टिकोण उन चीजों से भरे हुए हैं जो शैतान ने उनमें डाले हैं, जिससे वे अभी भी शैतान के विचारों और दृष्टिकोणों से गहरे प्रभावित और नियंत्रित होकर लोगों और चीजों को देखते हैं, आचरण और कार्य करते हैं, फिर भी उनके दिल ज्यादा से ज्यादा ईमानदारी और तत्परता से परमेश्वर की ओर मुड़ रहे हैं। क्या यह एक निर्विवाद तथ्य नहीं है? (हाँ, है।) यही नहीं, निकट भविष्य में जब परमेश्वर शैतान के समस्त दुष्कर्म उजागर कर देगा, तो शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट की जा चुकी यह मानवजाति शैतान को पूरी तरह से त्यागने, उसे “ना” कहने और अपना दिल परमेश्वर को लौटाने में सक्षम होगी। वे सभी परमेश्वर की संप्रभुता, आयोजनों और व्यवस्थाओं के अनुसार दृढ़ता से उसका अनुसरण करने के लिए तैयार होंगे। परमेश्वर के महान कार्य के सफल समापन की यही दिशा है, है न? (हाँ।) खासकर इस बारे में संगति करने के बाद कि सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है, और भी ज्यादा लोगों में यह संकल्प होगा कि वे परमेश्वर के वचनों के अनुसार, सत्य को अपनी कसौटी मानकर लोगों और चीजों को देखेंगे और आचरण और कार्य करेंगे। चाहे लोगों का संकल्प मजबूत हो या कमजोर, या उन्होंने इस वास्तविकता में प्रवेश किया हो या नहीं—जो भी हो, यह तथ्य कि ऐसी मानवजाति में, जो शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट की जा चुकी है, उसे त्यागने और शैतान द्वारा उसमें डाले गए विभिन्न विचारों और दृष्टिकोणों के बजाय सत्य को अपनी कसौटी मानते हुए परमेश्वर के वचनों के अनुसार लोगों और चीजों को देखने और आचरण और कार्य करने का संकल्प है, अपने आप में इस बात का संकेत है कि परमेश्वर पहले ही जीत चुका है। तो शैतान पहले ही अपमानित हो चुका है, है न? (हाँ।) इसलिए, यह कहावत कि “परमेश्वर की बुद्धि का प्रयोग शैतान की चालबाजी के आधार पर किया जाता है,” खोखला शब्द नहीं है, बल्कि एक व्यावहारिक, वस्तुनिष्ठ और निर्विवाद तथ्य है। शैतान जो भी बुराई कर रहा है, वह उस बिंदु तक पहुँच गई है, जहाँ वह मानवता को गुमराह कर नियंत्रित कर रही है। उसका मानना है कि उसने परमेश्वर के कार्य को बाधित और नष्ट कर दिया है और परमेश्वर के लिए अपनी प्रबंधन योजना जारी रखना असंभव है। इसलिए, शैतान सोचता है कि वह जीत गया है। लेकिन शैतान मानवजाति को बचाने की परमेश्वर की प्रबंधन योजना की गति धीमी नहीं कर सकता, चाहे वह कितना भी उतावला क्यों न हो जाए, न ही वह परमेश्वर की प्रबंधन योजना की शानदार सफलता और शैतान पर विजय रोक सकता है। अब परमेश्वर का कार्य पूरे ब्रह्मांड में फैल चुका है और परमेश्वर के वचन लाखों घरों तक फैल चुके हैं। यह परमेश्वर की शानदार सफलता का प्रमाण है।
अगर कोई तुम लोगों से दोबारा पूछे, “शैतान लोगों के दिमाग को गुमराह क्यों करता है, नियंत्रित और कैद क्यों करता है? परमेश्वर शैतान को ऐसा क्यों करने देता है?” तो क्या तुम लोग इन सवालों का जवाब दे पाओगे? भले ही तुम इसे पूरी तरह से न समझा पाओ, फिर भी तुम कम से कम अपनी कुछ समझ तो साझा कर ही सकते हो। शैतान यह सब क्यों कर रहा है? परमेश्वर द्वारा उसे यह सब करने देने का क्या महत्व है? तुम्हें इन चीजों पर विचार करना चाहिए और तुम्हारे हृदय में इसका सटीक उत्तर होना चाहिए। परमेश्वर मानवजाति को बचाने के लिए छह हजार वर्षों से काम कर रहा है। कुछ लोग इसे नहीं समझते और कहते हैं, “परमेश्वर छह हजार वर्षों से कार्य कर रहा है? क्या यह बहुत लंबा समय नहीं है?” चाहे परमेश्वर के कार्य में कितना भी समय लगे, उसके समस्त क्रियाकलाप बेहद अहम हैं। न सिर्फ उसके कार्य की अवधि अहम है; उसके कार्य द्वारा प्राप्त अंतिम परिणाम और भी ज्यादा अहम है। अगर यह तथ्य न होता कि परमेश्वर मानवता को बचाने के लिए छह हजार वर्षों से काम कर रहा है, तो मानवजाति की संवेदनशून्यता और मंदबुद्धि उसे परमेश्वर को जानने या उसके द्वारा पूरी तरह से बचाए जाने से रोक देती। क्या लोग मसीह-विरोधियों को पहचानने और उनका प्रकृति सार जानने में सक्षम होंगे, अगर उन्होंने सिर्फ एक-दो बार ही मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और बाधित किए जाने का अनुभव किया हो? क्या चार-पाँच बार अनुभव करना पर्याप्त होगा? मुझे नहीं लगता। लोगों को इसे तब तक कई बार अनुभव करना होगा, जब तक कि वे मसीह-विरोधियों का प्रकृति-सार पूरी तरह से नहीं देख लेते। सिर्फ तभी वे वास्तव में मसीह-विरोधियों को पहचानकर उन्हें पूरी तरह से त्याग सकते हैं। खास तौर से, अगर लोगों को बहुत कम समय के लिए बड़े लाल अजगर के उन्मत्त दमन और क्रूर उत्पीड़न का सामना करना पड़े, तो वे उसे पूरी तरह से अनुभव नहीं कर पाएँगे और जल्दी ही भूल जाएँगे। लिहाजा वे बड़े लाल अजगर से सचमुच नफरत कर उसे नकारेंगे नहीं। शैतान का क्रूर उत्पीड़न एक छापे की तरह लोगों के दिलों में दागा जाना चाहिए, ताकि वे अपने दिल की गहराई से उससे नफरत कर सकें और उसका असली चेहरा स्पष्ट रूप से देख सकें। अगर किसी व्यक्ति को सिर्फ एक-दो बार थोड़े समय के लिए सताया गया है, तो उसके लिए शैतान से नफरत कर उसके खिलाफ विद्रोह करना कठिन होगा। अवसर मिलने पर वह अभी भी शैतान के बारे में अच्छा बोलेगा और उसकी प्रशंसा के गीत गाएगा। कोई व्यक्ति शैतान को कई बार सौंपा जाना चाहिए, ताकि वह उसकी यातना और क्रूरता से पीड़ित हो, तभी वह शैतान की बुराई, कुरूपता, नीचता और निर्लज्जता स्पष्ट रूप से देखकर उसे पूरी तरह से त्याग पाएगा। ये चीजें पूरी तरह से लंबे समय तक अनुभव की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए, इस्पात-निर्माण में, आग में थोड़े समय के लिए डालने पर अच्छा इस्पात तैयार नहीं किया जा सकता; सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए इस्पात को पूरी तरह से बार-बार गर्म और ठंडा किया जाना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि परमेश्वर के कार्य के प्रत्येक चरण को लंबा समय चाहिए; हर चरण एक लंबी अवधि की माँग करता है। इसे इसी तरह किया जाना चाहिए; वरना अच्छा परिणाम प्राप्त नहीं किया जा सकता। प्रत्येक युग की बड़ी परिस्थितियों के प्रभाव के कारण मानव-हृदय की गहराई में और मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव में अलग-अलग स्तर के बदलाव होंगे, और इनमें से प्रत्येक बदलाव उस कार्य से संबंधित होगा, जो परमेश्वर प्रत्येक चरण में लोगों में करना चाहता है। अंत के दिनों में इतने बड़े पैमाने पर काम करने और इतना कुछ बोलने के लिए परमेश्वर के फिर से देहधारण करने का कारण यह है कि इस अंतिम चरण में मनुष्य का भ्रष्ट स्वभाव, उसके विचार और दृष्टिकोण, और समाज का व्यापक परिवेश और पृष्ठभूमि, सभी उस कार्य की पृष्ठभूमि में उपयुक्त बैठते हैं, जो परमेश्वर अंत के दिनों में करना चाहता है। समाज के रुझान, रीति-रिवाज, प्रतिमान या स्थितियाँ, राजनीतिक स्थिति, यहाँ तक कि शैतानी राष्ट्रों की राजनीतिक शक्ति भी, सभी बड़े परिवेश के कारक हैं। ऐसे समय में, जबकि ये कारक पृष्ठभूमि में हैं, लोगों का आंतरिक परिदृश्य और भ्रष्ट स्वभाव, अर्थात् संपूर्ण मानवजाति की आंतरिक अवस्था ठीक वैसी ही है, जैसी परमेश्वर को अपने कार्य के लिए चाहिए। यह परमेश्वर के लिए अपना प्रताप, धार्मिकता, दया और करुणा प्रकट करने के लिए अपना न्याय और ताड़ना प्रारंभ करने का सबसे उपयुक्त समय है। जब ये सभी कारक परिपक्व होकर पूरी तरह से तैयार हो जाते हैं, तो परमेश्वर अपना कार्य शुरू करता है। यह वह कार्य है, जिसे परमेश्वर व्यापक पृष्ठभूमि के प्रभाव में करना चाहता है। तुम लोगों के लिए यह समझना ही काफी है। अच्छी क्षमता वाले कुछ लोग समझ जाएँगे, जबकि अन्य जो अनुभवी नहीं हैं, शायद न समझ पाएँ। खास तौर पर, जो लोग राजनीतिक स्थिति और समाज के रुझानों का सार नहीं समझ सकते, और जिनकी सोच पर्याप्त परिपक्व नहीं हैं, वे छोटे आध्यात्मिक अनुभवों और छोटी गवाहियों से ही संतुष्ट रहते हैं, और वे शायद परमेश्वर के कार्य में शामिल व्यापक राजनीतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि के बारे में ज्यादा न समझ पाएँ। यह मायने नहीं रखता कि तुम लोग इन चीजों को कितना समझ पाते हो; जैसे-जैसे तुम धीरे-धीरे उनका ज्यादा अनुभव लोगे, वे स्पष्ट होती जाएँगी, क्योंकि उनमें परमेश्वर की प्रबंधन योजना और परमेश्वर का कार्य शामिल है, जो एक महान परिकल्पना है। हम इस विषय पर ज्यादा संगति नहीं करेंगे, क्योंकि तुम लोग ज्यादा गहराई में जाने के लिए तैयार नहीं हो।
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