सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (14) भाग चार

“अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” इस नैतिक कथन का एक और पहलू है जिसे समझने की जरूरत है। यदि तुम्‍हें सौंपा गया कार्य तुम्‍हारा बहुत ज्‍यादा समय और ऊर्जा नहीं लेता, और तुम्‍हारी क्षमता में है, या यदि तुम्‍हारे पास सही माहौल और परिस्थितियाँ हैं, तो मानवीय विवेक और तर्क से, जहाँ तक तुम्हारी क्षमता है, उतना तुम दूसरों के लिए कुछ चीजें कर सकते हो और उनकी तार्किक और उचित माँगों को पूरा कर सकते हो। लेकिन, यदि तुम्‍हें सौंपा गया कार्य तुम्‍हारा अत्‍यधिक समय और ऊर्जा लेता है, और उसमें तुम्‍हारा बहुत सारा समय खप जाता है, इस हद तक कि तुम्‍हें अपने जीवन का और इस जीवन में अपने कर्तव्‍यों और दायित्‍वों का बलिदान देना पड़ता है और एक सृजित प्राणी के रूप में तुम अपना कर्तव्य बिल्कुल नहीं निभा पाते और उन्हें तुम्हारे बदले किसी और को दे दिया जाता है तो तुम क्‍या करोगे? तुम्‍हें मना कर देना चाहिए क्योंकि वह तुम्‍हारी जि‍म्मेदारी या दायित्व नहीं है। जहाँ तक किसी व्यक्ति के जीवन की जिम्मेदारियों और दायित्वों का सवाल है, तो माता-पिता की देखभाल, बच्चों के पालन-पोषण और समाज में कानून के दायरे में रहते हुए सामाजिक जिम्मेदारियों को पूर्ण करने के अलावा, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी व्यक्ति की ऊर्जा, समय और जीवन, एक सृजित प्राणी के कर्तव्य करने में खर्च होनी चाहिए, न कि किसी अन्य व्‍यक्ति द्वारा सौंपे गए ऐसे कार्य में जो उसका समय और ऊर्जा ले लेता हो। ऐसा इसलिए कि परमेश्वर व्यक्ति का सृजन करता है, उसे जीवन प्रदान करता है, और उसे इस दुनिया में लाता है, इसलिए नहीं कि वह दूसरों के लिए काम करे और उनकी जिम्मेदारियों को पूरा करे। लोगों को सबसे अधिक परमेश्वर द्वारा सौंपे कार्य को स्‍वीकार करना चाहिए। केवल परमेश्वर द्वारा सौंपा कार्य ही सच्चा होता है, और मनुष्य द्वारा सौंपा कार्य स्वीकार करने का अर्थ अपने समुचित कर्तव्यों का पालन न करना है। कोई भी तुमसे यह कहने के योग्य नहीं है कि तुम अपनी वफादारी, ऊर्जा, समय, या यहाँ तक कि अपनी युवावस्‍था और संपूर्ण जीवन उनके द्वारा सौंपे गए कार्यों को समर्पित करो। केवल परमेश्वर ही लोगों से एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य करने को कहने का अधिकारी है। ऐसा क्यों? यदि तुम्‍हें सौंपे गए किसी भी कार्य में तुम्‍हें काफी समय और ऊर्जा खपानी पड़ती है, तो वह तुम्‍हें एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य करने और यहाँ तक कि जीवन में सही मार्ग पर चलने में भी रुकावट पैदा करेगा। वह तुम्‍हारे जीवन की दिशा और लक्ष्य बदल देगा। यह कोई अच्छी बात नहीं है, बल्कि अभिशाप है। यदि वह तुम्‍हारा काफी समय और ऊर्जा ले लेता है, और यहाँ तक कि तुमसे तुम्‍हारा यौवन भी छीन लेता है, तुम्‍हें सत्य और जीवन प्राप्त करने के अवसरों से वंचित कर देता है, तो इस प्रकृति का सौंपा गया हर कार्य शैतान की ओर से आता है, किसी व्यक्ति मात्र से नहीं। यह मामले को समझने का एक अन्‍य तरीका है। यदि कोई तुम्‍हें ऐसा कार्य सौंपता है जिसमें तुम्‍हारे बहुत सारे समय तथा ऊर्जा का व्‍यय और बरबादी होती है, और यहाँ तक कि तुम्‍हें अपनी युवावस्‍था और अपने संपूर्ण जीवन का बलिदान देना पड़ता है, वह समय भी खप जाता है जो तुम्‍हें एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य करने में व्यतीत करना चाहिए, तो न केवल वह व्यक्ति तुम्‍हारा मित्र नहीं है, बल्कि उसे तुम्‍हारा दुश्‍मन और शत्रु भी माना जा सकता है। अपने जीवन में, परमेश्वर द्वारा तुम्हें प्रदान किए गए माता-पिता, बच्चों और परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और दायित्वों को पूरा करने के अलावा, तुम्‍हारा सारा समय और ऊर्जा एक सृजित प्राणी के रूप में अपने कर्तव्य करने के लिए समर्पित और उसी में खर्च होने चाहिए। कोई भी तुम्‍हें कोई कार्य सौंपने के बहाने तुम्‍हारा समय और ऊर्जा लेने या छीनने के योग्य नहीं है। यदि तुम इस सलाह पर ध्यान नहीं देते और अपने समय और ऊर्जा का एक बड़ा हिस्‍सा बरबाद करने वाले किसी के द्वारा सौंपे गए कार्य को स्‍वीकार कर लेते हो तो एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य करने के लिए तुम्हें मिलने वाला समय तुलनात्मक रूप से कम हो जाएगा, हो सकता है समय बचे ही न, पूरा समय दूसरे काम में ही लग जाए। अपना कर्तव्य करने के समय और ऊर्जा न बचने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि सत्य का अनुसरण करने का तुम्‍हारा अवसर कम हो गया है। जब सत्य का अनुसरण करने का अवसर कम हो जाता है, तो क्या इसका मतलब यह भी नहीं है कि तुम्‍हें बचाए जाने की संभावना भी कम हो गई है? (हाँ।) यह तुम्‍हारे लिए आशीर्वाद है या अभिशाप? (एक अभिशाप।) यह निस्संदेह एक अभिशाप है। यह उस लड़की की तरह होना है जिसका एक प्रेमी है, और वह उससे कहता है, “तुम परमेश्वर में विश्वास कर सकती हो, लेकिन जब तक मैं सफल, अमीर और प्रभावशाली नहीं बन जाता, और जब तक मैं तुम्‍हें एक कार, एक घर और एक बड़ी हीरे की अँगूठी खरीदकर नहीं दे पाता, तब तक तुम्हें मेरा इंतजार करना होगा, फिर मैं तुमसे शादी कर लूँगा।” लड़की कहती है, “फिर इन कुछ सालों तक मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं करूँगी या अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करूँगी। सबसे पहले मैं तुम्‍हारे साथ कड़ी मेहनत करूँगी और तुम्‍हारे अमीर होने, अधिकारी बनने, तुम्‍हारी इच्‍छाओं के पूरे होने का इंतजार करूँगी और फिर अपने कर्तव्‍य पूरे करूँगी।” यह लड़की होशियार है या मूर्ख? (मूर्ख।) यह बहुत मूर्ख है! तुमने उसकी सफलता हासिल करने, अमीर और शक्तिशाली बनने तथा धन और प्रसिद्धि पाने में मदद की, लेकिन उस समय की भरपाई कौन करेगा जो तुमने खो दिया? तुमने एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य पूरा नहीं किया है, तो इस नुकसान की भरपाई कौन करेगा; इसका भुगतान कौन करेगा? परमेश्वर पर विश्वास करने के इन कुछ वर्षों में, तुमने वह सत्य प्राप्त नहीं किया है जो तुम्‍हें प्राप्‍त करना चाहिए था, और तुमने वह जीवन भी प्राप्त नहीं किया है जो तुम्‍हें प्राप्‍त करना चाहिए था। इस सत्य और इस जीवन की भरपाई कौन करेगा? कुछ लोग परमेश्वर में तो विश्वास करते हैं लेकिन सत्य का अनुसरण नहीं करते। इसके बजाय, वे अपने कई वर्ष अन्‍य लोगों द्वारा सौंपे गए कार्य, उनकी इच्छा या माँग को पूरा करने में बिताते हैं। अंत में, उन्हें न केवल कुछ भी हासिल नहीं होता बल्कि वे सत्य प्राप्त करने के लिए अपने कर्तव्य करने का अवसर भी चूक जाते हैं। उन्हें परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त नहीं होता; नुकसान बहुत बड़ा है, और कीमत बहुत अधिक! क्या केवल दूसरों का विश्वास तोड़ने से बचने के लिए, इसलिए कि लोग उनके बारे में अच्‍छी बातें कहें, उन्‍हें उच्च नैतिक चरित्र वाला, प्रतिष्ठित और भरोसेमंद व्यक्ति मानें, और सफलतापूर्वक “अन्य लोगों ने उन्‍हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करने के लिए” परमेश्वर में विश्वास करना और एक सृजित प्राणी के कर्तव्य करना छोड़ देना मूर्खतापूर्ण नहीं है? ऐसे लोग भी हैं जो दोनों करने की कोशिश करते हैं, एक तरफ लोगों को संतुष्ट करते हैं और दूसरी ओर कर्तव्‍य निभाने के लिए थोड़ी ऊर्जा भी बचाकर रखते हैं, वे दूसरों को खुश करते हैं लेकिन साथ ही परमेश्वर को भी खुश करना चाहते हैं। अंत में क्या होता है? तुम लोगों को खुश कर सकते हो, लेकिन एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्‍हारा कर्तव्य पूरा नहीं होता, तुम सत्य को बिल्कुल भी नहीं समझ पाते, और बहुत कुछ खो देते हो! यद्यपि तुमने लोगों के लिए चीजों को ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश की है, उन्‍होंने यह कहते हुए तुम्‍हारी प्रशंसा की है कि तुम अपना वचन निभाते हो और कुलीन नैतिक आचरण वाले व्यक्ति हो, लेकिन तुमने परमेश्वर से सत्य प्राप्त नहीं किया है, न ही तुम्हें परमेश्वर का अनुमोदन या स्वीकृति प्राप्त हुई है। ऐसा इसलिए कि लोगों के लिए चीजों को ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करना, वह नहीं है जो परमेश्वर मानवता के लिए चाहता है, न ही यह परमेश्वर द्वारा तुम्‍हें सौंपा गया कोई कार्य है। लोगों के लिए चीजों को ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करना पथ से भटकना है, यह अपने समुचित कर्तव्यों का पालन नहीं करना है, और इसका कोई मोल या महत्व नहीं है। यह याद रखे जाने लायक एक अच्छा कार्य तो बिल्‍कुल भी नहीं है। तुमने अपनी ऊर्जा और समय का एक बड़ा हिस्सा दूसरों के लिए निवेश किया है, और ऐसा करने से न केवल परमेश्वर तुम्‍हें याद नहीं रखता, बल्कि तुमने सत्य का अनुसरण करने का सबसे अच्छा अवसर और एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य करने का कीमती समय भी खो दिया है। जब तक तुम पीछे मुड़कर सत्य का अनुसरण करना और अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से करना चाहते हो, तब तक तुम पहले ही बूढ़े हो चुके होते हो, तुममें ऊर्जा और शारीरिक बल कम हो जाता है और तुम बीमारियों से ग्रस्त हो चुके होते हो। क्या इसका कोई फायदा है? तुम स्वयं को परमेश्वर के लिए कैसे खपा सकते हो? सत्य का अनुसरण करने और एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य करने के लिए बचे हुए समय का उपयोग करना थकाऊ है। तुम्‍हारी शारीरिक शक्ति तुम्हारा साथ नहीं दे पाती, याददाश्त कमजोर हो जाती है और तुममें पहले जितनी ऊर्जा नहीं रहती। तुम्‍हें सभाओं के दौरान अक्सर झपकी आ जाती है, और जब तुम अपने कर्तव्य करने का प्रयास करते हो तो तुम्‍हारे शरीर में हमेशा कष्‍ट और बीमारियाँ रहती हैं। तब, तुम्‍हें इसका पछतावा होगा। “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करके” तुमने क्या हासिल किया है? अधिक से अधिक, तुम दूसरों को रिश्‍वत देकर उनकी प्रशंसा पा सकते हो। लेकिन लोगों की प्रशंसा का क्या काम? क्या यह परमेश्वर के अनुमोदन को दर्शा सकती है? यह इसे थोड़ा भी नहीं दर्शा सकती। ऐसे में, किसी व्यक्ति का वह प्रशंसा वाक्य बेकार है। क्या प्रशंसा पाने के लिए इतने बड़े दर्द को सहने और बचाए जाने के अवसर को गँवाने का कोई औचित्‍य है? तो, अब लोगों को क्या समझने की जरूरत है? यदि कोई व्‍यक्ति तुम्‍हें कोई कार्य सौंपता है, चाहे वह कुछ भी क्‍यों न हो, अगर उसमें एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य करना या परमेश्वर द्वारा तुम्‍हें सौंपी गई किसी चीज को पूरा करना शामिल नहीं है, तो तुम्‍हें मना करने का अधिकार है क्योंकि वह तुम्‍हारा दायित्व नहीं है, जिम्‍मेदारी होना तो दूर की बात है। कुछ लोग कह सकते हैं, “यदि मैं इनकार करता हूँ, तो लोग कहेंगे कि मुझमें नैतिक मूल्‍य नहीं हैं, या वे कहेंगे कि मैं एक अच्छा मित्र या अधिक वफादार नहीं हूँ।” यदि तुम्हें इसकी चिंता है, तो आगे बढ़ो और उसे करो, और बाद में देखो कि उसके परिणाम क्या होते हैं। ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने दूसरों का कार्य खत्‍म नहीं किया है और उस कार्य को करना जारी भी नहीं रख सकते क्योंकि वे अपने कर्तव्‍य निभा रहे हैं। वे सोचते हैं, “मैं इस कार्य को आधा-अधूरा छोड़ दूँ, यह कोई अच्‍छी बात नहीं है। एक व्यक्ति के तौर पर मुझमें विश्वसनीयता होनी चाहिए। व्यक्ति को काम शुरू से अंत तक पूरा करना चाहिए, यह नहीं कि शुरुआत तो मजबूत हो और अंत कमजोर। यदि मैं दूसरों के लिए जो कार्य करने का वादा करता हूँ, वे आधे-अधूरे हुए हैं और मैं बाकी काम नहीं करता, तो मैं इसे दूसरों के सामने उचित नहीं ठहरा सकता, यह ईमानदारी की कमी होना है!” यदि तुम्‍हारे मन में ऐसे विचार हैं और तुम अपने अभिमान का त्‍याग नहीं कर सकते, तो तुम आगे बढ़कर दूसरों के लिए कार्य कर सकते हो, और जब तुम्‍हारा काम पूरा हो जाए तो देखो कि तुमने क्या हासिल किया है और क्या अपना वचन निभाने और इस प्रकार की ईमानदारी रखने का वास्तव में कोई मोल है। क्या यह एक महत्वपूर्ण कार्य में विलंब करना नहीं है? यदि इसके कारण तुम्‍हें अपने कर्तव्य निभाने में देरी हो सकती है और तुम्‍हारा सत्य प्राप्त करना प्रभावित हो सकता है, तो यह तुम्‍हारे जीवन को जोखिम में डालने के बराबर है, है न? यदि तुम नैतिक आचरण पर इन कथनों और आवश्यकताओं को एक सृजित प्राणी के रूप में अपने कर्तव्य करने और सत्य का अनुसरण करने से अधिक महत्वपूर्ण मानते हो, तो तुम स्वयं को इन कथनों द्वारा बंधक बनाए जाने और बाध्‍य करने से मुक्त नहीं कर सकते। यदि तुम उन्हें समझ सकते हो और उनके वास्तविक सार को स्पष्ट रूप से देख सकते हो, उन्हें त्यागने का और उन चीजों के अनुसार नहीं जीने का निर्णय लेते हो, तो तुम्‍हारे पास नैतिक आचरण के इन कथनों के बंधन से मुक्त होने की आशा है। तुम्‍हारे पास एक सृजित प्राणी के रूप में अपने कर्तव्य पूरे करने और सत्य प्राप्त करने की भी आशा है।

इतनी संगति करने के बाद, क्या अब तुम्‍हारी किसी व्यक्ति की नैतिकता को परखने के, “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” इस कथन और मानक के संबंध में थोड़ी समझ बनी है? (हाँ।) तो सार रूप में कहें तो, हमें कितने पहलुओं से समझना चाहिए कि यह वाक्य सही है या गलत? सबसे पहले तो, यह स्पष्ट है कि यह कथन सत्य या परमेश्वर के वचनों के अनुरूप नहीं है, और यह कोई सत्य सिद्धांत नहीं है जिसका लोगों को पालन करना चाहिए। तो फिर तुम्‍हें इस मामले से कैसे निपटना चाहिए? इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हें कार्य सौंपने वाला कौन है, तुम्‍हें मना करने और यह कहने का अधिकार है, “मैं तुम्‍हारी मदद नहीं करना चाहता; मैं तुम्‍हारे प्रति वफादार रहने के लिए बाध्य नहीं हूँ।” यदि तुमने उस समय उनके द्वारा सौंपा कार्य स्वीकार कर लिया था, लेकिन अब जबकि तुम मामले को समझ गए हो, तो तुम मदद नहीं करना चाहते और महसूस करते हो कि उसे पूरा करने की कोई आवश्यकता या बाध्‍यता नहीं है, तो मामला वहीं समाप्त हो जाता है। क्या यह अभ्यास का सिद्धांत है? (हाँ।) तुम “नहीं” कह सकते हो और मना कर सकते हो। दूसरे, इस कथन में कि “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” क्या गलत है? यदि कोई तुम्‍हें कोई सरल कार्य सौंपता है जो आसानी से हो जाता है, तो यह लोगों के बीच बातचीत और व्यवहार की एक आम बात है। इससे यह नहीं बताया जा सकता कि तुम वफादार हो या नहीं या तुम्‍हारा नैतिक चरित्र उच्च है या नहीं, इसका प्रयोग किसी व्यक्ति की नैतिकता मापने के लिए एक मानक के रूप में नहीं किया जा सकता। क्या किसी की ऐसे कार्य में मदद करना जिसमें बहुत कम प्रयास की आवश्यकता है, यह दर्शाता है कि वह व्यक्ति नैतिक और भरोसेमंद है? जरूरी नहीं, क्योंकि हो सकता है कि उस व्यक्ति ने पर्दे के पीछे कई बुरे काम किए हों। यदि उसने कई बुरे काम किए हैं, लेकिन बहुत कम प्रयास से दूसरों की मदद करने के लिए कुछ किया है, तो क्या इसे उच्च नैतिक चरित्र माना जाएगा? (नहीं, ऐसा नहीं है।) इसलिए, यह उदाहरण, “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” इस कथन को उलट देता है। यह सही नहीं है और इसका प्रयोग किसी व्यक्ति के नैतिक आचरण को मापने के लिए एक मानक के रूप में नहीं किया जा सकता। यह कुछ सामान्य चीजों से निपटने का तरीका है। तो तुम्‍हें कुछ विशेष मामलों से कैसे निपटना चाहिए? यदि कोई तुम्‍हें कोई विशेष महत्वपूर्ण कार्य सौंपता है जो तुम्‍हारी क्षमताओं से बढ़कर है, और तुम्‍हें वह थकाऊ और श्रमसाध्य लगता है और तुम उसे करने में असमर्थ हो, तो तुम बिना बुरा महसूस किए उसके लिए मना कर सकते हो। इसके अतिरिक्त, यदि कोई तुम्‍हें ऐसा कोई कार्य सौंपता है जो विवेकसम्‍मत नहीं है, अवैध है या दूसरों के हितों के लिए हानिकारक है, तो तुम्‍हें विशेष रूप से वह कार्य नहीं करना चाहिए। तो, जब कोई तुम्‍हें कोई कार्य सौंपता है, तो तुम्‍हें कौन-सी मुख्य बात समझने की आवश्यकता है? एक बात तो तुम्‍हें यह समझने की जरूरत है कि सौंपा गया कार्य तुम्‍हारी जि‍म्मेदारी या दायित्व है या नहीं और क्या तुम्‍हें उसे स्वीकार करना चाहिए। दूसरी बात, इसे स्वीकार करने के बाद, तुम इसे करते हो या नहीं, और इसे अच्छी तरह से संभालते हो या खराब तरीके से, क्‍या यह वफादारी और नैतिकता से संबंधित है? यही समझने की मूल बात है। समझने का एक अन्य पहलू सौंपे गए कार्य की प्रकृति है कि वह उचित, वैध, सकारात्मक है या नकारात्मक। इन तीन पहलुओं के माध्यम से इसे समझा जा सकता है। अब, जो अभी संगति की गई थी उस पर विचार करो और उसे सारांशित करो और अपनी राय तथा विचारों पर चर्चा करो। (“अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” इस नैतिक कथन के संबंध में पहली बात, लोग दूसरों के लिए काम करने के लिए बाध्य नहीं हैं, वे मना कर सकते हैं, यह हर किसी का अधिकार है। दूसरी बात, भले ही वे दूसरों द्वारा सौंपे गए किसी कार्य को स्वीकार कर भी लें, पर वे उसे करते हैं या नहीं और अच्छी तरह से करते हैं या खराब तरह से, इसका उनकी नैतिकता से कोई संबंध नहीं है, और इसका प्रयोग किसी व्यक्ति के नैतिक चरित्र को मापने के लिए एक मानक के रूप में नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, यदि किसी को सौंपा गया कार्य अवैध और अपराध है, तो उसे बिल्कुल नहीं करना चाहिए। यदि वह उसे करता है तो यह बुरा काम करना है और उसे सजा भुग‍तनी होगी। इन बिंदुओं के माध्यम से, हम वास्तव में “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो” के दृष्टिकोण को पलट सकते हैं।) सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह कथन गलत है। यह कहाँ गलत है? सबसे पहले, ऐसे मामलों से निपटने और उन्‍हें संभालने के लिए यह जो सिद्धांत लागू करने को कहता है, वह गलत है। इसके अतिरिक्त, किसी व्यक्ति के नैतिक आचरण का मूल्यांकन करने के लिए इस कथन का प्रयोग करना भी गलत है। इसके अलावा, इस कथन का प्रयोग किसी व्यक्ति के नैतिक आचरण को मापने, उसे बांधने और बाधित करने, काम करवाने के लिए उनका इस्‍तेमाल करने और उनके द्वारा उसका समय, ऊर्जा और धन खर्च करवाकर ऐसी जिम्मेदारियों को पूरा करवाना जो उसकी नहीं हैं या जिसे वहन करने का वह अनिच्छुक है, एक तरह का अपहरण है और यह गलत भी है। ये कुछ त्रुटियाँ, “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” इस कथन के महत्‍व और विशुद्धता को पलटने के लिए पर्याप्त हैं। संक्षेप में इसे सारांशित करते हैं। सबसे पहले, यह कथन “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो” लोगों को बताता है कि उन्हें सौंपे गए कार्यों को कैसे संभालना है। तात्पर्य यह है कि जब कोई तुम्‍हें कोई कार्य सौंपता है, चाहे वह उचित हो या नहीं, अच्छा हो या बुरा, या सकारात्मक हो या नकारात्मक, अगर वह कार्य तुम्‍हें सौंपा गया है, तो तुम्‍हें अपना वचन निभाना होगा। उन्हें संतुष्ट करने के लिए कार्य को अच्छी तरह से करना और पूरा करना तुम्‍हारा दायित्व है। केवल इसी प्रकार का व्यक्ति विश्वसनीय हो सकता है। यह लोगों को बिना विवेक के कार्य करने के लिए बाध्य करता है, जो सबसे पहले तो एक गलत बात है, एक ऐसी गलत बात जो सिद्धांतों के विरुद्ध जाती है। दूसरी बात, लोग “अन्य लोगों ने उन्‍हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश” कर सकते हैं या नहीं, इस मानक का प्रयोग उनके नैतिक आचरण को मापने के लिए एक आधार के रूप में किया जाता है। क्या माप का यह मानक एक और गलती नहीं कर रहा है? यदि हर कोई उसे सौंपे गए बुरे या दुष्‍टतापूर्ण कार्यों को ईमानदारी से निभाने की पूरी कोशिश करे, तो क्या यह समाज उलट-पुलट नहीं हो जाएगा? इसके अतिरिक्त, यदि इस कथन का प्रयोग हमेशा लोगों के नैतिक आचरण को मापने के लिए एक मानक के रूप में किया जाता है, तो यह स्वाभाविक रूप से लोगों के विचारों को बांधने और प्रतिबंधित करने के लिए एक सामाजिक माहौल, सार्वजनिक राय और सामाजिक दबाव पैदा करेगा। इसके क्या परिणाम होंगे? “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” इस कथन के अस्तित्व के कारण और समाज में ऐसी सार्वजनिक राय होने के कारण तुम सामाजिक दबाव में रहते हो और ऐसी परिस्थ‍ितियों में इस प्रकार कार्य करने के लिए मजबूर होते हो। तुम अपनी इच्‍छा से इस प्रकार कार्य नहीं करते, यह तुम्‍हारी अपनी क्षमताओं की सीमा के भीतर नहीं है और यह तुम्‍हारे दायित्वों को पूरा नहीं कर रहा है। तुम ऐसा करने के लिए मजबूर हो, और यह माँग तुम्‍हारे दिल की गहराइयों से नहीं आती, न ही सामान्‍यतः मानवता की माँग है, और यह तुम्‍हारे भावनात्मक संबंधों को बनाए रखने की माँग नहीं है बल्कि यह सामाजिक दबाव के कारण होता है। यह नैतिक अपहरण है। यदि तुम उन कार्यों को करने में विफल रहते हो जिन्हें तुम दूसरों के लिए करने को सहमत हुए थे, तो तुम्‍हारे माता-पिता, परिवार, सहकर्मी और मित्र तुम्‍हारी आलोचना करते हुए कहेंगे, “तुम्‍हें क्‍या लगता है कि तुम क्‍या कर रहे हो? कहावत है कि ‘अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो।’ जब तुम सहमत हुए थे, तो तुमने कार्य पूरा क्यों नहीं किया? यदि तुम सहमत हुए थे तो तुम्‍हें वह ठीक से करना चाहिए था!” यह सुनने के बाद, तुम्‍हें लगता है कि तुम गलत हो, इसलिए तुम आज्ञाकारी तरीके से कार्य करने लगते हो। कार्य करते समय भी तुम इसे करना नहीं चाहते; तुममें क्षमता नहीं है, और तुम इसे संभाल नहीं पा रहे, लेकिन फिर भी तुम्‍हें दाँत पीसते हुए ही सही, इसे करना होगा। अंत में, तुम्‍हारा पूरा परिवार इसे करने में तुम्‍हारी मदद करता है, और इसमें बहुत सारा पैसा लगता है, ऊर्जा लगती है और कष्ट आते हैं और यह जैसे-तैसे पूरा हो पाता है। जिस व्यक्ति ने तुम्हें यह सौंपा है, वह तो प्रसन्न है, परन्तु तुम्हारे मन को बहुत कष्ट हुआ है और तुम थक गए हो। भले ही तुम इसे बिना मन के और अनिच्छा से करो, फिर भी तुम हार नहीं मानोगे, और अगली बार जब तुम्‍हारा ऐसी स्थिति से सामना होगा तो तुम फिर से वही सब करोगे। ऐसा क्यों है? क्योंकि तुम आत्म-सम्मान चाहते हो, तुम्‍हें गौरवान्वित होना पसंद है, और साथ ही, तुम जनमत का दबाव सहन नहीं कर सकते। भले ही कोई तुम्‍हें गलत न माने, तुम स्वयं की आलोचना करते हुए कहोगे, “मैंने वह नहीं किया जो मैंने दूसरों के लिए करने को कहा था। यह मैं क्या कर रहा हूँ? मुझे तो खुद से घृणा हो रही है। क्या यह अनैतिक नहीं है?” खुद तुम भी स्वयं का अपहरण कर रहे हो; क्या तुम्‍हारा दिमाग पहले ही कैद हो चुका है? (हाँ।) वास्तव में, उस कार्य का तुमसे थोड़ा भी लेना-देना नहीं है। ऐसा करने से तुम्‍हें कोई लाभ या शिक्षा नहीं मिलती। अगर तुम उसे न करो, तो भी कोई समस्‍या नहीं है और केवल कुछ ही लोग तुम्‍हारी आलोचना करेंगे। लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है? इससे तुम्‍हारे भाग्‍य में कोई बदलाव नहीं आएगा। लोग तुमसे कुछ भी क्‍यों न करने को कहें, जब तक वह परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है, तुम इनकार कर सकते हो। इन तीन बिंदुओं के आधार पर, “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो” इस कथन का विश्‍लेषण करने पर क्‍या तुम्‍हें इस कथन का सार समझ में आया है? (हाँ।)

जब कोई तुम्‍हें कुछ कार्य सौंपता है, तो तुम्‍हें किन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए? क्या इसे क्रियान्वित करने के लिए कोई सिद्धांत नहीं होने चाहिए? सत्य की दृष्टि से इसका आधार क्या है? अभी-अभी, मैंने सबसे महत्वपूर्ण बिंदु का उल्लेख किया, जो यह है कि किसी के जीवनकाल में, माता-पिता की देखभाल करने, बच्चों का पालन-पोषण करने और कानून के ढांचे के भीतर अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को पूर्ण करने के अलावा, किसी के द्वारा सौंपा कार्य स्वीकार करने या किसी के लिए काम करने की कोई बाध्यता नहीं है तथा किसी और के मामलों या सौंपे कार्य के लिए जीने की कोई जरूरत नहीं है। मानव जीवन का मोल और अर्थ केवल एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने में ही पाया जा सकता है। इसके अलावा, किसी के लिए कुछ करने का जरा भी अर्थ नहीं है; यह सब बेकार का काम है। इसलिए, यह कथन “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” लोगों द्वारा लोगों पर थोपी गई बात है और इसका परमेश्वर से कोई संबंध नहीं है। यह कथन परमेश्वर की मनुष्यों से अपेक्षा बिल्‍कुल नहीं है। यह दूसरों द्वारा तुम्‍हारा शोषण करने, नैतिक रूप से तुम्‍हारा अपहरण करने और तुम्‍हें नियंत्रित तथा बाध्य करने से पैदा होता है। इसका परमेश्वर द्वारा सौंपे गए दायित्व या एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्‍हारे कर्तव्य पालन से थोड़ा-सा भी संबंध नहीं है। क्या तुम समझ रहे हो? (हाँ।) इस दुनिया में, पूरे ब्रह्मांड में, एक सृजित प्राणी के रूप में, परमेश्वर और उसके द्वारा सौंपे गए कार्यों के प्रति वफादार होने और एक इंसान के रूप में अपने कर्तव्य के प्रति वफादार होने के अलावा, कोई भी और कुछ भी तुम्‍हारी वफादारी के योग्‍य नहीं है। यह स्पष्ट है कि “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” आचरण का कोई सिद्धांत नहीं है। यह त्रुटिपूर्ण है और सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। यदि कोई तुम्‍हें कोई कार्य सौंपता है, तो तुम्‍हें क्या करना चाहिए? यदि तुम्‍हें सौंपा गया कार्य कुछ ऐसा है जिसके लिए बहुत ही कम प्रयास की आवश्यकता है, जहाँ तुम्‍हें केवल बोलने या कोई छोटा-सा कार्य करने की आवश्यकता है, और तुम्‍हारे पास अपेक्षित काबिलियत है, तो तुम अपनी मानवता और करुणा के नाते मदद कर सकते हो; तो इसे गलत नहीं माना जाता। यह एक सिद्धांत है। हालाँकि, यदि तुम्‍हें सौंपा गया कार्य तुम्‍हारा बहुत-सा समय और ऊर्जा ले लेता है, या तुम्‍हारा काफी सारा समय भी बरबाद कर देता है, तो तुम्‍हारे पास इनकार करने का अधिकार है। भले ही वे तुम्‍हारे माता-पिता हों, तुम्‍हें अस्वीकार करने का अधिकार है। उनके प्रति वफादार रहने या उनके द्वारा सौंपा कार्य करने की कोई आवश्यकता नहीं है, यह तुम्‍हारा अधिकार है। यह अधिकार कहाँ से आता है? यह तुम्‍हें परमेश्वर द्वारा प्रदान किया गया है। यह दूसरा सिद्धांत है। तीसरा सिद्धांत यह है कि यदि कोई तुम्‍हें कुछ कार्य सौंपता है, तो भले ही उसमें ज्यादा मात्रा में समय और ऊर्जा की खपत न हो, लेकिन वह तुम्‍हारे कर्तव्य पालन को बाधित या प्रभावित कर सकता हो, या अपना कर्तव्‍य निभाने की तुम्‍हारी इच्‍छा और साथ ही परमेश्वर के प्रति तुम्‍हारी वफादारी को खत्‍म कर सकता हो तो तुम्‍हें उसे भी अस्वीकार कर देना चाहिए। यदि तुम्‍हें कोई ऐसा कार्य सौंपता है जो तुम्‍हारे सत्‍य के अनुसरण को प्रभावित कर सकता हो, सत्‍य का अनुसरण करने की तुम्‍हारी इच्‍छा और गति को बाधित कर सकता हो या उसमें रुकावट डाल सकता हो और तुम्‍हें आधे रास्‍ते ही हार मान लेने को मजबूर करता हो, तो तुम्‍हें उसके लिए तो और भी इनकार कर देना चाहिए। तुम्‍हें ऐसी किसी भी चीज से इनकार कर देना चाहिए जो तुम्‍हारे कर्तव्य पालन या सत्य के अनुसरण को प्रभावित करती हो। यह तुम्‍हारा अधिकार है; तुम्‍हें “नहीं” कहने का अधिकार है। तुम्‍हें अपना समय और ऊर्जा निवेश करने की कोई आवश्यकता नहीं है। तुम उन सभी चीजों के लिए इनकार कर सकते हो जिनका तुम्‍हारे कर्तव्य पालन, सत्य की खोज या तुम्‍हारे उद्धार के लिए कोई अर्थ, मोल, सीख, सहायता या लाभ नहीं है। क्या इसे एक सिद्धांत माना जा सकता है? हाँ, यह एक सिद्धांत है। तो यदि तुम इन सिद्धांतों के अनुसार देखते हो, तो लोगों को अपने जीवन में जिन सौंपे गए कार्यों को स्वीकार करना चाहिए, वे कहाँ से आ सकते हैं? (परमेश्वर से।) यह सही है, वे केवल परमेश्वर से ही आ सकते हैं। “परमेश्वर से” शब्द अपेक्षाकृत खोखले और सूदूर हैं, तो यह सौंपा गया कार्य वास्तव में क्या होना चाहिए? (अपना कर्तव्य निभाना।) यह सही है, इसका मतलब कलीसिया में अपना कर्तव्य निभाना है। परमेश्वर के लिए व्यक्तिगत रूप से यह असंभव है कि वह तुमसे कहे, “तुम जाकर सुसमाचार फैलाओ,” “तुम कलीसिया का नेतृत्व करो,” या “तुम पाठ-आधारित कार्य करो।” परमेश्वर के लिए तुम्‍हें व्यक्तिगत रूप से बताना असंभव है, लेकिन परमेश्वर ने अपने घर की व्यवस्था के माध्यम से तुम्‍हें तुम्‍हारा कर्तव्य सौंपा है। परमेश्वर के घर की सभी व्यवस्थाएँ परमेश्वर से उत्पन्न होती हैं और परमेश्वर से ही आती हैं, तो क्या तुम्‍हें परमेश्वर के व्यक्तिगत रूप से बताने की आवश्‍यकता है? तुम पहले ही परमेश्वर की संप्रभुता और आयोजन के सभी लोगों, घटनाओं और चीजों का अनुभव कर चुके हो और तुम्‍हारे भाव सच्‍चे हैं। तुमने जो अनुभव किया है वह परमेश्वर के कार्य, सत्य और उसकी प्रबंधन योजना से संबंधित है। क्या यह एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना नहीं है? यह सौंपा गया कार्य स्वीकार करने के पहलू से है। दूसरी बात, जो कुछ परमेश्वर की ओर से सौंपा गया है उसके अलावा, कोई अन्य चीज नहीं है जिसके प्रति लोगों को वफादार होना चाहिए। केवल परमेश्वर ही अटूट वफादारी के योग्य है; लोग इसके योग्य नहीं हैं। तुम्‍हारे पूर्वजों, माता-पिता या वरिष्ठों सहित कोई भी योग्य नहीं है। क्यों? सर्वोच्च सत्य यह है कि यह पूर्णतया स्वाभाविक और उचित है कि सृजित प्राणी सृष्टिकर्ता के प्रति वफादार रहें। क्या तुम्‍हें इस सत्य का विश्लेषण करने की आवश्यकता है? नहीं, क्योंकि लोगों के बारे में सब कुछ परमेश्वर से आता है, यह पूर्णतया स्वाभाविक और उचित है कि सृजित प्राणी सृष्टिकर्ता के प्रति वफादार रहें। यह एक सर्वोच्च सत्य है जिसे लोगों को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए! दूसरा सत्य जो लोगों को समझना चाहिए वह यह है कि परमेश्वर के प्रति वफादार रहने से, लोगों को परमेश्वर से जो कुछ भी प्राप्त होता है वह सत्य, जीवन और मार्ग है। उनका लाभ समृद्ध और प्रचुर है, विशेष रूप से प्रचुर और विपुल है। जब मनुष्य सत्य, जीवन और मार्ग प्राप्त कर लेते हैं, तो उसका जीवन मूल्यवान हो जाता है। इसलिए, जब तुम परमेश्वर के प्रति वफादार होते हो, तो तुम्‍हारे द्वारा बलिदान किए गए समय, ऊर्जा और लागत को सकारात्मक रूप से पुरस्कृत किया जाएगा, और तुम्‍हें कभी पछतावा नहीं होगा। अब तक, कुछ लोगों ने बीस या तीस वर्षों तक परमेश्वर का अनुसरण किया है, और कुछ ने तीन से पाँच वर्ष या दस वर्ष तक परमेश्वर का अनुसरण किया है। मेरा मानना है कि उनमें से अधिकांश को कोई पछतावा नहीं है और उन्होंने कुछ हद तक लाभ पाया है। जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं, जितना अधिक वे परमेश्वर का अनुसरण करते हैं उतना ही अधिक उन्हें लगता है कि उनमें बहुत अधिक कमी है और सत्य बहुमूल्य है। सत्य का अनुसरण करने का उनका संकल्प बढ़ता है, और उन्हें लगता है कि उन्होंने परमेश्वर को बहुत देर से स्वीकार किया है और यदि उन्होंने उसे तीन से पाँच साल या दस साल पहले स्वीकार किया होता, तो वे कितना सत्य समझ गए होते! कुछ लोग बहुत देर से परमेश्वर को स्वीकार करने पर पछतावा करते हैं, इस बात पर पछताते हैं कि उन्होंने सत्य का अनुसरण किए बिना कई वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास किया और अपना समय बरबाद किया, और इस बात पर पछताते हैं कि उन्होंने अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाए बिना कई वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास किया। संक्षेप में, चाहे कोई व्यक्ति कितने भी समय तक परमेश्वर में विश्वास करे, वे सभी कुछ न कुछ हासिल करते हैं और महसूस करते हैं कि सत्य का अनुसरण करना अविश्वसनीय रूप से महत्वपूर्ण है। यह दूसरा सत्य है : कि परमेश्वर के प्रति वफादार रहने से, लोगों को परमेश्वर से जो कुछ भी प्राप्त होता है वह सत्य, मार्ग और जीवन है, और उन्हें बचाया जा सकता है, वे अब शैतान की शक्ति के अधीन नहीं जीते हैं। तीसरा सत्य यह है कि यदि लोग परमेश्वर के प्रति शाश्वत निष्ठा प्राप्त कर सकते हैं, तो उनका अंतिम गंतव्य क्या होगा? (बचाया जाना और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिए बने रहना।) जब लोग परमेश्वर का अनुसरण करते हैं और अंततः बचाए जाते हैं, तो उन्हें जो गंतव्य मिलता है वह नरक में डाल दिया जाना और नष्ट होना नहीं है, बल्कि एक नए इंसान के रूप में बने रहना है, जीवित रहने में सक्षम होना है। यदि लोग जीवित रहते हैं तो उनके परमेश्वर के दर्शन करने की आशा रहेगी। यह कितना बड़ा आशीर्वाद है! परमेश्वर के प्रति वफादार होने के मामले में, क्या लोगों के लिए इन तीन सत्यों को समझना पर्याप्त है? (हाँ।) यदि लोग दूसरों का अनुसरण करें और उनके प्रति वफादार रहें तो क्या लाभ हैं? यदि तुम दूसरों के प्रति वफादार रहो, तो लोग कहते हैं कि तुम्‍हारे पास अच्छे नैतिक गुण हैं। तुम्‍हारी अच्‍छी प्रतिष्‍ठा है, और तुम्‍हें केवल यही छोटा-सा लाभ मिलता है। क्या तुमने सत्य और जीवन प्राप्त कर लिया है? तुम्‍हें यह बिल्कुल भी हासिल नहीं होता है। जब तुम किसी व्यक्ति के प्रति वफादार होते हो, तो वह तुम्हें क्या दे सकता है? अधिक से अधिक, तुम उनके करियर में तेजी से सफल होने के दौरान उनके साथ जुड़ने से लाभान्वित हो सकते हो, बस इतना ही। उसका मूल्य क्या है? क्या यह खोखला नहीं है? जो चीजें सत्य से संबंधित नहीं हैं वे बेकार हैं, चाहे तुम उन्हें कितना भी हासिल क्‍यों न कर लो। इसके अलावा, यदि तुम लोगों का अनुसरण करते हो और उनके प्रति वफादार रहते हो, तो उसका दुष्परिणाम हो सकता है। तुम एक शिकार, भेंट बन सकते हो। यदि तुम जिस व्यक्ति के प्रति वफादार हो, वह सही रास्ते पर नहीं चलता है, तो तुम्‍हारे उसका अनुसरण करने से क्या होगा? क्या तुम सही रास्ते पर चलोगे? (नहीं।) यदि तुम उनका अनुसरण करते हो, तो तुम भी सही रास्ते पर नहीं चलोगे; बल्कि, तुम भी बुराई करने में उनका अनुसरण करोगे और दंडित होने के लिए नरक में जाओगे, और फिर तुम्‍हारा खेल खत्‍म हो जाएगा। यदि तुम किसी व्यक्ति के प्रति वफादार हो, तो भले ही तुम बहुत-से अच्छे काम कर लो, तुम्‍हें परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त नहीं होगा। यदि तुम दानव राजाओं, शैतान, या मसीह-विरोधियों के प्रति वफादार रहते हो, तो तुम शैतान के सहयोगी और अनुचर बन जाते हो। इसका परिणाम केवल शैतान के साथ दफनाया जाना, शैतान के लिए बलि बन जाना हो सकता है। गैर-विश्वासियों का कहना है, “राजा की संगत में रहना बाघ की संगत में रहने के समान है।” तुम दानव राजाओं के प्रति कितने भी वफादार क्‍यों न हों, अंत में, उनके द्वारा तुम्‍हारा प्रयोग कर लेने के बाद वे तुम्‍हें निगल लेंगे और अपना शिकार बना लेंगे। तुम्‍हारी जान हमेशा खतरे में रहेगी। दानव राजाओं और शैतान के प्रति वफादार रहने का यही भाग्यफल है। दानव राजा और शैतान कभी भी तुम्‍हें तुम्‍हारे जीवन की सही दिशा और उद्देश्य नहीं दिखाएँगे, और तुम्‍हारा जीवन के सही रास्‍ते पर मार्गदर्शन नहीं करेंगे। तुम उनसे कभी भी सत्य या जीवन प्राप्त नहीं कर पाओगे। उनके प्रति तुम्‍हारी वफादारी का अंत या तो उनके साथ नष्ट हो जाना है और उनकी बलि बन जाना, या उनके द्वारा फँसाया जाना, विकृत कर दिया जाना और निगल लिया जाना है; यह सब नरक में जाने का अंतिम परिणाम है। यह एक निर्विवाद तथ्य है। इसलिए, कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी प्रसिद्ध, प्रतिष्ठित या प्रभावशाली व्यक्ति हो, वह इस योग्य नहीं है कि तुम उसके प्रति वफादार रहो और उसके लिए अपना पूरा जीवन बलिदान कर दो। वह इस योग्य नहीं है, और उसमें तुम्‍हारे भाग्य को बनाने या बिगाड़ने की शक्ति नहीं है। क्या इस सत्य सिद्धांत को समझना, लोगों का अनुसरण करने और उनके प्रति वफादार रहने जैसी समस्याओं को हल करने के लिए पर्याप्त है? (हाँ।) तीन सिद्धांत हैं जिनका पालन दूसरों द्वारा तुम्‍हें सौंपे गए कार्यों से निपटने के दौरान किया जाना चाहिए, और लोगों की परमेश्वर के प्रति वफादारी के मोल और महत्व पर तीन सिद्धांतों पर संगति की गई थी—क्या तुम लोग इन सभी सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से समझते हो? (हाँ।) संक्षेप में, “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” इस कथन का विश्लेषण करने का उद्देश्य तुम्‍हें इसका बेतुकापन और झूठ स्पष्ट रूप से देखने में मदद करना है ताकि तुम इसे त्‍याग सको। हालाँकि, इसे छोड़ देना ही पर्याप्त नहीं है; तुम्हें उन अभ्यास सिद्धांतों को भी समझना होगा जो लोगों के पास होने चाहिए, साथ ही ऐसे मामलों में परमेश्वर के इरादों को भी समझना चाहिए। “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो” के नैतिक कथन के संबंध में मुख्य बात मूल रूप से यही है। मैंने बस विभिन्न पहलुओं और दृष्टिकोणों से विश्लेषण किया, और फिर विशेष रूप से अभ्यास के सिद्धांतों पर संगति की जो परमेश्वर ने लोगों के समक्ष प्रकट किए हैं, और इस पर संगति की कि परमेश्वर के इरादे क्या हैं, और लोगों को कौन से सत्य समझना चाहिए। इन बिंदुओं को समझने के बाद, लोगों को बुनियादी तौर पर यह समझना चाहिए कि “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो” के नैतिक कथन को कैसे समझा जाए।

“अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” इस विषय का विश्लेषण करना वास्तव में काफी सरल है, और लोग इसे आसानी से पहचान और समझ सकते हैं। यह वाक्यांश भी नैतिकतावादियों द्वारा लोगों को पंगु बनाने, लोगों के विचारों को गुमराह करने और सामान्य सोच को बाधित करने के लिए प्रस्‍तुत एक कथन है, और यह सामान्य मानवीय विवेक, तर्क या सामान्य मानवीय आवश्यकताओं पर आधारित नहीं है। ऐसे विचार तथाकथित विचारकों और नैतिकतावादियों द्वारा गढ़े जाते हैं, जिन्हें सद्गुण के रूप में प्रचारित किया जाता है। ये न केवल आधारहीन और निरर्थक हैं, बल्कि अनैतिक भी हैं। इसे अनैतिक क्यों माना जाता है? क्योंकि यह सामान्य मानवता की आवश्यकताओं से उत्पन्न नहीं होता है, इसे मानवीय काबिलियत के दायरे में हासिल नहीं किया जा सकता है, और यह कोई दायित्व या कर्तव्य नहीं है जिसे मनुष्यों को निभाना चाहिए। वे तथाकथित नैतिकतावादी, “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो” इस वाक्यांश को आचरण के ऐसे मानक के रूप में लेते हैं जिसकी वे लोगों से सख्ती से माँग करते हैं, जिससे एक प्रकार का सामाजिक माहौल और सार्वजनिक राय बनती है। फिर इस जनमत से लोगों का दमन किया जाता है और उन्हें इसी तरह जीने के लिए मजबूर किया जाता है। इस तरह, लोगों के विचार अदृश्य रूप से इस प्रकार की शैतानी सोच से बंध जाते हैं। एक बार जब किसी व्यक्ति के विचार बंधे होते हैं, तो उसके कार्य भी स्पष्ट रूप से इस कथन और जनता की राय से बंधे होते हैं। बंधे होने का क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि लोग यह नहीं चुन सकते कि वे क्या करें, वे स्वतंत्र रूप से मानवीय प्रकृति की इच्छाओं और माँगों के अनुसार नहीं चल सकते, और जो वे करना चाहते हैं उसे करने के लिए अपने विवेक और तर्क के अनुसार नहीं चल सकते। इसके बजाय, वे एक विकृत विचार, एक प्रकार के वैचारिक सिद्धांत और सामाजिक राय से विवश और बंधे हुए हैं, जिससे लोग अलग या मुक्त नहीं हो सकते। लोग अनजाने में इस तरह के सामाजिक परिवेश और वातावरण में रहते हैं और इससे मुक्त नहीं हो पाते हैं। यदि लोग सत्य को नहीं समझते हैं, यदि वे इन कथनों में मौजूद विकृतियों और त्रुटियों को स्पष्ट रूप से नहीं समझ सकते हैं, और यदि वे अपने विचारों को बांधने वाले इन कथनों से होने वाले नुकसान और परिणामों को समझ नहीं सकते हैं, तो वे कभी भी पारंपरिक संस्कृति और सामाजिक राय द्वारा लगाए गए अवरोधों, बंधनों और दबावों से मुक्‍त नहीं हो पाएँगे। वे लोग केवल इन चीजों पर भरोसा करके ही जी पाएँगे। लोगों के इन चीजों पर भरोसा करके जीने का कारण यह है कि वे नहीं जानते कि सही रास्ता क्या है, उनके आचरण की दिशा और उद्देश्य क्या हैं, और न ही स्‍वयं के आचरण के सिद्धांत क्या हैं। वे पारंपरिक संस्कृति के विभिन्न नैतिक कथनों से स्वाभाविक और निष्क्रिय रूप से गुमराह होते हैं, इन गलत सिद्धांतों द्वारा पथभ्रष्ट और नियंत्रित होते हैं। जब लोग सत्य समझ जाते हैं, तो उनके लिए इन अफवाहों और भ्रांतियों को समझना और अस्वीकार करना आसान हो जाता है। वे शैतान द्वारा बनाए गए समाज में जनमत, वातावरण और माहौल से बंधे, अपहृत या शोषित नहीं रह जाते हैं। इस तरह, उनके जीवन की दिशा और उद्देश्य पूरी तरह से बदल जाते हैं, और वे परमेश्वर की अपेक्षाओं और उसके वचनों के अनुसार जी सकते हैं और अस्तित्व में रह सकते हैं। वे अब विभिन्न शैतानी सिद्धांतों और पारंपरिक संस्कृति की विभिन्न भ्रांतियों से गुमराह नहीं होते या बंधे नहीं रहते। जब लोग नैतिक आचरण के बारे में पारंपरिक संस्कृति में विभिन्न कथनों को पूरी तरह से त्याग देते हैं, तो यही वह क्षण होता है जब वे खुद को शैतान के भ्रष्टाचार, गुमराह किए जाने और बंधन से पूरी तरह मुक्त कर लेते हैं। इस आधार पर, जब वे परमेश्वर द्वारा अपेक्षित सत्य और अभ्यास के उन सिद्धांतों को समझ जाते हैं जिन्हें वह मनुष्यों को देता है, तो उनके जीवन का उद्देश्य पूरी तरह से बदल जाता है और उनके पास एक नया जीवन होता है। जब उनके पास नए जीवन होते हैं, तो वे एक नवजात मनुष्‍य होते हैं और वे नए लोग होते हैं। चूँकि उनके मन में संग्रहीत विचार अब शैतान द्वारा उनके अंदर डाले गए विभिन्न पाखंडों और भ्रांतियों से भरे हुए नहीं हैं, और इसके बजाय सत्य ने इन शैतानी चीजों का स्थान ले लिया है, जिसके बाद, परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन में, सत्य उनके भीतर जीवन बन जाता है, इस बात को दिशा दिखाता और संचालित करता है कि वे लोगों और चीजों को कैसे देखते हैं, कैसा आचरण और कार्य करते हैं। वे मानव जीवन के सही मार्ग पर चलते हैं और प्रकाश में रह सकते हैं। क्या यह परमेश्वर के वचनों के माध्यम से पुनर्जन्म होने जैसा नहीं है? ठीक है, तो चलो आज की संगति यहीं समाप्त करते हैं।

2 जुलाई 2022

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