सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (14) भाग तीन
पारंपरिक संस्कृति में नैतिक आचरण संबंधी कथनों के संबंध में, पिछली बार मैंने “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” पर संगति की थी। इसके बाद आज मैं “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है, उसे निष्ठापूर्वक संभालने की पूरी कोशिश करो,” पर संगति करूँगा। जिस पिछले वाक्यांश “सफलता और विफलता लोगों पर निर्भर करती है” पर मैंने संगति की थी, यह वाक्यांश भी स्पष्ट रूप से छद्म-विश्वासियों का दृष्टिकोण है। छद्म-विश्वासियों का दृष्टिकोण लोगों के बीच प्रचलित है और हर जगह सुना जा सकता है। जिस पल से लोग बोलना शुरू करते हैं, वे अन्य लोगों, छद्म-विश्वासियों, शैतान और दुनिया से सभी प्रकार के कथन सीखते हैं। इसकी शुरुआत प्रारंभिक शिक्षा से होती है जहाँ उन्हें उनके माता-पिता और परिवार सिखाते हैं कि वे कैसा आचरण करें, क्या कहें, उनके पास कौन से नैतिक मूल्य होने चाहिए, उनके विचार और चरित्र कैसा होना चाहिए इत्यादि। समाज में प्रवेश करने के बाद भी, लोग अचेतन रूप से शैतान द्वारा स्वयं में विभिन्न सिद्धांतों और मतों का आरोपण स्वीकार करते हैं। “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो” इसे परिवार या समाज द्वारा हर व्यक्ति में एक ऐसे नैतिक आचरण के रूप में स्थापित किया जाता है जो लोगों में अवश्य होना चाहिए। यदि तुम्हारा नैतिक आचरण ऐसा है, तो लोग कहते हैं कि तुम उत्तम, सम्माननीय, सत्यनिष्ठ हो और समाज में तुम्हारा बहुत आदर और सम्मान किया जाता है। चूँकि यह वाक्यांश “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो” लोगों और शैतान से आता है, इसलिए यह हमारे लिए विश्लेषण और समझने की वस्तु बन जाता है और एक ऐसी वस्तु जिसका हम त्याग कर देते हैं। हम इस वाक्यांश को समझते और फिर त्याग क्यों देते हैं? आओ, पहले जाँच करते हैं कि क्या यह वाक्यांश और इसका पालन करने वाला व्यक्ति सही है। क्या एक ऐसा व्यक्ति होना वास्तव में उत्तमता है जिसके पास “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करने” का नैतिक चरित्र हो? क्या ऐसे व्यक्ति के पास सत्य वास्तविकता होती है? क्या उसमें वह मानवता और आचरण के सिद्धांत होते हैं जो परमेश्वर ने कहा था कि सृजित प्राणियों में होने चाहिए? क्या तुम सभी, “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो” इस वाक्यांश को समझते हो? पहले अपने शब्दों में समझाओ कि इस वाक्यांश का क्या अर्थ है। (इसका मतलब यह है कि जब कोई तुम्हें कोई काम सौंपे, तो तुम्हें उसे पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए।) क्या ऐसा नहीं होना चाहिए? अगर कोई तुम्हें कुछ काम सौंपता है, तो क्या वह तुम्हारे बारे में ऊँची राय नहीं रखता? वह तुम्हारे बारे में ऊँची राय रखता है, तुम पर विश्वास करता है और तुम्हें भरोसेमंद मानता है। इसलिए, दूसरे लोग तुमसे कुछ भी करने के लिए क्यों न कहें, तुम्हें सहमत होना चाहिए और उसे उनकी आवश्यकताओं के अनुसार अच्छी तरह से करना चाहिए, ताकि वे खुश और संतुष्ट रहें। ऐसा करने पर, तुम एक अच्छे इंसान होगे। निहितार्थ यह है कि जिस व्यक्ति ने तुम्हें कार्य सौंपा है उसका संतुष्ट होना, न होना ही यह निर्धारित करता है कि तुम्हें एक अच्छा इंसान माना जाए या नहीं। क्या इसे इस प्रकार समझाया जा सकता है? (हाँ।) तो क्या दूसरों की नजरों में एक अच्छे इंसान के रूप में देखा जाना और समाज द्वारा मान्यता पाना आसान नहीं है? (हाँ।) इसका क्या मतलब है कि यह “आसान” है? इसका मतलब है कि मानक अत्यंत निम्न है और बिल्कुल भी उत्तम नहीं है। यदि तुम “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो” के नैतिक मानक को पूरा करते हो, तो तुम्हें ऐसे मामलों में अच्छे नैतिक आचरण वाला व्यक्ति माना जाता है। निःसंदेह, इसका मतलब है कि तुम लोगों के विश्वास के, उनके द्वारा कार्य सौंपे जाने के लायक हो, तुम एक प्रतिष्ठित और अच्छे व्यक्ति हो। इस कथन का यही अर्थ है। क्या तुम लोग ऐसा नहीं सोचते? क्या तुम्हें, “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” इस वाक्यांश की परख और मूल्यांकन के मानकों पर कोई आपत्ति है? यदि तुम कोई ऐसा उदाहरण प्रदान कर सको जो इस कथन का खंडन करता हो और इसकी भ्रांतिपूर्णता को उजागर करता हो, अर्थात्, तुम इसे गलत साबित करने के लिए किसी वास्तविक उदाहरण का प्रयोग कर सको, तो यह कथन जायज नहीं रह जाएगा। अब, हो सकता है कि सिद्धांत रूप में तुम लोग पहले से ही यह मानते हो कि यह कथन निश्चित रूप से गलत है क्योंकि यह सत्य नहीं है और परमेश्वर की ओर से नहीं आया है। इस कथन को पलटने के लिए तुम तथ्यों का प्रयोग कैसे कर सकते हो? उदाहरण के लिए, यदि आज तुम इतने व्यस्त हो कि किराने का सामान खरीदने नहीं जा सकते तो तुम अपने पड़ोसी को तुम्हारे लिए यह काम करने का दायित्व सौंप सकते हो। तुम उसे ठीक-ठीक बता सकते हो कि खाने-पीने का कौन-सा सामान, कितना और कब खरीदना है। इसके बाद, वह तुम्हारे अनुरोध के हिसाब से किराने का सामान खरीदता है और उसे समय पर तुम तक पहुँचा देता है। क्या इसे उनका “अन्य लोगों द्वारा उन्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करना” माना जाता है? क्या इसे उनका प्रतिष्ठित होना माना जाएगा? यह तो हाथ हिलाने जितना काम मात्र है। क्या किसी की कुछ खरीदने में मदद कर सकना उच्च नैतिक चरित्र वाला होना माना जाता है? (ऐसा नहीं है।) जहाँ तक बात यह है कि वे बुरे काम करते हैं या नहीं, और उनका चरित्र क्या है, क्या इन चीजों का “अन्य लोगों द्वारा उन्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करने” की उनकी क्षमता से जरा-सा भी लेना-देना है? यदि कोई व्यक्ति उस छोटी-सी चीज को पूरा करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर सकता है जो अन्य लोगों ने उसे सौंपी है, तो क्या उसके पास नैतिक आचरण का मानक है? क्या इतना छोटा-सा कार्य पूरा कर पाना यह साबित करता है कि वह वास्तव में उच्च चरित्र वाला व्यक्ति है? कुछ लोग कहते हैं, “वह व्यक्ति बहुत भरोसेमंद है। जब भी इसे कुछ करने के लिए कहा जाता है, चाहे काम कुछ भी या कितना भी हो, वह हमेशा उसे पूरा करता है। वह भरोसेमंद और अच्छे नैतिक आचरण वाला है।” दूसरे उसे इस प्रकार देखते और मूल्यांकित करते हैं। क्या ऐसा मूल्यांकन सही है? (नहीं, यह सही नहीं है।) तुम दोनों पड़ोसी हो। पड़ोसी आम तौर पर एक-दूसरे के खिलाफ नहीं होते या एक-दूसरे को नुकसान नहीं पहुँचाते क्योंकि उनका एक-दूसरे से काम पड़ता रहता है। यदि झगड़े होंगे तो बाद में बातचीत करना मुश्किल हो जाएगा। हो सकता है कि पड़ोसी ने यही सोचकर तुम्हारी मदद की हो। यह भी हो सकता है कि यह छोटा-सा उपकार करना उसके लिए आसान था, यह कोई कठिन कार्य नहीं था और इससे उसे कोई नुकसान नहीं हुआ। इसके अलावा, इससे उसे अच्छा प्रभाव छोड़ने और अच्छी प्रतिष्ठा हासिल करने में मदद मिली, जिससे उसे फायदा हुआ। इसके अलावा, छोटी-मोटी मदद से तुम पर उपकार करके, क्या उसके लिए भविष्य में तुमसे मदद माँगना आसान नहीं होगा? शायद भविष्य में वह तुमसे कोई बड़ा उपकार चाहे और तुम वह करने के लिए बाध्य होगे। क्या इस व्यक्ति ने अपने विकल्प खुले रखे हैं? जब लोग एक-दूसरे की मदद करते हैं, बातचीत करते हैं और एक-दूसरे के साथ व्यवहार रखते हैं, तो उसका एक उद्देश्य होता है। यदि वे देखते हैं कि तुम किसी काम के नहीं हो, और बाद में वे तुमसे मदद नहीं माँगने वाले, तो हो सकता है कि वे इस उपकार द्वारा तुम्हारी मदद न करें। संभव है कि तुम्हारे परिवार में डॉक्टर, वकील, सरकारी अधिकारी या सामाजिक प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति हों, जो किसी तरह से उस व्यक्ति के काम आ सकते हों। वह अपने विकल्प खुले रखने के लिए तुम्हारी मदद कर सकता है। भविष्य में शायद कहीं वह तुम्हारा प्रयोग करे, या कम-से-कम तुम्हारे घर से सामान उधार लेना उसके लिए आसान हो जाए। कभी-कभी तुम उनसे छोटे-मोटे एहसान लेते हो और कुछ दिनों बाद वे चीजें उधार लेने तुम्हारे घर आ जाते हैं। लोग तब तक हाथ नहीं हिलाएँगे जब तक कि उससे उन्हें कोई फायदा न हो! देखो कि तुम्हारे मदद माँगने पर कैसे चेहरे पर मुस्कान के साथ वे बहुत आसानी से तैयार हो गए, मानो उन्होंने कोई सोच-विचार न किया हो; लेकिन वास्तव में उन्होंने मन में सावधानी से पूरा हिसाब-किताब किया था, क्योंकि कोई भी इतने सरल विचारों वाला नहीं होता। एक बार, मैं अपने कपड़े ठीक करवाने किसी जगह गया। कपड़े ठीक करने वाली बुजुर्ग महिला की एक बेटी थी जो अपने देश लौट रही थी। उसके पड़ोसी के पास कार थी, इसलिए बुजुर्ग महिला ने अपनी बेटी को हवाई अड्डे तक ले जाने का काम अपने पड़ोसी को सौंप दिया ताकि उसे टैक्सी का किराया न देना पड़े। पड़ोसी सहमत हो गया और बुजुर्ग महिला प्रसन्न हो गई। लेकिन, यह पड़ोसी इतना सीधा-सच्चा नहीं था। वह यह काम मुफ्त में नहीं करना चाहता था। सहमत हो जाने के बाद वह वहीं रुका रहा, फिर धीरे से कपड़े का एक टुकड़ा निकालकर बोला, “क्या तुम्हें लगता है कि मेरे कपड़े ठीक हो सकते हैं?” बुजुर्ग महिला अचंभित रह गई और उसकी मुखमुद्रा से लग रहा था कि मानो वह कहना चाह रही हो, “यह व्यक्ति इतनी छोटी-सी बात का फायदा क्यों उठा रहा है? यह इतनी आसानी से तैयार हो गया, लेकिन अब मालूम पड़ा कि यह मुफ्त में यह नहीं करना चाहता।” बुजुर्ग महिला ने पल दो पल में तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “ठीक है, इसे वहाँ रख दो, और तुम्हारे लिए मैं इसे ठीक कर दूँगी।” पैसों का कोई जिक्र तक नहीं। देखो कि कैसे किसी को साधारण-से काम के लिए बाहर भेजना कपड़े ठीक करके संतुलित किया जाता है। क्या इसका मतलब यह नहीं है कि कोई भी नुकसान में नहीं रहता? क्या परस्पर बातचीत सरल है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) कुछ भी सरल नहीं है। इस मानव समाज में, हर इंसान की मानसिकता लेन-देन की होती है, और हर कोई लेन-देन में संलग्न रहता है। हर कोई दूसरों से माँगें करता है और सभी खुद कोई नुकसान उठाए बिना दूसरों की कीमत पर लाभ कमाना चाहते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “उन लोगों में से जो ‘अन्य लोगों ने उन्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करते हैं,’ ऐसे भी अनेक लोग हैं जो दूसरे लोगों की कीमत पर लाभ नहीं कमाना चाहते। उनका लक्ष्य बस चीजों को अच्छी तरह से संभालने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना होता है, इन लोगों में वास्तव में नैतिक आचरण होता है।” यह कथन गलत है। भले ही वे धन, भौतिक चीजें या किसी भी प्रकार का लाभ न चाहते हों, वे प्रसिद्धि अवश्य चाहते हैं। यह “प्रसिद्धि” क्या है? इसका अर्थ है, “लोगों ने अपने कार्य संभालने के लिए मुझ पर जो भरोसा किया, उसे मैंने स्वीकारा है। जिस व्यक्ति ने मुझे कार्य सौंपा है वह भले ही मौजूद हो या नहीं, जब तक मैं इसे अच्छी तरह से संभालने की पूरी कोशिश करता हूँ, मेरी प्रतिष्ठा अच्छी रहेगी। कम-से-कम कुछ लोगों को पता चलेगा कि मैं एक अच्छा, उच्च चरित्र वाला और अनुकरणीय व्यक्ति हूँ। मैं लोगों के बीच एक जगह बना सकता हूँ और लोगों के समूह में एक अच्छी प्रतिष्ठा रख सकता हूँ। इसके लिए इतना करना तो बनता ही है!” अन्य लोग कहते हैं, “‘अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो’ और चूँकि लोगों ने हमें कार्य सौंपा है, तो चाहे वे मौजूद हों या नहीं, हमें उनके कार्यों को अच्छी तरह से संभालना चाहिए और अंत तक निभाना चाहिए। भले ही हम एक स्थायी विरासत न छोड़ पाएँ, कम-से-कम वे यह कहकर पीठ पीछे हमारी आलोचना तो नहीं कर सकते कि हमारी कोई विश्वसनीयता नहीं है। हम आने वाली पीढ़ियों के साथ भेदभाव नहीं होने देंगे और उन्हें ऐसा घोर अन्याय नहीं सहने देंगे।” वे क्या चाह रहे हैं? वे अभी भी प्रसिद्धि की तलाश में हैं। कुछ लोग धन और संपत्ति को बहुत महत्व देते हैं, जबकि अन्य प्रसिद्धि को महत्व देते हैं। “प्रसिद्धि” का क्या मतलब है? लोगों में “प्रसिद्धि” के लिए विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? इसका अर्थ है, एक अच्छा और उच्च चरित्र वाला व्यक्ति, एक आदर्श, सदाचारी व्यक्ति या संत कहलाना। बल्कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो एक तो “अन्य लोगों ने उन्हें जो कुछ भी सौंपा उसे ईमानदारी से संभालने के लिए अपनी पूरी कोशिश करने” में सफल रहे और ऐसा चरित्र भी रखते हैं, इसलिए उनकी हमेशा प्रशंसा की जाती है, और उनके वंशजों को उनकी प्रसिद्धि से लाभ मिलता है। तुम देखो, यह उन थोड़े से लाभों से कहीं अधिक मूल्यवान है जो उन्हें वर्तमान में मिल सकते हैं। इसलिए, तथाकथित नैतिक मानक का पालन करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने के लिए अपनी पूरी कोशिश करो” का शुरुआती बिंदु इतना आसान नहीं है। वह एक व्यक्ति के रूप में अपने दायित्वों और जिम्मेदारियों को पूरा करने की कोशिश मात्र नहीं कर रहा है, बल्कि इस जीवन में या अगले जन्म में व्यक्तिगत लाभ या प्रतिष्ठा पाने के लिए इसका अनुसरण कर रहा है। बेशक, ऐसे लोग भी हैं जो पीठ पीछे आलोचना और बदनामी से बचना चाहते हैं। संक्षेप में, लोगों के लिए इस तरह का काम करने का शुरुआती बिंदु सरल नहीं होता है, यह मानवता के दृष्टिकोण का शुरुआती बिंदु नहीं है, न ही यह मानवजाति की सामाजिक जिम्मेदारी वाला शुरुआती बिंदु है। ऐसे काम करने वाले लोगों के इरादे और शुरुआती बिंदु से देखें, तो जो लोग इस वाक्यांश पर कायम रहते हैं कि “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” उनका कोई सरल उद्देश्य बिल्कुल नहीं होता।
अभी, हमने लोगों के इरादों और कार्य करने के उद्देश्य और लोगों की महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं के लिहाज से नैतिक आचरण के बारे में यह जो कथन है कि “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” इसका विश्लेषण किया है। यह एक पहलू है। दूसरे पहलू से, “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो” में एक अन्य त्रुटि है। वह क्या है? लोग “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो” के व्यवहार को अत्यंत उत्तम मानते हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता कि वे यह नहीं पहचान सकते कि दूसरों द्वारा सौंपी गई चीजें न्यायसंगत हैं या अन्यायपूर्ण। यदि कोई तुम्हें बहुत सामान्य काम सौंपता है, कुछ ऐसा जो आसानी से पूरा किया जा सकता है, जो बताने लायक नहीं है, तो इसमें वफादारी नहीं आती है, क्योंकि जब लोग एक-दूसरे के साथ व्यवहार करते हैं और एक-दूसरे के साथ उनका अच्छा तालमेल होता है, तो एक-दूसरे को कार्य सौंपना सामान्य बात है। यह हाथ हिलाने जितना आसान है। यह इस सवाल से संबंधित नहीं है कि किसी का नैतिक चरित्र उत्तम है या निम्न। यह उस स्तर तक नहीं पहुँचता है। लेकिन, यदि कोई व्यक्ति तुम्हें बहुत महत्वपूर्ण कार्य सौंपता है, एक इतना बड़ा कार्य जो जीवन और मृत्यु, भाग्य या भविष्य से जुड़ा हो, और तब भी तुम इसे एक सामान्य मामले की तरह लेते हो, बिना उसे समझे अच्छी तरह संभालने की पूरी कोशिश करते हो, तो वहाँ समस्याएँ पैदा हो सकती हैं। कैसी समस्याएँ? यदि तुम्हें सौंपा गया कार्य उचित, विवेकपूर्ण, न्यायसंगत, सकारात्मक है और इससे दूसरों को कोई नुकसान या हानि नहीं होगी या मानवजाति पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, तब तो कार्य को स्वीकार करना और उसे ईमानदारी से संभालने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना ठीक है। यह एक जिम्मेदारी है जिसे तुम्हें पूरा करना चाहिए और एक सिद्धांत है जिसका तुम्हें पालन करना चाहिए। लेकिन, यदि तुम्हारे द्वारा स्वीकार किया गया कार्य अन्यायपूर्ण है और इससे दूसरों को या मानवजाति को नुकसान, अशांति, विनाश, या यहाँ तक कि जीव हानि होगी, और तुम फिर भी इसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करते हो, तो यह तुम्हारे नैतिक चरित्र के बारे में क्या बताता है? वह अच्छा है या बुरा? (वह बुरा है।) यह कैसे बुरा है? कुछ लोग किसी अन्यायी व्यक्ति का अनुसरण करते हैं या उससे मित्रता कर लेते हैं और दोनों एक-दूसरे को घनिष्ठ मित्र मानते हैं। उन्हें इसकी परवाह नहीं होती कि वह मित्र अच्छा है या बुरा; अगर उनका मित्र उन्हें कोई कार्य सौंपता है, तो वे उसे अच्छी तरह से संभालने की पूरी कोशिश करेंगे। यदि मित्र उनसे किसी को मार डालने के लिए कहता है तो वे उसे मार डालेंगे, यदि वह उनसे किसी को नुकसान पहुँचाने के लिए कहता है तो वह उसे नुकसान पहुँचा देंगे, और यदि वह उनसे कुछ नष्ट करने के लिए कहता है तो वे उसे नष्ट कर देंगे। जब तक यह उनके मित्र द्वारा उन्हें सौंपा गया कार्य है, वे इसे बिना सोचे-समझे और बिना विचार-विमर्श के करेंगे। वे मानते हैं कि वे इस दावे को पूरा कर रहे हैं कि “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो।” यह उनकी मानवता और नैतिक चरित्र के बारे में क्या बताता है? वह अच्छा है या बुरा? (वह बुरा है।) बुरे लोग भी “अन्य लोगों ने उन्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश कर सकते हैं,” लेकिन जिस तरह के काम दूसरे लोगों ने उन्हें सौंपे हैं और जिन्हें वे अच्छी तरह से संभालने की पूरी कोशिश करते हैं, वे सभी बुरी और नकारात्मक चीजें हैं। यदि अन्य लोगों ने तुम्हें जो काम सौंपा है, वह लोगों को नुकसान पहुँचाना, उन्हें मार डालना, दूसरों की संपत्ति चुराना, बदला लेना या कानून तोड़ना है, तो क्या यह सही है? (नहीं, यह सही नहीं है।) ये सभी ऐसी चीजें हैं जो लोगों को नुकसान पहुँचाती हैं, ये बुरे कर्म और अपराध हैं। यदि कोई तुम्हें कोई बुरा काम सौंपता है, और तुम तब भी “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो” के इस पारंपरिक सांस्कृतिक सिद्धांत का यह कहते हुए पालन करते हो, “चूँकि तुमने मुझे काम सौंपा है, इसका मतलब है कि तुम मुझ पर भरोसा करते हो, मेरे बारे में अच्छी राय रखते हो और मुझे अपना मानते हो, दोस्त मानते हो, न कि कोई बाहरी व्यक्ति। इसलिए, तुमने मुझे जो कुछ भी सौंपा है, मैं उसे ईमानदारी से निभाने की पूरी कोशिश करूँगा। मुझे अपने जीवन की कसम कि तुम मुझे जो कुछ भी सौंपोगे, उसे अच्छी तरह से निभाऊँगा, और अपने शब्दों से कभी पलटूँगा नहीं,” तो फिर यह किस तरह का व्यक्ति है? क्या यह सचमुच बदमाश नहीं है? (हाँ।) यह बहुत बड़ा बदमाश है। तो तुम्हें “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” जैसी चीजों को कैसे लेना चाहिए? यदि कोई तुम्हें कोई साधारण कार्य सौंपता है, जो लोक-व्यवहार में बहुत सामान्य कार्य है, तो यदि तुम उसे करते भी हो, तो यह नहीं कहा जा सकता कि तुम्हारा नैतिक चरित्र उत्तम है या नहीं। यदि कोई तुम्हें बहुत महत्वपूर्ण और बड़ा कार्य सौंपता है, तो तुमको यह समझना चाहिए कि वह कार्य सकारात्मक है या नकारात्मक, और क्या यह कुछ ऐसा है जिसे तुम्हारी काबिलियत हासिल कर सकती है। यदि वह ऐसा कार्य नहीं है जिसे तुम हासिल कर सकते हो, तो तुम वह करो जो तुम कर सकते हो। यदि वह एक नकारात्मक कार्य है, एक ऐसा कार्य जो कानून तोड़ता है, दूसरों के हितों या जीवन को नुकसान पहुँचाता है, या दूसरों की संभावनाओं और भविष्य तक को नष्ट करता है, और तुम तब भी “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” के नैतिक मानक का पालन करते हो, तो तुम बदमाश हो। इन दृष्टिकोणों के आधार पर, लोगों को उन्हें सौंपे गए कार्यों को स्वीकार करते समय जिस सिद्धांत का पालन करना चाहिए वह यह नहीं होना चाहिए कि “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो।” यह कथन सटीक नहीं है, इसमें बड़ी खामियाँ और समस्याएँ हैं और यह लोगों को अत्यधिक गुमराह करता है। इस कथन को स्वीकार करने के बाद, बेशक कई लोग इसका प्रयोग दूसरों के नैतिक आचरण के मूल्यांकन के लिए और निश्चित रूप से, खुद को मापने और अपनी नैतिकता को बाँधने के लिए करेंगे। फिर भी वे नहीं जानते कि दुनिया में कौन दूसरों को कार्य सौंपने के योग्य है, और बहुत कम लोग दूसरों को ऐसे कार्य सौंपते हैं जो न्यायसंगत, सकारात्मक, दूसरों के लिए फायदेमंद, मूल्यवान और मानवता के लिए समृद्धि लाने वाले होते हैं। ऐसा कोई कार्य नहीं होता। इसलिए, यदि तुम किसी व्यक्ति की नैतिकता की गुणवत्ता को मापने के लिए “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” के मानक का प्रयोग करते हो, तो न केवल इसमें बहुत सारे संदेह और समस्याएँ हैं जिससे यह जाँच पर खरा नहीं उतरता, बल्कि यह लोगों में गलत अवधारणाएँ भी आरोपित करता है, और ऐसे मामलों से निपटने के लिए गलत सिद्धांत और गलत दिशा देता है, लोगों की सोच को गुमराह, पंगु और पथभ्रष्ट करता है। इसलिए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम इस कथन का विश्लेषण या विच्छेदन कैसे करते हो, इसके अस्तित्व का कोई मोल नहीं है, यह कुछ ऐसा नहीं है जिसका लोगों को अभ्यास करना चाहिए, और इससे लोगों को किसी भी तरह से लाभ नहीं होता है।
“अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” वाक्यांश में एक और त्रुटि है। एक अन्य दृष्टिकोण से, जो दुष्ट व्यक्ति दूसरों का इस्तेमाल करना, उनका फायदा उठाना और उन्हें नियंत्रित करना चाहते हैं, और जो निहित स्वार्थ रखते हैं, सामाजिक स्तर और सत्ता वाले हैं, उन लोगों को यह कथन शोषण करने का अवसर और दूसरों का इस्तेमाल करने, उनका फायदा उठाने और उन्हें नियंत्रित करने का एक बहाना देता है। यह उन्हें अपने कार्य निपटाने के लिए लोगों का रणनीतिक इस्तेमाल करने में सक्षम बनाता है। जो लोग उनके लिए कार्य नहीं संभालते या उनके लिए अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं करते, उन्हें ऐसा मान लिया जाता है जिन्हें दूसरे कार्य नहीं सौंप सकते और जो कार्यों को ईमानदारी से संभालने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे सकते। उन पर निम्न नैतिक आचरण वाला होने का ठप्पा लगा दिया जाता है जो भरोसे के लायक नहीं हैं, ऊँची राय या सम्मान के लायक नहीं हैं, और समाज में निम्न कोटि के हैं। ऐसे लोगों को किनारे कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि तुम्हारा बॉस तुम्हें कोई कार्य सौंपता है और तुम सोचते हो, “चूँकि मेरा बॉस यह कार्य लेकर आया है, तो चाहे यह जो कुछ भी हो, मुझे इस पर सहमत होना होगा। चाहे यह कितना भी कठिन क्यों न हो, भले ही इसके लिए कितने भी जोखिम क्यों न उठाने पड़ें, मुझे इसे करना ही होगा,” तो तुम सहमत हो जाते हो। इसकी एक वजह यह है कि वह तुम्हारा बॉस है, और तुम मना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। दूसरी यह कि वह अक्सर तुम पर दबाव डालते हुए कहता है, “केवल वे जो अन्य लोगों ने उन्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करते हैं, अच्छे सहयोगी हैं।” उसने तुम्हें मानसिक रूप से तैयार करने के लिए पहले ही तुम्हें यह अवधारणा घोंटकर पिला दी है। जब वह कोई अनुरोध करता है, तो तुम सम्मान के कारण उसका अनुपालन करने के लिए बाध्य होते हो और इनकार नहीं कर पाते; अन्यथा, अंत तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा। इसलिए, तुम्हें उसके लिए काम करने में अपनी सारी ऊर्जा लगानी पड़ती है। भले ही उसे आसानी से निपटाया न जा सके, तुम्हें उसे पूरा करने का तरीका खोजना पड़ता है। तुम्हें अपने संबंधों का प्रयोग करना पड़ता है, पिछले दरवाजे से जाना पड़ता है और उपहारों पर पैसा खर्च करना पड़ता है। अंत में, जब कार्य पूरा हो जाता है, तो तुम खर्च किए गए धन का उल्लेख भी नहीं कर सकते या कोई माँग नहीं कर सकते। और तुम्हें कहना पड़ता है, “‘लोगों को अन्य लोगों ने जो भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करनी चाहिए।’ आप मेरे बारे में अच्छी राय रखते हैं और मुझे बहुत महत्व देते हैं, इसलिए मुझे इस कार्य को अच्छी तरह से संभालने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।” वास्तव में, केवल तुम ही जानते हो कि तुमने कितनी परेशानी और कठिनाई झेली है। यदि तुम ऐसा करने में सफल हो जाते हो, तो लोग कहेंगे कि तुम कुलीन नैतिक आचरण वाले हो। लेकिन यदि तुम असफल रहते हो, तो लोग तुम्हें हेय दृष्टि से देखेंगे, तुमसे नफरत करेंगे और तुम्हें उनका तिरस्कार सहना पड़ेगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम किस सामाजिक वर्ग या जातीय समूह से हो, जब कोई तुम्हें कोई कार्य सौंपता है, तो तुम्हें अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना ही होगा और कोई कसर नहीं छोड़नी होगी, तुम उस काम से इनकार नहीं कर सकते। ऐसा क्यों? जैसा कि कहा जाता है, “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो।” चूँकि तुमने किसी का भरोसा स्वीकार कर लिया है, इसलिए तुम्हें इसे अंत तक ईमानदारी से संभालना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कार्य सफलतापूर्वक, अच्छी और पूरी तरह से किया गया हो और उस व्यक्ति द्वारा अनुमोदित हो, और फिर उसे रिपोर्ट करना चाहिए। भले ही वे इसके बारे में पूछताछ न करें, तुम्हें इसे संभालने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए। कुछ लोगों का मूल रूप से तुम्हारे साथ कोई वास्तविक संबंध नहीं होता है, जैसे कि तुम्हारे विस्तारित परिवार में दूर के रिश्तेदार। वे देखते हैं कि तुम्हारे पास समाज में अच्छी नौकरी या रुतबा और प्रतिष्ठा है, या कुछ प्रतिभा है, इसलिए वे तुम्हें कोई-न-कोई कार्य सौंप देते हैं। क्या मना करना ठीक है? वास्तव में, ऐसा करना बिल्कुल ठीक है, लेकिन मनुष्यों के जटिल सामाजिक रिश्तों और “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो,” के विचार से प्रभावित जनमत के दबाव के कारण, जब कोई ऐसा व्यक्ति जिसका मूल रूप से तुमसे कोई भी रिश्ता नहीं है, तुमसे अपने लिए कुछ करने के लिए कहता है, तो तुम्हें वह सब करना पड़ता है। बेशक, तुम ऐसा करने से मना कर सकते हो। ऐसा करने पर शायद तुम केवल एक व्यक्ति को अपमानित करो या कुछेक रिश्तेदारों के साथ तुम्हारा संबंध टूट जाए, या हो सकता है कि कुछ रिश्तेदार तुम्हें बहिष्कृत कर दें। लेकिन फिर, इससे क्या फर्क पड़ता है? वास्तव में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम उनके साथ नहीं रहते, और तुम्हारा भाग्य उनके हाथों में नहीं है। तो तुम उस काम को करने से इनकार क्यों नहीं कर सकते? इसके अपरिहार्य कारणों में से एक यह है कि “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो” के संबंध में लोगों की राय तुम्हें बाध्य कर रही है और दबा रही है। अर्थात्, किसी भी सामाजिक समुदाय में, तुम्हें अक्सर नैतिक मानक और लोगों की राय द्वारा “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करने” के लिए बाध्य किया जाता है। कार्यों को ईमानदारी से निपटाने के लिए अपनी पूरी कोशिश करना, सामाजिक जिम्मेदारी को पूरा करने या किसी सृजित प्राणी के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को पूरा करने के बारे में नहीं है। इसके बजाय, तुम्हें नैतिक मानक संबंधी कथनों और सामाजिक राय की अदृश्य जंजीरों ने बंदी बना लिया है। तुम्हारे इसके द्वारा बंधक बनाए जाने की संभावना क्यों है? एक पहलू यह है कि तुम यह अंतर नहीं कर पाते हो कि पूर्वजों से प्राप्त ये नैतिक कथन सही हैं या नहीं, न ही यह समझ पाते हो कि लोगों को उनका पालन करना चाहिए या नहीं। दूसरा पहलू यह है कि तुममें इस पारंपरिक संस्कृति के कारण उपजे सामाजिक दबाव और जनमत से मुक्त होने के साहस और शक्ति की कमी है। परिणामस्वरूप, तुम इसकी जंजीरों से और स्वयं पर इसके प्रभाव से मुक्त नहीं हो सकते। दूसरा कारण यह है कि समाज के किसी भी समुदाय या समूह में लोग चाहते हैं कि दूसरे लोग उन्हें उच्च नैतिक चरित्र वाला, एक अच्छा, विश्वसनीय व्यक्ति, भरोसेमंद और काम सौंपे जाने के योग्य व्यक्ति समझें। वे सभी ऐसी छवि स्थापित करना चाहते हैं जो सम्मान अर्जित करे और दूसरों को यह विश्वास दिलाए कि वे भावनाओं और वफादारी से युक्त हाड़-मांस वाले एक सम्मानित व्यक्ति हैं, न कि निर्दयी या अजनबी। यदि तुम समाज में घुलना-मिलना चाहते हो और उससे स्वीकृति एवं अनुमोदन चाहते हो, तो सबसे पहले तुम्हें उनके सामने एक उच्च नैतिक चरित्र वाले, ईमानदार और विश्वसनीय व्यक्ति के रूप में पहचान बनानी होगी। इसलिए, भले ही वे तुमसे कैसा भी अनुरोध करें, तुम उन्हें संतुष्ट करने, उन्हें खुश करने की पूरी कोशिश करते हो, और फिर उनसे यह प्रशंसा पाते हो कि तुम उच्च नैतिक चरित्र वाले एक भरोसेमंद व्यक्ति हो और लोग तुम्हारे साथ जुड़ने के इच्छुक हैं। इस तरह से तुम अपने जीवन में अपने अस्तित्व का एहसास कर पाते हो। यदि तुम्हें समाज, जनता और अपने सहयोगियों और दोस्तों से अनुमोदन मिल जाए, तो तुम विशेष रूप से पुष्टिकारक और संतोषजनक जीवन जिओगे। लेकिन, अगर तुम उनसे अलग तरीके से रहते हो, यदि तुम्हारे विचार और दृष्टिकोण उनसे भिन्न हैं, यदि जीवन में तुम्हारा मार्ग उनसे भिन्न है, यदि कोई नहीं कहता कि तुम उच्च नैतिक चरित्र वाले हो, भरोसेमंद हो, मामले सौंपे जाने योग्य हो, या तुममें गरिमा है, और यदि वे सभी तुम्हें छोड़ देते हैं और अलग-थलग कर देते हैं, तो तुम एक उदास और अवसादग्रस्त जीवन जिओगे। तुम उदास और अवसादग्रस्त क्यों महसूस करते हो? ऐसा इसलिए कि तुम्हारे आत्मसम्मान को ठेस पहुँचती है। तुम्हारा आत्म-सम्मान कहाँ से आता है? यह समाज और लोगों की मंजूरी और स्वीकृति से आता है। यदि वे तुम्हें जरा-भी नहीं स्वीकारते, यदि वे तुम्हारी प्रशंसा या सराहना नहीं करते, और यदि वे तुम्हें प्रशंसा, स्नेह या सम्मान की नजर से नहीं देखते तो तुम्हें लगता है कि तुम्हारा जीवन गरिमाहीन है। तुम बहुत व्यर्थ महसूस करते हो, और तुम्हें अपने अस्तित्व का कोई एहसास नहीं होता। तुम नहीं जानते कि तुम्हारा क्या मोल है और अंत में, तुम्हें पता नहीं होता कि कैसे जीना है। तुम्हारा जीवन अवसादग्रस्त और पीड़ामय हो जाता है। तुम हमेशा यह प्रयास करते रहते हो कि लोग तुम्हें स्वीकार करें, लोगों और समाज में घुलने-मिलने का प्रयास करते रहते हो। इसलिए, “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है उसे ईमानदारी से संभालने की पूरी कोशिश करो” के नैतिक मानक से चिपके रहना, ऐसे सामाजिक परिवेश में रहने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण मामला है। यह किसी व्यक्ति के नैतिक चरित्र को मापने और यह जानने का भी एक महत्वपूर्ण संकेतक है कि क्या उसे दूसरे स्वीकार करते हैं। लेकिन क्या माप का यह मानक सही है? निश्चित रूप से नहीं। दरअसल, इसे बेतुका भी कहा जा सकता है।
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