सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (13) भाग तीन
जहाँ तक किसी देश के भाग्य की बात है, क्या लोगों को समझना चाहिए कि परमेश्वर इसे कैसे देखता है, और लोगों को इसे सही तरीके से कैसे देखना चाहिए? (हाँ।) लोगों को यह ठीक-ठीक समझना चाहिए कि इस मामले के संबंध में उन्हें क्या दृष्टिकोण अपनाना है, ताकि वे “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” जैसे विचार के क्षयकारी असर और प्रभाव से खुद को छुटकारा दिला सकें। आओ पहले देखते हैं कि क्या किसी देश के भाग्य को कोई एक व्यक्ति, कोई ताकत या कोई जातीय समूह प्रभावित कर सकता है। किसी देश का भाग्य कौन तय करता है? (यह परमेश्वर तय करता है।) सही बात है, इस मूल कारण को समझा जाना चाहिए। किसी देश का भाग्य परमेश्वर की संप्रभुता से निकटता से जुड़ा हुआ है, और इसका किसी और चीज से कोई संबंध नहीं है। कोई भी ताकत, विचार या व्यक्ति किसी देश का भाग्य नहीं बदल सकता। किसी देश की नियति में कौन-सी चीजें शामिल हैं? देश की समृद्धि और उसका पतन। चाहे देश विकसित हो या पिछड़ा हुआ, और इसकी भौगोलिक स्थिति चाहे जो भी हो, इसका क्षेत्रफल कितना है, इसका आकार और इसके सभी संसाधन—जमीन पर, जमीन के अंदर और आकाश में कितने संसाधन मौजूद हैं—देश का शासक कौन है, सत्ता के पदानुक्रम में किस प्रकार के लोग शामिल हैं, शासक के मार्गदर्शक राजनीतिक सिद्धांत और शासन करने का तरीका क्या है, क्या वे परमेश्वर को पहचानते हैं, उसके प्रति समर्पण करते हैं, और परमेश्वर के प्रति उनका रवैया क्या है वगैरह—इन सभी बातों का देश के भाग्य पर असर पड़ता है। ये चीजें किसी एक व्यक्ति द्वारा निर्धारित नहीं की जातीं, फिर किसी ताकत की बात तो दूर है। कोई एक व्यक्ति या ताकत अंतिम फैसला नहीं लेती और न ही शैतान लेता है। तो फिर अंतिम फैसला कौन लेता है? केवल परमेश्वर अंतिम फैसला लेता है। मनुष्य इन चीजों को नहीं समझते, और न ही शैतान समझता है, लेकिन वह अवज्ञाकारी है। वह लगातार मनुष्यों पर नियंत्रण रखना और उन पर हावी होना चाहता है, इसलिए वह नैतिक आचरण और सामाजिक रीति-रिवाज जैसी चीजों को बढ़ावा देने के लिए लगातार कुछ उत्तेजक और भ्रामक विचारों और मतों का उपयोग करके लोगों को ये विचार स्वीकारने के लिए मजबूर करता है, जिससे शासकों की सेवा के लिए लोगों का शोषण किया जाता है, और शासक सत्ता में बने रहते हैं। लेकिन वास्तव में शैतान चाहे जो करे, किसी देश के भाग्य का शैतान से कोई संबंध नहीं है, न ही इस बात से कोई संबंध है कि परंपरागत संस्कृति के इन विचारों को कितने जोशो-खरोश से, कितनी गहराई से और कितने व्यापक रूप से फैलाया जाता है। किसी भी काल में किसी भी देश की रहन-सहन की स्थितियाँ और अस्तित्व में बने रहने का स्वरूप—चाहे वह अमीर हो या गरीब, पिछड़ा हो या विकसित, साथ ही संसार के देशों के बीच उसका दर्जा चाहे जो हो—इन सबका शासकों के शासन की ताकत, इन विचारकों के विचारों के सार या जिस जोशो-खरोश से वे उन्हें प्रसारित करते हैं, उनसे उनका कोई लेना-देना नहीं है। किसी देश का भाग्य केवल परमेश्वर की संप्रभुता और उस काल से संबंधित है जब परमेश्वर पूरी मानव जाति का प्रबंधन करता है। जिस भी अवधि में परमेश्वर को जो भी कार्य करना होता है, जिन चीजों पर शासन करना और आयोजन करना होता है, और पूरे समाज को जिस किसी दिशा में ले जाना होता है, और समाज के किसी भी स्वरूप को सामने लाना होता है—उस अवधि के दौरान कुछ विशेष नायक प्रकट होंगे, और कुछ महान और विशेष चीजें घटित होंगी। उदाहरण के लिए युद्ध या कुछ देशों की भूमि पर दूसरे देशों का कब्जा होना, या कुछ विशेष उभरती हुई टेक्नोलॉजी का उद्भव, या यहाँ तक कि पृथ्वी के सभी महासागरों और महाद्वीपीय प्लेटों की हलचल वगैरह—ये सभी चीजें परमेश्वर की संप्रभुता और उसके हाथों की व्यवस्था के अधीन हैं। यह भी संभव है कि एक साधारण व्यक्ति की उपस्थिति पूरी मानव जाति को एक बड़ा कदम आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करे। यह भी उतना ही संभव है कि एक बहुत ही सामान्य, महत्वहीन घटना होने से मानव जाति का बड़े पैमाने पर प्रवासन शुरू हो जाए, या यह भी हो सकता है कि किसी महत्वहीन घटना के प्रभाव में आकर पूरी मानव जाति एक बड़े परिवर्तन के दौर से गुजरे, या अर्थव्यवस्था, सैन्य मामलों, व्यवसाय या चिकित्सा उपचार वगैरह के संदर्भ में अलग-अलग स्तरों पर बदलाव हों। ये बदलाव पृथ्वी पर किसी भी देश के भाग्य के साथ-साथ किसी भी देश की समृद्धि और पतन पर असर डालते हैं। यही कारण है कि किसी भी देश की नियति, उसका उत्थान और पतन, चाहे वह शक्तिशाली देश हो या कमजोर, सभी मानव जाति के बीच परमेश्वर के प्रबंधन और उसकी संप्रभुता से संबंधित हैं। तो फिर परमेश्वर चीजों को इस प्रकार से क्यों करना चाहता है? हर चीज के मूल में उसके इरादे होते हैं। संक्षेप में किसी भी देश या राष्ट्र के अस्तित्व, उत्थान और पतन का किसी भी जाति, किसी शक्ति, किसी शासक वर्ग, शासन के किसी तरीके या किसी खास व्यक्ति से कोई संबंध नहीं होता। वे केवल सृष्टिकर्ता की संप्रभुता से संबंधित होते हैं, और वे उस अवधि से भी संबंधित होते हैं जिसके दौरान सृष्टिकर्ता मानव जाति का प्रबंधन करता है, और ये उस अगले कदम से भी संबंधित होते हैं जो सृष्टिकर्ता मानव जाति का प्रबंधन और अगुआई करने के लिए उठाएगा। इसलिए परमेश्वर जो कुछ भी करता है, वह किसी भी देश, राष्ट्र, जाति, समूह या खास व्यक्ति के भाग्य को प्रभावित करता है। इस दृष्टिकोण से यह कहा जा सकता है कि किसी भी व्यक्ति, जाति, राष्ट्र और देश की नियति वास्तव में एक-दूसरे से जुड़ी और निकटता से बंधी हुई हैं, और उनके बीच एक अटूट संबंध है। हालाँकि इन चीजों के बीच का संबंध इस विचार और दृष्टिकोण के कारण नहीं बनता कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है,” बल्कि यह सृष्टिकर्ता की संप्रभुता के कारण बनता है। ऐसा ठीक-ठीक इसलिए है क्योंकि इन चीजों की नियति एकमात्र सच्चे परमेश्वर, सृष्टिकर्ता की संप्रभुता के अधीन है, और यह कि उनके बीच एक अटूट संबंध है। यही किसी देश के भाग्य का मूल कारण और सार है।
बहुसंख्यक आबादी के परिप्रेक्ष्य से देखें, तो किसी को अपने देश के भाग्य के संबंध में क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए? सबसे पहले तो यह देखना चाहिए कि देश बहुसंख्यक आबादी की सुरक्षा करने और उन्हें संतुष्ट रखने के लिए कितना कुछ करता है। यदि अधिकांश आबादी अच्छी तरह से रहती है, उनके पास आजादी और स्वतंत्र रूप से बोलने का अधिकार है, यदि राज्य सरकार द्वारा लागू की गई सभी नीतियाँ बहुत तर्कसंगत हैं, और लोग उन्हें निष्पक्ष और उचित मानते हैं, यदि सामान्य लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा की जा सकती है, और यदि लोगों से उनका जीवन जीने का अधिकार नहीं छीना जाता, तो लोग स्वाभाविक रूप से इस देश पर निर्भर हो जाएँगे, वहाँ रहकर खुशी महसूस करेंगे और तहेदिल से इससे प्यार करेंगे। तब हर कोई इस देश के भाग्य के प्रति जिम्मेदार होगा, और लोग वास्तव में इस देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी करना चाहेंगे, और वे चाहेंगे कि इसका अस्तित्व हमेशा बना रहे क्योंकि इससे उनके जीवन को और उनसे जुड़ी हर चीज को लाभ होता है। यदि यह देश सामान्य लोगों के जीवन की रक्षा नहीं कर सकता, उन्हें वह मानवाधिकार नहीं देता है जिसके वे हकदार हैं, और उनके पास अभिव्यक्ति की आजादी भी नहीं है, और यदि अपने मन की बात कहने पर लोगों पर प्रतिबंध लगाए जाते हैं और कार्रवाई की जाती है, और यहाँ तक कि लोगों को अपने मन की बात कहने और उस पर चर्चा करने के लिए भी मना किया जाता है, और यदि लोगों को धमकी, अपमान और उत्पीड़न सहना पड़ता है और देश को कोई परवाह नहीं होती, और यदि किसी भी प्रकार की कोई आजादी नहीं है, और लोगों को उनके बुनियादी मानव अधिकारों और जीवन के अधिकार से वंचित किया जाता है, और यदि परमेश्वर में विश्वास करने और उसका अनुसरण करने वालों को दबाया और सताया जाता है, ताकि वे घर न लौट पाएँ, और यदि बेरहमी से विश्वासियों की जान ले ली जाती है, तो यह देश दुष्टों का देश है, शैतान का देश है, और यह कोई वास्तविक देश नहीं है। ऐसी स्थिति में क्या अब भी हर किसी को इसके भाग्य के लिए जिम्मेदार होना चाहिए? यदि लोग पहले से ही अपने दिलों में इस देश से घृणा और नफरत करते हैं, तो भले ही वे सैद्धांतिक रूप से इसकी जिम्मेदारी स्वीकारें, पर वे यह जिम्मेदारी पूरी करने के लिए तैयार नहीं होंगे। यदि कोई शक्तिशाली शत्रु इस देश पर आक्रमण करने आता है, तो अधिकांश लोग देश के आसन्न पतन की आशा भी रखेंगे, ताकि वे सुखी जीवन जी सकें। इसलिए किसी देश के भाग्य के लिए हर कोई जिम्मेदार है या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी सरकार लोगों के साथ कैसा व्यवहार करती है। अहम बात यह है कि क्या इसे जनता का समर्थन प्राप्त है—यह मुख्य रूप से इस पहलू के आधार पर निर्धारित होता है। बुनियादी तौर पर कहा जाए तो दूसरा पहलू यह है कि किसी भी देश में जो कुछ भी होता है उसके पीछे कई कारण और कारक होते हैं जिनकी वजह से ऐसा होता है, और यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे कोई सामान्य या मामूली व्यक्ति प्रभावित कर सके। इसलिए जब देश के भाग्य की बात आती है, तो किसी एक व्यक्ति या जातीय समूह के पास अंतिम फैसला लेने या हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होता। क्या यह तथ्य नहीं है? (हाँ।) उदाहरण के लिए मान लो कि तुम्हारे देश का शासक वर्ग अपने क्षेत्र का विस्तार करके पड़ोसी देश की प्रमुख भूमि, बुनियादी ढाँचे और संसाधनों को जब्त करना चाहता है। यह फैसला लेने के बाद शासक वर्ग सैन्य बल तैयार करना, धन जुटाना, सभी प्रकार की चीजें जमा करना और भूमि का विस्तार कब शुरू करना है, इस पर चर्चा करना शुरू कर देता है। क्या आम लोगों को यह सब जानने का अधिकार है? तुम्हें जानने का अधिकार भी नहीं है। तुम बस इतना ही जानते हो कि हाल के वर्षों में राज्य कर बढ़ गया है, अलग-अलग बहानों से लगाए गए कर और शुल्क में बढ़ोतरी हुई है, और राष्ट्रीय कर्ज बढ़ गया है। तुम्हारा एकमात्र दायित्व करों का भुगतान करना है। जहाँ तक सवाल है कि देश का क्या होगा और शासक क्या करेंगे, तो क्या इसका तुमसे कोई लेना-देना है? जब देश युद्ध करने का फैसला लेता है, उस क्षण तक वह किस देश और किन भूमियों पर आक्रमण करेगा, और वह उन पर कैसे आक्रमण करेगा, ये ऐसी बातें हैं जो केवल शासक वर्ग ही जानता है, और यह युद्ध में भेजे जाने वाले सैनिकों को भी पता नहीं होता। उन्हें जानने का अधिकार भी नहीं है। जहाँ शासक इशारा करे वहाँ उन्हें लड़ना होता है। वे क्यों लड़ रहे हैं, कब तक लड़ना है, वे जीत सकते हैं या नहीं, और वे कब घर जा सकते हैं, यह सब उन्हें नहीं पता, वे कुछ भी नहीं जानते। कुछ लोगों के बच्चों को युद्ध में भेज दिया जाता है, लेकिन माता-पिता होने के नाते उन्हें इसकी जानकारी तक नहीं होती। इससे भी बुरी बात यह है कि जब उनके बच्चे मारे जाते हैं तो उन्हें पता भी नहीं चलता। जब तक उनकी अस्थियाँ वापस नहीं लाई जातीं, तब तक उन्हें पता ही नहीं होता कि उनके बच्चे अब नहीं रहे। तो मुझे बताओ, क्या तुम्हारे देश का भाग्य, और तुम्हारा देश जो चीजें करेगा, और वह क्या फैसले लेगा, उसका एक सामान्य व्यक्ति के रूप में तुमसे कोई लेना-देना है? क्या देश तुम्हें यानी एक सामान्य व्यक्ति को इन चीजों के बारे में बताता है? क्या तुम्हारे पास फैसले लेने की प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार है? फैसले लेने की प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार तो दूर की बात है, तुम्हें तो जानने का अधिकार भी नहीं है। तुम्हारे लिए तुम्हारा देश चाहे जो भी मायने रखे, यह कैसे विकसित होता है, यह किस दिशा में बढ़ रहा है और यह कैसे शासित होता है, क्या इसका तुमसे कोई संबंध है? इसका तुमसे कोई संबंध नहीं है। ऐसा क्यों? क्योंकि तुम एक साधारण व्यक्ति हो, और यह सब बातें केवल शासकों से संबंधित हैं। अंतिम फैसला शासकों और सत्ताधारी वर्ग और निहित स्वार्थ रखने वाले लोगों का होता है, लेकिन एक सामान्य व्यक्ति के रूप में इसका तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। तो तुममें थोड़ी आत्म-जागरूकता होनी चाहिए। तर्कहीन चीजें मत करो; किसी शासक के लिए अपनी जान देने या खुद को नुकसान पहुँचाने की कोई जरूरत नहीं है। मान लेते हैं कि देश के शासक तानाशाह हैं, और सत्ता दुष्टों के हाथों में है जो अपने उचित कर्तव्यों पर ध्यान नहीं देते, और जो सारा दिन शराब पीने और व्यभिचार करने में लगे रहते हैं, फिजूलखर्ची करते हैं और लोगों के लिए कुछ नहीं करते। देश कर्ज और अराजकता में डूब जाता है, और शासक भ्रष्ट और नाकारा हो जाते हैं, जिसके चलते कोई विदेशी दुश्मन देश पर आक्रमण कर देता है। तभी शासक आम लोगों के बारे में सोचते हैं, उन्हें पुकारते हुए कहते हैं : “‘प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है।’ यदि देश तबाह हो जाता है, तो कठिनाई का जीवन तुम लोगों का इंतजार कर रहा होगा। फिलहाल देश संकट में है और आक्रमणकारी हमारी सीमाओं में घुस आए हैं। देश की रक्षा करने के लिए फौरन युद्ध के मैदान में जाओ, समय आ गया है जब देश को तुम लोगों की जरूरत है!” तुम इस पर गहराई से विचार करते हुए सोचते हो, “सही बात है, ‘प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है।’ देश को आखिर एक बार मेरी जरूरत है, और क्योंकि मुझ पर यह जिम्मेदारी है, तो मुझे देश की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान करना चाहिए। हमारा देश दूसरे हाथों में नहीं जा सकता, अगर यह शासक सत्ता में नहीं रहा तो हम तबाह हो जाएँगे!” क्या ऐसा सोचना मूर्खता है? इन तानाशाहियों के शासक परमेश्वर को नकारते और उसका विरोध करते हैं, दिन भर खाते-पीते और मौज-मस्ती करते हैं, लापरवाही से व्यवहार करते हैं, आम लोगों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं, और जनता को नुकसान पहुँचाते और उनके साथ क्रूरता बरतते हैं। यदि तुम इन जैसे शासकों की रक्षा करने के लिए बहादुरी और निडरता से तुरंत तैयार हो जाते हो, युद्ध के मैदान में उनके लिए चारा बनकर अपना जीवन बलिदान कर देते हो, तो तुम निहायत ही मूर्ख हो, और अंध निष्ठा दिखा रहे हो! मैं क्यों कहता हूँ कि तुम निहायत मूर्ख हो? युद्ध के मैदान में सैनिक वास्तव में किसके लिए लड़ रहे हैं? वे किसके लिए अपना जीवन बलिदान कर रहे हैं? वे किसके लिए चारा बन रहे हैं? और यदि सभी लोगों में से तुम, एक कमजोर और दुर्बल आम इंसान युद्ध में जाता है, तो यह केवल मूर्खतापूर्ण दुस्साहस और व्यर्थ का बलिदान है। यदि युद्ध होता है, तो तुम्हें व्यर्थ बलिदान और प्रतिरोध करने के बजाय परमेश्वर से अपनी रक्षा करने की प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि तुम किसी सुरक्षित जगह पर जा सको। निरर्थक बलिदान की क्या परिभाषा होती है? मूर्खतापूर्ण दुस्साहस। देश में स्वाभाविक रूप से ऐसे लोग होंगे जो शासकों की रक्षा करने और उनके लिए अपना जीवन दाँव पर लगाने के लिए, “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” की भावना को कायम रखना चाहेंगे। ऐसे लोगों के हितों पर और उनके जीवित रहने पर देश के भाग्य का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है, तो उन्हें ही देश के मामले सँभालने दो। तुम एक साधारण व्यक्ति हो, तुम्हारे पास देश की रक्षा करने की कोई शक्ति नहीं है, और इन चीजों का तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। वास्तव में किस तरह का देश रक्षा करने लायक है? यदि वह स्वतंत्र और लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला देश है, और शासक वास्तव में लोगों के लिए काम करता है और उन्हें सामान्य जीवन की गारंटी दे सकता है, तो ऐसा देश रक्षा और सुरक्षा करने के लायक है। आम लोगों को लगता है कि ऐसे देश की रक्षा करना अपने घर की रक्षा करने के समान है, जो एक अटल जिम्मेदारी है, तो वे देश के लिए काम करने और अपनी जिम्मेदारी निभाने को तैयार होते हैं। लेकिन यदि दानव या शैतान इस देश पर शासन करते हैं, और शासक इस हद तक दुष्ट और नाकारा हैं कि इन राक्षस राजाओं का शासन ऊर्जाहीन हो गया है और उन्हें सत्ता छोड़ देनी चाहिए, तो परमेश्वर किसी शक्तिशाली देश को इस पर आक्रमण करने के लिए खड़ा कर देगा। यह मनुष्यों के लिए स्वर्ग से आया एक संकेत है, जो उन्हें बता रहा है कि इस शासन के शासकों को सत्ता छोड़ देनी चाहिए, और वे ऐसी शक्ति रखने या इस भूमि पर काबिज रहने या देश के लोगों से अपना भरण-पोषण कराने के लायक नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने देश की आबादी के कल्याण के लिए कुछ भी नहीं किया, और न उनके शासन से आम लोगों को किसी भी तरह का लाभ हुआ या न ही उनके जीवन में कोई खुशी आई है। उन्होंने केवल आम लोगों को परेशान किया, उन्हें नुकसान पहुँचाया, उन पर अत्याचार और उनके साथ दुर्व्यवहार किया है। इसलिए ऐसे शासकों को सत्ता छोड़ देनी चाहिए और अपने पदों से हट जाना चाहिए। यदि इस शासन को किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था द्वारा बदल दिया जाता है और सदाचारी लोग सत्ता में आते हैं, तो यह आम जनता की आशाओं और अपेक्षाओं को पूरा करेगी, और यह स्वर्ग की इच्छा के अनुरूप भी होगा। जो लोग स्वर्ग के तरीकों का पालन करते हैं वे समृद्ध होंगे, जबकि जो लोग स्वर्ग का विरोध करते हैं वे तबाह हो जाएँगे। एक सामान्य नागरिक के रूप में यदि तुम लगातार इस विचार से गुमराह होते हो कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” और हमेशा शासक वर्ग को अपना आदर्श मानते हो और उसका अनुसरण करते हो, तो तुम यकीनन जल्दी मारे जाओगे और संभावना है कि तुम शासक वर्ग के लिए बलि का बकरा और अंत्येष्टि की वस्तु बन जाओ। यदि तुम सत्य का अनुसरण करते हो, शैतान द्वारा गुमराह होने से बचते हो और उसके प्रभाव से बचकर अपना जीवन बचा सकते हो, तो तुम एक सकारात्मक देश को उभरते, संत-महात्माओं और बुद्धिमान शासकों को सत्ता सँभालते, और अच्छी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना होते देख पाओगे और तुम्हें एक सुखी जीवन जीने का सौभाग्य प्राप्त होगा। क्या यह एक बुद्धिमान व्यक्ति की पसंद नहीं है? देश पर आक्रमण करने वाले हर किसी को शत्रु या शैतान मत समझो; यह गलत है। यदि तुम हमेशा शासकों को सर्वोच्च और अन्य सभी से ऊपर मानते हो, और चाहे वे कितने भी बुरे काम करें, या परमेश्वर का कितना भी विरोध करें और विश्वासियों पर कितना भी अत्याचार करें, फिर भी उन्हें इस भूमि के शाश्वत स्वामी मानते हो, तो यह एक भयंकर गलती है। जरा सोचो, एक बार जब अतीत के उन सामंती शासक राजवंशों को समूल नष्ट कर दिया गया, और मनुष्य विभिन्न प्रकार की अपेक्षाकृत लोकतांत्रिक सामाजिक व्यवस्थाओं में रहने लगे, तो वे कुछ हद तक स्वतंत्र और खुशहाल हो गए, उनका जीवन भौतिक रूप से पहले की तुलना में बेहतर हो गया, और विभिन्न चीजों को देखने के मानव जाति के दर्शन, अंतर्दृष्टि और दृष्टिकोण में पहले की तुलना में काफी प्रगति हुई। यदि सभी लोग अपनी सोच में पिछड़े होते, और लगातार यह विश्वास करते कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” और पुरानी परंपराओं को वापस लाना चाहते, सम्राटों के शासन को बहाल करना चाहते, और एक सामंती व्यवस्था में लौटना चाहते, तो क्या मानव जाति उतनी विकसित हो पाती जितनी आज हुई है? क्या उनका परिवेश वैसा ही होता जैसा अभी है? जाहिर है कि ऐसा नहीं होता। इसलिए जब देश संकट में हो, यदि देश का कानून यह तय करे कि तुम्हें अपने नागरिक कर्तव्यों को पूरा करना होगा और सैन्य सेवा करनी होगी, तो तुम्हें कानून के अनुसार सैन्य सेवा करनी चाहिए। यदि तुम्हें अपनी सैन्य सेवा के दौरान युद्ध में जाना पड़े, तो तुम्हें इसी तरह अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए, क्योंकि कानून यही कहता है। तुम कानून नहीं तोड़ सकते, और तुम्हें इसका पालन करना ही होगा। यदि कानून के अनुसार इसकी आवश्यकता नहीं है तो तुम अपने हिसाब से कुछ भी चुन सकते हो। यदि तुम जिस देश में रहते हो वह परमेश्वर को मानता है, उसका अनुसरण करता है, उसकी आराधना करता है और उसे परमेश्वर का आशीष प्राप्त है, तो ऐसे देश की रक्षा की जानी चाहिए। यदि तुम जिस देश में रहते हो वह परमेश्वर का विरोध और उस पर अत्याचार करता है, और ईसाइयों को गिरफ्तार करके सताता है, तो ऐसा देश शैतानों द्वारा शासित एक शैतानी देश है। पागलपन भरे क्रोध के साथ लगातार परमेश्वर का विरोध करके उसने पहले ही परमेश्वर के स्वभाव को नाराज कर दिया है, और परमेश्वर ने उसे शाप दिया है। जब ऐसा देश किसी विदेशी शत्रु के आक्रमण का सामना करता है, और अपनी सीमाओं के अंदर और बाहर परेशानियों से घिरा होता है, तो यह परमेश्वर और मानव जाति के बीच व्यापक रोष, असंतोष और नाराजगी का समय होता है। क्या यही वो समय नहीं है जब परमेश्वर इस देश को नष्ट करने के लिए माहौल तैयार करना चाहता है? इसी समय में परमेश्वर अपना कार्य शुरू करता है। परमेश्वर ने लोगों की प्रार्थनाएँ सुन ली हैं, और समय आ गया है कि वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों के साथ हुए अन्याय का निवारण करे। यह अच्छी बात है और अच्छी खबर भी है। जिस समय परमेश्वर दानवों और शैतान को मिटाने वाला होता है, वही समय परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए अत्यधिक उत्साहित होने और चारों ओर यह समाचार फैलाने का होता है। इस समय तुम्हें शासक वर्ग के लिए अपनी जान जोखिम में नहीं डालनी चाहिए। तुम्हें अपनी बुद्धि का उपयोग करके शासक वर्ग द्वारा लगाई गई बाधाओं को दूर करना चाहिए, और फौरन अपनी जान बचाकर भागना चाहिए और खुद की रक्षा करनी चाहिए। कुछ लोग कहते हैं : “यदि मैं भागता हूँ तो क्या मैं भगोड़ा बन जाऊँगा? क्या यह स्वार्थी होना नहीं है?” तुम भगोड़े भी नहीं हो सकते, तुम बस अपने घर की रक्षा करो और आक्रमणकारियों द्वारा बमबारी करके उस पर कब्जा करने का इंतजार करो, और फिर देखो कि क्या परिणाम निकलता है। सच तो यह है कि जब राष्ट्रीय महत्व की कोई बड़ी घटना घटती है तो आम लोगों को अपने लिए चुनाव करने का अधिकार नहीं होता। हर किसी के पास केवल निष्क्रिय रहकर प्रतीक्षा करने, उस घटना पर नजर रखने और इसके अपरिहार्य परिणामों को सहने के अलावा और कोई चारा नहीं होता। क्या यह एक तथ्य नहीं है? (हाँ।) यह वास्तव में एक तथ्य है। किसी भी स्थिति में पलायन सबसे बुद्धिमानी भरा कदम है। अपने जीवन की रक्षा और अपने परिवार की सुरक्षा करना तुम्हारी जिम्मेदारी है। यदि हर किसी को अपने देश के भाग्य के लिए जिम्मेदार ठहराया गया, और इसके कारण सभी लोग मारे गए, और देश में केवल चारों ओर भूमि ही बची, तो क्या तब भी देश का सार बचा होगा? तब “देश” महज एक खोखला शब्द होगा, है न? तानाशाहों की नजरों में मानव जीवन उनकी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं, उनके आक्रामक कार्यों और उनके किसी भी फैसले और क्रियाकलापों की तुलना में सबसे कम मूल्यवान चीज होता है, लेकिन परमेश्वर की नजरों में मानव जीवन सबसे महत्वपूर्ण चीज होता है। जो लोग तानाशाहों के लिए जान न्योछावर करने को तैयार हैं और “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” की भावना को कायम रखना चाहते हैं, उन्हें शासकों के लिए योगदान और बलिदान देने दो। जो लोग परमेश्वर का अनुसरण करते हैं उन पर शैतान के देश के लिए बलिदान देने का कोई दायित्व नहीं होता। तुम इसे इस तरह भी कह सकते हो—शैतान की कर्तव्यनिष्ठ संतानों और उसका अनुसरण करने वालों को शैतान के शासन और उसकी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं के लिए बलिदान देने दो। उनका जान न्योछावर करना ही सही है। किसी ने भी उन्हें इतनी बड़ी महत्वाकांक्षाएं और इच्छाएँ रखने के लिए मजबूर नहीं किया है। वे बस शासकों का अनुसरण करना पसंद करते हैं और शैतानों के प्रति वफादारी निभाने का इरादा रखते हैं, भले ही इसमें उनकी मृत्यु हो जाए। अंत में वे शैतान के बलिदानी शिकार और अंतिम संस्कार के आभूषण बन जाते हैं, जिसके वो लायक हैं।
जब कोई देश दूसरे देश पर आक्रमण करता है, या जब किसी दूसरे देश के साथ किसी असमान लेन-देन के कारण युद्ध की नौबत आती है, तो आखिर में आम लोग यानी इस भूमि पर रहने वाले सभी लोग इसके शिकार होते हैं। यह एक तथ्य है कि यदि कोई एक पक्ष समझौता करने में सक्षम हो, अपनी महत्वाकांक्षाओं, इच्छाओं और सत्ता को छोड़ सके और आम लोगों के अस्तित्व के बारे में सोचे, तो कुछ युद्ध टाले जा सकते हैं। कई युद्ध वास्तव में शासकों द्वारा अपने शासन से चिपके रहने के कारण होते हैं, वे अपने हाथ में आई सत्ता को छोड़ना या खोना नहीं चाहते, बल्कि हठपूर्वक अपनी मान्यताओं पर कायम रहते हैं, सत्ता से चिपके रहते हैं और अपने हितों के लिए अड़े रहते हैं। एक बार जब युद्ध छिड़ जाता है तो आम जनता या सामान्य लोग ही इसके शिकार होते हैं। युद्ध के समय में वे दूर-दूर तक बिखर जाते हैं और इन सबका विरोध करने में सबसे कम सक्षम होते हैं। क्या ये शासक आम लोगों के बारे में सोचते हैं? सोचो अगर कोई ऐसा शासक हो जो कहे, “अगर मैं अपनी मान्यताओं और अपने सिद्धांतों पर कायम रहता हूँ, तो इससे युद्ध छिड़ सकता है, और इसके शिकार आम लोग ही होंगे। अगर मैं जीत भी गया, तो यह भूमि हथियारों और गोला-बारूद से नष्ट हो जाएगी, और जिन घरों में लोग रहते हैं वे नष्ट हो जाएँगे, और फिर इस भूमि पर रहने वाले लोगों का जीवन भविष्य में खुशहाल नहीं रहेगा। आम लोगों की रक्षा के लिए मैं सत्ता छोड़ दूँगा, हथियार त्याग दूँगा और आत्मसमर्पण करके समझौता कर लूँगा,” और फिर इससे युद्ध टल जाएगा। क्या ऐसा कोई शासक है? (नहीं।) वास्तव में आम लोग लड़ना नहीं चाहते, न ही वे राजनीतिक शक्तियों के बीच प्रतिद्वंद्विता या प्रतिस्पर्धा में भाग लेना चाहते हैं। उन सभी को शासक द्वारा निष्क्रिय रूप से बलि का बकरा बनने के लिए युद्ध के मैदान में भेज दिया जाता है। ये सभी लोग जिन्हें युद्ध के मैदान में भेजा जाता है, चाहे मरें या जीवित रहें, आखिर में शासक को सत्ता में बनाए रखने के लिए काम करते हैं। तो क्या सारा फायदा शासक को ही होता है? (हाँ।) युद्ध से आम लोगों को क्या लाभ हो सकता है? आम लोग इससे केवल तबाह हो सकते हैं, और अपने घरों और जिस परिवेश पर वे निर्भर हैं उसके विनाश से जूझ सकते हैं। कुछ लोग अपने परिवारों को खो देते हैं, और इससे भी अधिक लोग विस्थापित और बेघर हो जाते हैं, जिनके लौटने की कोई संभावना नहीं होती। और फिर भी शासक बड़ी शान से दावा करता है कि युद्ध लोगों के घरों और उनके अस्तित्व की रक्षा के लिए शुरू किया गया था। क्या इस दावे में दम है? क्या यह कपट और दिखावा नहीं है? अंत में इसका सारा दुष्परिणाम आम जनता को भुगतना पड़ता है और इसका सबसे बड़ा लाभार्थी शासक होता है। वे लोगों पर शासन जारी रख सकते हैं, भूमि पर शासन करते हैं, सत्ता अपने हाथों में रखकर शासक के बतौर आदेश देते रहते हैं, जबकि सामान्य लोग बिना किसी भविष्य और बिना किसी आशा के गंभीर संकट में जीते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” का विचार बिल्कुल सही है। अब इस पर गौर करें तो क्या यह सही है? (नहीं, यह सही नहीं है।) इस कहावत में थोड़ी भी सच्चाई नहीं है। चाहे इसे लोगों के मन में इस विचार को बिठाने की शैतान की मंशाओं के परिप्रेक्ष्य से देखा जाए, या मानव विकास के संपूर्ण इतिहास में विभिन्न चरणों में शासकों की योजनाओं, इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं के परिप्रेक्ष्य से, या किसी देश के भाग्य से संबंधित किसी तथ्य के नजरिए से देखें, इन घटनाओं का घटित होना किसी भी सामान्य इंसान, व्यक्ति या जातीय समूह द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता। अंत में पीड़ित मासूम आम जनता और सामान्य लोग ही होते हैं, जबकि सबसे ज्यादा फायदा देश के शासक वर्ग, सर्वोच्च स्थान पर बैठे शासकों को ही होता है। जब देश संकट में होता है, तो वे आम लोगों को गोलियों का सामना करने के लिए युद्धभूमि में अग्रिम मोर्चे पर भेज देते हैं। जब देश संकट में नहीं होता तो आम आदमी का हाथ ही उनका पेट भरता है। वे आम लोगों का शोषण करते हैं, उनका खून बहाते हैं और उनके भरोसे जीते हैं, लोगों को उनका पेट भरने के लिए मजबूर करते हैं, और आखिर में लोगों के मन में यह विचार पैदा करके उन्हें इसे स्वीकारने के लिए मजबूर करते हैं कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है।” जो इसे स्वीकार नहीं करता उसे देशद्रोही करार दिया जाता है। ये शासक यह संदेश दे रहे हैं : “मेरे शासन का उद्देश्य है कि तुम लोग खुशहाल जीवन जियो। मेरे शासन के बिना तुम लोग जीवित नहीं रह पाओगे; इसलिए तुम लोगों को वही करना होगा जो मैं कहता हूँ, आज्ञाकारी नागरिक बनो, और हमेशा अपने देश के भाग्य के लिए खुद को समर्पित करने और बलिदान करने के लिए तैयार रहो।” देश कौन है? देश का पर्याय कौन है? शासक देश के पर्याय होते हैं। लोगों के मन में यह विचार पैदा करके कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है,” एक ओर वे लोगों को बिना किसी विकल्प, हिचकिचाहट या आपत्ति के अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने के लिए मजबूर कर रहे हैं। दूसरी ओर वे लोगों को बता रहे हैं कि देश का भाग्य और उसके शासकों के सत्ता में बने रहने या न रहने का सवाल जनता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए उन्हें देश और उसके शासकों, दोनों की रक्षा के लिए बहुत सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि सामान्य तौर पर उनके अस्तित्व में बने रहने की गारंटी रहे। क्या वास्तव में ऐसा है? (नहीं।) जाहिर है कि ऐसी कोई बात नहीं है। जो शासक परमेश्वर के प्रति समर्पण नहीं कर सकते, उसकी इच्छा के अनुसार नहीं चल सकते, या आम लोगों की खातिर काम नहीं कर सकते, उन्हें सबका समर्थन नहीं मिलेगा, और वे अच्छे शासक नहीं होंगे। यदि आम लोगों की भलाई की खातिर काम करने के बजाय शासक केवल अपना हित साधते हैं, लोगों पर अत्याचार करते हैं, और परजीवियों की तरह उनका पसीना और खून निचोड़ते हैं, तो ऐसे शासक शैतान और दानव हैं, और चाहे वे कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों, लोगों का समर्थन पाने लायक नहीं हैं। यदि देश में ऐसे शासक नहीं होते, तो क्या उसका अस्तित्व होता? क्या लोगों का जीवन बचता? वे सभी एकदम इसी तरह अस्तित्व में रहते, और यहाँ तक कि लोग बेहतर जीवन जी पाते। यदि लोग इस प्रश्न का सार स्पष्ट रूप से देखें कि अपने देश के प्रति उनके दायित्व और जिम्मेदारियाँ क्या होनी चाहिए, तो चाहे वे किसी भी देश में रहते हों, उन्हें उस देश की प्रमुख समस्याओं, और राजनीति से संबंधित समस्याओं और उस देश के भाग्य के बारे में सही विचार रखने चाहिए। जब ये सही विचार सामने आएँगे, तो तुम देश के भाग्य से जुड़े मामलों में सही चुनाव करने में सक्षम होगे। जब किसी देश के भाग्य की बात आती है, तो क्या तुम लोग मूल रूप से उस सत्य को समझते हो जिसे लोगों को समझना चाहिए? (हाँ।)
मैंने नैतिक आचरण की कहावत, “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” के बारे में काफी संगति कर ली है। जहाँ तक देश की अवधारणा का संबंध है, समाज के लोगों पर “देश” शब्द का प्रभाव क्या होता है, जब देश के भाग्य की बात आती है तो लोगों की अपने देश और राष्ट्र के प्रति क्या जिम्मेदारियाँ होनी चाहिए, उन्हें क्या विकल्प चुनने चाहिए, और इस मामले में परमेश्वर मानव जाति से क्या अपेक्षा रखता है, क्या मैंने इन सारी बातों पर स्पष्ट रूप से संगति कर ली है? (हाँ।) तो फिर आज के लिए हमारी संगति यहीं समाप्त होती है।
11 जून 2022
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