सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (13) भाग दो
पिछली सभा में हमने नैतिक आचरण की कहावत, “कोई कार्य स्वीकार करो और मरते दम तक सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करो” पर संगति की थी और इस कहावत में निहित अपेक्षाओं, अभिव्यक्तियों, विचारों और दृष्टिकोणों का विश्लेषण कर उन्हें उजागर करने में कुछ समय बिताया था, और अब लोगों ने इसके सार की थोड़ी समझ प्राप्त कर ली है। बेशक इस पहलू से संबंधित विषयों के संदर्भ में हमने इस बात पर भी संगति की थी कि वास्तव में परमेश्वर का इरादा क्या है, उसका रवैया क्या है, इसमें क्या सत्य शामिल है, और लोगों को मृत्यु को कैसे देखना चाहिए। सत्य और परमेश्वर के इरादे को समझने के बाद जब भी लोग ऐसी चीजों का सामना करते हैं, तो उन्हें इन समस्याओं को परमेश्वर के वचनों के अनुसार देखना चाहिए और उनसे सत्य के अनुसार व्यवहार करना चाहिए, ताकि वे परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा कर सकें। इसके अलावा नैतिक आचरण की वह कहावत जिसका हमने पिछली बार जिक्र किया था—“वसंत के रेशम के कीड़े मरते दम तक बुनते रहेंगे, और मोमबत्तियाँ बाती खत्म होने तक जलती रहेंगी”—यह भी बहुत सतही है, और इसके विचार का क्षेत्र बहुत भद्दा है, तो इसका और विश्लेषण करना सार्थक नहीं होगा। नैतिक आचरण की अगली कहावत जिस पर हम संगति करेंगे, “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” विश्लेषण करने लायक है। जो चीजें विश्लेषण करने लायक हैं वे लोगों के विचारों और धारणाओं में एक निश्चित स्थान रखती हैं। एक विशेष अवधि के दौरान वे लोगों की सोच, उनके अस्तित्व के तरीकों, उनके मार्ग और बेशक उनकी पसंद को प्रभावित करेंगी। मानवजाति को भ्रष्ट करने के लिए परंपरागत संस्कृति का उपयोग करके शैतान यही परिणाम हासिल करता है। “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है,” इस कहावत की लोगों के दिलो-दिमाग में एक खास जगह है, यानी यह कहावत जिस प्रकार की समस्या की ओर इशारा करती है वह विशेष रूप से प्रतिनिधि है। अपने देश के भाग्य के महत्वपूर्ण मोड़ पर लोग इस कहावत के आधार पर चुनाव करेंगे, और यह उनकी सोच और सामान्य वैचारिक प्रक्रियाओं को बांध देगा और सीमित कर देगा। इसलिए ऐसे विचारों और दृष्टिकोणों का विश्लेषण करना सार्थक है। हमने पहले जिन कहावतों का जिक्र किया, अर्थात “उठाए गए धन को जेब में मत रखो,” “मैं अपने दोस्त के लिए गोली भी खा लूँगा,” “दयालुता का बदला कृतज्ञतापूर्वक लौटाना चाहिए,” “एक बूँद पानी की दया का बदला झरने से चुकाना चाहिए,” “कोई कार्य स्वीकार करो और मरते दम तक सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करो” वगैरह की तुलना करने पर नैतिक आचरण के मानक, “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है,” का शैतान की दुनिया में ऊँचा स्थान होता है। नैतिक आचरण की जिन कहावतों का हमने पहले विश्लेषण किया था, वे जीवन में एक प्रकार के व्यक्ति या एक प्रकार की मामूली बातों को संदर्भित करती हैं, जिनमें से सभी सीमित हैं, जबकि यह कहावत व्यापक दायरे को घेरती है। यह “छोटे स्वार्थ” के दायरे में आने वाली चीजों की नहीं, बल्कि “बड़े स्वार्थ” से संबंधित कई समस्याओं और चीजों को छूती है। इसलिए लोगों के दिलों में इसका एक केंद्रीय स्थान रहता है, और इसका विश्लेषण यह देखने के लिए किया जाना चाहिए कि क्या इसे लोगों के दिलों में खास जगह बनाने देनी चाहिए, और यह पता लगाना चाहिए कि नैतिक आचरण की इस कहावत को लोग किस तरह से ऐसे देखें जो सत्य के अनुरूप हो।
“प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है,” यह कहावत सभी को अपने देश के भाग्य के लिए जवाबदेह बनने का सुझाव देकर लोगों को अपनी जिम्मेदारी का ध्यान रखने पर मजबूर करती है। यदि तुम अपने देश के भाग्य के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाते हो, तो सरकार तुम्हें उच्च सम्मान से पुरस्कृत करेगी और तुम्हें महान चरित्र वाले व्यक्ति के रूप में देखा जाएगा; जबकि यदि तुम अपने देश के भाग्य की चिंता नहीं करते, और उसके लड़खड़ाने पर चुपचाप खड़े रहते हो, और इस मामले को बहुत महत्वपूर्ण नहीं मानते, या तुम इस पर हँसते हो, तो इसे अपनी जिम्मेदारी पूरा करने में पूरी तरह से विफल होने के रूप में देखा जाता है। यदि तुम्हारे देश की जरूरत के समय तुम अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को पूरा नहीं करते, तो तुम किसी लायक नहीं हो, और तुम वास्तव में एक महत्वहीन व्यक्ति हो। ऐसे लोगों को समाज में बेकार समझकर छोड़ दिया जाता है और उनका मजाक बनाया जाता है, उनके साथी उनका तिरस्कार करते हैं, और उन्हें नीची नजर से देखते हैं। किसी भी संप्रभु राज्य के किसी भी नागरिक के लिए “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” एक ऐसी कहावत है जिसे लोगों की मंजूरी प्राप्त है, ऐसी कहावत जिसे लोग स्वीकार सकते हैं, और यह एक ऐसी कहावत भी है जिसका मानवजाति सम्मान करती है। यह एक ऐसा विचार भी है जिसे मानवजाति महान मानती है। जो व्यक्ति अपनी जन्मभूमि के भाग्य की चिंता करने और इसकी परवाह करने में सक्षम है, और उसके प्रति जिम्मेदारी की गहरी भावना रखता है, वह अधिक धार्मिक व्यक्ति है। जो लोग अपने परिवार वालों के बारे में चिंता और उनकी परवाह करते हैं उनमें कम धार्मिकता होती है, जबकि जो लोग अपने देश के भाग्य की परवाह करते हैं वे अधिक धार्मिकता की भावना रखने वाले लोग होते हैं, और उनकी सोच होती है कि शासकों और अन्य लोगों को उनकी प्रशंसा तो करनी ही चाहिए। संक्षेप में, इस तरह के विचारों को निर्विवाद रूप से मनुष्यों के लिए सकारात्मक महत्व वाला और मानवजाति का सकारात्मक मार्गदर्शन करने वाला माना जाता है, और बेशक ये चीजें सकारात्मक भी मानी जाती हैं। क्या तुम लोग भी ऐसा ही सोचते हो? (हाँ।) तुम लोगों का इस तरह से सोचना सामान्य है। इसका मतलब है कि तुम लोगों की सोच सामान्य लोगों से अलग नहीं है और तुम भी सामान्य लोग ही हो। सामान्य लोग लोकप्रिय विचारों और बाकी मानवजाति से आने वाले सभी विभिन्न तथाकथित सकारात्मक, सक्रिय, खुली सोच वाले और महान विचारों और टिप्पणियों को स्वीकार सकते हैं। ये सामान्य लोग हैं। जिन विचारों को आम लोग स्वीकारते और उनका सम्मान करते हैं क्या यह जरूरी है कि वे सकारात्मक हों? (नहीं।) सैद्धांतिक रूप से कहें तो वे सकारात्मक नहीं होते, क्योंकि वे सत्य के अनुरूप नहीं होते, वे परमेश्वर से नहीं आते, और मानवजाति को यह सब परमेश्वर ने नहीं सिखाया है या न ही उसने बताया है। तो वास्तव में तथ्य क्या हैं? इस मामले को कैसे समझाया जाना चाहिए? अब मैं इसे विस्तार से समझाऊँगा, और जब मेरी बात पूरी हो जाएगी तब तुम लोग समझ जाओगे कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” की कहावत क्यों सकारात्मक चीज नहीं है। इससे पहले कि मैं जवाब का खुलासा करूँ, पहले इस कहावत के बारे में सोचो, “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” : क्या यह वाकई एक सकारात्मक बात है? क्या लोगों को अपने देश से प्यार कराना गलत है? कुछ लोग कहते हैं : “हमारी जन्मभूमि का भाग्य हमारे अस्तित्व, हमारी खुशी और हमारे भविष्य पर असर डालता है। क्या परमेश्वर लोगों को अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्यनिष्ठ होने, अपने बच्चों का अच्छे से पालन-पोषण करने और अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए नहीं कहता? अपने देश में कुछ जिम्मेदारियाँ पूरी करने में क्या गलत है? क्या यह सकारात्मक बात नहीं है? भले ही यह सत्य के स्तर तक ऊँचा नहीं उठता, फिर भी यह सही विचार होना चाहिए, है न?” जहाँ तक लोगों का सवाल है तो ये कारण जायज हैं, है न? लोग इन दावों, इन कारणों और यहाँ तक कि इन औचित्यों का उपयोग इस कहावत के सही होने पर बहस करने के लिए करते हैं कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है।” तो क्या यह कहावत वास्तव में सही है या नहीं? यदि यह सही है, तो इसमें सही क्या है? यदि यह सही नहीं है तो इसमें गलत क्या है? यदि तुम लोग इन दो सवालों के जवाब स्पष्ट रूप से दे सकते हो, तो तुम लोग वास्तव में सत्य के इस पहलू को समझ जाओगे। कुछ अन्य लोग भी हैं जो कहते हैं : “‘प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है’ की कहावत सही नहीं है। देश शासकों द्वारा शासित और राजनीतिक प्रणालियों द्वारा संचालित होते हैं। जब भी राजनीति का सवाल होता है, तो हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं होती क्योंकि परमेश्वर मानव राजनीति में शामिल नहीं होता। इसलिए हम भी राजनीति में शामिल नहीं होते हैं, तो इस कहावत का हमसे कोई लेना-देना नहीं है; जो कुछ भी राजनीति से संबंधित है उसका हमसे कोई लेना-देना नहीं है। जो भी राजनीति में शामिल होता है और राजनीति को पसंद करता है, वह देश के भाग्य के लिए जिम्मेदार है। हम इस कहावत को नहीं मानते, हमारे नजरिए से यह कोई सकारात्मक बात नहीं है।” क्या यह व्याख्या सही है या गलत? (गलत।) यह गलत क्यों है? तुम लोग सैद्धांतिक रूप से जानते हो कि यह स्पष्टीकरण सही नहीं है, यह समस्या को जड़ से संबोधित नहीं करता, और यह समस्या के सार को समझाने के लिए काफी नहीं है। यह केवल एक सैद्धांतिक व्याख्या है, लेकिन इस मामले के सार को स्पष्ट नहीं करती। चाहे यह किसी भी प्रकार की व्याख्या हो, अगर यह इस समस्या के विशिष्ट सार की बात करने में विफल रहती है, तो यह वास्तविक व्याख्या नहीं है, यह सटीक जवाब नहीं है, और यह सत्य नहीं है। तो नैतिक आचरण की इस कहावत में क्या गलत है कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है”? इस मुद्दे का संबंध किस सत्य से है? इस संबंध में सत्य को एक या दो वाक्यों में स्पष्ट रूप से नहीं समझाया जा सकता। इसमें निहित सत्य को समझाने के लिए तुम लोगों को बहुत कुछ समझाना होगा। तो आओ इस पर सरल शब्दों में संगति करें।
“प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है,” इस कहावत को कैसे देखा और समझा जाना चाहिए? क्या यह एक सकारात्मक बात है? इस कहावत की व्याख्या के लिए सबसे पहले यह देखते हैं कि देश क्या है। लोगों के मन में देश की अवधारणा क्या होती है? क्या देश की अवधारणा यह है कि वह बहुत बड़ा होता है? सैद्धांतिक रूप से कहें, तो देश किसी क्षेत्र का ऐसा विस्तार है जिसमें वे सभी घर शामिल हैं जिन पर एक शासक शासन करता है और जो एक ही सामाजिक व्यवस्था से संचालित होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि अनेक घर मिलकर एक देश बनता है। क्या समाज इसे इसी तरह परिभाषित करता है? (हाँ।) केवल छोटे घरों से एक बड़ा घर बन सकता है, और एक बड़ा घर ही देश होता है—यही एक देश की परिभाषा है। तो क्या यह परिभाषा स्वीकार्य है? क्या तुम लोग मन ही मन इससे देश को पहचानते हो? यह परिभाषा किसके स्वाद और रुचियों के लिए सबसे उपयुक्त है? (शासकों के लिए।) सही बात है, यह सबसे पहले शासकों के लिए ही उपयुक्त होनी चाहिए। क्योंकि सभी घरों को अपने प्रभुत्व में रखने से, सत्ता उनके हाथों में होती है। तो जहाँ तक शासकों का सवाल है, यह एक मान्य परिभाषा है, और वे इससे इसे पहचानते हैं। शासकों के लिए देश की परिभाषा चाहे जो भी हो, किसी आम इंसान के लिए देश और उसमें रहने वाले हर व्यक्ति के बीच एक दूरी होती है। आम लोगों के लिए यानी हरेक देश में अलग-अलग लोगों के लिए एक देश की परिभाषा शासकों या शासक वर्ग द्वारा अपनाई गई परिभाषा से बिल्कुल अलग होती है। शासक वर्ग जिस तरह से किसी देश को परिभाषित करता है वह उनके प्रभुत्व और उनके निहित हितों पर आधारित होता है। वे ऊँचाई पर होते हैं, और उस ऊँचे स्थान से महत्वाकांक्षा और इच्छा से ओत-प्रोत विस्तृत परिप्रेक्ष्य का देश को परिभाषित करने के लिए उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए शासक देश को अपना घर, अपनी भूमि मानते हैं, और सोचते हैं कि उन्हें यह उनके आनंद के लिए प्रदान किया गया है, और देश का कोना-कोना, हर संसाधन और यहाँ तक कि इसमें मौजूद हर व्यक्ति उनका होना चाहिए, उनके नियंत्रण में रहना चाहिए, और उन्हें इन सबका आनंद लेने के साथ-साथ लोगों पर मनमर्जी से प्रभुत्व जमाने में सक्षम होना चाहिए। लेकिन आम लोगों की ऐसी इच्छाएँ नहीं होतीं, न ही उनकी ऐसी स्थितियाँ होती हैं, और निश्चित ही उनके पास किसी देश को परिभाषित करने के लिए इतना व्यापक परिप्रेक्ष्य भी नहीं होता। तो आम लोगों के लिए, किसी स्वतंत्र व्यक्ति के लिए, एक देश की परिभाषा क्या होती है? यदि वे सुशिक्षित हैं और नक्शे पढ़ सकते हैं, तो वे केवल अपने देश के क्षेत्रफल का आकार ही जानते हैं, और यह कि कौन-से पड़ोसी देश उसे घेरे हुए हैं, उसमें कितनी नदियाँ और झीलें हैं, और कितने पहाड़, कितने जंगल, कितनी भूमि है, और उनके देश में कितने लोग हैं...। किसी देश के बारे में उनकी अवधारणा नक्शे और शब्दों पर आधारित होने से ज्यादा नहीं होती, लिखित रूप में बस एक सैद्धांतिक अवधारणा होती है, और वास्तविकता में मौजूद देश से बिल्कुल भी मेल नहीं खाती। ऐसा व्यक्ति जो बहुत सुशिक्षित है और जिसका एक खास सामाजिक रुतबा है, उसके लिए देश की अवधारणा कुछ ऐसी ही होती है। तो समाज के निचले स्तर पर मौजूद आम लोगों के बारे में क्या ख्याल है? उनके लिए देश की परिभाषा क्या होती है? मेरे ख्याल से इन लोगों के लिए देश की परिभाषा उनके परिवार की जमीन के मामूली टुकड़े, गाँव के पूर्वी छोर पर मौजूद विशाल विलोव के वृक्ष, पश्चिमी छोर पर मौजूद पहाड़, गाँव के प्रवेश द्वार की सड़क और उस सड़क से अक्सर गुजरने वाली कारों के साथ-साथ गाँव में घटी कुछ अपेक्षाकृत सनसनीखेज घटनाओं, और यहाँ तक कि कुछ छोटी-मोटी बातों से अधिक और कुछ नहीं होती। आम लोगों के लिए देश की अवधारणा कुछ ऐसी ही होती है। भले ही इस परिभाषा की सीमाएँ बहुत छोटी हैं और इसका दायरा बहुत संकीर्ण है, जहाँ तक ऐसे सामाजिक संदर्भ में रहने वाले आम लोगों का सवाल है, उनके लिए यह बहुत यथार्थवादी और व्यावहारिक है, देश का मतलब इससे अधिक कुछ भी नहीं है। बाहर की दुनिया में चाहे जो हो जाए, देश में चाहे जो हो जाए, उनके लिए ये महज कुछ मामूली महत्वपूर्ण खबरें होती हैं जिन्हें वो चाहें तो सुनें, नहीं तो नजरंदाज कर दें। तो उनके तात्कालिक हित किन चीजों से जुड़े होते हैं? इस बात से कि इस साल उन्होंने जो फसल बोई है, क्या उससे भरपूर अनाज होगा, क्या यह उनके परिवार के भरण-पोषण के लिए काफी होगा, अगले साल क्या बोया जाए, कहीं उनकी जमीन पर बाढ़ तो नहीं आ जाएगी, कहीं दबंग हमला करके उस पर कब्जा तो नहीं कर लेंगे, और अन्य ऐसे मामले और चीजें जो जीवन से निकटता से संबंधित होती हैं, जैसे कि गाँव की कोई इमारत, कोई नदी, कोई पगडंडी वगैरह। वे जिस चीज की परवाह करते हैं और जिसके बारे में बात करते हैं, और जो चीज उनके मन पर गहरी छाप छोड़ती है, वह ज्यादा कुछ नहीं बल्कि उनके आस-पास के लोग, मामले और चीजें होती हैं जो उनके जीवन से निकटता से जुड़े हैं। उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि देश का दायरा कितना बड़ा है, न ही उन्हें देश की उन्नति या अवनति का कोई अंदाजा है। चीजें जितनी नई-नई होती हैं और देश के मामले जितने अधिक महत्वपूर्ण होते हैं, वे ऐसे लोगों से उतने ही दूर होते हैं। इन आम लोगों के लिए देश की अवधारणा केवल वे लोग, मामले और चीजें होती हैं जिन्हें वे अपने मन में रख सकते हैं और जिन लोगों, मामलों और चीजों के संपर्क में वे अपने जीवन में आते हैं। यदि उन्हें देश के भाग्य के बारे में जानकारी मिलती भी है तो वह उनसे कोसों दूर होती है। उनसे दूर होने का मतलब है कि उनके दिलों में इन बातों की कोई जगह नहीं होती, और उनके जीवन पर इनका कोई असर नहीं पड़ेगा, इसलिए देश की उन्नति और अवनति से उनका कोई लेना-देना नहीं होता। उनके दिलों में, उनके देश का भाग्य क्या होता है? यह इस बात पर निर्भर करता है कि इस वर्ष उन्होंने जो फसलें बोई हैं, क्या उन्हें स्वर्ग का आशीष प्राप्त है, क्या फसल भरपूर हुई है, उनका परिवार कैसे चल रहा है, और रोजमर्रा की जिंदगी की अन्य छोटी-छोटी बातें, जबकि राष्ट्रीय मामलों का उनसे कोई संबंध नहीं होता। राष्ट्रीय महत्व, राजनीति, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के मामले, देश का क्षेत्रफल बढ़ा है या सिकुड़ गया है, शासकों ने किन स्थानों का दौरा किया है, और शासक वर्ग के भीतर क्या चीजें घटित हुई हैं—ये चीजें आम लोगों की पहुँच से परे हैं। यदि वे उन तक पहुँच भी सकते, तो भी इससे क्या फर्क पड़ता? यदि रात के खाने के बाद उन्होंने इस बारे में बात भी की कि शासक वर्ग के साथ क्या चल रहा है, तो वे इस बारे में क्या कर पाते? अपना पेट भरने के बाद उन्हें अभी भी संघर्ष ही करना है और खेतों में काम करने जाना है। खेतों में उगने वाली फसलों से अधिक वास्तविक उन्हें कुछ भी नहीं लगता जो अच्छी फसल पैदा कर सके। व्यक्ति केवल उसी चीज की परवाह करता है जो उसके दिल के करीब होती है। किसी व्यक्ति का क्षितिज उतना ही व्यापक होता है जितनी चीजें उसके दिल में बैठती हैं। सामान्य लोगों का क्षितिज केवल वहीं तक सीमित होता है जहाँ तक वे अपने आस-पास के स्थानों को देख सकते हैं और जहाँ वे जा सकते हैं। जहाँ तक उनके देश के भाग्य और राष्ट्रीय महत्व के मामलों का सवाल है, वे बहुत दूर और उनकी पहुँच से बाहर होते हैं। इसलिए जब देश का भाग्य दाँव पर होता है, या देश किसी शक्तिशाली दुश्मन के आक्रमण का सामना कर रहा होता है, तो वे तुरंत सोचते हैं, “क्या मेरी फसलें आक्रमणकारियों द्वारा जब्त कर ली जाएँगी? इस साल यदि हमारा अनाज बिका तभी हम अपने बच्चों की फीस भरकर उन्हें कॉलेज भेज पाएँगे!” ये वो चीजें हैं जो आम लोगों के लिए सर्वाधिक व्यावहारिक मायने रखती हैं, जिन्हें वो समझ सकते हैं, और जो उनके मन और आत्मा के लिए सहने लायक हैं। सामान्य लोगों के लिए “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” की कहावत बहुत दुष्कर है। वे नहीं जानते कि इसका अनुसरण कैसे करना है, और वे इस भारी बोझ और दुष्कर जिम्मेदारी को नहीं उठाना चाहते। किसी देश के बारे में आम लोगों की अवधारणा कुछ ऐसी ही होती है। इसलिए उनके जीवन का दायरा और जिन चीजों में उनकी सोच और भावनाएँ बसती हैं, वे उनके गाँव की मिट्टी और पानी से अधिक कुछ भी नहीं हैं, जो उन्हें दिन में तीन बार भोजन और उनके भरण-पोषण के लिए आवश्यक सभी चीजें देते हैं, जिनमें उनके गाँव की हवा और वातावरण भी शामिल है। इन चीजों के अलावा और क्या हो सकता है? भले ही कुछ लोग अपने गाँव के उस परिचित परिवेश से दूर चले जाएँ जहाँ वे पैदा हुए और पले-बढ़े, जब भी देश लड़खड़ा रहा होता है और राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की उनकी बारी आती है, तो कोई भी पूरे देश की रक्षा करने के बारे में नहीं सोचता। तो फिर लोग क्या सोचते हैं? वे केवल अपने गाँव की रक्षा करने और जमीन के उस हिस्से की रक्षा के लिए अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के बारे में सोचते हैं जो उनके दिलों में बसा होता है, और यहाँ तक कि इसके लिए अपने जीवन का बलिदान भी दे सकते हैं। चाहे लोग कहीं भी चले जाएँ, उनके लिए “देश” शब्द बस एक सर्वनाम, एक निशान और प्रतीक मात्र होता है। जो चीज वास्तव में उनके दिलों में ज्यादा जगह लेती है वह देश का क्षेत्र नहीं होता, और न ही शासकों का शासन होता है, बल्कि वह पहाड़, जमीन का टुकड़ा, नदी और कुआँ होता है जो उन्हें दिन में तीन बार भोजन और जीवन प्रदान करते हैं, और जीवित रहने में उनकी मदद करते हैं; बस इतना ही होता है। लोगों के मन में देश की यही अवधारणा होती है—यह बहुत वास्तविक, बहुत ठोस, और बेशक बहुत सटीक भी है।
परंपरागत संस्कृति में विशेषकर नैतिक आचरण के बारे में सोचते समय इस विचार का हमेशा समर्थन क्यों किया जाता है कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है”? इसका संबंध शासक के शासन और इस विचार का समर्थन करने वाले लोगों के इरादों और उद्देश्यों दोनों से है। यदि हरेक व्यक्ति के मन में देश की परिभाषा इतनी महत्वहीन, इतनी ठोस और इतनी वास्तविक होगी, तो देश की रक्षा कौन करेगा? शासक के शासन को कौन कायम रखेगा? क्या यहाँ समस्याएँ नहीं हैं? यहाँ सचमुच समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। यदि किसी देश के बारे में हर किसी की अवधारणा ऐसी होती, तो क्या शासक महज एक पुतला बनकर नहीं रह जाता? यदि किसी शासक के देश को किसी शक्तिशाली शत्रु के आक्रमण का सामना करना पड़े और उसकी रक्षा केवल शासक पर या शासक वर्ग पर निर्भर हो, तो क्या वे संघर्ष करते हुए, असहाय, अलग-थलग और कमजोर नहीं दिखाई देंगे? विचारकों ने अपने दिमाग का उपयोग करके इन समस्याओं का जवाब दिया है। उनका मानना था कि देश की रक्षा करने और शासक के शासन को बनाए रखने के लिए योगदान देने वाले केवल कुछ ही लोगों पर निर्भर रहना मुमकिन नहीं था, इसके बजाय पूरी आबादी को देश के शासक की सेवा के लिए प्रेरित करना आवश्यक था। यदि ये विचारक लोगों से सीधे शासक की सेवा करने और देश की रक्षा करने को कहेंगे, तो क्या लोग ऐसा करने को तैयार होंगे? (नहीं, वे तैयार नहीं होंगे।) जाहिर है कि लोग ऐसा नहीं करना चाहेंगे, क्योंकि इस अनुरोध के पीछे का उद्देश्य बहुत स्पष्ट होगा, और वे इसके लिए सहमत नहीं होंगे। वे विचारक जानते थे कि उन्हें लोगों के मन में सुखद लगने वाली, श्रेष्ठ और सतही रूप से भव्य अभिव्यक्ति पैदा करनी होगी और उन्हें बताना होगा कि जो कोई भी इस तरह सोचता है वह महान नैतिक आचरण वाला है। इस तरह लोग इस विचार को आसानी से स्वीकार लेंगे, और इस विचार के लिए त्याग और योगदान भी करेंगे। तब उनका लक्ष्य पूरा हो जाएगा, है न? इसी सामाजिक संदर्भ में और शासकों की जरूरतों के जवाब में यह कहावत और विचार सामने आया कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है”। मानव स्वभाव ऐसा है कि चाहे कोई भी विचार सामने आए, हमेशा कुछ ऐसे लोग होंगे जो उसे प्रचलित और नया मानेंगे, और इसी आधार पर उसे स्वीकार करेंगे। कुछ लोग इस कहावत को स्वीकारते हैं कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है,” तो क्या इससे शासक को लाभ नहीं होता? इसका मतलब है कि शासक के शासन के लिए त्याग करने और योगदान देने वाले लोग होंगे। इसलिए शासक को लंबे समय तक शासन करने की उम्मीद होती है, है न? और क्या तब उनका शासनकाल अपेक्षाकृत अधिक स्थिर नहीं होगा? (हाँ।) इसलिए जब शासक के शासन पर कोई चुनौती आती है या उसे विध्वंस का सामना करना पड़ता है, या उसके देश को किसी शक्तिशाली दुश्मन के आक्रमण का सामना करना पड़ता है, तो जो लोग इस विचार को स्वीकारते हैं कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है,” वे बहादुरी से और देश की रक्षा के लिए योगदान देने या अपना जीवन बलिदान करने के लिए निडरता से आगे आएँगे। इसका अंतिम लाभ किसे होता है? (शासक को।) अंतिम लाभ शासक को होता है। उन लोगों का क्या होता है जो इस विचार को स्वीकारते हैं कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” और जो इसके लिए अपना बहुमूल्य जीवन त्यागने को तैयार रहते हैं? वे शासक के लिए लक्ष्यप्राप्ति में सहायक और खपाए जा सकने वाले मोहरे बन जाते हैं, वे इस विचार के शिकार बन जाते हैं। समाज के निचले स्तर पर रहने वाले आम लोगों के पास देश की कोई निश्चित, स्पष्ट अवधारणा या स्पष्ट परिभाषा नहीं होती। वे नहीं जानते कि देश क्या होता है, न ही यह जानते हैं कि देश कितना बड़ा है, और उन्हें देश के भाग्य से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों की तो बिल्कुल भी जानकारी नहीं होती है। क्योंकि लोगों की देश की परिभाषा और अवधारणा अस्पष्ट है, शासक वर्ग उन्हें गुमराह करने के लिए “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” की कहावत का उपयोग करता है और उनके मन में यह विचार डाल देता है, ताकि हर कोई देश की रक्षा के लिए खड़ा हो सके और शासक वर्ग के लिए अपना जीवन दाँव पर लगा दे, और इस प्रकार शासक वर्ग का उद्देश्य पूरा हो जाएगा। वास्तव में जहाँ तक आम लोगों का सवाल है, चाहे देश पर किसी का भी शासन हो, या चाहे आक्रमणकारी मौजूदा शासकों से बेहतर हों या बदतर, अंत में उनके परिवार की जमीन के छोटे से टुकड़े पर हर साल फसल उगनी ही है, गाँव के पूर्वी छोर पर खड़ा पेड़ नहीं बदला है, गाँव के पश्चिमी छोर वाला पहाड़ नहीं बदला है, गाँव के बीच में मौजूद कुआँ भी नहीं बदला है, और उनके लिए बस यही मायने रखता है। गाँव के बाहर क्या कुछ होता है, कितने शासक आते-जाते हैं, या वे देश पर कैसे शासन करते हैं, इन सब बातों से उनका कोई लेना-देना नहीं होता। आम लोगों का जीवन ऐसा ही होता है। उनका जीवन बहुत वास्तविक और सरल होता है, और देश के बारे में उनकी अवधारणा परिवार की अवधारणा की तरह ही ठोस होती है, अंतर बस यह होता है कि इसका दायरा परिवार से बड़ा होता है। वैसे जब देश पर कोई शक्तिशाली दुश्मन आक्रमण करता है और उसका अस्तित्व और बचना अधर में होता है, और शासक का शासनकाल अवरुद्ध और अस्थिर हो जाता है, तो “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” की कहावत स्वीकारने वाले लोग इस विचार के प्रभाव में आ जाते हैं, और वे बस देश के भाग्य को प्रभावित करने वाली और शासक के शासन में हस्तक्षेप करने वाली इन चीजों को बदलने के लिए अपनी व्यक्तिगत शक्तियों का उपयोग करना चाहते हैं। फिर अंत में क्या होता है? वास्तव में वे क्या बदल पाते हैं? भले ही वे शासक को सत्ता में बनाए रखने में कामयाब हो जाएँ, तो क्या इसका मतलब यह है कि उन्होंने कोई सही काम किया है? क्या इसका मतलब यह है कि उनका त्याग सकारात्मक था? क्या यह याद रखने लायक है? इतिहास के एक विशेष कालखंड में वे लोग, जिन्होंने इस विचार से महान स्थान हासिल किया कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है,” उन्होंने देश की रक्षा करने और शासकों को सत्ता में बनाए रखने के लिए इस विचार की भावना को जोशोखरोश से कायम रखा, लेकिन जिन शासकों को उन्होंने सत्ता में रखा उनका शासनकाल पिछड़ा और रक्तरंजित था और मानवजाति के लिए उसका कोई अर्थ या मूल्य नहीं था। इस नजरिए से देखें, तो इन लोगों ने जो तथाकथित जिम्मेदारी निभाई वह सकारात्मक थी या नकारात्मक? (नकारात्मक।) कोई कह सकता है कि यह नकारात्मक थी, याद रखने लायक नहीं थी, और लोग इससे घृणा करते थे। इसके विपरीत आम लोग इस विचार को गहराई से नहीं मानते कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है,” जिसका समर्थन वे षडयंत्रकारी विचारक करते हैं और न ही वे इसे वास्तव में स्वीकारते और लागू करते हैं। इसलिए उनका जीवन अपेक्षाकृत स्थिर होता है। भले ही उनकी जीवन भर की उपलब्धियाँ उन लोगों जितनी प्रभावशाली नहीं हैं जो अपने देश के भाग्य के लिए अपनी जान दे देते हैं, लेकिन उन्होंने एक सार्थक चीज की है। यह सार्थक चीज क्या है? यानी कि वे देश के भाग्य में कृत्रिम रूप से हस्तक्षेप नहीं करते, और न ही यह निर्धारित करने की प्रक्रिया में दखल देते हैं कि देश के शासक कौन हैं। इसके बजाय वे बस एक अच्छा जीवन जीना, जमीन पर काम करना, अपने गाँव की रक्षा करना, साल भर के भोजन का इंतजाम करना, और अपने देश को परेशानी दिए बिना, देश से भोजन या पैसे की माँग किए बिना, और सही समय पर उचित करों का भुगतान करके भरपूर, आरामदायक, शांतिपूर्ण और स्वस्थ जीवन जीना चाहते हैं—यही उस जिम्मेदारी को निभाना होता है जो एक नागरिक को निभानी चाहिए। यदि तुम विचारकों के विचारों के किसी भी हस्तक्षेप से मुक्त रह सकते हो, और अपनी जगह के हिसाब से जमीन से जुड़े रहकर एक सामान्य व्यक्ति के रूप में अपना जीवन जी सकते हो, आत्मनिर्भर रह सकते हो, तो इतना काफी है, तुमने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है। यही सबसे महत्वपूर्ण बात और सबसे बड़ी जिम्मेदारी है जो इस धरती पर रहने वाले लोगों को निभानी चाहिए। अपने अस्तित्व और अपनी बुनियादी जरूरतों का ध्यान रखना ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें खुद ही हल किया जाना चाहिए, जबकि देश के भाग्य से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों और देश पर शासन करने के शासक के तरीके से जुड़े मामलों के लिए, आम लोगों के पास उसमें हस्तक्षेप करने या उनके बारे में कुछ भी करने की क्षमता नहीं होती। वे इन सभी मामलों को केवल नियति पर छोड़ सकते हैं, और प्रकृति को अपना काम करने दे सकते हैं। स्वर्ग जो चाहेगा, वैसा ही होगा। आम लोग बहुत कम जानते हैं, और इसके अलावा स्वर्ग ने लोगों को अपने देश के प्रति इस प्रकार की जिम्मेदारी नहीं सौंपी है। आम लोगों के दिलों में सिर्फ अपना घर ही होता है और जब तक वे अपने घर की देखभाल करते रहते हैं, उतना ही काफी है और उन्होंने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है।
नैतिक आचरण की अन्य कहावतों की तरह “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” एक ऐसा विचार और दृष्टिकोण है जो शासकों को सत्ता में बनाए रखने के लिए विचारकों द्वारा पेश किया गया है, और बेशक यह ऐसा विचार और दृष्टिकोण है जिसकी वकालत की जाती है, ताकि ज्यादा लोग शासकों का समर्थन करें। वास्तव में लोग चाहे जिस किसी भी सामाजिक वर्ग में हों, यदि उनकी कोई महत्वाकांक्षाएँ, इच्छाएँ नहीं हैं, और वे राजनीति में नहीं आना चाहते या शासक वर्ग से उनका कोई लेना-देना नहीं है, तो मानवता के परिप्रेक्ष्य से लोगों के लिए देश की परिभाषा उन स्थानों से अधिक कुछ नहीं होती जिन्हें वे अपनी नजर से देख सकते हैं, या वह भूमि जिसे वे पैदल नाप सकते हैं, या वह क्षेत्र जिसके भीतर वे खुशी से, स्वतंत्रता से और कानूनी रूप से रह सकते हैं। जो कोई भी देश के बारे में ऐसी अवधारणा रखता है, वह भूमि जहाँ वे रहते हैं और उनका जीवन क्षेत्र उन्हें एक स्थिर, खुशहाल और स्वतंत्र जीवन दे सकता है, जो उनके जीवन की बुनियादी जरूरत है। यह बुनियादी जरूरत एक दिशा और लक्ष्य भी है जिसकी रक्षा करने की लोग कोशिश करते हैं। जैसे ही इस बुनियादी जरूरत पर कोई चुनौती या परेशानी आती है, या इसमें हस्तक्षेप होता है, तो लोग निश्चित रूप से तत्काल उठ खड़े होंगे और स्वाभाविक रूप से इसकी रक्षा करेंगे। यह बचाव उचित है, और यह मानवता की जरूरतों और अस्तित्व में बने रहने की जरूरतों से उत्पन्न होता है। किसी को भी लोगों को यह बताने की जरूरत नहीं है, “जब तुम्हारे गाँव और आवास को किसी विदेशी दुश्मन के आक्रमण का सामना करना पड़े, तो तुम्हें आगे बढ़कर उनकी रक्षा करनी चाहिए, दृढ़ता से खड़े होकर आक्रमणकारियों से लड़ना चाहिए।” वे अपने आप दृढ़ता से खड़े होकर उनका बचाव करेंगे। यह मानवीय प्रवृत्ति है, और साथ ही मानव अस्तित्व की आवश्यकता भी है। तो जब एक सामान्य व्यक्ति की बात आती है, उन्हें अपनी मातृभूमि और अपने निवास की रक्षा करने को प्रोत्साहित करने के लिए “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” जैसे विचारों का उपयोग करने की कोई जरूरत नहीं होती। यदि कोई सचमुच ऐसे विचार लोगों के मन में डालना चाहता है तो उसका मकसद इतना सरल नहीं है। उनका लक्ष्य यह नहीं है कि लोग अपने निवास स्थान की रक्षा करें, अपने जीवन की बुनियादी जरूरतों को पक्का करें, ताकि लोग बेहतर जीवन जी सकें। उनका एक और लक्ष्य है, जो और कुछ नहीं बल्कि शासकों को सत्ता में बनाए रखना है। लोग अपने निवास स्थान की रक्षा के लिए सहज रूप से कोई भी बलिदान देंगे, और यह पक्का करने के लिए कि जीवित रहने की उनकी बुनियादी जरूरतें पूरी हो रही हैं, सचेत रूप से अपने निवास स्थान और जीवन परिवेश की रक्षा करेंगे, दूसरों को उन्हें यह बताने के लिए किसी आडंबरपूर्ण अभिव्यक्ति का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होगी कि उन्हें क्या करना है, या दृढ़ता से अपने घरों की रक्षा कैसे करनी है। यह सहज बुद्धि, यह मूल चेतना जानवरों के पास भी होती है, और मनुष्यों के पास तो होती ही है, जो किसी भी जानवर से उच्च स्तर के सृजित प्राणी हैं। यहाँ तक कि जानवर भी विदेशी दुश्मनों के आक्रमण से अपने आवास और क्षेत्र, अपने घर और अपने समुदाय की रक्षा करेंगे। और अगर जानवरों में ऐसी चेतना है, तो इंसानों में भी जरूर होगी! इसलिए उन विचारकों द्वारा प्रस्तावित यह विचार कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है,” मानवजाति के सभी सदस्यों के लिए बेकार है। और जब लोगों के दिलों में गहराई से बसी किसी देश की परिभाषा की बात आती है, तो यह विचार भी मूल रूप से व्यर्थ होता है। लेकिन फिर भी उन विचारकों ने इसे क्यों प्रस्तावित किया? क्योंकि वे एक और लक्ष्य पूरा करना चाहते थे। उनका वास्तविक लक्ष्य लोगों को उनके मौजूदा निवास स्थान में बेहतर जीवन जीने में सक्षम बनाना नहीं था, न ही उन्हें जीने के लिए अधिक स्थिर, आनंदमय और खुशहाल वातावरण देना था। उन्होंने न तो लोगों की सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य से और न ही लोगों के आवासों की रक्षा के परिप्रेक्ष्य से बल्कि शासकों के परिप्रेक्ष्य और नजरिए से लोगों के मन में यह विचार डाला कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” और उन्हें इस विचार को धारण करने के लिए उकसाया। यदि तुम ऐसे विचार नहीं रखते, तो तुम्हारी सोच का दायरा निम्नतर माना जाएगा, हर कोई तुम्हारा उपहास उड़ाएगा और हरेक जातीय समूह तुम्हें नीची नजर से देखेगा; यदि तुम ऐसा विचार नहीं रखते, यदि तुम्हारे पास यह महान धार्मिकता और मानसिकता नहीं है, तो तुम्हें निम्नतर नैतिक चरित्र वाला, स्वार्थी और घृणित नीच व्यक्ति माना जाएगा। ये तथाकथित नीच लोग समाज में तिरस्कृत होते हैं, उनके साथ भेदभाव किया जाता है और समाज उनसे घृणा करता है।
इस संसार में, समाज में, जो किसी गरीब या पिछड़े देश में पैदा हुए हैं, या जो निम्न-दर्जे वाले देश से हैं, वे चाहे कहीं भी जाएँ, जैसे ही वे अपनी राष्ट्रीयता बताएँगे, उनका दर्जा तुरंत निर्धारित हो जाएगा और उन्हें दूसरों से कमतर समझा जाएगा, नीची नजरों से देखा जाएगा और उनके साथ भेदभाव किया जाएगा। यदि तुम्हारी राष्ट्रीयता किसी शक्तिशाली देश की है, तो किसी भी जातीय समूह के बीच तुम्हारा दर्जा बहुत ऊँचा होगा, और तुम्हें दूसरों से श्रेष्ठ माना जाएगा। इसलिए इस विचार का कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है,” लोगों के दिलों में एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। किसी देश के बारे में लोगों की एक बहुत ही सीमित और ठोस अवधारणा होती है, लेकिन क्योंकि जिस तरह से पूरी मानवजाति किसी जातीय समूह और किसी अलग देश के व्यक्ति के साथ व्यवहार करती है, और जिस तरीके और मानदंड के आधार पर वह उनका दर्जा निर्धारित करती है, उसका उनके देश के भाग्य से काफी लेना-देना होता है; हर कोई मन ही मन अलग-अलग स्तरों पर इस विचार से प्रभावित होता है कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है।” तो लोगों को इस विचार के प्रभाव से कैसे छुटकारा पाना चाहिए? आओ सबसे पहले देखें कि यह विचार लोगों को कैसे प्रभावित करता है। हालाँकि किसी देश के बारे में लोगों की परिभाषा उस विशिष्ट वातावरण से आगे नहीं बढ़ती जिसमें वे रहते हैं, और लोग केवल जीने के अपने बुनियादी अधिकार और जीवित रहने की जरूरतों को पूरा करते रहना चाहते हैं ताकि वे बेहतर तरीके से जी सकें; आजकल पूरी मानवजाति लगातार आगे बढ़ रही है और अपना दायरा बढ़ा रही है, और मनुष्य अनजाने में इस विचार को स्वीकार रहे हैं कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है।” कहने का मतलब यह है कि मानवता के परिप्रेक्ष्य से लोग देश की ऐसी खोखली और भव्य परिभाषाओं को स्वीकारना नहीं चाहते, जैसे कि “एक महान राष्ट्र,” “एक संपन्न राजवंश,” “एक महाशक्ति,” “एक तकनीकी शक्ति,” “एक सैन्य शक्ति” वगैरह। सामान्य मानवता में ऐसी कोई अवधारणा नहीं होती, और लोग अपने दैनिक जीवन में इन चीजों के चक्कर में नहीं उलझना चाहते। लेकिन साथ ही बाकी मानवजाति के साथ घुलने-मिलने पर लोग किसी शक्तिशाली देश की राष्ट्रीयता पाने की उम्मीद करते हैं। विशेष रूप से जब तुम विदेश यात्रा करते हो और अन्य जाति के लोगों के बीच होते हो, तो तुम दृढ़ता से यह महसूस करोगे कि तुम्हारे देश के भाग्य का तुम्हारे अहम हितों पर बहुत असर पड़ता है। यदि तुम्हारा देश शक्तिशाली, समृद्ध और संसार में ऊँचे दर्जे वाला है, तो लोगों के बीच तुम्हारा दर्जा तुम्हारे देश के दर्जे की तरह ऊँचा होगा और तुम्हें बहुत सम्मान दिया जाएगा। यदि तुम किसी गरीब देश, छोटे राष्ट्र या किसी अनजान जातीय समूह से हो, तो तुम्हारी राष्ट्रीयता और जातीयता के हिसाब से तुम्हारा दर्जा निम्नतर होगा। चाहे तुम कैसे भी व्यक्ति हो, या तुम्हारी राष्ट्रीयता कुछ भी हो, या तुम जिस भी जाति से संबंधित हो, यदि तुम केवल एक छोटे से क्षेत्र में रहते हो, तो इस विचार का कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” तुम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। लेकिन जब पूरी मानवजाति से विभिन्न देशों के लोग एक साथ आते हैं, तो इस विचार को कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” अधिक लोग स्वीकारते हैं। यह स्वीकृति निष्क्रिय नहीं होती, बल्कि यह तुम्हारी व्यक्तिपरक इच्छाशक्ति की गहरी अनुभूति होती है कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” की कहावत सही है, क्योंकि तुम्हारे देश का भाग्य लोगों के बीच तुम्हारे दर्जे, तुम्हारी प्रतिष्ठा और अहमियत से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है। उस बिंदु पर तुम्हें अब यह महसूस नहीं होता कि तुम्हारे देश की अवधारणा और परिभाषा केवल वह छोटी सी जगह है जहाँ तुम पैदा हुए और पले-बढ़े। इसके बजाय तुम आशा करते हो कि तुम्हारा देश बड़ा और मजबूत बनेगा। हालाँकि जब तुम अपने देश लौटते हो तो तुम्हारे मन में यह एक बार फिर से बहुत विशिष्ट बन जाता है। यह विशेष जगह कोई आकारहीन राष्ट्र नहीं होता बल्कि तुम्हारे गाँव का रास्ता, नदी और कुआँ होता है, और तुम्हारे घर के खेत होते हैं, जहाँ तुम फसलें उगाते हो। इसलिए जहाँ तक अपने देश लौटने की बात है, यह अधिक विशिष्ट रूप से तुम्हारा अपने गाँव, अपने घर लौटना होता है। और जब तुम घर लौटते हो, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश मौजूद है या नहीं, या शासक कौन है, या देश का क्षेत्र कितना बड़ा है, या देश की आर्थिक स्थिति कैसी है, या देश गरीब है या अमीर—इनमें से कुछ भी तुम्हारे लिए मायने नहीं रखता। अगर तुम्हारा घर अभी भी वहीं है, तो जब तुम वापस लौटने के इरादे से अपना बैग कंधे पर डालोगे, तुम्हारे पास एक दिशा और एक लक्ष्य होगा। अगर तुम्हारे पास अपनी टोपी टाँगने के लिए अभी भी जगह है, और जिस स्थान पर तुम पैदा हुए और पले-बढ़े, वह स्थान अब तक मौजूद है, तो तुममें अपनेपन और गंतव्य की भावना रहेगी। भले ही वह देश जहाँ तुम्हारी जन्मभूमि है अब मौजूद न हो और शासक बदल गया हो, अगर तुम्हारा घर अभी भी वहीं है, तो तुम्हारे पास पहले की तरह वापस लौटने के लिए ठिकाना होगा। यह लोगों के मन में देश की एक बहुत ही विरोधाभासी और अस्पष्ट अवधारणा होती है, लेकिन यह घर की बहुत ठोस अवधारणा भी है। लोग वास्तव में इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” का विचार सही है या नहीं। लेकिन क्योंकि इस विचार का उनके विशिष्ट सामाजिक दर्जे पर खास प्रभाव पड़ता है, लोग अनजाने में देश, राष्ट्रीयता और जाति की एक मजबूत भावना विकसित कर लेते हैं। जब लोग केवल अपने गाँव के छोटे से क्षेत्र में रहते हैं, तो वे इस विचार से कुछ हद तक दूर रहते हैं और इसका प्रतिरोध करते हैं कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है।” लेकिन जब भी वे अपने गाँव और मातृभूमि को छोड़कर अपने देश के शासन से दूर जाते हैं, तो उनमें अनजाने ही इस विचार के प्रति एक खास जागरूकता और स्वीकृति होती है कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है।” उदाहरण के लिए, जब तुम विदेश जाते हो, और अगर कोई तुमसे पूछता है कि तुम किस देश से हो, तो तुम सोचोगे, “अगर मैंने कहा कि मैं सिंगापुर का हूँ, तो लोग मेरे बारे में बहुत अच्छा सोचेंगे; अगर मैंने कहा कि मैं चीनी हूँ, तो लोग मुझे नीची नजरों से देखेंगे।” तो फिर तुम उन्हें सच बताने की हिम्मत नहीं करते। लेकिन एक दिन तुम्हारी राष्ट्रीयता उजागर हो जाती है। लोगों को पता चल जाता है कि तुम चीनी हो, और तब से वे तुम्हें एक अलग नजरिए से देखने लगते हैं। तुम्हारे साथ भेदभाव किया जाता है, तुम्हें नीची नजरों से देखा जाता है और यहाँ तक कि तुम्हें दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है। ऐसे में तुम अनजाने में सोचते हो : “‘प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है’ की कहावत बिल्कुल सही है! मैं सोचता था कि मैं अपने देश के भाग्य के लिए जिम्मेदार नहीं हूँ, लेकिन अब ऐसा लगता है कि देश का भाग्य हर किसी को प्रभावित करता है। जब देश फलता-फूलता है, तो सभी लोग फलते-फूलते हैं, लेकिन जब देश का पतन होता है, तो सभी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। क्या हमारा देश गरीब नहीं है? क्या यहाँ तानाशाही नहीं है? और क्या यहाँ के शासकों की प्रतिष्ठा खराब नहीं है? यही कारण है कि लोग मुझे नीची नजरों से देखते हैं। जरा देखो पश्चिमी देशों में रहने वाले लोग कितने संपन्न और खुशहाल हैं। उन्हें कहीं भी जाने और किसी भी चीज में विश्वास रखने की आजादी है। जबकि कम्युनिस्ट शासन के तहत हमें परमेश्वर में विश्वास करने के कारण सताया जाता है और हम दूर-दूर भागते रहते हैं, घर नहीं लौट पाते। कितना अच्छा होता अगर हम किसी पश्चिमी देश में पैदा हुए होते!” ऐसे में तुम्हें लगता है कि राष्ट्रीयता बेहद महत्वपूर्ण है, और तुम्हारे देश का भाग्य तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। किसी भी मामले में जब लोग ऐसे माहौल और संदर्भ में रहते हैं, तो वे अनजाने ही इस विचार से प्रभावित होते हैं कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” और अलग-अलग स्तर तक इसके नियंत्रण में होते हैं। ऐसे में लोगों के व्यवहार और लोगों, मामलों और चीजों के बारे में उनके विचार, परिप्रेक्ष्य और दृष्टिकोण अलग-अलग स्तर तक बदल जाएँगे, और बेशक इससे अलग-अलग तीव्रता के परिणाम और असर सामने आते हैं। इसलिए, लोगों की सोच पर “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है” की कहावत के प्रभाव के संबंध में एक निश्चित मात्रा में ठोस सबूत मौजूद है। भले ही मानवता के परिप्रेक्ष्य से देखने पर किसी देश के बारे में लोगों की अवधारणा इतनी स्पष्ट न हो, फिर भी कुछ सामाजिक संदर्भों में देश से संबंधित राष्ट्रीयता का अभी भी लोगों पर प्रभाव पड़ता है। अगर लोग सत्य नहीं समझते और इन समस्याओं को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते, तो वे इस विचार के बंधनों और विनाशकारी प्रभावों से खुद को छुटकारा नहीं दिला पाएँगे, जो चीजों से व्यवहार के प्रति उनकी मनोदशा और रवैये को भी प्रभावित करेगा। चाहे मानवता के परिप्रेक्ष्य से देखें या सामान्य माहौल बदलने पर लोगों की सोच में बदलाव और सफलता के संदर्भ में देखें, शैतान द्वारा सामने रखे गए इस विचार का कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के भाग्य के लिए उत्तरदायित्व साझा करता है,” लोगों पर एक निश्चित प्रभाव पड़ता ही है, और मनुष्य की सोच पर इसका एक निश्चित क्षयकारी असर भी पड़ता है। क्योंकि लोग यह नहीं समझते कि किसी देश के भाग्य जैसे मामलों को सही ढंग से कैसे समझाया जाए, और वे इस मामले में शामिल सत्य को नहीं समझते, विभिन्न माहौल में वे अक्सर इस विचार से प्रभावित या भ्रष्ट हो जाते हैं, या यह उनकी मनोदशा को प्रभावित करता है—यह किसी काम का नहीं होता।
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