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परमेश्वर का प्रकटन और कार्य (संकलन)
- केवल वह जो परमेश्वर के कार्य को अनुभव करता है वही परमेवर में सच में विश्वास करता है
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 1
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 2
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 3
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 5
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 15
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 34
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 35
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 36
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 70
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 88
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 103
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 108
- आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 120
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन - अध्याय 1
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - चौथा कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - पाँचवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन - अध्याय 6
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - आठवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - नौवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - दसवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन - राज्य गान
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - ग्यारहवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन - अध्याय 12
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - तेरहवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - चौदहवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन - अध्याय 15
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - सोलहवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन - अध्याय 18
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन - अध्याय 19
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - बीसवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - इक्कीसवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - बाईसवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन - ओ लोगो! आनंद मनाओ!
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - छब्बीसवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - सत्ताईसवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - अट्ठाइसवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन - उन्तीसवाँ कथन
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन - अध्याय 37
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन - अध्याय 39
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन - अध्याय 47
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 1
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 3
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 5
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 6
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - पतरस के जीवन पर
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 8
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 9
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - परिशिष्ट : अध्याय 1
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 10
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 11
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - परिशिष्ट : अध्याय 2
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 12
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 16
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 17
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 18
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 19
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 20
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 22 और अध्याय 23
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 24 और अध्याय 25
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 26
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 28
- संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या - अध्याय 44 और अध्याय 45
- विश्वासियों को क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए
- भ्रष्ट मनुष्य परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करने में अक्षम है
- धार्मिक सेवाओं का शुद्धिकरण अवश्य होना चाहिए
- परमेश्वर में अपने विश्वास में तुम्हें परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना चाहिए
- परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण है
- एक सामान्य आध्यात्मिक जीवन लोगों को सही मार्ग पर ले जाता है
- प्रतिज्ञाएं उनके लिए जो पूर्ण बनाए जा चुके हैं
- दुष्टों को निश्चित ही दंड दिया जाएगा
- परमेश्वर की इच्छा की समरसता में सेवा कैसे करें
- वास्तविकता को कैसे जानें
- एक सामान्य आध्यात्मिक जीवन के विषय में
- कलीसियाई जीवन और वास्तविक जीवन पर विचार-विमर्श
- परमेश्वर द्वारा मनुष्य को इस्तेमाल करने के विषय में
- सत्य को समझने के बाद, तुम्हें उस पर अमल करना चाहिए
- वह व्यक्ति उद्धार प्राप्त करता है जो सत्य का अभ्यास करने को तैयार है
- अनुभव पर
- नये युग की आज्ञाएँ
- सहस्राब्दि राज्य आ चुका है
- परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध कैसा है?
- वास्तविकता पर अधिक ध्यान केंद्रित करो
- आज्ञाओं का पालन करना और सत्य का अभ्यास करना
- तुम्हें पता होना चाहिए कि व्यावहारिक परमेश्वर ही स्वयं परमेश्वर है
- केवल सत्य का अभ्यास करना ही इंसान में वास्तविकता का होना है
- आज परमेश्वर के कार्य को जानना
- क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?
- तुम्हें सत्य के लिए जीना चाहिए क्योंकि तुम्हें परमेश्वर में विश्वास है
- सात गर्जनाएँ होती हैं—भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य का सुसमाचार पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगा
- देहधारी परमेश्वर और परमेश्वर द्वारा उपयोग किए गए लोगों के बीच महत्वपूर्ण अंतर
- अंधकार के प्रभाव से बच निकलो और तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाओगे
- इंसान को अपनी आस्था में, वास्तविकता पर ध्यान देना चाहिए—धार्मिक रीति-रिवाजों में लिप्त रहना आस्था नहीं है
- जो आज परमेश्वर के कार्य को जानते हैं केवल वे ही परमेश्वर की सेवा कर सकते हैं
- परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम स्वाभाविक है
- प्रार्थना की क्रिया के विषय में
- परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके चरण-चिन्हों का अनुसरण करो
- जिनके स्वभाव परिवर्तित हो चुके हैं, वे वही लोग हैं जो परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश कर चुके हैं
- परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय को शांत रखने के बारे में
- पूर्णता प्राप्त करने के लिए परमेश्वर की इच्छा को ध्यान में रखो
- परमेश्वर उन्हें पूर्ण बनाता है, जो उसके हृदय के अनुसार हैं
- जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के आज्ञाकारी हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाएँगे
- राज्य का युग वचन का युग है
- परमेश्वर के वचन के द्वारा सब कुछ प्राप्त हो जाता है
- जो परमेश्वर से सचमुच प्यार करते हैं, वे वो लोग हैं जो परमेश्वर की व्यावहारिकता के प्रति पूर्णतः समर्पित हो सकते हैं
- जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए (भाग एक)
- जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए (भाग दो)
- केवल पीड़ादायक परीक्षाओं का अनुभव करने के द्वारा ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो
- केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है
- "सहस्राब्दि राज्य आ चुका है" के बारे में एक संक्षिप्त वार्ता
- केवल वही जो परमेश्वर को जानते हैं, उसकी गवाही दे सकते हैं
- पतरस ने यीशु को कैसे जाना
- केवल शुद्धिकरण का अनुभव करके ही मनुष्य सच्चे प्रेम से युक्त हो सकता है
- परमेश्वर से प्रेम करने वाले लोग सदैव उसके प्रकाश के भीतर रहेंगे
- मात्र उन्हें ही पूर्ण बनाया जा सकता है जो अभ्यास पर ध्यान देते हैं
- पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य
- जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी
- तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए
- क्या आप जाग उठे हैं?
- अपरिवर्तित स्वभाव होना परमेश्वर के साथ शत्रुता रखना है
- परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं
- कार्य और प्रवेश (2)
- कार्य और प्रवेश (3)
- कार्य और प्रवेश (7)
- कार्य और प्रवेश (8)
- परमेश्वर के कार्य का दर्शन (1)
- परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2)
- परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3) भाग एक
- परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3) भाग दो
- बाइबल के विषय में (1)
- बाइबल के विषय में (3)
- बाइबल के विषय में (4)
- देहधारण का रहस्य (1) भाग एक
- देहधारण का रहस्य (1) भाग दो
- देहधारण का रहस्य (2)
- देहधारण का रहस्य (3)
- देहधारण का रहस्य (4) भाग एक
- देहधारण का रहस्य (4) भाग दो
- दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने
- क्या त्रित्व का अस्तित्व है? (भाग एक)
- क्या त्रित्व का अस्तित्व है? (भाग दो)
- अभ्यास (3)
- अभ्यास (4)
- विजय के कार्यों का आंतरिक सत्य (1)
- विजय-कार्य के दूसरे चरण के प्रभावों को कैसे प्राप्त किया जाता है
- विजय के कार्य का आंतरिक सत्य (2)
- विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (3)
- विजय के कार्य का आंतरिक सत्य (4)
- अभ्यास (6)
- इस्राएलियों की तरह सेवा करो
- पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान (भाग एक)
- पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान (भाग दो)
- पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान (भाग तीन)
- तुम लोगों को कार्य को समझना चाहिए—भ्रम में अनुसरण मत करो!
- अपने मार्ग के अंतिम दौर में तुम्हें कैसे चलना चाहिए (भाग एक)
- अपने मार्ग के अंतिम दौर में तुम्हें कैसे चलना चाहिए (भाग दो)
- तुझे अपने भविष्य मिशन से कैसे निपटना चाहिए
- मानव जाति के प्रबंधन का उद्देश्य
- जो लोग सीखते नहीं और कुछ नहीं जानते : क्या वे जानवर नहीं हैं?
- आशीषों से तुम लोग क्या समझते हो?
- परमेश्वर के बारे में तुम्हारी समझ क्या है?
- एक वास्तविक मनुष्य होने का क्या अर्थ है
- तुम विश्वास के विषय में क्या जानते हो?
- जब झड़ते हुए पत्ते अपनी जड़ों की ओर लौटेंगे, तो तुम्हें अपनी की हुई सभी बुराइयों पर पछतावा होगा
- देहधारियों में से कोई भी कोप के दिन से नहीं बच सकता है
- उद्धारकर्त्ता पहले से ही एक "सफेद बादल" पर सवार होकर वापस आ चुका है
- सुसमाचार को फैलाने का कार्य मनुष्यों को बचाने का कार्य भी है
- तुम सभी कितने नीच चरित्र के हो!
- व्यवस्था के युग में कार्य
- छुटकारे के युग के कार्य के पीछे की सच्ची कहानी
- युवा और वृद्ध लोगों के लिए वचन
- तुम्हें पता होना चाहिए कि समस्त मानवजाति आज के दिन तक कैसे विकसित हुई (भाग एक)
- तुम्हें पता होना चाहिए कि समस्त मानवजाति आज के दिन तक कैसे विकसित हुई (भाग दो)
- पद नामों एवं पहचान के सम्बन्ध में (भाग एक)
- पद नामों एवं पहचान के सम्बन्ध में (भाग दो)
- केवल पूर्ण बनाया गया मनुष्य ही सार्थक जीवन जी सकता है
- मनुष्य के उद्धार के लिए तुम्हें सामाजिक प्रतिष्ठा के आशीष से दूर रहकर परमेश्वर की इच्छा को समझना चाहिए
- वो मनुष्य, जिसने परमेश्वर को अपनी ही धारणाओं में सीमित कर दिया है, किस प्रकार उसके प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है?
- जो परमेश्वर को और उसके कार्य को जानते हैं, केवल वे ही परमेश्वर को संतुष्ट कर सकते हैं
- देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर
- परमेश्वर संपूर्ण सृष्टि का प्रभु है
- तेरह धर्मपत्रों पर तुम्हारा दृढ़ मत क्या है?
- सफलता या असफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है (भाग एक)
- सफलता या असफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है (भाग दो)
- परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का कार्य (भाग एक)
- परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का कार्य (भाग दो)
- परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है (भाग एक)
- परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है (भाग दो)
- भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है (भाग एक)
- भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है (भाग दो)
- भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है (भाग तीन)
- परमेश्वर द्वारा धारण किये गए देह का सार
- परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का अभ्यास (भाग एक)
- परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का अभ्यास (भाग दो)
- परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का अभ्यास (भाग तीन)
- स्वर्गिक परमपिता की इच्छा के प्रति आज्ञाकारिता ही मसीह का वास्तविक सार है
- मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना (भाग एक)
- मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना (भाग दो)
- परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे (भाग एक)
- परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे (भाग दो)
- जब तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देख रहे होगे ऐसा तब होगा जब परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नये सिरे से बना चुका होगा
- जो मसीह के साथ असंगत हैं वे निश्चित ही परमेश्वर के विरोधी हैं
- बुलाए हुए बहुत हैं, परन्तु चुने हुए कुछ ही हैं
- तुम्हें मसीह के साथ अनुकूलता का तरीका खोजना चाहिए
- क्या तुम परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हो?
- मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है
- क्या तुम जानते हो? परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच एक बहुत बड़ा काम किया है
- केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनन्त जीवन का मार्ग दे सकता है
- अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो
- तुम किस के प्रति वफादार हो?
- गंतव्य के बारे में
- तीन चेतावनियाँ
- उल्लंघन मनुष्य को नरक में ले जाएगा
- परमेश्वर के स्वभाव को समझना बहुत महत्वपूर्ण है
- पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें
- एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (1)
- एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (2)
- तुम लोगों को अपने कार्यों पर विचार करना चाहिए
- परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है
- सर्वशक्तिमान की आह
- दस प्रशासनिक आदेश जो राज्य के युग में परमेश्वर के चुने लोगों द्वारा पालन किए जाने चाहिए
- परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है
- परमेश्वर सम्पूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियन्ता है
- केवल परमेश्वर के प्रबंधन के मध्य ही मनुष्य बचाया जा सकता है
- परमेश्वर के प्रकटन को उसके न्याय और ताड़ना में देखना
आरंभ में मसीह के कथन - अध्याय 3
विजयी राजा अपने शानदार सिंहासन पर बैठता है। उसने छुटकारा दिलाने का कार्य पूरा कर लिया है और महिमा में प्रकट होने के लिए अपने सभी लोगों की अगुआई की है। वह ब्रह्मांड को अपने हाथों में धारण करता है और अपने दिव्य ज्ञान और पराक्रम से उसने अटल सिय्योन का निर्माण किया है। अपने प्रताप से वह पापी दुनिया का न्याय करता है; उसने सभी देशों और सभी लोगों, पृथ्वी और समुद्र और उनमें रहने वाले सभी जीवों पर, और साथ ही स्वच्छंद भोग की मदिरा के नशे में डूबे लोगों पर फैसला सुनाया है। परमेश्वर उनका न्याय ज़रूर करेगा, और वह निश्चित रूप से उन पर क्रोधित होगा और इसमें परमेश्वर की महिमा प्रकट होगी, जिसका न्याय तत्क्षण होता है और अविलंब प्रदान किया जाता है। उसके क्रोध की अग्नि उनके घृणित अपराधों को भस्म कर देगी और किसी भी क्षण उन पर विपत्ति टूटेगी; उन्हें बच निकलने के लिए किसी भी मार्ग और छिपने के किसी भी स्थान का पता नहीं होगा, वे रोएँगे और अपने दाँत पीसेंगे, और अपने ऊपर विनाश ले आएँगे।
परमेश्वर के प्यारे विजयी पुत्र निश्चित रूप से सिय्योन में रहेंगे, उससे कभी विदा नहीं होंगे। बड़ी संख्या में लोग करीब से उसकी आवाज़ सुनेंगे, वे सावधानी से उसके कार्यों पर ध्यान देंगे, और उनकी प्रशंसा की आवाजें कभी बंद नहीं होंगी। एक सच्चा परमेश्वर प्रकट हुआ है! हम आत्मा में उसके बारे में निश्चित होंगे और ध्यानपूर्वक उसका अनुसरण करेंगे; हम अपनी पूरी ताकत से आगे बढ़ेंगे और अब और नहीं झिझकेंगे। दुनिया का अंत हमारे सामने प्रकट हो रहा है; चर्च के एक उपयुक्त जीवन के साथ-साथ लोग, कामकाज और चीजें, जिनसे हम घिरे हैं, हमारे प्रशिक्षण को घनीभूत कर रही हैं। आओ, जल्दी से अपने हृ्दयों को वापस लें, जो दुनिया से बहुत प्रेम करते हैं! आओ, जल्दी से अपनी दृष्टि वापस लें, जो इतनी धुँधली है! आओ, अपने कदम रोक लें, ताकि हम सीमाएँ न लाँघ जाएँ। आओ, अपना मुँह बंद करें, ताकि हम परमेश्वर के वचन में जा सकें, और अब अपनी लाभ-हानियों पर झगड़ा न करें। आह, धर्मनिरपेक्ष दुनिया और धन-दौलत के प्रति तुम्हारा लालची शौक—इसे त्याग दो! पतियों, बेटियों और बेटों के साथ तुम्हारा अडिग लगाव—इससे अपने को मुक्त करो! आह, तुम्हारे दृष्टिकोण और पूर्वाग्रह—इनसे पीठ मोड़ लो! आह, जागो; समय कम है! आत्मा के भीतर से देखो, ऊपर देखो, और परमेश्वर को नियंत्रण करने दो। कुछ भी हो जाए, लूत की दूसरी पत्नी न बनो। बेकार समझकर छोड़ दिया जाना कितना दयनीय होता है! सचमुच, कितना दयनीय! आह, जागो!
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