परमेश्वर के दैनिक वचन : कार्य के तीन चरण | अंश 39

अनुग्रह का युग यीशु के नाम से शुरू हुआ। जब यीशु ने अपनी सेवकाई आरंभ की, तो पवित्र आत्मा ने यीशु के नाम की गवाही देनी आरंभ कर दी, और यहोवा का नाम बोला जाना अब बंद हो गया; इसके बजाय, पवित्र आत्मा ने मुख्य रूप से यीशु के नाम से नया कार्य आरंभ किया। जो यीशु में विश्वास करते थे, उन लोगों की गवाही यीशु मसीह के लिए दी गई थी, और उन्होंने जो कार्य किया, वह भी यीशु मसीह के लिए था। पुराने विधान के व्यवस्था के युग के समापन का यह अर्थ था कि मुख्य रूप से यहोवा के नाम पर किया गया कार्य समाप्त हो गया है। तब से परमेश्वर का नाम यहोवा नहीं रहा; इसके बजाय उसे यीशु कहा गया, और यहाँ से पवित्र आत्मा ने मुख्य रूप से यीशु के नाम से कार्य करना आरंभ किया। इसलिए जो लोग आज भी यहोवा के वचनों को खाते और पीते हैं, और अभी भी व्यवस्था के युग के कार्य के अनुसार सब-कुछ करते हैं—क्या तुम नियमों का अंधानुकरण नहीं कर रहे हो? क्या तुम अतीत में नहीं अटक गए हो? अब तुम लोग जानते हो कि अंत के दिन आ चुके हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि जब यीशु आए, तो वह अभी भी यीशु कहलाए? यहोवा ने इस्राएलियों से कहा था कि एक मसीहा आएगा, लेकिन जब वह आया, तो उसे मसीहा नहीं बल्कि यीशु कहा गया। यीशु ने कहा कि वह पुनः आएगा, और वह वैसे ही आएगा जैसे वह गया था। ये यीशु के वचन थे, किंतु क्या तुमने यीशु के जाने के तरीके को देखा था? यीशु एक सफेद बादल पर चढ़कर गया था, किंतु क्या ऐसा हो सकता है कि वह व्यक्तिगत रूप से एक सफेद बादल पर मनुष्यों के बीच वापस आएगा? यदि ऐसा होता, तो क्या वह अभी भी यीशु नहीं कहलाता? जब यीशु पुनः आएगा, तब तक युग पहले ही बदल चुका होगा, तो क्या उसे अभी भी यीशु कहा जा सकता है? क्या परमेश्वर को केवल यीशु के नाम से ही जाना जा सकता है? क्या नए युग में उसे नए नाम से नहीं बुलाया जा सकता? क्या एक व्यक्ति की छवि और एक विशेष नाम परमेश्वर का उसकी संपूर्णता में प्रतिनिधित्व कर सकते हैं? प्रत्येक युग में परमेश्वर नया कार्य करता है और उसे एक नए नाम से बुलाया जाता है; वह भिन्न-भिन्न युगों में एक ही कार्य कैसे कर सकता है? वह पुराने से कैसे चिपका रह सकता है? यीशु का नाम छुटकारे के कार्य के वास्ते लिया गया था, तो क्या जब वह अंत के दिनों में लौटेगा, तब भी उसे उसी नाम से बुलाया जाएगा? क्या वह अभी भी छुटकारे का कार्य करेगा? ऐसा क्यों है कि यहोवा और यीशु एक ही हैं, फिर भी उन्हें भिन्न-भिन्न युगों में भिन्न-भिन्न नामों से बुलाया जाता है? क्या यह इसलिए नहीं है, क्योंकि उनके कार्य के युग भिन्न-भिन्न हैं? क्या केवल एक नाम परमेश्वर का उसकी संपूर्णता में प्रतिनिधित्व कर सकता है? ऐसा होने पर, परमेश्वर को भिन्न युग में भिन्न नाम से ही बुलाया जाना चाहिए, और उसे युग को परिवर्तित करने और युग का प्रतिनिधित्व करने के लिए उस नाम का उपयोग करना चाहिए। क्योंकि कोई भी एक नाम पूरी तरह से स्वयं परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, और प्रत्येक नाम केवल एक दिए गए युग में परमेश्वर के स्वभाव के उस समय से संबंधित पहलू का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है; उसे केवल उसके कार्य का प्रतिनिधित्व ही करना है। इसलिए, समस्त युग का प्रतिनिधित्व करने के लिए परमेश्वर ऐसे किसी भी नाम को चुन सकता है, जो उसके स्वभाव के अनुकूल हो। चाहे वह यहोवा का युग हो, या यीशु का, प्रत्येक युग का प्रतिनिधित्व एक नाम के द्वारा किया जाता है। अनुग्रह के युग के अंत में, अंतिम युग आ गया है, और यीशु पहले ही आ चुका है। उसे अभी भी यीशु कैसे कहा जा सकता है? वह अभी भी मनुष्यों के बीच यीशु का रूप कैसे धर सकता है? क्या तुम भूल गए हो कि यीशु केवल नाज़री की छवि से अधिक नहीं था? क्या तुम भूल गए हो कि यीशु केवल मानवजाति को छुटकारा दिलाने वाला था? वह अंत के दिनों में मनुष्य को जीतने और पूर्ण करने का कार्य हाथ में कैसे ले सकता था? यीशु एक सफेद बादल पर सवार होकर चला गया—यह तथ्य है—किंतु वह मनुष्यों के बीच एक सफेद बादल पर सवार होकर कैसे वापस आ सकता है और अभी भी उसे यीशु कैसे कहा जा सकता है? यदि वह वास्तव में बादल पर आया होता, तो मनुष्य उसे पहचानने में कैसे विफल होता? क्या दुनिया भर के लोग उसे नहीं पहचानते? उस स्थिति में, क्या यीशु एकमात्र परमेश्वर नहीं होता? उस स्थिति में, परमेश्वर की छवि एक यहूदी की छवि होती, और इतना ही नहीं, वह हमेशा ऐसी ही रहती। यीशु ने कहा था कि वह उसी तरह से आएगा जैसे वह गया था, किंतु क्या तुम उसके वचनों का सही अर्थ जानते हो? क्या ऐसा हो सकता है कि ऐसा उसने तुम लोगों के इस समूह से कहा हो? तुम केवल इतना ही जानते हो कि वह उसी तरह से आएगा जैसे वह गया था, एक बादल पर सवार होकर, किंतु क्या तुम जानते हो कि स्वयं परमेश्वर वास्तव में अपना कार्य कैसे करता है? यदि तुम सच में देखने में समर्थ होते, तब यीशु के द्वारा बोले गए वचनों को कैसे समझाया जाता? उसने कहा था : जब अंत के दिनों में मनुष्य का पुत्र आएगा, तो उसे स्वयं ज्ञात नहीं होगा, फ़रिश्तों को ज्ञात नहीं होगा, स्वर्ग के दूतों को ज्ञात नहीं होगा, और समस्त मनुष्यों को ज्ञात नहीं होगा। केवल परमपिता को ज्ञात होगा, अर्थात् केवल पवित्रात्मा को ज्ञात होगा। जिसे स्वयं मनुष्य का पुत्र नहीं जानता, तुम उसे देखने और जानने में सक्षम हो? यदि तुम जानने और अपनी आँखों से देखने में समर्थ होते, तो क्या ये वचन व्यर्थ में बोले गए नहीं होते? और उस समय यीशु ने क्या कहा था? "उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र, परन्तु केवल पिता। जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा। ... इसलिये तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।" जब वह दिन आएगा, तो स्वयं मनुष्य के पुत्र को उसका पता नहीं चलेगा। मनुष्य का पुत्र देहधारी परमेश्वर के देह को संदर्भित करता है, जो एक सामान्य और साधारण व्यक्ति है। जब स्वयं मनुष्य का पुत्र भी नहीं जानता, तो तुम कैसे जान सकते हो? यीशु ने कहा था कि वह वैसे ही आएगा, जैसे वह गया था। जब वह आता है, तो वह स्वयं भी नहीं जानता, तो क्या वह तुम्हें अग्रिम रूप में सूचित कर सकता है? क्या तुम उसका आगमन देखने में सक्षम हो? क्या यह एक मज़ाक नहीं है?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)

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