परमेश्वर के दैनिक वचन : देहधारण | अंश 138

परमेश्वर पृथ्वी पर अपनी सामान्य मानवता को सिद्ध करने के लिए नहीं आता है। वह सामान्य मानवता का कार्य करने के लिए नहीं आता है, बल्कि सामान्य मानवता में केवल दिव्यता का कार्य करने के लिए आता है। परमेश्वर जिस सामान्य मानवता के बारे में बात करता है, यह वह नहीं है जिसकी मनुष्य कल्पना करता है। मनुष्य "सामान्य मानवता" को जिस रूप में परिभाषित करता है वह है एक पत्नी, या एक पति, बेटे और बेटियों का होना। ये इस बात के साक्ष्य हैं कि कोई व्यक्ति एक सामान्य व्यक्ति है। परन्तु परमेश्वर इसे इस तरह से नहीं देखता है। वह सामान्य मानवता को सामान्य मानव विचारों और सामान्य मानव जीवन वाली और सामान्य लोगों से जन्म लेने वाली के रूप में देखता है। किन्तु उसकी सामान्यता में उस तरह से एक पत्नी, या एक पति और बच्चे शामिल नहीं होते हैं, जैसे कि मनुष्य सामान्यता को समझता है। अर्थात्, मनुष्य के लिए, सामान्य मानवता जिसके बारे में परमेश्वर बोलता है, वह है जिसे मनुष्य मानवता की अनुपस्थिति मानेगा, गति का लगभग अभाव और प्रकट रूप से दैहिक आवश्यकताओँ से विहीन, ठीक यीशु की तरह, जिसका केवल बाह्य स्वरूप एक सामान्य व्यक्ति का था और जिसने एक सामान्य व्यक्ति का रूप-रंग धारण कर लिया था, किन्तु सार रूप में उसके पास वह सब नहीं था जो एक सामान्य व्यक्ति के पास होना चाहिए। इससे यह देखा जा सकता है कि देहधारी परमेश्वर का सार सामान्य मानवता की सम्पूर्णता को नहीं, बल्कि सामान्य मानव जीवन के नित्य-कर्मों को सहारा देने और तर्क की सामान्य मानव सामर्थ्य को बनाए रखने के लिए, उन चीजों के केवल एक भाग को ही घेरता है जिससे लोगों को सुसज्जित होना चाहिए। परन्तु इन चीजों का उस बात से कोई लेना-देना नहीं है जिसे मनुष्य सामान्य मानवता समझता है। ये वे हैं जो देहधारी परमेश्वर को धारण करनी चाहिए। हालाँकि, ऐसे लोग हैं जो निश्चयपूर्वक कहते हैं कि देहधारी परमेश्वर को सामान्य मानवता धारण करने वाला केवल तभी कहा जा सकता है जब उसके पास एक पत्नी, बेटे और बेटियाँ, और एक परिवार हो। इन चीजों के बिना, उनका कहना है, कि वह एक सामान्य व्यक्ति नहीं है। तब मैं तुम से पूछता हूँ, कि "क्या परमेश्वर की कोई पत्नी है? क्या यह संभव है कि परमेश्वर का एक पति हो? क्या परमेश्वर के बच्चे हो सकते हैं?" क्या ये भ्रांतियाँ नहीं हैं? हालाँकि, देहधारी परमेश्वर चट्टानों के बीच की दरार से निकल कर नहीं आ सकता है, या आसमान से नीचे नहीं गिर सकता है। वह केवल एक सामान्य मानव परिवार में ही जन्म ले सकता है। यही कारण है कि उसके माता-पिता और बहनें हैं। यही वे चीज़ें हैं जो एक देहधारी परमेश्वर की सामान्य मानवता के पास होनी चाहिए। यीशु के साथ ऐसा ही मामला था। यीशु के पिता और माता, बहनें और भाई थे। यह सब सामान्य था। किन्तु यदि उसकी कोई पत्नी और बेटे और बेटियाँ होतीं तो उसकी वह सामान्य मानवता नहीं होती जो परमेश्वर चाहता था कि एक देहधारी परमेश्वर धारण करे। यदि ऐसा मामला होता, तो वह दिव्यता की ओर से कार्य करने में समर्थ नहीं होता। यह निश्चित रूप से इसलिए था क्योंकि उसकी कोई पत्नी या बच्चे नहीं थे, और फिर भी उसका जन्म एक सामान्य परिवार में, सामान्य लोगों के द्वारा हुआ था, कि वह दिव्यता के कार्य को पूरा करने में समर्थ था। इसे और स्पष्ट करने के लिए, परमेश्वर जिसे एक सामान्य व्यक्ति समझता है, वह एक सामान्य परिवार में जन्मा हुआ एक व्यक्ति है। केवल इस तरह का व्यक्ति ही दिव्यता के कार्य को करने के योग्य है। दूसरी ओर, यदि किसी व्यक्ति के एक पत्नी, बच्चे, या एक पति हैं तो वह व्यक्ति दिव्यता के कार्य को करने में समर्थ नहीं होगा, क्योंकि उसके पास केवल सामान्य मानवता होगी जिसकी मनुष्य को आवश्यकता होती है किन्तु वह सामान्य मानवता नहीं होगी जिसकी परमेश्वर को आवश्यकता है। जो परमेश्वर विचार करता है कि होना चाहिए और जो लोग समझते हैं उसमें प्रायः बहुत अधिक भिन्नता होती है, मीलों का अंतर होता है। परमेश्वर के कार्य के इस चरण में ऐसा बहुत कुछ है जो लोगों की अवधारणाओं के विपरीत चलता है और उससे बहुत भिन्न होता है। कोई कह सकता है कि परमेश्वर के कार्य का यह चरण मानवता द्वारा एक सहायक भूमिका निभाने के साथ, पूर्ण रूप से दिव्यता के व्यावहारिक व क्रियाशील कार्य से युक्त है। क्योंकि परमेश्वर पृथ्वी पर अपने कार्य में मनुष्य को हाथ लगाने की अनुमति देने के बजाय अपना कार्य स्वयं करने के लिए आता है, यही कारण है कि वह अपना कार्य करने के लिए देह में स्वयं देहधारण (एक अपूर्ण, सामान्य व्यक्ति में) करता है। वह मानवजाति को नया युग प्रस्तुत करने, मानवजाति को अपने कार्य के अगले कदम के बारे में बताने और उसके वचनों में बताए गए मार्ग के अनुसार अभ्यास करने हेतु कहने के लिए इस देहधारण का उपयोग करता है। इसके साथ ही, परमेश्वर देह के अपने कार्य को समाप्त करता है, और वह सामान्य मानवता की देह में अब और न रहते हुए, बल्कि इसके बजाय अपने कार्य के दूसरे भाग में आगे बढ़ने के लिए मानव जाति से दूर जाते हुए, मनुष्यजाति से प्रस्थान करने ही वाला है। फिर अपने समान विचार वाले मनुष्यों का उपयोग करके, वह लोगों के इस समूह के बीच, किन्तु उनकी मानवता में, अपने कार्य को पृथ्वी पर जारी रखता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारी परमेश्वर और परमेश्वर द्वारा उपयोग किए जाने वाले लोगों के बीच अनिवार्य अंतर

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