परमेश्वर के दैनिक वचन : देहधारण | अंश 126
देह में परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक चरण संपूर्ण युग के उसके कार्य का प्रतिनिधित्व करता है, मनुष्य के काम की तरह किसी समय-विशेष का प्रतिनिधित्व नहीं करता। इसलिए उसके अंतिम देहधारण के कार्य के अन्त का यह अर्थ नहीं है कि उसका कार्य पूर्ण रूप से समाप्त हो गया है, क्योंकि देह में उसका कार्य संपूर्ण युग का प्रतिनिधित्व करता है, और केवल उसी समयावधि का ही प्रतिनिधित्व नहीं करता है जिसमें वह देह में कार्य करता है। बात बस इतनी है कि जब वह देह में होता है तब उस दौरान समूचे युग के अपने कार्य को पूरा करता है, उसके पश्चात् यह सभी स्थानों में फैल जाता है। देहधारी परमेश्वर अपनी सेवकाई को पूरा करने के बाद, अपने भविष्य के कार्य को उन्हें सौंप देगा जो उसका अनुसरण करते हैं। इस तरह, संपूर्ण युग का उसका कार्य अखंड रूप से चलता रहेगा। देहधारण के संपूर्ण युग का कार्य केवल तभी पूर्ण माना जाएगा जब यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड में पूरी तरह से फैल जाएगा। देहधारी परमेश्वर का कार्य एक नये विशेष युग का आरम्भ करता है, और उसके कार्य को जारी रखने वाले वे लोग हैं जिनका उपयोग परमेश्वर करता है। मनुष्य के द्वारा किया गया समस्त कार्य देहधारी परमेश्वर की सेवकाई के भीतर होता है, वह इस दायरे के परे नहीं जा सकता। यदि देहधारी परमेश्वर अपना कार्य करने के लिए न आता, तो मनुष्य पुराने युग को समाप्त कर, नए युग की शुरुआत नहीं कर पाता। मनुष्य द्वारा किया गया कार्य मात्र उसके कर्तव्य के दायरे के भीतर होता है जो मानवीय रूप से करना संभव है, वह परमेश्वर के कार्य का प्रतिनिधित्व नहीं करता। केवल देहधारी परमेश्वर ही आकर उस कार्य को पूरा कर सकता है जो उसे करना चाहिए, उसके अलावा, इस कार्य को उसकी ओर से और कोई नहीं कर सकता। निस्संदेह, मैं देहधारण के कार्य के सम्बन्ध के बारे में बात कर रहा हूँ। यह देहधारी परमेश्वर पहले कार्य के एक कदम को कार्यान्वित करता है जो मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप नहीं होता, उसके बाद वह और कार्य करता है, वह भी मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप नहीं होता। कार्य का लक्ष्य मनुष्य पर विजय पाना है। एक लिहाज से, परमेश्वर का देहधारण मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप नहीं होता, जिसके अतिरिक्त वह और भी अधिक कार्य करता है जो मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप नहीं होता, और इसलिए मनुष्य उसके बारे में और भी अधिक आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपना लेता है। वह उन लोगों के बीच विजय-कार्य करता है जिनकी उसके प्रति अनेक धारणाएँ होती हैं। इस बात की परवाह किए बिना कि वे किस प्रकार उससे व्यवहार करते हैं, एक बार जब वह अपनी सेवकाई पूरी कर लेगा, तो सभी लोग उसके प्रभुत्व में आ चुके होंगे। इस कार्य का तथ्य न केवल चीनी लोगों के बीच प्रतिबिम्बित होता है, बल्कि यह इस बात का प्रतिनिधित्व भी करता है कि किस प्रकार सम्पूर्ण मनुष्यजाति को जीता जाएगा। इन लोगों पर हासिल किए गए प्रभाव उन प्रभावों के अग्रगामी हैं जो संपूर्ण मनुष्यजाति पर प्राप्त किए जाएँगे, और जो कार्य वह भविष्य में करेगा उसके प्रभाव, इन लोगों पर प्रभावों से भी कहीं बढ़कर होंगे। देहधारी परमेश्वर के कार्य में कोई तामझाम नहीं होता, न ही यह धुँधलेपन में घिरा होता है। यह असली और वास्तविक होता है, और यह ऐसा कार्य है जिसमें एक और एक दो होते हैं। यह न तो किसी से छिपा होता है, न ही किसी को धोखा देता है। लोग वास्तविक और विशुद्ध चीजें देखते हैं, वास्तविक सत्य और ज्ञान प्राप्त करते हैं। कार्य समाप्त होने पर, इंसान के पास परमेश्वर के बारे में नया ज्ञान होगा, और जो लोग सच्चे खोजी हैं, उनके अंदर उसके बारे में कोई धारणाएँ नहीं होंगी। यह सिर्फ चीनी लोगों पर उसके कार्य का प्रभाव नहीं है, बल्कि यह सम्पूर्ण मनुष्यजाति को जीतने में उसके कार्य के प्रभाव को भी दर्शाता है, क्योंकि इस देह, इस देह के कार्य, और इस देह की हर एक चीज़ की तुलना में कोई भी चीज़ सम्पूर्ण मनुष्यजाति पर विजय पाने के कार्य के लिए अधिक लाभदायक नहीं है। वे आज उसके कार्य के लिए लाभदायक हैं, और भविष्य में भी उसके कार्य के लिए लाभदायक होंगे। यह देह संपूर्ण मनुष्यजाति को जीत लेगा और उसे प्राप्त कर लेगा। ऐसा कोई बेहतर कार्य नहीं है जिसके माध्यम से सम्पूर्ण मनुष्यजाति परमेश्वर को देखे, उसका आज्ञापालन करे और उसे जाने। मनुष्य के द्वारा किया गया कार्य मात्र एक सीमित दायरे को दर्शाता है, और जब परमेश्वर अपना कार्य करता है तो वह किसी व्यक्ति-विशेष से बात नहीं करता, बल्कि उन सारे लोगों से बात करता है जो उसके वचनों को स्वीकार करते हैं। वह जिस अन्त की घोषणा करता है वह पूरी मानवजाति का अन्त है, सिर्फ किसी व्यक्ति-विशेष का अन्त नहीं है। वह किसी के साथ विशेष व्यवहार नहीं करता, न ही किसी को सताता है, वह सम्पूर्ण मनुष्यजाति के लिए कार्य करता है और उससे बात करता है। इस देहधारी परमेश्वर ने पहले ही संपूर्ण मनुष्यजाति को उसके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत कर दिया है, उसका न्याय कर दिया है, और उपयुक्त मंज़िल की व्यवस्था कर दी है। भले ही परमेश्वर सिर्फ चीन में ही कार्य करता है, लेकिन वास्तव में, उसने तो पहले से ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के कार्य का समाधान कर चुका है। अपने कथनों और व्यवस्थाओं को चरणबद्ध तरीके से कार्यांवित करने से पहले, वह इसकी प्रतीक्षा नहीं कर सकता कि उसका कार्य समस्त मनुष्यजाति में फैल जाए। क्या तब तक बहुत देर नहीं हो जाएगी? अब वह भविष्य के कार्य को पहले से ही पूरा कर सकता है। क्योंकि जो कार्य कर रहा है वही एकमात्र देहधारी परमेश्वर है, वह सीमित दायरे में असीमित कार्य कर रहा है, उसके बाद वह इंसान से वह काम करवाएगा जो इंसान को करना चाहिए; यह उसके कार्य का सिद्धान्त है। वह इंसान के साथ केवल थोड़े समय तक ही रह सकता है, वह उसके साथ पूरे युग का कार्य समाप्त होने तक नहीं रह सकता। चूँकि वह परमेश्वर है इसलिए पहले ही अपने भविष्य के कार्य की भविष्यवाणी कर देता है। उसके बाद, वह अपने वचनों से पूरी मनुष्यजाति को उसके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत करेगा, और मनुष्यजाति उसके वचनों के अनुसार उसके चरणबद्ध कार्य में प्रवेश करेगी। कोई भी बच नहीं पाएगा, सभी को इसके अनुसार अभ्यास करना होगा। इस तरह भविष्य में उसके वचन युग का मार्गदर्शन करेंगे, पवित्रात्मा नहीं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, भ्रष्ट मनुष्यजाति को देहधारी परमेश्वर द्वारा उद्धार की अधिक आवश्यकता है
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