परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 85
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जो देहधारी परमेश्वर है, वह परमेश्वर का सार धारण करेगा, और जो देहधारी परमेश्वर है, वह परमेश्वर की अभिव्यक्ति धारण करेगा। चूँकि परमेश्वर देहधारी हुआ, वह उस कार्य को प्रकट करेगा जो उसे अवश्य करना चाहिए, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया, तो वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है, और मनुष्यों के लिए सत्य को लाने के समर्थ होगा, मनुष्यों को जीवन प्रदान करने, और मनुष्य को मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस शरीर में परमेश्वर का सार नहीं है, निश्चित रूप से वह देहधारी परमेश्वर नहीं है; इस बारे में कोई संदेह नहीं है। यह पता लगाने के लिए कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, मनुष्य को इसका निर्धारण उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव से और उसके द्वारा बोले वचनों से अवश्य करना चाहिए। कहने का अभिप्राय है, कि वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है या नहीं, और यह सही मार्ग है या नहीं, इसे परमेश्वर के सार से तय करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने में कि यह देहधआरी परमेश्वर का शरीर है या नहीं, बाहरी रूप-रंग के बजाय, उसके सार (उसका कार्य, उसके वचन, उसका स्वभाव और बहुत सी अन्य बातें) पर ध्यान देना ही कुंजी है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी रूप-रंग को ही देखता है, उसके तत्व की अनदेखी करता है, तो यह मनुष्य की अज्ञानता और उसके अनाड़ीपन को दर्शाता है। बाहरी बातें सार का निर्धारण नहीं करती हैं; उससे भी बढ़कर, परमेश्वर का कार्य मनुष्यों की अवधारणाओं से अनुरूप कभी भी नहीं रहा है। क्या यीशु का बाहरी रूपरंग मनुष्य की अवधारणाओं से संघर्ष नहीं करता था? क्या उसका रूपरंग और पहनावा, उसकी वास्तविक पहचान के बारे में कोई सुराग देने में असमर्थ नहीं थे? क्या यही वह कारण नहीं था कि आरंभिक फरीसियों ने यीशु का विरोध किया, क्योंकि उन्होंने केवल उसके बाहरी रूपरंग को ही देखा, और उसके द्वारा बोले गये वचनों को अपने हृदय में ग्रहण नहीं किया? मेरी आशा है कि वे भाई और बहनें जो परमेश्वर के रूपरंग की खोज में हैं, वे इतिहास की इस त्रासदी या दुःखद घटना को नहीं दोहराएँगे। तुम लोगों को आधुनिक काल का फरीसी नहीं बनना चाहिए और परमेश्वर को फिर से सलीब पर नहीं चढ़ाया जाना चाहिए। तुम लोगों को सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए कि परमेश्वर के वापस लौटने का स्वागत कैसे करें, और एक स्पष्ट मन रखना चाहिए कि कैसे ऐसा व्यक्ति बने जो सत्य के प्रति समर्पित होता है। यह यीशु के बादलों पर लौटकर आने की प्रतीक्षा करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है। हमें अपनी आध्यात्मिक आँखों को पोंछना चाहिए और कल्पना की उड़ान से भरे शब्दों का शिकार नहीं बनना चाहिए। हमें परमेश्वर के व्यवहारिक कार्य के बारे में सोचना चाहिए, और परमेश्वर के यथार्थ पक्ष पर दृष्टि डालनी चाहिए। तुम लोग अपने आप को दिवास्वप्न में बहने या खोने न दें, सदैव उस दिन की प्रतीक्षा में रहें, जब प्रभु यीशु तुम लोगों को, जिन्होंने कभी भी उसे जाना या उसे देखा नहीं है, और जो नहीं जानते हैं कि उसकी इच्छा को कैसे करें, ले जाने के लिए अचानक हमारे बीच बादलों पर अवरोहण करेगा। व्यवहारिक मसलों पर विचार करना बेहतर है!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना
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