कर्तव्य निभाने के बारे में वचन (अंश 33)
कुछ लोग नहीं जानते कि परमेश्वर के कार्य का अनुभव कैसे करें और नहीं जानते कि अपने कर्तव्य निभाते हुए या वास्तविक जीवन में परमेश्वर के वचनों का पालन कैसे करें। वे सत्य हासिल करने तथा जीवन में विकास करने के लिए हमेशा कई सभाओं में जाने पर ही भरोसा करते हैं। लेकिन, यह अवास्तविक है और ऐसा तर्क है जिसमें कोई दम नहीं है। जीवन परमेश्वर के वचनों का अनुभव करने से और न्याय तथा ताड़ना का अनुभव करने से मिलता है। जो लोग उसके कार्य का अनुभव करना जानते हैं, वे चाहे कोई भी कर्तव्य निभाएँ, अपने कर्तव्य निभाते हुए वे सत्य को समझने तथा व्यवहार में लाने में, काट-छाँट को स्वीकारने में, सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में, अपने स्वभाव में बदलाव कर पाने में और परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जा सकने में सक्षम होते हैं। जो आलसी और आरामतलब लोग होते हैं, वे कर्तव्यों का निर्वहन करना नहीं चाहते और अपने कर्तव्य करते समय परमेश्वर के कार्यों का अनुभव नहीं करते, बल्कि लगातार ये माँग करते रहते हैं कि परमेश्वर के घर से उन्हें सभाएँ, धर्मोपदेश और सत्य के बारे में संगति प्रदान की जाएँ। इसके कारण, दस या बीस वर्ष तक विश्वास करते रहने और अनगिनत धर्मोपदेश सुनने के बाद भी वे सत्य नहीं समझ पाते या सत्य हासिल नहीं कर पाते हैं। वे नहीं जानते हैं कि परमेश्वर के कार्य का अनुभव कैसे किया जाए, नहीं समझते कि परमेश्वर पर विश्वास करना क्या होता है और नहीं जानते कि स्वयं को जानने के लिए और सत्य तथा जीवन को पाने के लिए परमेश्वर के वचनों का अनुभव कैसे किया जाए। वे आरामतलब और अपने कर्तव्य से जी चुराने वाले लोग होते हैं; इसलिए वे जिस तरह अपना कर्तव्य निभाते हैं उसके कारण उन्हें बेनकाब करके हटा दिया जाता है। अब जो अपने कर्तव्य पूरे करने से संतुष्ट होते हैं, और जो सत्य के अनुसरण को महत्व देते हैं, उन सभी के पास अपने कर्तव्य निभाते हुए कुछ जीवन प्रवेश होता है, जब वे भ्रष्टता दिखाते हैं तो वे खुद को जानने के लिए चिंतन करते हैं, और जब अपने कर्तव्य निभाते हुए उनका मुश्किलों से सामना होता है वे समस्याओं का समाधान पाने के लिए सत्य खोजते और सत्य पर संगति करते हैं। अनजाने में ही, कई वर्षों तक अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए, वे स्पष्ट पुरस्कार भी पाते हैं, वे कुछ अनुभवजन्य गवाही की बात कर सकते हैं, परमेश्वर के कार्य और उसके स्वभाव का कुछ ज्ञान रखते हैं और इस तरह अपने जीवन स्वभाव में बदलाव लाते हैं। वर्तमान में, हर जगह की कलीसिया बुरे लोगों से और उन लोगों से मुक्ति पा रही है, जो विघ्न डालते हैं और बाधाएँ उत्पन्न करते हैं। जो लोग बचे हैं, वे आमतौर पर ऐसे लोग हैं जो अपने कर्तव्य पूरे कर पाने में समर्थ हैं, कुछ हद तक निष्ठावान हैं और समस्याओं के समाधान के लिए सत्य की तलाश को महत्व देते हैं। वे ऐसे लोग होते हैं, जो अपनी गवाही में दृढ़ रह सकते हैं। तुम लोगों को परमेश्वर के वचनों को वास्तविक जीवन में और अपने कर्तव्यों के पालन में उतारना, व्यवहार में तथा उपयोग में लाना सीखना चाहिए और तब, जब समस्याएँ और मुश्किलें आएँ, तो उनके समाधान के लिए सत्य तलाशना चाहिए। इसके अतिरिक्त, तुम्हें अपने कर्तव्य पूरे करते समय परमेश्वर के इरादों का ध्यान रखना भी सीखना चाहिए और सत्य को व्यवहार में लाने तथा हर मामले में चीजों को सिद्धांतों के अनुसार संचालित करने पर काम करना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर से प्रेम करना सीखना चाहिए और परमेश्वर-प्रेमी हृदय रखते हुए, उसके भार का ध्यान रखना चाहिए और उस बिंदु तक पहुँचना चाहिए, जहाँ तुम उसे संतुष्ट कर सकते हो। केवल ऐसा करने वाला व्यक्ति ही परमेश्वर से सच्चा प्यार करता है। इस तरह कार्य करने पर, भले ही तुम सत्य को पूरी तरह न समझो, फिर भी तुम ढंग से अपने कर्तव्य को पूरा करने में समर्थ होते हो और तुम न केवल अपने अनमनेपन का समाधान कर सकते हो, बल्कि अपने कर्तव्य करते समय परमेश्वर से प्रेम करना, उसके प्रति समर्पण करना और उसे संतुष्ट करना भी सीख सकते हो—यही जीवन प्रवेश का पाठ है। अगर तुम सत्य का अभ्यास कर सकते हो और हर मामले में इस तरह से सिद्धांतों के अनुरूप काम कर सकते हो तो तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर रहे हो और तुम्हारे पास जीवन प्रवेश होगा। भले ही तुम अपने कर्तव्य पूरे करने में कितने भी व्यस्त रहो, लेकिन जब तुम्हें जीवन प्रवेश का फल मिलेगा, जीवन का विकास होगा और परमेश्वर के आयोजन तथा व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण कर सकोगे, तब तुम्हें अपने कर्तव्य निभाते हुए आनंद प्राप्त होगा। चाहे तुम कितने भी व्यस्त रहो, तुम्हें थकान महसूस नहीं होगी। तुम्हारे दिल में हमेशा शांति और खुशी रहेगी और तुम्हें खास तौर से समृद्धि और स्थिरता महसूस होगी। चाहे जितनी भी मुश्किलें आएँ, जब तुम सत्य खोजोगे, तब पवित्र आत्मा तुम्हें प्रबुद्ध कर तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा। तब तुम्हें परमेश्वर का आशीष प्राप्त होगा। इसके बाद, अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय चाहे तुम व्यस्त रहो या नहीं, अवसर के उपयुक्त कसरत तथा विवेकपूर्ण दुरुस्ती गतिविधियों में शामिल होना महत्वपूर्ण है। इससे परिसंचरण बढ़ेगा, उच्च ऊर्जा स्तर बनाए रखने में मदद मिलेगी और यह पेशे से जुड़े कुछ रोगों से बचाव में असरदार साबित हो सकता है। यह तुम्हारे कर्तव्यों के अच्छी तरह निर्वहन के लिए भी बहुत फायदेमंद है। इसलिए, अपने कर्तव्य करते समय, अगर तुम कई चीजों को सीख सकते हो, कई सत्यों की समझ हासिल कर सकते हो, परमेश्वर को सच में जानते हो और अंततः परमेश्वर का भय मानते तथा बुराई से दूर रहते हो तो तुम पूरी तरह उसके इरादों के अनुरूप चलोगे। अगर तुम परमेश्वर से प्रेम कर सकते हो, उसके लिए गवाही दे सकते हो और दिल तथा दिमाग से उसके साथ एक हो सकते हो तो तुम उसके द्वारा पूर्ण बनाए जाने के पथ पर चल रहे हो। ऐसे ही व्यक्ति को परमेश्वर का आशीष प्राप्त होता है और यह बहुत बड़ा वरदान है! अगर तुम परमेश्वर के लिए खुद को ईमानदारी से खपाते हो तो तुम्हें निश्चय ही उससे खूब सारा आशीष प्राप्त होगा। जो खुद को परमेश्वर के लिए नहीं खपाते और अपने कर्तव्य पूरे नहीं करते, क्या वे सत्य को हासिल कर सकते हैं? क्या उनका उद्धार हो सकता है? यह कहना कठिन है। सभी आशीष अपने कर्तव्य का निर्वहन करने और परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने से ही प्राप्त हो सकते हैं। अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के क्रम में ही व्यक्ति जान पाता है कि परमेश्वर के कार्य का अनुभव कैसे करें और न्याय तथा ताड़ना, परीक्षण और शोधन, और काट-छाँट का अनुभव कैसे करें। ये चीजें आशीष पाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं। तो अगर लोग सत्य से प्रेम करेंगे और इसका अनुसरण करेंगे, वे अंततः इसे प्राप्त कर लेंगे, अपने जीवन स्वभाव में बदलाव कर पाएँगे, परमेश्वर की मंजूरी पा लेंगे और वह व्यक्ति बन जाएँगे, जिसे परमेश्वर आशीष देता है।
कुछ लोग अपने कर्तव्य पूरे करते समय कोई बात होने पर सत्य की तलाश नहीं करते, हमेशा अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार जीते हैं, अपनी व्यक्तिगत पसंद के अनुसार काम करते हैं और आँखें मूँदे सिर्फ अपनी इच्छानुसार काम करते हैं। इसके कारण वे कई गलतियाँ कर जाते हैं और कलीसिया के काम में देरी करते हैं। जब उनकी काट-छाँट की जाती है, तब भी वे सत्य को स्वीकार नहीं करते और अपना मनमाना तथा लापरवाही भरा व्यवहार जारी रखते हैं। इसके परिणामस्वरूप, वे पवित्र आत्मा के कार्य को गँवा देते हैं और परमेश्वर में उनका विश्वास भ्रमित हो जाता है और उसे अंधकार घेर लेता है। कुछ लोग शोहरत, लाभ और हैसियत के पीछे भागना पसंद करते हैं, खुद को इन चीजों में व्यस्त रखते हैं और परमेश्वर के इरादों पर विचार नहीं करते या सत्य पर किसी भी संगति को स्वीकार नहीं करते। अंततः उन्हें बेनकाब करके हटा दिया जाता है और वे अंधेरे में गिर जाते हैं। परमेश्वर में विश्वास करने वाले कुछ लोग परमेश्वर के देहधारण को स्वीकार करते हैं, फिर भी दिल से वे केवल स्वर्ग में रहने वाले परमेश्वर और परमेश्वर के आत्मा में विश्वास करते हैं। व्यावहारिक परमेश्वर के बारे में उनकी धारणाएँ लगातार बनी रहती हैं और दिल से उनके प्रति सतर्क रहते हैं, वे डरते रहते हैं कि उसे उनकी सच्चाई पता चल जाएगी। वे हर मोड़ पर परमेश्वर को नजरअंदाज करते हैं और जब वे उसे देखते हैं, तो इस तरह देखते हैं, मानो वह कोई अजनबी हो। इसके कारण कई वर्षों के विश्वास के बाद भी, उन्हें कुछ नहीं मिलता और उनमें उसके प्रति थोड़ी-सी भी आस्था नहीं होती। उनमें और छद्म-विश्वासियों में कोई अंतर नहीं होता। ऐसा सिर्फ इसलिए होता है, क्योंकि वे सत्य का अनुसरण नहीं करते। कुछ लोग लगातार व्यावहारिक परमेश्वर को देखना चाहते हैं। वे परमेश्वर को प्रसन्न करने को लालायित होते हैं और चाहते हैं कि वह उनकी हैसियत बढ़ा दे, ताकि कलीसिया में वे अपना रौब झाड़ सकें। परिणामस्वरूप, उनकी बेईमानी, स्पष्टवादिता की कमी, परमेश्वर के चेहरे पर टकटकी लगाए रहने और उसके अभिप्राय को लेकर अटकलें लगाते रहने के कारण, वे उसके द्वारा ठुकरा दिए जाते हैं। परमेश्वर ऐसे लोगों को और देखना नहीं चाहता। इन लोगों के परमेश्वर में विश्वास करने का उद्देश्य क्या है? परमेश्वर इतना अधिक सत्य बता रहा है, फिर भी वे उसकी जाँच क्यों कर रहे हैं? यदि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, तो वे सत्य का अनुसरण क्यों नहीं करते? उनमें लगातार इतनी महत्वाकांक्षा और इतनी इच्छाएँ क्यों बनी रहती हैं, वे शोहरत, धन, रुतबा, लाभ और फायदे की तलाश में क्यों रहते हैं? परमेश्वर में विश्वास करने का उनका प्रयोजन दुर्भावनापूर्ण होता है और लोग उन्हें समझ नहीं पाते हैं। ये सभी छद्म-विश्वासियों के व्यवहार हैं। सच कहें तो, जो भी व्यक्ति परमेश्वर में विश्वास करता है लेकिन सत्य स्वीकार नहीं कर सकता, वह छद्म-विश्वासी ही है। केवल सत्य का अनुसरण करने, अपने कर्तव्यों का अच्छी तरह पालन करने का प्रयास करने और परमेश्वर को संतुष्ट करने की चाह रखने वाले लोग ही परमेश्वर में सच्चा विश्वास रखते हैं और उसकी स्वीकृति प्राप्त करने में समर्थ होते हैं।
अब, तुम लोगों के जीवन का हर दिन और हर वर्ष मूल्यवान है। यह मूल्य किस चीज का है? जब कोई व्यक्ति सृष्टिकर्ता के समक्ष आता है, सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाता है और सृष्टिकर्ता से सत्य प्राप्त करता है, तो वह परमेश्वर की नजरों में उपयोगी बन जाता है। क्या परमेश्वर की प्रबंधन योजना में तुम्हारे विनीत प्रयासों का योगदान ही वह चीज नहीं है, जो तुम्हारे जीवन के प्रत्येक दिन को मूल्यवान बनाती है? (हाँ, बिल्कुल।) यह जीवन के प्रत्येक दिन का मूल्य है और यह मूल्यवान है! यदि तुम्हारे जीवन का प्रत्येक दिन का इतना मूल्य है, तो अपने कर्तव्यों का पालन करते समय थोड़ी-सी पीड़ा या बीमारी से क्या फर्क पड़ जाता है? लोगों को इसकी शिकायत नहीं करनी चाहिए। लोगों ने परमेश्वर की उपस्थिति में होने से बहुत कुछ हासिल किया है; उन्हें ऐसा अनुग्रह और आशीष व सुरक्षा मिलती है, जो दिखाई नहीं देती और उनकी कल्पना व देखने की क्षमता से परे होती है। लोगों को इतना कुछ मिला है—कोई छोटी-मोटी बीमारी क्या मायने रखती है? क्या यह वह सबक नहीं है, जो लोगों को सीखना चाहिए? यदि बीमारी के चलते कोई सत्य समझ सकता है, परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सकता है और उसे संतुष्ट कर सकता है, तो क्या यह उससे मिला एक और आशीष नहीं है? संसार में जीवनयापन करने वालों में से किसे शारीरिक पीड़ा नहीं होती? अगर उन्हें कोई बीमारी है तो इसकी परवाह कौन करता है? किसी को परवाह नहीं होती, कोई नहीं पूछता और उन्हें आश्वासन देने वाला कोई नहीं होता। क्या परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य पूरे करने वाले तुम लोगों के पास आश्वासन है? (हाँ।) जो लोग परमेश्वर के लिए खुद को ईमानदारी से खपाते हैं, वे सभी आश्वस्त होते हैं और उन्हें उसके आशीष मिलते हैं। तुम लोग किस प्रकार के आश्वासन को देखते और पहचानते हो? (मैं अब दुनिया की बुरी प्रवृत्तियों से प्रभावित या विषाक्त नहीं होता हूँ; मैं अविश्वासियों के डराने-धमकाने और नुकसान पहुँचाने से दूर हो गया हूँ और मुझे सभी चीजों में परमेश्वर की सुरक्षा और आशीष प्राप्त हैं। मुझे अब बड़ा लाल अजगर पकड़ नहीं सकता, न यातना दे सकता है। मैं परमेश्वर के घर में रहूँगा, अन्य भाइयों और बहनों से बातचीत करूँगा, और मेरे दिल में शांति, आनंद और स्थिरता रहेगी। मैं हर दिन, परमेश्वर के वचन खाऊँगा-पीऊँगा और सत्य पर संगति करता रहूँगा और मेरा दिल उज्जवल होता चला जाएगा। सत्य समझने के बाद, मेरा दिल विशेष रूप से आनंद से भर गया है, मेरी आत्मा को स्वतंत्रता और मुक्ति मिल गई है और मुझे अब बुरे तथा धोखेबाज लोग धोखा नहीं दे पाते या नुकसान नहीं पहुँचा पाते। इसके अलावा, परमेश्वर की सुरक्षा और आशीष देखने के बाद, अब मैं विपदा आने पर डरता नहीं; मेरे दिल में स्थिरता और शांति बनी रहती है। मैंने इस तरह की चिंताएँ छोड़ दी हैं कि भविष्य में मेरी बुनियादी जरूरतें पूरी होंगी या नहीं और जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा तो कोई मेरा भरण-पोषण करेगा या नहीं। परमेश्वर की उपस्थिति में जीना वास्तव में एक आशीष और आनंद है!) तुम लोग अभी सीमित बातें महसूस कर पा रहे हो, लेकिन बड़ी आपदा आने के बाद, तुम लोग बहुत-सी बातों को स्पष्ट रूप से समझ और देख सकोगे। यह सब परमेश्वर की सुरक्षा और उसका आशीष है। वर्तमान में, तुम लोगों को भले ही काट-छाँट का कभी-कभी अनुभव होता है और तुम्हें परीक्षण और शोधन से गुजरना पड़ता है और कभी-कभी परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव होता है और उसके वचनों से पीड़ा होती है, लेकिन यह पीड़ा उद्धार पाने और पूर्ण बनाए जाने के लिए है—यह अविश्वासियों को होने वाली पीड़ा जैसी नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्यों का पालन करके, तुम एक उपयोगी सृजित प्राणी बन जाते हो और मूल्यवान व सार्थक जीवन जीते हो—दैहिक सुखों के लिए और शैतान के लिए जीने के बजाय, तुम सत्य का अनुसरण करने और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए जीते हो। अपने कर्तव्यों को निभाने के दौरान, तुम्हें कई सत्यों और परमेश्वर के इरादों की समझ हासिल हो जाती है। यह सबसे मूल्यवान चीज है। जब तुम सत्य समझ जाते हो, सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर जाते हो और सत्य को जीवन के रूप में प्राप्त कर लेते हो, तो तुम परमेश्वर की उपस्थिति में रह रहे होगे और रोशनी में जी रहे होगे। अब तुम प्रतिदिन अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हो और तुम्हारे जीवन का हर दिन फलदायी और मूल्यवान है। तुमने सत्य को भी पा लिया है और परमेश्वर की उपस्थिति में जीते हो। क्या यह आश्वासन का होना है? (हाँ।) यह आश्वासन क्या है? (शैतान के कब्जे में न आना।) शैतान के कब्जे में न आने के अलावा, इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात क्या है? परमेश्वर ने तुम्हें मनुष्य बनाया और अब तुम अपना कर्तव्य निभा पा रहे हो, उसके इरादों को समझते हो, तुम्हारे पास सत्य वास्तविकता है, उसके मार्ग का अनुसरण करते हो और उसके इरादों के अनुसार जीवन जीते हो। परमेश्वर ने तुम्हें स्वीकार किया है और यह तुम्हारा आश्वासन और गारंटी है कि परमेश्वर तुम्हें नष्ट नहीं करेगा। क्या यह तुम्हारे जीवन की पूँजी नहीं है? इन चीजों के बिना, क्या तुम जीवित रहने की योग्यता रखते हो? (नहीं।) कोई यह योग्यता कैसे अर्जित करता है? क्या यह एक सृजित प्राणी के कर्तव्यों का निर्वहन करने, परमेश्वर के इरादे पूरे करने और उसके मार्ग का अनुसरण करने, साथ ही सत्य वास्तविकता को प्राप्त करने, और परमेश्वर के वचन को अपना जीवन मानने के द्वारा अर्जित नहीं होता है? (हाँ।) इन चीजों के कारण तुम उसकी आराधना करने में समर्थ हो और उसकी नजर में तुम एक उपयुक्त सृजित प्राणी हो। वह तुमसे कैसे प्रसन्न नहीं हो सकता? वे लोग कौन हैं, जिन्हें परमेश्वर नष्ट करना चाहता है? वे किस प्रकार के सृजित प्राणी हैं? (कुकर्मी।) जो कोई भी कुकर्म करता है, वह परमेश्वर का विरोध करता है और उससे शत्रुता रखता है—ऐसे लोग परमेश्वर के शत्रु हैं और वे सबसे पहले नष्ट होंगे। मसीह-विरोधी, जो रुतबे के लिए परमेश्वर से प्रतिस्पर्धा करते हैं, छद्म-विश्वासी; वे लोग, जो सत्य से विमुख हो चुके हैं, जो परमेश्वर से शत्रुता रखते हैं, सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं और अंत तक उसका विरोध करते हैं और जो सृजित प्राणियों के रूप में किसी भी स्तर पर अपना कर्तव्य नहीं निभा सकते—ये सभी वे लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर नष्ट करना चाहता है। कुछ लोग, जो अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते हैं, छद्म-विश्वासी होते हैं। दूसरे लोग भले ही अपने कर्तव्यों का पालन करते भी हैं, तो भी लगातार अनमने बने रहते हैं, वे बुरे कर्म करने और बाधाएँ उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं और परमेश्वर का विरोध और प्रतिरोध करते हैं। क्या ऐसे लोग परमेश्वर की दृष्टि में उपयुक्त सृजित प्राणी हो सकते हैं? (नहीं, वे नहीं हो सकते।) जिन्हें अनुपयुक्त सृजित प्राणी माना जाता है, अंततः उनका नतीजा क्या होगा? (परमेश्वर उन्हें हटा देगा और नष्ट कर देगा।) क्या ऐसे सृजित प्राणियों के जीवन का कोई मूल्य है, जिन्हें अनुपयुक्त समझा जाता है? (नहीं।) हो सकता है कि उन्हें लगे, “मेरा जीवन मूल्यवान है। मैं जीना चाहता हूँ। मैं अपने जीवन में अच्छे काम कर सकता हूँ!” लेकिन, परमेश्वर की नजर में वे सृजित प्राणी के रूप में अपने बुनियादी कर्तव्य भी पूरे नहीं कर सकते। यदि वे ढंग से अपना कर्तव्य पूरा नहीं कर सकते, तो क्या उनका जीवन सार्थक है? क्या उनके अस्तित्व का कोई मूल्य है? यदि उनके अस्तित्व का कोई मूल्य नहीं है, तो क्या परमेश्वर अभी भी उन्हें चाहेगा? (नहीं।) परमेश्वर क्या करेगा? वह उन्हें हटा देगा। हल्के मामलों को अलग कर दिया जाएगा और अशुद्ध दानवों और बुरी आत्माओं को सौंप दिया जाएगा, जबकि गंभीर मामले वालों को दंड मिलेगा और इससे भी अधिक गंभीर मामले वालों को नष्ट कर दिया जाएगा।
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