अन्य विषयों के बारे में वचन (अंश 95)
अपना कर्तव्य निभाते समय कड़ी मेहनत करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि तुम्हें इसमें पूरा मन भी लगाना होगा। अपनी पूरी कोशिश करने का एक ही तरीका है कि तुम पूरे मन से काम करो। अगर तुम्हारा मन इसमें नहीं है, तो तुमने अपना पूरा प्रयास नहीं किया है। अगर तुम केवल पूरी ताकत झोंकते हो लेकिन मन नहीं लगाते, तो तुम अपना मन लगाए बिना केवल कड़ी मेहनत कर रहे हो। अपने कर्तव्य पूरे करने का यह तरीका परमेश्वर को स्वीकार्य नहीं है। अपना कर्तव्य निभाते समय, तुम्हें परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए हमेशा अपने मन, अपनी ताकत और अपने दिमाग से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए। अगर तुम केवल आधी ताकत लगाओगे और आधी बचा लोगे, यह सोचते हुए कि “मैं थकना नहीं चाहता; अगर मैं थक कर बीमार पड़ जाऊँगा तो मेरी देखभाल कौन करेगा?” क्या यह सही प्रवृत्ति है? (नहीं।) क्या इस तरह की मानसिकता के साथ अपने कर्तव्य निभाने पर तुम्हें कोई नुकसान होगा? (हाँ।) किस तरह का नुकसान? (परमेश्वर मुझसे अत्यंत घृणा करेगा और मैं धीरे-धीरे पवित्र आत्मा का कार्य खो दूंगा।) पवित्र आत्मा का कार्य नहीं होना एक नुकसान है। अगर लोग कई वर्षों तक पवित्र आत्मा का कार्य किए बिना परमेश्वर में विश्वास करते हैं, तो उनका नुकसान इतना बड़ा होगा कि उन्हें कुछ नहीं मिलेगा। यह ऐसा होगा मानो वे व्यर्थ ही विश्वास करते रहे हों। ऐसे बहुत से लोग हैं जो सत्य का अनुसरण नहीं करते और वे कुछ वर्षों तक विश्वास करने के बाद निकाल दिए जाते हैं। यानी, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि अपना कर्तव्य निभाते समय तुमने कितनी मेहनत की, अगर तुमने इसे मन से नहीं किया, तो तुम सत्य प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो सकोगे। क्या यह कोई नुकसान है? क्या तुम लोगों को एहसास है कि यह नुकसान है? अगर तुम ऐसे व्यक्ति हो, जो वाकई सत्य को समझता है, तो तुम यह देख सकते हो कि यह नुकसान बहुत बड़ा है। जो लोग पाँच-दस वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखते आए हैं, उनमें से कुछ ने सत्य वास्तविकता को प्राप्त कर लिया है, जबकि दूसरे अभी भी शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश दे रहे हैं। क्या यह कोई बड़ा अंतर है? (हाँ।) जिन्होंने सत्य वास्तविकता को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने इसे कैसे हासिल किया? यह अनुभव और अभ्यास से आता है। क्या इसे परमेश्वर ने दिया है? (हाँ।) जिन्होंने सत्य वास्तविकता को प्राप्त नहीं किया और अभी भी शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश दे रहे हैं, उनके साथ क्या हो रहा है? उन्हें कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास करने पर भी अब तक सत्य प्राप्त नहीं हुआ है, क्योंकि वे सत्य का अनुसरण नहीं करते और अपना कर्तव्य निभाने में केवल अपनी ताकत लगाते हैं, अपना मन नहीं लगाते। परमेश्वर में विश्वास करना और सत्य को प्राप्त न कर पाना आशीष है या अभिशाप? (यह अभिशाप है।) यह अभिशाप क्यों है? क्या तुम इसके आर-पार देख सकते हो? तुम सत्य को प्राप्त नहीं कर पाए हो, यह तथ्य बड़ी समस्या है या छोटी? (एक बड़ी समस्या है।) यह बड़ी समस्या किस चीज से जुड़ी है? क्या इसका उद्धार से कुछ संबंध है? (हाँ।) जब तुम दिनभर शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देते हो तो इसका क्या मतलब है? यह बचाए जाने पर सवाल उठाता है और इसे प्राप्त करना मुश्किल बना देता है। दस वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखने वाले कुछ लोग अभी भी शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश दे रहे हैं। दूसरे कुछ लोग बीस वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखते आए हैं और सत्य वास्तविकता में प्रवेश नहीं कर पाए हैं और अभी तक नहीं जानते हैं कि सत्य वास्तविकता का क्या अर्थ है। क्या ये लोग खतरे में हैं? क्या यह अस्पष्ट है कि उन्हें बचाया जा सकेगा या नहीं? (हाँ।) मुझे बताओ, समान वर्षों से परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों में से किस प्रकार के व्यक्ति का उद्धार होने की संभावना और उम्मीद अधिक है? उसकी जो शब्दों और सिद्धांतों का उपदेश देता है या उसकी जिसके पास सत्य वास्तविकता है? (जिन लोगों के पास सत्य वास्तविकता है।) यह स्पष्ट है। तो फिर तुम लोग किस तरह के व्यक्ति बनना चाहते हो? (जिन लोगों के पास सत्य वास्तविकता है।) कोई ऐसा व्यक्ति कैसे बन सकता है जिसके पास सत्य वास्तविकता है? (वास्तव में परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करके।) (अपने पूरे मन, पूरी ताकत और बुद्धि से परमेश्वर की अपेक्षा के अनुसार कर्तव्य निभाकर और उसे संतुष्ट करने में कोई कसर बाकी न छोड़कर।) यह सही है। अगर तुम वही करते हो, जो परमेश्वर तुमसे करने के लिए कहता है, तो तुम सत्य प्राप्त कर लोगे। यह किस से संबंधित है? यह व्यक्ति के परिणाम और गंतव्य से संबंधित है। कुछ लोग बेवकूफ और दंभी होते हैं, और वे यह भी नहीं जानते कि उन्होंने कितना खोया है, या उन्हें कितना नुकसान झेलना पड़ा है। वे बेलगाम होकर शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश बघारते रहते हैं और फिर भी नहीं जानते कि वे खतरे के कगार पर हैं! जिन्हें बचाया नहीं जा सकता, उनका अंत क्या है? सबसे पहले, वे परमेश्वर द्वारा निकाल दिए जाएँगे और, इससे भी आगे जाकर देखें तो उनका क्या अंत है? (तबाही और विनाश।) यही उनका परिणाम है, यही उनका गंतव्य है। अगर लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं और उनका ऐसा अंत होता है, तो क्या उस पर विश्वास करने का उनका मूल इरादा यही है? (नहीं।) कोई ऐसा अंत नहीं चाहता। अगर तुम ऐसा अंत नहीं चाहते, तो उस मार्ग का अनुसरण मत करो। तुम्हें सत्य के अनुसरण के मार्ग पर चलना चाहिए और केवल तभी तुम उद्धार पा सकोगे।
अगर लोग अंत के दिनों में कार्य पाने में अक्षम हैं, वे नष्ट कर दिए जाएँगे और उन्हें दूसरा अवसर नहीं मिलेगा। यह अनुग्रह के युग में कार्य करने जैसा नहीं है, जहाँ अगर किसी व्यक्ति ने इसे प्राप्त नहीं किया, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनका जन्म किस देश में हुआ, वे अभी भी अंत के दिनों में परमेश्वर का कार्य प्राप्त करने के अवसर के लिए प्रतीक्षा कर सकते थे। अंतिम दिनों में परमेश्वर का कार्य का अंत होना उसकी प्रबंधन योजना का अंत है, और इस अंत का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि वह प्रत्येक व्यक्ति के अंत का निर्धारण करने जा रहा है, और सभी चीजों का तथा मानव जाति का अंत निकट है। परमेश्वर का कार्य इस चरण में पहुँच चुका है, और अगर लोगों के हृदय में यह दृष्टि नहीं है, अगर वे हमेशा असमंजस में रहते हैं और अनमने ढंग से अपना कर्तव्य निभाते हैं, अगर वे सत्य का गंभीरता से अनुसरण करने में विफल रहते हैं और सोचते हैं कि अगर वे विश्वास करते रहेंगे तो वे बचा लिए जाएँगे, तो वे उद्धार का अंतिम मौका चूक जाएँगे। एक दिन जब बड़ी विपदाएँ आएँगी और परमेश्वर का कार्य पूरी तरह से खत्म हो जाएगा तो परमेश्वर लोगों के सिंचन और उन्हें सत्य का पोषण देने का कार्य आगे से नहीं करेगा। क्या तुम जानते हो कि उस समय परमेश्वर किस प्रकार के स्वभाव के साथ मानवजाति का सामना करेगा? उसका रोष बहुत अधिक होगा और उसका धार्मिक स्वभाव पूरी मानवजाति पर अभूतपूर्व तरीके से प्रकट होगा। यह मानवजाति के लिए आखिरी बड़ी तबाही होगी। अब वह समय आ गया है जिसमें परमेश्वर लोगों को बचाने का कार्य कर रहा है। वह धैर्यवान है, सहनशील है और प्रतीक्षा कर रहा है। किस की प्रतीक्षा? वह अपने पहले से निश्चित किए हुए लोगों, अपने चुने हुए लोगों की प्रतीक्षा कर रहा है, वह जिन्हें बचाना चाहता है उनकी यह प्रतीक्षा कर रहा है कि वे उसके सामने आएँ, उसके न्याय और ताड़ना को स्वीकार करें, और उसका उद्धार स्वीकार करें। जब इन लोगों को पूर्ण बना लिया जाएगा तो परमेश्वर का महान कार्य पूरा हो जाएगा और तब परमेश्वर मानवजाति को बचाने का कार्य नहीं करेगा। यह नूह का समय नहीं है, न ही यह सदोम के विनाश या संसार के सृजन का समय है। बल्कि यह दुनिया के खत्म होने का समय है। कुछ लोग अभी भी सपने देख रहे हैं, वे नहीं जानते कि परमेश्वर का उद्धार का कार्य किस चरण में पहुँच चुका है। भले ही उन्होंने परमेश्वर के प्रकटन और कार्य को प्राप्त किया है, फिर भी उन्हें कोई जल्दी नहीं है, वे असमंजस में पड़े रहते हैं और इसे गंभीरता से नहीं लेते। जब कार्य का यह चरण पूरा हो जाएगा तो किसी व्यक्ति का परिणाम तय होगा और यह नहीं बदलेगा। मनुष्य मूर्ख है और अभी भी सोचता है, “कोई बात नहीं, परमेश्वर हमें अगला अवसर देगा!” अवसर परमेश्वर के कार्य के दौरान दिए जाते हैं। जब यह युग पूरा हो जाएगा तो दूसरा अवसर कैसे मिलेगा? क्या यह सिर्फ सपना नहीं है?
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