अन्य विषयों के बारे में वचन (अंश 92)
तुम लोग इस अंतिम युग में जी रहे हो। तुम्हारे ज्यादातर पारिवारिक जीवन पहले से कहीं अधिक समृद्ध है और तुम लोगों के जीवन के हर पहलू में भौतिक प्रचुरता है। तुम लोग कैसा महसूस कर रहे हो? देह में खुशी की हल्की सी अनुभूति होती है, लेकिन इसमें और दिल की खुशी के बीच क्या अंतर है? तुम सभी के पास कुछ अनुभव हैं और तुम लोगों ने कुछ चीजें देखी हैं, परमेश्वर में आस्था की तुम्हारी खोज पहले की तुलना में अधिक व्यावहारिक है, तुम लोग महसूस कर सकते हो कि दैहिक सुख की खोज खोखली है और तुम सभी सत्य की ओर प्रयास करना चाहते हो—क्या तुम सभी को ऐसा अनुभव हुआ है? क्या विभिन्न प्रकार की भौतिक चीजों में लोगों का दैहिक सुख उन्हें आध्यात्मिक सुकून दे सकता है? जीवन में श्रेष्ठता की भावना और प्रचुरता से भरा भौतिक जीवन लोगों में क्या बदलाव ला सकता है? वे लोगों को केवल पथभ्रष्ट कर सकते हैं और उनकी दिशा से भटका सकते हैं। इस प्रकार से लोग आसानी से अपना विवेक खो देंगे, अच्छे-बुरे में फर्क नहीं कर पाएँगे और विवेकहीन हो जाएँगे, और वे धीरे-धीरे अपनी मानवता खो देंगे; वे अधिक से अधिक आराम चाहेंगे, और ब्रह्मांड में अपने स्थान के बारे में और भी अनजान हो जाएँगे। कुछ ऐसे लोग भी होंगे जो अपना ख्याल रखने की क्षमता खो देंगे। वे बिल्कुल भी स्वतंत्र रूप से नहीं जी पाएँगे, अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ होंगे और अपने माता-पिता पर निर्भर हो जाएँगे। वे और भी अधिक अतृप्त और बेशर्म होते जाएँगे। संक्षेप में, उच्च जीवनशैली की स्थितियाँ और समृद्ध भौतिक जीवन लोगों में केवल पथभ्रष्टता लाता है, उन्हें आलसी बनाता है और काम से घृणा करवाता है, उन्हें अत्यधिक लालची बनाता है और वे निहायत बेशर्म बन जाते हैं। इनसे लोगों को कोई फायदा नहीं होता। देह की बात करें तो, तुम उसके प्रति जितने अच्छे होगे, यह उतना ही अधिक लालची होगा। थोड़ा कष्ट उठाना उपयुक्त है। जो लोग थोड़ा कष्ट सहते हैं वे सही रास्ते पर चलते हैं और सही काम पर ध्यान देते हैं। यदि देह कष्ट नहीं सहता, आराम की इच्छा रखता है और आराम के माहौल में बढ़ता है, तो लोगों को कुछ भी हासिल नहीं होगा और संभवतः सत्य भी नहीं मिलेगा। यदि लोगों को प्राकृतिक आपदाओं और मानव निर्मित आपदाओं का सामना करना पड़ता है, तो वे तर्कहीन और अविवेकपूर्ण हो जाएँगे। जैसे-जैसे समय बीतेगा, वे और अधिक पथभ्रष्ट होते जाएँगे। क्या इसके कई उदाहरण हैं? तुम देख सकते हो कि अविश्वासियों के बीच कई गायक और फिल्मी सितारे हैं जो मशहूर होने से पहले कष्ट सहने को तैयार थे और उन्होंने खुद को अपने काम के प्रति समर्पित कर दिया था। लेकिन प्रसिद्धि हासिल कर लेने और काफी पैसा कमाना शुरू करने के बाद वे सही रास्ते पर नहीं चलते हैं। उनमें से कुछ नशीली दवाएँ लेते हैं, कुछ आत्महत्या कर लेते हैं और उनका जीवन कम हो जाता है। इसकी वजह क्या है? उनके भौतिक सुख बहुत ऊँचे हैं, वे बहुत आरामदायक हैं और नहीं जानते कि बड़ी खुशी या बड़ा उत्साह कैसे प्राप्त किया जाए। उनमें से कुछ लोग अत्यधिक उत्तेजना और आनंद की तलाश में नशीली दवाओं की ओर चल पड़ते हैं और जैसे-जैसे समय बीतता है वे इसे छोड़ नहीं पाते। कुछ लोग नशीली दवाओं के अत्यधिक सेवन से मर जाते हैं और कुछ लोग इससे छुटकारा पाने के तरीके की जानकारी न होने के कारण अंत में आत्महत्या कर लेते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं। तुम कितना अच्छा खाते हो, कितने अच्छे कपड़े पहनते हो, कितने अच्छे से रहते हो, कितना आनंद लेते हो या तुम्हारा जीवन कितना आरामदायक है और चाहे तुम्हारी इच्छाएँ किसी भी तरह पूरी होती हों, अंत में सिर्फ खालीपन ही मिलता है और उसका परिणाम विनाश है। क्या अविश्वासी जिस खुशी की तलाश में हैं वह वास्तविक खुशी है? दरअसल वह खुशी नहीं है। यह एक मानवीय कल्पना है, यह एक प्रकार की पथभ्रष्टता है, यह लोगों को पथभ्रष्ट करने का एक तरीका है। लोग जिस तथाकथित खुशी को पाने की कोशिश करते हैं वह झूठी है। यह वास्तव में पीड़ा है। लोगों को ऐसे लक्ष्य को पाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए और जीवन का मूल्य इसी में निहित भी नहीं है। शैतान जिन माध्यमों और तरीकों से लोगों को भ्रष्ट करता है वे उन्हें एक लक्ष्य के रूप में देह की संतुष्टि और वासना में लिप्त होने के लिए प्रेरित करते हैं। इस तरह, शैतान लोगों को सुन्न कर देता है, उन्हें लुभाता और भ्रष्ट कर देता है और उन्हें उस लक्ष्य की ओर ले जाता है जिसे वे खुशी मानते हैं। लोगों का मानना है कि उन चीजों को पाने का मतलब खुशी पाना है, इसलिए लोग उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सब कुछ करते हैं। फिर, जब वे इसे पा लेते हैं, तो उन्हें खुशी नहीं बल्कि खालीपन और दर्द महसूस होता है। इससे सिद्ध होता है कि यह सही मार्ग नहीं है; यह मृत्यु का रास्ता है। परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग अविश्वासियों की तरह इस मार्ग पर क्यों नहीं चलते? परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को क्या खुशी मिलती है? यह खुशी और अविश्वासी लोग जिस खुशी को पाने की कोशिश करते हैं उसमें क्या अंतर है? परमेश्वर में विश्वास करने के बाद अधिकांश लोग अकूत दौलत पाने की कोशिश नहीं करते। वे सांसारिक समृद्धि, करियर की सफलता या प्रसिद्धि की तलाश नहीं करते हैं। बल्कि वे चुपचाप अपने कर्तव्य निभाने में व्यस्त रहते हैं, सादगी से रहते हैं और अपने जीवन की गुणवत्ता के लिए बहुत अधिक अपेक्षा नहीं करते हैं। कुछ लोग खाने के लिए भोजन और पहनने के लिए कपड़ों से ही संतुष्ट रहते हैं। ऐसी अंधेरी और बुरी दुनिया में, वे फिर भी ऐसा रास्ता क्यों चुन पा रहे हैं? क्या तुम कह सकते हो कि परमेश्वर में विश्वास करने वाले सभी भाई-बहनों में बड़ी कमाई करने की क्षमता नहीं है? बिल्कुल नहीं। क्योंकि परमेश्वर में विश्वास करने के बाद, ये लोग कमोवेश पहले से ही अपने दिल की गहराइयों में महसूस करते हैं कि परमेश्वर का अनुसरण करना ही सबसे बड़ी खुशी है और इस खुशी को दुनिया की किसी भी भौतिक चीज से बदला नहीं जा सकता है। कुछ लोगों ने कोशिश भी की है; उन्होंने कई वर्षों तक संसार में कष्ट सहे हैं और उन्हें यह थका देने वाला और कठिन लगता है। हालाँकि उन्होंने थोड़ा पैसा कमाया और दैहिक सुखों का अनुभव भी लिया, लेकिन वे सम्मान के बिना रहते थे और उनका जीवन अधिक से अधिक खाली और कड़वा हो गया। उन्हें लगा कि इस तरह जीने से तो मौत ही बेहतर है। ये लोग ये चीजें पहले ही अच्छी तरह देख चुके हैं। वे केवल इसलिए परमेश्वर में विश्वास नहीं करते क्योंकि उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है, बल्कि वे वास्तव में महसूस करते हैं कि : परमेश्वर का अनुसरण करना और सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलना, साथ ही अपना पूरा जीवन परमेश्वर को समर्पित करना और उसकी खातिर खुद को खपाना, उनके दिल के लिए सबसे बड़ा सुकून है और उनके पूरे जीवन में सबसे महान चीजें हैं; परमेश्वर की प्राप्ति और सत्य की प्राप्ति सबसे बड़ी खुशी है और यही चीज लोगों के दिलों को सबसे अधिक शांत, हर्षित और स्थिर बनाती है। वे पहले ही इस खुशी को अनुभव कर चुके हैं; यह काल्पनिक नहीं है। यह कहा जा सकता है कि परमेश्वर के चुने हुए कुछ लोगों ने पहले से ही कुछ विपत्तियों और परीक्षणों का अनुभव किया है, सत्य को समझा है और कई चीजें अच्छी तरह देखी हैं। उन्होंने पुष्टि की है कि परमेश्वर में विश्वास करना और सत्य का अनुसरण करना ही सही मार्ग है, दुनिया में कोई अन्य मार्ग स्वीकार्य नहीं है और केवल परमेश्वर के वचन ही सत्य हैं—और वे इस मार्ग पर चल पड़े हैं। ऐसे व्यक्ति में सच्ची आस्था होती है और उनकी वर्षों की पीड़ा व्यर्थ नहीं जाती। भले ही वे जिन अनुभवजन्य गवाहियों की बात करते हैं वे गहरे हों या सतही, एक बात स्पष्ट है : यदि तुम उन्हें परमेश्वर में विश्वास करने से रोकने और उन्हें संसार में वापस लाने की कोशिश करते हो, तो वे कभी भी उस रास्ते पर नहीं जाएँगे। भले ही संसार में सोने का एक लुभावना पहाड़ होता, जो उस समय उन्हें लुभा सकता, फिर भी वे सोचते : “सोने-चाँदी का पहाड़ पाने से मुझे उतनी खुशी नहीं मिलेगी जितनी खुद को परमेश्वर के लिए खपाने और अपना कर्तव्य निभाने से मिलेगी। यदि मुझे सोने-चाँदी का खजाना मिल जाए तो मैं उस क्षण भले ही बहुत प्रसन्न हो जाऊँगा, लेकिन मेरे दिल में पीड़ा और वेदना होगी, इसलिए चाहे कुछ भी हो, मैं वह मार्ग नहीं अपना सकता। परमेश्वर को खोजना आसान नहीं था; अगर मैं दोबारा वापस जाऊँ, तो परमेश्वर को खोजने कहाँ जाऊँगा? परमेश्वर का अनुसरण करने का अवसर बहुत मुश्किल से मिलता है! ज्यादा समय नहीं है और समय तो क्षणिक है—वास्तव में यह एक दुर्लभ मौका है!” उन्होंने परमेश्वर के प्रकटन और कार्य को देखा है और परमेश्वर पर पकड़ बनाना डूबते को तिनके का सहारा के समान है। मुझे बताओ, डूबते हुए व्यक्ति को जब जीवनरक्षक तिनके का सहारा मिलता है तो उसे क्या महसूस होता है? (उसे लगता है कि जीवित रहने की उम्मीद दिखी है, इसलिए वह इसे कसकर पकड़े रहता है और कभी छूटने नहीं देता।) वह ऐसा ही महसूस करता है। जब वह उस जीवनरक्षक तिनके को पकड़ लेता है तो क्या सोचता है? “मुझे अब मरना नहीं है, आखिरकार जीने की उम्मीद दिखी है! मृत्यु निकट आने पर, अगर जीने की जरा सी भी आशा है, तो मैं हार नहीं मान सकता, भले ही मुझे अपनी सारी शक्ति लगानी पड़े। चाहे यह कितना भी कठिन या दर्दनाक क्यों न हो, मैं इसे जाने नहीं दे सकता। भले ही मैं अपनी आखिरी साँस ले रहा हूँ, मुझे उस जीवनरक्षक तिनके को थामे रहना होगा।” जब कोई महसूस करता है कि उसे जीवित रहने की आशा है, तो क्या उसे खुशी नहीं होती? अब, जब तुम लोग शांति से सोचते हो, मनन करते हो, प्रार्थना करते हो या आध्यात्मिक भक्ति में मग्न हो जाते हो और तुम लोगों को एहसास होता है कि परमेश्वर का अनुसरण करने से तुम्हें कितना लाभ हुआ है, तो क्या तुम्हारे मन में खुशी की भावना पैदा नहीं होती है? अपनी सच्ची भावनाएँ बताओ। (यदि हमने मसीह का अनुसरण नहीं किया होता, तो हम पहले से ही आपदाओं में गिरे होते और परिणाम अकल्पनीय होते। अब परमेश्वर के वचन खाने-पीने और अपना कर्तव्य निभाने से हमने कई सत्यों को समझ लिया है। हमने सच्ची आस्था प्राप्त कर ली है और हम अपने दिलों में परमेश्वर का भय भी मान सकते हैं; हमने परमेश्वर के प्रति समर्पण करना सीखा है। हमने बहुत कुछ पाया है और हम परमेश्वर के मार्गदर्शन के लिए बहुत आभारी हैं।) सही बात है। तुम लोगों ने परमेश्वर का अनुसरण करके और अपना कर्तव्य निभाकर बहुत कुछ पाया है। यही मनुष्य के लिए परमेश्वर की सौगात है। तुम लोगों को उचित रूप से परमेश्वर का आभारी होना चाहिए और उसकी स्तुति करनी चाहिए।
जब परमेश्वर में सच्ची आस्था रखने वाले लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है, तो वे सत्य की खोज कर सकते हैं, और थोड़ा अनुभव करने के बाद वे कुछ सत्य पा सकते हैं। इन सत्यों से मिलने वाली खुशी भौतिक चीजों और सुख-सुविधाओं की जगह लेने के लिए पर्याप्त है। जहाँ तक उन चीजों का सवाल है, जितना अधिक तुम उन चीजों को प्राप्त करते हो, तुम उतने ही कम संतुष्ट होते हो और अच्छे-बुरे को पहचानने में उतने ही कम सक्षम होते हो। लेकिन जितनी अच्छी तरह से लोग सत्य को समझेंगे और जितना अधिक वे इसे प्राप्त करेंगे, उतना ही अधिक वे परमेश्वर को धन्यवाद देना और उसका आभारी होना सीखेंगे, उतनी ही अधिक उनके दिलों में परमेश्वर से प्रेम करने की प्यास होगी और उतना ही अधिक वे परमेश्वर के प्रति समर्पण करेंगे और उसका भय मानेंगे। यही सच्ची खुशी है। भौतिक सुखों को पाने की कोशिश करने से लोगों को क्या हासिल होता है? खालीपन और पथभ्रष्टता; इससे केवल भौतिक चीजों को पाने की उनकी कोशिश और इच्छा ही बढ़ सकती है। रुतबे, प्रसिद्धि और लाभ का प्रलोभन छोड़ना लोगों के लिए मुश्किल होता है। तो, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग इन भौतिक सुखों को कैसे छोड़ सकते हैं? क्या यह उपलब्धि दैनिक प्रार्थना और आत्म-संयम से प्राप्त होती है? (नहीं, यह उपलब्धि इन चीजों की असलियत जानने से प्राप्त होती है।) कोई व्यक्ति इनकी असलियत कैसे जान सकता है? (एक ओर परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से तो दूसरी ओर व्यक्ति के अपने अनुभवों और एहसासों और धीरे-धीरे कुछ सत्यों को समझ पाने से इन चीजों की असलियत जानी जा सकती है।) तुम सत्य को समझते हो, इसलिए इन चीजों को छोड़ सकते हो और यह दर्शाता है कि तुमने सत्य को स्वीकार लिया है। मन की गहराई में तुमने परमेश्वर के वचनों को स्वीकार लिया है—उसने मनुष्य से जो कहा है और वह मनुष्य से जो अपेक्षा करता है वह स्वीकार लिया है—और यह तुम्हारी वास्तविकता बन गई है। क्या यह वास्तविकता तुम्हारा जीवन है? यह पहले ही तुम्हारा जीवन बन चुकी है। अपना कर्तव्य निभाते हुए तुमने अनजाने में ही सत्य को अपने जीवन के रूप में प्राप्त कर लिया है। यह संभव है कि तुम्हें अभी तक इसका कोई एहसास नहीं है, तुम्हें लगता है कि तुम्हारा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है और ऐसी कई चीजें हैं जिन्हें तुम नहीं समझते हो—लेकिन तुम्हारे पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है और यह दर्शाता है कि परमेश्वर का जीवन तुम में पहले ही समाया हुआ है। जीवन में विकास स्वाभाविक है; इसके लिए तुम्हें खास तरीके से महसूस करने की जरूरत नहीं है। भले ही तुम इसे स्पष्ट शब्दों में नहीं बता सकते, लेकिन तुम वास्तव में प्रगति कर चुके हो और बदल चुके हो। इसलिए परमेश्वर के जीवन सत्य को स्वीकार करने के साथ ही साथ तुम्हारा दिल अनजाने में ही परमेश्वर के करीब आ गया है और इसी दौरान निरंतर परमेश्वर तुम्हारी पड़ताल कर रहा है और तुम्हारे दिल को परख रहा है। अब ध्यान से सोचो—क्या यह प्रक्रिया सुखद नहीं है? यह बहुत खुशी की बात है! तुम लोग बहुत भाग्यशाली हो कि तुम अंत के दिनों में जी रहे हो, तुम्हें अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकारने, परमेश्वर का अनुसरण करने और अपना कर्तव्य निभाने का सौभाग्य मिला है। परमेश्वर के वचन सीधे तुम लोगों के भीतर समाहित होते हैं जो तुम्हें सत्य को जीवन के रूप में प्राप्त करने देते हैं। परमेश्वर के वचनों के जीवन की वास्तविकता और सत्य के जीवन की वास्तविकता के कारण क्या मनुष्य का अस्तित्व वास्तव में बहुमूल्य नहीं है? क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि अनजाने में ही यह इतना उत्कृष्ट बन गया? क्या जीवित रहना धीरे-धीरे और अधिक गरिमामय नहीं हो गया है? सिर्फ इसी समय लोगों को लगता है कि परमेश्वर में विश्वास करके उन्होंने बहुत कुछ पाया है। कुछ सत्यों को समझने से लोगों में ऐसा बदलाव आ सकता है; पहले उन्हें यह समझ नहीं आता था, लेकिन अब उन्हें सब कुछ स्पष्ट दिखाई देता है। ऐसा लगता है, परमेश्वर के वचनों का सत्य पहले से ही उनमें उनका जीवन बन चुका है। सत्य दिल में जड़ें जमाता है और फल देने के लिए खिलता है—यही जीवन है; यह सत्य को समझने का फल है और इसे किसी भी चीज से बदला नहीं जा सकता। जब तुम लोग बाद में कुछ अनुशासन, ताड़ना और न्याय का अनुभव करते हो और उन्हें स्वीकार करने और उनके प्रति समर्पित होने में सक्षम होते हो, तो तुम लोग अनजाने में ही कई सत्यों को समझने के बाद परमेश्वर को जान पाते हो और फिर तुम लोगों का जीवन उत्तरोत्तर प्रगति करेगा। क्या यह धीरे-धीरे प्रगति करना नहीं है? क्या तुम लोग भी उस दिन का इंतजार कर रहे हो? (बिल्कुल।) तब तुम लोगों को सत्य के लिए प्रयास करना चाहिए।
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