अन्य विषयों के बारे में वचन (अंश 89)

मनुष्य के उद्धार के दौरान परमेश्वर लोगों को, चाहे वे कितने भी विद्रोही हों, या उनके स्वभाव कितने भी भ्रष्ट हों, क्या आधार रेखा देता है? अर्थात्, परमेश्वर किन परिस्थितियों में लोगों को त्याग और निकाल देता है? परमेश्वर तक पहुँचने का वह निम्नतम मानक क्या है कि वह तुम्हें अपनाए रखे और निकाल न दे? यह बात परमेश्वर के सभी चुने हुए लोगों को स्पष्ट पता होनी चाहिए। सबसे पहले, परमेश्वर को नकारना नहीं है—यह सबसे बुनियादी शर्त है। परमेश्वर को नहीं नकारने का जो अर्थ है उसमें व्यावहारिक तत्व निहित है। यह केवल यह स्वीकार कर लेना नहीं है कि आकाश में एक बूढ़ा आदमी है, या कि परमेश्वर देहधारी हो गया है, या कि परमेश्वर का नाम सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। यह पर्याप्त नहीं है, यह परमेश्वर में विश्वास के मानक को पूरा नहीं करता है। कम से कम इतना तो तुम्हें जानना ही चाहिए कि देहधारी परमेश्वर व्यावहारिक परमेश्वर है; तुम्हें संदेह या आकलन नहीं करना चाहिए; भले ही तुम्हारी अपनी धारणाएँ हों, तुम्हें समर्पण करने में सक्षम होना चाहिए—यह परमेश्वर में विश्वास का मानक है। तुम्हारे इस मानक तक पहुँचने पर ही परमेश्वर तुम्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में स्वीकार करेगा जो उस पर विश्वास करता हो। परमेश्वर के पास लोगों के लिए कम से कम तीन आधार रेखाएँ हैं। सबसे पहले, लोगों को उसे स्वीकार करना चाहिए, उस पर विश्वास करना चाहिए, और उसका अनुसरण करना चाहिए। उन्हें परमेश्वर का सच्चा विश्वासी होना चाहिए, उन्हें अपनी पूरी क्षमता के साथ अपने कर्तव्य निभाने चाहिए, और उन्हें न तो बुरे कर्म करने चाहिए और न ही अशांति पैदा करनी चाहिए। यह पहली आधार रेखा है। दूसरी बात, परमेश्वर का अनुसरण करते समय, उन्हें कम से कम अपने कर्तव्यों का त्याग नहीं करना चाहिए। उन्हें अपने कर्तव्य निभाते समय आज्ञापालन और समर्पण करना चाहिए, इनसे औसत परिणाम प्राप्त करने चाहिए और, कम से कम, एक स्वीकार्य मानक तक परिश्रम करना चाहिए। यह दूसरी आधार रेखा है। तीसरी बात, उनकी मानवता मानक स्तर की होनी चाहिए। वे अच्छे, या, कम से कम, जमीर और विवेक वाले लोगों के रूप में जाने जाने चाहिए। उन्हें मूल रूप से परमेश्वर के चुने हुए अधिकांश लोगों के साथ घुलने-मिलने में सक्षम होना चाहिए, उन्हें सड़े हुए सेब जैसा नहीं होना चाहिए। इस तरह के लोग, कम से कम, खराब या बुरे नहीं होते। यह तीसरी आधार रेखा है। यदि कोई सत्य स्वीकार नहीं कर सकता, और अपना कर्तव्य, चाहे कुछ भी हो, निभाने से इंकार कर देता है, तो वह परमेश्वर का सच्चा विश्वासी नहीं है—कम से कम, उसकी मानवता मानक के अनुरूप नहीं है। इसका मतलब है कि वह आधार रेखा से नीचे चला गया है और उसे हटा दिया जाना चाहिए। बुरी मानवता वाले सभी लोगों को, जो थोड़ा-सा भी सत्य स्वीकार नहीं कर सकते, जो अशांति और व्यवधान पैदा करते हैं, और कलीसिया में कोई सकारात्मक भूमिका नहीं निभाते हैं, बुरे लोगों की श्रेणी में रखा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति जो अधिकांश लोगों के साथ घुल-मिल नहीं सकता, वह सड़े हुए सेब जैसा है, एक बुरा व्यक्ति है, और इससे भी बढ़कर, एक ऐसा व्यक्ति है जो आधार रेखा से नीचे चला गया है और उसे हटा दिया जाना चाहिए। हो सकता है ये बुरे और मसीह-विरोधी लोग कर्तव्यों का पालन करते हों, लेकिन ये केवल विघ्न, अशांति, विनाश ही पैदा करते हैं और बुरे कर्म करते हैं—क्या परमेश्वर को ऐसे ही लोग चाहिए? क्या वे अपना कर्तव्य निभा रहे हैं? (नहीं।) परमेश्वर की नजर में, उनके कार्य आधार रेखा तोड़ चुके हैं। वे अपने कर्तव्य निभाने में असमर्थ हैं, और वे जो नुकसान पहुँचाते हैं वह उनके द्वारा निभाए गए कर्तव्यों से कहीं ज्यादा है, इसलिए उन्हें कलीसिया से दूर कर दिया जाना चाहिए। क्या यही वह सिद्धांत नहीं है जिसके अनुसार परमेश्वर के घर में लोगों के साथ व्यवहार किया जाता है? क्या कभी किसी को इसलिए निकाला गया क्योंकि वह क्षण भर के लिये बुरी स्थिति में था, और निराश और कमजोर महसूस कर रहा था? क्या कभी किसी को अपना कर्तव्य निभाने से इसलिए रोका गया क्योंकि वह कभी-कभार थोड़ा लापरवाह हो जाता था और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से नहीं निभा रहा था? क्या कभी किसी को इसलिए निकाला गया क्योंकि उसने अपना कर्तव्य निभाने में खराब नतीजे हासिल किए, या इसलिए क्योंकि उसने कुछ बुरे विचार या सोच प्रकट की? क्या कभी किसी को इसलिए निकाला गया क्योंकि उसका आध्यात्मिक कद छोटा था, और उसके अंदर परमेश्वर को लेकर धारणाएँ और संदेह पैदा हो गए थे? (नहीं।) तो फिर, लोगों को बाहर निकालने का परमेश्वर के घर का सिद्धांत क्या है? किन लोगों को हटाया जाता है और अपने कर्तव्यों का पालन करने से रोक दिया जाता है? (उन्हें जिनकी मजदूरी फायदे से ज्यादा नुकसान करती है, और जो लगातार विघ्न और अशांति उत्पन्न करते हैं।) इस प्रकार के व्यक्ति कर्तव्य पालन करने योग्य नहीं हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि कोई उनके प्रति पूर्वाग्रही है या व्यक्तिगत द्वेष के कारण उन पर प्रतिबंध लगा रहा है और उन्हें हटा रहा है; इसका मतलब है कि उन्हें अपने कर्तव्य का कोई परिणाम नहीं मिलता, और वे विघ्न और अशांति पैदा करते हैं। उन्हें इसलिए हटाया जाता है कि वे वास्तव में कर्तव्य निभाने के योग्य नहीं हैं। यह पूर्णतः सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है। वे सभी सिद्धांत जिनसे परमेश्वर का घर लोगों को संभालता है और उनके साथ व्यवहार करता है, निष्पक्ष हैं। परमेश्वर का घर लोगों के मीन-मेख निकालने, तिल का ताड़ बनाने या बिना बात बखेड़ा खड़ा करने की कोशिश नहीं करता है। तुम्हें विश्वास करना चाहिए कि परमेश्वर के घर में सत्य का शासन चलता है। बेशक, जिन लोगों को हटा दिया गया है, यदि वे सत्य को स्वीकार कर सकें और ईमानदारी से परमेश्वर के सामने पश्चात्ताप कर सकें तो अब भी उनके लिए उद्धार की उम्मीद है। लेकिन वे छद्म-विश्वासी और बुरे लोग जो थोड़ा-सा भी सत्य स्वीकार नहीं कर सकते, जिनमें जमीर और विवेक नहीं है, वे खुलासा होने के बाद हमेशा के लिए निकाल दिए जाएँगे। यही परमेश्वर की धार्मिकता है।

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