अन्य विषयों के बारे में वचन (अंश 86)
कलीसिया के भजन में एक पंक्ति आती है, “सभी सत्य-प्रेमी लोग भाई-बहन हैं।” यह कथन सही है। जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं बस वे ही परमेश्वर के घर के हैं; वे ही सच्चे भाई-बहन हैं। क्या तुम सोचते हो कि अक्सर सभाओं में हिस्सा लेने वाले सभी लोग भाई-बहन होते हैं? जरूरी नहीं कि ऐसा हो। कौन-से लोग भाई-बहन नहीं होते? (वे जो सत्य से विमुख रहते हैं, जो सत्य स्वीकार नहीं करते।) जो लोग सत्य को नहीं स्वीकारते और उससे विमुख रहते हैं, वे सभी बुरे लोग हैं। उन सबमें जमीर या विवेक नहीं होता। उनमें से कोई ऐसा नहीं है, जिसे परमेश्वर बचाता है। वे लोग इंसानियत से रहित हैं, वे अपने उचित कार्य नहीं करते और आपे से बाहर रहकर बुरे कार्य करते हैं। वे शैतानी फलसफों से जीते हैं, कुटिल तिकड़में लगाते हैं और लोगों का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें फुसलाते हैं और उन्हें धोखा देते हैं। वे जरा-सा भी सत्य नहीं स्वीकारते और केवल आशीष प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के घर में घुस आए हैं। हम उन्हें छद्म-विश्वासी क्यों कहते हैं? क्योंकि वे सत्य से विमुख हैं और इसे स्वीकारते नहीं। जैसे ही सत्य के बारे में संगति की जाती है, उनकी रुचि खत्म हो जाती है, वे इससे विमुख हो जाते हैं, वे इसे सुनना बर्दाश्त नहीं कर सकते, उन्हें यह उबाऊ लगता है और वे बैठे नहीं रह पाते। ये स्पष्ट रूप से छद्म-विश्वासी और अविश्वासी हैं। तुम्हें इन्हें भाई-बहन नहीं समझना चाहिए। संभव है कि वे कुछ लाभ देने के लिए तुम्हारे करीब आना चाहते हों, छोटे-मोटे फायदे देकर तुमसे संबंध जोड़ने की कोशिश कर रहे हों। लेकिन, जब तुम उनके साथ सत्य पर संगति करते हो तो वे तुच्छ बातों की ओर ध्यान भटकाते हुए देह के मामलों, काम-काज, सांसारिक मामलों, अविश्वासियों की प्रवृत्तियों, भावनाओं, पारिवारिक मामलों जैसी बाहरी चीजों पर चर्चा करने लगते हैं। वे ऐसा कुछ नहीं कहते जो सत्य, परमेश्वर में विश्वास करने या सत्य का अभ्यास करने से संबंधित हो। ऐसे लोग बिल्कुल भी सत्य नहीं स्वीकारते। वे कभी भी परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ते या सत्य पर संगति नहीं करते और वे कभी प्रार्थना या आध्यात्मिक भक्ति भी नहीं करते। क्या ये लोग भाई-बहन हैं? नहीं हैं। ये लोग सत्य का अभ्यास नहीं करते, और सत्य से विमुख हो चुके हैं। बाद में परमेश्वर के घर में घुसपैठ बनाकर जब वे देखते हैं कि सभाओं में हमेशा परमेश्वर के वचन पढ़ने और सत्य पर संगति करने, स्वयं को जानने के बारे में बातें, कर्तव्य निभाते समय आने वाली समस्याओं पर संगति जैसे कार्य होते हैं, तो उनका दिल विमुख हो जाता है। उनके पास न कोई समझ होती है, न अनुभव, न कहने को कुछ होता है, इसलिए वे कलीसियाई जीवन से ऊब जाते हैं। उनके मन में लगातार यही प्रश्न उठते हैं, “हमेशा परमेश्वर के वचनों पर संगति क्यों करें? हमेशा स्वयं को जानने के बारे में बात क्यों करें? कलीसियाई जीवन में कोई मनोरंजन या आनंद क्यों नहीं है? इस तरह का कलीसियाई जीवन कब खत्म होगा? हम कब राज्य में प्रवेश करेंगे और आशीष पाएंगे?” उन्हें सत्य पर संगति उबाऊ लगती है और वे इसे सुनना नहीं चाहते। क्या तुम लोगों को लगता है कि जब इन लोगों के साथ कुछ चीजें घटती हैं, तो वे सत्य खोजते हैं? क्या वे सत्य का अभ्यास कर सकते हैं? (नहीं कर सकते।) अगर उन्हें सत्य में दिलचस्पी नहीं है, वे सत्य का अभ्यास कैसे कर सकते हैं? तो वे किसके सहारे जीते हैं? कोई शक नहीं कि वे शैतान के फलसफों के अनुसार जीते हैं, वे हमेशा धूर्त और कपटी होते हैं, उनके जीवन में सामान्य मानवता नहीं होती। वे कभी परमेश्वर से प्रार्थना या सत्य की खोज नहीं करते, बल्कि वे इंसानी जुगाड़ों, चालाकियों और सांसारिक आचरण के फलसफों का इस्तेमाल कर हर चीज संभालते हैं—इससे उनका जीवन थकाऊ और पीड़ादायी बन जाता है। वे भाई-बहनों से उसी तरह बातचीत करते हैं जिस तरह अविश्वासियों से करते हैं, वे शैतानी फलसफों का अनुसरण कर झूठ बोलते हैं और धोखा देते हैं। उन्हें बहस छेड़कर बाल की खाल निकालना पसंद है। वे चाहे किसी भी समूह में रह रहे हों, हमेशा यही ताड़ते रहते हैं कि कौन किसके साथ जुड़ा हुआ है और कौन किसके खेमे में है। वे बोलते हुए दूसरे लोगों की प्रतिक्रिया गौर से भाँपते हैं, हमेशा चौकस रहते हैं ताकि किसी को भी नाराज न कर बैठें। वे अपने आसपास की सभी चीजों और दूसरों के साथ अपने संबंधों से निपटने के लिए हमेशा सांसारिक आचरण के इन्हीं फलसफों का पालन करते हैं। यही उनके जीवन को इतना थकाऊ बना देता है। भले ही वे दूसरे लोगों के बीच सक्रिय दिखते हों, हकीकत में अपने संघर्ष को केवल वे ही जानते हैं, और अगर तुम उनका जीवन करीब से देख सको तो महसूस कर लोगे कि यह कितना थकाऊ है। प्रसिद्धि, लाभ या मान-सम्मान से जुड़े किसी मामले में, वे इस बात को स्पष्ट करने पर जोर देते हैं कि कौन सही है कौन गलत है, कौन श्रेष्ठ है कौन निम्न है, और वे कोई बात साबित करने के लिए बहस जरूर करते हैं। दूसरे लोग इसे सुनना नहीं चाहते। लोग कहते हैं, “तुम जो कह रहे हो क्या उसे आसान बना सकते हो? क्या तुम स्पष्ट बोल सकते हो? तुम्हें इतना तुच्छ बनने की क्या जरूरत है?” उनके विचार इतने ज्यादा पेचीदे और कुटिल हैं, और वे बुनियादी समस्याओं का एहसास किए बिना ही इतना थकाऊ जीवन जीते हैं। वे सत्य खोजकर ईमानदार क्यों नहीं बन सकते? क्योंकि वे सत्य से विमुख हो चुके हैं और ईमानदार नहीं बनना चाहते। तो वे जीवन में किस पर निर्भर रहते हैं? (सांसारिक आचरण के फलसफों और इंसानी तौर-तरीकों पर।) इंसानी तौर-तरीकों पर निर्भर रहना ऐसे परिणामों की ओर ले जाता है जिससे वे या तो हँसी के पात्र बन जाते हैं या अपना भद्दा पहलू उजागर करते हैं। और इसलिए, करीब से देखने पर, उनके क्रियाकलाप, और जो करते हुए वे पूरा दिन बिताते हैं—वे सब उनकी इज्जत, प्रतिष्ठा, लाभ और घमंड से संबंधित होती हैं। ऐसा लगता है, मानो वे किसी जाल में जी रहे हों, उन्हें हर चीज सही ठहरानी पड़ती है या हर बात के लिए बहाने बनाने पड़ते हैं, और वे हमेशा अपनी खातिर बोलते हैं। उनकी सोच जटिल होती है, वे बहुत बकवास करते हैं, उनके शब्द बहुत पेचीदा होते हैं। वे हमेशा इस बात पर बहस करते हैं कि क्या सही है और क्या गलत, इसका कोई अंत नहीं होता। अगर वे इज्जत हासिल करने की कोशिश नहीं कर रहे होते, तो वे प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे होते हैं, और ऐसा कोई समय नहीं होता जब वे इन चीजों के लिए नहीं जीते। और अंतिम परिणाम क्या होता है? हो सकता है कि वे इज्जत पा लें, लेकिन हर कोई उनसे तंग आ जाता है। लोगों ने उनकी असलियत देख ली है, और एहसास कर लिया है कि उनमें सत्य वास्तविकता नहीं है, वे ईमानदारी से परमेश्वर पर विश्वास करने वाले इंसान नहीं हैं। जब अगुआ और कार्यकर्ता या अन्य भाई-बहन उनकी काट-छाँट करने के लिए कुछ शब्दों का प्रयोग करते हैं, तो वे इन्हें स्वीकारने से हठपूर्वक इनकार कर देते हैं, वे खुद को सही ठहराने या बहाने बनाने की कोशिश करने पर जोर देते हैं, और वे अपना दोष दूसरे के सिर मढ़ने की कोशिश करते हैं। सभाओं के दौरान वे अपना बचाव करते हैं, बहस करने लगते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच विवाद खड़ी करके मुसीबत पैदा कर देते हैं। अपने दिल में वे सोच रहे होते हैं, “क्या अब मेरे लिए अपने मामले पर बहस करने के लिए कोई जगह नहीं है?” ये किस तरह के इंसान हैं? क्या ये ऐसे इंसान हैं, जो सत्य से प्रेम करते हैं? क्या ये ऐसे इंसान हैं, जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं? जब वे किसी को कुछ ऐसा कहते सुनते हैं जो उनकी इच्छाओं के अनुरूप नहीं होती, तो वे हमेशा बहस करना चाहते हैं और स्पष्टीकरण माँगते हैं, वे इस बात में उलझ जाते हैं कि कौन सही है और कौन गलत, वे सत्य की खोज नहीं करते और उसे सत्य सिद्धांतों के अनुसार उससे पेश नहीं आते। मामला कितना भी सरल क्यों न हो, उन्हें उसे बहुत जटिल बनाना होता है—वे केवल परेशानी को न्योता दे रहे हैं, वे इतना थकने लायक हैं! लोगों के सामने आने वाली बहुत सी समस्याएँ उनकी खुद खड़ी की हुई होती हैं। वे बेवजह परेशानी खोजते हैं। बिना लाग-लपेट के कहें तो वे उचित चीजों में अपना समय नहीं लगाते हैं। यह बेहूदा लोगों की जीवनशैली है। कुछ भ्रमित लोग सही-गलत के फेर में नहीं पड़ते, मगर उनकी काबिलियत इतनी कम होती है कि वे किसी भी चीज की असलियत नहीं समझ पाते। वे सुअरों की तरह अचकचाए फिरते हैं। ये दो तरह के लोग एक दूसरे से पूरी तरह अलग होते हैं : एक दाएँ झुकता है तो दूसरा बाएँ, लेकिन दोनों ही अविश्वासी होते हैं। ऐसे लोग चाहे कितने ही वर्षों से परमेश्वर में विश्वास कर रहे हों या कितने ही उपदेश सुन चुके हों, वे कभी भी सत्य नहीं समझ सकते, यह जानना तो दूर की बात है कि सत्य का अभ्यास करना क्या होता है। किसी भी स्थिति का सामना करने पर वे कभी सत्य नहीं खोजते, बल्कि इंसानी तौर-तरीकों और शैतान के फलसफे का पालन कर थकाऊ और दयनीय जीवन जीते हैं। क्या वे परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हैं? बिल्कुल भी नहीं। जो सत्य से प्रेम नहीं करते, वे वास्तव में परमेश्वर में विश्वास नहीं करते। जो सत्य बिल्कुल भी नहीं स्वीकार सकते, उन्हें भाई-बहन नहीं कहा जा सकता। भाई-बहन केवल वे ही हैं, जो सत्य से प्रेम करते हैं और उसे स्वीकारने में सक्षम हैं। अब, वे कौन हैं जो सत्य से प्रेम नहीं करते? वे सभी अविश्वासी हैं। जो लोग बिल्कुल भी सत्य नहीं स्वीकारते, वे सत्य से विमुख होते हैं और इसे नकार देते हैं। अधिक सटीक रूप से, वे सभी अविश्वासी हैं, जिन्होंने कलीसिया में घुसपैठ कर ली है। अगर वे हर तरह की बुराई करने में सक्षम हैं और कलीसिया के काम को अव्यवस्थित और बाधित कर सकते हैं, तो वे शैतान के सेवक हैं। उन्हें निष्कासित कर हटा देना चाहिए। उनके साथ बिल्कुल भी भाई-बहनों जैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता। उनके प्रति प्रेम प्रदर्शित करने वाले सभी लोग बेहद मूर्ख और अज्ञानी हैं।
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