अन्य विषयों के बारे में वचन (अंश 83)

उन सभी के लिए जो अब कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, भले ही उन्होंने एक नींव रख दी हो, एक ऐसी वास्तविक समस्या है जिसका समाधान होना चाहिए। अधिकतर लोगों को सत्य के सभी पहलुओं की कुछ समझ होती है और वे सही वचन और सिद्धांत बोल और उनका प्रचार कर सकते हैं, लेकिन उन्होंने अपने वास्तविक जीवन में इन वचनों की शुद्धता का अनुभव नहीं किया होता है। उन वचनों में निहित सत्य का वास्तविक अर्थ और व्यावहारिक पक्ष क्या है यह उन्होंने वास्तव में अनुभव नहीं किया होता है। सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए, तुम्हें उचित वातावरण, अपने साथ सही लोग और योग्य लोग, घटनाओं और चीजों की आवश्यकता होती है, जो तुम्हें जीवन में आगे बढ़ने में सहायक होते हैं। इस तरह, ये सत्य और ये सिद्धांत दोनों जिन्हें तुम समझते हो, उनकी पुष्टि हो जाएगी और वे तुम्हें अनुभव प्राप्त कराएंगे। यदि एक जीवित बीज उपजाऊ मिट्टी में डाला जाए, लेकिन उसमें सूर्य की किरणें और बारिश के पानी की नमी न हो, तो क्या उसमें उगने वाली कली सूख नहीं जाएगी? (हाँ, वह सूख जाएगी।) इसलिए, जब तुमने बहुत से उपदेश, बहुत से सत्य और परमेश्वर के बहुत से वचन सुन लिए हैं और तुम्हें पहले ही यह सुनिश्चित कर लिया है कि यह मार्ग सही है और जीवन का सही रास्ता है, तो इस समय तुम्हें किस चीज की आवश्यकता है? तुम्हें परमेश्वर से तुम्हारे लिए उचित वातावरण की व्यवस्था करने के लिए प्रार्थना करनी होगी जो तुम्हारे जीवन के लिए शिक्षाप्रद और सहायक हो और तुम्हें जीवन में आगे बढ़ने में सहायक हो। यह वातावरण शायद बहुत आरामदायक नहीं हो—मनुष्य को कठिनाई का सामना करना होगा और उसे कई चीजों को छोड़ना और त्यागना होगा। इन बातों का अब तक तुम सभी अनुभव कर चुके हो। उदाहरण के लिए, मान लें कि तुम्हें सताया गया और तुम घर लौटने, अपने बच्चों या जीवनसाथी को देखने या उनसे संपर्क करने, अपने रिश्तेदारों या दोस्तों से मिलने या उनसे कोई समाचार प्राप्त नहीं कर पाए। आधी रात को, तुम घर के बारे में सोचने लगोगे : “मेरे पिता कैसे हैं? वह बूढ़े हैं, मैं उनका ख्याल कैसे रखूँ? मेरी माँ की तबीयत खराब है और मुझे नहीं पता कि वह अब कैसी हैं।” क्या तुम सदैव इन मामलों के बारे में नहीं सोचते रहोगे? यदि तुम्हारा मन हमेशा इन बातों को लेकर परेशान रहेगा, तो इसका तुम्हारे काम पर क्या असर पड़ेगा? यदि तुम सांसारिक, दैहिक मामलों में ज्यादा उलझते या चिंतित नहीं होते, तो यह तुम्हारे जीवन की प्रगति के लिए लाभप्रद है। तुम्हारे सोचने और चिंता करने से कोई लाभ नहीं होने वाला; ये सभी मामले परमेश्वर के हाथों में हैं और तुम अपने परिवार के सदस्यों के भाग्य को नहीं बदल सकते। तुम्हें यह समझना चाहिए कि परमेश्वर के विश्वासी के रूप में, तुम्हारी सर्वोच्च प्राथमिकता उसके इरादों के प्रति विचारशील होना, अपना कर्तव्य निभाना, सच्चा विश्वास हासिल करना, परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करना, जीवन में विकास करना और सत्य को पाना है। यही सबसे ज्यादा मायने रखता है। ऊपरी ओर से, ऐसा लगता है जैसे लोग दुनिया और अपने परिवारों को त्याग रहे हैं, लेकिन वास्तव में क्या हो रहा है? (परमेश्वर ही इस पर संप्रभुता रखता है और इसका आयोजन करता है।) यह आयोजन परमेश्वर ने किया है; वही तुम्हें अपने परिवार से मिलने से रोकता है। इसे और सटीक ढंग से कहें तो परमेश्वर तुम्हें उससे वंचित करता है। क्या ये सर्वाधिक व्यावहारिक वचन नहीं हैं? (बिल्कुल हैं।) लोग हमेशा कहते हैं कि परमेश्वर हर चीज का संप्रभु है और उसकी व्यवस्था करता है, तो वह इस मामले पर कैसे संप्रभुता रखता है? वह तुम्हें अपने घर से बाहर ले आता है, तुम्हारे परिवार को ऐसा बोझ नहीं बनने देता जो तुम्हें रोके। तो, वह तुम्हें कहाँ ले जाता है? वह तुम्हें ऐसे माहौल में ले जाता है जहाँ देह के बंधन नहीं हैं, जहाँ तुम अपने प्रियजनों को मिल नहीं पाते। अगर तुम उनके बारे में चिंता करते हो और उनके लिए कुछ करना चाहते हो तो तुम कर नहीं सकोगे और अगर संतानोचित कर्तव्य निभाना चाहते हो, तो नहीं निभा पाओगे। ये अब तुम्हें उलझा नहीं सकते। परमेश्वर तुम्हें इनसे दूर ले जा चुका है, इन सभी बंधनों से वंचित कर चुका है, वरना तुम अभी भी उनके प्रति संतानोचित बने रहते, उनकी सेवा करते और उनके गुलाम बने रहते। परमेश्वर तुम्हें इन सभी बाहरी उलझनों से दूर ले जा रहा है, तो क्या यह अच्छी बात है या बुरी? (यह अच्छी बात है।) यह अच्छी बात है और इस पर पछताने की कोई जरूरत नहीं है। चूँकि यह अच्छी बात है, तो लोगों को क्या करना चाहिए? लोगों को यह कहते हुए परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए : “परमेश्वर मुझसे इतना प्रेम करता है!” कोई भी व्यक्ति स्वयं स्नेह के बंधन से बाहर नहीं निकल सकता, क्योंकि सभी लोगों के मन स्नेह की डोर से बंधे होते हैं। वे सभी चाहते हैं कि वे अपने परिवार के साथ एकजुट रहें, उनका पूरा परिवार एक साथ इकट्ठा रहे, हर कोई सकुशल और खुश रहे और हर दिन ऐसे ही, एक-दूसरे से अलग रहे बिना बिताएँ। लेकिन इसका एक बुरा पक्ष भी है। तुम अपने जीवन की सारी ताकत और मेहनत, अपनी जवानी, अपने सर्वोत्तम वर्ष और अपने जीवन के सभी सर्वोत्तम हिस्से उनके लिए भेंट करोगे; तुम अपना पूरा जीवन अपनी देह, परिवार, प्रियजनों, काम, प्रसिद्धि और लाभ, और तमाम जटिल रिश्तों के लिए दे दोगे तो नतीजे में तुम खुद को पूरी तरह नष्ट कर डालोगे। तो फिर परमेश्वर मनुष्य से कैसे प्रेम करता है? परमेश्वर कहता है : “खुद को इस दलदल में नष्ट मत करो। यदि तुम्हारे दोनों पैर इसमें फँस गए, तो तुम खुद को बाहर नहीं निकाल पाओगे, फिर चाहे कितनी भी कोशिश क्यों न कर लो। तुम्हारे पास आध्यात्मिक कद या बहादुरी नहीं है, आस्था तो बिल्कुल भी नहीं है। मैं खुद तुम लोगों को बाहर निकालूँगा।” परमेश्वर यही करता है और वह तुम्हारे साथ इस पर चर्चा नहीं करता। परमेश्वर लोगों की राय क्यों नहीं पूछता? कुछ लोग कहते हैं : “परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, वह जो चाहता है वही करता है। मनुष्य कीड़े-मकौड़ों की तरह हैं, परमेश्वर की नजर में वे कुछ भी नहीं हैं।” चीजें ऐसी ही हैं, लेकिन क्या परमेश्वर लोगों के साथ इसी तरह व्यवहार करता है? नहीं, ऐसा नहीं है। परमेश्वर बहुत सारे सत्य व्यक्त करता है और इन्हें मनुष्य को उपहार में देता है, जिससे लोगों को अपनी भ्रष्टता से शुद्ध होने और परमेश्वर से एक नया जीवन प्राप्त करने में मदद मिलती है। मनुष्य के लिए परमेश्वर का प्रेम बहुत शानदार है। ये सारी ऐसी चीजें हैं जिन्हें लोग देख सकते हैं। तुम्हारे लिए परमेश्वर के कुछ इरादे हैं, तुम्हें यहाँ लाने का उसका उद्देश्य जीवन में सही रास्ते पर ले जाना है, सार्थक जीवन जीने देना है, यह ऐसा रास्ता है जो तुम खुद नहीं चुन सकते हो। लोगों की दिली इच्छा अपना जीवन सकुशल ढंग से बिताने की होती है और भले ही वे अकूत धन-संपत्ति न कमाएँ, कम से कम वे अपने परिवार के साथ सदा एकजुट रहना चाहते हैं और इसी तरह की घरेलू खुशी का आनंद उठाना चाहते हैं। वे नहीं जानते कि परमेश्वर के इरादों का ध्यान कैसे रखें, वे यह भी नहीं जानते कि अपने भविष्य की मंजिलों या मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के इरादों के बारे में कैसे सोचना है। लेकिन परमेश्वर उनकी नासमझी पर ज्यादा ध्यान नहीं देता और उसे उनसे बहुत कुछ कहने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वे नासमझ हैं, उनका आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है और ऐसी किसी भी चर्चा से गतिरोध ही पैदा होगा। गतिरोध क्यों पैदा होगा? क्योंकि मानवता को बचाने की परमेश्वर की प्रबंधन योजना जैसा बहुत ही बड़ा मामला ऐसा नहीं है जिसे लोग बस एक-दो वाक्यों की व्याख्या से समझ सकें। चूँकि बात यही है, इसलिए जब तक वह दिन नहीं आ जाता जब लोग अंततः समझने-बूझने लगें, तब तक परमेश्वर निर्णय लेकर सीधे कार्य करता है।

जब परमेश्वर अपने कुछ चुने हुए लोगों को मुख्य भूमि चीन के प्रतिकूल माहौल से बाहर निकालता है, तो इसमें उसकी सदिच्छा होती है जो अब हर कोई देख सकता है। इस मामले में लोगों को अक्सर कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए और अपने पर अनुग्रह दिखाने के लिए परमेश्वर को धन्यवाद देना चाहिए। तुम उस पारिवारिक माहौल से बाहर आ गए हो, देह के सभी जटिल आपसी संबंधों से अलग हो चुके हो और खुद को सभी सांसारिक और दैहिक बंधनों से मुक्त कर चुके हो। परमेश्वर तुम्हें एक जटिल जाल से निकालकर अपने समक्ष और अपने घर लाया है। परमेश्वर कहता है : “यहाँ शांति है, यह स्थान बहुत अच्छा है और यह तुम्हारे विकास के लिए बहुत ही उपयुक्त है। यहीं परमेश्वर के वचन और मार्गदर्शन हैं, यहीं सत्य शासन करता है। मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के इरादे और उद्धार के कार्य का केंद्र यही है। इसलिए यहाँ जी भर कर अपना विकास करो।” परमेश्वर तुम्हें इस प्रकार के माहौल में लाता है, एक ऐसा माहौल जिसमें शायद तुम्हारे प्रियजनों का सुख न हो, जहाँ तुम बीमार पड़े तो तुम्हारी देखभाल करने के लिए तुम्हारे बच्चे नहीं होंगे और जहाँ ऐसा कोई नहीं है जिससे तुम अपने दिल की बात कह सको। जब तुम अकेले होते हो और अपने देह की पीड़ा, कठिनाइयों और भविष्य में सामने आने वाली हर चीज के बारे में सोचते हो, तो उस समय अकेलापन महसूस करोगे। तुम अकेलापन क्यों महसूस करोगे? इसका एक वस्तुगत कारण यह है कि लोगों का आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है। और व्यक्तिपरक कारण क्या है? (लोग अपने रक्त-संबंधी प्रियजनों को पूरी तरह छोड़ नहीं पाते।) बिल्कुल सही बात है, लोग उन्हें छोड़ नहीं पाते। जो लोग देह के बंधनों में रहते हैं, वे देह के विभिन्न संबंधों और पारिवारिक बंधनों को सुख के रूप में लेते हैं। उनका मानना है कि लोग अपने प्रियजनों के बिना नहीं रह सकते। तो तुम यह क्यों नहीं सोचते कि तुम मनुष्य की दुनिया में कैसे आए? तुम अकेले आए थे, मूल रूप से तुम्हारा दूसरों से कोई संबंध नहीं था। परमेश्वर एक-एक करके लोगों को यहाँ लाता है; जब तुम आए थे, तो वास्तव में तुम अकेले थे। तब तुमने अकेला महसूस नहीं किया, तो अब जब परमेश्वर तुम्हें यहाँ लाया है, तुम अकेला क्यों महसूस करते हो? तुम्हें लगता है कि तुम्हें किसी ऐसे साथी की कमी खल रही है जिससे तुम दिल की बातें कर सको, चाहे वह तुम्हारे बच्चे या माता-पिता हों, या तुम्हारा जीवनसाथी—पति या पत्नी हो—इसलिए, तुम अकेला महसूस करते हो। फिर, जब तुम अकेलापन महसूस करते हो, तो परमेश्वर के बारे में क्यों नहीं सोचते? क्या परमेश्वर मनुष्य का साथी नहीं है? (हाँ, बिल्कुल है।) जब तुम सबसे अधिक पीड़ा और उदासी महसूस करते हो, तो तुम्हें वास्तव में दिलासा कौन दे सकता है? वास्तव में तुम्हारे कष्ट कौन दूर कर सकता है? (परमेश्वर कर सकता है।) केवल परमेश्वर ही वास्तव में लोगों के कष्ट दूर कर सकता है। यदि तुम बीमार हो और तुम्हारे बच्चे तुम्हारे पास हैं, तुम्हें कुछ न कुछ पिला रहे हैं, तुम्हारी सेवा कर रहे हैं, तो तुम्हें काफी खुशी होगी, लेकिन समय बीतने के साथ तुम्हारे बच्चे तंग आ जाएंगे और कोई भी तुम्हारी सेवा करने को तैयार नहीं होगा। ऐसे समय तुम वास्तव में अकेला महसूस करोगे! तो अब, जब तुम यह सोचते हो कि तुम्हारा कोई संगी-साथी नहीं है, तो क्या यह वाकई सच है? वास्तव में ऐसा नहीं है, क्योंकि परमेश्वर सदैव तुम्हारा साथ दे रहा है! परमेश्वर लोगों को नहीं छोड़ता; वही ऐसा है जिस पर वे भरोसा कर सकते हैं, जिसकी हर समय शरण ले सकते हैं, और जो उनका एकमात्र हमराज है। इसलिए, तुम पर चाहे जो भी कठिनाइयाँ और कष्ट आएँ, तुम्हें चाहे किन्हीं शिकायतों, निराशा और कमजोरी के मामलों का सामना करना पड़े, यदि तुम परमेश्वर के सामने आते हो और फौरन प्रार्थना करते हो, तो उसके वचन तुम्हें दिलासा देंगे और तुम्हारी कठिनाइयों और तमाम तरह की दिक्कतों को दूर करेंगे। ऐसे माहौल में तुम्हारा अकेलापन परमेश्वर के वचनों का अनुभव और सत्य हासिल करने के लिए बुनियादी शर्त बन जाएगा। जैसे-जैसे तुम अनुभव लेते जाओगे, धीरे-धीरे तुम समझने लगोगे : “मैं अपने माता-पिता को छोड़ने के बाद भी अच्छा जीवन जी रही हूँ, अपने पति को छोड़ने के बाद भी संतुष्ट हूँ और अपने बच्चों को छोड़ने के बाद भी मेरा जीवन शांतिपूर्ण और आनंदमय है। मेरा मन अब खाली नहीं हैं। मैं अब लोगों पर भरोसा नहीं करूँगी बल्कि परमेश्वर पर भरोसा करूँगी। वह मेरा पोषण करेगा और हर समय मेरी सहायता करेगा। भले ही मैं उसे छू या देख नहीं सकती, लेकिन मैं जानती हूँ कि वह हर घड़ी और हर जगह मेरे साथ है। जब तक मैं उससे प्रार्थना करती रहूँगी, उसे पुकारती रहूँगी, तब तक वह मुझे प्रेरित करता रहेगा, अपने इरादे समझाएगा और उचित मार्ग दिखाएगा।” उस समय, वह वास्तव में तुम्हारा परमेश्वर बन जाएगा और तुम्हारी सभी समस्याएँ हल हो जाएँगी।

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