परमेश्वर का कार्य और स्वभाव जानने के बारे में वचन (अंश 25)

कार्य का यह चरण शुरू होने के कई वर्षों बाद, एक व्यक्ति था जो परमेश्वर में विश्वास करता था लेकिन सत्य का अनुसरण नहीं करता था; वह केवल पैसा कमाना और एक साथी खोजना चाहता था, अमीरों जैसा जीवन जीना चाहता था, इसलिए उसने कलीसिया छोड़ दी। कुछ वर्ष इधर-उधर भटकने के बाद वह अचानक वापस आ गया। उसका दिल पश्चात्ताप से भरा हुआ था, उसने अनगिनत आँसू बहाए। यह साबित करता है कि उसके हृदय ने परमेश्वर को पूरी तरह नहीं छोड़ा, जो एक अच्छी बात है; उसके पास अभी भी बचाए जाने का एक अवसर और आशा है। अगर वह विश्वास करना छोड़ देता, अविश्वासियों जैसा बन जाता, तो वह पूरी तरह से खत्म हो जाता। अगर वह सच में पश्चात्ताप कर सकता है, तो उसके लिए अब भी उम्मीद है; यह एक दुर्लभ और अनमोल बात है। चाहे परमेश्वर कैसे भी कार्य करे, और चाहे वह लोगों के साथ कैसे भी व्यवहार करे—यहाँ तक कि चाहे वह उनसे घृणा करे, उन्हें नापसंद करे या उन्हें शाप दे—अगर कोई ऐसा दिन आता है कि लोग खुद को बदल सकते हैं, तो मुझे बहुत खुशी होगी; क्योंकि इसका मतलब यह होगा कि लोगों के मन में अभी भी परमेश्वर के लिए थोड़ा-सा स्थान तो है, कि उन्होंने अपनी मानवीय समझ या अपनी मानवता पूरी तरह से नहीं खोई है, कि वे अभी भी परमेश्वर में विश्वास करना चाहते हैं, और उसके अस्तित्व को स्वीकार करके उसके सम्मुख लौटने का कम-से-कम थोड़ा-बहुत इरादा रखते हैं। जिन लोगों के दिल में वास्तव में परमेश्वर है, चाहे उन्होंने कभी भी परमेश्वर का घर छोड़ा हो, यदि वे वापस आते हैं, और अभी भी इस परिवार को प्रिय मानते हैं, तो मैं भावुकता से उससे जुड़ जाऊंगा और कुछ सुकून पाऊँगा। लेकिन अगर वे कभी वापस नहीं लौटते, तो मैं इसे दयनीय समझूँगा। यदि वे वापस आकर वास्तव में पश्चात्ताप कर सकते हैं, तो मेरा दिल विशेष रूप से संतुष्टि और सुकून से भर जाएगा। इस व्यक्ति का अभी भी लौटने में सक्षम होना यह दर्शाता है कि वह परमेश्वर को नहीं भूला था; वह इसलिए लौटा क्योंकि उसके दिल में वह अभी भी परमेश्वर के लिए ललक थी। हमारा मिलन बहुत ही मार्मिक था। जब वह गया था, तो वह निश्चित रूप से काफी नकारात्मक था, और वह खराब अवस्था में था; पर अगर वह अब वापस आ सकता है, तो इससे साबित होता है कि उसकी अभी भी परमेश्वर में आस्था है। हालाँकि, वह आगे भी कलीसिया में बना रह सकता है या नहीं, यह अज्ञात है, क्योंकि लोग बहुत जल्दी बदल जाते हैं। अनुग्रह के युग में, यीशु में मनुष्यों के लिए दया और अनुग्रह था। यदि सौ में से एक भेड़ खो जाए, तो वह निन्यानबे को छोड़कर एक को खोजता था। यह पंक्ति कोई यांत्रिक कार्य नहीं दर्शाती, न ही कोई विनियम दर्शाती है, बल्कि यह मानव जाति के उद्धार को लेकर परमेश्वर के गहरे इरादे, और मानव जाति के लिए परमेश्वर के गहरे प्रेम को दर्शाता है। यह कोई काम करने का तरीका नहीं है, बल्कि यह उसका स्वभाव है और उसकी मानसिकता है। इसलिए, कुछ लोग छह महीने या साल भर के लिए कलीसिया से चले जाते हैं, या बहुत-सी कमजोरियों या गलत धारणाओं के शिकार हैं, और फिर भी बाद में वास्तविकता के प्रति जाग्रत होने, ज्ञान प्राप्त करने, अपने-आपको बदलने और सही मार्ग पर लौटने की उनकी क्षमता मुझे खासतौर से सुकून देती है, और मुझे थोड़ा-सा आनंद देती है। आज के इस मौज-मस्ती और वैभवता के संसार में, और बुराई के इस युग में परमेश्वर को स्वीकार करने और सही रास्ते पर लौट आने में सक्षम हो पाना ऐसी चीज है, जो खुशी और रोमांच प्रदान करती हैं। उदाहरण के लिए बच्चों का पालन-पोषण करने को लो : चाहे तुम्हारे प्रति उनका व्यवहार संतानोचित हो या न हो, अगर वे तुम्हारा कोई संज्ञान लिए बिना घर छोड़कर चले जाएँ और कभी न लौटें, तो तुम्हें कैसा महसूस होगा? अपने दिल की गहराई में तुम तब भी उनकी चिंता करते रहोगे, और तुम हमेशा यह सोचोगे, “मेरा बेटा कब लौटेगा? मैं उसे देखना चाहता हूँ। आखिर वह मेरा बेटा है, और मैंने उसे यूं ही नहीं पाला-पोसा और प्यार किया।” तुम हमेशा इसी तरह सोचते रहे हो; तुम हमेशा उस दिन की बाट जोहते रहे हो। इस संबंध में हर कोई ऐसा ही महसूस करता है, परमेश्वर तो और भी ऐसा महसूस करता है—क्या वह और अधिक यह आशा नहीं करता कि भटकने के बाद मनुष्य अपनी वापसी का रास्ता खोज ले, कि उड़ाऊ पुत्र वापस आ जाए? आजकल लोगों का आध्यात्मिक कद बहुत कम है, पर वह दिन आएगा जब वे परमेश्वर के इरादे को समझ जाएंगे—लेकिन अगर सच्ची आस्था की ओर उनका कोई झुकाव न हो, वे छद्म-विश्वासी हों, तो वे परमेश्वर की चिंता के लायक नहीं हैं।

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