परमेश्वर का कार्य और स्वभाव जानने के बारे में वचन (अंश 21)

चाहे परमेश्वर अपने कार्य अपने देहधारण के माध्यम से करे या अपने आत्मा के माध्यम से, सब कुछ उसकी प्रबंधन योजना के अनुसार किया जाता है। कोई भी कार्य किसी खुल्लमखुल्ला या गुप्त तरीके से या मानवीय आवश्यकताओं के अनुसार नहीं किया जाता, बल्कि सब कुछ पूरी तरह से उसकी प्रबंधन योजना के अनुसार किया जाता है। ऐसा नहीं है कि अंत के दिनों का कार्य परमेश्वर की मर्जी के अनुसार किसी भी तरह से किया जा सकता है। इस चरण में उसके कार्य के पिछले दो चरणों के आधार पर कार्य किया जाता है। उसके कार्य के दूसरे चरण अर्थात अनुग्रह के युग के कार्य के कारण मानवजाति को छुटकारा मिला और यह कार्य देहधारण के जरिए पूरा किया गया। परमेश्वर के कार्य के वर्तमान चरण को पूरा करना आत्मा के लिए असंभव नहीं है, वह इसे करने में सक्षम है, लेकिन देहधारण के जरिए इसे करना अधिक उपयुक्त है, क्योंकि इस प्रकार लोगों को अधिक प्रभावी ढंग से बचाया जा सकता है। आखिरकार, देहधारण के कथन लोगों को जीतने के मामले में पवित्र आत्मा के प्रत्यक्ष कथनों से अधिक बेहतर हैं और वे परमेश्वर के बारे में लोगों के ज्ञान को बढ़ाने में भी बेहतर हैं। आत्मा कार्य करते समय लोगों के साथ हमेशा नहीं रह सकता, आत्मा के लिए उस प्रकार लोगों के साथ रहना और सीधे तौर पर आमने-सामने बात करना संभव नहीं है जैसा उसका देहधारण अभी कर रहा है, और कभी-कभी आत्मा के लिए देहधारण की तरह लोगों के अंदर की बातों को प्रकट करना संभव नहीं होता है। इस चरण में देहधारण का कार्य मुख्य रूप से लोगों को जीतना और जीतने के बाद उन्हें पूर्ण बनाना है, ताकि वे परमेश्वर को जान सकें और उसकी आराधना कर सकें। यह युग को समाप्त करने का कार्य है। यदि इस चरण का उद्देश्य लोगों को जीतना नहीं होता, बल्कि केवल उन्हें यह बताना होता कि परमेश्वर वास्तव में मौजूद है, तो आत्मा इस चरण को कर सकता था। तुम लोग यह सोच सकते हो कि यदि इस चरण का कार्य आत्मा द्वारा किया जाता, तो वह देह की जगह ले सकता था और देह के समान ही कार्य कर सकता था, और क्योंकि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, इसीलिए चाहे देह कार्य करे या आत्मा, दोनों से समान परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। हालाँकि, तुम लोगों का ऐसा सोचना गलत होगा। परमेश्वर अपने प्रबंधन के अनुसार और मनुष्य को बचाने की अपनी योजना और चरणों के अनुसार कार्य करता है। यह वैसा नहीं है जैसी तुम कल्पना करते हो, क्योंकि आत्मा सर्वशक्तिमान है, देह सर्वशक्तिमान है और स्वयं परमेश्वर भी सर्वशक्तिमान है, इसलिए वह जो चाहे कर सकता है। परमेश्वर अपनी प्रबंधन योजना के अनुसार कार्य करता है, और उसके कार्य के प्रत्येक चरण के अपने कुछ कदम होते हैं। इस चरण के कार्यों को पूरा करने का तरीका और इससे जुड़ी सारी जानकारी पूर्व नियोजित है। परमेश्वर के कार्य का पहला चरण इस्राएल में पूरा हुआ था और यह अंतिम चरण अब बड़े लाल अजगर के देश अर्थात चीन में हो रहा है। कुछ लोग कहते हैं, “क्या परमेश्वर यह कार्य किसी दूसरे देश में नहीं कर सकता?” इस चरण की प्रबंधन योजना के अनुसार यह कार्य चीन में ही किया जाना चाहिए। चीन के लोग पिछड़े हुए हैं, उनका जीवन पतनशील है और वहां कोई मानवाधिकार या स्वतंत्रता नहीं है। यह एक ऐसा देश है जहाँ शैतान और दुष्ट राक्षस सत्ता में हैं। चीन में प्रकट होने और कार्य करने का उद्देश्य ऐसे लोगों को बचाना है जो संसार के सबसे अंधकारमय भाग में रह रहे हैं और जिन्हें शैतान के द्वारा सबसे अधिक गहराई तक भ्रष्ट किया गया है। यह शैतान को वास्तव में पराजित करने और पूरी तरह से महिमा प्राप्त करने का एकमात्र तरीका है। यदि परमेश्वर किसी अन्य देश में प्रकट होता और कार्य करता तो यह उतना महत्वपूर्ण नहीं होता। परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक चरण आवश्यक है, और परमेश्वर द्वारा इस तरीके से पूरा किया जाता है जैसे उसे पूरा किया जाना चाहिए। कुछ चीजों को देह के कार्य के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है और कुछ चीजों को आत्मा के कार्य के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। देह या आत्मा में से जो भी तरीका सबसे अच्छे परिणाम देगा उसी के अनुसार परमेश्वर उनमें से किसी एक के माध्यम से कार्य करने का निर्णय लेता है। ऐसा नहीं है जैसा कि तुम लोगों का सुझाव है कि किसी भी तरीके से कार्य करना ठीक होगा या यह कि परमेश्वर बस यूँ ही मानव रूप धारण करके अपना कार्य कर सकता है, और यह कि आत्मा भी किसी व्यक्ति से आमने-सामने मिले बिना इस कार्य को कर सकता है, और यह कि इन दोनों तरीकों से कुछ विशेष परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। तुम लोगों को इस बारे में कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए। परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, लेकिन उसका एक व्यावहारिक पक्ष भी है, और लोग इस पक्ष को नहीं देख सकते। लोग परमेश्वर को एक अलौकिक शक्ति के रूप में देखते हैं और वे उसकी थाह नहीं ले सकते, इसलिए वे उसके बारे में धारणाएँ बनाते हैं और सभी प्रकार की अवास्तविक कल्पनाएँ करते हैं। बहुत ही कम लोग समझ पाते हैं कि परमेश्वर के वचन और कार्य सत्य हैं, वे व्यावहारिक हैं, वे सबसे यथार्थपरक चीजें हैं और यह कि उन्हें मनुष्य के द्वारा छुआ और देखा जा सकता है। यदि कई वर्षों तक परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने के बाद लोगों के पास वाकई काबिलियत और समझने की क्षमता होती तो उन्हें यह जान जाना चाहिए था कि परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए सभी वचन सत्य वास्तविकताएँ हैं, यह कि वह जो भी कार्य और चीजें करता है वे सत्य और सिद्धांतों पर आधारित होते हैं, और यह कि वह जो कुछ भी करता है उसका बहुत महत्व होता है। परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह अर्थपूर्ण होता है, आवश्यक होता है और उससे सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। इन सभी का एक निश्चित उद्देश्य, योजना और महत्व होता है। क्या तुम्हें लगता है कि परमेश्वर का कार्य बिना सोचे-समझे बोले गए वचनों के आधार पर किया जाता है? उसका एक सर्वशक्तिमान पक्ष है लेकिन उसका एक व्यावहारिक पक्ष भी है। तुम लोगों का ज्ञान एकतरफा है। परमेश्वर के सर्वशक्तिमान पक्ष के बारे में तुम्हारी समझ बहुत गलत है, और यदि हम उसके व्यावहारिक पक्ष के बारे में तुम्हारी समझ की बात करें तो इस मामले में तो तुम्हारी समझ और भी ज्यादा गलत है।

परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों में से पहला चरण आत्मा के द्वारा पूरा किया जाता है, जबकि अंतिम दो चरण देहधारण के द्वारा पूरे किए जाते हैं, और उसके कार्य का प्रत्येक चरण बहुत आवश्यक होता है। उदाहरण के लिए, क्रूस पर चढ़ाए जाने को ही ले लो, यदि आत्मा को क्रूस पर चढ़ाया जाता तो इसका कोई अर्थ नहीं होता, क्योंकि लोग तो आत्मा को देख या छू ही नहीं सकते हैं, और आत्मा को कुछ भी महसूस नहीं होता या उसे कोई पीड़ा नहीं होती। नतीजतन, इस क्रूस पर चढ़ाए जाने का कोई अर्थ ही नहीं होगा। अंत के दिनों में पूरा होने वाला चरण लोगों को जीतने का चरण है, जो एक ऐसा कार्य है जिसे देह ही कर सकता है—जब इस कार्य की बात आती है तो आत्मा देहधारण का स्थान नहीं ले सकता, और आत्मा के द्वारा किया जाने वाला कार्य देह के द्वारा नहीं किया जा सकता। जब परमेश्वर अपने कार्य के किसी चरण को करने के लिए देह या आत्मा को चुनता है, तो यह चयन एक आवश्यक निर्णय होता है और यह सब सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने और उसकी प्रबंधन योजना के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। परमेश्वर का एक सर्वशक्तिमान पक्ष और एक व्यावहारिक पक्ष है। वह अपने कार्य के प्रत्येक चरण में व्यावहारिक तरीके से कार्य करता है। लोग कल्पना करते हैं कि परमेश्वर न तो बात करता है और न ही सोचता है और वह अपनी इच्छा से जो चाहे करता है, लेकिन ऐसा नहीं है। उसके पास बुद्धि है, उसके पास वह सब कुछ है जो वह स्वयं है और यही उसका सार है। जब वह कार्य करता है, तो उसे अपने स्वभाव, अपने सार, अपनी बुद्धि और अपने स्वरूप और अपनी वास्तविकता को प्रकट करने और व्यक्त करने की आवश्यकता होती है, ताकि लोग इन बातों को समझ सकें, जान सकें और इन्हें प्राप्त कर सकें। वह कोई भी कार्य अचानक से नहीं करता है, और वह लोगों की कल्पनाओं के आधार पर तो बिल्कुल भी कार्य नहीं करता, वह कार्य की आवश्यकताओं के अनुसार और उन परिणामों के अनुसार कार्य करता है जिन्हें प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। वह व्यावहारिक तरीके से बात करता है, वह दिन-प्रतिदिन काम करता है और कष्ट उठाता है और जब वह कष्ट उठाता है, तो उसे भी दर्द महसूस होता है। ऐसा नहीं है कि जिस समय देहधारण कार्य करता और बोल रहा होता है तो आत्मा मौजूद होता है, और यह कि जब देहधारण कार्य नहीं करता और बोल नहीं रहा होता तो आत्मा चला जाता है। यदि ऐसा होता, तो वह कष्ट नहीं सहता और यह कोई देहधारण नहीं होता। लोग परमेश्वर के व्यावहारिक पक्ष को नहीं देख सकते और इसलिए लोग परमेश्वर को अच्छी तरह से नहीं जानते, और उसके बारे में उनकी समझ केवल सतही होती है। लोग कहते हैं कि परमेश्वर व्यावहारिक और सामान्य है या यह कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी है—ये सभी ऐसी बातें हैं जो उन्होंने दूसरों से सीखी हैं, क्योंकि उनके पास सच्चा ज्ञान या असली अनुभव नहीं है। जब देहधारण की बात आती है तो देहधारण के सार पर इतना जोर क्यों दिया जाता है? आत्मा के सार पर क्यों नहीं? असल ध्यान देह के कार्य पर दिया जाता है, आत्मा का कार्य केवल सहयोग और सहायता करना है, और इससे देह के कार्य के परिणाम प्राप्त होते हैं। प्रत्येक चरण में, लोग परमेश्वर के बारे में थोड़ा ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन जब वे उसके बारे में थोड़ा और जानना चाहते हैं तो वे इसमें आगे बढ़ने या इसे प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं; जब परमेश्वर थोड़ा बोलता है तो लोग भी थोड़ा ही समझते हैं, लेकिन उसके बारे में उनका ज्ञान अभी भी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं होता है, और वे इसके आवश्यक भाग को आसानी से नहीं समझ सकते। यदि तुम लोगों को लगता है कि आत्मा वह सब कुछ कर सकता है जो देह कर सकता है और यह कि आत्मा देह का स्थान ले सकता है, तो तुम लोग देह के महत्व, देह के कार्य और देह की वास्तविकता को कभी नहीं जान पाओगे।

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