परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर के कार्य को जानना | अंश 193

जब, अनुग्रह के युग में, परमेश्वर तीसरे स्वर्ग में लौटा, तो समस्त मानव-जाति के छुटकारे का परमेश्वर का कार्य वास्तव में पहले ही अपने अंतिम भाग में पहुँच गया था। धरती पर जो कुछ शेष रह गया था, वह था सलीब जिसे यीशु ने अपनी पीठ पर ढोया था, बारीक सन का कपड़ा जिसमें यीशु को लपेटा गया था, और काँटों का मुकुट और लाल रंग का लबादा जो यीशु ने पहना था (ये वे वस्तुएँ थीं, जिनसे यहूदियों ने उसका मज़ाक उड़ाया था)। अर्थात्, यीशु के सलीब पर चढ़ने के कार्य से अत्यधिक सनसनी उत्पन्न होने के बाद, चीज़ें फिर से शांत हो गईं। तब से यीशु के शिष्यों ने हर जगह कलीसियाओं में चरवाही और सिंचन करते हुए उसके कार्य को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। उनके कार्य की विषयवस्तु यह थी : उन्होंने सभी लोगों से पश्चात्ताप करने, अपने पाप स्वीकार करने और बपतिस्मा लेने के लिए कहा; और सभी प्रेरित यीशु के सलीब पर चढ़ने की अंदर की कहानी, असली वृत्तांत फैलाने के लिए आगे बढ़ गए, और इसलिए हर कोई अपने पाप स्वीकार करने के लिए स्वयं को यीशु के सामने दंडवत होने से नहीं रोक पाया; और इसके अलावा प्रेरित हर जगह जाकर यीशु द्वारा बोले गए वचन सुनाने लगे। उस क्षण से अनुग्रह के युग में कलीसियाओं का निर्माण होना शुरू हुआ। उस युग में यीशु ने मनुष्य के जीवन और स्वर्गिक पिता की इच्छा के बारे में भी बात की, लेकिन चूँकि वह एक अलग युग था, इसलिए उनमें से कई उक्तियाँ और प्रथाएँ आज की उक्तियों और प्रथाओं से बहुत भिन्न थीं। किंतु दोनों का सार एक ही है : दोनों हूबहू और यथार्थत: देह में परमेश्वर के आत्मा के कार्य हैं। इस प्रकार का कार्य और कथन आज के दिन तक जारी है, और यही कारण है कि आज के धार्मिक संस्थानों में अभी भी इसी प्रकार की चीज़ों को साझा किया जाता है, और यह सर्वथा अपरिवर्तित है। जब यीशु का कार्य संपन्न हो गया और कलीसियाएँ पहले ही यीशु मसीह के सही मार्ग पर आ चुकी थीं, तब भी परमेश्वर ने अपने कार्य के एक अन्य चरण के लिए अपनी योजना शुरू कर दी, जो कि अंत के दिनों में उसका देह में आने का मामला था। जैसा कि मनुष्य इसे देखता है, परमेश्वर के सलीब पर चढ़ने ने परमेश्वर के देहधारण के कार्य को पहले ही संपन्न कर दिया था, समस्त मानव-जाति को छुटकारा दिला दिया था, और परमेश्वर को अधोलोक की चाबी ज़ब्त करने दी थी। हर कोई सोचता है कि परमेश्वर का कार्य पूरी तरह से निष्पादित हो चुका है। वस्तुत:, परमेश्वर के दृष्टिकोण से, उसके कार्य का केवल एक छोटा-सा हिस्सा ही निष्पादित हुआ है। उसने मानवजाति को केवल छुटकारा दिलाया था; उसने मानवजाति को जीता नहीं था, मनुष्य के शैतानी चेहरे को बदलने की बात तो छोड़ ही दो। इसीलिए परमेश्वर कहता है, "यद्यपि मेरे द्वारा धारित देह मृत्यु की पीड़ा से गुज़री, किंतु वह मेरे देहधारण का संपूर्ण लक्ष्य नहीं था। यीशु मेरा प्यारा पुत्र है और उसे मेरे लिए सलीब पर चढ़ा दिया गया, किंतु उसने मेरे कार्य का पूरी तरह से समापन नहीं किया। उसने केवल उसका एक अंश पूरा किया।" इस प्रकार परमेश्वर ने देहधारण के कार्य को जारी रखने के लिए योजनाओं के दूसरे चक्र की शुरुआत की। परमेश्वर का अंतिम इरादा शैतान के पंजों से बचाए गए हर व्यक्ति को पूर्ण बनाना और प्राप्त करना था, यही वजह है कि परमेश्वर एक बार फिर देह में आने का खतरा उठाने के लिए तैयार हो गया। "देहधारण" से तात्पर्य उससे है, जो महिमा नहीं लाता (क्योंकि परमेश्वर का कार्य अभी तक समाप्त नहीं हुआ है), बल्कि जो प्यारे पुत्र की पहचान में प्रकट होता है, और वह मसीह है, जिससे परमेश्वर अच्छी तरह से प्रसन्न है। यही कारण है कि इसे "खतरा उठाना" कहा जाता है। धारित देह कमज़ोर सामर्थ्य वाला है और उसे अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए, और उसका सामर्थ्य स्वर्ग में पिता के अधिकार से एकदम अलग है; वह अन्य कार्य में शामिल हुए बिना परमपिता परमेश्वर का कार्य और आज्ञा पूरी करता हुआ, केवल देह की सेवकाई पूरी करता है, और वह केवल कार्य के एक हिस्से को पूरा करता है। यही कारण है कि परमेश्वर के पृथ्वी पर आते ही उसे "मसीह" नाम दिया गया—यह इस नाम का सन्निहित अर्थ है। यह कहे जाने का कि आगमन प्रलोभनों के साथ होता है, यह कारण है कि कार्य का केवल एक हिस्सा पूरा किया जा रहा है। इसके अलावा, परमपिता परमेश्वर द्वारा उसे केवल "मसीह" और "प्यारा पुत्र" कहने, लेकिन उसे महिमा न देने का ठीक-ठीक कारण यह है कि देहधारी केवल कार्य का एक हिस्सा करने के लिए आता है, स्वर्ग के परमपिता का प्रतिनिधित्व करने के लिए नहीं, बल्कि प्यारे पुत्र की सेवकाई पूरी करने के लिए। जब प्यारा पुत्र अपने कंधे पर उठाए गए समस्त कार्यभार को पूरा कर लेता है, तो परमपिता उसे परमपिता की पहचान के साथ-साथ पूर्ण महिमा देता है। कोई कह सकता है कि यह "स्वर्ग की संहिता" है। चूँकि वह, जो देह में आया है, और स्वर्ग का परमपिता, दो अलग-अलग लोकों में हैं, दोनों पवित्रात्मा में एक-दूसरे को केवल निहारते हैं, परमपिता प्रिय पुत्र पर नज़र रखता है, किंतु पुत्र दूर से परमपिता को देखने में असमर्थ है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि देह जो कार्य करने में सक्षम है, वे बहुत छोटे हैं और उसे किसी भी क्षण मार दिए जाने की संभावना है, और कहा जा सकता है कि यह आगमन सबसे बड़े ख़तरे से भरा है। यह परमेश्वर द्वारा अपने प्रिय पुत्र को एक बार फिर शेर के मुँह में, जहाँ उसका जीवन ख़तरे में है, छोड़ने जैसा है, उसे ऐसी जगह छोड़ने के बराबर है जहाँ शैतान सबसे अधिक केंद्रित है। इन विकट स्थितियों में भी परमेश्वर ने अपने प्रिय पुत्र को एक गंदगी और व्यभिचार से भरे स्थान के लोगों को उसे "वयस्कता की अवस्था में लाने" के लिए सौंप दिया। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यही एक तरीका है जिससे परमेश्वर का कार्य उपयुक्त और स्वाभाविक प्रतीत हो सकता है, और यही एक तरीका है जिससे परमपिता परमेश्वर की सभी इच्छाएँ पूरी की जा सकती हैं और मानवजाति के बीच उसके कार्य के अंतिम हिस्से को पूरा किया जा सकता है। यीशु ने परमपिता परमेश्वर के कार्य का एक चरण निष्पादित करने से अधिक कुछ नहीं किया। धारित देह द्वारा लगाए गए अवरोध और पूरा किए जाने वाले कार्य में भिन्नताओं की वजह से यीशु स्वयं नहीं जानता था कि देह में एक दूसरा आगमन भी होगा। इसलिए बाइबल के किसी प्रतिपादक या नबी ने स्पष्ट रूप से यह भविष्यवाणी करने का साहस नहीं किया कि परमेश्वर अंत के दिनों में पुन: देहधारी होगा, अर्थात वह देह में अपने कार्य के दूसरे हिस्से को करने के लिए फिर से देह में आएगा। इसलिए, किसी को पता नहीं चला कि परमेश्वर पहले ही लंबे समय से स्वयं को देह में छिपाए हुए था। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं, क्योंकि यीशु ने पुनर्जीवित होने और स्वर्गारोहण करने के बाद ही इस कार्यभार को स्वीकार किया था, इसलिए परमेश्वर के दूसरे देहधारण के बारे में कोई स्पष्ट भविष्यवाणी नहीं है, और मानव-मस्तिष्क के लिए इस पर विचार कर पाना संभव नहीं। बाइबल की भविष्यवाणी की किसी भी किताब में ऐसा कोई भी वचन नहीं है, जो इसका स्पष्टता से उल्लेख करता हो। किंतु जब यीशु काम करने आया था, तो एक स्पष्ट भविष्यवाणी पहले से मौजूद थी, जिसमें कहा गया था कि एक कुँआरी बच्चे के साथ होगी और पुत्र जनेगी, अर्थात वह पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ में आया था। इसके बावजूद, परमेश्वर ने तब भी कहा कि यह मृत्यु के जोख़िम पर हुआ, तो आज यह मामला कितना अधिक जोखिमभरा होगा? इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि परमेश्वर कहता है कि इस देहधारण में खतरों का जोखिम अनुग्रह के युग के खतरों से हजारों गुना अधिक है। कई जगहों पर परमेश्वर ने सीनियों के देश में विजेताओं के एक समूह को प्राप्त करने की भविष्यवाणी की है। चूँकि वह दुनिया के पूर्व में है, जहाँ विजेताओं को प्राप्त किया जाना है, इसलिए परमेश्वर अपने दूसरे देहधारण में जहाँ कदम रखता है, वह बिना किसी संदेह के सीनियों का देश है, ठीक वह स्थान, जहाँ बड़ा लाल अजगर कुंडली मारे पड़ा है। वहाँ परमेश्वर बड़े लाल अजगर के वंशजों को प्राप्त करेगा, ताकि वह पूर्णतः पराजित और शर्मिंदा हो जाए। परमेश्वर पीड़ा के बोझ से अत्यधिक दबे इन लोगों को जगाने जा रहा है, जब तक कि वे पूरी तरह से जाग नहीं जाते, और उन्हें कोहरे से बाहर निकालना चाहता है, और चाहता है कि वे उस बड़े लाल अजगर को ठुकरा दें। वे अपने सपने से जागेंगे, बड़े लाल अजगर को उसके असली रूप में जानेंगे, परमेश्वर को अपना संपूर्ण हृदय देने में सक्षम होंगे, अँधेरे की ताक़तों के दमन से बाहर निकलेंगे, दुनिया के पूर्व में खड़े होंगे, और परमेश्वर की जीत का सबूत बनेंगे। केवल इसी तरीके से परमेश्वर महिमा प्राप्त करेगा। केवल इसी कारण से परमेश्वर इस्राएल में समाप्त हुए कार्य को उस देश में लाया, जहाँ बड़ा लाल अजगर कुंडली मारे पड़ा है, और प्रस्थान करने के लगभग दो हजार वर्ष बाद वह अनुग्रह के कार्य को जारी रखने के लिए पुनः देह में आया है। मनुष्य की खुली आँखों के लिए, परमेश्वर देह में नए कार्य का शुभारंभ कर रहा है। किंतु परमेश्वर की दृष्टि से, वह अनुग्रह के युग के कार्य को जारी रख रहा है, पर केवल कुछ हजार वर्षों के अंतराल के बाद, और स्थान तथा कार्यक्रम में बदलाव के साथ। यद्यपि परमेश्वर द्वारा आज के कार्य में धारित देह की छवि यीशु से सर्वथा भिन्न है, फिर भी वे एक ही सार और मूल से उत्पन्न हुए हैं, और वे एक ही स्रोत से आते हैं। हो सकता है, बाहर उनमें कई अंतर हों, किंतु उनके कार्य के आंतरिक सत्य पूरी तरह से समान हैं। आख़िरकार उनके युगों में रात और दिन का अंतर है। तो फिर परमेश्वर के कार्य का स्वरूप अपरिवर्तित कैसे रह सकता है? या उसके कार्य के विभिन्न चरण एक-दूसरे के आड़े कैसे आ सकते हैं?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (6)

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