परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर के कार्य को जानना | अंश 165

परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक चरण एक एवं समान धारा का अनुसरण करता है, और इस प्रकार परमेश्वर की छह हज़ार सालों की प्रबंधकीय योजना में, संसार की नींव से लेकर ठीक आज तक, प्रत्येक चरण का अगले चरण के द्वारा नज़दीकी से अनुसरण किया गया है। यदि मार्ग प्रशस्त करने के लिए कोई न होता, तो उसके बाद आने के लिए कोई न होता; चूँकि ऐसे लोग हैं जो उसके बाद आते हैं, तो ऐसे लोग भी हैं जो मार्ग प्रशस्त करते हैं। इस रीति से कदम दर कदम कार्य को आगे पहुंचया गया है। एक चरण दूसरे चरण का अनुसरण करता है, और मार्ग प्रशस्त करने वाले व्यक्ति के बिना, उस कार्य को करना असंभव हो गया होता, और परमेश्वर के पास अपने कार्य को आगे ले जाने के लिए कोई साधन नहीं होता। कोई भी चरण दूसरे चरण का खण्डन नहीं करता है, और एक धारा को बनाने के लिए प्रत्येक चरण दूसरे चरण का क्रम से अनुसरण करता है; यह सब एक ही आत्मा के द्वारा किया जाता है, परन्तु इसकी परवाह किये बगैर कि कोई व्यक्ति मार्ग खोलता है या नहीं, या दूसरे के कार्य को जारी रखता है या नहीं, यह उनकी पहचान को निर्धारित नहीं करता है। क्या यह सही नहीं है? यूहन्ना ने मार्ग खोला, और यीशु ने उसके कार्य को जारी रखा, अतः क्या यह साबित करता है कि यीशु की पहचान यूहन्ना से नीची थी? यीशु से पहले यहोवा ने अपने कार्य को सम्पन्न किया था, अतः क्या तुम कह सकते हो कि यहोवा यीशु से बड़ा है? यह महत्वपूर्ण नहीं है कि उन्होंने मार्ग प्रशस्त किया थ या दूसरे के कार्य को जारी रखा था; जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण है वह उनके कार्य का सार-तत्व है, और वह पहचान है जिसे यह दर्शाता है। क्या यह सही नहीं है? चूँकि परमेश्वर ने मनुष्य के मध्य कार्य करने का इरादा किया था, उसे ऐसे लोगों को खड़ा करना था जो मार्ग प्रशस्त करने के कार्य को कर सकते थे। जब यूहन्ना ने प्रचार करना शुरू ही किया था, उसने कहा, "प्रभु का मार्ग तैयार करो, उसकी सड़कें सीधी करो। मन फिराओ, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।" उसने शुरु से इस प्रकार कहा था, और वह क्यों इन वचनों को कह सकता था? उस क्रम के सम्बन्ध मे जिसके अंतर्गत इन वचनों को कहा गया था, वह यूहन्ना ही था जिसने सबसे पहले स्वर्ग के राज्य के सुसमाचार को कहा था, और वह यीशु था जो उसके बाद बोला था। मनुष्य की धारणाओं के अनुसार, यह यूहन्ना ही था जिसने नए पथ को खोला था, और निश्चित रूप से यूहन्ना यीशु से बड़ा था। परन्तु यूहन्ना ने नहीं कहा कि वह मसीह था, और परमेश्वर ने अपने प्रिय पुत्र के रूप में उसकी गवाही नहीं दी थी, परन्तु मार्ग को खोलने और प्रभु के लिए मार्ग तैयार करने के लिए मात्र उसका उपयोग किया था। उसने यीशु के लिए मार्ग प्रशस्त किया था, परन्तु यीशु के बदले में कार्य नहीं कर सकता था। मनुष्य के समस्त कार्य को पवित्र आत्मा के द्वारा भी संभाला जाता है।

पुराने नियम के युग में, वह यहोवा ही था जो मार्ग की अगुवाई करता था, और यहोवा का कार्य पुराने नियम के सम्पूर्ण युग, और इस्राएल में किये गये सारे कार्य को दर्शाता था। मूसा ने तो मात्र इस कार्य को पृथ्वी पर थामा था, और उसके परिश्रम को मनुष्य के द्वारा प्रदान किया गया सहयोग माना गया था। उस समय, यह यहोवा ही था जो बोलता था, और उसने मूसा को बुलाया था, और उसे इस्राएल के लोगों के मध्य खड़ा किया था, और मूसा से कनान की ओर जंगल में उनकी अगुवाई करवाई थी। यह स्वयं मूसा का कार्य नहीं था, परन्तु ऐसा कार्य था जिसे यहोवा के द्वारा व्यक्तिगत रूप से निर्देशित किया गया था, और इस प्रकार मूसा को परमेश्वर नहीं कहा जा सकता। साथ ही मूसा ने व्यवस्था को स्थापित भी किया था, परन्तु इस व्यवस्था का आदेश यहोवा के द्वारा व्यक्तिगत रूप से दिया गया था, जिसने इसे मूसा के द्वारा बुलवाया था। यीशु ने भी आज्ञाएं बनाईं, और पुराने नियम की व्यवस्था का उन्मूलन किया और नये युग के लिए आज्ञएं निर्दिष्ट कीं। क्यों यीशु स्वयं परमेश्वर है? क्योंकि ये एक समान चीज़ें नहीं हैं। उस समय, मूसा के द्वारा किया गया कार्य उस युग को नहीं दर्शाता था, न ही इसने कोई नया मार्ग खोला था; उसे यहोवा के द्वारा आगे निर्देशित किया गया था, और वह महज ऐसा व्यक्ति था जिसे परमेश्वर के द्वारा उपयोग किया गया था। जब यीशु आया, तब यूहन्ना ने मार्ग प्रशस्त करने के कार्य के एक चरण को सम्पन्न कर लिया था, और स्वर्ग के राज्य के सुसमाचार को फैलाना शुरू कर दिया था (पवित्र आत्मा ने इसे शुरू किया था)। जब यीशु प्रगट हुआ, तो उसने सीधे तौर पर अपना खुद का कार्य किया, परन्तु उसके कार्य और मूसा के कार्य एवं कथनों के बीच में एक बहुत बड़ा अन्तर था। यशायाह ने भी बहुत सारी भविष्यवाणियाँ कीं, फिर भी वह स्वयं परमेश्वर क्यों नहीं था? यीशु ने बहुत सारी भविष्यवाणियों को नहीं कहा था, फिर भी वह स्वयं परमेश्वर क्यों था? कोई भी यह कहने की हिम्मत नहीं करता है कि उस समय यीशु के सारे कार्य पवित्र आत्मा की ओर से आए थे, न ही वे यह कहने की हिम्मत करते हैं कि यह सब मनुष्य की इच्छा से आया था, या यह पूरी तरह स्वयं परमेश्वर का कार्य था। मनुष्य के पास ऐसी बातों का विश्लेषण करने का कोई तरीका नहीं है। यह कहा जा सकता है कि यशायाह ने ऐसा कार्य किया था, और ऐसी भविष्यवाणियों को कहा था, और वे सब पवित्र आत्मा से आये थे; वे सीधे तौर पर स्वयं यशायाह से नहीं आये थे, परन्तु यहोवा के प्रकाशन थे। यीशु ने बड़ी मात्रा में कार्य नहीं किया था, और बहुत सारे वचनों को नहीं कहा था, न ही उसने बहुत सारी भविष्यवाणियों को कहा था। मनुष्य के लिए, उसका प्रचार विशेष रूप से ऊँचा नहीं प्रतीत होता था, फिर भी वह स्वयं परमेश्वर था, और यह मनुष्य के लिए अवर्णनीय है। किसी ने कभी भी यूहन्ना, या यशायाह, या दाऊद पर विश्वास नहीं किया था; न ही किसी ने कभी उन्हें परमेश्वर कहा, या दाऊद परमेश्वर, या यूहन्ना परमेश्वर कहा था; किसी ने कभी भी ऐसा नहीं कहा, और केवल यीशु को ही हमेशा मसीह कहा गया है। परमेश्वर की गवाही, वह कार्य जिसका उसने उत्तरदायित्व लिया था, और वह सेवकाई जिसे उसने किया था, उनके अनुसार यह वर्गीकरण किया गया है। बाईबिल के महापुरुषों के लिहाज से—इब्राहीम, दाऊद, यहोशू, दानिय्येल, यशायाह, यूहन्ना एवं यीशु—उस कार्य के माध्यम से जिसे उन्होंने किया था, तुम कह सकते हो कि स्वयं परमेश्वर कौन है, और किस प्रकार के लोग भविष्यवक्ता हैं, और कौन प्रेरित हैं। परमेश्वर के द्वारा किसे उपयोग किया गया था, और कौन स्वयं परमेश्वर था, यह सार-तत्व और जिस प्रकार का कार्य उन्होंने किया था उसके द्वारा अलग एवं निर्धारित किया गया है। यदि तुम अन्तर को बताने में असमर्थ हो, तो यह साबित करता है कि तुम नहीं जानते हो कि परमेश्वर में विश्वास करने का अर्थ क्या होता है। यीशु परमेश्वर है क्योंकि उसने बहुत सारे वचन कहे थे, और बहुत अधिक कार्य किये थे, विशेषकर उसका अनेक चमत्कारों का प्रदर्शन। उसी प्रकार, यूहन्ना ने भी बहुत अधिक कार्य किया था, और मूसा ने भी ऐसा ही किया था; तो उन्हें परमेश्वर क्यों नहीं कहा गया? आदम को सीधे तौर पर परमेश्वर के द्वारा बनाया गया था; सिर्फ एक प्राणी कहकर पुकारने के बजाए, उसे परमेश्वर क्यों नहीं कहा गया था? यदि कोई तुमसे कहे, "आज, परमेश्वर ने बहुत अधिक कार्य किया है, और बहुत सारे वचन कहें हैं; वह स्वयं परमेश्वर है। तो, चूँकि मूसा ने बहुत सारे वचन कहे थे, वो भी स्वयं परमेश्वर होगा!" तुम्हें जवाब में उनसे पूछना चाहिए, "उस समय, क्यों परमेश्वर ने यीशु की गवाही दी, और स्वयं परमेश्वर के रूप में यूहन्ना की गवाही क्यों नहीं दी थी? क्या यूहन्ना यीशु से पहले नहीं आया था? क्या महान था, यूहन्ना का कार्य या यीशु का कार्य? मनुष्य को यूहन्ना यीशु से अधिक महान प्रतीत होता है, परन्तु क्यों पवित्र आत्मा ने यीशु की गवाही दी, और यूहन्ना की नहीं?" आज भी वही काम हो रहा है! शुरुआत में, जब मूसा ने इस्राएल के लोगों की अगुवाई की थी, यहोवा ने बादलों के मध्य से उससे बात की थी। मूसा ने सीधे तौर पर बात नहीं की थी, परन्तु इसके बजाए यहोवा के द्वारा सीधे तौर पर उसका मार्गदर्शन किया गया था। यह पुराने नियम के इस्राएल का कार्य था। मूसा के भीतर आत्मा या परमेश्वर का अस्तित्व नहीं था। वह उस कार्य को नहीं कर सकता था, और इस प्रकार जो कुछ उसके द्वारा और जो कुछ यीशु के द्वारा किया गया था उसमें एक बड़ा अन्तर था। और यह इसलिए है क्योंकि वह कार्य जो उन्होंने किया था वह अलग है! चाहे किसी व्यक्ति को परमेश्वर के द्वारा उपयोग किया जाता है या नहीं, या चाहे वह एक भविष्यवक्ता है, या एक प्रेरित है, या स्वयं परमेश्वर है, उसे उसके कार्य के स्वभाव के द्वारा पहचाना जा सकता है, और यह तुम्हारे सन्देहों का अन्त कर देगा। बाईबिल में ऐसा लिखा हुआ है कि सिर्फ मेमना ही सात मुहरों को खोल सकता है। युगों के दौरान, उन महान व्यक्तियों के मध्य पवित्र शास्त्र के अनेक व्याख्याता हुए हैं, और इस प्रकार क्या तुम कह सकते हो कि वे सब मेमने हैं? क्या तुमकह सकते हो कि उनकी सब व्याख्यायें परमेश्वर से आई थीं? वे तो मात्र व्याख्याता ही हैं; उनके पास मेमने की पहचान नहीं है। वे कैसे सात मोहरों को खोलने के योग्य हो सकते हैं? यह सत्य है कि "सिर्फ मेमना ही सात मोहरों को खोल सकता है," परन्तु वह सिर्फ सात मोहरों को खोलने के लिए ही नहीं आता है; इस कार्य की कोई आवश्यकता नहीं है, इसे संयोगवश किया गया है। वह अपने स्वयं के कार्य के विषय में बिल्कुल स्पष्ट है; क्या यह उसके लिए आवश्यक है कि पवित्र शास्त्र का अनुवाद करने के लिए अधिक समय बिताए? क्या "पवित्र शास्त्र का अनुवाद करते मेमने के युग" को छह हज़ार सालों के कार्य में जोड़ना होगा? वह नया कार्य करने के लिए आता है, परन्तु वह साथ ही बीते समयों के कार्य के विषय में कुछ प्रकाशनों को भी प्रदान करता है, जिससे लोग छह हज़ार सालों के कार्य के सत्य को समझ सकें। बाईबिल के बहुत सारे लेखांशों की व्याख्या करने की कोई ज़रूरत नहीं है; यह आज का कार्य है जो मुख्य बिन्दु है, जो महत्वपूर्ण है। तुम्हें जानना चाहिए कि परमेश्वर विशेष रूप से सात मुहरों को तोड़ने के लिए नहीं आता है, परन्तु उद्धार के कार्य को करने के लिए आता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पदवियों और पहचान के सम्बन्ध में

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